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How Do Students Control Their Desires?

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1.विद्यार्थी अपनी कामनाओं पर नियंत्रण कैसे रखें? (How Do Students Control Their Desires?),छात्र-छात्राएँ सबकुछ प्राप्त करने की कामनाएँ क्यों न करें? (Why Don’t Students Wish to Achieve Everything?):

  • विद्यार्थी अपनी कामनाओं पर नियंत्रण कैसे रखें? (How Do Students Control Their Desires?) क्योंकि किसी भी विद्यार्थी की सभी कामनाएं शायद ही पूरी होती हों,पर संकल्प अवश्य पूरे हो सकते हैं।यहाँ कामनाओं से तात्पर्य है कि अपनी भौतिक सुख-सुविधाओं की पूर्ति करना या बढ़ाने जाना।इन भौतिक सुख-सुविधाओं की कामना प्रतिस्पर्धा के कारण मन में उठती रहती है।एक कामना पूरी होती है और दूसरी कामना मन में उठ जाती है।इस प्रकार इनका सिलसिला चलता रहता है तथा कभी अंत नहीं होता।इस प्रकार कामनाएं असीमित है और जीवन सीमित है।सीमित जीवन में असीमित कामनाओं की तृप्ति नहीं की जा सकती है।
  • छात्र-छात्राओं को तथा मनुष्य को मस्तिष्क देकर बुद्धिमान बनाया है।साथ ही इतनी समझदारी भी दी है कि छात्र-छात्राएं अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति कर सके परंतु विलासिता का कोई अंत नहीं है।कामनाओं की पूर्ति अपनी आवश्यकताओं की सीमा में रखने से प्राप्ति और प्रगति का द्वार भी खुलकर रहता है।
  • कल्पनाएँ दिशा निर्धारित करती हैं और उसके आधार पर जो स्वरूप बनाया गया है उसका प्रारूप निखरता है।इसके बाद पुरुषार्थ की बारी आती है।यदि सुनियोजित ढंग से पुरुषार्थ किया गया हो तो परिणाम सुखद होता है।प्रगति उच्च स्तर तक बढ़ती चली जाती है जहां पहुंचकर कामनाओं की पूर्ति का अनुभव और आनंद प्राप्त किया जा सके।
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2.कामनाओं पर नियंत्रण न होने का दुष्परिणाम (The Consequences of Not Having Control Over Desires):

  • कामनाओं तथा वासनाओं पर नियंत्रण न लगा सकने के कारण विद्यार्थी तथा व्यक्ति को पतन का रास्ता देखना पड़ता है।जो छात्र-छात्राएं इस सूत्र को याद नहीं रखते कि सभी कामनाओं की पूर्ति संभव नहीं होती है वे अपनी उपलब्धियों से भी हाथ धो बैठते हैं।
  • उदाहरणार्थ आपको कोई उच्च पद प्राप्त हो गया है और वेतन भी अच्छा खासा मिलता है साथ ही रहने के लिए आवास,मोटर गाड़ी,चपरासी की सुविधाएं इत्यादि मिली हुई है।परंतु ऐसे अधिकारियों का फिर भी मन की कामनाएं पूरी नहीं होती है।
  • वे अपनी कामनाओं एवं वासनाओं पर नियंत्रण न करने के कारण भ्रष्टाचार एवं घोटालों में लिप्त पाए जाते हैं।कारण स्पष्ट है कि वे अपने पद का दुरुपयोग करते हैं और अधिक से अधिक धन-संपत्ति इकट्ठा करना चाहते हैं।
  • कभी न कभी ऐसे कर्मचारियों व अधिकारियों का भंडाफूट जाता है और रिश्वतखोरी तथा भ्रष्टाचार के कारण पकड़े जाते हैं।तब अपराधियों की तरह कटघरे में खड़े हो जाते हैं।उन्हें पद तथा प्रतिष्ठा से वंचित होना पड़ता है तथा सजा मिलती है वह अलग।जनता ऐसे अधिकारी व कर्मचारियों पर थू-थू करने लगती है।
  • जीवन के सम्यक निर्वाह के लिए चारित्रिक गुणों को धारण करना आवश्यक है और धन-सम्पदा से अधिक अपने चरित्र को महत्त्व दिया जाना चाहिए।जीवन में जो पद,प्रतिष्ठा तथा वेतन प्राप्त करते हैं उनके अर्जित करने के तरीके साफ-सुथरे होने चाहिए।परन्तु करते हैं हम इसका उल्टा।अपनी कामनाओं और वासनाओं पर नियन्त्रण नहीं रख पाते हैं।हमें जो उपलब्ध है उसका सम्यक उपयोग नहीं करते हैं और जीवन में भौतिक सुविधाएं तथा धन-संपत्ति अर्जित करने के लिए अनैतिक तरीके अपनाते हैं और गलाकाट प्रतिस्पर्धा में शामिल हो जाते हैं।
  • प्रतिस्पर्धा के कारण हमारा नैतिक पतन इतना गिर जाता है कि किसी भी कार्य को करने में हिचक महसूस नहीं करते हैं।हमारा मानवीय मूल्यों के प्रति लगाव खत्म हो गया है।कई अभ्यर्थी तो पद प्राप्त करने के लिए रिश्वत का मार्ग अपनाते हैं।जो रिश्वत के द्वारा पद प्राप्त करता है उससे पद पर कर्त्तव्यों के पालन में नैतिकता का पालन करने की उम्मीद कैसे की जा सकती है?
  • यदि अभ्यर्थी अपने साधनों को साफ-सुथरे रखें और अध्ययन में कठिन परिश्रम करके सफलता अर्जित करते हैं तो आगे भी पद प्राप्त करने के बाद अपनी चारित्रिक पवित्रता बनाए रखना चाहिए।कई अभ्यर्थी इसलिए सफलता प्राप्त नहीं कर पाते हैं क्योंकि वे अपने लक्ष्य को निर्धारित करते समय उपलब्ध साधनों,अपनी क्षमता,योग्यता तथा सामर्थ्य पर विचार नहीं करते हैं।
  • यदि अपनी क्षमता,योग्यता तथा सामर्थ्य के आधार पर लक्ष्य तय करें तो कोई कारण नहीं है कि उन्हें सफलता प्राप्त नहीं होगी।

3.अपनी महत्त्वाकांक्षाओं को उचित रखें (Keep Your Ambitions Reasonable):

  • युवावर्ग अक्सर ऐसा सोचते हैं कि क्या उन्हें महत्त्वाकांक्षी नहीं होना चाहिए परंतु महत्त्वाकांक्षी होने का यह अर्थ नहीं है कि अनैतिक तरीके अपनाकर अन्य व्यक्तियों के अधिकार,पद इत्यादि को हड़प लिया जाए अथवा गलत तरीके से चलकर संग्रह करना चाहिए।
  • वे महत्त्वाकांक्षाएँ न्यायोचित हैं जो अन्य व्यक्तियों के दुःखों,अभावों एवं भोलेपन की सीढ़ियों पर ऊपर की ओर नहीं ले जाती है।क्या वे प्रतियोगी सफल कहे जा सकते हैं जो अपने साथियों को परीक्षा देने के मार्ग में अड़ंगे लगाते हैं अथवा उत्तर-पुस्तिकाओं को नष्ट करने का प्रयास करते हैं?
  • जहाँ अन्याय और असंयम का प्रवेश हो जाता है वहां पतन और पराजय मिलना सुनिश्चित है।अपने भविष्य का निर्माण कठोर परिश्रम,तप,साधना के द्वारा ही उचित माना जा सकता है।जो अभ्यर्थी शोषण,भ्रष्टाचार,रिश्वत के द्वारा पद अथवा धन-संपत्ति अर्जित करते हैं वे अन्ततः दण्ड और अपमान के भागी बनते हैं।
  • महत्त्वाकांक्षा का सम्बन्ध अपने विकास,प्रगति एवं धन-संपत्ति अर्जित करने के लिए नैतिक हों तो ही उसे उचित माना जा सकता है।अपने जीवन को पुरुषार्थ के अनुसार ढालने पर कभी भी हमें पराजय और पतन का मुंह देखना नहीं पड़ता है।
    इतिहास उन व्यक्तियों की चर्चा कभी भी नहीं करता जो अनैतिक तरीके से धन-संपत्ति के संग्रह में अपना जीवन व्यतीत कर देते हैं।उसी महत्त्वाकांक्षा को उचित कहा जा सकता है जिसको पूरी करने में तप,त्याग और साधना का रास्ता चुना गया हो।
  • धन-संपत्ति के संग्रह में व्यक्ति संतोषवृत्ति रखे तो वह अति की ओर नहीं जाएगा।यदि वह यह जानता है कि धन के संग्रह में कब रुक जाना चाहिए तो उसको लज्जा और अपमान का सामना नहीं करना पड़ेगा।
  • हमेशा धन-संपत्ति का अर्जन करते समय यह ध्यान अवश्य रखना चाहिए कि अन्य व्यक्तियों को भी उसकी आवश्यकता है और उसको अर्जित करने का अधिकार भी प्राप्त है।जो लोग धन-संग्रह में अपने जीवन को खपाते रहते हैं उन्हें ध्यान रखना चाहिए कि धन-संपत्ति का अधिक संचय हमारी समस्याओं का कारण बन जाता है।धन-संग्रह के अत्यधिक संग्रह से चिंता,ईर्ष्या तथा अनेक मनोविकार पैदा हो जाते हैं।
  • जिस समाज से हम सब कुछ प्राप्त करते हैं,उसका ऋण चुकाने का प्रयत्न हमें अवश्य करना चाहिए।ऐसी सोच रखने वाला व्यक्ति जीवन में निरंतर आगे की ओर बढ़ता जाता है और दुःख व अपमान भोगने की आशंका उसको नहीं सताती है।

4.भ्रष्टाचार का यथार्थ (The Reality of Corruption):

  • भ्रष्टाचार का अर्थ है भ्रष्ट आचरण परन्तु भ्रष्टाचार का प्रयोग व्यावहारिक रूप में लेन-देन के अर्थ में प्रयुक्त किया जाता है।राज्य का उद्देश्य जब से लोक कल्याणकारी कार्यों की ओर प्रवृत्त हुआ है तब से प्रशासन में कर्मचारियों और अधिकारियों की भूमिका बढ़ गई है।शासक वर्ग जनहित के कार्यों को कर्मचारियों और अधिकारियों के माध्यम से ही पूर्ण करता है।ऐसी स्थिति में जनता जब कर्मचारियों/अधिकारियों से किसी कार्य हेतु संपर्क करती है तो कर्मचारी व अधिकारी द्वारा कागजी कामों में व्यस्त रहने के बहाने हर काम को लटकाए रहते हैं,जब तक रिश्वत नहीं दी जाती।
  • इसी प्रकार केंद्र तथा राज्य सरकारें कई ऐसे कामों पर धन खर्च करती है जिसकी कोई उपयोगिता नहीं है।इस प्रकार मंत्रियों,अधिकारियों तथा कर्मचारियों द्वारा सरकारी धन तथा सार्वजनिक संस्थाओं के धन का गबन किया जाता है।कुछ सरकारी धन पर चौकस नजर रखने वाली संस्थाओं द्वारा कई ऐसे स्कैंडल (scandal) प्रकाशित किए गए हैं जिनमें करोड़ों,अरबों का घोटाला किया गया है।करोड़ों,अरबों रुपए के घोटाले करके भी ऐसे लोग बच जाते हैं जिससे भ्रष्टाचार,गबन व घोटाले करने को प्रोत्साहन मिलता है।
  • वर्तमान में गबन व घोटालों का कोई बड़ा स्कैंडल (scandal) प्रकट नहीं होने का यह अर्थ नहीं लगा लेना चाहिए कि गबन व घोटाले बंद हो गए हैं।दरअसल गबन व घोटालों की भारत में ऐसी नींव लग गई है कि ऊपरी तौर पर नजर नहीं आ रहे हों तो भी निचले स्तर के कर्मचारी/अधिकारी भ्रष्टाचार में लिप्त रहते हैं और गबन करते करते रहते हैं।ड्राइविंग लाइसेंस दलालों के जरिए होता है।मकान,भूमि के रजिस्ट्रेशन में कर्मचारियों व अधिकारियों द्वारा रिश्वत लेने का प्रतिशत निश्चित है।
  • भ्रष्टाचार का मुख्य कारण है धन को प्रधानता देना।धनवान व्यक्ति को सब जगह मान-सम्मान मिलता है भले ही वह भ्रष्ट हो।धन के कारण सभी दोष छिप जाते हैं।हालांकि यह प्रवृत्ति वर्तमान युग में भी में ही नहीं है बल्कि प्राचीन काल में भी थी।जिसके प्रमाण कई स्मृतियों में उपलब्ध हैं।परंतु वर्तमान युग में यह प्रवृत्ति कुछ ज्यादा ही फैल गई है।
  • भतृहरि नीतिशतक में लिखा है कि जिसके पास धन है वही पुरुष कुलीन है,वही पंडित है,वही विद्वान और गुणवान है,वही वक्ता और वही सुंदर है।सारे गुण स्वर्ण अर्थात् धन में समाए रहते हैं।
  • सामाजिक जीवन की यह विकृति है कि धनवानों को सम्मानित किया जाता है,उनके स्वागत गान गाए जाते हैं,उनको महिमामंडित किया जाता है,भले ही वह दुष्ट,दुराचारी हो जबकि विद्वानों,कलाकारों,गुणवानों की कोई पूछ नहीं है।अतः ऐसी स्थिति में व्यक्ति धन के द्वारा सामाजिक प्रतिष्ठा प्राप्त करने के लिए अनैतिक तरीकों का प्रयोग करता है।वह येन-केन प्रकारेण धन प्राप्त करना चाहता है।
  • ऐसी स्थिति में देश की प्रगति अवरुद्ध हुई है तथा विदेशों में भारत की साख कम हुई है।इसका समाधान है कि कर्मचारियों व अधिकारियों के चयन में चारित्रिक गुणों को प्रधानता दी जाए।जब तक केवल बौद्धिक परीक्षण के द्वारा चयन किया जाएगा तब तक इसका समाधान संभव नहीं है।शिक्षा पद्धति में नैतिक व चारित्रिक शिक्षा का समावेश करना होगा ताकि युवक-युवतियों की मानसिकता को बदला जा सके।सचरित्र युवक-युवतियां तैयार हो सके।भ्रष्टाचारियों को कड़ी सजा का प्रावधान करना चाहिए।भ्रष्टाचारियों को मान-सम्मान देना बन्द करना चाहिए।चारित्रिक व नैतिक व्यक्तियों का मान-सम्मान करना चाहिए।शासन व प्रशासन में पारदर्शिता लानी होगी।

5.भ्रष्ट व्यक्ति का दृष्टांत (The Vision of a Corrupt Person):

  • एक बार एक असमर्थ व्यक्ति कहने लगा कि यदि भगवान ने मुझे समर्थ बनाया होता अर्थात् मेरा चयन प्रशासनिक पद पर हो जाता तो मैं भ्रष्टाचार को जड़ से खत्म कर देता।जहां कहीं सरकारी धन की बर्बादी देखता वहीं उसे सुधारने में लग जाता।दौड़-दौड़कर जनता की सेवा करता तथा भ्रष्टाचारियों को सबक सिखाता।सरकारी धन का उपयोग दीन-दुखियों का कष्ट निवारण में करता।शिक्षा में आमूल-चूल परिवर्तन करता।
  • वह अभ्यर्थी पढ़ा-लिखा तो था ही साथ ही प्रतिभाशाली भी था।उसका चयन प्रशासनिक सेवा में हो गया।प्रशासनिक सेवा में चयन होते ही उसके विचार बदल गए।सरकारी धन का गबन करने लगा और सरकारी सुविधाओं मोटरगाड़ी इत्यादि से सैर-सपाटा करता।अपनी शक्ति से दुर्बल व कमजोर लोगों को सताने लगा।उसने अपनी बुद्धि का प्रयोग धन-संपत्ति अर्जित करने में किया।
  • उस पर किसी का शक न हो इसलिए सादगी से रहता।साधारण वेशभूषा पहनकर रहता।पैरों में भी चप्पल पहनकर रहता।धीरे-धीरे उसकी तरक्की होती गई।उसे नेक व ईमानदार समझा जाता और उस पर कोई उच्चाधिकारी शक नहीं करता।
  • तरक्की करते हुए वह सचिव के पद तक पहुंच गया।एक बार किसी व्यक्ति ने भ्रष्टाचार के कारण उसकी शिकायत भ्रष्टाचार विभाग को कर दी।भ्रष्टाचार विभाग ने रंगे हाथों उसे पकड़ लिया।उसकी सादगी के कारण बहुत से अफसरों व उच्चाधिकारियों को बड़ा आश्चर्य हुआ।जब उसके खातों व संपत्ति की जांच की गई तो अकूत सम्पत्ति (अनैतिक,गबन,रिश्वत के द्वारा अर्जित) पाई गई।फलस्वरूप उसे निलंबित कर दिया गया।उसने ओढ़ी हुई सादगी अपना रखी थी।
  • बाद में वह पछताने लगा कि उसने अपने पद व शक्ति का दुरुपयोग किया,लोगों की भलाई व सेवा में नहीं किया।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में विद्यार्थी अपनी कामनाओं पर नियंत्रण कैसे रखें? (How Do Students Control Their Desires?),छात्र-छात्राएँ सबकुछ प्राप्त करने की कामनाएँ क्यों न करें? (Why Don’t Students Wish to Achieve Everything?) के बारे में बताया गया है।

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6.गणित की खूबसूरत लड़की और एक्सीडेंट (हास्य-व्यंग्य) (Beautiful Math Girl and Accident) (Humour-Satire):

  • एक खूबसूरत गणित की लड़की को गणित में नकल करते हुए पकड़ लिया गया।पुलिस उसे जीप में बैठाकर ले जा रही थी।पुलिस के उच्च अधिकारी,जो उसकी गाड़ी के पीछे-पीछे चल रहे थे,ने कहा कि तुम सच-सच बता दो वरना तुम्हारा कैरियर खराब हो जाएगा।ज्योंही थोड़ी दूर गाड़ी गई और पीछे धड़ाम की आवाज आई।पुलिस के उच्चाधिकारी की नजर लड़की से नहीं हट रही थी,अतः उसकी गाड़ी का एक्सीडेंट हो गया।

7.विद्यार्थी अपनी कामनाओं पर नियंत्रण कैसे रखें? (Frequently Asked Questions Related to How Do Students Control Their Desires?),छात्र-छात्राएँ सबकुछ प्राप्त करने की कामनाएँ क्यों न करें? (Why Don’t Students Wish to Achieve Everything?) से सम्बन्धित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.सबसे अधिक गबन कहाँ होता है? (Where is the Most Embezzled?):

उत्तरःसबसे ज्यादा गबन बैंकों,सार्वजनिक संस्थाओं,पंजीयन विभाग (Registration),ड्राइविंग लाइसेंस देने इत्यादि में होते हैं।राजनीतिक पार्टियों के चन्दे के लेने में भी ऐसे ही घोटाले होते हैं।चुनावों में राजनीतिक नेता सीमा से अधिक धन व्यय करते हैं,पर वे दबा दिए जाते हैं।

प्रश्न:2.गबन से क्या तात्पर्य है? (What Do You Mean by Embezzlement?):

उत्तर:दूसरे के धन को बेईमानी से हड़पना गबन कहलाता है।सरकारी धन का अपने निजी हित में इस्तेमाल करना भी गबन कहलाता है।सार्वजनिक संस्थाओं के धन को हड़पना भी इसी श्रेणी में आता है।

प्रश्न:3.भ्रष्टाचार का मूल कारण क्या है? (What is the Root Cause of Corruption?):

उत्तर:अपनी कामनाओं पर नियंत्रण न रखना तथा धर्म से अधिक धन को महत्त्व देना।वस्तुतः धन का सही उपयोग अपने सांसारिक कर्त्तव्यों को पालन करने तथा परोपकार में लगाने में ही है।परंतु बहुत से लोग धन का अधिक से अधिक संग्रह करते हैं और इसके लिए अनैतिक तरीकों चोरी,डकैती,लूटमार,गबन,रिश्वत,भ्रष्टाचार इत्यादि करने से बिल्कुल नहीं हिचकते हैं।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा विद्यार्थी अपनी कामनाओं पर नियंत्रण कैसे रखें? (How Do Students Control Their Desires?),छात्र-छात्राएँ सबकुछ प्राप्त करने की कामनाएँ क्यों न करें? (Why Don’t Students Wish to Achieve Everything?) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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