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How Students Avoid Blind Following?

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1.छात्र-छात्राएं अन्धानुकरण से कैसे बचें? (How Students Avoid Blind Following?),अन्धानुकरण से कैसे बचें? (How to Avoid Blind Imitation?):

  • छात्र-छात्राएं अन्धानुकरण से कैसे बचें? (How Students Avoid Blind Following?) क्योंकि अन्धानुकरण से हमारा व्यक्तित्व भोंथरा हो जाता है,निकृष्ट बना रहता है।परीक्षा की तैयारी करने,प्रवेश परीक्षा की तैयारी करने या इंटरव्यू में अन्धानुकरण करने वाले छात्र-छात्राएं पिछड़ते चले जाते हैं।
    स्वतंत्र व्यक्तित्व,प्रभावी व्यक्तित्व का निर्माण करने के लिए अनुकरण करना चाहिए अथवा अपनी स्वतंत्र सोच,समझ,विचारधारा को विकसित करने का प्रयास करना चाहिए।आइए देखते हैं कि अंधानुकरण तथा अनुकरण में क्या अंतर हैं? अनुकरण और स्वतंत्र चिंतन कैसे विकसित करें?
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2.अंधानुकरण और अनुकरण में अंतर (Difference Between Blind Imitation and Imitation):

  • अनुकरण और अंधानुकरण में जमीन-आसमान का फर्क होता है।हालांकि दोनों में ही,दूसरों की नकल करना होता है लेकिनएक,जहां व्यक्ति को आगे ले जाने वाला होता है वहीं दूसरा,व्यक्ति को पीछे या अवनति की तरफ ले जाता है।अनुकरण के पीछे सार्थक उद्देश्य होता है।काफी सोच,विचारकर ही किसी का अनुकरण किया जाता है।अनुकरण प्रायः अपने से श्रेष्ठ सभ्यता,संस्कृति या व्यक्ति का किया जाता है।व्यक्ति जब किसी सभ्यता-संस्कृति या किसी व्यक्ति विशेष की बातों,आदतों या विचारों से कहीं गहरे प्रभावित होता है तो वह भी वैसा ही बनने और करने का प्रयास करता है।विवेकवान व्यक्ति अनुकरण की जाने वाली ऐसी सभी बातों पर गंभीरता से विचार करता है जो उसके व्यक्तित्व को और निखार सकती है।सही मायने में किया गया अनुकरण व्यक्ति के भीतर प्रकाश और ऊर्जा का संचार कर देता है।
  • इसके विपरीत अन्धानुकरण अपने नाम के अनुसार ही किसी सभ्यता,संस्कृति,भाषा,रहन-सहन या पोशाक का अंध-अनुकरण होता है।जब व्यक्ति बिना विचार किए बाहरी चकाचौंध के आधार पर किसी चीज का अनुकरण करता है तो यही अंधानुकरण कहा जाता है।चूँकि अंधानुकरण के पीछे विवेक नहीं होता,इसलिए ऐसा अनुकरण ना तो स्थायी होता है और न ही गौरवान्वित करने वाला।इस तरह के अनुकरण से व्यक्ति में दंभ अलबत्ता उत्पन्न हो जाता हो सकता है।
  • भारत पर जब अंग्रेजी शासन का वर्चस्व पूरी तरह छा गया उस समय अंग्रेजी भाषा,रहन-सहन और पहनावे का भारत में तेजी से प्रसार होने लगा था।राजे-महाराजे और जमींदार तथा अंग्रेजों के संपर्क में आने वाले अन्य रईसजादे तथा बड़े अधिकारी प्रायः अंग्रेजी सभ्यता के रंग में रंगते चलते गए।उन्हें भारत की भाषा,यहां की सभ्यता,यहां के लोग यानी कि हर चीज पिछड़ी और ओछी नजर आने लगी जो उनकी नजर में घृणा की चीज थी।ये ऐसे ही लोग थे जिन्होंने भारतीय धर्म और सभ्यता की खिल्ली उड़ाने में जरा भी परहेज नहीं किया।
  • वैसे आजादी के बाद भी इस तरह के लोगों की संख्या कम नहीं हुई।आज भी पश्चिमी सभ्यता से प्रभावित लोगों की कमी नहीं है।नवधनाढ्य वर्ग में यह बीमारी ज्यादा ही है।उचित-अनुचित तरीके से अपार धन-संपत्ति एकत्र करने कर लेने वाले तथाकथित लोगों की नजर में भारत की सभ्यता और यहां की गरीबी केवल भाषण की वस्तु है-जीने की नहीं।ऐसे लोग लायंस क्लब जैसे तमाम समाज सुधार संगठन बनाकर समाज सुधार का दम तो भरते हैं लेकिन व्यक्तिगत जीवन में वह नितांत भोगवादी होते हैं,अपनी सुविधा में थोड़ी-सी भी कमी उन्हें बर्दाश्त नहीं होती।ऐसे लोग खायेंगे यहां की गायेंगे ‘स्टेट्स’ (अमेरिका) की।यहां की भाषा की बजाय उन्हें अंग्रेजी ज्यादा रास आती है।नितांत अयोग्य होने के बावजूद अंग्रेजी बोलकर भी अपना रौब गालिब करना चाहते हैं।यह भारत की विडंबना ही है कि अंग्रेजी ना जानने बोलने वाले लोग वैसे लोगों के सामने अपने को दीन-हीन समझते हैं।अंग्रेजी की कुंठा उन्हें हमेशा सालती रहती है।

3.अनुकरण करें (Simulate):

  • अनुकरण करना बुरी बात नहीं है,हां अंधानुकरण अवश्य बुरी बात है जो प्रायः आत्मघाती भी हो सकता है।विद्यार्थीवर्ग प्रायः यह सपने देखता है कि फलां व्यक्ति तो उस जैसा सामान्य व्यक्ति ही था कितनी आसानी से सफलता के शिखर पर पहुंच गया।वह भी उस जैसा बनने या वहां तक पहुंचने का सपना देखता है लेकिन थोड़े प्रयास के बाद ही वह हताश होने लगता है।तब वह सोचता है कि उस व्यक्ति को तो इतनी आसानी से ही सफलता मिल गई,पर उसे क्यों नहीं मिलती? शायद इसमें उसके भाग्य का ही कोई खोट है।लेकिन इस निष्कर्ष तक पहुंचने से पहले क्या इस व्यक्ति ने बैठकर ठंडे दिमाग से कभी विचार किया कि आखिर उसे सफलता क्यों नहीं मिल रही? क्या उसने उस सफल व्यक्ति के जीवन का नजदीक से अध्ययन किया कि उसे लक्ष्य तक पहुंचने में क्या-क्या पापड़ बेलने पड़े? और फिर ऐसी कोई ना कोई कमजोरी अवश्य होगी,जिसके कारण इस व्यक्ति को सफलता नहीं मिल रही।
  • इस बात की गहराई से तलाश करनी चाहिए कि आखिर वह कमजोरी क्या है जो उसकी सफलता में आड़े आ रही है? यदि इन प्रश्नों का उत्तर मिल गया और तब भी सफलता नहीं मिल रही तो भी व्यक्ति को धैर्य का दामन छोड़कर कतई हताश नहीं होना चाहिए।क्योंकि हताशा पराजय का पहला कारण है।हमें बार-बार लक्ष्य प्राप्त करने की ईमानदार कोशिश करनी चाहिए।यदि हमारे प्रयासों में कोई खोट नहीं है तो कभी ना कभी सफलता अवश्य मिलेगी।सफलता धैर्यवान और परिश्रमी व्यक्ति का तिरस्कार लंबे समय तक नहीं कर सकती।
  • यह मालूम होना चाहिए कि विश्व का हर महान व्यक्ति जन्म से ही महान नहीं था।प्रायः उन सभी महापुरुषों,गणितज्ञों,वैज्ञानिकों आदि ने अपने प्रारंभिक जीवन में अपमान,अभाव व तिरस्कार का लंबा दौर झेला था।समय की कठिन भट्टी में तपकर ही उनका व्यक्तित्व सोने जैसा निखर उठा और वे दुनिया के लिए अनुकरणीय बन सके।महान व्यक्ति का जीवन सदैव अनुकरणीय होता है,सभी उन जैसा नहीं बन सकते।जिसमें विपरीत परिस्थितियों में भी संघर्ष करने की क्षमता होगी,वही इस पथ पर चल सकता है।इसलिए केवल सपने ही मत देखते रहिए।सपनों को पूरा करने के लिए कर्म में प्रवृत्त होइए।सच्ची निष्ठा के साथ कर्म में लीन हुए बिना सपने पूरे नहीं हो सकते।एक बात और भी है:बाहरी चमक-दमक और आकर्षण के जाल से भरसक दूर रहिए।इसमें उलझने का मतलब अपने जीवन को तहस-नहस करना है।
  • वैसे यह कतई जरूरी नहीं है कि अनुकरण करके ही सफलता प्राप्त की जा सकती है।अनुकरण सफलता या लक्ष्य प्राप्त करने का कोई निश्चित मानदंड नहीं है।विवेकवान व्यक्ति बगैर अनुकरण के भी अपना मार्ग पहचान सकता है और मार्ग के कांटों को सफलतापूर्वक दूर करते हुए लक्ष्य तक पहुंच सकता है।हाँ,महापुरुषों या सफल व्यक्तियों के जीवन और कर्मों से प्रेरणा प्राप्त कर निराशा या हताशा के क्षणों को पास आने से रोका जा सकता है।
  • सही मायने में समझदार व्यक्ति वही है जो आंखें मूंदकर किसी के पीछे नहीं भागता,ऐसा करने से हमेशा गिरने का डर रहता है।जिस चीज का अंधानुकरण किया जाता है,प्रायः वह वस्तु भी बाहर से ही आकर्षक होती है,उसका स्थायी महत्त्व नहीं होता।इसलिए लक्षित वस्तु तो नष्टवान है ही,जो व्यक्ति उसके चक्कर में पड़ता है वह अपने को भी नष्ट करता और उसे हासिल कुछ नहीं होता।कुछ तथाकथित किस्म के गुरु या महापुरुषों की दशा भी ऐसी ही होती है जो स्वयं विद्वान या जानकर ना होने के बावजूद अपने चमत्कारिक प्रदर्शन से वशीभूत कर शिष्य बना लेते हैं।लेकिन कबीरदास के शब्दों में ऐसे लोगों की दशा कुछ इस तरह की होती है।
  • “जाको गुरु भी अंधला,चेला खरा निरंध।
    आंधे,अंधा ठेलिया,दोऊ कूप पडन्त।।”
  • अर्थात् जब गुरु ही अन्धा होगा तो ऐसे गुरु का शिष्य तो और भी बड़ा अंधा होगा।एक-दूसरे को राह सुझाने के चक्कर में दोनों ही कुएं में गिर पड़ेंगे।
  • इसलिए ऐसी स्थिति न आने दें।बुद्धि,विवेक,श्रम और धैर्य का दामन कभी न छोड़ें।यदि कभी अनुकरण की नौबत आये तो भी समझदारी से काम लें।समझदारी से अनुकरण न करने की स्थिति आपके लिए कष्टकारक हो सकती है।अपने कदम नाप-तोल कर आगे बढ़ाएं।बिना विचारे उठाए गए कदम के नीचे ठोस जमीन नहीं भी हो सकती है।

4.छात्र-छात्राए अन्धानुकरण कैसे करते हैं? (How do students imitate blindly?):

  • वस्तुतः स्कूल,कॉलेज में कई छात्र छात्राएं नकल करते हैं (अंधानुकरण)।यह अंधानुकरण कई प्रकार से किया जाता है।पहला किसी छात्र-छात्रा ने अंग्रेजी माध्यम के स्कूल,काॅन्वेंट स्कूल में एडमिशन ले लिया तो वे भी देखा-देखी अंग्रेजी माध्यम में प्रवेश ले लेते हैं।अंग्रेजी मातृभाषा न होने के कारण उनके सामने गणित,विज्ञान विषयों की विषयवस्तु को समझने में कठिनाई महसूस होती है या समझ नहीं पाते।उनसे गणित के सवाल पढ़ने के बाद पूछा जाता है कि सवाल में क्या पूछा गया है,सवाल का क्या अर्थ है तो वे बगले झांकने लगते हैं।लेकिन वे अपने माता-पिता या शिक्षक को कहते ही नहीं क्योंकि उनको कहने पर उनकी (छात्र-छात्रा) की फजीती होती है।
  • कई माता-पिता या अभिभावक भी जानबूझकर स्टेटस मेंटेन करने के लिए अपने बच्चों को इंग्लिश मीडियम के पब्लिक स्कूलों में दाखिला दिलवा देते हैं।ताकि वे अपने बच्चों की शेखी दूसरों के सामने बघार सकें।लेकिन उनकी असलियत तब सामने आ जाती है जब वे बोर्ड परीक्षा में असफल हो जाते हैं या जैसे-तैसे उत्तीर्ण हो पाते हैं।फिर वापस हिंदी मीडियम के स्कूल में दाखिला दिलवाते हैं तो उन्हें ना हिंदी ठीक से समझ में आती है और ना अंग्रेजी।यानी घर के रहे न घाट के।
  • दूसरी तरह वे नकल इस तरह से करते हैं कि गणित जैसे विषयों में जाॅब या भविष्य बनने के अनेक अवसर होते हैं,अतः बच्चा या बच्चों के माता-पिता गणित विषय ऐच्छिक विषय के रूप में दिला देते हैं।यह जाने बिना कि गणित या विज्ञान विषय जैसे विषय लेने और पढ़ने की उसमें काबिलियत भी है या नहीं।10वीं,12वीं तक तो सत्रांक के अंक मिलने के कारण वह जैसे-तैसे उत्तीर्ण हो जाता है।परंतु कॉलेज या प्रवेश परीक्षा (जेईई-मेन,नीट-यूजी) जैसी परीक्षाओं में असफल होने पर उन्हें आर्ट्स विषय लेना पड़ता है।माता-पिता बच्चे की लानत-मलानत करते हैं।उसे बेवकूफ,घटिया,मूर्ख जैसे शब्दों से संबोधित करते हैं।फलतः बच्चे का आत्मविश्वास डगमगा जाता है और वह अपने आप को कमतर समझने लगता है।
  • दरअसल हर बच्चे में मौलिक प्रतिभा होती है परंतु न बच्चों में,न माता-पिता में उनकी मौलिक प्रतिभा को पहचानने की क्षमता होती है।शिक्षक भी आजकल केवल व्यवसायिक हो चले हैं इसलिए उनमें भी बच्चे की प्रतिभा को पहचानने की क्षमता नहीं होती है।ऐसे शिक्षक विरले ही होते हैं जो बच्चे की प्रतिभा का आकलन कर सकते हैं और उनको सही मार्गदर्शन प्रदान कर सकते हैं।ऐसे विरले शिक्षक वास्तव में गुरु कहलाने के हकदार होते हैं जो न केवल अपने आप को जानते हैं बल्कि छात्र-छात्राओं के सच्चे शुभचिंतक होते हैं।
  • तीसरे स्तर पर इस प्रकार से नकल करते हैं:रईस,अमीर या सक्षम छात्र-छात्राओं के रहन-सहन,तौर-तरीकों,खान-पीन,पहनावा आदि की तरह वे भी करते हैं।यदि कोई छात्र-छात्रा मोबाइल फोन का प्रयोग करता है तो दूसरा छात्र-छात्रा भी अपने माता-पिता को मोबाइल फोन मंगा कर देने की फरमाइश,माता-पिता से करते हैं।माता-पिता की सामर्थ्य नहीं है तो वे जिद करते हैं,रूठ जाते हैं,धमकी देते हैं या न पढ़ने का नाटक करते हैं,मजबूरन माता-पिता को उनकी मांगे पूरी करनी पड़ती है।जबकि वास्तव में उस छात्र-छात्रा को मोबाइल फोन की आवश्यकता ही नहीं हो,लेकिन दूसरों के देखा-देखी नकल करेंगे।पहनावा,रहन-सहन में भी वे नकल करेंगे।माता-पिता की हैसियत नहीं देखेंगे।माता-पिता अपनी गाढ़ी कमाई की रकम उनकी फरमाईशे पूरी करने में खर्च करते हैं,लेकिन ऐसे छात्र-छात्रा पढ़ने में फिसड्डी होते हैं।
  • अन्धानुकरण करने से फायदा तो कुछ भी नहीं है,इसके नुकसान ही नुकसान हैं।अन्धानुकरण छात्र-छात्राओं में जड़ता जड़ जमा लेती है,ऐसे छात्र-छात्राओं का दिमाग काम नहीं करता है और वे ठस बुद्धि के हो जाते हैं क्योंकि मस्तिष्क भी तभी काम करता है जब स्वयं छात्र-छात्रा उसको विकसित करने का प्रयास करते हैं।मस्तिष्क का विकास स्वयं के द्वारा चिंतन-मनन करने और संघर्षों की भट्टी में तपाने पर होता है।सुख-सुविधाओं का भोग करने से शरीर व मस्तिष्क आरामतलबी हो जाता है।आलस्य डेरा जमा लेता है।ऐसे छात्र-छात्राएं उत्तीर्ण होने के अनैतिक तरीके अपनाते हैं।नकल करना,प्रश्न-पत्र पूर्व में प्राप्त करना,अंक तालिका में घूस देकर नंबर बढ़वाना आदि।एक बार गलत रास्ते की तरफ कदम बढ़ जाता है तो गलत कार्यों को करने का चस्का लग जाता है।
  • ऐसे छात्र-छात्राएं नशा करना,ड्रग्स का सेवन करना,अय्याशी करना,मौज मस्ती ही करना,ऐशोआराम करना यानी भोग विलास में डूब जाते हैं।वे समझते हैं कि यही जिंदगी का मकसद है,मौज-मजे कर लो फिर ऐसा समय नहीं मिलेगा।लेकिन जब भी घर-गृहस्थी संभालते हैं तो जीवन में आने वाली परेशानियों से घबरा जाते हैं,छक्के छूट जाते हैं तब उन्हें आटे-दाल का भाव मालूम पड़ता है।
  • अन्धानुकरण करने वाले छात्र-छात्राएं अंधविश्वासी हो जाते हैं।किसी पर भी विश्वास नहीं करते हैं,पिछड़ापन,कुरीतियों,धार्मिक कट्टरता,चिड़चिड़े,अशांत,उद्विग्न,हताश,निराश,कुंठाग्रस्त आदि कई विकृतियों से ग्रस्त हो जाते हैं।उन्हें अपनी समस्याओं का कोई समाधान नजर नहीं आता है।अपनी बुरी स्थिति के लिए वे दूसरों को जिम्मेदार ठहराते हैं।इस प्रकार जैसे-तैसे अपना जीवन गुजारते हैं।

5.अंधानुकरण का दृष्टांत (The Parable of Blind Imitation):

  • एक विद्यार्थी था,उसमें बुद्धि थी।शुरू में वह पढ़ने में कुशाग्र था।लेकिन उसने एक बार एक छात्र को नकल करते हुए देख लिया।नकल करते समय दूसरे छात्र को किसी ने पकड़ा ही नहीं और परीक्षा में उसके अच्छे अंक आए।
  • पहले छात्र ने सोचा अच्छे अंक लाने का यह तरीका अच्छा है।अतः वह भी उसकी नकल करने लगा।उसने पढ़ना-लिखना छोड़ दिया,अध्ययन करना छोड़ दिया,कठिन परिश्रम करना छोड़ दिया।अब पहला छात्र भी दूसरे छात्र की तरह नकल करने लगा।अब वह नकल करने के उपाय सोचता रहता तथा नकल करने की तिकड़म भिड़ाता रहता।उस छात्र ने यह नहीं सोचा कि नकल करते अगर वह पकड़ा गया तो उसको परीक्षा से बहिष्कृत किया जा सकता है,एक-दो वर्ष तक उसको परीक्षा देने से वंचित किया जा सकता है अथवा सजा भी हो सकती है।
  • पहला छात्र भी नकल करने पर पकड़ा नहीं गया और उत्तीर्ण होता गया।जिस गंभीर अध्यवसाय के बल पर वह अच्छे अंक प्राप्त करता था,उसके स्थान पर नकल करने से उसे अच्छे अंक प्राप्त होने लगे।उसे नकल करने का चस्का लग गया।वह अकर्मण्य हो गया,अध्ययन के प्रति उसका लगाव खत्म हो गया।
  • एक शुभचिंतक सहपाठी ने उसे सावधान किया,सचेत किया।शुभचिंतक छात्र ने कहा कि तुमने शुरू में जिन कष्टों व अभावों का अनुभव किया है,तुमने उसका स्वाद,उसका आनंद परिस्थितियाँ बदलते ही भुला दिया है।अपने परिश्रम और सामर्थ्य से अच्छे अंक प्राप्त करना ही सही रास्ता है।पहले छात्र ने उससे कहा कि तुम मुझसे ईर्ष्या करते हो।मुझे अंक प्राप्त होते हैं यह तुम्हें सुहाता नहीं है।तुमसे आगे बढ़ते देखकर तुम्हें जलन होती है।शुभचिंतक छात्र ने उसे चेताया,सही मार्ग पर लाने की कोशिश की,लेकिन वह नहीं माना।एक बार कॉलेज की परीक्षा में पकड़ा गया और उसे बहिष्कृत कर दिया तब उसे अपनी गलती का एहसास हुआ।उसने सोचा अन्धानुकरण का परिणाम बुरा ही होता है।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में छात्र-छात्राएं अन्धानुकरण से कैसे बचें? (How Students Avoid Blind Following?),अन्धानुकरण से कैसे बचें? (How to Avoid Blind Imitation?) के बारे में बताया गया है।

Also Read This Article:3 Tips to be Sensitive for Students

6.गणित विषय पर फिल्म देखी (हास्य-व्यंग्य) (Watched Movie on Subject of Mathematics) (Humour-Satire):

  • जोगिंदरपाल ने घर में फिल्म देखी और अपने दोस्त को बताया।
    कल रात मैंने 3 घंटे की मैथेमैटिक्स विषय पर पिक्चर देखी,ना कोई सीन दिखा,ना कोई आवाज सुनाई दी।
  • मित्र:पिक्चर का क्या नाम था?
  • जोगिंदरपाल:लैपटॉप पर सुनाई दिया नो डिस्क इंसर्टेड।

7.छात्र-छात्राएं अन्धानुकरण से कैसे बचें? (Frequently Asked Questions Related to How Students Avoid Blind Following?),अन्धानुकरण से कैसे बचें? (How to Avoid Blind Imitation?) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.अंधानुकरण से बचने के लिए क्या करें? (What to do to avoid blind imitation?):

उत्तर:विनम्रता धारण करें,अपने विवेक,सद्बुद्धि को जागृत करने की कोशिश करें।हमेशा अच्छे लोगों की संगत करें,परंतु कितना भी महानपुरुष हो उनका अंधा होकर अनुकरण न करें।कोई नेक,हितकारी सलाह देता है तो उस पर अमल करें।स्वाध्याय,अध्ययन,कठिन परिश्रम करें।अनुचित तरीके अपनाने की कोशिश न करें।

प्रश्न:2.हमें गलत रास्ते पर चलने का आभास कैसे हो? (How do we know that we are on the wrong path?):

उत्तर:अपने दिल की आवाज सुनें,परंतु दिमाग का भी इस्तेमाल करें।क्या सही है,क्या गलत है,क्या करने योग्य है,क्या करने योग्य नहीं है आदि पर दिल व दिमाग से विचार-चिंतन करें।यदि आपको फिर भी निर्णय लेने में कठिनाई हो तो श्रेष्ठ पुरुषों से परामर्श लें।

प्रश्न:3.विवेकवान और विनम्र छात्र-छात्रा के क्या लक्षण हैं? (What are the characteristics of a prudent and humble student?):

उत्तर:जो इंद्रियों और मन को वश में रखता है वह विन्रम होता है।जो चपल नहीं होता,मायावी नहीं होता,किसी का तिरस्कार नहीं करता,क्रोध नहीं करता,धर्मशास्त्रों का अध्ययन करता है,कलह,मारपीट तथा बुरे कार्यों से दूर रहता है वह विवेकवान और विनम्र होता है।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा छात्र-छात्राएं अन्धानुकरण से कैसे बचें? (How Students Avoid Blind Following?),अन्धानुकरण से कैसे बचें? (How to Avoid Blind Imitation?) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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