Basis of Progress is Cooperation
1.प्रगति का आधार सहयोग (Basis of Progress is Cooperation),प्रगति का आधार सहयोग और सहायता (Basis of Progress is Cooperation and Assistance):
- प्रगति का आधार सहयोग (Basis of Progress is Cooperation) और सहायता करना भी है।छात्र-छात्राएं किसी विषय की समस्या को हल नहीं कर पाते हैं या गणित के सवालों में कठिनाई महसूस हो रही हो,कोई प्रमेय हल नहीं हो रही हो अथवा गणित की कोई समस्या समझ में नहीं आ रही हो,बहुत प्रयास करने पर हल नहीं कर पा रहें हो तो उन्हें सहयोग-सहायता की जरूरत महसूस होती है।
- हर समस्या,हर कठिनाई शिक्षक से नहीं पूछी जा सकती है अतः वे अपने मित्रों,सहपाठियों अथवा अन्य परिचित व्यक्ति की सहायता व सहयोग से गणित की समस्याओं को हल करते हैं।
- हालांकि प्रश्नावली के प्रत्येक सवाल,प्रत्येक समस्या को दूसरों से पूछना अथवा उनकी सहायता से करना व्यक्ति या विद्यार्थी को पराधीन बना देता है।कहावत है कि पराधीन सपनेहु सुख नाहीं अर्थात् पराधीन व्यक्ति विद्यार्थी सुखी नहीं हो सकता है।
स्वयं द्वारा अधिक से अधिक समस्याओं को हल करने का प्रयास करना चाहिए,बहुत प्रयास करने पर भी कोई जटिल समस्या हल नहीं हो रही हो तो ही दूसरों की सहायता या सहयोग लेना चाहिए। - आपको यह जानकारी रोचक व ज्ञानवर्धक लगे तो अपने मित्रों के साथ इस गणित के आर्टिकल को शेयर करें।यदि आप इस वेबसाइट पर पहली बार आए हैं तो वेबसाइट को फॉलो करें और ईमेल सब्सक्रिप्शन को भी फॉलो करें।जिससे नए आर्टिकल का नोटिफिकेशन आपको मिल सके । यदि आर्टिकल पसन्द आए तो अपने मित्रों के साथ शेयर और लाईक करें जिससे वे भी लाभ उठाए । आपकी कोई समस्या हो या कोई सुझाव देना चाहते हैं तो कमेंट करके बताएं।इस आर्टिकल को पूरा पढ़ें।
Also Read This Article:Who Understand Progress in Today’s Era?
2.हम दूसरों से सहयोग क्यों नहीं लेते? (Why Don’t We Cooperate with Others?):
- सहयोग करने पर मिलने वाले लाभ से सभी बुद्धिमान परिचित है।अल्प बुद्धि वाले ही ऐसा सोचते हैं कि अपने मतलब से मतलब रखना चाहिए,क्यों किसी के झगड़े-झंझट में पड़े? क्यों किसी की सहायता-सहयोग में अपना समय और पैसा खर्च करें?
- दूसरे जब सुखी होते हैं तो कौन हमें अपनी संपदा का एक भाग दे जाते हैं? जब किसी को हमारी परवाह नहीं तो हमीं क्यों किसी की परवाह करें! अपनी जेब में पैसा होगा तो बीसियों सहयोगी पैसा देकर खरीद लेंगे।जब जेल खाली होगी तो दूसरे मिन्नतें करने पर भी सहायता करने न आएंगे।जब यही प्रचलन जमाने का है तो हम भी क्यों न उसी ढर्रे को अपनाएँ? अपनी सामर्थ्य अपने लिए ही क्यों न सीमित रखें?
- जो दूसरों की सहायता न करेगा वह चुप न बैठेगा।किसी न किसी को कुछ न कुछ हानि कर रहा होगा।निठल्ले व्यक्ति खाते-पहनते तो हैं ही।यह तभी उपलब्ध होता है,जब बदले में अन्य की सहायता की जाती है।श्रम करने पर ही मजदूरी का पैसा मिलता है।यह आदान-प्रदान का उपक्रम है।एक पक्ष अपने ढंग से सहायता करता है,दूसरा दूसरे ढंग से।
- जहां यह तालमेल जब तक ठीक बैठा रहता है,तब तक आदान-प्रदान का दोहरा आनंद मिलता रहता है।आप कमाना,आप पकाना,आप खाना,अपनी समस्याओं का खुद ही हल करना,गणित के सवालों को खुद ही हल करना संभव तो है किंतु इस नीति को अपनाने पर जीवन बड़ा कष्ट साध्य और नीरस हो जाता है।
- परिवार में भी अपने-अपने ढंग से सभी एक-दूसरे की प्रगति और प्रसन्नता में सहायता करते हैं।इसीलिए घर-आंगन में स्वर्ग खेलते देखा जाता है।परिवार की व्यवस्था बनाने में अनेकानेक झंझट रहते हैं तो भी जी यही करता है कि मिल-जुलकर साथ-साथ रहें।
- मजबूरी में जब अलग-अलग चूल्हे बनाने और घर बना बसाने पड़ते हैं तो संयुक्त कुल-परिवार की संपदा,प्रतिष्ठा और सशक्तता में कितनी कमी पड़ती है,इसे सहज अनुभव किया जा सकता है।बँधी बुहारी की शोभा-उपयोगिता सर्वविदित है,पर जब सींके बिखर जाती है,तो उन्हें कचरा भर मानकर ठिकाने लगा दिया जाता है।भाई-बहन,भाई-भाई,बहन-बहन,पति-पत्नी,माता-पिता एक-दूसरे के प्रति समर्पित होकर न रहें और अपने-अपने श्रम सहयोग का तत्काल मुआवजा मांगे तो फिर पारिवारिक जीवन के साथ जुड़ा हुआ वफादारी भरा विश्वास किस प्रकार उभरेगा? जब सभी मात्र अपने-आपके स्वार्थ की बात सोचें तो घर-परिवार,होटल मात्र बनकर रह जाएगा।
- कभी भी कोई किसी का साथ छोड़ सकता है।दाँव लगने पर घर के वैभव को लेकर भाग खड़ा हो सकता है।ऐसी दशा में विवाह-बंधन में बँधने की अपेक्षा स्वतंत्र रहने की बात सोची जाने लगेगी।
स्त्रियाँ किसी का वंश चलाने,घर संभालने,गर्भ धारण करने की मुसीबत में क्यों फंसेगी? क्यों न वे अपनी स्वतंत्र कमाई करके स्वतंत्र जीवन जीएंगी? - पारस्परिक स्नेह-सहयोग की उदार भावना ही पारिवारिक जीवन में स्वर्गीय आनंद,विश्वास और सहयोग उत्पन्न करती है।उसी के आधार पर सृष्टिक्रम चल रहा है।यदि मात्र स्वार्थ ही सर्वोपरि बन चले तो परिवार परंपरा का समापन हो जाएगा।समाज में अपनी सुस्थिरता और सुसंबद्धता गँवा बैठेगा।
3.दूसरों की सहायता करना अपना भला करना है (Helping Others is Doing Good to Yourself):
- यह दलील की अपने मतलब से मतलब रखना चाहिए,व्यावहारिक तर्क बुद्धि से तो उपयोगी जँचती है,पर जब बारीकी में उतरते हैं तो प्रतीत होता है कि कोई एकाकी विद्यार्थी या व्यक्ति प्रगति के पथ पर अग्रसर होना तो दूर अपना निर्वाह तक नहीं कर सकता।
- अपनी मान्यता भीतर ही छिपाए रखें,किसी पर प्रकट न होने दें तो बात दूसरी है।अन्यथा संकीर्ण स्वार्थपरता का पता चलने पर दूसरे भी उसी के अनुरूप अपना मन सिकोड़ लेंगे।ऊसर भूमि में कोई बीज नहीं बोता क्योंकि उसकी उदार उर्वरता पर से भरोसा उठ जाता है।कोई उसे जोतने-सींचने पर भी ध्यान नहीं देता,बीज बोना तो आगे की बात है।ऊसर भूमि किसी को लाभ नहीं पहुंचाती।
- किसी की सेवा-सहायता के लिए उद्यत नहीं होती।ऐसी दशा में लोग भी उसे उपेक्षा की दृष्टि से देखते हैं और उसकी न तो कुछ सहायता करते हैं और न आशा भरी आँख उठाकर उसे देखते हैं।बबूल के पेड़ कोई बोता नहीं।अपने भाग्य से उसका बीज कहीं पड़ा रह जाए और उग आए तो दूसरी बात है।
- आम के पेड़ हर जगह लगाए जाते हैं।उनके लिए खाद-पानी का प्रबंध चलने पर आशा भरी दृष्टि से देखते हैं,प्रसन्न होते हैं।यह जन सम्मान इस बात पर टिका हुआ है कि आम के पेड़ सघन छाया देते हैं,मूल्यवान मधुरफल मालिकों को सहज स्वभाव देते रहते हैं।
- उनकी लकड़ी तक काम आती है।जो झाड़-झंखाड़ एक भी प्रयोजन सिद्ध नहीं करते,उनका बढ़ना,फैलना सभी की आंखों में अखरता है और एक दिन वह आता है कि जलावन के निमित्त उन्हें काटकर धराशायी बना दिया जाता है।
- दूसरों की सहायता करना वस्तुतः अपनी सहायता के लिए सुदृढ़ आधार खड़ा करना है।गाय दूध देती है और बछड़े कृषि योजना में अपना श्रम नियोजित करते हैं।फलतः गोवंश की पूजा होती है।चारे-दाने का भी उपयुक्त प्रबंध किया जाता है।
- इसके विपरीत बकरे,भैंस के कटरे किसी के काम नहीं आते।फलतः उन्हें पूरी आयु जी सकने का अवसर ही नहीं मिलता।मांसाहारी उन्हें काट-पीटकर उठती उम्र में ही समाप्त कर देते हैं।खर-पतवार,झाड़-झखाड़ भी इसी दुर्गति के भागीदार बनते हैं।बूढ़े पशु किसी की सहायता कर सकने योग्य नहीं रहते।ऐसी दशा में संसार का प्रचलन उन्हें कसाई के हाथों सौंप देता है।
- तात्पर्य यह है कि छात्र-छात्राएं एक-दूसरे का सहयोग करते हैं तो इससे अपनी प्रगति का मार्ग ही प्रशस्त करते हैं।सारी बातें एक एकाकी विद्यार्थी सीख नहीं पाता अथवा बहुत सी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।प्रगति की रफ्तार धीमी पड़ जाती है।
4.सहयोग की वृत्ति रखें (Keep an Attitude of Cooperation):
- मनुष्य की विशेषता यों उसकी बुद्धिमता की मानी जाती है,पर वस्तुतः वैसा है नहीं।सहयोग की वृत्ति ही मानवी विशेषता का आधार स्तंभ है।उसके द्वारा प्राप्त उपलब्धियों से ही दूसरे ने ज्ञान पाया,अनुभव लिया और आदान-प्रदान की राह पर चलते हुए उस स्थान तक पहुंच सकना संभव हुआ जिस पर आज वह है और सृष्टि का मुकुटमणि माना जाता है।
- हर कोई यदि अपने ज्ञान,श्रम और वैभव को अपने लिए ही सीमाबद्ध रखे रहता तो उन महान कार्यों में से एक भी न बन पड़ता,जिनमें सामूहिक श्रम का बढ़-चढ़कर नियोजन हुआ है।
- दैनिक जीवन में काम आने वाली प्रायः सभी वस्तुएं ऐसी हैं जो अनेकानेक के श्रम,सहयोग से उपयोग में आ सकने योग्य बनी हैं।जिस कपड़े को हम पहनते हैं,वह कपास बोने वाले,सूत कातने वाले,बनने-सीने वाले के सहयोग से बना है।इन प्रयोजनों में जिन उपकरणों का प्रयोग हुआ है,वे भी अनायास नहीं बन गए।अनेक हाथों से अपने प्रकार के कौशल दिखाए जाने पर ही उनका निर्माण होता है और कपड़ा पहने जाने की स्थिति तक पहुंचता है।
- किसान द्वारा अन्न उपजाने से लेकर उसकी रोटी बनाने तक की प्रक्रिया इतनी लंबी है कि उतनी दूरी पार करने में ही निर्माण,परिवहन में काम आने वाले अनेकानेक माध्यम तक बन जाते हैं,जब अनेकों का अनेक प्रकार का सहयोग एकीभूत हो जाता है।सहयोग मनुष्य जीवन का प्राण है और प्रगति का,सुविधा का आधार।उसकी उपेक्षा नहीं की जा सकती।
- यदि महान गणितज्ञ,वैज्ञानिक अपनी खोजों,आविष्कारों का उपयोग स्वयं के लिए ही करते और एक-दूसरे की सहायता-सहयोग नहीं करते अथवा ज्ञान का वितरण नहीं करते,विद्या का प्रसार नहीं करते तो आज जितनी भौतिक उन्नति,विज्ञान की उन्नति हुई है और मानव जिन सुख-सुविधाओं का उपयोग कर रहा है वह देखने को नहीं मिलती।
- गणित का कोई विद्यार्थी सवालों,समस्याओं को हल करने में जूझ रहा होता है तब भी वह समस्या हल नहीं होती तो उसके मित्र-सहपाठी उसको सवाल समझाने,हल करने में मदद करते हैं तो झट से वह समस्या हल हो जाती है।प्रश्नावली के सवालों को समय पर हल करके वह अगली प्रश्नावली को हल करने के लिए तैयार रहता है।अध्यापक के साथ-साथ चल पड़ता है।
- यदि छात्र-छात्राएं एक-दूसरे का सहयोग नहीं करें तो वे पिछड़ते चले जाएंगे।अध्यापक जी पांचवी प्रश्नावली पढ़ा रहे होंगे तथा वह तीसरी-चौथी प्रश्नावली को हल करने में ही मशगूल रहेगा।सहयोग-सहायता के बिना उनके किसी विषय का कोर्स-पाठ्यक्रम पूर्ण नहीं हो पाएगा।फलतः गणित तथा अन्य विषयों की पुनरावृत्ति नहीं कर पाएंगे।परीक्षा में श्रेष्ठ प्रदर्शन नहीं कर पाने के कारण उनको कम अंक प्राप्त होंगे।
- ऐसे विद्यार्थी जैसे-तैसे डिग्री हासिल करेंगे।जाॅब प्राप्त करने के लाले पड़ जाएंगे।जीवन की दौड़ में वे पिछड़ते जाएंगे।इसका अर्थ यह नहीं है कि विद्यार्थियों को सहायता-सहयोग से ही आगे बढ़ना चाहिए।स्वयं के प्रयत्न करने पर भी किसी जटिल समस्या के हल न होने पर ही सहायता-सहयोग लेनी चाहिए अथवा करनी चाहिए।क्योंकि दूसरों पर अत्यधिक निर्भरता विद्यार्थी को पराधीन बना देती है।फिर ऐसा विद्यार्थी अपने बलबूते कोई भी समस्या,सवाल हल नहीं कर पाता है अथवा किसी थ्योरी को नहीं समझ पाता है।
5 सहयोग का दृष्टांत (Example of Cooperation):
- एक विद्यार्थी की पढ़ाई का आर्थिक भार उसका बड़ा भाई वहन करता था।अचानक दुर्घटना में एक के बाद एक अर्थात् उसके भाई व पिताजी की मृत्यु हो गई।परिवार का सारा बोझ विद्यार्थी के कंधों पर आ गया।वह अपनी ग्रेजुएशन पूरी कर चुका था।उसने अपने मित्रों के सामने यह समस्या रखी।
- एक मित्र ने उसे सुझाव दिया कि वह कोचिंग खोल ले तथा उसमें वह भी उसकी मदद कर देगा।विद्यार्थी कॉमर्स से ग्रेजुएशन था जबकि मित्र गणित से बीएससी था।विद्यार्थी छात्र-छात्राओं को अंग्रेजी पढ़ाता और उसका मित्र गणित पढ़ाया करता था।
- उसका मित्र कोचिंग में पढ़ाने की एवज में कोई पारिश्रमिक नहीं लेता था।अक्सर अधिकतर विद्यार्थी गणित व साइंस के विषयों की कोचिंग ही अधिक करते थे।अतः उसकी कोचिंग में छात्र-छात्राओं की अच्छी-खासी संख्या हो गई।
- फलस्वरूप उसके परिवार का खर्चा आसानी से कोचिंग के आधार पर चल जाता था।धीरे-धीरे उसने प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी भी चालू रखी।प्रतियोगिता परीक्षा में वह एपीयर होता रहता था।
- कुछ साल की मेहनत रंग लाई और उसका चयन एक अच्छे जॉब पर हो गया।लेकिन उसने छात्र-छात्राओं को कोचिंग कराना नहीं छोड़ा बल्कि अपने जॉब के साथ कोचिंग कराता रहा।परंतु उसके धनार्जन का मुख्य आधार जाॅब बन गया।कोचिंग को अब वह पार्ट टाइम ही दे पाता था।फलतः कोचिंग में छात्र-छात्राओं की संख्या कम हो गई।
- अपने मित्र की सहायता-सहयोग के बल पर उस पर जो आकस्मिक आपदा आ गई थी उसको आसानी से हल कर लिया।एक दिन ऐसा आया कि वह आर्थिक रूप से काफी सुदृढ़ हो गया।अब उसे किसी सहयोग-सहायता की आवश्यकता नहीं रही।तात्पर्य है यह है कि सहायता-सहयोग के बल पर समस्याओं-कठिनाइयों का आसानी से सामना कर पाता है।अन्यथा एक अकेला व्यक्ति संघर्ष में टूट भी जाता है और बिखर जाता है।परंतु किसी का संबल मिल जाता है तो वह टूटने-बिखरने से बच जाता है।
- उपर्युक्त आर्टिकल में प्रगति का आधार सहयोग (Basis of Progress is Cooperation),प्रगति का आधार सहयोग और सहायता (Basis of Progress is Cooperation and Assistance) के बारे में बताया गया है।
Also Read This Article:How to Test Progress of Maths Students?
6.प्रश्नावली हल करने का तरीका (हास्य-व्यंग्य) (How to Solve Questionnaire) (Humour-Satire):
- एक गणित अध्यापक गणित की प्रश्नावली के सवाल बड़ी तेज गति से हल करवा रहा था।आखिर एक कमजोर छात्र से रहा नहीं गया और उसने कहा कि सर सवालों को आहिस्ता से हल करवाओ,कठिन सवालों को भी बड़ी तेजी से हल करवा रहे हो।मुझे डर लगता है कि कहीं मैं फेल न हो जाऊं।
- गणित शिक्षक बोला:तो आप मेरी तरह आंख बंद करके सवालों को नोटबुक में हल करते जाओ।
7.प्रगति का आधार सहयोग (Frequently Asked Questions Related to Basis of Progress is Cooperation),प्रगति का आधार सहयोग और सहायता (Basis of Progress is Cooperation and Assistance) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
प्रश्न:1.क्या पराधीन होकर जॉब करना चाहिए? (Should I Be Under Control?):
उत्तर:सरकारी नौकरियों में कई तरह की आजादियों पर पाबंदियां है।निजी नौकरियों में तो ओर भी पाबंदियां होती है और आदमी मजबूर होकर उन्हें बर्दाश्त करता है।जमाने की आर्थिक मजबूरियों को देखते हुए हरेक के लिए यह संभव नहीं,क्योंकि आदमी को सोचना पड़ता है कि अगर लगा हुआ धंधा छोड़ देगा तो आगे क्या करेगा और अपना व परिवार का गुजारा कैसे करेगा? फिर भी ऐसी पाबंदी का,जिससे आत्मसम्मान को चोट पहुंचती हो,डटकर विरोध करना चाहिए और उसका नतीजा भुगतने करने के लिए तैयार रहना चाहिए।
प्रश्न:2.प्राचीन काल में समाज किस आधार पर कायम था? (On What Basis Did Society Exist in Ancient Times?):
उत्तर:प्राचीन काल में समाज सहयोग और सहकारिता के आधार पर कायम था।इसलिए अगर गांव में किसी के पास खाने को अन्न नहीं होता,तो दूसरे उसे अन्न देते थे।नहीं देने वाला पापी समझा जाता था।मतलब यह है कि गांव में कोई भूखा नहीं सोता था।
प्रश्न:3.क्या आधुनिक युग में सहयोग की व्यवस्था संभव है? (Is It Possible to Cooperate in Modern Times?):
उत्तर:अब तो हर चीज पैसों में कीमत देकर खरीदी जाती है।हालत यह है कि एक तरफ तो बहुत से गरीब लोग दाने-दाने को तरसते हैं,दूसरी तरफ धनवान लोग जरूरत से भी ज्यादा ठूसते हैं और सामूहिक भोज में हजारों मन खाना जूठन के रूप में बर्बाद होता है।मध्यम वर्ग की इतनी हैसियत नहीं है कि वे दूसरों की मदद कर सकें।उन्हें तो अपने घर का खर्च चलाना भी दूभर है।
आज के संदर्भ में सहयोग-सहायता का आशय है कि जिसके पास जरूरत से ज्यादा है उसे जरूरतमंदों की सहायता करनी चाहिए।जो ऐसा नहीं करता वह पापी है।छात्र-छात्राओं में भी जो समर्थ व सक्षम है उन्हें कमजोर छात्र-छात्राओं की मदद करनी चाहिए और उन्हें भी अपने साथ उन्नति-प्रगति में शामिल करना चाहिए।अन्यथा किसी एक वर्ग की प्रगति तो हो और दूसरे वर्ग की प्रगति न हो तो समाज व देश प्रगति नहीं कर सकता है।
- उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा प्रगति का आधार सहयोग (Basis of Progress is Cooperation),प्रगति का आधार सहयोग और सहायता (Basis of Progress is Cooperation and Assistance) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
No. | Social Media | Url |
---|---|---|
1. | click here | |
2. | you tube | click here |
3. | click here | |
4. | click here | |
5. | Facebook Page | click here |
6. | click here |
Related Posts
About Author
Satyam
About my self I am owner of Mathematics Satyam website.I am satya narain kumawat from manoharpur district-jaipur (Rajasthan) India pin code-303104.My qualification -B.SC. B.ed. I have read about m.sc. books,psychology,philosophy,spiritual, vedic,religious,yoga,health and different many knowledgeable books.I have about 15 years teaching experience upto M.sc. ,M.com.,English and science.