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Development Tips part-2 in hindi

1.छात्र-छात्राओं के विकास हेतु टिप्स पार्ट-2 का परिचय (Introduction to Development Tips part-2 in hindi),व्यक्तित्व का विकास कैसे करें? (How to develop personality?):

  • छात्र-छात्राओं के विकास हेतु टिप्स पार्ट-2 (Development Tips part-2 in hindi),व्यक्तित्व का विकास कैसे करें? (How to develop personality?):छात्र-छात्राओं का अध्ययन काल तप और साधना का समय होता है इसलिए इस समय का सदुपयोग करके अपने जाॅब प्राप्त करने के लिए तो स्किल का विकास करना ही चाहिए साथ ही व्यावहारिक जीवन का सुचारू रूप से चलाने के लिए व्यावहारिक ज्ञान भी प्राप्त करना चाहिए।विद्यार्थी काल में किसी बात को सीखना और ज्ञान प्राप्त करना आसान होता है।
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via https://youtu.be/8_fmexZbeP8

2.छात्र-छात्राओं के विकास हेतु टिप्स पार्ट-2 (Development Tips part-2 in hindi),व्यक्तित्व का विकास कैसे करें? (How to develop personality?):

  • वर्तमान युग में माता-पिता,अभिभावकों व गुरुजनों की समस्या यह है कि छात्र-छात्राओं का विकास कैसे किया जाए? इस समस्या का सीधा-सादा और सरल मार्ग दिखाई नहीं देता है क्योंकि आज का मनुष्य भौतिक सुख सुविधाओं को प्राप्त करने की भाग-दौड़ में लगा हुआ है।धन से सुख-सुविधाओं के साधन तो जुटाए जा सकते हैं परंतु सुख शांति नहीं।इसी प्रकार छात्र-छात्राओं को सुविधायुक्त विद्यालय में प्रवेश दिलाया जा सकता है,कोचिंग की व्यवस्था कराई जा सकती है और धन खर्च किया जा सकता है।परंतु केवल इनसे छात्र-छात्राओं का विकास संभव नहीं है।आज हम छात्र-छात्राओं के विकास हेतु कुछ टिप्स बता रहे हैं।
  • माता-पिता,अभिभावकों,गुरुजनों का छात्र-छात्राओं के प्रति समर्पण होना आवश्यक है।साथ ही छात्र-छात्राएं भी माता-पिता के प्रति समर्पित रहेंगे तो ही उनका विकास हो सकता है।
  • चुनौतीपूर्ण उत्तरदायित्व (challenging responsibility):
  • (1.)जो छात्र-छात्राएं शिक्षा संस्थान अथवा सामाजिक,पारिवारिक कार्यक्रमों में कोई चुनौतीपूर्ण जिम्मेदारी लेने से कतराते हैं या उनको ऐसी जिम्मेदारी नहीं दी जाती है तो उनकी सुप्त शक्तियाँ प्रकट नहीं होती है।ऐसे विद्यार्थी जीवन की दौड़ में आगे निकल सकते थे उससे बहुत पीछे रह जाते हैं।क्योंकि चुनौतीपूर्ण जिम्मेदारी मनुष्य को सोचने तथा चिन्तन करने के लिए मजबूर कर देती है।ऐसे विद्यार्थियों में आगे जाकर महान् मनुष्य नहीं बन पाते है तथा वे ऐसे पदों पर कार्य करते हैं जिनमें स्वयं को कोई कार्य करने के लिए सोच-विचार करने की आवश्यकता नहीं होती है।वे दूसरों द्वारा निर्धारित किए गए कार्यों का अनुसरण करते हैं,उन्हें अपने पैरों पर खड़ा होना नहीं आता है।
  • (2.)इसके विपरीत यदि विद्यार्थी शुरू से ही कोई जिम्मेदारी वहन करता है तो उसमें साहस,आत्मविश्वास,धैर्य,चिन्तन शक्ति का विकास होता जाता है।छात्र-छात्राओं पर यदि माता-पिता,अभिभावकों और गुरुजनों द्वारा कोई जिम्मेदारी डाली जाती है तो उसे प्रसन्न होना चाहिए क्योंकि सफलता व जीवन निर्माण पता नहीं कौनसे अवसर के द्वारा प्राप्त हो जाए और आपका सुखद सवेरा उदय हो जाए।
  • सत्संग (association with good people):
  • (1.)आपकी जैसी कार्यप्रणाली,विचारधारा होगी उसी के अनुसार आपके इर्द-गिर्द,उसी कार्यप्रणाली के लोग इकट्ठे होते जाएंगे।यदि आप सुस्त,आलसी,झगड़ालू है तो आपके इर्द-गिर्द ऐसे लोग ही रहेंगे।यदि आप चुस्त,चतुर,विनम्र इत्यादि गुणों को धारण करते जाएंगे तो आपके पास इसी तरह के लोग इकट्ठे होते जाएंगे।यहां यह कहना भी अनुचित नहीं होगा कि यदि आपके माता-पिता,गुरुजन सज्जन,विनम्र,मधुरभाषी हैं तो आप पर भी उन गुणों का प्रभाव पड़ेगा तथा आप भी वैसा ही बनने का प्रयास करेंगे।
  • (2.)यदि हम कायरों,बदमाशों,बेईमानों व चोरों की संगत करेंगे तो वैसे ही विचार हमारे मन में उठेंगे।विचार से कर्म बनते हैं तथा कर्म से आदतों व संस्कारों का निर्माण होता है।यदि हम विचारवान,आदर्श,चरित्रवान,धार्मिक तथा ऊँचे संकल्प वाले मनुष्यों के संपर्क में रहेंगे तो हम भी उनकी तरह बनने का प्रयास करेंगे।
  • (3.)जो छात्र-छात्राएं इस संसार को उसी दृष्टि से देखते हैं जिस दृष्टि से परमात्मा ने इस संसार को बनाया है तो वे यहां पर सौंदर्य,प्रसन्नता,आशा,प्रकाश,चारों तरफ शुभ और आनंद का संदेश ही पाएंगे।ऐसे छात्र-छात्राएं आगे जाकर महामानव बनते हैं जो संसार को अशिक्षा,अंधेरे से निकालकर विद्या,शिक्षा और प्रकाश की ओर ले कर गए हैं अर्थात् वे दूसरों को भी उन्नति के शिखर पर पहुंचाते हैं।ऐसे मनुष्य वास्तविकता को पहचानते हैं।
  • (4.)यह संसार एक गुम्बद की तरह है जिससे टकराकर वही आवाज हम तक पहुंचती है जैसे हमारे भाव व विचार होते हैं।यदि हम उदास-उखड़े,निराशावादी व कष्ट से तड़पते हैं,चिल्लाते हैं तो संसाररूपी गुम्बद से टकराकर वापस हमारे मन में ऐसे ही भाव पनपते हैं।यदि हम हर हाल में सुखी हैं,प्रसन्न हैं परमात्मा के प्रति कृतज्ञ हैं तो वैसी ही आवाज हमारे हृदय से निकलेगी।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में छात्र-छात्राओं के विकास हेतु टिप्स पार्ट-2 (Development Tips part-2 in hindi),व्यक्तित्व का विकास कैसे करें? (How to develop personality?) के बारे में बताया गया है।
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