How Do Students Meditate with Study?
1.छात्र-छात्राएं अध्ययन के साथ मनन चिंतन कैसे करें? (How Do Students Meditate with Study?),गणित के छात्र-छात्राएं अध्ययन के साथ मनन-चिंतन भी करें (Mathematics Students Should Meditate Alongwith Study):
- छात्र-छात्राएं अध्ययन के साथ मनन चिंतन कैसे करें? (How Do Students Meditate with Study?) इस प्रश्न का साधारण सा उत्तर देकर समाप्त नहीं किया जा सकता है।केवल पढ़ना-लिखना,गणित के सवाल हल करने को वाकई में अध्ययन करना नहीं कहा जा सकता है। जब छात्र-छात्राएं गणित की समस्याओं,सवालों व जटिलताओं को हल करने के लिए अपने अंतःकरण की गहराइयों में मनन-चिंतन के सहारे उतरता है तभी अध्ययन की गहरी नींव लगती है और अध्ययन से मन का उच्चाटन,अध्ययन के सामने आने वाले अवरोधों आलस्य,लापरवाही,सुस्ती,प्रमाद को दूर कर पाता है अर्थात् इन्हें जड़ से उखाड़ फेंकता है।इस प्रकार चिंतन-मनन को अध्ययन का पूरक कहा जा सकता है।
- विद्यार्थी जब अध्ययन करने एवं गणित में पारंगत होने की ठान लेता है तो अपने लक्ष्य को प्राप्त करने का मार्ग खोजता है तब उसे अपने अंदर त्रुटियों के झाड़ दिखाई देते हैं।केवल गणित में डिग्री हासिल करने अथवा अन्य विषय में योग्यता प्राप्त करने के उद्देश्य से पढ़ने वाले विद्यार्थियों का अध्ययन से विशेष लगाव नहीं होता है।ऐसे विद्यार्थी विषय का गंभीरतापूर्वक अध्ययन नहीं करते हैं।वे गुरुजी द्वारा पढ़ाए हुए टाॅपिक को इस कान से सुनते हैं और दूसरे कान से निकाल देते हैं अथवा गणित व अन्य विषयों की पुस्तकों को हल्के-फुल्के मूड से पढ़ते हैं।
- जिन विद्यार्थियों को वास्तव में अध्ययन और गणित में पारंगत होना होता है अथवा अपना लक्ष्य प्राप्त करना होता है वे यह चिंतन-मनन करते हैं कि गणित का अभ्यास कैसे किया जाए? गणित को पढ़ने की कौनसी रणनीति अपनाएं,कौनसा व्यावहारिक तरीका अपनाएं जिससे शीर्ष पर पहुंचा जा सके।अध्ययन तथा गणित के अध्ययन की रणनीति वे स्वयं बनाते हैं क्योंकि स्वयं के बारे में जानकारी अपने से अधिक किसी को नहीं होती है।
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2.अध्ययन के साथ चिंतन-मनन करने का तरीका (A way of Thinking with Study):
- अध्ययन करते समय आने वाली छोटी-छोटी व बड़ी-बड़ी समस्याओं का समाधान चिंतन-मनन द्वारा ढूंढा जा सकता है और उन पर काबू पाया जा सकता है।उदाहरणार्थ कोई छात्र-छात्रा डिग्री प्राप्त करने के बाद बेरोजगार है,उसे जॉब नहीं मिल पा रहा है।काफी समय से परेशान हैं।खूब हाथ-पैर मारने पर भी नौकरी नहीं मिल रही है।माता-पिता तथा अभिभावक भी उसके निठल्लेपन से परेशान हैं।वह छात्र-छात्रा जहां कहीं दरवाजा खटखटाता है तो उसको टका सा नकारात्मक जवाब मिलता है परंतु दूसरा युवक-युवती जाॅब प्राप्त कर लेता है अथवा बेकार बैठे रहने के बजाय कोई छोटा-मोटा व्यवसाय कर लेता है।
- चिन्तन-मनन करने पर इस समस्या का समाधान निकाला जा सकता है।मसलन उसे अपने आपसे यह प्रश्न पूछना चाहिए कि कोई एक विशेष जाॅब प्राप्त करने की हठ क्यों पकड़ी जाए? कोई नौकरी प्राप्त करने की हठधर्मिता क्यों रखी जाए? जो छोटा-मोटा उद्योग या व्यवसाय या कार्य करने में क्या नुकसान है? बेकार बैठे रहने,घरवालों पर बोझ बनकर पड़े रहने के बजाय कोई कार्य क्यों नहीं किया जावे? नौकरी करने की मानसिकता क्यों रखी जाए? कोई छोटी-मोटी दुकान क्यों न खोल ली जाए? आजकल एक छोटी सी दुकान,पान की दुकान,ठेला चलाने वाला नौकरी करने वाले कर्मचारी-अधिकारी को कड़ी टक्कर देता है बल्कि उनसे अधिक आमदनी कमा लेता है।यदि पैतृक व्यवसाय है तो उसी में हाथ बँटाया जा सकता है।परंतु हमारी स्थिति उस तरह हो जाती है कि माता-पिता पैतृक व्यवसाय सम्हाल नहीं पा रहे हैं और हम नौकरी के पीछे भाग रहे हैं और अथक प्रयास करने पर भी नौकरी नहीं मिल पा रही है।लक्ष्य नमनीय (Flexible) होना चाहिए।
- उपर्युक्त उदाहरण चिन्तन-मनन का बाह्य रूप है।परंतु चिंतन-मनन की आंतरिक शक्ति अपार है।यदि उसका तालमेल कर्म के साथ हो जाए तथा उसकी शक्ति को केंद्रित करके उपयोग में लिया जाए तो उसके अद्भुत परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं।परंतु छात्र-छात्राएं चिंतन-मनन की आंतरिक शक्ति से अपरिचित रहने के कारण परेशान और दुःखी रहते हैं।वे भौतिक सुख-सुविधाओं,धन-सम्पत्ति,नौकरी,पद,प्रतिष्ठा प्राप्त करने का प्रयास करते हैं और उसके पीछे भाग दौड़ करते हैं।
- अपने पारिवारिक कर्त्तव्यों,सांसारिक कर्त्तव्यों का पालन करने के लिए भौतिक सुख-सुविधाएं,जाॅब प्राप्त करना ही चाहिए परन्तु सच्ची सुख-शांति इनसे ही नहीं मिल सकती है।जब तक आप यह नहीं समझ लेते हैं कि मनुष्य के जीवन का लक्ष्य क्या है,मनुष्य जीवन के लक्ष्य को कैसे प्राप्त किया जाए? भौतिक सुख-साधनों का भोग त्याग की भावना से किस प्रकार किया जाए? भौतिक सुख-साधनों में अलिप्त होकर कैसे उपयोग किया जाए तब तक जीवन में सुख शांति नहीं मिल सकती है।उपर्युक्त कार्य अध्ययन,स्वाध्याय,मनन-चिंतन तथा साधना से ही संपन्न किया जा सकता है।
- अध्ययन-मनन-चिंतन की त्रिवेणी से भौतिक-सुख सुविधाएं जुटाई जा सकती है तो उसी से आध्यात्मिक यात्रा का आनंद भी प्राप्त किया जा सकता है।यदि आप अध्ययन में,जॉब प्राप्त करने में,साक्षात्कार में,प्रतियोगिता परीक्षा में,किसी प्रवेश परीक्षा में सफलता प्राप्त करना चाहते हैं तो उसके लिए जितनी साधना और अभ्यास की जरूरत है उतनी ही उसके बारे में चिंतन-मनन की आवश्यकता है।मनन-चिंतन के द्वारा अपना सटीक लक्ष्य तय करें।उसके लिए (लक्ष्य) आवश्यक तैयारी,व्यवस्था जुटाने तथा प्राप्त करने हेतु यह चिन्तन-मनन करें कि लक्ष्य को कैसे प्राप्त किया जाए।
3.अध्ययन-मनन-चिन्तन की सार्थकता (The significance of Studying-Meditating-Thinking):
- केवल अध्ययन और केवल चिंतन-मनन महत्वपूर्ण क्रियाएँ होते हुए भी परिणामजनक अथवा सफलता प्राप्त करने में सक्षम नहीं है।अध्ययन के साथ जुड़कर ही वे पूर्णता प्राप्त करती हैं और सार्थकता सिद्ध करती है।
- अध्ययन करने पर अथवा गणित के सवालों को व समस्याओं को हल करने पर जो दोष-दुर्गुण होते हैं वे सामने प्रकट होते हैं और उनकी पहचान हो जाती है।मनन द्वारा इन दोष-दुर्गुणों (आलस्य,प्रमाद,लापरवाही,सुस्ती,ढिलाई इत्यादि) को ढूंढ लिया कि ये कहां से खाद-पानी पाते हैं,कब हमारे मन व शरीर पर कब्जा जमा लेते हैं।उदाहरणार्थ भोजन करने के बाद,अधिक देर तक अध्ययन करने के बाद,किसी गलत विद्यार्थी की साथ संगत करने के कारण,दूषित मनोवृत्ति या संस्कारों के कारण ये दुर्गुण विद्यमान हो सकते हैं।परन्तु मनन द्वारा केवल इनकी खोजबीन करने से ही काम नहीं चलेगा।इसके आगे का कदम है इन दोष-दुर्गुणों को हटाने का।
- जैसे यदि आलस्य भोजन करने के बाद आता है तो भोजन की मात्रा कम की जाए तथा मन के स्वाद के वशीभूत होने पर नियंत्रण किया जाए।साथ-संगत के कारण लापरवाही बरती जा रही है तो साथ-संगत को छोड़ा जाए।इस प्रकार अध्ययन तथा गणित के अध्ययन की श्रेष्ठ स्थिति प्राप्त करने के लिए जो व्यावहारिक तरीके अपनाए जाए यही पद्धति चिन्तन है।
- छात्र-छात्राओं को अध्ययन में बाधक तत्वों को हटाने के लिए व्यूह रचना और मोर्चाबंदी करनी पड़ेगी और उनके विरुद्ध संघर्ष करना होगा तभी वे जड़मूल से नष्ट हो पाएंगी।मन से दुष्प्रवृत्तियों को उखाड़ फेंकना चिन्तन के द्वारा ही संभव है।
- चिन्तन द्वारा दो प्रकार से इन दुष्प्रवृत्तियों को दूर किया जाता है।जैसे सुस्ती को दूर करने के लिए चुस्त रहा जाए,सुस्ती आए उस समय इधर-उधर टहलकर दूर की जाए,आंखों पर पानी के छींटे मार कर सुस्ती दूर की जाए।लापरवाही है तो सावधान व जागरूक रहकर लापरवाही को दूर किया जाए।चिन्तन दुर्गुण को दूर करने हेतु उपयुक्त सहायक गुण को तथा उसको हटाने की व्यावहारिक विधि को खोजता है।
- चिन्तन की दूसरी पद्धति है श्रद्धा,विश्वास और लगन।श्रद्धा,विश्वास और लगन के बल पर छात्र-छात्राएं अध्ययन करने के लिए लालायित रहते हैं।वे अध्ययन के लिए उत्साहित रहते हैं।उनमें अध्ययन द्वारा श्रेष्ठ गुणों को धारण करने तथा विकसित करने हेतु चेतना को झकझोरती है।
- विद्यार्थी कितना भी पढ़ने में कमजोर हो लेकिन श्रद्धा के द्वारा ही वह अध्ययन करने में टिका रहता है।श्रद्धा के अभाव में वह उखड़ जाता है,अध्ययन से मन उचट जाता है।गणित में कमजोर होने पर भी उसे होशियार होने का विश्वास रहता है।गणित के अध्ययन में जी-जान से जुटा रहता है।असफल होने पर भी बार-बार प्रयास करता है यही तो लगन है।
- अध्ययन में असफलता मिलने पर सूक्ष्मता से जांच करता है कि उसने कौन-कौन सी गलतियां की? स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता है तो योगासन-प्राणायाम अथवा व्यायाम को शामिल करेगा।अध्ययन की पुनरावृत्ति नहीं हुई तो अध्ययन के लिए अभ्यास को शामिल करेगा।पाठ्यक्रम विद्यालय में पूर्ण नहीं कराया तो कोचिंग अथवा ट्यूशन की व्यवस्था करेगा।अगली बार अवश्य सफलता अर्जित करना है इसी विश्वास तथा लगन के साथ अध्ययन में उत्साहपूर्वक जुट जाता है।अपनी कमजोरियों को दूर करता है।चिन्तन व मनन में कभी भी नकारात्मकता को स्थान नहीं देता है।
- कमजोर मनःस्थिति के कारण कुसंस्कार हमारे अंदर प्रवेश करके जड़ जमा लेते हैं।धीरे-धीरे वे इतने प्रबल हो जाते हैं कि फिर चाहते हुए भी उनसे पीछा नहीं छुड़ा पाते हैं।कभी लोभ तो कभी तृष्णा तो कभी वासना तो कभी आलस्य हमारी मनःस्थिति पर कब्जा करके हमारे चरित्र और व्यक्तित्व को ओछा कर देते हैं।श्रेष्ठ चिंतन-मनन एवं अध्ययन की कार्यनीति,सुदृढ़ संकल्पशक्ति से ही इन पर पार पाया जा सकता है।चिन्तन-मनन बेतुकी और अव्यावहारिक कार्य योजना नहीं बनाता है जिससे सुदृढ़ संकल्पशक्ति वाला विद्यार्थी भी कठिनाई अनुभव करें।श्रेष्ठ चिन्तन-मनन से अपनी योग्यता,क्षमता व इच्छाशक्ति के अनुसार ही कार्य हाथ में लिया जाता है।निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि आज हमारी जैसी भी मनःस्थिति,परिस्थिति,क्षमता,योग्यता व इच्छाशक्ति है हमें उतने से ही अपने दोषों और दुर्गुणों को हटाने तथा गुणों को बढ़ाने का प्रयास करना है।हमें निश्चित करना है कि अपने लक्ष्य (अध्ययन या जाॅब अथवा अन्य) की पूर्ति के लिए कौन-कौनसे उपायों-अभ्यासों का सतत प्रयोग करें जिससे वर्तमान स्थिति से ऊपर उठ सके और आगे बढ़ सके।
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4.अध्ययन के साथ चिन्तन-मनन का दृष्टान्त (Illustration of Thinking with Study):
- विद्यार्थी पुस्तकों को पढ़ते हैं और कुछ टाॅपिक रट भी लेते हैं।शिक्षक,माता-पिता उन्हें प्रेरित भी करते हैं।उनसे प्रभावित होकर विद्यार्थी विचार भी करते हैं कि माता-पिता व शिक्षक ने बात तो अच्छी कही है।परंतु आलस्य,लापरवाही,बाधा या असुविधा के कारण उस पर अमल नहीं करते हैं।केवल सवालों के हल पढ़ लेने,रट लेने से वे हमारे जीवन का अंग नहीं बनते हैं।ठीक से समझे बिना तथा अभ्यास किए बिना उनको हल नहीं किया जा सकता है।सिर्फ सवालों को मानसिक रूप से समझ लेने,मानसिक रूप से पढ़ लेने,मानसिक रूप से रट लेने से सवालों को हल नहीं किया जा सकता है।सवालों,गणित की समस्याओं तथा प्रमेयों को समझकर नोटबुक में अभ्यास करना ही होगा।
- एक विद्यार्थी घबराया हुआ घर पहुंचा और पलंग पर धड़ाम से पड़ गया।उसकी मां ने उसकी घबराहट और चिन्तित स्थिति देखकर पूछा कि क्या हुआ? तुम इतने घबराए हुए क्यों हो? वह विद्यार्थी बोला आज के गणित की परीक्षा में बमुश्किल ही उत्तीर्ण होऊँगा।माँ भी चिन्तित होकर बोली बमुश्किल ही क्यों? क्या प्रश्न-पत्र कठिन था?वह विद्यार्थी बोला नहीं।विद्यार्थी बोला मैंने गणित की पूरी पासबुक पढ़ ली थी वह दिमाग से गायब हो गया।गणित के गुरुजी ने श्यामपट्ट पर सवाल समझाए थे परंतु वे भी याद नहीं आए।कोचिंग के गणित सर ने भी समझाया था परन्तु वह भी दिमाग से गायब हो गया।परीक्षा से पूर्व भी गणित के सवालों के हल को खूब पढ़ा था।
- माँ हैरान होकर बोली परन्तु उन सवालों का अभ्यास करने के लिए नोटबुक लाई हुई थी।क्या तुमने सवालों को नोटबुक पर हल किया था? क्या तुमने गणित के सवालों के स्वयं के नोट्स तैयार किए थे? विद्यार्थी बोला यह सब तो नहीं किया।माँ ने कहा कि परीक्षा से पहले तो तुम इतनी लंबी-चौड़ी बातें कर रहे थे।हाथ-पैर तथा दिमाग होते हुए भी तुमने उसका इस्तेमाल नहीं किया। गणित केवल विचार करने,मानसिक रूप से हल करने का विषय ही नहीं है।गणित का अभ्यास,नोटबुक में सवाल हल करना तथा नोट्स बनाना भी जरूरी है।वह सब तुमने किया नहीं तो यही हालत होगी।खैर जो कुछ भी हुआ उसको भूल जाओ।आगे से ध्यान रखना।अगले प्रश्न-पत्र की तैयारी करने के लिए मानसिक रूप से ही अध्ययन मत करना बल्कि उसका अभ्यास भी करना।
- उपर्युक्त आर्टिकल में छात्र-छात्राएं अध्ययन के साथ मनन चिंतन कैसे करें? (How Do Students Meditate with Study?),गणित के छात्र-छात्राएं अध्ययन के साथ मनन-चिंतन भी करें (Mathematics Students Should Meditate Alongwith Study) के बारे में बताया गया है।
5.गणित की ड्राइंग बनाना (हास्य व्यंग्य) (Drawing Mathematics) (Humour-Satire):
- मीनू एक दिन ड्राइंग रूम की दीवारों पर गणित की आकृतियों की नीले रंग की ड्राइंग बना रहा था।
- मांःअरे,अरे! यह क्या कर रहे हो?यह कोई जगह है ड्राइंग बनाने की।
- मीनूःमाँ,आप ही तो कहती हो कि यह ड्राइंग रूम है,इसलिए मैं यहाँ गणित की आकृतियों की ड्राइंग बना रही हूं।
6.छात्र-छात्राएं अध्ययन के साथ मनन चिंतन कैसे करें? (Frequently Asked Questions Related to How Do Students Meditate with Study? ),गणित के छात्र-छात्राएं अध्ययन के साथ मनन-चिंतन भी करें (Mathematics Students Should Meditate Alongwith Study) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्नः
प्रश्नः1.विचारों का क्या प्रभाव होता है? (What is the Effect of Ideas?):
प्रश्नः1.विचारों का क्या प्रभाव होता है? (What is the Effect of Ideas?):
उत्तर:विचारों का प्रभाव कर्म (अध्ययन) पर पड़ता है।कर्म से संस्कारों का निर्माण होता है।संस्कारों से चरित्र का निर्माण होता है।इसलिए विद्यार्थियों को हमेशा अच्छे विचारों का ही चिंतन-मनन करना चाहिए।गणित के श्रेष्ठ महापुरुषों का जीवन चरित्र पढ़िए,महान गणितज्ञ तथा वैज्ञानिकों के प्रेरक प्रसंग पढ़िए।
गणित में आगे बढ़ाने वाले,उत्साहवर्धन करने वालों का सत्संग करिए।गणित को मानसिक रूप से पढ़ने के साथ-साथ समझकर अभ्यास कीजिए।धीरे-धीरे आपके ज्ञान में गणित का इतना भण्डार हो जाएगा कि आप स्वयं आश्चर्यचकित रह जाएंगे।आप गणित के एक आदर्श विद्यार्थी बन जाएंगे।आपका चरित्र उज्जवल हो जाएगा।
प्रश्नः2.लक्ष्य प्राप्ति में विचारों का क्या योगदान है? (What is the Contribution of Ideas in Achieving Goals?):
उत्तरःगणित के छात्र-छात्राओं को अपना लक्ष्य प्राप्त करने के लिए विचारों के बिखराव को रोकना होगा।विचार भिन्न-भिन्न दिशा में जा रहे हो तो उन्हें एक लक्ष्य पर केंद्रित कीजिए।क्योंकि बिखरे हुए विचारों का महत्त्व समाप्त हो जाता है।जिस प्रकार रस्सी के अलग-अलग तन्तुओं का होना व्यर्थ है परंतु इन तन्तुओं को बाँटकर रस्सी बना ली जाती है तो वह मजबूत बन जाती है।अलग-अलग तन्तुओं का कोई उपयोग नहीं है।इसी प्रकार विचारों का बिखराव भी कोई प्रभाव नहीं छोड़ता है।लक्ष्य पर मन,वचन और कर्म का समन्वय करके बढ़ना चाहिए तभी सफलता हासिल होती है।मनुष्य विचार बल के कारण ही उठता है और विचारों के कारण ही नीचे गिरता है।संसार में जितने भी महान आविष्कार और खोजें हुई है उसमें विचारों का अतुलनीय योगदान है।
प्रश्नः3.मनुष्य में विशिष्टता क्या है? (What is Unique in Man?):
उत्तरःमनुष्य को भगवान ने विचार शक्ति (मन) ऐसी दी है जिसको उपयोग में लेने पर सौभाग्य के द्वार खुल जाते हैं।विचारों की सृजनात्मक शक्ति अनंत और अपार है।जिस प्रकार के विचार होते हैं वैसी ही परिस्थितियों का निर्माण कर लिया जाता है।विचारों में अपने अनुरूप परिस्थितियों के खींचने की अद्भुत चुम्बकीय शक्ति अन्तर्निहित है।विचारों की सृजनात्मक क्षमता को पहचानना और उन्हें सही दिशा में गतिशील करना ही वह सौभाग्य है जिसे विचार शक्ति द्वारा प्राप्त किया जा सकता है।
- उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा छात्र-छात्राएं अध्ययन के साथ मनन चिंतन कैसे करें? (How Do Students Meditate with Study?),गणित के छात्र-छात्राएं अध्ययन के साथ मनन-चिंतन भी करें (Mathematics Students Should Meditate Alongwith Study) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
How Do Students Meditate with Study?
छात्र-छात्राएं अध्ययन के साथ मनन चिंतन कैसे करें?
(How Do Students Meditate with Study?)
How Do Students Meditate with Study?
छात्र-छात्राएं अध्ययन के साथ मनन चिंतन कैसे करें? (How Do Students Meditate with Study?)
इस प्रश्न का साधारण सा उत्तर देकर समाप्त नहीं किया जा सकता है।
केवल पढ़ना-लिखना,गणित के सवाल हल करने को वाकई में अध्ययन करना नहीं कहा जा सकता है।
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Satyam
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