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How Do Students Cope with Adversity?

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1.छात्र-छात्राएं विपरीत परिस्थितियों का सामना कैसे करें? (How Do Students Cope with Adversity?),गणित के छात्र-छात्राएं विपरीत परिस्थितियों का सामना कैसे करें? (How Do Mathematics Students Cope with Adversity?):

  • छात्र-छात्राएं विपरीत परिस्थितियों का सामना कैसे करें? (How Do Students Cope with Adversity?) सामान्यतः विपरीत परिस्थितियों को छात्र-छात्राएं नहीं बल्कि कोई भी व्यक्ति पसंद नहीं करता है और विपरीत परिस्थितियों से सामना होते ही हम घबरा जाते हैं,विचलित हो जाते हैं और दुःखी होते हैं।परंतु दूसरी दृष्टि से देखें तो विपरीत परिस्थिति का आना हमारे लिए शुभ भी होता है।विपरीत परिस्थिति में छात्र-छात्राएं सावधान,सतर्क और सचेत हो जाते हैं।हमें हमारी कमजोरियों का पता चलता है,हमारी लापरवाही का पता चलता है जिससे हम निष्क्रियता को दूर करते है और सक्रिय हो जाते हैं।
  • विपरीत परिस्थितियों में बार-बार अध्ययन करते हैं,बार-बार अभ्यास करते हैं।विपरीत परिस्थिति नहीं होती है अर्थात् अनुकूल स्थिति में सामान्य ढंग से अध्ययन करते हैं।विपरीत परिस्थिति का सामना करने के लिए हमारी शारीरिक शक्ति एकजुट हो जाती है और अधिक क्षमतावान हो जाते हैं।एकाग्र शक्ति और अधिक क्षमता के बल पर अध्ययन में आने वाली कठिनाइयों,विपरीत परिस्थितियों को हल करने में सक्षम हो जाते हैं।जबकि अनुकूल स्थिति में हमारी वास्तविक शक्ति और सामर्थ्य का पता नहीं चलता है।
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2.विपरीत परिस्थिति का आना अच्छा होता है (It’s Good to Have the Opposite Situation):

  • चाणक्य नीति में कहा है किः
  • “कस्य दोषः कुले नास्ति व्याधिना को न पीडितः। व्यसनं केन न प्राप्त कस्य सौख्यं निरन्तरम्।।”
  • अर्थात् किसके कुल में दोष नहीं है? रोग ने किस व्यक्ति को कष्ट नहीं पहुंचाया? विपत्ति और कष्ट किस पर नहीं आए? सदा सुखी कौन व्यक्ति रह पाया है? इस श्लोक में प्रश्न के द्वारा बात को समझाया गया है।किसके कुल में दोष नहीं है अर्थात् दोष किसी भी कुल में हो सकता है।विपत्ति और कष्ट किस पर नहीं आए हैं।हर व्यक्ति किसी न किसी विपत्ति,कष्ट,प्रतिकूल परिस्थिति का कभी न कभी सामना करता ही है चाहे वह कितना ही सामर्थ्यवान व शक्तिशाली हो।
  • जैसे बहुत मेधावी व होशियार छात्र-छात्राओं को भी कोई न कोई सवाल परेशान करता है,कोई न कोई प्रश्न परेशान करता है।अतः यह सोचना गलत है कि मेधावी व निपुण छात्र-छात्राओं को प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना नहीं करना पड़ता है।अनुकूल व प्रतिकूल परिस्थिति हर छात्र-छात्रा के जीवन में आती है परंतु जो जागरूक व सचेत रहता है,सुदृढ़ मनोबल है वह प्रतिकूल परिस्थितियों का आसानी से सामना करता है और उसका हल निकाल लेता है।
  • छात्र-छात्राओं का जीवन हमेशा एक-सा नहीं रहता है।उतार-चढ़ाव आते रहते हैं।कभी सफलता,कभी असफलता,कभी कम प्राप्तांक,कभी अच्छे प्राप्तांक,कभी इच्छा के अनुकूल कार्य हो जाता है,कभी इच्छा के विपरीत कार्य हो जाता है।परंतु जो छात्र-छात्राएं जीवन को एकांगी दृष्टिकोण से देखते हैं वे अनुकूल परिस्थिति आने पर प्रसन्नता व सुख का अनुभव करते हैं और विपरीत परिस्थिति में अप्रसन्नता व दुःख का अनुभव करते हैं।
  • वस्तुतः कठिनाइयां,विपरीत परिस्तिथियाँ छात्र-छात्राओं के व्यक्तित्त्व को निखारती है,उन्हें सक्षम बनाती है।विपरीत परिस्थितियाँ इतनी भयंकर और कष्टदायक नहीं होती है जितने छात्र-छात्राएं समझते हैं।जिन परिस्थितियों में कुछ छात्र-छात्राएं विचलित,परेशान और दुःखी होते हैं उन्हीं विपरीत व प्रतिकूल परिस्थितियों में दूसरे छात्र-छात्राएं नवीन प्रेरणा पाकर सफलता प्राप्त करते हैं।परिस्थितियां मन के स्वीकार और अस्वीकार करने पर निर्भर करती है।कुछ छात्र-छात्राएं छोटी सी कठिनाइयों को भी पहाड़ जितनी दुर्गम और अत्यधिक कष्टदायक समझते हैं जबकि दूसरे छात्र-छात्राएं बड़ी-बड़ी कठिनाइयों को भी हंसते-खेलते उनको पार कर जाते हैं,उबर जाते हैं और आगे से आगे बढ़ते जाते हैं।
  • कोई भी छात्र-छात्रा परीक्षा से गुजरे बिना आगे नहीं बढ़ सकता है।सोने को आग में तपाने पर ही उसकी अशुद्धि दूर होती है और तभी उससे उपयोगी आभूषण तैयार होता है।छात्र-छात्राएं भी कठिनाइयों में तपकर गुणवान बनता है और उसके दुर्गुण दूर होते हैं।विपरीत परिस्थितियां छात्र-छात्राओं की प्रगति,उत्थान और विकास में महत्त्वपूर्ण स्थान रखती हैं।

3.विपरीत परिस्थिति का सामना कैसे करें? (How to Face the Opposite Situation?):

  • (1.)विपरीत परिस्थिति में छात्र-छात्राओं को निराश व हताश नहीं होना चाहिए बल्कि धैर्यपूर्वक उसका उचित समाधान करने का प्रयत्न करते रहना चाहिए।जो छात्र-छात्रा घबरा जाता है,विचलित हो जाता है वह हार जाता है,असफल हो जाता है।विपरीत परिस्थितियों को स्वीकार करने वाला छात्र-छात्रा सफल हो ही जाता है।
  • (2.)छात्र-छात्राएं चाहे तो कठिनाइयों को शुभ मान सकता है अथवा अशुभ।जो छात्र-छात्रा विपरीत परिस्थिति को शुभ मानता है,खुले दिमाग से स्वागत करता है,उनके साथ खेलता है वह उनसे मिलने वाला लाभ प्राप्त करता है और दूसरों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन जाता है।
  • (3.)कोई भी व्यक्ति महान गणितज्ञ,महान् वैज्ञानिक अथवा महापुरुष बना है तो उनका जीवन चरित्र पढ़ लीजिए।उन्होंने विपरीत परिस्थितियों व कठिनाइयों का सामना किया है तभी उनका व्यक्तित्त्व चमत्कारिक बन सका है।
  • (4.)कठिनाइयों से जूझे,विपरीत परिस्थितियों से संघर्ष करें जिससे आपके अंदर अहंकार नष्ट होकर विनम्रता का समावेश हो।कठिनाइयों से जूझने पर आपका समय फालतू के कार्यों में नष्ट नहीं होगा।
  • (5.)अनुकूल और प्रतिकूल परिस्थितियों का चोली-दामन का साथ है।जिस प्रकार नमक के बिना रोटी का स्वाद अच्छा नहीं लगता है उसी प्रकार सुख-सुविधाओं से युक्त जीवन में भी मिठास नहीं रहती है।छात्र-छात्राओं को विपरीत परिस्थितियों को सहजता से स्वीकार करना चाहिए।उनके पूर्ण व्यक्तित्त्व के विकास के लिए अनुकूल व प्रतिकूल परिस्थितियों का आना आवश्यक है।
  • (6.)प्रतिकूल परिस्थितियों से डरना नहीं चाहिए बल्कि उनका सामना करना चाहिए।प्रतिकूल परिस्थितियों में साहस और सहनशीलता की आवश्यकता होती है।
  • (7.)अनुकूल और प्रतिकूल परिस्थितियों में मानसिक संतुलन बनाए रखना चाहिए।मानसिक संतुलन बनाए रखने से विवेक पैदा होता है और विवेक से किसी भी परिस्थिति से कुशलतापूर्वक निपटा जा सकता है।
  • (8.)प्रतिकूल परिस्थितियों में अर्जुन की प्रतिज्ञा ‘न दैन्यं न पलायनं’ अर्थात् न दीनता (हार) स्वीकार करें और न पलायन अर्थात् मैदान छोड़कर भागे,को याद रखें और उसका पालन करें।
  • (9.)प्रतिकूल परिस्थितियों में व्यस्त रहें अर्थात् अध्ययन-मनन व चिन्तन करते रहना चाहिए।अध्ययन-मनन व चिन्तन से प्रतिकूल परिस्थिति से बाहर निकलने का कोई न कोई मार्ग दिखाई दे ही जाता है।उदाहरणार्थ यदि आपकी कक्षा में गणित अध्यापक नहीं है अतः गणित का अध्ययन कैसे करें? पहला तरीका है कि सभी छात्र-छात्राओं को शिक्षा संस्थान के संचालक को गणित शिक्षक की जल्दी से जल्दी व्यवस्था करने का निवेदन करना चाहिए साथ ही अपने माता-पिता व अभिभावक को सूचित करना चाहिए।दूसरा तरीका है कि सन्दर्भ पुस्तकों तथा मेधावी छात्र-छात्राओं की मदद से गणित के सवालों को हल करना चाहिए।तीसरा तरीका है कि गणित की कोचिंग अथवा ट्यूशन करें।
  • (10.)प्रतिकूल परिस्थितियों को अपने शुभ चिन्तकों को ही कहना चाहिए जो प्रतिकूल परिस्थिति में आपकी किसी न किसी प्रकार मदद कर सकें।हर किसी के सामने प्रतिकूल परिस्थिति का बखान नहीं करना चाहिए क्योंकि दुनिया में ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो प्रतिकूल परिस्थिति में मन ही मन खुश होंगे,आपकी खिल्ली और हँसी उड़ायेंगे।आप पर व्यंग्य कसेंगे।

4.प्रतिकूल परिस्थितियों के बारे में मुख्य बिन्दु (Key Points About Adversity):

  • (1.)विपरीत परिस्थिति हमारे चरित्र निर्माण का निर्माण करने में सहायक है।वे हमारे लिए वरदान है,अभिशाप नहीं।परिश्रमी,पुरुषार्थी,साहसी व संघर्षशील छात्र-छात्राएं प्रतिकूल परिस्थितियों से लाभ उठा लेते हैं।जबकि पुरुषार्थहीन,डरपोक छात्र-छात्राएं अपना नुकसान कर बैठते हैं।
  • (2.)प्रतिकूल परिस्थिति में अध्ययन को जो छात्र-छात्राएं शिखर पर पहुंचा देता है उन्हें सफलता प्राप्त होने पर आनंद की अनुभूति होती है।ऐसे छात्र-छात्राओं का बल,तेज,बुद्धि विकसित होती है।
  • (3.)अनुकूल और प्रतिकूल परिस्थितियां हमारे जीवन का अनिवार्य अंग है जैसे दिन-रात का होना। प्रगति,उन्नति और विकास व सफलता का मार्ग प्रतिकूल परिस्थितियों से ही गुजरता है।अतः आवश्यकता इस बात है कि प्रतिकूल परिस्थितियों में भी अपने मनोबल को बनाए रखें।
  • (4.)प्रतिकूल परिस्थितियां तथा कठिनाईयां ऐसी प्रक्रिया हैं जिससे हम सुदृढ़,प्रबुद्ध एवं अनुभवी बनते हैं।कठिनाइयों से घबराना नहीं चाहिए क्योंकि सुन्दर मूर्ति बनने के लिए शिल्पकार की हथौड़ी का प्रहार सहना ही होता है,हथौड़ी के प्रहार सहे बिना देवता की मूर्ति बनती ही नहीं है।
  • (5.)अनूकुल परिस्थिति में हमारे अंदर संवेदना समाप्त हो जाती है जबकि प्रतिकूल परिस्थिति में हमारे अंदर संवेदना पैदा होती है।संवेदनाहीन व्यक्ति कठोर हृदय बन जाता है।
  • (6.)परिवर्तन संसार का नियम है।जैसे बचपन,युवावस्था,बुढ़ापा के रूप में हमारे शरीर का परिवर्तन होता है।एकरसता हमारे जीवन में अरुचि पैदा कर देती है।प्रतिकूल परिस्थितियों का आना भी इसी परिवर्तनशीलता के आधार पर होता है।
  • (7.)यदि प्रतिकूल परिस्थितियों से बाहर निकलने के लिए कोई संघर्ष न करे तो कोई भी विद्वान,पुरुषार्थी,परिश्रमी बनने का प्रयास ही न करें।प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करने के कारण ही वैज्ञानिकों ने सुख-सुविधाओं हेतु अनेक आविष्कार किए हैं।परिवर्तन से डरना और संघर्ष से कतराना कायरता है।जब तक हम जीवित हैं तब तक हमें जीवन में इन उतार-चढ़ावों से गुजरना ही पड़ेगा।

5.प्रतिकूल परिस्थितियों का दृष्टान्त (Example of Adversity):

  • विद्यालय में एक गणित शिक्षक की शिकायत अनेक ईर्ष्यालु लोगों व प्रतिद्वंद्वियों ने जिला शिक्षा अधिकारी से कर दी।जिला शिक्षा अधिकारी ने वस्तुस्थिति जानने के लिए गणित शिक्षक को बुलाया।गणित शिक्षक के उज्जवल व्यक्तित्त्व तथा प्रतिभा से जिला शिक्षा अधिकारी स्वयं भी प्रभावित हुए।उन्हें समझते देर न लगी कि यह व्यक्ति गणित शिक्षा के लिए वह कर रहा है जो यथार्थ में अन्य शिक्षकों को भी करना चाहिए।कथित अन्य अध्यापक अपने कर्त्तव्य को न केवल छोड़ बैठे हैं बल्कि ईर्ष्या व द्वेष से ग्रस्त होकर नेक व अच्छे शिक्षकों के काम में भी रोड़ा अटकाते है।गणित शिक्षक को इस प्रकार कार्यालय में बुलाने का जिला शिक्षा अधिकारी को दुःख हुआ तथा उन्होंने उनसे क्षमा याचना करके विदा किया।
  • गणित अध्यापक तब से घर-घर शिक्षा व गणित शिक्षा की अलख जगाने के लिए निकल पड़े।इस प्रयास में उन्हें भारतीय संस्कृति के रीति-रिवाजों के अध्ययन का अवसर मिला।समाज में शिक्षा की दशा देखकर उन्हें हार्दिक कष्ट हुआ किन्तु उन्होंने फिर भी देखा कि भारतीय संस्कृति अभी कुछ जीवित है।उसे संभाला-सँजोया जा सकता है।
  • शिक्षक को विद्यालय में वेतन मिलने के बावजूद ठीक से न पढ़ाना तथा ट्यूशन व कोचिंग के लिए प्रेरित करना तथा पार्ट टाइम ट्यूशन व कोचिंग करना इत्यादि से उन्हें यह समझने में सहायता मिली कि शिक्षा को केवल व्यवसाय मानने के क्या दुष्परिणाम हो सकते हैं? छात्र-छात्राओं के हितों की बलि चढ़ा दी जाती है।
  • उन्होंने बिगड़ी हुई स्थिति को सँभाला।माता-पिता,अभिभावकों में चेतना जागृत की।शिक्षा को पूर्णतः व्यवसाय मानने के कारण भारतीय संस्कृति,सभ्यता,धर्म,दर्शन,चरित्र इत्यादि सब कुछ शिक्षा से गायब हो गए थे।उन्होंने धीरे-धीरे गणित शिक्षा का सही रूप और भारतीय संस्कृति,सभ्यता इत्यादि के सही रूप को लोगों के सामने रखा।
  • हालांकि उनका काफी विरोध हुआ परंतु वे अविचलित हुए अपना कार्य करते रहे।त्रस्त लोगों को शांति मिली,शुष्क हृदयों में सरसता का संचार हुआ,हारे मन वाले अंगड़ाई लेकर खड़े हो गए और उनका कार्य बढ़ता ही गया,पनपता ही गया।उनकी गणित व भारतीय संस्कृति की शिक्षा की साधना फलित हुई।सभी लोग जागृत हुए।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में छात्र-छात्राएं विपरीत परिस्थितियों का सामना कैसे करें? (How Do Students Cope with Adversity?),गणित के छात्र-छात्राएं विपरीत परिस्थितियों का सामना कैसे करें? (How Do Mathematics Students Cope with Adversity?) के बारे में बताया गया है।

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6.गणित के दो आलसी छात्र (हास्य-व्यंग्य) (Two Lazy Math Students) (Humour-Satire):

  • दो गणित के आलसी छात्र पड़े हुए थे तभी एक चोर आया और उनके सामने पड़ी गणित की पुस्तकें व नोटबुक उठाकर भाग गया।
  • पहले आलसी ने कहा (लेटे-लेटे):अरे चोर को पकड़ो।
  • दूसरा आलसी:जाने दो,जब सवाल पूछने आएगा तब पकड़ लेंगे।

7.छात्र-छात्राएं विपरीत परिस्थितियों का सामना कैसे करें? (Frequently Asked Questions Related to How Do Students Cope with Adversity?),गणित के छात्र-छात्राएं विपरीत परिस्थितियों का सामना कैसे करें? (How Do Mathematics Students Cope with Adversity?) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.विपत्ति में कैसे रहना चाहिए? (How to Live in Disaster?):

उत्तर:यदि आपका मन प्रतिकूल परिस्थितियों,विपत्तियों और कष्टों से आहत हो चुका है,संकट तथा संताप से आपका जीवन दूभर हो गया है फिर भी आप विचलित नहीं होते हो,विनम्र बने रहते हो और मानसिक संतुलन बनाए रखते हो तो यही सूत्र है विपत्ति में रहने का।

प्रश्न:2.क्या जाॅब तलाशते समय नियोक्ता को अपनी विपत्ति बतानी चाहिए? (Should the Employer Tell His Ordeal when Looking for a Job?):

उत्तर:किसी भी कंपनी में छात्र-छात्राओं व अभ्यर्थियों को अपनी प्रतिकूल परिस्थितियों,विफलताओं,संकटों तथा दुर्भाग्य का वर्णन नहीं करना चाहिए क्योंकि कंपनी का नियोक्ता नकारात्मक अभ्यर्थी का चयन कभी नहीं करते हैं।उन्हें जिन्दादिल,खुशमिज़ाज तथा कंपनी का हित करने वाले योग्य,सक्षम व समर्थ अभ्यर्थी की तलाश रहती है।अपने कष्टों,पीड़ाओं,दुःखों व विपत्तियों को अपने तक ही सीमित रखें।

प्रश्न:3.संकट में कौनसे गुण की आवश्यकता होती है? (What Qualities are Needed in a Crisis?):

उत्तर:छात्र-छात्राओं तथा मनुष्य को संकट के समय धैर्य रखना चाहिए।नीति में कहा है कि व्यक्ति को अप्राप्य वस्तु को पाने की इच्छा नहीं करना चाहिए।जो नष्ट हो गई है,उसकी भी चिन्ता नहीं करना चाहिए।संकट के समय में जो लोग धैर्य नहीं छोड़ते हैं तथा उचित प्रयास करते हैं वे बुद्धिमान होते हैं।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा छात्र-छात्राएं विपरीत परिस्थितियों का सामना कैसे करें? (How Do Students Cope with Adversity?),गणित के छात्र-छात्राएं विपरीत परिस्थितियों का सामना कैसे करें? (How Do Mathematics Students Cope with Adversity?) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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