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How Can Student Be Free From Suffering?

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1.विद्यार्थी कष्टों से कैसे मुक्त हो सकते हैं? (How Can Student Be Free From Suffering?),विद्यार्थी जीवन में पीड़ाओं और कठिनाइयों से कैसे मुक्त हों? (How to Get Rid of Pain and Difficulties in Student Life?):

  • विद्यार्थी कष्टों से कैसे मुक्त हो सकते हैं? (How Can Student Be Free From Suffering?) क्योंकि कष्टों से अध्ययन प्रभावित होता है।आमतौर पर युवक-युवतियां कष्टों को पसंद नहीं करते हैं।जीवन में कष्ट,कठिनाइयां अथवा संकट आने पर घबरा जाते हैं,विचलित होते हैं और जल्द से जल्द छुटकारा पाने का प्रयास करते हैं।परंतु एक दृष्टि से देखे तो अध्ययन में कष्ट,कठिनाइयों का अनुभव करते हैं तो अधिक जागरूक व सर्तक होकर,होशपूर्वक अध्ययन करते हैं।
  • कष्ट व कठिनाइयों से लापरवाह नहीं रहते हैं जबकि कोई कष्ट न हो तो हम लापरवाह रहते हैं,साधारण तरीके से अध्ययन करते हैं।जबकि कष्ट व कठिनाइयों में पूर्ण एकाग्रचित होकर अध्ययन करते हैं,असाधारण तरीके से अध्ययन करते हैं।गहराई से समस्याओं व सवालों को हल करते हैं।
  • कष्ट व कठिनाइयों में पूर्ण क्षमता,सामर्थ्य और शक्ति के साथ अध्ययन करते हैं और हमारी अनजानी आत्मशक्ति प्रकट हो जाती है।
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2.कष्ट और कठिनाइयां जीवन के अंग (Hardships and Difficulties are Part of Life):

  • अध्ययन अथवा जीवन व संसार के किसी भी कार्य को करने में कष्ट,कठिनाई तथा सरलता,सुगमता अनुभव करते हैं।सिक्के के दो पहलू चित व पट की तरह सुख-दुःख आवश्यक रूप से जुड़े हुए हैं।
  • छात्र-छात्राओं को अध्ययन में कोई परेशानी आती है अथवा कष्ट का अनुभव करते हैं तो हमारे अज्ञान,कमियों व दुर्बलताओं को दूर करने के लिए आते हैं।कष्ट व विपत्ति सहने से हमारा व्यक्तित्त्व मजबूत बनता है अन्यथा व्यक्तित्त्व बिखर जाता है।
  • कष्ट व कठिनाइयों में जितना हम अपने करीब,अपनी आत्मिक शक्ति के करीब होते हैं उतना सहजता,सरलता व सुख में नहीं होते हैं।कष्ट व विपत्ति सोए हुए विद्यार्थियों को जगाती है।परंतु हमें कष्ट,विपत्तियां व संकट का आना अच्छा नहीं लगता है क्योंकि यह हमें खुशी,प्रसन्नता नहीं देता है।
  • परंतु कष्ट व विपत्तियों में हमें हमारी वास्तविक स्थिति का बोध होता है।कष्ट व विपत्ति में हम कुछ खोते हैं वहीं हम संभलकर चलना भी सीखते हैं।इस संसार में हर चीज के दो पक्ष होते हैं।कष्ट व विपत्ति में कुछ खोते हैं तो कुछ प्राप्ति भी होती है।इसे जानना,समझना चाहिए।
  • दुःख,पीड़ा व कष्ट के क्षण भी सुख के क्षणों की तरह कीमती होते हैं।अंतर बस इतना है कि दुःख,पीड़ा,कष्ट हमें अच्छे नहीं लगते और सुख के क्षण हमें सुखद लगते हैं,मन को भाते हैं।चूँकि जो भी चीज हमें अच्छी नहीं लगती,उससे गुजरने पर या उसके पास होने पर हमारा मन बेचैन रहता है।यही कारण है कि दुःख,पीड़ा व कष्ट के क्षणों में मन हमारा अधिक साथ नहीं देता,लेकिन इससे इन क्षणों का महत्त्व कम नहीं हो जाता।
  • जिस प्रकार जल में फिटकरी डालने पर अशुद्धि दूर होती है,स्वर्ण को तपाने पर अशुद्धि दूर हो जाती है।कष्ट,विपत्ति,दुःख भी वैसे ही माध्यम होते हैं जिससे हमारा अज्ञान दूर होता है,मन निर्मल व स्वच्छ होता है,मन के विकार दूर होते हैं।
  • इसलिए हमें कभी भी कष्ट,विपत्ति,संकट व दुःखों के आने पर घबराना नहीं चाहिए बल्कि इन क्षणों को धैर्य,विवेक,साहस के साथ सहज भाव के साथ व्यतीत करना चाहिए।वस्तुतः कष्ट,विपत्ति व पीड़ा की अनुभूति करना कोई नहीं चाहता है परंतु महान आत्माएं,महापुरुष कष्ट,दुःख स्वेच्छा से स्वीकार करते हैं ताकि उनके प्रारब्ध कर्मों को भोग लिया जाए।
  • हमारे जीवन में सुख-दुःख हमारे ही पूर्व के शुभ व अशुभ कर्मों के कारण आते हैं।प्रारब्ध भोग को भोगना इन शुभ-अशुभ कर्मों का क्षय करना ही है।यदि हम निरंतर अध्ययन में तल्लीन रहें तथा ज्ञान अर्जित करते रहें तो दुःख,पीड़ा व कष्ट उतने ही कम होते जाते हैं।अपने आप पर विश्वास,अपनी आत्मिकशक्ति पर विश्वास करते हुए इन शुभ-अशुभ कर्मों को भोग लेना चाहिए।ज्यों-ज्यों ज्ञान का दीपक जलता है त्यों-त्यों कष्ट,पीड़ा,विपत्ति रूपी अज्ञान दूर होता जाता है।

3.कष्टों से छुटकारा कैसे हो? (How to Get Rid of Sufferings?):

  • कष्टों,विपत्तियां,पीड़ाओं को सहजता से स्वीकार करते हुए अध्ययन करते रहना चाहिए।क्योंकि जब हम कुछ भी सकारात्मक कार्य नहीं करते हैं तो इनकी अधिक अनुभूति होती है।इनकी अनुभूति अज्ञान के कारण होती है।अध्ययन,स्वाध्याय,सत्संग और विवेक से अज्ञान दूर होता है और इनकी अनुभूति नहीं होती है।
  • यदि वास्तव में हम इनसे छुटकारा पाना चाहते हैं तो अपने अंदर ज्ञान का दीपक जलाना ही होगा।कष्ट,पीड़ा,विपत्ति अथवा जितने भी नकारात्मक मानसिक वेग हैं उनकी अनुभूति अज्ञान के कारण ही होती है।इन्हें अज्ञान रूपी अंधकार को ज्ञान रूपी प्रकाश से दूर किया जा सकता है या कह लीजिए इनसे मुक्त हुआ जा सकता है।
  • सुख व दुःखों के प्रति समभाव रखना होगा तभी आनंद का अनुभव किया जा सकता है।द्वन्द्वों से दूर रहना ही तप है और यही आनंद है।अपने आप पर और परमात्मा पर विश्वास रखना चाहिए।परमात्मा को और उसके प्रतीकों को हम किस नाम से याद करते हैं,इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है।हम उसे भगवान,गॉड,खुदा,क्राइस्ट अथवा अन्य किसी भी देवी-देवता के नाम से स्मरण कर सकते हैं।अंतर पड़ता है तो हमारे विश्वास से।यह विश्वास ऐसा होना चाहिए जो पवित्र और निष्पक्ष हो।परमात्मा की परमसत्ता और उसके प्रेम तथा न्याय में विश्वास करने से हमारी आत्मा को शक्ति प्राप्त होती है।आत्मा की शक्ति हमारी विवेकबुद्धि को बलवान बनाती है।
  • विवेकबुद्धि द्वारा हम अपनी मानसिक तथा शारीरिक शक्तियों में चमत्कारिक वृद्धि कर सकते हैं।
  • हमेशा मन में पवित्र विचार और शुभ का ही विचार करना चाहिए।सफल जीवन व्यतीत करने के लिए पवित्र विचारों पर सदा से बल दिया जाता रहा है।आत्मा,परमात्मा और स्वाध्याय व शुभ के विचार हमें निर्भय,साहसी और शक्तिशाली बनाते हैं।इसके विपरीत कष्ट,पीड़ा,घृणा,प्रतिशोध आदि के बुरे विचार इतने हानिकारक होते हैं कि वे हमारे आंतरिक संतुलन को बिगाड़ देते हैं।
  • इससे हमारी कार्यक्षमता घटती है,मानसिक तनाव और अशांति बढ़ती है जिसका परिणाम होता है कष्ट,पीड़ा व बीमारी।
  • कष्ट या बीमारी की स्थिति में अपने विचारों को अध्ययन,परमात्मा अथवा अन्य रुचिकर विषय पर केंद्रित करने से व्यक्ति को तत्काल अस्थायी लाभ अवश्य होता है,क्योंकि उसका ध्यान अपनी बीमारी,कष्ट या पीड़ा से हट जाता है।
  • जब सुख नहीं रहा तो कष्ट,पीड़ा भी नहीं रहेगी।दोनों मन की स्थितियां है,यह जानते हुए बुद्धिमान इन दोनों ही स्थितियों में अपने लक्ष्य से नहीं हटते।
  • पीड़ा में हम जितने स्वयं में केंद्रित होते हैं,उतने शायद कभी नहीं,इस प्रकार यह जीवन साधना की एक झलक होती है।
  • मन और आत्मा के संबंध में खोज करने वाले पराममनोवैज्ञानिक इस परिणाम पर पहुंचे हैं कि मनुष्य की आत्मा में अपार शक्ति है।जो व्यक्ति इस शक्ति को जगाने और इसकी सहायता पाने में सफल हो जाता है,वह कठिन-से-कठिन कार्य कर सकता है और उलझी-से-उलझी समस्या को हल कर सकता है।इस उच्च स्तर की मानसिक तथा आध्यात्मिक शक्ति को जगाने के लिए परमात्मा पर अटूट विश्वास रखते हुए निरंतर सद्प्रयत्न करते रहने की आवश्यकता होती है।

4.कष्टों से मुक्त होने के अन्य उपाय (Other Ways to Get Rid of Sufferings):

  • छात्र-छात्राएं अध्ययन करने के अलावा भी कई अतिरिक्त उपाय कष्टों,पीड़ाओं से मुक्त होने के लिए प्रयोग कर सकते हैं।जिनको कष्टों और पीड़ाओं का सामना करना पड़ता है,उनको अपना जीवन उत्साह से जीना चाहिए,जो कठिन अवश्य है।जीवन की राह कठिनाइयों और कठोरताओं से भरी हो सकती है,हमें उसे पर चलते हुए पीड़ा होना स्वाभाविक है परंतु उसके प्रति रचनात्मक दृष्टिकोण अपनाकर हम उस पर विजय प्राप्त कर सकते हैं।
  • पीड़ा सहना कठिन है परंतु उसका बहुत महत्त्व है।पीड़ा के बिना मनुष्य की आध्यात्मिक शक्तियों तथा मानवीय गुणों का विकास नहीं हो सकता है इसीलिए पीड़ा लाभदायक है।
  • अंधे छात्र-छात्रा विद्यालय में,बाजार में,बस में बिना किसी सहारे के चले जाते हैं,अपने सभी काम वे स्वयं करते हैं।इसके अलावा कई व्यक्ति किसी न किसी शारीरिक अक्षमता के बावजूद अच्छे गायक,कलाकार और व्यवसायी मिलेंगे।सूरदास जी ने अंधे होने के बावजूद भी मधुर पद लिखे जिसके कारण उन्हें ‘सूर’ यानी सूर्य की उपाधि दी गई।इन सब सफलताओं के मूल में इन सफल व्यक्तियों का परमात्मा की अपारशक्ति में विश्वास ही निहित था।
  • उपर्युक्त उदाहरण से कई तथ्य स्पष्ट होते हैं।एक तो यह है कि कभी-कभी हमें अपनी शारीरिक अक्षमता,कष्ट या पीड़ा के साथ जीवन जीना पड़ता है।दूसरा यह है कि परमात्मा पर पूरा विश्वास रखते हुए बार-बार प्रयत्न करने से अपनी शारीरिक अक्षमताओं पर विजय पा सकते हैं।
  • जीवन में महान कार्य करने वाले लोग,जिन्हें कार्य में बड़ी-बड़ी रुकावटों और कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है,अपनी इच्छाशक्ति से थकान की पहली सीमा या बाधा को ही नहीं वरन उसकी दूसरी सीमा को भी पार कर लेते हैं।इससे उनके भीतर ऐसी महाशक्ति उत्पन्न होती है कि वे आश्चर्यजनक कार्य पूरे कर दिखाते हैं।
  • सद्ग्रन्थों के अध्ययन से भी कष्टों व पीड़ाओं से मुक्ति मिलती है।संसार के समस्त धार्मिक ग्रंथ चाहे वह गीता,महाभारत या गुरुग्रंथ साहिब अथवा अन्य हो,एक ही आध्यात्मिक शिक्षा देते हैं कि परमात्मा से सच्चे हृदय और पूरी एकाग्रता से प्रार्थना करने पर व्यक्ति को मनोवांछित सहायता,शक्ति अथवा मार्गदर्शन प्राप्त होता है।
  • हम आश्चर्यों से भरे संसार में रहते हैं।नित्य इतने वैज्ञानिक चमत्कार होते रहते हैं कि अब शायद ही कोई चीज हमारी जिज्ञासा को उत्तेजित करती हो।भौतिक जगत की तरह आध्यात्मिक स्तर पर भी चमत्कार घटित होते हैं,लेकिन वे भौतिक संसार के नियमों से परे होते हैं।हम उन्हें समझ नहीं पाते,पर इसका यह अर्थ नहीं है कि आध्यात्मिक नियम नहीं होते।
  • परमात्मा पर विश्वास करने के साथ ही उससे प्रार्थना करने की शक्ति संसार की सबसे बड़ी शक्ति है जो मानव को उपलब्ध है।परमात्मा की शक्ति में विश्वास कर हजारों लोग अपनी अनेक समस्याओं को सुलझा सकते हैं,तो आप क्यों नहीं कर सकते।
  • सर्वशक्तिमान से सच्चे हृदय से प्रार्थना कीजिए और अपने कर्म (अध्ययन) में जुट जाइए।मनचाही सफलता आपको जरूर मिलेगी।
  • दरअसल कष्ट,पीड़ाओं और दुःखों की तरफ हमारा मन और ध्यान जितना अधिक जाता है उतना ही अधिक इनका अनुभव होता है और ज्योंही मन और ध्यान को हटाकर अध्ययन करने,योग-साधना,मन को एकाग्र करने,ध्यान (meditation) करने की तरफ हम हमारा ध्यान केंद्रित करते हैं तो इनकी अनुभूति कम होती जाती है।

5.कष्टों से मुक्त होने का दृष्टांत (The Parable of Being Free From Sufferings):

  • एक विद्यार्थी था।उसके पिता का स्वर्गवास हो चुका था।माँ अक्सर बीमार रहती थी।अपने अध्ययन में तो मुसीबतों का सामना करना पड़ता ही था परंतु बीमार मां की हालत उससे देखी नहीं गई।बीमार मां का इलाज कैसे करवाए? एक दिन माँ कुछ ज्यादा ही बीमार हो गई।उसके लिए दवा की आवश्यकता थी।माँ को कष्ट व बीमारी से मुक्त करने के लिए उसे रुपयों की आवश्यकता महसूस हुई।
  • उसने चोरी करने का रास्ता अपनाया।वह एक सेठ के घर में चोरी करने के लिए घुस गया।सेठ जाग गया और उसने उस विद्यार्थी को पकड़ लिया।उससे पूछा कि तुम यहां क्यों आए हो? विद्यार्थी ने स्पष्ट कहा कि चोरी करने के लिए आया था।सेठ ने पूछा कि इससे पहले कहां-कहां चोरी की तथा चोरी क्यों करते हो? विद्यार्थी बोला पहली बार ही चोरी करने आया था और पकड़ा गया।चोरी करने का कारण बताया कि माँ को दवाई दिलानी थी इसलिए रूपयों की आवश्यकता महसूस हुई।
  • सेठ ने जब उस विद्यार्थी के बारे में तलाश किया तो सारी बातें सच निकली।सेठ ने उसकी मां की बीमारी का इलाज करवाया साथ ही उसे कोचिंग सेंटर खुलवा दिया।उसको हिदायत दी कि छोटे बच्चों को पार्ट टाइम में ट्यूशन कराया करो और अपने पैरों पर खड़े होकर अपना,घर का खर्चा चलाओ परंतु गलत कार्य मत करो।
  • विद्यार्थी कोचिंग सेंटर में पढ़ाने लग गया,धीरे-धीरे वह तरक्की करता गया और कोचिंग उद्योग का विस्तार कर लिया।पढ़ाई पूरी करने के बाद वह कोचिंग में पूरी तरह समर्पित होकर कार्य करने लगा।एक दिन वह बहुत बड़ा व्यवसायी बन गया।
  • उधर सेठ वृद्ध हो गया तो उसका व्यापार चौपट हो गया।उसके कोई संतान नहीं थी परंतु एक लड़की थी।उसकी शादी करने की चिंता सताने लगी।सेठ के मित्रों,रिश्तेदारों ने उससे संबंध विच्छेद कर लिया।उस विद्यार्थी को जब मालूम पड़ा तो वह सेठ के पास आया।सेठ उसे नहीं पहचान सका।तब उसने कहा कि आपने मुझे गलत रास्ते पर जाने से रोका था,वही हूं मैं।उसने सेठ की लड़की की शादी की पूरी व्यवस्था कर दी।इस प्रकार नेक कार्य का फल अवश्य मिलता है।सेठ उस युवक को देखकर गदगद हो गया और लड़की की शादी करके चिंता मुक्त हो गया।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में विद्यार्थी कष्टों से कैसे मुक्त हो सकते हैं? (How Can Student Be Free From Suffering?),विद्यार्थी जीवन में पीड़ाओं और कठिनाइयों से कैसे मुक्त हों? (How to Get Rid of Pain and Difficulties in Student Life?) के बारे में बताया गया है।

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6.वातानुकूलित कोचिंग (हास्य-व्यंग्य) (Air-Conditioned Coaching) (Humour-Satire):

  • छात्र (निदेशक से):आपने अपने कोचिंग को वातानुकुलित क्यों बनवाया?
  • निदेशक:ताकि छात्र-छात्राओं को कोचिंग की फीस सुनकर पसीना न आए।

7.विद्यार्थी कष्टों से कैसे मुक्त हो सकते हैं? (Frequently Asked Questions Related to How Can Student Be Free From Suffering?),विद्यार्थी जीवन में पीड़ाओं और कठिनाइयों से कैसे मुक्त हों? (How to Get Rid of Pain and Difficulties in Student Life?) से सम्बन्धित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.कष्टों एवं कठिनाइयों पर विजय कैसे प्राप्त करें? (How to Overcome Sufferings and Difficulties?):

उत्तर:किसी बात या घटना पर विचार करने का तरीका हमारे उस बारे में होने वाले अनुभव को बहुत प्रभावित करता है।विश्वास विचार का सबसे शक्तिशाली रूप है।अतः हमें बीमारी,कमजोरी या तकलीफों के बारे में विचार करने के बजाय स्वास्थ्य,शक्ति और सफलता के संबंध में विचार करना चाहिए।बेशक,इसके लिए कोशिश करनी पड़ेगी,बार-बार कोशिश करनी पड़ेगी।ऐसा करते हुए याद रखिए कि संसार में बहुत लोग हैं,जिन्होंने अपने प्रयत्नों से कष्टों और कठिनाइयों पर विजय प्राप्त कर स्वास्थ्य एवं सफलता पायी है।इस प्रकार का निरंतर अभ्यास करते रहने से धीरे-धीरे सच में स्वस्थ व शक्तिशाली बन जाएंगे।परमात्मा से दूसरों के कल्याण की प्रार्थना करते हुए भी आशावादी विचार रखना महत्त्वपूर्ण है।

प्रश्न:2.दुःख का कारण क्या है? (What is the Cause of Grief?):

उत्तर:मनुष्य दुखी होना नहीं चाहता फिर भी दुःखी होता है।कभी शारीरिक पीड़ा से दुःखी होता है तो कभी मानसिक कारणों से दुःखी होता है।शारीरिक पीड़ा का कारण उसके द्वारा पूर्व काल में किया गया गलत आहार-विहार और आचरण होता है और मानसिक कारणों में मुख्य कारण मोह (अज्ञान) होता है।किसी व्यक्ति,वस्तु या इच्छा के प्रति मोह रखना कभी न कभी दुःख का कारण बन ही जाता है।मोह न हो तो मन अनासक्त रहता है,स्थिर रहता है और किसी को कुछ भी होता रहे इससे हमें कोई फर्क नहीं पड़ता है।मोह के होने और न होने से ही फर्क पड़ता है,हमारी सोच और व्यवहार में फर्क पड़ता है और हमारे संबंधों में फर्क पड़ता है।

प्रश्न:3.तप किसे कहते हैं? (What is Austerity?):

उत्तर:सुख व दुःख के प्रति समभाव रखना यानी दोनों से प्रभावित न होना ही तप है।द्वन्द्वों हानि-लाभ,जय-पराजय,गर्मी-सर्दी आदि से अप्रभावित रहना तप है।द्वन्द्वों से दूर रहना ही तप है और यही आनंद है।इसलिए तपस्वी वस्तुतः आनंदित होता है।संसारी व्यक्ति सुखी भी होता है और दुःखी भी होता है पर आनंदित कभी नहीं होता हालांकि वह कहता जरूर है कि बड़ा आनंद आया,बड़े आनंद में हूं,पर ऐसा वह आदतन कहता है बिना यह जाने की वास्तव में आनंद है क्या?

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा विद्यार्थी कष्टों से कैसे मुक्त हो सकते हैं? (How Can Student Be Free From Suffering?),विद्यार्थी जीवन में पीड़ाओं और कठिनाइयों से कैसे मुक्त हों? (How to Get Rid of Pain and Difficulties in Student Life?) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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