Generosity of Great Mathematician
1.महान् गणितज्ञ की उदारता (Generosity of Great Mathematician),महान् गणितज्ञ द्वारा उदारता का संक्रमण (The Transition Generosity by The Great Mathematician):
- महान् गणितज्ञ की उदारता (Generosity of Great Mathematician) देखकर हर कोई छात्र-छात्रा एवं लोग उनके कायल हो जाते थे।महान गणितज्ञ सुदर्शन केवल गणित के ज्ञाता ही नहीं थे बल्कि उनके रोम-रोम में मानवता व सहृदयता रची-बसी थी।अत्यंत गरीबी में पले-बढ़े गणितज्ञ सुदर्शन ने बचपन बड़ी कठिनाइयों से गुजारा।लेकिन अपने जीवन व संघर्ष करने की क्षमता के बल पर हर चुनौती व कठिनाइयों का सामना किया।
- गणितज्ञ सुदर्शन अंतरराष्ट्रीय गणित ओलंपियाड के कार्यालय में एक उच्च स्तरीय मीटिंग में मंत्रणा कर रहे थे।उनके साथ उपाध्यक्ष राॅबर्ट,सचिव सुनयना,संयुक्त सचिव विनीता एवं अन्य उच्च अधिकारीगण बैठे हुए थे।विषय बड़ा गंभीर था और विजेता छात्र-छात्राओं को आर्थिक पुरस्कार देने के मुद्दे पर आधारित था।
- उनके अधीनस्थ सभी अधिकारीगण गणितज्ञ सुदर्शन की उदारता और निर्णय क्षमता से सुपरिचित थे।सुनयना ने उनकी उदारता की प्रशंसा की तो सुदर्शन ने कहा कि यह तो गणित प्राध्यापक चन्द्रशेखर की कृपा का परिणाम है।वे यदि मुझ पर कृपालु ना होते तो शायद मेरे जीवन में उदारता का यह दैवीय गुण विकसित न हो पाता।
- इस घटना के बारे में किसी ओर दिन चर्चा करेंगे,यह कहते हुए वे सामने पड़े दस्तावेज पर हस्ताक्षर करके सभा समाप्त करके चलने लगे।
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2.गणितज्ञ को अपने बचपन की यादें (Mathematician Recalls His Childhood):
- जब वे गणित ओलंपियाड के कार्यालय से अपने निवास पर पहुंचे,तब अपने लाॅन में टहलते हुए उन्हें अपने अतीत की यादें ताजा हो आई।वे निम्न वर्ग में पैदा हुए थे और उनका जन्म भारत की आध्यात्मिक एवं शिक्षा नगरी काशी (वाराणसी) में हुआ था।पिता देवदास मेहनतकश भवन निर्माण कर्त्ता थे एवं ईमानदारी की प्रतिमा थे।माता का नाम रजनी था,जिनका घर तीन नदियों के संगम इलाहाबाद (प्रयाग) में था।माता-पिता दोनों ही हिंदू धर्मावलंबी थे।
- बचपन की यादें कोई अच्छी नहीं थी।वे मात्र 2 वर्ष के लगभग ही हुए थे कि उनके ऊपर से पिता का वरद साया उठ गया और मात्र नौ वर्ष की उम्र में उसी काल ने उनसे मातृत्व की छाया भी समेट ली।वे पूरी तरह से अनाथ हो गए।कोई उनका सहारा देने वाला नहीं था।
- उस समय उनके जेहन में बचपन की कड़ुई स्मृतियों में से यह भी उभरा कि उनकी विधवा माता अपनी संतानों का पालन-पोषण किस प्रकार मजदूरी करके करती थी।कई दिन तो पारिश्रमिक न मिलने पर उन सबको बासी रोटी खिलाकर माता स्वयं पानी पीकर सो जाती थी।
- यादों की ये तरंगे उनकी आंखों में आंसुओं की धारा को रोक न सकीं।इतने में पत्नी गुणवती अपने चारों लड़कों को साथ लेकर उनके पास पहुंची।उनकी पत्नी को पता था कि जब भी वे अकेले होते हैं तो उनकी आंखें गमगीन हो जाती हैं,इसलिए वे उन्हें अकेला छोड़ती ही नहीं थी।
- जब सुदर्शन ने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के वाराणसी कॉलेज में दाखिला लिया तो उनकी मित्रता गुणवती से हो गई थी।दोनों शिक्षा पूरी होने के बाद विवाह-बंधन में बँध गए थे।चूँकि सुदर्शन ने गणित में पीएचडी की थी,अतः उन्होंने गणित में खोज कार्य करना प्रारंभ कर दिया था।
- बचपन की अवस्था में घोर आर्थिक अभाव ने उन्हें हाईस्कूल में बमुश्किल प्रवेश लिया था।इसके बाद वे पार्टटाइम प्रातः काल समाचार पत्र का वितरण करते थे और दिन में स्कूल जाते तथा रात्रि में स्कूल का होमवर्क व अध्ययन का कार्य करते थे।शाम को समाचार पत्रों का मूल्य ग्राहकों से वसूल करते थे।इस प्रकार उन्होंने बहुत कठिन संघर्ष किया था।दिन और रात उनका जीवन अत्यंत व्यस्तता में व्यतीत होता था।बचपन एवं किशोरावस्था भीषण दरिद्रावस्था में गुजरी,परंतु उनके उद्देश्य को परिस्थितियाँ न डिगा सकी।
3.विश्व विख्यात गणित प्राध्यापक से मुलाकात (Meeting with World-Renowned Mathematics Professor):
- इन्हीं दिनों जब वे वाराणसी कॉलेज में पढ़ रहे थे,भारत के विश्व विख्यात गणित प्राध्यापक चंद्रशेखर अपनी टीम के साथ वाराणसी पधारे।आर्थिक अभाव से ग्रस्त सुदर्शन के मन में एक योजना ने जन्म लिया।उन्होंने गणित प्राध्यापक से ₹30000 में कॉन्ट्रैक्ट (ठेका) कर लिया।इसमें यह था कि चंद्रशेखर को ₹30000 देने के पश्चात शेष बच्ची राशि उनकी होगी।चंद्रशेखर इस बात से सहमत थे,परंतु दुर्भाग्य का क्या कहें कि वह अंत तक पीछा नहीं छोड़ता।
- हुआ यों कि टिकट की बुकिंग अत्यंत कम हुई।लाभ की बात तो अलग रही,समस्या यह बन आई थी कि ₹30000 चुकता कैसे किया जाए? इस समस्या का कोई ओर उपाय न देख सुदर्शन ने अपनी सारी स्थिति से गणित प्राध्यापक चंद्रशेखर को अवगत करा दिया।
- चंद्रशेखर ने सारी बातें बड़े धैर्यपूर्वक सुनी और कहा ‘बेटे! चिंता मत करो।हानि और लाभ तो चलता रहता है।जीवन में कभी लाभ होता है तो कभी नुकसान,परंतु महत्त्वपूर्ण बात यह है कि इससे अप्रभावित होकर अपने उद्देश्य के प्रति आस्था-विश्वास बनाए रखना।एक दिन सफलता अवश्य मिलेगी।’उदार हृदय चंद्रशेखर ने सुदर्शन से कहा कि ‘तुम हमें कोई पैसा मत दो और तुम्हें (सेमिनार से) जितना मिला है,उसे इस आयोजन के दौरान हुए खर्च का चुकता कर दो।’
- चंद्रशेखर के इस उदार व्यवहार ने सुदर्शन की आंखों को नम कर दिया।उनका गला भर आया और कृतज्ञताज्ञापन के अलावा वे कुछ न सके।प्रस्थान के समय चंद्रशेखर ने सुदर्शन को बड़े ही प्यार से अपने पास बुलाया और सारी चीजों के बारे में पूछा तथा उसके हाथों में कुछ रुपए थमाकर बोले-“यह तुम्हारे कठोर परिश्रम और अटूट लगन का पारितोषिक है।इसे स्वीकार लो और ध्यान रखो अपने जीवन में औरों के प्रति भी ऐसी उदारता का परिचय देना।”
- अतीत की इन यादों को सुदर्शन ने बड़े ही सहेजकर रखा था और वक्त आने पर इसे क्रियान्वित करने के लिए कृतसंकल्पित थे।वे इन यादों को उस दिन अपने कार्यालय में सचिन सुनयना द्वारा पूछे जाने पर आज उनके साथ बैठकर अपनी उन्हीं यादों एवं उसमें समाहित प्रेरणापूर्ण अनुभवों को उदारतापूर्वक बांट रहे थे।उन्होंने सुनयना से कहा की ‘उदारता वह दिव्य गुण है,जो भावनाओं के तल से उभरता है,अंकुरित होता है।यह तर्क का विषय नहीं है।तर्क करने पर उदारता तो अत्यंत नुकसानदेय प्रतीत होती है,क्योंकि इसमें हम अपना नुकसान झेलकर भी औरों की प्रसन्नता एवं सहायता के लिए सब कुछ अर्पित करने के लिए तैयार एवं तत्पर रहते हैं।’
- उदारता को जब उन्होंने संक्रामक के रूप में निरूपित किया तो सुनयना किंचित चौंक पड़ी।भला ऐसे कैसे?इसके जवाब में सुदर्शन ने कहा कि ‘संक्रामक का तात्पर्य है एक से दूसरे में,दूसरे से अन्य में तेजी से किसी चीज का फैलना एवं विकसित होना।जब बैक्टीरिया एवं वायरस ऐसा करते हैं तो रोगों का संक्रमण होता है,जिससे हम सुपरिचित हैं,परंतु दुर्भाग्य की बात है कि हम विधेयात्मक चीजों की संक्रमण के रूप में कल्पना नहीं कर पाते।’ इंटरनेशनल मैथमेटिक्स ओलिंपियाड के अध्यक्ष (सुदर्शन) ने कहा कि ‘चंद्रशेखर उदारता के स्रोत थे।उनके उदारता के गुण मेरे अंदर संक्रमित हो गए और आज भी मैं उन्हें अपने अंदर महसूस करता हूं।इसी तरह पूर्वी देश,विशेषकर अपने देश भारत में उदारता का व्यापक प्रभाव है।जैसे पाश्चात्य देशों के लोगों में भौतिकता और राजनीति जीवन का मुख्य अंग है,ठीक वैसे ही भारत में उदारता एवं इससे संबंधित सद्गुण उनके जीवन का आधार एवं मर्म है।वहां का अनपढ़ एवं अशिक्षित व्यक्ति भी इस गुण का धनी होता है।
4.उदारता का शिक्षा से संबंध (Generosity Linked to Education):
- सचिव सुनयना ने अपनी जिज्ञासा को शांत करने के लिए पूछा कि ‘क्या उदारता का शिक्षा व गणित शिक्षा से कोई संबंध नहीं है?’ अध्यक्ष महोदय ने कहा “संभवतः होगा या नहीं भी,क्योंकि यह विषय हृदय का है,जबकि शिक्षा एवं गणित शिक्षा हमें व्यवसाय,जाॅब सिखाती है,जो की आधुनिक युग में प्रचलित है।यदि शिक्षा एवं गणित शिक्षा जीवन के सद्गुणों को विकसित करने में सहायक हो तो इसका उत्तर ‘हां’ है।
- यह बात इतनी दावे के साथ मैं इसलिए कह पा रहा हूं,क्योंकि जब मैं वाराणसी कॉलेज में पढ़ रहा था तो वहां मैंने एक भारतीय ऋषि एवं दार्शनिक महोदय का व्याख्यान सुना।वे हिंदुस्तान में जगह-जगह अलख जगा रहे थे।वाराणसी में उनके व्याख्यान का विषय ‘एलिमेंट्स ऑफ इंडियन कल्चर’ था (भारतीय दर्शन के मूल तत्त्व)।अपने व्याख्यान में उन्होंने अनेक तत्त्वों के साथ उदारता का उल्लेख किया था।
- तब मैंने उसे इतनी गंभीरता से नहीं लिया,बस,सुन लिया था।मैंने इसे काल्पनिक बात मानकर इस पर अपने मन में अनेक संदेह एवं सवालिया निशान भी खड़े किए,परंतु उदारता के इस गुण को जब चंद्रशेखर के द्वारा अपने ऊपर क्रियान्वित होते देखा तो मेरे सारे संदेह,संशय एवं अविश्वास तिरोहित से हो गए थे।फिर मैंने सोचा कि जिस देश (भारत) की जनता की रगों में यह घुला-मिला हो,वह देश कैसा होगा,उसकी संस्कृति कितनी महान होगी।”
5.उदारता को क्रियान्वित करने का अवसर (An opportunity to Act Generosity):
- सुनयना ने पूछा कि कब आपको इस गुण को अपने जीवन में क्रियान्वित करने का शुभ अवसर मिला? सुदर्शन ने बताया कि उन्होंने गणित में खोज कार्य करने में अथक परिश्रम किया और लाखों रुपए कमाए।भारत में गुलामी के दौरान एवं उसके बाद भारत की आर्थिक स्थिति अत्यंत सोचनीय एवं विचारणीय थी।इस दौरान उन्होंने अपनी उदारता का परिचय बढ़-चढ़कर दिया।
- वे अपनी टीम के साथ भुखमरी से मरने एवं अकाल पीड़ितों के बीच पहुंचे तथा घर-घर जाकर भोजन,कपड़ा एवं दैनिक जीवन की अन्य वस्तुओं का वितरण किया।
- अकाल से स्थिति इतनी भीषण हो गई थी कि हमें भोजन एवं कपड़ा बाँटते-बाँटते रात 12 से 2:00 बज जाते एवं फिर प्रातः काल उठकर यही काम शुरू कर देते।हमें तो कभी खुली सड़क पर सोना पड़ता।पाकिस्तान ने जब भारत पर आक्रमण किया तो वहां पर भोजन की गंभीर समस्या खड़ी हो गई थी।बच्चे,बूढ़े,महिलाएं,जवान सभी भूख के मारे तड़पने लगे थे।
- भुखमरी की इस समस्या से निपटने के लिए सुदर्शन ने अभूतपूर्व कार्य किया।उनके सक्रिय योगदान के कारण प्राइवेट एवं सरकारी सहायता की बाढ़-सी आ गई और प्रतिमाह सरकार लाखों रुपए देने लगी।
- वे बोले कि इसके बाद हम अगले 2 साल दिन में 14 से 16 घंटे काम करने लगे और भारत-पाकिस्तान के युद्ध में पीड़ित नौ लाख व्यक्तियों तक तीन लाख मिलियन टन भोजन पहुंचाया।उनके इस उदार हृदय एवं कठोर परिश्रम से प्रभावित होकर भारत के जम्मू-कश्मीर के श्रीनगर में उनके नाम का एक चौक का निर्माण कराया गया,जिसे सुदर्शन चौक के रूप में जाना जाता है।उनकी इस अद्भुत निष्ठा को देखकर भारत के प्रधानमंत्री ने उन्हें भारत में मैथमेटिक्स रिसर्च सेंटर का प्रमुख बना दिया।वे हमेशा भारत के प्रधानमंत्री व मंत्रिमंडल को शाकाहारी भोजन,हरी सब्जी आदि खाने का परामर्श दिया दिया करते थे।उनकी इस पहल ने जादू जैसा काम किया।अपने अथक प्रयास से उन्होंने भारत में न केवल मैथमेटिक्स की मजबूत नींव रखी बल्कि करोड़ों भूखे लोगों की क्षुधा को शांत करके मानवता का परिचय दिया।
- हालांकि कई लोगों ने उनको सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के नाम पर विरोध भी किया।परंतु उन्होंने विरोधों की कोई परवाह नहीं की।भारत-पाक युद्ध,भारत-चीन युद्ध,भारत में अकाल व भूकंप से पीड़ितों को भोजन,वस्त्र आदि पहुंचाया।वे अकाल से पीड़ित एवं भूख की अपार पीड़ा से तड़प रहे थे।सुदर्शन को,भूख की आग क्या होती है,इसका अपने अनाथ बचपन से गहरा अनुभव था और यही कारण है कि वे खुले दिल से भोजन बाँटते थे।
- इन सबके बीच सुदर्शन चंद्रशेखर को कभी नहीं भूले और भारत में अपार सहायता प्रदान की।उनके इस उल्लेखनीय कार्य के कारण ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ ने दस अति महत्त्वपूर्ण एवं विशिष्ट भारतीयों में उनका नाम भी जोड़ा।इस प्रकार वे प्रतिष्ठित हो चुके थे और इंटरनेशनल मैथमेटिक्स ओलिंपियाड के अध्यक्ष बनाए गए।उन्होंने अपने सर्वप्रथम उद्घाटन भाषण में कहा था कि ‘भगवान की कृपा और अपने पुरुषार्थ से आओ,गणित की शिक्षा अर्जित करने में आने वाली बाधा गरीबी को मिटा दें।’
- जब वे अध्यक्ष के पद पर काम कर रहे थे तो भयानक अचानक मंदी आई।अनेक राष्ट्रों ने संस्थान (ओलंपियाड) को हिस्सा चुकाने में अपनी असमर्थता प्रकट की और सुदर्शन ने उनसे अत्यन्त उदारतापूर्वक व्यवहार किया।
- चंद्रशेखर की उदारता का ही प्रभाव था कि सुदर्शन कभी कठोर व्यवहार नहीं करते थे और न उनको अपमानित व तिरस्कृत करते थे।वे उनके साथ अत्यंत शिष्ट एवं शालीन बर्ताव करते थे एवं समय-समय पर उनका सहयोग भी करते थे।उन्होंने इस मंदी से उबरने के लिए अनेक काम किये।
- अध्यक्ष सुदर्शन ने अपने पद पर रहते हुए एवं इसके बाद भी चंद्रशेखर से प्राप्त उदारता को अपने जीवन में उतार लिया था और अंत तक इस गुण के माध्यम से औरों की सेवा एवं सहायता की।एक शाम को अपने मुख्यालय में अपनों के बीच कहा-“जीवन में किसी के प्रति निष्करुण मत होना,सदा सहृदयतापूर्वक औरों की सेवा और उदारता का परिचय देना।”
- इसके दूसरे दिन,दिन में साढ़े ग्यारह बजे,इस जगत को सदा के लिए विदाई देकर कभी वापस न आने के लिए प्रस्थान कर गए,परंतु उनका जीवन औरों को सदा प्रेरित करता रहेगा।
- उपर्युक्त आर्टिकल में महान् गणितज्ञ की उदारता (Generosity of Great Mathematician),महान् गणितज्ञ द्वारा उदारता का संक्रमण (The Transition Generosity by The Great Mathematician) के बारे में बताया गया है।
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6.स्कूल टीचर को रजत व स्वर्ण पदक (हास्य-व्यंग्य) (Silver and Gold Medal to Teacher) (Humour-Satire):
- राघव:यह रजत पदक तुम्हें किसलिए मिला?
- गोविंद:स्कूल में छात्र-छात्राओं को बेहतरीन तरीके से गणित पढ़ाने तथा छात्र-छात्राओं को गणित में अंक अर्जित करने के कारण।
- राघव:और यह स्वर्ण पदक।
- गोविंद:कोचिंग सेंटर वालों ने स्कूल में बेहतरीन तरीके से गणित न पढ़ाने के लिए यह स्वर्ण पदक दिया है।
7.महान् गणितज्ञ की उदारता (Frequently Asked Questions Related to Generosity of Great Mathematician),महान् गणितज्ञ द्वारा उदारता का संक्रमण (The Transition Generosity by The Great Mathematician) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:
प्रश्न:1.गणित के प्रति रुचि जागृत करने के लिए क्या करना चाहिए? (What Should Be Done to Develop an Interest in Mathematics?):
उत्तर:अध्यापक-अध्यापिकाओं को अपने छात्र-छात्राओं को महान गणितज्ञों के प्रेरक प्रसंग,दृष्टांत,जीवनियां आदि प्रसंगवश सुनाने चाहिए।संगठनों जैसे मैथमेटिक्स ओलिंपियाड,ब्रिक्स इत्यादि को छात्र-छात्राओं हेतु पुरस्कार और छात्रवृत्ति जैसी योजना चलानी चाहिए ताकि वे गणित में आगे पढ़ने के लिए प्रेरित हो सकें।गणित में शोध कार्य करने के लिए उनमें रुचि जागृत हो सके।प्रेरणा,प्रोत्साहन के अभाव में कई गणितीय प्रतिभाएं खिलने से पहले ही मुरझा जाती है,बाल्यकाल में ही उनकी प्रतिभा दम तोड़ देती है।रिवॉर्ड,छात्रवृत्ति इत्यादि के द्वारा उनमें उत्साह का संचार होता है।सुविधाओं के अभाव में जो गणित के क्षेत्र में आगे नहीं बढ़ पाते हैं वे आगे बढ़ सकते हैं।उनकी गणित में रुचि जगाई जा सकती है।
प्रश्न:2.आदर्शवादी विचारों में रुचि कैसे पैदा की जा सकती है? (How Can Interest in Idealistic Ideas Be Created?):
उत्तर:बेशक आज आदर्शवादी विचारों को सुनने-समझने की अभिरुचि छात्र-छात्राओं और लोगों में नहीं है।वे इस प्रयत्न को उपेक्षा की दृष्टि से देखते हैं और उसे पढ़ने-सुनने से बचना चाहते हैं तो भी हमारा पुरुषार्थ कुछ रंग लावेगा ही।हम सच्चे मन से प्रयत्न करें तो अरुचि एवं उपेक्षा को गहरी दिलचस्पी में परिणत कर सकते हैं।यदि इतना कर लिया तो समझना चाहिए की बहुत बड़ी सफलता मिल गई।आदर्शवादी विचारों को सुनने-समझने में निरंतर रुचि लेने वाले यदि दो-चार व्यक्ति भी अपने मिलने वालों,मित्रों,घर या बाहर बना सकें और उन तक प्रेरक विचार को पहुंचाते रहने में संलग्न हो सकें तो समझना चाहिए कि हमारा प्रयास सार्थक है।
प्रश्न:3.उदार होने से क्या तात्पर्य है? (What Does It Mean to Be Generous?):
उत्तर:लोगों ने भले किसी धार्मिक ग्रंथ पढ़ने का नाम अध्यात्म और तिलक लगाने का नाम धर्म समझा हो,पर मनीषियों ने सदा से एक ही बात कही है कि धर्म और अध्यात्म उस प्रवृत्ति का नाम है,जिसमें व्यक्ति अपने पर संयम का नियंत्रण कठोर करता चला जाता है और दूसरों के प्रति उदार बनता जाता है।सेवा,धर्म का अविच्छिन्न अंग है।जो किसी की सेवा नहीं कर सकता,वह अधार्मिक है।जिसे अपने ही लाभ की बात सूझती है,जिसे दूसरों के दुःख-दर्द से कोई वास्ता नहीं,वह नास्तिक है।भले ही वह बाहरी दृष्टि से कितना ही बड़ा धर्माडंबर ओढ़े बैठा हो।
- उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा महान् गणितज्ञ की उदारता (Generosity of Great Mathematician),महान् गणितज्ञ द्वारा उदारता का संक्रमण (The Transition Generosity by The Great Mathematician) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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Satyam
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