Cultural Values of Mathematics
1.गणित के सांस्कृतिक मूल्य (Cultural Values of Mathematics),गणित के द्वारा सांस्कृतिक मूल्यों का विकास कैसे करें? (How to Develop Cultural Values by Mathematics?):
- गणित के सांस्कृतिक मूल्य (Cultural Values of Mathematics) में सांस्कृतिक मूल्य से तात्पर्य है किसी विचारधारा,नीति,आचार संहिता,सिद्धांत आदि के दर्शन के अनुसार रहन-सहन,आचरण से निर्मित संस्कारों से है।गणित और सांस्कृतिक मूल्य दोनों का संबंध अटपटा सा लगता है परंतु गणित का अध्ययन करने से विद्यार्थी में सांस्कृतिक मूल्यों का विकास होता है।विद्यार्थी में नैतिकता,आध्यात्मिकता में दृढ़ आस्था,अहंकार का त्याग तथा समर्पण आदि का विकास होता है।
- सामान्यतः संस्कृति का अर्थ ज्ञान,आस्था,कला,नैतिकता,कानून या परंपरा से होता है जिसे व्यक्ति समाज का सदस्य रहते हुए विरासत में हासिल करता है।पर संस्कृति स्थिर नहीं होती।वह प्रगतिशील प्रक्रिया है,जो समय के साथ बदलती रहती है।
- गणित शिक्षण के प्रयोजन ऐसे भी हैं जो व्यक्ति की प्रकृति के अंतर्निहित (inherent) हैं।इन्हें मूल्य (values) कहते हैं।मूल्य वांछनीय और अपने आपमें मान्य एवं योग्य होते हैं।ये व्यक्ति संवेगात्मक भावनाओं (emotional feelings) और गणित के संज्ञानात्मक बोध के मध्य संबंध को व्यक्त करते हैं।ये सामान्य होते हुए भी केंद्रीय महत्त्व रखते हैं।वे मानव को प्राप्ति हेतु अन्त:प्रेरित (urge) करते हैं।वास्तव में मूल्य दर्शन की प्रमुख शाखा मूल्य मीमांसा (Axiology) की विषयवस्तु है।मूल्यों को कई संवर्गों में बांटा जाता है।गणित शिक्षण के मूल्यों को शैक्षिक,व्यावसायिक,सांस्कृतिक,आर्थिक,मनोरंजनात्मक,बौद्धिक,जिज्ञासा एवं सौंदर्यानुभूति के संवर्गों में स्पष्ट किया जाता रहा है।
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2.गणित के सांस्कृतिक मूल्य कैसे विकसित होते हैं? (How Do the Cultural Values of Mathematics Evolve?):
- साहित्य,संगीत,कला,धर्म,दर्शन,मानवीय संस्कृति के विभिन्न पक्ष हैं।इनसे ही विभिन्न संस्कृतियाँ प्रतिबिंबित होती हैं।प्रत्येक संस्कृति के सार्वभौमिक शाश्वत परम तत्त्व होते हैं।इन्हीं से संस्कृतियाँ जीवित रहती हैं।जिस समाज में इनको निरंतरता प्रदान करने की स्वाभाविक शक्ति रहती है,उस संस्कृति की निरंतरता बनी रहती है।इस शक्ति के ह्रास से संस्कृति नष्ट हो जाती है।संस्कृति के उपर्युक्त पक्षों में इन मूल तत्त्वों की रक्षा एवं पोषण (Nurture) होता है।भारतीय संस्कृति की अक्षुण्णता समाज की इसी शक्ति का परिणाम है,जिसकी मूल में धर्म है।यह ‘वसुदेव कुटुंबकम’,’सर्वधर्म समभाव’,’एकोअहम् द्वितीयो नास्ति’,’अहम ब्रह्मास्मि’ जैसी परंपराओं से पोषित है।इसका परम लक्ष्य ‘सत्यम शिवम सुंदरम’ के एकात्म तत्त्व ‘ब्रह्म’ में समाहित होता है।हमारे साहित्य में एक ब्रह्म,ब्रह्म-माया द्वैत और हर प्राणी ब्रह्मस्वरूप के बहुवाद में गणित की संख्याएं हैं।त्रिमूर्ति,पंचानन,चतुरानन,त्रिनेत्र,दशानन,चतुर्भुज जैसे सैकड़ो शब्द हमारे साहित्य के भंडार हैं।
- साहित्य का आधार भाषा विज्ञान’ व्याकरण’ है।व्याकरण में संख्याएं सर्वत्र व्याप्त हैं।चौपाई,दोहा,छंद आदि उनके लक्षणों में भी तो संख्याएं ही महत्त्वपूर्ण हैं।संगीत में स्वर,गायन,वाद्य,नृत्य सभी का आधार गणित है।स्वरों और तालों के संयोग संख्यात्मक ही है।महान गणितज्ञ लीबनीज (Leibnitz) के अनुसार:”संगीत अचेतन रूप से संख्याओं से संबंधित मन के अंकगणित का गुप्त अभ्यास है
- (Music is a hidden exercise in arithmetic of a mind unconscious of dealing with numbers)”।कला संस्कृति का मुख्य पक्ष है।सौंदर्यानुभूति का उत्सर्जन कला की विशेषता है।यह मानवीय पक्ष की एक प्रमुख आवश्यकता है।व्यक्तित्त्व के पूर्ण विकास की कल्पना इसके बिना नहीं की जा सकती।सौंदर्यानुभूति का व्यवहारगत स्वरूप श्लाघा (appreciation) है।इससे व्यक्ति को आनंद की अनुभूति होती है,जो की व्यक्तित्त्व के आध्यात्मिक पक्ष से जुड़ा हुआ है।
- स्वयं गणित को देखें तो इसकी किसी समस्या का समाधान पाने या किसी प्रश्न का सही उत्तर पाने के क्षण में जो आनंद की अनुभूति होती है,वह वास्तव में शब्दों में व्यक्त नहीं की जा सकती।चित्रकला,रंग चित्रण (painting),मूर्तिकला (sculpture),स्थापत्य कला (architecture),अभियांत्रिकी (engineering) आदि में ज्यामितीय आकृतियों एवं गणितीय अनुपातों की प्रयुक्ति स्वयंसिद्ध है।
- सूक्ष्म कलाओं (fine arts) यथा:जवाहरात (jewellery) में भी गणितीय आकृतियां एवं आकार-प्रकार ही आधारभूत ढांचा है।स्वयं गणित को ही सूक्ष्म कला (fine arts) कहें तो अतिशयोक्ति नहीं होगी,किंतु कुछ लोग जो इस विषय को निजी कारणों से कठिन और नीरस मानते हैं,इस कथन को थोथा कह सकते हैं।
- दूसरी ओर इस कथन को पांडित्यपूर्ण (pedentic) कहने वालों की भी कमी नहीं है।ऐसे लोग भी हैं जो आनंद के लिए गणित का अध्ययन करते हैं,परीक्षा की तैयारी के लिए नहीं।ऐसे ही एक गणितज्ञ बाॅल्जमैन के अनुसार: “प्रत्येक शब्द,वर्ण,आघात चिन्ह (dash) की सरलता और अपरिहार्यता सभी कलाकारों में गणितज्ञ को विश्व सर्जक के सर्वाधिक निकट रखते हैं।यह उस उदात्तता को स्थापित करता है जिसके समान कोई कला नहीं पहुंच सकती।यह ऐसा आभास है जो केवल स्वर आधारित संगीत में ही संभव है
- (…. the simplicity the indispensableness of each word,each letter,each little dash, the arrange all artists,raises the mathematician nearest to the world creator, it establishes a sublimity which is equalled in no other art something like it exists at most in symphonic music)।”
- पूर्ण कला (perfect art) में परम सौंदर्य (perfect beauty) अंतर्भवित है।कविता भी कला है।इसमें ऐन्द्रिक अनुभवातीत सौंदर्य है।शाश्वत सत्य (eternal truth) की अभिव्यक्ति ही इसका सौंदर्य है।यह सर्जनात्मक कल्पना (creative imagination) की परिणिति है।गणित स्वयं भी इसका परिणाम है।गणित की सुंदर प्रमेय,इनका सत्यापन और इसकी प्रक्रियाएं और स्वरूप इसको क्लासिकी बनाते हैं।बर्टरैण्ड रस्सल (Betrand Russell) की अनुभूति में:”यह सही है की गणित न केवल सत्य को धारण किए हुए हैं,अपितु परम सौन्दर्य को भी सँजोये हुए है,मूर्ति की भाँति तपोमयऔर शीतल,हमारी नियति के दुर्बल पक्षों के लिए आकर्षण चित्रण और संगीत के दीप्त पाशों के बिना भी यह उदात्त पावन तथा परम पूर्णता में समाई है जैसा की महानतम् कला प्रदर्शित कर सकती है।उत्कर्ष और उल्लासमय यथार्थ चित्,मानवातिरेक होने का बोध जो कि महामहिम के सानिध्य का आभास दे,ऐसी अनुभूति गणित में इतनी ही अवश्यंभावी है,जितनी की कविता में
- (Mathematics rightly viewed not only truth, but supreme beauty, a beauty cold and austere, like that of sculpture, without appeal to any part of our weaker nature, without the go geous trappings of painting or music, yet sublimely pure, and capable of a stern perfection such as only the greatest art can show.The true spirit of delight, the exaltation, the sense of being more than a man, which is the touchstone of the highest excellence, is to be found in mathematics as surely as in poetry)।”
- थोरम् (Theorem) सत्यकथा की परमसीमा गणित को मानते हैं।उनके अनुसार:सत्य का सर्वाधिक सुस्पष्ट और सुंदर कथन उसका गणित का स्वरूप प्राप्त करने में निहित है
- (The most distinct and beautiful statement of any truth must take at last mathematical form)।”
3.भारतीय संस्कृति विश्व संस्कृति है (Indian Culture is World Culture):
- भारतीय संस्कृति सनातन एवं शाश्वत है।इस संस्कृति का संबंध संवेदना से है,जो हमारे अस्तित्व का मूल आधार है।संवेदना ही हमारी संस्कृति है अर्थात् संस्कृति हमारा अस्तित्व है जो हमारे रग-रग,कण-कण में समाहित है।इसी कारण यह ‘आध्यात्मिक संस्कृति’ के नाम से जानी-पहचानी जाती है।अध्यात्म भी हमारे अस्तित्व के चैतन्य विकास में निहित है।जीवन है तो अस्तित्व भी है,अतः संस्कृति चिर,सनातन एवं निरंतर है।इसमें मानव,राष्ट्र एवं सृष्टि की समस्त समस्याओं का संपूर्ण समाधान शामिल है।
- इस संस्कृति का उद्भव भारत में हुआ है।अतः इसे ‘भारतीय संस्कृति’ कहा जाता है,परंतु केवल भारत एवं भारतीयता की परिचायक नहीं है बल्कि इसमें संपूर्ण सृष्टि एवं समस्त मानव जाति की सभी समस्याओं का समाधान एवं सर्वांगीण विकास की जीवन्त संभावनाएं सन्निहित हैं।समय के अनुसार स्वयं को परिवर्तित करके भी अपने मूल उद्देश्यों पर अविचलित रहना इसकी सर्वोच्च विशेषता रही है।इसने अपने मूल उद्देश्यों से कभी भी और किसी भी परिस्थिति में समझौता नहीं किया है।इसके प्रमुख उद्देश्यों में से एक है:किसी भी विधि द्वारा मानवीय चेतना का समग्र विकास,राष्ट्रीय एवं वैश्विक चेतना का उन्नयन।कोई भी व्यक्ति अपने विकास और कोई भी समाज व राष्ट्र,अपनी समृद्धि व विकास के लिए स्वतंत्र है।यह उदारता एवं विशाल भाव सांस्कृतिक मूल्यों का परिचायक है।
- भारतीय संस्कृति अपने सत्य की रक्षा के लिए,निर्णायक युद्ध के लिए भी तत्पर रहती है; जबकि औरों के मूल्यों को अपने में समाहित करने के लिए बेहद लचीले ढंग से उदार होने का परिचय भी देती है।यही कारण है कि अपने राष्ट्र पर हजारों वर्षों से बर्बर एवं भीषण आक्रमण होते रहे हैं।तमाम बर्बर जातियों ने भारतीय संस्कृति को मिटाकर अपने में मिलाने का अथक प्रयास किया।
- अपना देश हजारों वर्षों से एक के बाद एक विदेशी सत्ताओं की गुलामी में भी रहा।यूनानी,पर्सियाई और हूण,मुगल शासन,अंग्रेजों का कुचक्र,षड्यंत्र और आधिपत्य आदि ऐसे अनेकानेक आघात थे,जिनसे लगा कि भारतीय संस्कृति को संभाले रख पाना मुश्किल होगा,परंतु इन सबके बावजूद भारतीय संस्कृति न केवल अक्षुण्ण रही,वरन नित-निरंतर प्रगति के नए सोपनों को प्राप्त करती रही।
- भारतीय संस्कृति ने सभी घात-आघातों को सह लिया; क्योंकि इस संस्कृति का आधार आध्यात्मिक और सांस्कृतिक एकता-अखंडता को अपने रग-रग में बसाना था,उन्हें आत्मसात करना था।भारतीय संस्कृति की नींव ऋषियों की तपस्या की ऊर्जा से रखी गई है और इसीलिए संस्कृति के मूल में प्रवाहित आध्यात्मिक वैतरणी सदा इस धरा को सिंचित करती आ रही है।यही कारण है कि इसे मिटाने का प्रयास करने वाले और इसका प्रतिरोध करने वाले या तो स्वयं समाप्त हो गए अथवा इसी संस्कृति में समाहित हो गए।
- भारतीय संस्कृति को बहुतों ने न केवल नकारा बल्कि उसे मिटाने के लिए षड्यंत्र भी किया,परंतु उसे मिटाने का प्रयत्न करने वाले यह न जान सके कि भारतीय संस्कृति,एक देश से बद्ध नहीं है कि जिस पर कब्जा कर लेने से संस्कृति को मिटाया जा सकना संभव है।भारतीय संस्कृति तो सार्वभौम है एवं उसके द्वारा प्रतिपादित मूल्य भी शाश्वत हैं।भारत भूमि से निकलने के कारण भले ही उसका स्वरूप भौगोलिक लगे,पर इस संस्कृति का आधार आध्यात्मिकता के मूलभूत सिद्धांतों पर खड़ा है और इसीलिए सब कुछ मिट जाने के बाद भी इसको मिटाया जा सकना संभव नहीं हो सका है।
4.गणित के सांस्कृतिक मूल्य का दृष्टांत (An Illustration of the Cultural Values of Mathematics):
- एक विदेशी गणित का छात्र भारत भ्रमण करने हेतु आया।उसने विभिन्न पर्यटक स्थलों और शिक्षा संस्थानों का भ्रमण किया।यहां के प्राकृतिक दृश्य,विविधता में एकता को देखकर अभिभूत हो गया।वहां वह अपने गणित शिक्षक का परम शिष्य था।परंतु भारत में प्रवेश करते ही उसने हिंदी भाषा सीखना प्रारंभ कर दिया था।वह भारतीय संस्कृति की विशिष्टता को जानना चाहता था।
- इसलिए वह भ्रमण करते हुए भारत की विशिष्ट नगरी काशी (वाराणसी) में पहुंचा। वहां उसने एक शिक्षा संस्थान में गणित के आचार्य से भेंट की। वह गणित के छात्रों से मिला तो यह जान-समझ कर दंग रह गया कि उन्हें गणित के साथ-साथ संस्कृति का ज्ञान ही नहीं था बल्कि आचरण में भी संस्कृति की अमिट छाप दिखाई दे रही थी।
- उस विदेशी छात्र ने पूछा की गणित के साथ आपने सांस्कृतिक मूल्यों को कैसे अपनाया।आचार्य ने कहा कि गणित को केवल आंकड़ों का खेल समझकर,केवल परीक्षा की दृष्टिकोण से,उत्तीर्ण होने के लिए पढ़ते हैं तो उसके सांस्कृतिक मूल्यों से अछूते रह जाते हैं।
- जब हम गणित विषय को श्रद्धा के साथ पूजा समझ कर पढ़ते हैं तो असीम आनंद का अनुभव करते हैं।जीवन में गणित की ऊंचाइयों को तभी छू सकते हैं जब गणित का अध्ययन साधना समझकर करें और उसमें डूब जाएँ।यदि केवल सवालों को हल करने,आंकड़ों का खेल समझकर,केवल खानापूर्ति के लिए गणित को पढ़ते हैं तो उसमें बोरियत महसूस करते हैं।तब उनके सांस्कृतिक मूल्यों को कैसे आत्मसात किया जा सकता है?
- उपर्युक्त आर्टिकल में गणित के सांस्कृतिक मूल्य (Cultural Values of Mathematics),गणित के द्वारा सांस्कृतिक मूल्यों का विकास कैसे करें? (How to Develop Cultural Values by Mathematics?) के बारे में बताया गया है।
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5.गणित पढ़ाना नहीं आता (हास्य-व्यंग्य) (She Don’t Know How to Teach Math) (Humour-Satire):
- रश्मि (माँ से):मेरे स्कूल की टीचर को गणित पढ़ाना नहीं आता।
- माँ:यह तुम कैसे कह सकती हो?
- रश्मि:कल तो टीचर कह रही थी कि एक और एक दो होते हैं और आज सवाल समझाते समय एक और एक लिखकर ग्यारह (11) बता रही थी।
6.गणित के सांस्कृतिक मूल्य (Frequently Asked Questions Related to Cultural Values of Mathematics),गणित के द्वारा सांस्कृतिक मूल्यों का विकास कैसे करें? (How to Develop Cultural Values by Mathematics?) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:
प्रश्न:1.भारतीय संस्कृति की विशिष्टता क्या है? (What is the Uniqueness of Indian Culture?):
उत्तर:भारतीय संस्कृति की विशिष्टता है अनेकता में एकता।भारतीय संस्कृति आंतरिक गुणों को श्रेष्ठ मानती है।भारतीय संस्कृति में मानव,राष्ट्र एवं सृष्टि के सभी आयामों के समग्र विकास की अवधारणा एवं क्षमता समाहित है ओर किसी अन्य संस्कृति में ऐसी विशालता एवं उदारता का परिचय नहीं मिलता है।सभी मनुष्यों एवं राष्ट्रों की प्रकृति भिन्न-भिन्न होती है,सभी को एक विधान से,एक नियम से संचालित एवं परिचालित नहीं किया जा सकता है और इसलिए भारतीय संस्कृति अपने अपरिमित वैविध्य के बाद भी एकता बनाए रखने में संभव हो सकी।
प्रश्न:2.भारतीय संस्कृति प्रत्येक व्यक्ति के लिए उपादेय कैसे हैं? (How is Indian Culture Useful to Everyone?):
उत्तर:भारतीय संस्कृति के मूलमंत्रों में आध्यात्मिकता मूल्यों के प्रति निष्ठा,इसकी मानवीय गुणों में अभिवृद्धि की आकांक्षा,इसकी भौगोलिक एवं सांस्कृतिक एकता के प्रति कटिबद्धता एवं उसके द्वारा प्रतिपादित-प्रचारित-प्रसारित मूल्यों का सार्वभौम होना है।यह ध्यान में रखते हुए कि हमारी संस्कृति विश्व के प्रत्येक व्यक्ति के लिए समान रूप से प्रभावी है,भारतीय मनीषी भारतीय संस्कृति को ही वैश्विक संस्कृति का आधार मानते हैं।
प्रश्न:3.भारतीय संस्कृति आधुनिक विश्व को दिशा देने में सक्षम कैसे हो सकती है? (How Can Indian Culture Be Able to Give Direction to the Modern World?):
उत्तर:आज जब संपूर्ण विश्व भारत की ओर एक आशा भरी निगाहों से देखता है और यह कल्पना सँजोता है कि इस भूमि से निकलने वाली विचारधारा आने वाले विश्व को एक नई दिशा दे पाने में सक्षम हो सकेगी तब भारतीय संस्कृति के ये मूल आधार ही नवयुग का संविधान बनेंगे।आज जब वर्तमान पीढ़ी आंख मूंदकर विदेशी सभ्यता को अपनाने के लिए आतुर नजर आती है,ऐसे में समाज के जिम्मेदार नागरिकों का यह कर्त्तव्य बन जाता है कि वे भारतीय संस्कृति को अक्षुण्ण रखें।ऐसा कर पाना तभी संभव है जब हम वैदिक संस्कृति के इन महान गुणों को अपने जीवन में धारण करें और स्वयं उस संस्कृति के वाहक एवं अग्रदूत बनें।केवल प्राचीन भारतीय संस्कृति महान् थी ऐसा उद्घोष करने से कुछ नहीं होगा बल्कि वर्तमान में हम क्या है,यह मायने रखता है।
- उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा गणित के सांस्कृतिक मूल्य (Cultural Values of Mathematics),गणित के द्वारा सांस्कृतिक मूल्यों का विकास कैसे करें? (How to Develop Cultural Values by Mathematics?) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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Satyam
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