How to Avoid Youths from Going Astray?
1.युवाओं को गुमराह होने से कैसे बचाएं? (How to Avoid Youths from Going Astray?),छात्र-छात्राओं को भटकने से कैसे बचाएं? (How to Protect Students from Being Misled?):
- युवाओं को गुमराह होने से कैसे बचाएं? (How to Avoid Youths from Going Astray?) क्योंकि आज देश के अधिकांश युवा इस समस्या से घिरे हुए हैं।युवकों को युवा काल में तप,श्रम और ब्रह्मचर्य का पालन तथा विद्या अर्जित करना चाहिए।वस्तुतः इस समय में उनके पाँव बहकने,भटकने,फिसलने में लगे हैं।युवाओं में जोश होता है परंतु होश नहीं होता है इसलिए उन्हें न अपने लक्ष्य का ध्यान है और न इस बारे में सोचने की फुर्सत है।वे जो कर रहे हैं उसके परिणाम से भी वे अनभिज्ञ हैं।वे जिज्ञासा,कुतूहल ख्वाहिश,शौक या फैशन के नाम पर ऐसे गलत रास्ते पर चल पड़ते हैं जिनका परिणाम पूरे जीवन भर तनाव,हताशा,निराशा,कुंठा के रूप में भुगतना पड़ता है।इस गलत रास्ते का चुनाव वे टीवी,फिल्में,आसपास के माहौल,माता-पिता की लापरवाही व आध्यात्मिक शिक्षा के अभाव तथा सामाजिक वातावरण के कारण करते हैं।।
- नशाखोरी,अय्याशी तथा अपराध जगत की ओर धकेलने में ओर भी कारण हैं जैसे जीवन शैली का प्रभाव,पाश्चात्य देशों द्वारा भारत को बाजार के रूप में इस्तेमाल करना,पोर्न वेबसाइट,अपराधियों को खुला संरक्षण,राजनैतिक नेताओं द्वारा युवाओं का अपने वोट बैंक के लिए इस्तेमाल करना इत्यादि।
- आज युवाओं में नशे में शराब,सिगरेट,एलएसडी,अफीम,चरस,गांजा,तम्बाकू इत्यादि को कोई जगह नहीं है।ये चीजें तो आज साफ्ट आइटम समझे जाते हैं।ये सब चीजें तो गुजरे जमाने की ओल्ड फैशन चीजें हैं।आज युवाओं में तनाव को दूर करने,मौज मस्ती करने,अय्याशी करने के कुछ नए साधन अपनाए जा रहे हैं।ये सब उन्हें साइबर कैफे,पबों,नाइट क्लबों या काॅफी रेस्तराँओं में आसानी से मिल जाता हैं।उन्हें यहाँ चिल्ड वाटर,एनर्जी ड्रिंक्स,बेसिर-पैर वाले हँसी मजाक,अपने में डुबो देने वाला नया संगीत,पाॅप संगीत,राॅक संगीत और शर्ट्स।अपने में ये प्रत्येक शब्द कूट शब्द है।जैसे शर्ट्स का मतलब है नसों के जरिए ली जाने वाली हेरोइन या कोकीन से है।
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2.युवाओं को गुमराह करने के माध्यम (Mediums that Mislead the Youth):
- साइबर कैफे का चलन युवाओं में बड़ी तेजी से फैलता जा रहा है।साइबर की दुनिया के फायदों से इनकार नहीं किया जा रहा है।इंटरनेट ने जो ज्ञान एवं सूचना के नए आयाम खोले हैं,उससे देश और दुनिया में कोई अपरिचित नहीं है।सूचना क्रांति के इस अनूठे शोध अनुसंधान और ज्ञान के आदान-प्रदान में काफी कुछ जोड़ा है,पर जिंदगी से भटके हुए युवक-युवतियां इसका दुरुपयोग भी कम नहीं कर रहे हैं।साइबर कैफे उनके जीवन में जहर घोलने की भूमिका निभा रहे हैं।विकसित राज्यों एवं बड़े शहरों में इसकी चर्चा और चलन को तो सभी जानते हैं पर नए बने छोटे राज्यों एवं छोटे शहरों में भी यह बीमारी कम नहीं है।
- समाचार पत्रों एवं जानकारों की राय में अधिकतर साइबर कैफे पहुंचने वाले युवक-युवतियां चैटिंग के बहाने पोर्न साइट को जरूर खँगालते हैं और अब तो यह खुलेआम चलता है।24 घंटे उपलब्ध इस सुविधा की उपलब्धियां क्या होंगी इसे आसानी से समझा जा सकता है।
- पाश्चात्य संस्कृति वैलेंटाइन डे,अप्रैल फूल,बसन्तोत्सव (spring break),लिव इन रिलेशनशिप इत्यादि को भी युवाओं को भटकाने में कम योगदान नहीं है।पाश्चात्य देश इन उत्सवों पर अपने माल तथा सामग्री की मार्केटिंग करके वे भारत जैसे देशों में मुनाफा कमाते हैं।वे भारत जैसे देशों को केवल एक बाजार के दृष्टिकोण से देखते हैं।इन अवसरों पर विदेशी शराब,ड्रग्स तथा एक-दूसरे को तोहफे देने के अनेक हथकण्डे अपनाएं जाते हैं।
- इंटरनेट के जरिए युवावर्ग ज्ञान और जानकारियां लेने के बजाय अश्लील,पोर्न सामग्री तलाशते हैं और जुटाते हैं।इन्हें देखकर ये युवा समय से पूर्व ही परिपक्व हो जाते हैं।उनके लिए अय्याशी,अश्लीलता अछूत नहीं रह गई है।अब ड्रग्स,हिंसा,अपराध,शराब आदि सामान्य जीवन के अंग बनते जा रहे हैं।इनसे परहेज कैसा!इनसे बचने के लिए कोई नैतिक दबाव भी दृष्टिगोचर नहीं होता है।ड्रग्स में मारिजुआना खतरनाक माना जाता है क्योंकि जब इसकी लत लग जाती है तो इसे छोड़ पाना मुश्किल होता है।यह विषकारक है और शरीर को खोखला कर देता है।किशोरों और युवाओं में इसका सेवन करने का चलन बढ़ा है।अधिकांश युवा जब परेशान होते हैं या अकेलेपन के कारण शराब पीते हैं।कुछ बोरियत मिटाने के लिए पीते हैं।कुछ आदतन इसे यूं ही पीते हैं।
- अमेरिका जैसे देशों में इनका चलन अधिक है।परंतु अमेरिका जैसे देशों में पनप रही इस अपसंस्कृति के दंश से हमारा देश भी अछूता नहीं रह पाया है क्योंकि संचार क्रांति ने विश्व को एक गांव के समान बना दिया है।वहां पर होने वाली घटनाओं को हमारे देश के युवा भी बिना सोचे-समझे अपनाते हैं।विदेशों में नित नए पैदा हो रहे ब्रांड को युवावर्ग टकटकी लगाकर देखता है।उसे परखने में अपने विवेक का प्रयोग नहीं करता है।हर छोटी से लेकर बड़ी चीज उनके लिए स्टेटस सिंबल बनती जा रही है और उसे पाने की ललक में किसी भी हद तक जाने में कोई कोताही नहीं करते।वे अपनी बात को मनवाने के लिए घर में जिद करते हैं और न माने जाने पर चोरी या अन्य अपराध का हथकंडा अपनाया जाता है।यही वह मार्मिक बिंदु है जो इन्हें अपराध की दुनिया में पांव रखने के लिए मजबूर करता है।यहीं से उनके अंदर आपराधिक प्रवृत्तियां जन्म लेती है।
- युवाओं को गुमराह करने में टीवी में आने वाले अनगिनत सीरियल है,इंटरनेट की रंगीन एवं व्यापक दुनिया है।समाचार के इन साधनों में जिंदगी को सही तरीके से जीने की कला तो नहीं के बराबर है परंतु जिंदगी को विध्वंसक बनाने वाली अधिक होती है।इनमें रचनात्मकता के बजाय हिंसात्मक अधिक है।किशोर तथा युवावस्था संवेदनशील है इस उम्र में जीवन का व्यावहारिक व नैतिक ज्ञान न तो घर में माता-पिता व अभिभावक देते हैं और न स्कूलों में शिक्षक।एक ओर माता-पिता व अभिभावक के पास समय का अभाव है दूसरी ओर शिक्षक लगभग व्यवसाय के पर्याय बन चुके हैं क्योंकि आज शिक्षा और शिक्षक दोनों ही व्यवसाय के प्रमुख केंद्रों में गिने जाते हैं।
- हिंसात्मक प्रवृत्ति में निरंतर बढ़ोतरी के साथ अश्लीलता और नशाखोरी का जो पिटारा खुला हुआ है वह घटने का नाम नहीं ले रहा है।इंटरनेट में अनगिनत संख्या में पोर्नोग्राफी साइट और इनको सर्फिंग करने वाले अधिकतर किशोर व युवावर्ग है।जिस उम्र में ब्रह्मचर्य की शिक्षा दी जानी चाहिए थी जिससे शरीर और मन मजबूत होते थे,ब्रह्मचर्य की प्रक्रिया निरंतर 25 वर्ष तक चलती थी तब तक मन और शरीर परिपक्व हो जाते थे तभी गृहस्थाश्रम में प्रवेश किया जाता था परंतु आज यह परंपरा कथा-कहानियों में पढ़ने को मिलती है यथार्थ में किशोर व युवावर्ग इसका पालन नहीं करते हैं।
- आज के किशोर व युवा टीवी में प्रदर्शित मॉडलों तथा फिल्मों के नायक के समान बनना और दीखना चाहते हैं।आज के किशोरों और युवाओं के आदर्श चरित्रवान् महान गणितज्ञ,वैज्ञानिक,महापुरुष यथा आर्किमिडीज,न्यूटन,राम,कृष्ण और गौतम बुद्ध,महावीर स्वामी इत्यादि नहीं रहे बल्कि इनके स्थान पर ग्लैमरस छवि वाले मॉडल और अभिनेता आ गए हैं।अब युवाओं के आदर्श ही ऐसे हैं तो फिर युवा स्वयं कैसे होंगे,युवाओं के विचार कैसे होंगे इसे आसानी से सोचा जा सकता है,यह हमारे लिए चिंतनीय है।
3.युवाओं को सही दिशा और मार्गदर्शन के उपाय (Measures to Guide the Youth in the Right Direction and Guidance):
- आज के युवाओं को आध्यात्मिक चेतना की आवश्यकता है।कठिन परिश्रम,धैर्य,लगन,दृढ़ता जैसे गुणों को धारण करके भी युवावर्ग गुमराह और भटक रहा है तो उसका कारण है कि उन्हें आध्यात्मिक शिक्षा नहीं दी जा रही है।पाठ्यक्रम में आध्यात्मिक शिक्षा तो शामिल करना हमारे वश में नहीं है।परंतु माता-पिता,अभिभावक एवं शिक्षक अपनी नैतिक जिम्मेदारी समझते हुए उन्हें थोड़ी-बहुत आध्यात्मिक शिक्षा भी प्रसंगवश दी जानी चाहिए।आध्यात्मिक जीवन दृष्टि न होने से युवाओं की जीवन दृष्टि केवल धन कमाने की ओर रहती है।
- आज युवावर्ग सूचना प्रौद्योगिकी एवं प्रबन्धन का क्षेत्र चुनते हैं क्योंकि इन क्षेत्रों में धन अधिक कमाया जा सकता है।आज मेडिकल और इंजीनियरिंग को सूचना प्रौद्योगिकी एवं प्रबंधन के बाद ही चयन की बात सोची जाती है।प्रशासनिक सेवाओं में भी युवाओं का रुझान घटा है क्योंकि धन कमाने की अपार संभावनाएं इन सेवाओं में नहीं है।कई युवा तो प्रशासनिक सेवाओं में चयनित होने के बाद भी प्रशासनिक सेवाओं को कुछ साल करने के बाद छोड़कर बहुराष्ट्रीय कंपनियों में नौकरी करने चले जाते हैं।
- तात्पर्य यही है कि नौकरी वहीं तथा वही करनी जहां धन हो।ज्यादातर युवाओं के जीवन का यही मूल मंत्र है।अधिक से अधिक धन प्राप्त करना ही उनकी जिंदगी का मकसद है।इसके लिए वे कुछ भी करने के लिए तैयार हैं।अब से कुछ समय पहले युवाओं के लिए अमेरिका जैसे देश उनके लिए स्वर्गलोक था परंतु अब यह गुजरे जमाने की बात हो गई है।
- युवाओं को नजदीकी सुख और स्वार्थ (भौतिक सुविधाओं से मिलने वाला क्षणिक सुख) तो नजर आता है परंतु त्याग,तप और सेवा से मिलने वाला आत्मिक सुख और उसके दूरगामी अच्छे परिणाम उन्हें नजर नहीं आते हैं।युवाओं को आज और अभी सब कुछ चाहिए।कल का धीरज उनमें नहीं।बड़ी कंपनी,बड़ा पद और धन मिल भी जाए तो उन्हें प्रसिद्धि की दुनिया लुभाती है।इसके लिए वे थोड़ा सा भी इंतजार करने के लिए तैयार नहीं है।भौतिक सुख-सुविधाओं को भोगने एवं अनियमित दिनचर्या के कारण हम कई बीमारियों तथा मानसिक विचारों (लोभ,लालच,तृष्णा इत्यादि) को गले लगा बैठे हैं।
- युवाओं को सोचना चाहिए कि धन कमाने के अलावा भी जिंदगी के कुछ मकसद है।जब वे देश व समाज से कुछ लेते हैं तो देश व समाज का ऋण चुकाना भी हमारा कर्त्तव्य है।कर्त्तव्य की भावना,धर्म की भावना आध्यात्मिक शिक्षा ग्रहण करने से ही आती है।इससे न केवल वे अपराध,अश्लीलता व नशाखोरी जैसे गलत कार्यों की ओर प्रवृत्त नहीं होंगे बल्कि उनका जीवन सुखद,मंगलमय तथा शांतिपूर्ण हो सकेगा।
- किशोर एवं युवावर्ग आध्यात्मिक बातें अपने जीवन में उतारें इसके लिए घर-परिवार के वातावरण को सात्त्विकता से युक्त होना चाहिए जहाँ पर श्रेष्ठ मूल्यों को व्यवहार में उतारा जा सके।परिवार,माता-पिता व अभिभावक युवाओं की प्रथम पाठशाला है।सर्वप्रथम किशोर एवं युवा यहीं सीखते हैं।अतः मूल कारण अर्थात् घर-परिवार और शिक्षा संस्थानों को ठीक कर दिया जाए तो शेष इसी आधार पर ठीक होते चले जाएंगे।
- किशोर और युवावर्ग को प्यार से समझाना चाहिए।उनकी गलतियों पर उन्हें डाँटना-डपटना या फटकार नहीं लगानी चाहिए।प्यार से उनकी बातें,उनकी समस्याएं सुननी चाहिए।गलतियाँ क्यों हुई उसके मूल कारण को जानना,समझना चाहिए और शान्ति से उनकी बात को सुनना चाहिए।युवा कई गलतियां और उनके अपराधबोध से ग्रस्त होते हैं कि वे अपनी मन की पीड़ा और व्यथा नहीं कह सकते हैं।उन्हें अपराधबोध से मुक्त करके उनके साथ आत्मीयतापूर्ण व्यवहार करना चाहिए।फिर भी गलतियों एवं समस्याओं का समाधान न हो सके तो उन्हें ऐसे व्यक्तित्व से मिलाना चाहिए जिससे वे सुनते हों और मानते हों।
4.यवक के गुमराह होने का दृष्टांत (Parable of Young Man Being Misled):
- दो मित्र थे।एक मित्र धार्मिक प्रवृत्ति का था और सदैव अपने जॉब को पूर्ण समर्पण,निष्ठा,ईमानदारी और लगन के साथ करने में लगा रहता था।उसका एकमात्र लक्ष्य था कि उसके पास कोई भी जॉब के लिए आता था तो पूर्ण तत्परता,लगन और श्रेष्ठ तरीके से संपन्न करता था।ऐसा करने से उसे आत्मिक संतुष्टि मिलती थी।परंतु ऐसा करने से वह अधिक धन नहीं कमा पाता था और न ही भौतिक सुख-सुविधाओं का उसके पास अंबार लगा हुआ था।वह निर्धनता में ही परम सुखी था।दूसरा मित्र आध्यात्मिक प्रवृत्ति का नहीं था।वह रात-दिन धन कमाने में लगा रहता था।उसने अकूत धन-संपत्ति,ऐश्वर्य के साधन व भोग-विलास की सुविधाएं जुटा ली थी।परंतु फिर भी वह सुखी और संतोषी नहीं था।वह हमेशा अशांत रहता था।
- एक दिन दूसरा मित्र पहले मित्र से मिलने आया।वह उसको साधारण से रहन-सहन को देखकर बोला कि तुम्हारी जितनी प्रशंसा की जाए उतनी कम है।तुमने तो लोगों की सेवा,सहायता तथा आध्यात्मिकता में दुनिया के ऐश्वर्य,धन-संपत्ति और भौतिक सुख-सुविधाओं का बिल्कुल त्याग कर दिया।धन-संपत्ति अर्जित करने तथा भौतिक सुविधाओं को जुटाने में तुम्हारा ध्यान ही नहीं है।
- पहला मित्र बोला मेरे से बड़ा त्याग तो तुमने किया है।तुमने धन-संपत्ति और दौलत इकट्ठी करने में लोगों को चूसने में कोई कसर नहीं छोड़ी।यहां तक कि तुमने तो अपने रिश्तेदारों तक धन हड़पने में कोई संकोच नहीं किया।तुमने इस चक्कर में सृष्टि के मालिक तक को भुला दिया।अंतर्मन से सभी नाते-रिश्तेदार,सगे-संबंधी तुम्हारे धन के लोभ के कारण दूर होते चले गए।यानि तुमने सब को भुला दिया,त्याग कर दिया।कहो प्रसन्न,संतुष्ट तथा सुखी तो हो।दूसरे मित्र को गहरा झटका लगा तथा अपनी अशांति का कारण समझ में आ गया।उसी दिन से उसके जीवन की दिशा बदल गई।उसने लोगों से प्रेम,सद्व्यवहार करना प्रारंभ कर दिया।धीरे-धीरे उसने आध्यात्मिक जीवन जीना शुरु कर दिया।उसे आत्म-संतुष्टि मिलने लगी।
- तात्पर्य यह है कि जो व्यक्ति अनुकूल-प्रतिकूल परिस्थितियों में सांसारिक ज्ञान के साथ आध्यात्मिक ज्ञान भी अर्जित करता है तो जो कुछ उसके पास है उसी में संतुष्ट रहता है।आध्यात्मिक ज्ञान के बिना व्यक्ति गुमराह हो जाता है और जीवन में सुख-शांति तथा संतोष उसको नसीब नहीं होता है।
- उपर्युक्त आर्टिकल में युवाओं को गुमराह होने से कैसे बचाएं? (How to Avoid Youths from Going Astray?),छात्र-छात्राओं को भटकने से कैसे बचाएं? (How to Protect Students from Being Misled?) के बारे में बताया गया है।
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5.गणित का छात्र भिखारी बना (हास्य-व्यंग्य) (Mathematics Student Becomes Beggar) (Humour-Satire):
- भिखारी छात्र (साहब):पचास रुपये दे दो,मुझे पुस्तक लानी है।
- साहबःलेकिन तुम्हारे पिताजी तो अकूत धन-संपत्ति तुम्हारे लिए छोड़ गए थे न।
- भिखारी छात्र:वह सारी धन-दौलत खत्म हो गई है।अब भीख माँगने की नौबत आ गई है।
- साहब:लेकिन इतनी धन-संपत्ति पाकर भी तुम एकदम से रोड़ पर कैसे आ गए,मेरा मतलब भीख माँगने की नौबत कैसे आ गई।
- भिखारी छात्र:साहब,गर्लफ्रैंड ने मुझे भिखारी बना दिया।
6.युवाओं को गुमराह होने से कैसे बचाएं? (Frequently Asked Questions Related to How to Avoid Youths from Going Astray?),छात्र-छात्राओं को भटकने से कैसे बचाएं? (How to Protect Students from Being Misled?) से सम्बन्धित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:
प्रश्न:1.विदेशी ब्रांडों के कारण युवा कैसे प्रभावित हो रहें हैं? (How are the Youth Being Affected Due to Foreign Brands?):
उत्तर:विदेशी कम्पनियों और विकसित बाजार में नित नए ऐसे ब्रांड लेकर आ रहे हैं जिन्हें देखकर युवा उनको खरीदने पर लालायित हो जाते हैं।इन ब्रांडों के कारण युवाओं की एकाग्रता,धैर्य,तार्किक क्षमता,स्मृति,कल्पना,भावना,संवेदना,स्वास्थ्य,शिक्षा आदि प्रभावित हो रहे हैं।जबसे बाजार युवाओं के मन पर हावी हो गया है तब से युवक-युवतियां श्रेष्ठ आदर्श एवं विचारों को पुराने,दकियानूसी और आउटडेटेड समझते हैं।ये युवक-युवतियां भारतीय संस्कृति,आदर्श और जीवन मूल्यों को अपनाकर ही गुमराह होने से बच सकते हैं।
प्रश्न:2.युवा बहुराष्ट्रीय कंपनी में उच्च पदों पर नियुक्त होकर भी गुमराह क्यों हैं? (Why are the Youth Misguided Even After Being Appointed to High Positions in Multinational Companies?):
उत्तर:अनेक युवा अपनी महत्वाकांक्षाओं की अति और धैर्य के अभाव के कारण स्वास्थ्य और मानसिक शांति सब कुछ गँवा चुके हैं।इन युवाओं में अनेक को प्रबंध विशेषज्ञ कहा-माना जाता है। बड़ी-बड़ी कंपनियां इनकी सोच के चलते मुनाफा कमाती है लेकिन वे खुद बड़े घाटे में हैं क्योंकि वे स्वयं अपने जीवन का सही प्रबन्धन नहीं कर पा रहे हैं।
अध्यात्म को जीवन प्रबंधन कहें या जीवन जीने की कला या फिर इन दोनों का सार्थक समन्वय,यह कुछ ऐसा ही है।
प्रश्न:3.युवाओं की सोच में परिवर्तन कैसे सम्भव है? (How is It Possible to Change the Thinking of Youth?):
उत्तर:युवाओं की सोच में क्रांतिकारी परिवर्तन आध्यात्मिक सोच को अपनाने से संभव है जो कि न केवल व्यावसायिक प्रबन्धन में कुशल बना सकता है बल्कि जीवन के आध्यात्मिक प्रबंधन की ओर प्रेरित करता है।आध्यात्मिक से सभी युवाओं को प्रेरणा ग्रहण करनी चाहिए और उन्हें सार्थक जीवन लक्ष्य की खोज में आगे बढ़ना चाहिए।
- उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा युवाओं को गुमराह होने से कैसे बचाएं? (How to Avoid Youths from Going Astray?),छात्र-छात्राओं को भटकने से कैसे बचाएं? (How to Protect Students from Being Misled?) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
How to Avoid Youths from Going Astray?
युवाओं को गुमराह होने से कैसे बचाएं?
(How to Avoid Youths from Going Astray?)
How to Avoid Youths from Going Astray?
युवाओं को गुमराह होने से कैसे बचाएं? (How to Avoid Youths from Going Astray?)
क्योंकि आज देश के अधिकांश युवा इस समस्या से घिरे हुए हैं।
युवकों को युवा काल में तप,श्रम और ब्रह्मचर्य का पालन तथा विद्या अर्जित करना चाहिए।
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Satyam
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