Do Not Think Bad of Anyone
1.किसी का बुरा न सोचें (Do Not Think Bad of Anyone),युवावर्ग किसी का बुरा क्यों न सोचें? (Why Don’t Young People Think Badly of Someone?):
- किसी का बुरा न सोचें (Do Not Think Bad of Anyone) क्योंकि किसी का बुरा सोचने तथा चिंतन करने से दूसरों को तो कोई फर्क नहीं पड़ता है परंतु हमारा स्वयं का चिंतन व चरित्र दूषित हो जाता है।यदि छात्र-छात्राएं एक-दूसरे के बारे में बुरा चिंतन करते हैं तो उनका ध्यान अध्ययन से हटकर दूसरों का बुरा सोचने की तरफ केंद्रित हो जाता है।इसके दो नुकसान हैं।पहला दूसरों का बुरा सोचने से आपका समय नष्ट होता है और दूसरा आपकी मनोवृत्ति दूषित होती जाती है,आपकी वृत्ति दुर्गुणों को अपनाने की ओर अग्रसर होती है।
- बुरी भावना शुरू में राहगीर की तरह होती है,फिर वह किराएदार की तरह होती है और अंत में घर के मालिक की तरह हो जाती है।किसी व्यक्ति,विद्यार्थी का बुरा सोचने की बजाय यदि आपका किसी बात को लेकर मतभेद है या विरोध है तो उसके बारे में बुरा सोचने की बजाय कह देना ज्यादा उचित है।
- यदि आप जिसका बुरा सोचते हैं वह व्यक्ति दुर्जन है तो स्वाभाविक ही आपको उससे कुछ भी कहना व्यर्थ है।अतः दुर्जन व्यक्ति से दूर ही रहना चाहिए तथा अपना चिंतन व चरित्र को अच्छा रखना चाहिए।
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2.दूसरों का बुरा सोचने से खुद का ही नुकसान (Thinking Bad of Others Harms Yourself):
- किसी व्यक्ति की उसके सम्मुख उसकी बुराई करना,उतना पाप नहीं,जितना अपने मन में उसके प्रति बुरा सोचना।क्योंकि बुराई तो उस व्यक्ति के अवगुणों को देखकर की जाती है,जिसकी आलोचना करना कोई अपराध अथवा पाप नहीं है।परंतु उसके प्रति अपने मन में बुरे विचार रखना अथवा उसका अनिष्ट साधना,किसी-किसी पर कुदृष्टि रखने का अर्थ यह होगा कि आपके मन में पाप है,आप उस व्यक्ति से अनुचित लाभ उठाना चाहते हैं,आप अपनी आत्मा की पुकार के विरुद्ध कार्य करना चाहते हैं,जो किसी भी दृष्टिकोण से एक महान अपराध है।
- दूसरों का बुरा सोचने में,उनका अनिष्ट चाहने में कुछ लाभ भी नहीं होता,अपितु अपनी ही हानि होती है।देखने में हमें चाहे कुछ लाभ प्रतीत होता हो परंतु वास्तव में हमें प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में एक महान क्षति पहुंचती है।
- हम किसी का बुरा सोचते हैं तो उस बात को किसी न किसी से कह देते हैं और वह बात अंततः संबंधित व्यक्ति तक पहुंच जाती है।वह व्यक्ति आपको अपना विरोधी अथवा शत्रु समझने लगता है।आपकी आत्मा भी आपको धिक्कारती है।हमेशा यह डर बना रहता है कि उससे कभी लड़ाई-झगड़ा न हो जाए।अपनी सबसे बड़ी हानि तो वह यह करता है कि वह अपना एक विरोधी या शत्रु खड़ा कर लेता है जो कभी भी मौका देखकर आपको नुकसान पहुंचा सकता है।अब आप ही सोच सकते हैं कि उसे लाभ हुआ या हानि।
- किसी व्यक्ति के प्रति बुरी भावना रखने से अपनी ही हानि अधिक होती है,उस व्यक्ति को तो पता तक नहीं होता कि कोई उसके बारे में बुरे विचार रखता है,किसी के प्रति ईर्ष्या भाव हो तो स्वयं ईर्ष्या करने वाले का ही रक्त जलता है तथा मानसिक विचारणा ही दूषित होती है।मन अशांत रहने पर भी दिनचर्या पर बुरा प्रभाव पड़ता है।दूसरों का अनिष्ट चाहने वाला पहले अपनी ही हानि करता है।
- कहावत भी है कि जो दूसरों के लिए गड्ढा खोदता है,पहले स्वयं ही उसमें गिर जाता है।जब हम जानते हैं कि दूसरों से द्वेष करने पर,उनका बुरा सोचने पर एवं उनका अनिष्ट चाहने पर हमको महान क्षति पहुंचेगी,हमारी आत्मा दूषित हो जाएगी,हम भगवान की दृष्टि में अपराधी बन जाएंगे,हमें कहीं भी शांति न मिलेगी तो फिर हम दूसरों के प्रति कुविचार क्यों रखें? किसी से द्वेष क्यों करें? और यदि हम सब जानते हुए भी दूसरों से द्वेष करते हैं,उनका अनिष्ट चाहते हैं तो वह एक बड़ी मूर्खता की बात होगी।
- आग जहां रखी जाती है,पहले उस स्थान को गर्म करती और जलाती है।तेजाब यदि साधारण धातु के बर्तन में रखा गया है तो पहले उसे ही नष्ट करेगा।इसी प्रकार द्वेष और दुर्भाव,पाप और कुविचार जिसके मन में रहते हैं,पहले उसी का अनिष्ट करते हैं।जब वे जमे रहते हैं,तब तक निरंतर उस व्यक्ति की हानि करते हैं।जिसके लिए दुर्भाव रखे जाते हैं,उसको तो उसकी शतांश हानि भी नहीं पहुंच पाती,जितनी की अपनी होती है।
3.बुरा सोचने का दीर्घकालिक प्रभाव (The Long-term Impact of Bad Thinking):
- मनुष्य के चित्त में कई प्रकार की भावनाएं उत्पन्न होती रहती हैं।इनमें कुछ सात्विक होती है और कुछ बुरी,कुत्सित तथा घृणित।बुरी भावनाएं चित्त में विकारों को जन्म देती है और मनुष्य के सांसारिक और आध्यात्मिक पतन का हेतु बनती है।
- मन में कोई बुरा विचार उठता है,तो वह अल्पकालिक होता है।जिस तरह राहगीर सामने आता है और चला जाता है,उसी प्रकार बुरे विचार भी आते-जाते रहते हैं।परंतु यदि कोई मनुष्य बुरे विचारों को पनपने देता है,तो वह ऐसा है जैसे उसने किसी राहगीर को अपने घर में रख लिया हो और जब बुरे विचार मन में जड़ पकड़ लेते हैं,तब वह किराएदार घर का स्वामी बन जाता है।इसका अर्थ यह है कि मनुष्य का मन पूरी तरह बुरे विचारों के अधीन हो जाता है।फिर वह अपने मन पर काबू नहीं रख पाता और बुरे विचारों के कारण पाप कर्मों में फंस जाता है।
- कोई मनुष्य कोई बुरा विचार करे और उस बुरे विचार की सफाई में दलीलें दें,तो वह बुराई ओर ज्यादा मजबूत होती है।जो आदमी जाने अनजाने बहुत से बुरे विचार करता है,उसके कुछ बुरे विचार लोगों के निगाह में आते हैं,कुछ नहीं आते हैं।कोई बुरा विचार लोगों की निगाह में आ जाए तो बहुत लोग उस बुरे विचार को मंजूर करने के बजाय उसकी सफाई देने की कोशिश करते हैं।मगर इस कोशिश में वह कुसूर (बुरा विचार) पहले से भी ज्यादा उजागर हो जाता है,जैसे कपड़े के छेद पर पैबंद।इसलिए कोई बुरा विचार एक बार शुरू हो जाता है तो वह फैलता ही जाता है और दीर्घकालिक प्रभाव छोड़ता है।
- कोई भी छात्र-छात्रा या व्यक्ति एकदम से बुरा नहीं बनता है बल्कि पहले बुरा सोचता है,विचारता है और धीरे-धीरे बुरा सोचने की उसकी आदत पड़ जाती है।फिर उसके संगी-साथी भी वैसे ही मिल जाते हैं।संगी-साथियों के मिलने से उसे अपराध बोध नहीं होता है।बुरी व दुष्चिन्तन करने से वह दुर्जनता तथा अपराध की ओर अग्रसर होता जाता है।बड़े-बड़े अपराधी पहले छोटे-छोटे दुर्गुणों,बुरे विचारों से ही शुरू करते हैं और फिर यही विचार चिंतन उन्हें बड़े अपराध की ओर ले जाते हैं।
4.बुरा सोचने से कैसे बचें? (How to Avoid Bad Thinking?):
- विद्यार्थियों को तथा लोगों को जीवन के सफर में चलते हुए बहुत सावधानी रखनी चाहिए और सोच समझकर ही कदम उठाना चाहिए।जो भी सोच-विचार करें उसके परिणाम के बारे में अच्छी तरह से पहले ही सोच-विचार कर लें।भूलवश या परिणाम पर विचार किए बिना एक बार गलत कदम उठा लिया जाए और जरा सा भी पतन हो जाए तो फिर संभलना मुश्किल हो जाता है और मनुष्य गिरता चला जाता है क्योंकि बुरा सोच-विचार करना बढ़ता ही चला जाता है।जैसे छोटी नदियां मिलकर एक बड़ी नदी का रूप धारण कर लेती है और बड़ी-बड़ी नदियां एक दिन समुद्र में मिलकर समुद्र का रूप धारण कर लेती हैं।एक छोटी सी चिंगारी अग्नि का बहुत बड़ा रूप धारण कर लेती है और बहुत बड़ा नुकसान कर देती है।बुरा सोचना शुरू में भले ही थोड़ा मालूम लगे लेकिन यही बाद में विकराल रूप धारण कर लेता है।इसलिए शुरू में इसे रोक देना चाहिए।
- हमेशा अपने सही लक्ष्य पर नजर रखे तो आपको बुरी बातें सोचने,किसी के बारे में बुरा सोचने का वक्त ही नहीं मिलेगा।
यह कहावत तो आपने सुनी होगी कि जैसा बीज बोया जाता है वैसा ही वृक्ष तैयार होता है और जैसा वृक्ष तैयार होगा वैसे ही फल लगेंगे।बबूल का पेड़ लगाकर आम प्राप्त नहीं किए जा सकते हैं।लेकिन होता यही है कि बीज तो बबूल का ही बोया जाता है और इच्छा आम खाने की रखी जाती है।इसे लापरवाही कहें या आलस्य कहें,शौक कहें या लत कहें इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा और किसी भी कारण से गलत और अनुचित ढंग,दूसरों का बुरा सोचना और बुरा करने का प्रयास करने का फल निश्चित रूप से बुरा होगा,कड़वा होगा और दुःखदायक होगा और निश्चित रूप से होगा,आज नहीं तो कल होगा,कभी भी होगा,पर होगा जरूर। - किये हुए सोच-विचार,चिंतन और कर्म का फल भोगने से बचा नहीं जा सकता क्योंकि फल मिलने में देरी तो होती है पर अंधेर नहीं होती इसलिए कोई भी कर्म करने से पहले हमें जरा गहरे में यह सोच-विचार अवश्य कर लेना चाहिए कि इस कर्म का आखिर परिणाम क्या होगा? हमारे द्वारा दूसरों का बुरा सोचने के फल हमें ही चखने होंगे।
- यदि किसी से मतभेद हो,विरोध हो तो उसे प्रकट में कहना चाहिए और उसके निवारण के लिए उचित उपाय भी तत्परतापूर्वक करना चाहिए।परंतु मन में गांठ बांधने और ईर्ष्या-द्वेष रखने की आवश्यकता नहीं है।विरोधी के प्रति बिना दुर्भाव रखे हुए भी बुराई का प्रतिरोध करना संभव है।हम भी आवश्यकतानुसार उसी मार्ग का सहारा लें।
- हमें चाहिए कि दूसरों के दुःख को अपना दुःख समझें,उनके अनिष्ट को अपना अनिष्ट मानें,तभी यहां पर शांति का साम्राज्य होगा।हमें द्वेषभाव त्यागकर सभी के प्रति प्रेमभाव रखना होगा,स्वार्थ भाव त्यागकर परमार्थ भाव का सहारा लेना होगा।तभी सबका कल्याण हो सकेगा।
- योग-साधना से भी दूसरों के बारे में बुरा सोचने को रोका जा सकता है।यदि मन में किसी का बुरा सोचने की भावना का उदय हो अर्थात् चित्त में कोई भी बुराई उत्पन्न हो,तो उसे तुरंत त्याग देना चाहिए।जब मन में कोई बुरा विचार या किसी का बुरा सोचने की भावना आए तो उसके प्रतिकूल भावना करनी चाहिए।अर्थात् दूसरों का भला करने के बारे में विचार करना चाहिए।
- यदि मन में किसी का बुरा सोचने का विचार आए तो उसे छिपाना नहीं चाहिए बल्कि उसे मंजूर करके अफसोस जाहिर करना चाहिए,ऐसा करने से आदमी ऊंचा उठता है।
- यदि कोई दूसरा व्यक्ति किसी अन्य की बुराई करता है या बुरा सोचता है तो उसकी बातों में रुचि नहीं लेना चाहिए।दूसरों की किसी कमजोरी,रहस्य,भेद अथवा अंदर की बातों का जिक्र किसी के साथ भी नहीं करना चाहिए।
5.दूसरों की बुराई करने का दृष्टांत (The Parable of Doing Evil to Others):
- एक गणित का विद्यार्थी अक्सर मेधावी गणित के छात्र-छात्राओं की बुराई करता रहता था।हमेशा बुरा सोचा करता था।जब भी मौका मिलता तो कहता कि अमुक विद्यार्थी तो ज्यादा ही घमंडी हो गया है।मेधावी छात्र उसकी उपेक्षा ही करता रहता था।सभी उसकी इस हरकत से परिचित थे।
- एक बार बुराई सोचने वाला विद्यार्थी कक्षा में उपस्थित नहीं था।कालांश खाली था।अतः छात्र-छात्राएं घेरा बनाकर आपस में वार्तालाप कर रहे थे।वार्तालाप करते-करते उस बुरा सोचने वाले,बुराई करने वाले विद्यार्थी की चर्चा चल पड़ी।सभी छात्र-छात्राएं उसकी इस गलत हरकत की चर्चा कर रहे थे।
- परंतु मेधावी छात्र चुपचाप उनकी बात सुन रहा था।तब अन्य छात्र-छात्राएं बोले कि सबसे ज्यादा तुम्हारी ही बुराई करता है,तुम्हारा ही बुरा करने की सोचता रहता है फिर भी तुम चुपचाप क्यों हो? उस छात्र के बारे में तुम अपने विचार प्रकट क्यों नहीं कर रहे हो?
मेधावी छात्र बोला उसमें अनेक अच्छाइयाँ हैं केवल यही एक दुर्गुण है कि वह दूसरों के बारे में बुरा सोचता है।अन्यथा उसमें इतनी प्रतिभा है कि वह भी गणित में मेधावी छात्र बन सकता है।मेधावी छात्र जब उस बुरा सोचने वाले छात्र की प्रशंसा कर रहा था तब वह छात्र कक्षा के बाहर छिपकर उनकी बातें सुन रहा था।अपने बारे में प्रशंसा सुनकर उसे अपनी गलती का बोध हुआ। - वह सभी छात्र-छात्राओं के सामने उपस्थित हुआ और सबसे पहले मेधावी छात्रा से क्षमा याचना की तथा फिर अन्य छात्र-छात्राओं से क्षमा याचना करते हुए बोला कि आज के बाद मैं अपनी इस बुरी आदत को छोड़ दूंगा।मैं अपनी पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित करूंगा।आप लोग मुझे क्षमा कर दो।सभी छात्र-छात्राओं ने उसे क्षमा कर दिया।इसके बाद उसने दूसरों का बुरा सोचना छोड़ दिया।
- उपर्युक्त आर्टिकल में किसी का बुरा न सोचें (Do Not Think Bad of Anyone),युवावर्ग किसी का बुरा क्यों न सोचें? (Why Don’t Young People Think Badly of Someone?) के बारे में बताया गया है।
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6.गणित विषय लेने का परामर्श क्यों देते हैं? (हास्य-व्यंग्य) (Why Recommend Taking up Mathematics Subject?) (Humour-Satire):
- बेटा (पिताजी से):सब गणित विषय लेने का परामर्श ही क्यों देते हैं? परीक्षा के समय भी सभी यही पूछते हैं की गणित की तैयारी अच्छे से की है या नहीं।
- पिताजी:गणित विषय से दिमाग खुल जाता है।अन्य विषय लेने पर छात्र-छात्राएं लापरवाह हो जाते हैं।अतः उनको जागरूक करने व दिमाग को खोलने के लिए सभी गणित विषय लेने का सुझाव देते हैं।
7.किसी का बुरा न सोचें (Frequently Asked Questions Related to Do Not Think Bad of Anyone),युवावर्ग किसी का बुरा क्यों न सोचें? (Why Don’t Young People Think Badly of Someone?) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:
प्रश्न:1.दुर्जन व्यक्ति की क्या आदत होती है? (What is the Habit of a Bad Person?):
उत्तर:कोई आदमी चाहे कितना ही नेक और सच्चा क्यों क्यों न हो,कुछ लोग उनकी बुराई करने से नहीं चूकते। यह दुर्जनों की आदत होती है कि किसी की भलाई पसंद नहीं करते और ईर्ष्या व द्वेष से अच्छे से अच्छे आदमी पर भी लांछन लगाते हैं।जो आदमी भला हो,अच्छा हो,उसे बुराई करने वालों की उपेक्षा करनी चाहिए।हाथी के पीछे कई कुत्ते भोंकते हैं परंतु वह उनकी परवाह नहीं करता और अपने रास्ते चला जाता है।दुर्जन के मुख से निंदा के वचन सुनकर मौन धारण कर लेना चाहिए।
प्रश्न:2.क्या दूसरों द्वारा बुराई करने पर बिल्कुल ध्यान नहीं देना चाहिए? (Shouldn’t We Pay Any Attention to the Evil Done by Others?):
उत्तर:अपनी बुराइयों की बात सुनकर लोगों को गुस्सा आ ही जाता है।दरअसल सच्ची बात पर आदमी को गुस्सा करने के बजाय अपनी बुराइयों को दूर करने का प्रयास करना चाहिए।अपनी निंदा करने,बुरा सोचनेवालों को दुत्कारने के बजाय पास बिठाना चाहिए।इससे यह फायदा होगा कि अगर वह झूठी बात करता है,व्यर्थ ही बुराई करता है,बुरा सोचता है,तो शर्म के मारे फिर ऐसा नहीं करेगा।और यदि वह बुराई करता है,बुरा सोचता है सही है तो वह बुराई को दूर करने की चेतावनी देता है।अतः उस बुराई को दूर कर लेना चाहिए,उस पर आग-बबूला नहीं होना चाहिए।
प्रश्न:3.कोई व्यक्ति बुरा क्यों सोचता है? (Why Does Someone Think Bad?):
उत्तर:कोई विद्यार्थी या व्यक्ति दूसरे के बारे में बुरा इसलिए सोचता है क्योंकि वह अहंकारी होता है।वह हमेशा दूसरों को प्रगति करते हुए देखना नहीं चाहता है। यदि कोई आगे बढ़ रहा है तो वह हमेशा प्रतिशोधी भावनाओं से ग्रसित रहकर तनावग्रस्त रहता है।इसके बाद भी जब वह साथी मित्रों को आगे बढ़ता देखा है तो अपने मन में साथियों के प्रति ईर्ष्या से भर उठता है।उसका इस प्रकार से बुरा सोचना उसके लिए ही बुरा बनकर सामने आता है।उसके व्यक्तित्त्व में दोष उत्पन्न हो जाता है।आशय यह है कि घमंड सद्गुणों के विकास में सबसे बड़ी बाधा है,एक अव्यावहारिक सोच है,बच्चों के सद्गुणों को नष्ट करने वाला आचरण है।इसलिए छात्र-छात्राओं तथा लोगों को इस प्रकार की सोच से बचने की आवश्यकता है।अन्यथा यही सोच उनके विनाश तथा पतन का कारण बन जाती है।इतिहास उठाकर देख लें दुर्योधन,कंस,जरासंध,कालयवन,रावण,कुंभकरण,मेघनाथ आदि इसी सोच के कारण नष्ट हो गए।
- उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा किसी का बुरा न सोचें (Do Not Think Bad of Anyone),युवावर्ग किसी का बुरा क्यों न सोचें? (Why Don’t Young People Think Badly of Someone?) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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Satyam
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