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Don’t Let Escapist Tendencies Flourish

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1.पलायनवादी प्रवृत्ति को न पनपने दें (Don’t Let Escapist Tendencies Flourish),छात्र-छात्राएँ हार स्वीकार न करें (Students Should Not Accept Defeat):

  • पलायनवादी प्रवृत्ति को न पनपने दें (Don’t Let Escapist Tendencies Flourish) में पलायन का अर्थ है कि छात्र-छात्राओं द्वारा अध्ययन में आने वाली कठिनाइयों,वास्तविकताओं एवं जिम्मेदारी आदि से दूर भागने की प्रवृत्ति।विद्यार्थियों के समक्ष अध्ययन करते समय या जीवन में कठिनाइयां,समस्याएं तो आएंगी ही क्योंकि इनसे ही हमारे व्यक्तित्व का निर्माण होता है।
  • कठिनाइयों और समस्याओं को हल करते समय हमें संघर्ष करना पड़ता है,कष्टों,तकलीफों को सहन करना होता है ऐसी स्थिति में अध्ययन से घबराकर हिम्मत हार जाना और अध्ययन के क्षेत्र को छोड़ना कायरता है।
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2.समस्याएं जीवन का अंग (Problems are part of life):

  • विद्यार्थी जीवन पूरे जीवन के निर्माण की नींव का कार्य करता है।अक्सर कठिन समझे जाने वाले विषय गणित,विज्ञान आदि को पढ़ते समय अनेक जटिलताओं,समस्याओं का सामना करना पड़ता है।इनका समाधान करने,हल करने के लिए हमें संघर्ष करना होता है।अपनी कमजोरियों को दूर करना,अपने को योग्य बनाना,सक्षम बनाना ताकि आप समस्याओं को हल कर सकें,संघर्ष के पथ से गुजरना ही होता है।संघर्ष करने से हम अपने आपको योग्य और सक्षम बनाते हैं जबकि उनसे पलायन करने,भागने से हमारी कमजोरी दूर होने के बजाय और अधिक बढ़ती है।
  • उदाहरणार्थ गणित विषय कठिन लगता है तो कुछ छात्र-छात्राएं सोचते हैं कि आगे गणित,ऐच्छिक विषय के रूप में लेना ही नहीं है।अध्ययन में कठिनाई महसूस होती है तो ऐसे छात्र-छात्राएं जाॅब करने की सोचते हैं और अध्ययन को बीच में ही विराम दे देते हैं।क्या जॉब करते समय,जाॅब में कोई कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ेगा,संघर्षों और कष्टों से गुजरना नहीं पड़ेगा।किसी भी कार्य में महारत हासिल करने के लिए संघर्षों और कष्टों से गुजरना ही पड़ेगा।
  • यह हो सकता है कि किसी छात्र-छात्रा को अधिक संघर्षों और कष्टों से गुजरना पड़ता है और किसी छात्र-छात्रा को कम,परंतु गुजरना जरूर पड़ता है।यदि आपमें पहले से ही योग्यता और क्षमता है (पूर्व जन्म के कर्मों के फलस्वरूप) और आपने अपना विषय या क्षेत्र भी ऐसा चुना है जिसमें समस्याएं और कठिनाइयां कम हैं तो आपको संघर्ष कम करना पड़ेगा पर करना जरूर पड़ेगा।दरअसल संसार एक प्रयोगशाला है इसमें हमारी योग्यता व क्षमता की परख होती है।इस परख में सफलता अथवा असफलता मिल सकती है।
  • परंतु यदि असफलता,संघर्षों और कष्टों से घबराकर हम पलायन कर जाएँ,मैदान छोड़कर भाग खड़े हों तो यह हमारी कमजोरी व कायरता को सिद्ध करता है।परंतु इसमें दोष छात्र-छात्राओं का ही नहीं होता है बल्कि माता-पिता,शिक्षकों का भी दोष होता है जो जीवन के संघर्षों,ऊंच-नीच,वास्तविकताओं से उन्हें परिचित नहीं कराते,चलना नहीं सिखाते अथवा उनके द्वारा की गई शिकायतों पर गौर नहीं करते हैं।
  • छात्र-छात्राएं अपरिपक्व होते हैं जबकि माता-पिता,शिक्षक तथा मार्गदर्शक परिपक्व होते हैं इसलिए उनकी जिम्मेदारी अधिक बनती है कि समय रहते छात्र-छात्राओं को निगाह रखे और जहां आवश्यक हो वहां उचित मार्गदर्शन तथा सहयोग करके उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करें।वरना फिर से ऊपर पानी निकल जाए अर्थात छात्र-छात्राएं जीवन क्षेत्र से पलायन कर जाएँ तो फिर ध्यान देने का क्या फायदा? का वर्षा जब कृषि सुखाने? अर्थात् समय निकल जाने पर वर्षा होने का क्या फायदा?

3.पलायनवादी प्रवृत्ति के परिणाम (Consequences of escapist tendencies):

  • जिन छात्र-छात्राओं की सोच पलायनवादी हो जाती है उनका जीवन नीरस,बोझिल,दिग्भ्रमित और कुंठाओं से ग्रस्त हो जाता है।ऐसे छात्र-छात्राएं जिस क्षेत्र में भी थोड़ी-सी कठिनाई आती है उसे छोड़ देते हैं और कुछ अलग,नया करने की सोचते हैं।नए क्षेत्र में परेशानी आती है तो उससे भी पलायन कर जाते हैं।इस प्रकार के छात्र-छात्राएं निराश,कुंठित हो जाते हैं।वे जो भी क्षेत्र चुनते हैं उसमें समस्याएं ही समस्याएं नजर आती है परंतु उनका समाधान नजर नहीं आता है।पलायन की यह प्रवृत्ति छात्र-छात्राओं के भविष्य को अंधकारमय बना देती है अथवा चौपट कर देती है।
  • कुछ छात्र-छात्राएं तो गलत दिशा पकड़ लेते हैं।मादक द्रव्यों,शराब आदि का नशा करने लगते हैं तथा अपराध जगत की ओर कदम बढ़ा देते हैं।ऐसे छात्र-छात्राएं अध्ययन करके अच्छा नहीं कर पाते हैं,अध्ययन में संघर्ष और कष्ट दिखाई देते हैं परंतु सांसारिक आकर्षण उन्हें लुभाते हैं।सांसारिक सुख-सुविधाओं का भोग करने के लिए ऐसे छात्र-छात्राएं चोरी,डकैती,अपहरण,हत्या,लूटपाट,दंगे-फसाद करके सुख-सुविधाओं का भोग करते हैं।परंतु जब वे पकड़े जाते हैं तो उनका जीवन बर्बाद हो जाता है।गलत रास्तों पर चलने के बाद वापिस लौटना और सही रास्ते का चुनाव करना बहुत मुश्किल हो जाता है।
  • ऐसे बच्चों को सामाजिक रूप से प्रताड़ना झेलनी पड़ती है।ऐसे बच्चे गलत संगत के कारण बिगड़ जाते हैं।उनके माता-पिता की आंखें तब खुलती है तो उनके अपराधों और गलत संगत का कच्चा चिट्ठा खुल जाता है।पर तब तक वे इतने बिगड़ चुके होते हैं की माता-पिता व अभिभावक के लाख प्रयत्न करने पर भी सही रास्ते पर नहीं आ पाते हैं।अभिभावकों को इन बिगड़ैल बच्चों के कारण समाज व संबंधियों के सामने नीचे देखना पड़ता है।
  • कुछ बच्चे अध्ययन में आनेवाली कठिनाइयों से घबराकर निष्क्रिय हो जाते हैं।ऐसे बच्चे नाम मात्र के लिए अध्ययन करते हैं।उनकी रुचि अध्ययन करने में नहीं रहती है।वे आलसी,निकम्मे और कामचोर हो जाते हैं।इस प्रकार के बच्चे एकाकी जीवन व्यतीत करने लगते हैं।
  • परंतु माता-पिता,अभिभावकों व छात्र-छात्राओं को घबराने की जरूरत नहीं है।इस लेख में ऐसे व्यावहारिक सुझाव दिए गए हैं जिन पर अमल करके आप पलायनवादी प्रवृत्ति से बच्चों को बचा सकते हैं।

4.बच्चों को पलायनवादी होने से कैसे बचाएं? (How to protect children from being escapists?):

  • माता-पिता,अभिभावकों को थोड़ा सजग और सतर्क रहने की आवश्यकता है।बच्चों को ना तो अत्यधिक लाड़-प्यार करें और न उनकी बिल्कुल उपेक्षा करें।यदि आप (माता-पिता व अभिभावक) कामकाजी हैं तो भी अपने बच्चों के लिए कुछ समय अवश्य निकालें और उनके साथ कुछ समय बिताएं।बच्चों को अध्ययन तथा जीवन में आने वाली कठिनाइयों का समाधान करने की तकनीक बताएं जिससे वे स्वयं संघर्ष करके,कष्टों का सामना करके निखर सकें।
  • गणित तथा अन्य विषयों में माता-पिता व अभिभावक सहयोग कर सकते हैं तो अवश्य करें,केवल शिक्षा संस्थान व ट्यूटर के भरोसे ना रहे।यदि आप समाधान नहीं कर सकते हैं तो उन्हें अपने मित्रों से सहयोग करने के लिए प्रोत्साहित करें।उन्हें यदि सहयोग लेने में संकोच का अनुभव हो तो उन्हें समझाएं कि सहयोग लेने से कोई भी छोटा-बड़ा नहीं हो जाता और न ही उसका मान-सम्मान या प्रतिष्ठा कम होती है।दूसरों के सहयोग के बिना कोई भी व्यक्ति उतनी प्रगति नहीं कर सकता है,जितनी कि वह दूसरों से सहयोग लेकर कर सकता है।हां दूसरों से सहयोग लें तो उनका आभार अवश्य व्यक्त करें,यह शिष्टाचार का तकाजा है।
  • बच्चों के प्रति सजग और सतर्क रहने से बच्चों को पलायनवादी सोच से बचाएगी,वहीं बच्चे अपने भविष्य के प्रति जागरूक होकर भविष्य का निर्माण करने के बारे में सोचेंगे।ऐसे बच्चों के जीवन में सफलताएं सुनिश्चित होंगी।
  • बच्चों को उनकी असफलता के लिए प्रताड़ित अथवा अपमानित न करें।प्रताड़ना बच्चों को अंदर ही अंदर से तोड़ देती है तथा वे विवेकहीन होकर कोई भी गलत कदम उठा सकते हैं।
  • बच्चों के साथ मारपीट,गाली-गलौच न करें,उन्हें अपमानित करने वाले शब्द जैसे मूर्ख,बुद्धू,निकम्मा,कामचोर आदि की भाषा का प्रयोग ना करें।
  • बच्चों की समस्याओं,कठिनाइयों में सहयोगी बनें और उनके विचारों को भी महत्त्व दें।
  • यदि बच्चों से जाने-अनजाने कोई भूल,गलती अथवा हानि हो गई हो,तो उसे इसका अहसास अवश्य कराएं,लेकिन इसके लिए उन्हें कठोर सजा न दें।उन्हें सुधरने का पूरा मौका दें।
  • बच्चों में हत्या,चोरी,डकैती,अपहरण,झूठ,बहानेबाजी,चुगली आदि किसी भी छोटे-बड़े अपराध के लिए उन्हें बढ़ावा न दें क्योंकि ये प्रवृत्तियां बच्चों में पलायनवादी सोच को विकसित करती है।इसलिए बच्चों में पड़ी इन तमाम आदतों से छुटकारा दिलाने की सोच पालें।
  • बच्चों को फिल्मी दुनिया तथा वास्तविक दुनिया की सच्चाइयों से अवगत कराएं।फिल्मों,मूवी,इंटरनेट तथा सोशल मीडिया का जीवन,वास्तविक जीवन की सच्चाईयाँ प्रकट नहीं करता है और वास्तविक जीवन की सच्चाईयों से उनका मेल नहीं खाता।इसलिए जीवन की वास्तविकताओं को स्वीकारें।
  • बच्चों को इस सत्य से भी परिचित करा दें कि दुनिया में ऐसे लोगों की कमी नहीं,जो अपनी चिकनी-चुपड़ी बातों द्वारा दूसरों की कमजोरियों और कमियों से लाभ उठाते हैं।बहला-फुसलाकर अपना उल्लू सीधा करते हैं।उनके साथ छल-कपट करते हैं।ऐसे लोगों से सावधान रहने की आवश्यकता है।उनकी बातों में आकर घर से पलायन करने की मूर्खता न करें।
  • बच्चों को असफलता मिलने पर उनकी आलोचना या भर्त्सना ना करें बल्कि असली कारण को जानकर उसे दूर करने की भरसक चेष्टा करें।
  • बच्चों को सृजनात्मक कार्यों की तरफ मोड़े और उन्हें कुछ सृजनात्मक कार्य करने के लिए प्रेरित करते रहें।ताकि बच्चा तरक्की के रास्ते अपने दम पर तय कर सके और आगे बढ़ने की तकनीक सीख सके।
  • बच्चों को केवल अच्छे से अच्छे स्कूल में प्रवेश दिलाने,अच्छा भोजन,आवास व कपड़े तथा भरपूर जेब खर्च,घर में पढ़ने के लिए ट्यूटर आदि की व्यवस्था से ही बच्चा आगे नहीं बढ़ता है।जब तक बच्चा संघर्षों और कष्टों को सहनकर उनसे नहीं गुजरेगा तब तक उसके व्यक्तित्व व भविष्य का निर्माण नहीं हो सकता है।अतः अत्यधिक साधन-सुविधाएँ उपलब्ध कराने के बजाय उन्हें कुछ कष्ट व कठिनाईयाँ सहन करने दें।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में पलायनवादी प्रवृत्ति को न पनपने दें (Don’t Let Escapist Tendencies Flourish),छात्र-छात्राएँ हार स्वीकार न करें (Students Should Not Accept Defeat) के बारे में बताया गया है।

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5.कमाल हो गया (हास्य-व्यंग्य) (Awesome) (Humour-Satire):

  • एक छात्र (दूसरे छात्र से):देख यार आजकल की शिक्षा में कमाल हो रहा है।जो अध्ययन करते हैं,बहुत मेहनत करते हैं उनको जाॅब मिलना मुश्किल है।और जो नकल करके फर्जी डिग्री प्राप्त करके उत्तीर्ण हो रहे हैं उन्हें जाॅब (पेपर माफिया से) आसानी से मिल जाता है।

6.पलायनवादी प्रवृत्ति को न पनपने दें (Frequently Asked Questions Related to Don’t Let Escapist Tendencies Flourish),छात्र-छात्राएँ हार स्वीकार न करें (Students Should Not Accept Defeat) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.सफल कैसे हुआ जा सकता है? (How can one be successful?):

उत्तर:पलायनवादी सोच से नहीं बल्कि निष्ठा और बुद्धिमत्तापूर्ण किए गए कार्य से सफल अवश्य होता है।सहनशीलता,धैर्य,एकाग्रता,दृढ़ संकल्प शक्ति और तीव्रता उत्कण्ठा-यह सब सद्गुण सफल होने के लिए आवश्यक है।

प्रश्न:2.क्या सफल होना छात्र-छात्रा के हाथ में है? (Is it in the hands of the student to succeed?):

उत्तर:अध्ययन में,जॉब में अथवा सांसारिक जीवन के किसी भी कार्य में सफल-असफल होना हमारे हाथ में नहीं है।हमारे हाथ में सिर्फ कर्म करना है,कर्म को पूरे दिल से,पूर्ण एकाग्रता से किया जाए यही हमारे हाथ में है।सफल होना,असफल होना भगवान के विधि-विधान के अनुसार होता है।इसलिए इनसे अप्रभावित होकर अपना कार्य करते रहना चाहिए।

प्रश्न:3.अर्जुन की दो प्रतिज्ञा कौन सी थी? (What were Arjuna’s two vows?):

उत्तर:दीनता यानी हार न स्वीकार करना और पलायन न करना अर्थात् कर्मक्षेत्र छोड़कर न भागना।ये दोनों प्रतिज्ञा अर्जुन की थी।आधुनिक युग में भी हर क्षेत्र तथा हर छात्र-छात्रा के लिए इन दोनों प्रतिज्ञाओं का महत्त्व प्रासंगिक है।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा पलायनवादी प्रवृत्ति को न पनपने दें (Don’t Let Escapist Tendencies Flourish),छात्र-छात्राएँ हार स्वीकार न करें (Students Should Not Accept Defeat) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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