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Entertainment is Necessary for Student

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1.छात्र-छात्राओं के लिए मनोरंजन आवश्यक है (Entertainment is Necessary for Student),छात्र-छात्राओं के लिए अध्ययन के दौरान मनोरंजन भी आवश्यक है (Entertainment is Also Necessary for Students During Studies):

  • छात्र-छात्राओं के लिए मनोरंजन आवश्यक है (Entertainment is Necessary for Student) क्योंकि मनोरंजन से अध्ययन में सरसता बनी रहती है,दिल और दिमाग खुश रहता है।परंतु यह मनोरंजन स्वस्थ होना चाहिए।मनोरंजन में कूड़ा-करकट नहीं होना चाहिए बल्कि शिक्षाप्रद व स्वस्थ संदेश देने वाला होना चाहिए।
  • इस लेख में बताया गया है कि छात्र-छात्राओं के लिए मनोरंजन क्यों आवश्यक है और मनोरंजन किन-किन माध्यमों से किया जा सकता है और किस प्रकार के मनोरंजन से सावधान रहना चाहिए।
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2.मनोरंजन क्यों आवश्यक है? (Why is entertainment necessary?):

  • अक्सर छात्र-छात्राओं पर अध्ययन करते-करते तनाव हावी हो जाता है।तनाव का न तो वे कारण समझ पाते हैं और न तनाव को दूर करने का उचित उपाय उन्हें सूझता है।इसके अलावा एक विषय का अध्ययन करते-करते अथवा लगातार अध्ययन करते रहने से उन्हें बोरियत और ऊब महसूस होने लगती है।अध्ययन से मन उचट जाता है और माता-पिता,अभिभावक तथा शिक्षकों द्वारा अध्ययन का दबाव बनाने से उन्हें खीझ उत्पन्न हो जाती है।
  • आज की गलाकाट प्रतिस्पर्धा में छात्र-छात्राओं को दिन-रात अध्ययन करना पड़ता है।परंतु अध्ययन कब तक किया जाए तथा अध्ययन की तकनीक क्या हो इसका ज्ञान न होने से वे परंपरागत रूप से बस अध्ययन करते रहते हैं।गणित के फाॅर्मूलों,प्रमेयों को रटते रहते हैं लेकिन ऐसा कब तक व किस तकनीक से किया जाए इसका ज्ञान न होने से मन बोझिल हो जाता है।उन्हें समझ में नहीं आता की मन का उपचार कैसे करें?
  • इसके अलावा सिरदर्द,चक्कर आना,जी मिचलाना, घबराहट होना,बेचैनी महसूस करना आदि कई समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।अतः इनका उपचार है कुछ समय मनोरंजन भी किया जाए।छात्र-छात्राओं के व्यक्तित्व के विकास के लिए शिक्षा,स्वास्थ्य,संपर्क और उपयुक्त वातावरण आवश्यक है,पर इन सभी साधनों को जीवित,जाग्रत रखने का मुख्य साधन है-मनोरंजन।स्वस्थ मनोरंजन के अभाव में मनुष्य का जीवन शुष्क,नीरस और कुटिल हो जाता है।आगे बढ़ने,तरक्की करने,कठिनाइयों से संघर्ष एवं विपरीत परिस्थितियों में भी क्रियाशीलता बनाए रखने के लिए शुद्ध मनोरंजन आवश्यक है।
  • मनोरंजन आत्मा की चाह है,इसीलिए तो जो व्यक्ति मनमौजी स्वभाव के होते हैं,जिनमें हास्य-विनोद का प्रवाह चलता रहता है,ऐसे व्यक्ति मन को बहुत भाते हैं।जो भी परिचित लोग होते हैं,वे ऐसे व्यक्तियों के पास बैठने के लिए लालायित बने रहते हैं।इससे पता चलता है कि धन,साधन,संपत्ति की अपेक्षा आल्हाद से आदमी को अधिक संतोष मिलता है।इस प्रकार का संतोष ही क्रियाशीलता की अभिनव प्रेरणा प्रदान करता है।
  • कठोर नियंत्रण,तप,व्रत,उपवास के माध्यम से मन को नियंत्रण में लाना कई बार तात्कालिक परेशानियों से बचा तो सकता है,पर जो कार्य मन के सहयोग से ही निपटाए जाते हैं,वे काम खूबसूरत भी होते हैं।मन को मित्र बनाकर काम लेने से वह काम बिल्कुल सरलता से हो सकते हैं जो कठोरतापूर्वक मनोनियंत्रण से काफी देर में और कष्टपूर्वक पूरे होते हैं।इसलिए मनुष्य के जीवन में मनोरंजन का सर्वाधिक महत्त्व है।
  • आर्किमिडीज,यूक्लिड,कार्लफेडरिक गौस,इसाक न्यूटन,अल्बर्ट आइंस्टीन,रेने देकार्त,सरदार वल्लभभाई पटेल,चार्ली चैपलिन,अब्राहम लिंकन,बर्टेंड रसेल,मार्कट्वेन डार्विन इत्यादि संसार के महान गणितज्ञों,वैज्ञानिकों एवं महापुरुषों के जीवन में अन्य बातें,मुख्य परिस्थितियाँ अलग-अलग रही होंगी,किंतु मनोरंजन का गुण सबमें एक जैसा रहा है।ये सभी लोग हास्य-विनोद में हमेशा अपने आपको तरोताजा किए रहते थे।लोग असमंजस में पड़ते हैं कि इन व्यक्तियों के जीवन में जो संघर्ष रहे,उनमें वे कैसे स्थिर बने रहे,किस प्रकार इतनी कठिनाइयों के बावजूद उनकी आत्मशक्ति स्वस्थ,सशक्त और क्रियाशील रही? यह उनका विनोदी स्वभाव ही रहा,जिसने प्रत्येक परिस्थिति में नया बल दिया।

3.मनोरंजन से लाभ (Profit from entertainment):

  • मनोरंजन से तनाव,बोरियत,ऊब तो दूर होती ही है और छात्र-छात्राएं तरोताजा व स्फूर्ति के साथ पुनः अध्ययन करने में जुट जाते हैं।मनोरंजन मन की गांठे खोल देता है स्वयं की ही नहीं दूसरे विद्यार्थी के मन की भी।जब मनोरंजन किया जाता है तो मन का बोझ हलका हो जाता है।मनमौजी,हंसमुख,विनोदी स्वभाव सर्वप्रिय बनने का सुलभ साधन है।इससे प्रतिष्ठा में वृद्धि होती है।जब कोई विद्यार्थी अथवा व्यक्ति मुस्कुराता है या अधिक हंसता है तो वह अपना जीवन हंसता-खेलता गुजार देता है,उसके जीवन में तनाव के क्षण गायब हो जाते हैं।
  • किसी व्यक्ति के हृदय में सहयोग,सहानुभूति और संवेदना की कितनी मात्रा है,इसकी पहचान इससे की जा सकती है कि वह व्यक्ति प्रफुल्ल रहता है या नहीं।जो हंस सकता है,वही औरों को हंसा सकता है।औरों के दिल का दर्द जान सकता है।मुस्कान प्रेम की भाषा है।
  • दुःख इस बात का है कि गरीबी,अशिक्षा और संकीर्णता के कारण जन-सामान्य या तो मनोरंजन के महत्त्व को समझते नहीं अथवा उसे हेय दृष्टि से देखते हैं।अशुद्ध मनोरंजन की ओर आकर्षित होकर शक्ति,साधन तथा समय का दुरुपयोग करते हैं।उद्योगीकरण के प्रसार के साथ-साथ आज का जीवन अत्यंत व्यस्त और संघर्षमय होता जा रहा है।उधर स्वस्थ मनोरंजन के अभाव में आत्मिक दुर्बलताएं बढ़ती जा रही है,इसलिए प्रत्यक्ष प्रगति और भौतिक लाभों के होते और बढ़ते हुए भी लोग दुखी हैं।अतः जन-सामान्य के लिए स्वस्थ मनोरंजन की व्यवस्था करना बहुत आवश्यक है।
  • स्वस्थ मनोरंजन वह है जो मन के अतिरिक्त शारीरिक शक्ति और स्वभाव को भी रंजित करें,शुद्ध करे तथा जिसमें अश्लीलता,कामुकता,दूसरों की खिल्ली उड़ाने का भाव मौजूद न हो।इस दृष्टि से खेलकूद जैसे-वॉलीबॉल,फुटबॉल,हॉकी,कुश्ती,कबड्डी,क्रिकेट,तैरना,दौड़ लगाना,सांस्कृतिक कार्यक्रम नृत्य,संगीत,वाद्य,बौद्धिक आयोजन-अंत्याक्षरी,वार्तालाप,वाद-विवाद,लेख,कविता प्रतियोगिताएं,हास्य-व्यंग्य,हंसगुल्ले,ठहाके ये सब शुद्ध और उत्पादक मनोरंजन हैं।सफाई,सजावट,श्रृंगार ये भी मनोरंजन के ही अंग हैं,ये सभी गुणकारी और लाभकारी भी हैं।
  • भारतीय संस्कृति के अनेक तत्वों में संस्कारों का महत्त्व भी इसी दृष्टि से है।इनका उद्देश्य मन और आत्मा की सृजनशक्तियों का उद्बोधन करना होता है।वे जिस रीति-नीति पर आधारित हैं,उसे स्वस्थ मनोरंजन ही कहा जा सकता है।स्वस्थ मनोरंजन से छात्र-छात्राओं की मस्तिष्कीय ग्रहणशीलता बढ़ जाती है और विद्यार्थियों द्वारा किया हुआ अध्ययन हृदयंगम हो जाता है।स्वस्थ मनोरंजन में छात्र-छात्राओं के दिमाग की ग्रहणशीलता तो बढ़ती ही है साथ ही मस्तिष्क तरोताजा हो जाता है।स्वस्थ मनोरंजन का एक और लाभ है कि इससे छात्र-छात्राओं को गंभीर,शिक्षाप्रद संदेश भी सीखने को मिलता है।परंतु यह गंभीर,स्वस्थ तथा शिक्षाप्रद संदेश गौर से देखने पर ही दिखाई देता है क्योंकि यह संदेश उसमें छिपा हुआ होता है।ऊपरी तौर से देखने और सुनने पर दिखाई नहीं देता है परंतु ध्यानपूर्वक देखने और गौर करने पर दिखाई दे जाता है।

4.अस्वस्थ मनोरंजन (Unhealthy entertainment):

  • संस्कारित मनोरंजन का ज्ञान न होने के कारण लोग विकृति की ओर आकर्षित हो गए हैं।’काम’ (sex) मनोरंजन है,पर वह शुद्ध नहीं है क्योंकि छात्र-छात्राओं के लिए काम (sex) वर्जित है,ब्रह्मचर्य का पालन आवश्यक है।काम (sex) छात्र-छात्राओं के ध्यान को भटका देता है,उनका ध्यान अध्ययन से हटकर सेक्स की ओर हो जाता है साथ ही वह शारीरिक शक्ति को कम करता है।इसे मनोरंजन की आम-परिभाषा मान लेने के कारण समाज में शारीरिक,मानसिक और आत्मिक दुर्बलता के ही द्वार नहीं खुलते बल्कि चारित्रिक तथा नैतिक दुर्बलताएं भी तेजी से बढ़ी हैं।जनसंख्या बढ़ना स्वस्थ मनोरंजन की अवहेलना से ही हुआ है।यह देखकर कोई भी कह सकता है कि व्यक्ति ही नहीं,समाज और राष्ट्र के उत्थान के लिए भी संस्कारित मनोरंजन की अत्यधिक आवश्यकता है।
  • आज के विद्यार्थियों और युवावर्ग पर यह आरोप लगाया जाता है कि उनमें स्वच्छंदता,अनुशासनहीनता,व्यर्थ घूमने,गप लगाने,रेडियो सुनने,सिनेमा देखने की बुरी आदतें बढ़ने से समाज का अहित हो रहा है।बात सही है, किंतु अपराधी ये लोग (विद्यार्थी) नहीं है।प्रारंभ से ही अभिभावकों की यही कमी ही उन्हें इन अवांछित दिशाओं में प्रेरित करती है।उन्हें स्वस्थ मनोरंजन से वंचित रखा जाता है।बच्चों को तो आत्मिक आल्हाद चाहिए,आपने दिशा न दी,उसने स्वयं ढूंढ ली।यदि गलत ढूंढी तो दोष आपका है,क्योंकि आपने उसका शुद्ध मार्गदर्शन नहीं किया।

5.मनोरंजन सभी के लिए आवश्यक (Entertainment essential for all):

  • मनोरंजन का आपके अपने बच्चों के लिए भी असाधारण महत्त्व है,पर उसको मनोवैज्ञानिक और सामाजिक स्वस्थ परंपराओं का ज्ञान होना भी आवश्यक है।मनोरंजन तो अंतश्चेतना को प्रबुद्ध कर सकता है,वही उपयोगी भी है और आवश्यक भी।रचनात्मक मनोरंजन चाहे वह वाणी-विनोद हो अथवा खेलकूद,उसी से मन के बोझ को हटाकर उसे हल्का रखना संभव होता है।
    यदि ये स्वस्थ परंपराएं विकसित होंगी तो सामाजिक एकता बढ़ेगी।स्वास्थ्य सुधार की सृजनात्मक दिशा मिलेगी।आक्रामक भावनाओं का शमन होगा।नेतृत्व के गुणों का विकास होगा।
  • मनोरंजन के अभाव में विचारों के आदान-प्रदान का अवसर नहीं बनने पाता।अनैतिक कार्यों को प्रोत्साहन मिलता है।जनसंख्या में वृद्धि का मूल कारण ही स्वस्थ मनोरंजन का अभाव है।लोगों ने काम-प्रवृत्ति को ही मुख्य मनोरंजन समझ लिया है।यदि परिवार नियोजन में लगाए जा रहे विपुल खर्च को स्वस्थ मनोरंजनों के विकास में लगाया जा सके तो प्रजनन में वृद्धि का औसत निस्संदेह कम हो सकता है।
  • अतएव मनोरंजन के साधनों का विकास व्यक्ति और समाज ही नहीं राष्ट्र के विकास के लिए भी आवश्यक है।इसकी उपेक्षा नहीं की जानी चाहिए।

6.मनोरंजन के मुख्य साधन (Main means of entertainment):

  • यों तो स्वस्थ मनोरंजन का संक्षिप्त रूप से उल्लेख किया जा चुका है।यहाँ कुछ मुख्य माध्यमों का उल्लेख किया जाएगा जिनके द्वारा आप मनोरंजन का लुत्फ उठा सकते हैं।
  • वेबसाइट पर हास्य-व्यंग्य:इस वेबसाइट पर जो भी प्रेरणाप्रद लेख पोस्ट किया जाता है उसमें हास्य-व्यंग्य का एक चुटकुला होता है।यह चुटकुला आपको गुदगुदाने के साथ-साथ इसमें प्रेरक शिक्षाप्रद संदेश भी छिपा हुआ होता है।जागरूक विद्यार्थी उसको पढ़कर न केवल अपना मनोरंजन कर सकते हैं बल्कि इसमें छिपे हुए संदेश से कुछ सीख भी ले सकते हैं।
  • पुस्तकें:कुछ हास्य,मनोरंजन पर स्वस्थ पुस्तकें भी प्रकाशित हो चुकी हैं।उन्हें पढ़कर विद्यार्थी अपना मनोरंजन कर सकते हैं और अध्ययन के दौरान पैदा होने वाली नीरसता को सरसता में बदल सकते हैं।
  • सिनेमा:सिनेमा आधुनिक समय की देन है।अपने आरंभिक दिनों से ही सिनेमा समाज से जुड़ा हुआ रहा है।आज यह समाज का एक आवश्यक अंग बन गया है।युवावर्ग के लिए यह प्रमुख आकर्षण का केंद्र है।सिनेमा समाज के विचार,भाव,परंपरा आदि के सूक्ष्म तारों का स्पर्श करता है।जब मनोरंजन का यह साधन स्वस्थ एवं प्रगतिशील होता है,तो समाज उन्नत एवं विकसित होता है,परंतु इसकी विकृति का दंश समूचे समाज को उठाना पड़ता है,जिसका ज्वलंत उदाहरण है आज का आधुनिक समाज।
  • सिनेमा एक मनोरंजन का साधन भी है।मनोरंजन को चरित्रवान होना चाहिए।यही उसका वास्तविक स्वरूप भी है।जिस मनोरंजन का उत्कृष्ट चरित्र नहीं होता,उसका प्रभाव विनाशक हो सकता है।अतः सिनेमा को,मन को स्वस्थ बनाए रखकर उसकी रुचि को उच्चस्तरीय बनाना चाहिए।सिनेमा का कार्य है कि लोगों की पसंद को बदले,परिष्कृत बनाए और क्रियात्मक व सृजनशील रखे।
  • सिनेमा समाज के पथ-प्रदर्शक की भूमिका निभा सकता है।उसे सदैव समाज के प्रति ईमानदार व जिम्मेदार होना चाहिए।सामाजिक परिवर्तन में सिनेमा की भूमिका नजर-अंदाज नहीं की जा सकती,हालांकि उसकी एक सीमा है।
  • छात्र-छात्राओं को ध्यान रखना चाहिए कि वे शिष्ट,शालीन,उत्तम चरित्र को बढ़ावा देने वाली,शिक्षाप्रद तथा स्वस्थ संदेश देने वाली मूवी (फिल्में) ही देखें और वे भी एक सीमित समय के लिए।क्योंकि अधिक समय देखते रहने पर आपका अध्ययन के काम आने वाला समय बर्बाद हो जाएगा।आज की इस गलाकाट प्रतिस्पर्धा में वैसे ही छात्र-छात्राओं के पास इतना समय नहीं होता की पूरी मूवी (फिल्में) देखते रहें।उन्हें अध्ययन में बदलाव के लिए,मन की बोरियत,ऊब को हटाने के लिए मनोरंजन की आवश्यकता होती है अतः इस बिंदु को ध्यान में रखकर ही सिनेमा देंखे।इसके अलावा भी खेलकूद,संगीत आदि अनेक मनोरंजन के साधन हैं।छात्र-छात्रा अपनी रुचि के अनुसार मनोरंजन के साधन का चयन कर सकते हैं।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में छात्र-छात्राओं के लिए मनोरंजन आवश्यक है (Entertainment is Necessary for Student),छात्र-छात्राओं के लिए अध्ययन के दौरान मनोरंजन भी आवश्यक है (Entertainment is Also Necessary for Students During Studies) के बारे में बताया गया है।

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7.अपना-अपना दृष्टिकोण (हास्य-व्यंग्य) (Own Perspectives) (Humour-Satire):

  • झगड़े के बीच छात्र बोला:स्कूल में प्रवेश के पहले साल आप मुझे गुरुदेव लगे,दूसरे साल गुरु और अब तो एकदम गुरुघंटाल नजर आते हो।
  • शिक्षक तपाक से बोला और तुम पहले साल मुझे नेक विद्यार्थी नजर आए,दूसरे साल सिर्फ विद्यार्थी नजर आए और अब तो एकदम विद्या की अरथी उठाने वाले लगते हो।समझे?

8.छात्र-छात्राओं के लिए मनोरंजन आवश्यक है (Frequently Asked Questions Related to Entertainment is Necessary for Student),छात्र-छात्राओं के लिए अध्ययन के दौरान मनोरंजन भी आवश्यक है (Entertainment is Also Necessary for Students During Studies) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.मनोरंजन से क्या तात्पर्य है? (What do you mean by entertainment?):

उत्तर:मनोरंजन अर्थात् जो मन को श्रेष्ठ कार्य,आदर्श,उत्तम चरित्र की ओर ले जाता हो।मनोरंजन में नवीनता होनी चाहिए तथा मन को आल्हाद करता,खुश करता हो (स्वस्थ,शिक्षाप्रद संदेश से)।

प्रश्न:2.व्यर्थ के कार्य कौनसे हैं? (What are useless tasks?):

उत्तर:विद्यार्थियों द्वारा घंटों सोशल साइट्स पर चैटिंग करना,फोन पर लंबी-लंबी बातें करना,दोस्तों से बिना उद्देश्य के गप्पे मारना,बहुत अधिक टेलीविजन,सिनेमा देखना,बहुत अधिक सोना आदि व्यर्थ के कार्य हैं।परंतु एक सीमा तक मनोरंजन में खर्च किया गया समय व्यर्थ समय नहीं है।

प्रश्न:3.क्या अध्ययन को मनोरंजन बनाया जा सकता है? (Can study be made entertainment?):

उत्तर:मनोरंजन,मनः+रंजन से बना है जिसका अर्थ है मन को प्रसन्न करने वाला।अतः ऐसा उत्तम,स्वस्थ साहित्य,कोर्स की पुस्तकें भी मन लगाकर एकाग्रतापूर्वक पढ़ी जाए तथा अध्ययन को साधना समझकर किया जाए तो यह मनोरंजन ही है।दरअसल किसी कार्य में बोरियत,ऊब तब पैदा होती है जब हम किसी कार्य को भार समझकर करते हैं,दिल से नहीं करते हैं।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा छात्र-छात्राओं के लिए मनोरंजन आवश्यक है (Entertainment is Necessary for Student),छात्र-छात्राओं के लिए अध्ययन के दौरान मनोरंजन भी आवश्यक है (Entertainment is Also Necessary for Students During Studies) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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