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How Eradicate Youth Social Stereotypes?

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1.युवा सामाजिक रूढ़ियों को कैसे मिटाएं? (How Eradicate Youth Social Stereotypes?),सामाजिक रूढ़ियों को कैसे मिटायें? (How Eradicate Social Stereotypes?):

  • युवा सामाजिक रूढ़ियों को कैसे मिटाएं? (How Eradicate Youth Social Stereotypes?) सामाजिक रूढ़ियों को मिटाने का जज्बा युवाओं में ही हो सकता है क्योंकि युवावर्ग पुरानी घिसी-पिटी मान्यताओं में जकड़ा हुआ नहीं रहता है।उसमें जोश,उमंग और नया खून होता है अतः सामाजिक कुरीतियों,अंधविश्वासों को मिटाने में उसका महत्त्वपूर्ण योगदान हो सकता है।
  • इसके विपरीत बड़े-बुजुर्ग पुरानी मान्यताओं,घिसी-पिटी,सड़ी-गली परंपराओं से चिपके रहते हैं,उनको ढोते रहते हैं अतः उनसे दकियानूसी,प्रतिगामी मान्यताओं को छोड़ने की आशा नहीं की जा सकती है।
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2.दहेज प्रथा और बाल विवाह (Dowry system and child marriage):

  • हर समाज की कुछ पारंपरिक मान्यताएं होती हैं जिन्हें आने वाली पीढ़ियां अपने पूर्वजों से ग्रहण करती जाती हैं।समय की मांग के चलते इन मान्यताओं के कुछ तत्त्व अनुपयोगी होते जाते हैं और कुछ नए तत्त्व इनमें जुड़ते जाते हैं।’रूढ़ि’ इसी परंपरा का एक अनुपयोगी हिस्सा है,जिससे सड़े हुए अंग की तरह हर समाज को काट फेंकना चाहिए।
  • आज भारतीय समाज में बाल विवाह,दहेज प्रथा,जाति प्रथा,ऊँच-नीच,छुआछूत,लड़के-लड़की में अंतर,अंधविश्वास,आडंबर,दिखावा आदि कुछ ऐसी ही रूढ़ियाँ हैं जो भारतीय समाज की जड़ों को खोखला कर रही है।मनौती मनाना,बलि चढ़ाना,टोना-टोटका आदि अंधविश्वास समाज को सच्ची धर्म-भावना से दूर कर रहे हैं।बिल्ली द्वारा रास्ता काट जाना,छींक आ जाना,दिशाशूल होना तथा इसी प्रकार के अनेक अपशकुन भारतीय समाज को निकम्मेपन की ओर ले जा रहे हैं।यह ऐसे तत्त्व है जो मनुष्यता की हंसी उड़ा रहे हैं और प्रेम को दफन कर रहे हैं।इन रूढ़ियों से मुक्ति का दायित्व युवकों के कंधों पर है क्योंकि युवकों द्वारा ही एक व्यापक सामाजिक परिवर्तन की आशा की जा सकती है।प्रश्न उठता है कि युवक ही क्यों? इसलिए कि उनमें उत्साह अधिक होता है,जबकि पुराने लोगों में अपनी पुरानी चीजों से लगाव अधिक होता है।
  • दहेज प्रथा (Dowry system):दहेज प्रथा दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है।पहले तो दहेज प्रथा के कारण कितनी ही लड़कियों को आग में झोंक दिया जाता था परंतु सरकार और प्रशासन की सख्ती और लोगों में जागरूकता के कारण लड़कियों को दहेज के कारण जिंदा जलाना तो काफी कम हो गया है परंतु दहेज प्रथा कम होने के बजाय बढ़ती ही जा रही है।जो युवक जितना अधिक पढ़ा लिखा है अर्थात् डॉक्टर,इंजीनियर,आईएएस बन जाता है तो दहेज की बोली उतनी ऊंची होती जाती है।यह मांग प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से रखी जाती है।लड़की वाले भी इसे समय की मांग समझकर अपनी सामर्थ्य से अधिक दहेज देकर लड़की को विदा कर देते हैं और फिर कर्ज ली गई रकम को चुकाने में माता-पिता की जिंदगी खप जाती है।
  • आश्चर्य तो तब होता है जब इस मांग के पीछे युवकों की खुलेआम स्वीकृति होती है।वे यह तर्क देते हैं कि उनकी पढ़ाई पर लाखों के खर्च के बदले में यह दहेज लिए जाते हैं,लेकिन वे भूल जाते हैं की लड़की के माता-पिता भी अपनी बेटियों पर उतना ही खर्च करते हैं,उन्हें पढ़ाते-लिखाते हैं,उनको योग्य बनाते हैं।इससे बड़ी त्रासदी तो तब दिखाई पड़ती है कि इस मांग (दहेज) के पीछे किसी सास या ननद नाम की स्त्री का हाथ होता है। हमारे देश के युवकों को यह तस्वीर बदलनी होगी।उन्हें दहेज प्रथा की ग्रास बनने वाली इन युवतियों को बचाना होगा।उन्हें साहसपूर्वक यह कहना होगा कि वह दहेज के नाम पर एक पैसा भी नहीं लेंगे।
  • बाल विवाह (child marriage):बाल विवाह पढ़े-लिखे युवक-युवतियों और समाज में तो नगण्य हो गया है परंतु आदिवासी,भील,गरासिया,कोल,हरिजन,डाकोत,रेबारी, धोबी,नायक,धानका,जोगी आदि पिछड़ी जातियों में आज भी बाल-विवाह धड़ल्ले से होते हैं।इन समाजों की बच्चियों को जिन्हें अभी ‘क-ख-ग’ का भी ज्ञान नहीं होगा विवाह के बंधन में जकड़ दिया जाता है।जो अभी ‘विवाह’ और ‘पति’ का अर्थ भी नहीं जानती हैं,उन्हें एक बंधन में बांध दिया जाता है।इसका सबसे भयावह परिणाम होता है,असमय गर्भ-धारण और परिणामस्वरूप असमय जच्चा-बच्चा की मृत्यु।इसकी दूसरी समस्या जनसंख्या वृद्धि के रूप में होती है और तीसरी अस्वस्थ बालकों के जन्म के रूप में।
  • दरअसल बाल-विवाह के पीछे एक कारण दहेज प्रथा भी जुड़ी हुई है,क्योंकि छोटी उम्र में शादी कर देने पर दहेज की मांग कम हो जाती है।एक अन्य कारण यह भी है कि इन पिछड़ी,दलित जातियों में शिक्षा का प्रचार-प्रसार नहीं हुआ है।इस बाल-विवाह को समूल उखाड़ फेंकने में हर नौजवान को आगे आना चाहिए और अपने घर,समाज या देश में हो रहे बाल विवाह को समाज और कानून के स्तर पर रोकना चाहिए।

3.जाति प्रथा और ऊँच-नीच (Caste system and unevenness):

  • जाति प्रथा हमारे समाज की एक अन्य रूढ़ि है,जिसको हमारे राजनेताओं ने आरक्षण की पद्धति द्वारा जातिवाद का रूप दे दिया है।जातिवाद हिंदू समाज में वैमनस्य के बीज बो रहा है।अब तो उप-जातियाँ भी ‘कुकुरमुत्ते’ की तरह फैलती जा रही हैं।जैसे ब्राह्मण में उपजातियां हैं: गौड़ ब्राह्मण,हरियाणा ब्राह्मण,बागड़ा ब्राह्मण,बुरा ब्राह्मण,खंडेलवाल ब्रह्मण आदि।राजनेता वोट की राजनीति,सत्ता में बने रहने के लिए जाति प्रथा को बढ़ावा देते है और हिंदू समाज को बांट रहे हैं।
  • आज हमारे राजनेता धोबी सम्मेलन,यादव सम्मेलन,जाट सम्मेलन,केवट सभा,कुर्मी सभा आदि करके और इनमें शिरकत करके इस कुप्रथा को और भी बढ़ावा दे रहे हैं।उनका तर्क है यह चेतना फैलाने के लिए हो रहा है,लेकिन वे भूल जाते हैं कि यह चेतना चाहे जितनी फैलाएं,लेकिन वे मनुष्यता को जरूर बांट रहे हैं।आज हिंदू समाज अनेक जातियों और उपजातियों में बँटा हुआ है और हिंदू समाज खंड-खंड बँटा हुआ होने के कारण ही विदेशी आक्रमणकारी यहाँ शासन करने में कामयाब हो गये।
  • उदाहरणार्थ विदेशी आक्रमणकारी अहमद शाह अब्दाली भारत पर अपने छोटे से सैन्य दल के साथ आक्रमण करता हुआ आगे बढ़ रहा था।उस समय भारत में मराठे शक्ति का केंद्र थे।मराठे वीरतापूर्वक उससे लोहा ले रहे थे।
  • रात हुई।दोनों ओर से लड़ाई बंद हुई,रात में उन दिनों लड़ाइयां नहीं हुआ करती थीं।अहमद शाह ने मराठों की सेना के शिविर में जगह-जगह धुँआ उठते हुए देखा,तो उसे आश्चर्य हुआ कि इसका क्या कारण हो सकता है?
  • उसने गुप्तचर भेजे।वे पता लगा कर आए।हिंदू एक-दूसरे का छुआ भोजन नहीं खाते।सिपाही लोग अपनी अलग-अलग रसोई पका रहे हैं।
  • अहमद शाह की प्रसन्नता का पारावार न रहा।उसने सेनापति को बुलाकर कहा:”जिनमें एक-दूसरे का छुआ खाने जितनी भी एकता नहीं,वे बाहर से बलवान भले ही दीखें,भीतर से पूरी तरह खोखले होंगे।इन पर अभी हमला कर दो।”
    पूरी शक्ति के साथ आक्रमण हुआ।रसोई बनाते सैनिक भारी संख्या में मार डाले गए और अब्दाली जीत का डंका बजाता हुआ आगे बढ़ता चला गया।
  • आज हमें एक ऐसे समाज की जरूरत है जहाँ न ब्राह्मण हो,न क्षत्रिय हों,न शूद्र हों न कुर्मी हो,वहां सिर्फ मनुष्यता के लिए जिए और मनुष्यता के लिए मरें।यह कार्य भी युवावर्ग द्वारा ही संभव है।
  • ऊँच-नीच और छुआछूत (Unevenness Untouchability):ऊँच-नीच और छुआछूत की भावना तो हजारों साल से चली आ रही है और आज भी समाज में कोढ़ की तरह फैली हुई है।जहां सारे धर्म और महापुरुष कह गए कि सभी एक ही परमात्मा की संतान हैं,सभी में एक ही आत्मा का वास है,सभी की रगो में एक ही रक्त प्रवाहित हो रहा है,वहीं आज के समाज में न जाने कितने अज्ञानी लोग ऊंच-नीच की भावना द्वारा समाज में विष घोलते रहते हैं।
  • जाति प्रथा,ऊँच-नीच और छुआछूत की पड़ोसन है।इस संदर्भ में यह सवाल उठ सकता है कि ऊँच-नीच और छुआछूत से जाति प्रथा सुदृढ़ कैसे होती है।इस सवाल के जवाब में यही कहा जा सकता है कि जो वाकई में शिक्षित हैं ऐसे लोगों की ऊँच-नीच और छुआछूत बढ़ने से कोई फर्क नहीं पड़ता है क्योंकि ऐसे लोगों का मनोबल ऊंचा होता है और वे लोग हर परिस्थिति में रहने की कला सीख जाते हैं,लेकिन केवल साक्षर हों शिक्षित नहीं उनके जरूर फर्क पड़ता है।जब ऐसे लोगों के साथ ऊँच-नीच और छुआछूत का रवैया अपनाया जाता है तो वे सीधे अपनी जाति के लोगों की शरण में जाते हैं।जाति प्रथा को बढ़ावा देने वाले लोग ऐसे लोगों के साथ चिकनी-चुपड़ी बातें करके अपनी जाति को बढ़ावा देने,जाति को संगठित करने का लेक्चर थमा देते हैं।इस प्रकार केवल साक्षर,अनपढ़ (अशिक्षित) लोगों के साथ ऊंच-नीच और छुआछूत की जाती है तो वे जाति प्रथा को बढ़ावा देते हैं क्योंकि वही जगह उनको सुरक्षित लगती है।इससे होता यह है कि छुआछूत कम होने के बजाय बढ़ती है,जाति प्रथा भी बढ़ती है।
  • भारत में जो शिक्षा प्रदान की जाती है उसमें अधिकांश युवा व लोग केवल साक्षर ही तैयार होते हैं।शिक्षित लोग बहुत कम तैयार हो पाते हैं।ऊँच-नीच और छुआछूत के चलते ऐसे लोग जहां कहीं भी जाते हैं,कार्यस्थल पर जाते हैं,पिकनिक पर जाते हैं,पार्टी करने जाते हैं,घूमने या मनोरंजन आदि के लिए जाते हैं तो अपनी जाति के लोगों की तलाश करते हैं और उनके साथ समय व्यतीत करना,मनोरंजन करना अथवा घूमना-फिरना आदि पसंद करते हैं फलतः जाति प्रथा बढ़ती है।सत्ता में रहने वाले ऐसे लोग अपनी बिरादरी के लोगों को महत्त्वपूर्ण पदों पर नियुक्त करते हैं।अपने आसपास अपनी ही जाति के लोगों का ‘काॅकस’ तैयार कर लेते हैं।
  • इस स्थिति को बच्चे,पढ़े-लिखे युवा देखते हैं तो वे भी जाने-अनजाने जाति प्रथा को बढ़ावा देने लगते हैं और अन्य जातियों के लोगों की आलोचना करना,नुक्ताचीनी करना,उनसे नफरत करने जैसी बातें उनके वार्तालाप में शामिल होती हैं।
  • एक दिलचस्प तथ्य और देखने को मिलेगा,जैसे स्वर्ण जाति के लोग रैगर,चमार,धोबी आदि से ऊँच-नीच,छुआछूत का बर्ताव करते हैं तो रैगर,चमार,धोबी आदि स्वर्ण जाति की आलोचना करेंगे लेकिन वे स्वयं भी हरिजन,डाकोत,धानका आदि से ऊँच-नीच व छुआछूत का बर्ताव करेंगे।
  • यदि समाज को आगे बढ़ाना है,देश को आगे बढ़ाना है,मनुष्यता की लाज रखनी है,तो इन कुत्सित विचारों को केंचुल की तरह उतार फेंकना होगा।

4.लड़के और लड़की में भेद (Difference between boy and girl):

  • लड़के और लड़की में भेद आज के समाज में हर जगह देखा जा सकता है।न जाने कितने परिवारों में अच्छे स्कूल,पब्लिक स्कूल,काॅन्वेंट स्कूल,दूध,घी,पौष्टिक चीजें आदि सिर्फ लड़कों के लिए होती है।बचपन से ही लड़कियों को पराई मानकर पाला जाता है।कदम-कदम पर उन्हें लड़की होने का अहसास कराया जाता है।घर का झाड़ू-पोंछा और चौका-बर्तन सिर्फ लड़कियों के मत्थे होता है।वे लड़कियां खुशनसीब होती हैं जिन्हें लड़कों जैसा प्यार मिलता है और लड़कों जैसी शैक्षिक उपलब्धियां मिलती हैं।
  • दुःख तो तब होता है जब एक मां जैसी स्त्री भी इस भेदभाव को बढ़ावा देती है।इधर कुछ वर्षों से एक विकराल समस्या ने और आ घेरा है जिसमें पेट में लड़के या लड़की के भ्रूण की पहचान हो जाती है।इससे हर रोज न जाने कितने लड़कियों वाले भ्रूण पेट में नष्ट कर दिए जाते हैं।यह एक समस्या है जिससे आज स्त्री-पुरुष अनुपात और सामाजिक संतुलन को भयंकर खतरा उत्पन्न हो गया है।
    चूँकि इस भेदभाव को एक युवक भाई के स्तर पर,बाप के स्तर पर और पति के स्तर पर तीनों ही तरीकों से समाप्त करने का बीड़ा उठा सकता है।अतः समाज इस अभिशाप से पीछा छुड़ाने के लिए युवावर्ग की ओर देख रहा है।

5.अंधविश्वास एवं कुरीतियाँ (Superstitions and evils):

  • अंधविश्वास एवं कुरीतियाँ घुन की तरह समाज को चबा रहे हैं।अखबारों में प्रायः ऐसी खबरें पढ़ने में आ जाती है कि किसी व्यक्ति ने पुत्र प्राप्ति या देवी की खुशी के लिए बकरे की बलि चढ़ा दी।पशुओं की निर्मम हत्याएँ की जा रही है और शासन-प्रशासन,कानून के रक्षक मूकदर्शक होकर देख रहे हैं।कोई कुछ कहने वाला नहीं है।उनकी कुरीतियों को निभाने के लिए कत्लखानों की स्वीकृति दी जा रही है।विभिन्न धार्मिक उत्सवों में लाखों की संख्या में जानवर बलि-वेदी पर मौत की नींद सुला दिए जाते हैं।बहुत बार किसी जिन्न या प्रेतात्मा को खुश करने के चक्कर में लोग अपना घर-बार तक गिरवी रखकर कर्मकांडों का आयोजन करते हैं।कोई बीमार हो जाता है तो उनका इलाज करने के बजाय झाड़-फूँक करने वालों के चक्कर में पड़ जाते हैं और बीमार बच्चे या व्यक्ति तब तक मौत की नींद सो जाते हैं।ऐसे झाड़-फूँक,ओझा गली-गली,मोहल्ले में,यत्र-तत्र मिल जाएंगे।समाज को साफ-सुथरा रखने के लिए उनके खिलाफ भी युवावर्ग की आवाज बुलंद होनी चाहिए।

6.शादी-ब्याह के अवसर पर दिखावा (Showing off on the occasion of marriage):

  • आज हर जगह देखा जा सकता है की सामर्थ्य से अधिक खर्च करने की प्रवृत्ति हर आदमी में बढ़ती जा रही है।पड़ौसी के घर में नई कार देखकर दूसरा पड़ौसी भी चाहने लगता है कि काश उसके पास वह कार आ जाए।इसी के चलते लोगों का दीवाला निकल जाता है।
  • अपनी सामर्थ्य नहीं है फिर भी बच्चों को पब्लिक स्कूल,काॅन्वेंट स्कूल में दाखिला दिलवा देंगे।कंप्यूटर,लैपटॉप या मोबाइल खरीदने की सामर्थ्य नहीं है परंतु देखा-देखी खरीदेंगे ताकि लोगों को दिखाया जा सके कि वह भी उनसे किसी मायने में कम नहीं हैं।
  • इसी दिखावे के चलते भ्रष्टाचार जैसी बुराई का जन्म होता है जिससे आज का समाज कदम-कदम पर जूझ रहा है।दिखावटी चीजें खरीदने के लिए लोग गलत काम का सहारा लेते हैं।यदि ईमानदारी की आय द्वारा ये चीजें हासिल की जाए तो कोई बात नहीं है,लेकिन समस्या तब होती है,जब इसके लिए लोग भ्रष्टाचार,चोरी,डकैती,अपहरण,बेईमानी आदि का सहारा लेते हैं।इन्हें दूर करने के लिए आज बहुत बड़े नैतिक साहस की जरूरत है,बहुत बड़े संतोष की जरूरत है जिससे उतना खाया जाए,खरीदा जाए,सुविधाओं का भोग किया जाए,जितना कमाया जाए।

7.सामाजिक रूढ़ियों को मिटाने का निष्कर्ष (Conclusion to eradicating social stereotypes):

  • आज ऐसे युवक-युवतियों की जरूरत है जो सही मायने में शिक्षित हो,केवल डिग्री लेने वाले,साक्षर होने वाले की जरूरत नहीं है।क्योंकि इन रूढ़ियों,कुरीतियों,अंधविश्वासों को जड़मूल से शिक्षित युवावर्ग ही दूर कर सकता है।परंतु आज की शिक्षा पद्धति को देखकर निराश होना पड़ता है कि शिक्षण पद्धति में ऐसे युवाओं का तैयार होना बहुत मुश्किल है।
  • अपने प्रयासों,माता-पिता के प्रयासों,समाज के सुधारकों,ऋषि-मुनियों से यह अपेक्षा की जा सकती है कि वे ऐसे युवाओं को तैयार करें जो केवल क्वालिफाइड ना हो बल्कि सही मायने में एजुकेटेड हों।भारत वो भूमि है जहाँ भरत,भक्त ध्रुव,प्रहलाद,राम-कृष्ण जैसे योगी और महात्मा पैदा हुए हैं।अतः भविष्य की आहट को अभी समझकर ऐसे ही वीर,तपस्वी,कर्मठ,निष्ठावान युवाओं को तैयार करने की जरूरत है।
  • आज के समाज को ऐसे युवक-युवतियों की जरूरत है जो अपने पैरों पर खड़े होकर अपने पसीने की कमाई से कुछ कर-गुजरने का साहस रखते हों,जिन्हें किसी दहेज की,किसी घूस की,किसी लालच की जरूरत नहीं हो।जिनमें नैतिकता,ईमानदारी,सच्चाई और देश में मानवता के प्रचार की ऊर्जा हो।जिनके कंधे इतने मजबूत हों कि पूरा समाज उनके सहारे एक नई दिशा,उज्जवल दिशा की ओर चल पड़े।
  • जब-जब भी भारत पर ऐसा संकट आया है भारत में ऐसे सच्चे सपूत और युवा पैदा हुए हैं और उन्होंने भारत पर छाए हुए कोहरे,अंधकार को दूर किया है।आशा है आज के युवा अपनी संस्कृति को पहचानेंगे,संस्कृति को अपनाएंगे और भारत के उज्जवल भविष्य का निर्माण करेंगे।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में युवा सामाजिक रूढ़ियों को कैसे मिटाएं? (How Eradicate Youth Social Stereotypes?),सामाजिक रूढ़ियों को कैसे मिटायें? (How Eradicate Social Stereotypes?) के बारे में बताया गया है।

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8.छात्र की गाड़ी का चालान (हास्य-व्यंग्य) (Challan of Student’s Vehicle) (Humour-Satire):

  • रिंकू (एक छात्र) अपनी गाड़ी पर सवार होकर सड़क से गुजर रहा था।
  • बीच चौराहे पर ट्रैफिक पुलिस वाले ने रोका और कहा तुम्हारी गाड़ी का चालान होगा,तूने हेल्मेट नहीं लगाया है।
  • रिंकू:देखते नहीं गाड़ी पर फायर ब्रिगेड की गाड़ी का निशान है।फायर ब्रिगेड गाड़ी वाले का चालान करना तो दूर रहा उसे तो चौराहे पर रोका ही नहीं जाता है,रास्ता दे दिया जाता है।

9.युवा सामाजिक रूढ़ियों को कैसे मिटाएं? (Frequently Asked Questions Related to How Eradicate Youth Social Stereotypes?),सामाजिक रूढ़ियों को कैसे मिटायें? (How Eradicate Social Stereotypes?) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.प्रथा से क्या आशय है? (What do you mean by tradition?):

उत्तर:प्रसिद्धि,ख्याति,रीति,परिपाटी आदि प्रथा के पर्याय हैं।प्रथा गलत भी हो सकती है और सही भी।

प्रश्न:2.रीति से क्या आशय है? (What do you mean by ritual?):

उत्तर:ढंग,प्रकार,तरीका,रवाज,चलन,परिपाटी,नियम,कायदा आदि इसके पर्याय हैं।

प्रश्न:3.रिवाज से क्या आशय है? (What do you mean by custom?):

उत्तर:प्रथा,रूढ़ि,परंपरा,चलन,तरीका आदि इसके पर्याय हैं।दरअसल ये तीनों शब्द प्रथा,रीति,रिवाज लगभग समानार्थक अर्थ रखने वाले शब्द हैं।

प्रश्न:4.अंधविश्वास का क्या अर्थ है? (What does superstition mean?):

उत्तर:बिना सोचे-समझे किसी बात (पुरानी अथवा नवीन) को मान लेना,विचाररहित विश्वास,वहम को अंधविश्वास कहते हैं।

प्रश्न:5.अंध-परम्परा का क्या अर्थ है? (What does blind tradition mean?):

उत्तर:बिना सोचे समझे पुरानी रीति का अनुसरण,भेड़ियाधसान।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा युवा सामाजिक रूढ़ियों को कैसे मिटाएं? (How Eradicate Youth Social Stereotypes?),सामाजिक रूढ़ियों को कैसे मिटायें? (How Eradicate Social Stereotypes?) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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