How is Studying Maths Mental Training?
1.गणित का अध्ययन करना साधना कैसे है? (How is Studying Maths Mental Training?),गणित का अध्ययन करना साधना है (Studying Mathematics is Spiritual Training):
- गणित का अध्ययन करना साधना कैसे है? (How is Studying Maths Mental Training?) यह समझने से पूर्व साधना को समझना आवश्यक है।साधना को कार्य सिद्धि,आराधना,उपासना इत्यादि भी कहा जाता है परंतु इनमें आपस में अंतर है।अंग्रेजी में साधना को मेंटल ट्रेनिंग (Mental Training,मेंटल प्रैक्टिस (Mental Practice),स्प्रिचुअल एंडोवर और परफॉर्मेंस (Spiritual Endeavour or Performance) इत्यादि कहा जाता है।परंतु ये शब्द साधना का पूर्ण अर्थ व्यक्त नहीं करते हैं।परंपरागत अर्थ में साधना को योग-साधना समझा जाता है अर्थात् यम,नियम,आसन,प्राणायाम,प्रत्याहार,ध्यान,धारणा और समाधि इत्यादि से है।वस्तुतः साधना एक गतिशील तथा जीवन्त प्रक्रिया है जो किसी उद्देश्य,लक्ष्य अथवा क्रिया से जुड़कर उसका अर्थ निरूपित करती है।जैसे योग-साधना,मन की साधना,लक्ष्य की साधना,स्वाध्याय साधना,सेवा साधना,तप साधना,सत्संग साधना इत्यादि।
- इस प्रकार गणित के क्षेत्र में कोई खोज कार्य करता है तो उसकी क्रियाएँ भी साधना है,वैज्ञानिक अपने क्षेत्र में कोई खोज करता है तो वह भी साधना है,आध्यात्मिक साधु-संतों की क्रिया भी साधना है,गणित के छात्र-छात्राएं गणित का अध्ययन करते हैं तो यह भी साधना है,एक श्रमिक कार्य करता है तो वह भी साधना है,मां बेटों का पालन-पोषण करती है तो वह भी साधना है शर्त यही है कि इनके ये कार्य शुद्ध अंतःकरण,पवित्र भावना के साथ किए जाते हैं।
- इस आर्टिकल में अध्ययन तथा गणित का अध्ययन करना साधना कैसे है इस पर ही चर्चा की जाएगी तथा आध्यात्मिक साधना का उतना ही उल्लेख किया जाएगा जितना गणित के लिए आवश्यक है।
- गणित में खोज कार्य करना तथा गणित का अध्ययन करने का कोई एक प्रकार या नियम नहीं है जिसे साधना के अर्थ में सुनिश्चित किया जा सके।कुछ गणितज्ञ गणित को मानव तथा विज्ञान के लिए उपयोगी नहीं मानते,कुछ गणितज्ञ गणित में सत्य का दर्शन करते हैं,कुछ गणितज्ञ गणित को मानव और विज्ञान के लिए उपयोगी मानते हैं,कुछ गणितज्ञ गणित में सौन्दर्य का दर्शन करते हैं इस प्रकार प्रत्येक गणितज्ञ गणित के अध्ययन करने,खोज कार्य करने के लिए साधना का अर्थ अलग-अलग प्रकार से निश्चित करता है।
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2.गणित के छात्र-छात्राएं सतर्क और तत्पर रहें (Mathematics Students Should be Alert and Ready):
- गणित के छात्र-छात्राओं को कुंडलिनी जागरण,सिद्धियाँ जगाने,षटचक्र जागरण में अपने आपको लगाने का समय नहीं है।सच्चा गणित का साधक वही है जो गणित के अध्ययन करने में सतर्क और तत्पर रहता है।अपने मन पर कड़ी नजर रखता है कि कहीं अनुचित,अनुपयुक्त दुष्प्रवृत्तियों की ओर नहीं जा रहा है।यदि कहीं भूल-चूक दिखाई दे तो उसे तत्काल सुधारा जाए यह भी साधना ही है।विद्यार्थी के लिए गणित का ज्ञान प्राप्त करना,विद्या प्राप्त करना एक साधना है,एक तपस्या है इसमें अनेक भौतिक सुखों को छोड़ना पड़ता है।सुख और विद्या में से एक ही प्राप्त हो सकता है।गणित के अध्ययन करने के जो भी लक्ष्य हो उस लक्ष्य से अधिक लक्ष्य प्राप्ति के साधन (साधना) पर ही ध्यान रखना चाहिए।गणित के अध्ययन अथवा अध्ययन में सफलता प्राप्ति का यही रहस्य है।
- कुछ छात्र-छात्राएं लक्ष्य पर तो नजर रखते हैं,लक्ष्य का चिंतन करते रहते हैं परंतु उस लक्ष्य की प्राप्ति को साकार करने की तरफ ध्यान नहीं देते हैं।विचार व चिंतन करने के साथ-साथ अपने उद्देश्य की गहराई में घुसकर वस्तुस्थिति का ज्ञान प्राप्त करना चाहिए।जैसे किसी विद्यार्थी को अच्छे अंकों से उत्तीर्ण होना है तो यह विद्यार्थी का उद्देश्य हुआ। अब इसके लिए देखें कि आपके पास पर्याप्त अध्ययन सामग्री,कोचिंग करने की सामर्थ्य,कोचिंग की व्यवस्था इत्यादि हैं या नहीं।आप अच्छे अंको से उत्तीर्ण होने के लिए कठिन परिश्रम कर सकते हैं या नहीं अर्थात् आपका स्वास्थ्य ठीक है या नहीं।क्या आप रात को अधिक समय तक जागकर तथा जल्दी उठकर तैयारी करने में सक्षम हैं या नहीं? इतना धन है कि आप ट्यूशन,कोचिंग तथा अच्छी पुस्तकें खरीद सकें।अतः केवल योजना बनाने से काम नहीं चलता बल्कि उस योजना पर अमल करने की संभावनाओं और सामर्थ्य की पूर्ण खोजबीन करनी पड़ती है।
- विद्यार्थी में यदि आलस्य,प्रमाद,अव्यवस्था और अनैतिकता की दुर्बलताएँ हैं उनका गंभीरतापूर्वक आत्म-निरीक्षण करें और उन्हें दूर करने का प्रयास करें।आत्म-निरीक्षण में अपने आपसे निम्न प्रश्नों को पूछे और उनके उत्तर नोट करें:
- (1.)समय का दुरुपयोग तो नहीं करते हैं।आलस्य और प्रमाद में उसकी बर्बादी तो नहीं होती।
- (2.)गणित का अध्ययन करने का लक्ष्य निर्धारित है या नहीं।अपने लक्ष्य पर नजर है या नहीं।इस अमूल्य समय को शरीर की सुंदरता बढ़ाने में तो नष्ट नहीं कर रहे हैं।
- (3.)अपना लक्ष्य दूसरे छात्र-छात्राओं को देखा-देखी बनाया है या अपनी योग्यता के अनुसार निर्धारण किया है।
- (4.)मनोविकारों और कुसंस्कारों के जाल में फंसकर अपनी प्रगति,विकास और उन्नति को बाधित तो नहीं कर रहे हैं।
- (5.)सहपाठियों से कटु भाषण,मीन-मेख निकालने की आदतें छोड़कर उनसे मधुर,सौम्य और सहयोगात्मक व्यवहार कर रहे हैं या नहीं।
- (6.)अपने शरीर के अंतःवस्त्रों,कमरे की सफाई तथा अपने छोटे-मोटे कार्य स्वयं करते हैं या नहीं।
- (7.)परिवार में अपने बहन-भाइयों के अध्ययन करने में सहायता करते हैं या नहीं।
- (8.)जल्दी सोना,जल्दी उठने तथा ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं या नहीं।
- (9.)आत्म-चिंतन,स्वाध्याय के लिए भी कुछ समय देते हैं या नहीं।
- उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर पर विचार करें और जो त्रुटियां दिखाई दे उन्हें दूर करने का प्रयास करें।अपने दोष दुर्गुणों को एक दिन में ही दूर तो नहीं किया जा सकता है परंतु धीरे-धीरे अभ्यास से दोष-दुर्गुण दूर किए जा सकते हैं।यदि सभी दुर्गुणों को एक साथ दूर करने की प्रतिज्ञा करेंगे तो उन्हें न निभा सकने से अपना संकल्प बल घटता है और फिर छोटी-छोटी प्रतिज्ञाओं को निभाना भी कठिन हो जाता है।
3.साधना से सुपात्रता विकसित करें (Develop Compatibility Through Spiritual Practice):
- गणित के कई छात्र-छात्राएं तथा अन्य अध्ययन करने वाले अच्छा जाॅब अथवा अन्य लक्ष्य को प्राप्त करने की इच्छा तो करते हैं परंतु उसके अनुरूप उनमें पात्रता नहीं होती है।कई विद्यार्थी तो जाॅब या लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सिफारिश कराते हैं या घूसखोरी अथवा अनैतिक तरीके अपनाते हैं।अनैतिक तरीके अपनाने का मतलब ही यह है कि उनमें पात्रता नहीं है क्योंकि पात्रता होती है तो देर-सबेर उनको लक्ष्य प्राप्त हो ही जाता है।यदि सुपात्र न होने पर जाॅब या लक्ष्य प्राप्त हो भी जाए तो उसके साथ न्याय नहीं कर पाएंगे जैसे सुपात्र होने पर कर सकते थे।
- पात्रता विकसित करने के लिए गणित के अध्ययन करने के अनुरूप अपने आपको ढालना पड़ता है। गणित के अध्ययन करने के लिए जिन गुणों की आवश्यकता होती है उन गुणों को धारण करना होता है।जैसे अग्नि के पास बैठने से गर्मी,चंदन के वृक्ष के पास बैठने से शीतलता अनुभव करते हैं वैसे ही गणित का अभ्यास व मनन-चिंतन करने से उसके दिव्य गुणों की अनुभूति कर सकते हैं।गणित का अध्ययन,चिन्तन,मनन से गणित का विद्यार्थी मानव से महामानव बन जाता है।केवल साधना के बल पर ही शीर्ष पर नहीं पहुंचा जा सकता है।
- स्वाध्याय,सत्संग,कठिन परिश्रम,साधना इत्यादि ये सब एक-दूसरे के पूरक हैं।एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।
साधना का अर्थ यह नहीं है कि केवल विद्यार्थी काल में ही करनी है बल्कि साधना अनवरत जीवन भर चलती रहती है।गणित के क्षेत्र में ज्यों-ज्यों आगे बढ़ते हैं त्यों-त्यों विद्यार्थी को अनुभूति होती है कि लक्ष्य प्राप्ति के लिए निरंतर गतिशील रहना ही जीवन है और रुक जाना ही मृत्यु है।साधना में विद्यार्थियों को चित्तवृत्तियों,इंद्रियों और मन को वश में करना पड़ता है।इनको नियंत्रित किए बिना गणित के अध्ययन का पूर्ण लाभ नहीं मिल सकता है। पात्रता विकसित करके स्वामी दयानंद सरस्वती,अशोक,नरेंद्र (विवेकानंद),अंगुलिमाल,रत्नाकर डाकू (वाल्मीकि ऋषि) पुरुष से महापुरुष बन गए।
4.साधना की सफलता में गुरु की महत्ता (Importance of Guru in Spiritual Success):
- गणित जैसे जटिल विषय को पढ़ने के लिए कदम-कदम पर गुरु (शिक्षक) की आवश्यकता होती है।परन्तु शिक्षक में लोभ-लालच न हो,कामना शून्य हो,शांत,समर्पित,आध्यात्मिक ज्ञान हो,हितैषी हो,गणित के ज्ञान में पारंगत हो इत्यादि गुण होने चाहिए।साथ ही शिष्य जिज्ञासु,पात्र तथा गुरु श्रद्धा हो तभी विद्या का आदान-प्रदान हो सकता है।
- यदि अनुभवी शिक्षक नहीं मिलता तो शिष्य के भटकाव की संभावना बनी रहती है।वस्तुतः इन कसौटियों के अनुसार आधुनिक युग में गुरु व शिष्य का मिलना बहुत कठिन है।सही एवं सफल मार्गदर्शक की तलाश में निकले जिज्ञासु विद्यार्थी को जहां श्रद्धालु होना चाहिए वहाँ सतर्क भी वरना इस धूर्तता के युग में किसी अनाड़ी,छलिया शिक्षक के जाल में फंसकर प्रगति तो दूर,जो कुछ विद्यार्थी के पास ज्ञान होता है उसे भी वह गँवा बैठता है।
- गुरु वह है जो अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाता है।जिस गणित शिक्षक के पास आध्यात्मिक ज्ञान के साथ-साथ गणित का ज्ञान भी है ऐसे शिक्षक विरले ही मिलते हैं।अपनी अंतरात्मा भी गुरु ही है।महत्त्व दोनों का ही है।
- बाहरी गुरु हर समय छात्र-छात्राओं के साथ तो रहता नहीं है जबकि गणित के छात्र-छात्राओं के पास अगणित समस्याएं आती रहती हैं।अधिकांश छात्र-छात्राओं की दृष्टि आत्म-प्रेरणाओं को नहीं समझ पाती है इसलिए अन्तःकरण (अंतरात्मा) से मार्गदर्शन मिलना मुश्किल हो जाता है।हमारे आन्तरिक गुरु को जगाने का कार्य गुरु ही कर सकता है।अपने आत्मबल द्वारा वह शिष्य में ऐसी प्रेरणा भरता है जिससे वह गणित की समस्याओं को सुलझा सके।गुरु शिष्य को उसके सामर्थ्य का बोध कराता है।सामर्थ्य को जागृत,विकसित तथा सुनियोजित करने के हर संभव उपाय बताते हैं। इसका लाभ छात्र-छात्राओं को आत्मबल व मनोबल के रूप में मिलता है।यही शक्ति छात्र-छात्राओं के अन्दर विकारों,बुरी आदतों,दुष्प्रवृत्तियों को उखाड़ फेंकने में सहायक सिद्ध होती है।गुरु का यह अनुदान शिष्य अपनी आंतरिक श्रद्धा के रूप में उठाता है।जिस शिष्य में आदर्शों व सिद्धांतों के प्रति जितनी अधिक निष्ठा होगी वह गुरु के अनुभव से उतना ही लाभ उठाता है।
- पात्र शिष्य का महत्त्व कम नहीं है।बादल कितने ही बरसे परंतु बंजर भूमि पर फसल नहीं उगती है,न ही चट्टान पर एक भी पत्ता उगेगा।मस्तिष्क में मूढ़ता छाई हुई हो तो सत्संग,परामर्श की कोई उपयोगिता नहीं रहती है।शिष्य में पात्रता हो तो मिट्टी के द्रोणाचार्य,पत्थर के गिरधर गोपाल भी चमत्कार दिखा सकते हैं।छद्म वेशधारी गुरु से कोई प्रभावित नहीं होता है।उसका चाल-चरित्र प्रकट हो ही जाता है।दर्शन करने,माला पहनने,नमन करने,बातें बनाने भर से वह लाभ कहाँ मिलता है जो सच्चे शिष्यों को सच्ची पात्रता उपलब्ध कराती रही है।
- यदि सच्चे गुरु का प्रत्यक्ष अनुभव नहीं मिल सकता हो तो पुस्तकों के द्वारा ही उनका मार्गदर्शन प्राप्त करके लाभ उठाना चाहिए।समर्थ गुरु रामदास बनने के लिए तलवार की धार पर चलने जैसी साधना करने का सामान्य व्यक्तियों के पास नहीं होता परंतु शिवाजी के रूप में नगण्य से व्यक्तित्त्व वाला बालक भी छत्रपति के रूप में विकसित हो सकता है। सारी साधनाओं की सफलता सद्गुरु के मार्गदर्शन पर ही निर्भर है।गणित का ज्ञान प्राप्त करने वाले जिज्ञासु को बौद्धिक ज्ञान से परे,अनुभवी,आध्यात्मिक ज्ञान में निष्णात गुरु का सानिध्य प्राप्त करना चाहिए।
5.साधना के विघ्न (Obstacles to Spiritual Practice):
- गणित के अध्ययन के साधना पथ में अनेक विघ्न है,विघ्नों से विद्यार्थी लक्ष्य से भ्रष्ट हो जाता है।यदि आप गणित के अध्ययन क्षेत्र में सफलता अर्जित करना चाहते हैं तो आपको उन विघ्न,बाधाओं से बचना होगा।इन विघ्न,बाधाओं से परिचित होना भी आवश्यक हैः
- (1.)बीमारी (Sickness):स्वास्थ्य खराब होने पर अध्ययन कार्य ही क्या,कोई भी कार्य करने का मन नहीं करता है और न ही अध्ययन कार्य करने में सक्षम हो सकते हैं।सोने,खाने,पीने,जागने तथा अध्ययन कार्य आदि का ऐसा नियम रहना चाहिए जिससे स्वास्थ्य खराब न हो।नियमित रूप से प्रातः काल नित्य कर्मों से निवृत्त होकर योगासन-प्राणायाम अथवा व्यायाम करना चाहिए।
- (2.)तामसिक भोजन (Tamasik Food):असात्विक भोजन,मांस,मदिरा,अण्डे,तामसिक भोजन से शारीरिक और मानसिक रोग उत्पन्न होते हैं। तामसिक भोजन चित्त में चंचलता और बुरे विचार उत्पन्न करता है जिससे बुद्धि भ्रमित होने लगती है।तीक्ष्ण मसालों वाला,रूखा,बासी,अपवित्र,गरिष्ठ तथा तामसिक भोजन नहीं करना चाहिए।
- (3.)संशय (Doubt):गणित के अध्ययन में सफलता प्राप्त करना सरल कार्य नहीं है।कभी-कभी तो इतनी जटिल समस्याएं आती हैं कि गणित से अध्ययन करने पर मन उचट जाता है।ऐसी स्थिति में सफलता के प्रति मन बार-बार आशंकाओं से भर जाता है,अविश्वास बढ़ता जाता है तथा तदनुसार कार्य करने की क्षमता नष्ट होती चली जाती है और सफलता के प्रति संदेह व्याप्त हो जाता है।अतः गणित विषय लेना हो तो काफी सोच-विचार कर लो किंतु जब गणित विषय लेकर अध्ययन करना प्रारंभ कर दिया हो तो संदेह को उठाकर ताक पर रख दो।
- (4.)योग्य शिक्षक का अभाव (Lack of Qualified Teachers):प्रत्येक गणित के छात्र-छात्राओं को गणित का अधिक से अधिक,अपने काम का ज्ञान प्राप्त करना होता है। गणित पढ़ाने वाले तो बहुत शिक्षक मिल जाते हैं परंतु जिसे अधूरा ज्ञान है,अनुभवी नहीं है,निःस्वार्थ और उदार शिक्षक नहीं है ऐसे शिक्षक को चुनना खतरे से खाली नहीं है।सच्चा शिक्षक तलाश करने पर भी न मिले तो पुस्तकों को गुरु बनाओ,उनसे सत्संग करो।
- (5.)नियमित व निश्चित समय पर अध्ययन का अभाव (Lack of Study at a Fixed Time):कुछ छात्र-छात्राएं मन करता है तो पढ़ लेते हैं ,नहीं तो नहीं पढ़ते है।कभी पढ़ते हैं ,कभी नहीं पढ़ते हैं।कभी थोड़ा पढ़ते हैं,कभी बहुत अधिक पढ़ लेते हैं।इस प्रकार की दिनचर्या से कुछ भी लाभ नहीं होता है।एक दिन का अभ्यास किया और दूसरे दिन नहीं किया तो भूल जाओगे।इसलिए नियत व निश्चित समय के अनुसार अध्ययन करो।
- (6.)प्रशंसा की भूख (Hunger for Praise,Fame and Prestige):कुछ छात्र-छात्राओं को यश,प्रसिद्धि और प्रशंसा प्राप्त करने की भूख रहती है।ऐसे छात्र-छात्राएं गणित के अध्ययन को गौण कार्य समझते हैं और यश,प्रसिद्धि और प्रशंसा को मुख्य कार्य समझते हैं।याद रखें अध्ययन कार्य पर नजर रखेंगे तो यश,प्रसिद्धि तो छाया की तरह उसके पीछे-पीछे चली आएंगी।
- (7.)तर्क-वितर्क (Argument and Counter-Argument):कई छात्र-छात्राएं गणित के कई टाॅपिक्स पर अनावश्यक वाद-विवाद करते रहते हैं। तर्क-वितर्क गणित की समस्याओं को सुलझाने में किया जाए तब तो ठीक है परंतु दूसरों को गलत सिद्ध करने,बिना वजह किया गया तर्क ज्ञान प्राप्ति में बाधक है।तर्क की जड़ में श्रद्धा का होना आवश्यक है।कुतर्कों को त्यागो,अपनी आत्मा की सुनो।सद्बुद्धि से उस पर विचार करो और शांत मस्तिष्क से दृढ़तापूर्वक कदम बढ़ाओ।आपका मार्ग सुगम हो जाएगा।
- (8.)आलसी दिनचर्या (Lazy Routine):आलसी व्यक्ति मुर्दे के समान है।क्रियाशील विद्यार्थी अच्छे कर्म करता है यदि गलत करता भी है तो उसे सुधार लेता है।आलस्य उदासीनता,उपेक्षा व निराशा की भावनाओं से पैदा होता है।आलसी व्यक्ति के मन में अच्छे विचार उठ ही नहीं सकते हैं।आलस्य सबसे बड़ा शत्रु है।ऐसे छात्र-छात्राओं से सफलता बहुत दूर रहती है।आलसी का जीवन नष्ट हो जाता है।यदि आप अपने जीवन को बचाना चाहते हैं तो क्रियाशील रहें।स्फूर्ति,उत्साह,लगन और काम में लगे रहने की धुन हर समय गणित के विद्यार्थी में होनी चाहिए।
- (9.)संतोष वृत्ति रखना (Keeping Contentment):अध्ययन,विद्या ग्रहण करने,भक्ति,ज्ञान,ध्यान इत्यादि करने में छात्र-छात्राओं को संतोष नहीं रखना चाहिए।गणित का पूर्ण ज्ञान प्राप्त करने की ललक,उत्कंठा व जिज्ञासा रखनी चाहिए।परंतु कुछ छात्र-छात्राएं परीक्षा पास करने के दृष्टिकोण से पढ़ते हैं जो कि नुकसानदायक है।ऐसे विद्यार्थी आगे नहीं बढ़ पाते हैं।
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6.साधना का दृष्टान्त (Parable of Spiritual Practice):
- संत राबिया ने भगवान की भक्ति का मार्ग अपनाया।उसने सदाचारी,संतोषी और आत्म-निर्भरता की जीवन नीति को अपनाया। बारह सौ वर्षों पूर्व हुई इस साध्वी ने भगवान की साधना का अनूठा आदर्श रखा।बसरा के कोई संत राबिया से मिलने आए।राबिया की कुटी के बाहर उन्होंने एक धनाढ्य व्यक्ति को रोते-बिलखते देखा।बसरा के संत ने उसके रोने का कारण पूछा।धनाढ्य व्यक्ति ने कहा कि उनका एक ही व्यवहार मेरे हृदय को ठेस पहुंचा रहा है।
- बसरा के संत ने समझा कि यह शायद राबिया का विरोधी है और उनके मिलने वाले लोगों को राबिया के विरुद्ध भड़काने का नाटक कर रहा है।परंतु बसरा के संत की यह आशंका गलत साबित हुई जब धनाढ्य व्यक्ति ने कहा कि संत राबिया से हमें सदाचार और सन्मार्ग की प्रेरणा मिलती है और उस पर कदम बढ़ाने की शक्ति भी।परन्तु हमें दुःख केवल एक ही है कि वे इस प्रकार का गरीबी का जीवन बिताती है।फटे,पैबन्द लगे कपड़े,घर में अपर्याप्त अन्न और किसी के द्वारा कोई भेंट दी भी जाए तो उसे स्वीकार नहीं करती है।उनका यही व्यवहार उन्हें दुःखी बनाता है।भगवान न करे इस अभावग्रस्त जिन्दगी में उनका शरीर उठ न जाए। धनी व्यक्ति ने वह स्वर्ण मुद्रा की थैली भी दिखाई।
- बसरा के संत धनी व्यक्ति को साथ लेकर संत राबिया के पास गए तथा संत राबिया को कहा कि तुम इस धनीक की भेंट स्वीकार कर लो।
- संत राबिया ने कहा कि जो लोग दिन-रात दुष्कर्मों में लिप्त रहते हैं भगवान उनका भी भरण-पोषण करता है तो परमात्मा मुझे कैसे भूल सकता है? लंबे समय तक भगवान के मार्ग पर चलते हुए मैंने यह अनुभव किया है कि किसी भी साधक को आश्रय का,संरक्षण का सहारा नहीं लेना चाहिए।भगवान मेरी जरूरतें पूरी कर देता है।भले आप लोगों को मेरी कुटिया में दरिद्रता दिखाई देती हो परंतु मैं इसी में भगवान की कृपा अनुभव करती हूं।राबिया के इस उत्तर से संत बसरा बड़े खुश हुए और श्रद्धावनत भी।
- उपर्युक्त आर्टिकल में गणित का अध्ययन करना साधना कैसे है? (How is Studying Maths Mental Training?),गणित का अध्ययन करना साधना है (Studying Mathematics is Spiritual Training) के बारे में बताया गया है।
7.गणित के अभ्यास से दुबलापन (हास्य-व्यंग्य) (Leanness From Mathematics Practice) (Humour-Satire):
- किशन:यार एक मोटी बुद्धि के छात्र ने गणित का अभ्यास चालू कर दिया है।
- अंकुरःतो क्या फायदा हुआ?
- किशनःहां हुआ न,वह दुबला हो गया।
8.गणित का अध्ययन करना साधना कैसे है? (Frequently Asked Questions Related to How is Studying Maths Mental Training?),गणित का अध्ययन करना साधना है (Studying Mathematics is Spiritual Training) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:
प्रश्न:1.समस्याओं में कैसा दृष्टिकोण रखें? (How do we Approach Problems?):
उत्तरःसमस्याओं का बखान मत करो बल्कि उनका समाधान खोजने का तरीका ढूंढो।यदि वे कठिन न होती तो समस्याएं क्यों कहलाती? कठिनाई का बखान किए बिना जो समाधान के बारे में सोचते हैं उन्हें हल कर पाते हैं।
प्रश्नः2.छात्र-छात्राएं गलतियां क्यों करते हैं? (Why do Students Make Most Mistakes?):
उत्तरःजो छात्र-छात्राएं गणित के टाॅपिक के बारे में सोच-विचार ही करते रहते हैं परंतु उसका अभ्यास नहीं करते हैं वे गलतियां करते हैं।परंतु जो गणित का अभ्यास ही करते रहते हैं परंतु टॉपिक के हल के बारे में विचार-चिंतन नहीं करते हैं वह भी गलतियां करते हैं और असफल हो जाते हैं।
प्रश्नः3.आत्मविश्वास का क्या महत्व है? (What is the Importance of Self-confidence?):
उत्तरःनिराशा में आशा का संचार करने वाला,कठिन समस्याओं को भी सरल में बदलने वाला,विपत्तियों,समस्याओं में आगे बढ़ने की प्रेरणा देने वाला,असफलताओं में सफलता की ओर अग्रसर करने वाला,तुच्छ से महान बनाने वाला है छात्र-छात्राओं का स्वयं पर विश्वास,आत्मविश्वास पर अटूट विश्वास।
- उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा गणित का अध्ययन करना साधना कैसे है? (How is Studying Maths Mental Training?),गणित का अध्ययन करना साधना है (Studying Mathematics is Spiritual Training) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
How is Studying Maths Mental Training?
गणित का अध्ययन करना साधना कैसे है?
(How is Studying Maths Mental Training?)
How is Studying Maths Mental Training?
गणित का अध्ययन करना साधना कैसे है? (How is Studying Maths Mental Training?)
यह समझने से पूर्व साधना को समझना आवश्यक है।
साधना को कार्य सिद्धि,आराधना,उपासना इत्यादि भी कहा जाता है परंतु इनमें आपस में अंतर है।
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Satyam
About my self I am owner of Mathematics Satyam website.I am satya narain kumawat from manoharpur district-jaipur (Rajasthan) India pin code-303104.My qualification -B.SC. B.ed. I have read about m.sc. books,psychology,philosophy,spiritual, vedic,religious,yoga,health and different many knowledgeable books.I have about 15 years teaching experience upto M.sc. ,M.com.,English and science.