How Does Accompaniment Have Effect?
1.संगत का असर कैसे पड़ता है? (How Does Accompaniment Have Effect?),संगत का असर (Effect of Accompaniment):
- संगत का असर कैसे पड़ता है? (How Does Accompaniment Have Effect?) क्या आपने इस पर विचार किया है अर्थात् जो विशेषताएं आपके व्यक्तित्व में विद्यमान हैं,उनकी किरणें दूसरों तक पहुंचती हैं।यदि आप प्रसन्न तथा आल्हादित हैं,आपमें दृढ़ संकल्प और स्थिरता है,आपके शरीर का रोम-रोम विजय-प्राप्ति का प्रदर्शन कर रहा है,आपके अंग-अंग से स्वास्थ्य तथा हृष्ट-पुष्टता थिरक रही है तो आपके आसपास वालों में भी यह प्रभाव प्रवेश कर जाएंगे।
- जो लोग आपसे प्रभावित हैं उनके अंदर भी वही विशेषताएं उत्पन्न हो जाएगी जो स्वयं आपके अंदर मौजूद हैं।चाहे वे विशेषताएं दुर्बल हों या सबल,अच्छी हों या बुरी,उच्च हों या निम्न।
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2.संगति का बहुत प्रभाव पड़ता है (Consistency has a great impact):
- यदि आपकी कथनी-करनी तथा चरित्र एवं बोलचाल में शक्ति और उत्साह है,यदि आप अपना काम पूरी हिम्मत और मेहनत से करते हैं तो आपके इर्द-गिर्द के लोगों और पड़ोसियों के अंदर भी यही बात पैदा हो जाएगी।वे आपके उदाहरण को अपने सामने रखकर आप जैसा बनने का प्रयत्न करेंगे।इसके विपरीत यदि आप चुस्त व चतुर नहीं,आलसी व सुस्त हैं,आज का काम कल पर टाल देने के आदी हैं तो आप अपने आसपासवालों को भी वैसा ही बना देंगे।
- संगति का बहुत प्रभाव पड़ता है।जो लोग साथ-साथ उठते-बैठते हैं,उनकी नैतिकता तथा उनका स्तर भी समान हो जाया करता है।किसी व्यक्ति का चरित्र इतना सबल नहीं होता है कि वह अपने आसपास की स्थितियों से प्रभावित न हो।यदि किसी परिवार का अभिभावक स्वार्थी,उजड्ड और पाशविक हो तो पूरा घर,पत्नी,पुत्र,पुत्रियाँ आदि सबके सब उस रंग में रंग जाएंगे।यदि पिता दूरदर्शी,समझदार,सज्जन और विनम्र हो तो घर के बच्चे भी वैसे ही सज्जन और आज्ञाकारी सिद्ध होंगे।प्रायः देखा जाता है कि सुसंस्कृत,सज्जन और सुस्वभावी स्त्री सारे मोहल्ले को नम्र स्वभावी तथा मधुरभाषी बना देती है।
- आकर्षण तथा प्रेम,घृणा तथा ग्लानि की अदृश्य लहरें हमारे और हमारे मित्रों के बीच उमड़ती रहती हैं।ये गुप्त लहरें ठीक-ठाक रिपोर्ट प्रस्तुत करती हैं।
- उस व्यक्ति को कितनी प्रसन्नता तथा संतोष प्राप्त होता है कि वह जहां कहीं भी जाता है,निराशा और अनिच्छा की अपेक्षा प्रकाश तथा आशा बिखेरता जाता है,जो यह समझता है कि समाचार-पत्र बेचने वाला लड़का,पाॅलिश करने वाला बच्चा,ड्राइवर,कार्यालय का चपरासी या कोई भी उससे मिलता है तो प्रकाश और हर्ष का कुछ-न-कुछ अंश अवश्य ले जाता है।यदि आप अखबार खरीदते समय जरा-सा मुस्कुरा दें तो आपका कुछ खर्च नहीं होगा,किंतु समाचार-पत्र बेचने वाला लड़का,बूट पॉलिश करने वाला बच्चा और बस-कंडक्टर आपको सलाम करेंगे और यह अनुभव करेंगे कि आप अच्छे आदमी हैं,आपका मन सहानुभूति के भावों से भरा हुआ है,आप जनता के हितैषी हैं।ऐसे अभिवादनों का हमारे मन में संसार की बड़ी-बड़ी वस्तुओं की अपेक्षा अधिक मूल्य तथा आदर होना चाहिए।ये तो जीवनरूपी रुपए के पैसे,आने,दुवन्नियां,चवन्नियां हैं।इनके बांटने में हमें कृपणता से काम नहीं लेना चाहिए,बल्कि जितना अधिक देंगे,उतने ही अधिक धनी होते जाएंगे।
- यदि आपका मन दुखी है,यदि आपने रुआँसी सूरत बना रखी है,जैसे कि आपका कोई संबंधी आपसे बिछुड़ चुका है और आपकी जेब में पाई तक नहीं तो ऐसी स्थिति में आपको यह आशा हरगिज नहीं रखनी चाहिए कि लोग आपके पास आएंगे,आपकी सूरत उनको अपनी ओर आकृष्ट करेगी।ये विशेषताएं तो घृणा फैलाने वाली और लोगों को दूर हटाने वाली हैं।ये तो वे बातें हैं,जिनसे हम दूर-दूर रहना चाहते हैं,क्योंकि यह काली,भयानक और असह्य सूरते हैं।
- स्वभाव तथा गुण अपना प्रभाव अवश्य दिखाते हैं।कभी-कभी एक दुखी,सड़ियल और कुस्वभावी व्यक्ति की उपस्थिति से घर के पूरे वातावरण पर प्रभाव पड़ता है।कभी तो उसे मौसम से शिकायत होती है,कभी उसे घर के दूसरे लोगों के सुझावों से सहमति नहीं होती।वे यदि बाहर सैर को जाना चाहें तो वह घर में बंदी बनकर रहना पसंद करता है।वे उत्तर की ओर जाना चाहें तो वह निश्चय ही दक्षिण या पश्चिम की ओर चलता है।वस्तुतः उसकी इच्छा और सुझाव परिवार के अन्य सदस्यों से बढ़कर और ऊंचे होते हैं।वह अपने आसपास के लोगों से सहमत नहीं होता।उनकी खुशी से उसे खुशी नहीं होती।वह न केवल स्वयं दुखी,मुरझाया हुआ और अप्रसन्न रहता है,बल्कि दूसरों के रंग में भी भंग डालता है।
3.हमारे हाव-भाव और स्वभाव का प्रभाव (The Influence of Our Gestures and Temperaments):
- सुस्वभावी बनने के लिए दर्शन का आधार इस सरल नियम पर है कि जैसे हमारे विचार होंगे,वैसे ही हम बन जाएंगे।जैसे हमारी आदतें होंगी,हम परिस्थितियों को जिस दृष्टि से देखेंगे,उसी ढर्रे पर हमारा जीवन ढल जाएगा।यदि हमारे विचार कायरों,नीचों,कमीनों,लफंगों,बदमाशों और बेईमानों जैसे हैं तो हम इन जैसे ही बन जाएंगे।हर ओर से हम पर धिक्कार की बौछार होगी।हर घड़ी हम पर भय और आतंक छाया रहेगा।हमारा जीवन अजीर्ण हो जाएगा और हम हर समय उदास,मुरझाए हुए और दुखी रहेंगे।
- जो कुछ हमारे मन में होता है,उसका हमारे विचारों,अनुभूति और भावनाओं पर बहुत प्रभाव पड़ता है।हम पर अपने आसपास उठने-बैठने वालों,मित्रों तथा कुटुंबियों के स्वभाव,प्रकृति तथा आचरण का भी प्रभाव पड़ता है।यदि वे सनकी,निराशावादी,मुरझाए से हैं और उनके विचार भी गिरे हुए हैं तो हम भी वैसे ही हो जाएंगे।यदि उनके विचार उच्च व महान उनके संकल्प ऊंचे तथा उनका साहस ऊंचा होगा तो हममें भी ये गुण उत्पन्न हो जाएंगे।
- बहुत से चिकित्सक ऐसे हैं,जो औषधि का प्रयोग बहुत कम करते हैं,फिर भी वे बहुत सफल चिकित्सक होते हैं।इसका कारण यह है कि वे स्वभावतः प्रसन्नचित्त तथा विनम्र होते हैं,उनका मुख सदैव हर्ष से खिला हुआ होता है।उनकी संगति में रोगी भी उल्लसित अनुभव करता है।वे जानते हैं कि रोगी को औषधि की अपेक्षा आशा तथा प्रोत्साहन की अधिक आवश्यकता होती है,इसलिए वे यथासम्भव रोगी को ढाढस देते हैं,और आशा बंधाते हैं,क्योंकि वे यह बात जानते हैं कि ये बातें दवा से अधिक प्रभावशाली होती हैं।
- किसी परम मित्र अथवा प्रेमिका के आगमन पर हमें हार्दिक प्रसन्नता होती है-हमारा मुख उल्लास से चमकने लगता है और हमारा दुख तथा चिंता,पीड़ा व वेदना अदृश्य हो जाती है।इसके विपरीत यदि ऐसा व्यक्ति आए जिसके व्यक्तित्व से निराशा,सनकीपन या दुःख व संताप टपक रहा हो तो उसे देखते ही हमारे मन पर एक असह्य बोझ पड़ जाता है,हम पर उदासी तथा चिंता की घटाएँ छाने लगती है,सांस रुक जाता है और रक्त जमने लगता है।इस भावना के बावजूद हमारा जी चाहता है,उससे सहानुभूति प्रकट करें,हमारे मन में उसके प्रति घृणा,ईर्ष्या तथा द्वेष के भाव उत्पन्न हो जाते हैं।
- ऐसे व्यक्ति की उपस्थिति में हम कितनी ही चेष्टा करें,हमारी स्वाभाविक विनम्रता प्रकट नहीं होती।हमारी बातचीत के समस्त स्रोत सूख जाते हैं,हम मूर्ख कहलाने लगते हैं।हम विनम्रता तथा जिंदादिली अपनाने का चाहे कितना ही प्रयत्न करें,हमारा वह प्रयत्न व्यर्थ ही जाएगा।उस असह्य व्यक्ति का विष हमारे सारे शरीर में प्रवेश कर जाता है।जब तक वह दूर ना हो जाए,हमारी तबीयत ठीक नहीं होती।जब वह चला जाता है तो हमारे दम-में-दम आता है,हम संतुष्टि अनुभव करते हैं।
- व्यक्तित्व अपना आचरण प्रकट करते हैं-वे जो कुछ होते हैं,उनके चेहरे पर प्रकट हो जाता है,उनके बोलचाल के ढंग तथा आदतों से फूट-फूट कर निकलता है-अर्थात् जो कुछ उनके अंदर छिपा हुआ होता है,वही बाहर आता है।यदि उनके अंदर द्वेष,वैर,शत्रुता और घृणा का विष भरा हुआ है तो उनकी जबान तथा उनके चरित्र से प्रकट हो जाएगा।यदि उनके हृदय में दूसरों के लिए सहानुभूति,प्रेम और भलाई की भावनाएं विद्यमान हैं तो उनके कर्म तथा उनके वचन इन्हीं विशेषताओं का प्रतिनिधित्व करेंगे।
- एक स्वार्थी मनुष्य की कृपणता तथा अधमता का दूसरा व्यक्ति बहुत जल्दी अनुमान लगा सकता है।जब कोई नीच और स्वार्थी मनुष्य हमारे पास आता है,हमसे हाथ मिलाता है और बातें करता है तो हमें उसकी नीचता और स्वार्थ का अनुभव होता है।हमें प्रतीत होता है मानो हमारे अंदर से कोई चीज निकल गई है।वह अपनी उपस्थिति से हमारे हेय तथा निकृष्ट विचारों व अनुभूतियों को जागृत कर देता है,क्योंकि उसके व्यक्तित्व पर ऐसी ओछी आदतें छाई हुई होती हैं और दूसरों को भी वह उन्हीं से प्रभावित कर लेता है।
4.सिद्धांतहीन और सज्जन व्यक्ति का प्रभाव (The influence of the unprincipled and gentleman):
- एक सिद्धांतहीन तथा पथभ्रष्ट व्यक्ति की संगत में हमें ऐसे कार्य करने की प्रेरणा प्राप्त होती है,जिनसे हम घृणा करते हैं,किंतु एक सज्जन की उपस्थिति में हमें ऐसे विचार से भी घृणा होती है।सिद्धांतविहीन व्यक्ति के पास रहकर,वे सारे कुविचार व दुर्भावनाएं जो मिट चुके हैं,पुनः जीवित हो उठते हैं।हमारे अंदर से जो सज्जनतापूर्ण,पवित्र तथा उच्च विचार होते हैं,वे दब जाते हैं,किंतु निकृष्टतम आदतें प्रकट हो जाती हैं।
- यदि हम किसी सज्जन,वयोवृद्ध तथा महान व्यक्ति से मिलें तो हम अपने अंदर एक ऐसा परिवर्तन अनुभव करते हैं जो हमें उच्च,सज्जन और महान होने का संदेश देता है।हमें मालूम होता है कि जिस वायु में हम सांस ले रहे हैं,वह बदल गई है।हमें अनुभव होता है कि हम कोई घटिया और नीचतापूर्ण कार्य कर ही नहीं सकते।उसकी उपस्थिति में हम भी सज्जन,विनम्र तथा पावन-हृदयी बन जाते हैं,क्योंकि उसका उच्च स्वभाव हमारे मानस की श्रेष्ठतम भावनाओं एवं अनुभूतियों को भाता है।जब तक हम उसकी संगति में रहते हैं,हम भव्य वस्तुओं को चरम सीमा तक पहुंचाने की इच्छा अपने मन में पाते हैं।उसके विचारों की महानता और उसके उद्देश्यों की उच्चता हमारे अंतःकरण की समर्थक बन जाती है।हमारी आत्मा के अंदर जो सौंदर्य,महानता और पौरुष लुप्त हैं,वह उसके महान व्यक्तित्व के प्रभाव से प्रकट होने के लिए व्याकुल हो जाते हैं।
- हमारे पास अपनी वास्तविकता छिपाने की शक्ति नहीं।बहुरूपियों का आचरण प्रकट होकर रहता है,चाहे वे उसे लाख परदों में ही क्यों न छिपाएं।
- कभी-कभी एक कायर और भावुक शिष्य पर गुरु का इतना प्रभाव पड़ जाता है कि वह अपनी इच्छानुसार कार्य नहीं कर सकता।एक भीमकाय या कठोर हृदय गुरु के भय से बालक इतना आतंकित हो जाता है कि वह साधारण जोड़-घटा के सवाल भी हल नहीं कर सकता,क्योंकि भय से उसके हाथ पैर फूल जाते हैं।कभी-कभी वह छात्र जो बहुत बुद्धिमान और परिश्रमी होते हैं,ऐसे कठोर रवैये के कारण असफल हो जाते हैं।
- बड़े-बड़े विद्वानों तथा वक्ताओं की मानसिक शक्ति ने श्रोतागण की प्रवृत्ति से बहुत लाभ उठाए हैं।अच्छे वक्ताओं की ख्याति और महानता में उनके श्रोताओं की प्रशंसा और वाह-वाह का बहुत बड़ा हिस्सा होता है।ऐसे श्रोताओं की उपस्थिति से वे प्रोत्साहित होते हैं,उनके मस्तिष्क को नई शक्ति प्राप्त होती है और इस प्रकार वे भाषा-सौंदर्य तथा धुआंधार भाषण-कला के सागर पाट जाते हैं।
- जैसा बर्ताव आप दूसरों के साथ करेंगे,वैसा ही बर्ताव वे आपके साथ करेंगे।यदि आप किसी व्यक्ति के साथ नीचता,घृणा और ग्लानि से भरा हुआ व्यवहार करेंगे तो उसके मन में भी आपके लिए वैसे ही विचार उत्पन्न होंगे।यह असंभव है कि उनके मन में आपके व्यवहार से प्रेम,आभार तथा प्रशंसा के भाव उत्पन्न हों।मन की तुलना चुंबक से की जा सकती है।वह दूसरों के अंदर से अपनी आकर्षण-शक्ति द्वारा खूबियां निकालता है,जो उसके अपने अंतर में छिपी होती हैं।यदि हम अपने मित्रों का आदर और उनसे प्रेम करते हैं,यदि हम वास्तव में उनकी अच्छाई तथा कल्याण में रुचि लेते हैं और उनकी यथासंभव सहायता करना चाहते हैं तो उनको भी हमारी भलाई का वैसा ही विचार होगा।बुरे-से-बुरे व्यक्तियों के मस्तिष्क भी प्रेम-प्रणय के निरंतर विचार ने परिवर्तित कर दिए हैं।
5.बोलचाल और व्यवहार का प्रभाव (Influence of speech and behavior):
- हर वह व्यक्ति जिसके साथ हम उठते-बैठते हैं और काम करते हैं,हमारे जीवन में कुछ ना कुछ परिवर्तन अवश्य उत्पन्न करता है।हम वह नहीं रहते जो पहले थे।दूसरों की हिम्मत और साहस देखकर या उसके बारे में सुनकर हम बहुत प्रभावित होते हैं।वीरता के किसी कारनामे को देखकर हमारे खून में भी उबाल आ जाता है।हमारी इच्छा होती है कि हम संसार को कुछ करके दिखाएं,कुछ बनकर दिखाएं।हमारा मान,ख्याति,हमारा सदाचार लोगों के विचारों का परिणाम है,जो हमारे प्रति उनके हृदय में पाए जाते हैं।जब हम किसी आदमी से मिलते हैं तो हम एक विशेष प्रभाव उसके हृदय पर छोड़ जाते हैं।हमारे वस्त्र,हमारी आदतें व तौर-तरीके,हमारी शारीरिक व मानसिक सामर्थ्य,जो काम हम कर चुके हैं या जिस काम में सफल नहीं हुए,वे सब बातें मिलकर वह कुछ बनाती हैं,जिससे प्रसिद्धि या कीर्ति कहा जाता है तथा जिस पर हमारी सफलता व विजय निर्भर करती है।
- हमारी बोलचाल तथा हमारे व्यवहार से हमारे लालन-पालन,हमारी शिक्षा,हमारे वातावरण,हमारी सभ्यता,हमारी संस्कृति का पता चलता है।उन्हीं से ज्ञात होता है कि हम किस स्वभाव के लोगों की संगति से लाभान्वित हुए हैं और हमने किस प्रकार की पुस्तकें पढ़ी हैं; और यही चीजें हमारी भाषा,हमारी निरक्षरता,हमारे अज्ञान,हमारी असभ्यता और उजड्डपन का पता देती हैं और इन्हीं के द्वारा हमारी सज्जनता और ईमानदारी को आंका जाता है।जब हम दूसरे लोगों से मिलते हैं तो वैयक्तिक चुंबकत्व का विनिमय होता है।हम एक-दूसरे को मुस्कुराहट या ताजगी देते हैं।प्रत्येक व्यक्ति बिजली की एक बैटरी है,जो आसपासवालों के लिए सकारात्मक या नकारात्मक होती है।
- प्रकृति की हर वस्तु परमपिता की सृष्टि तथा कला की साक्षी रही है।यदि हम उन वस्तुओं को उसी दशा में देखें,जैसा की विधि ने उनको बनाया है और अपने पथभ्रष्ट करने वाले तथा कुविचारों की ऐनक से न देखें, जिनसे वस्तुओं की आकृतियाँ भद्दी और टेड़ी-मेड़ी दिखाई देती हैं,तो हर वस्तु हमें यही संदेश देगी कि खुश रहो,हंसो,मुस्कराओं,सफल बनो और प्राकृतिक सिद्धांतों के अनुसार जियो।यदि हम जीवन के राजमार्ग पर प्रकृति के सिद्धांतानुसार चलना आरंभ कर दें तो हमें इतना संतोष तथा आनंद प्राप्त होगा कि जीवन हमारे लिए स्वर्ग-तुल्य बन जाएगा।जब संसार उस बिंदु तक पहुंच जाएगा,जब हर व्यक्ति वास्तविकता को पहचान लेगा और स्वाभाविक तथा सच्चा जीवन व्यतीत करने लगेगा तो संसार के क्षितिज से संकट व विपत्ति की घटाएं दूर हो जाएंगी,दारिद्रय की बदलियां छट जाएंगी और मेघाच्छादित क्षितिज साफ हो जाएगा।तब सब सदाचार एवं पवित्रता की ओर कदम बढ़ाने लगेंगे।
- एक निर्दयी,लालची और स्वार्थी मनुष्य का चेहरा देखकर,हमारी तबीयत खराब हो जाती है।ऐसी व्यक्ति का अस्तित्व स्वाभाविक सौंदर्य और प्रकृति की सुंदरता में दोष निकालता है।प्रकृति के सौंदर्य तथा पवित्रता में ऐसी असह्य वस्तुओं के लिए कोई स्थान नहीं,देखिए तो उन चेहरों और फूलों,लहलहाते हुए उद्यान के साम्राज्य में स्वार्थ,लालच,धोखा,आडंबर तथा पाप के लिए कोई गुंजाइश नहीं;वे उन सारी वस्तुओं से भिन्न और अलग हैं जो विधाता ने उत्पन्न की होती हैं।संसार में जो बुरी वस्तु उत्पन्न होती है,वह बुरे विचार या बुरे व्यवहार का फल होती है और उसको नष्ट कर देना ही उचित है।
- केवल पुनीत हृदय ही भगवान के दर्शन कर सकते हैं।केवल वे ही लोग यथार्थ के सौंदर्य का दर्शन करते हैं जिनके मन पवित्र,साफ तथा निर्मल हों।हर दुर्विचार,दुर्व्यवहार और पाप के घटित होने से हमारे नेत्रों के सामने यथार्थ पर एक पर्दा पड़ जाता है,जिसके कारण हम वस्तुओं को उनके असली रंग में नहीं देख पाते।उचित रीति से सोने तथा प्राकृतिक सिद्धांतों के अनुकूल जीवनयापन करने से यह पर्दा हट जाता है और आप वस्तुओं को उनके वास्तविक रंग में देख सकते हैं।समुचित ढंग से मानव का समादर कर सकते हैं,यथार्थ,सत्य तथा सौंदर्य का साफ,विमल तथा उज्ज्वल मुख देखने से पहले हमें स्वार्थ,बेईमानी,लोभ,धोखा और दूसरों को हानि पहुंचाकर,स्वयं लाभ प्राप्त करने के लिए किसी के मार्ग में बाधक होने और कांटे बोने तथा किसी को पीछे ढकेलकर आगे बढ़ने की प्रत्येक रुकावट हटानी पड़ेगी।
- उपर्युक्त आर्टिकल में संगत का असर कैसे पड़ता है? (How Does Accompaniment Have Effect?),संगत का असर (Effect of Accompaniment) के बारे में बताया गया है।
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6.शिक्षक की पिटाई (हास्य-व्यंग्य) (Teacher Beaten up) (Humour-Satire):
- रिंकू रोते हुए घर आया।
- मांःबेटे क्या हुआ,क्यों रो रहे हो?
- रिंकू:एक टीचर ने मुझे पीटा।
- मांःकौनसे टीचर ने,क्या तुम उसे पहचानते हो?
- रिंकू:हा-हां,उसके सामने का एक दांत मेरे मुक्के से टूटा है।
7.संगत का असर कैसे पड़ता है? (Frequently Asked Questions Related to How Does Accompaniment Have Effect?),संगत का असर (Effect of Accompaniment) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:
प्रश्न:1.दुर्बल चरित्र वाले का प्रभाव कैसे फैलता है? (How does the influence of a weak character spread?):
उत्तर:दुर्बल चरित्र तथा निराश व्यक्तित्व का दुष्प्रभाव इतनी तेजी से फैलता है कि पलक झपकते ही अपने आस-पड़ोस को भी संक्रमित कर देता है।
प्रश्न:2.दुनिया के यथार्थ रूप को कैसे देखें? (How do you see the real world in reality?):
उत्तर:दुनिया को यथार्थपूर्ण दृष्टि से देखने पर कुरूप,भौंडी तथा वीभत्स आकृतियों के स्थान पर सत्य तथा सौंदर्य के दर्शन होते हैं।इसके लिए जरूरी है कि झूठ का पर्दा आंखों पर से हटाया जाए।
प्रश्न:3.अपनी दुनिया का निर्माण कौन करता है? (Who creates their world?):
उत्तर:हम अपनी दुनिया का निर्माण स्वयं करते हैं,आसपास का माहौल भी हमारा ही बनाया होता है।ऐसे में अंधकार तथा निराशा दिखाई दे तो दोष दूसरों का क्यों?
- उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा संगत का असर कैसे पड़ता है? (How Does Accompaniment Have Effect?),संगत का असर (Effect of Accompaniment) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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Satyam
About my self I am owner of Mathematics Satyam website.I am satya narain kumawat from manoharpur district-jaipur (Rajasthan) India pin code-303104.My qualification -B.SC. B.ed. I have read about m.sc. books,psychology,philosophy,spiritual, vedic,religious,yoga,health and different many knowledgeable books.I have about 15 years teaching experience upto M.sc. ,M.com.,English and science.