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Basis of Pleasure Life is Planned Life

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1.सुखी जीवन का आधार सुनियोजित जीवन (Basis of Pleasure Life is Planned Life),सुनियोजित जीवन से सुखी जीवन (Happiness Life from Planned Life):

  • सुखी जीवन का आधार सुनियोजित जीवन (Basis of Pleasure Life is Planned Life) में निहित है।लोगबाग सुख को साधन-सुविधाओं व धन-संपत्ति के अंदर ढूंढते हैं।परंतु उन्हें इन सबमें सुख नहीं मिलता है।जो कुछ भी है उसी हाल में संतोष रखना सुख का आधार है।
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2.सुखी कौन है? (Who is happiness?):

  • सुखी वह नहीं होता जिसके पास बहुत कुछ होता है बल्कि सुखी वही हो सकता है जो संतोषी हो।संतोष का ही दूसरा नाम सुख है।हमारे पास क्या है इसका सुख से कोई संबंध नहीं है बल्कि जो जो हमारे पास है उससे राजी रहने से,संतुष्ट रहने से सुख का संबंध है।हम गरीब होकर भी सुखी रह सकते हैं यदि संतोषी स्वभाव रखते हों।यदि हम ‘हाजिर में हुज्जत नहीं,गैर में तलाश नहीं’ वाली प्रवृत्ति रखते हैं तो हम कभी भी दुखी नहीं हो सकते।

3.दुखी कौन है? (Who is suffering?):

  • दुखी होने का संबंध गरीबी से नहीं है वरना कोई भी अमीर कभी दुखी होता ही नहीं।दुःख का संबंध हमारी इच्छा की पूर्ति न होने या इच्छा के विरुद्ध कुछ घटित होने से होता है,भूतकाल या भविष्य काल में जीने से होता है और इस बात से होता है कि हम उसे किस तरह और कितनी मात्रा में अनुभव करते हैं।हमारी सहनशक्ति से दुःख का संबंध होता है,यही वजह है कि कोई दुःख किसी को बहुत भारी मालूम पड़ता है,किसी को बहुत हल्का मालूम पड़ता है तो किसी को उसका अनुभव ही नहीं होता है और हंसते-खेलते हुए जिंदादिली के साथ अपना जीवन व्यतीत करता है।ऐसा व्यक्ति जीवन को एक खेल,क्रीड़ा समझता है और अपना उत्कृष्ट योगदान देकर इस जीवन से विदा होता है।ऐसा व्यक्ति ही वास्तव में सच्चा कर्मयोगी होता है।
  • हमारी सहनशक्ति और सूझबूझ की मात्रा पर ही दुःख की अनुभूति निर्भर होती है।सहनशक्ति और सूझबूझ हर व्यक्ति की अलग-अलग होती है इसीलिए कोई दुःख किसी को बहुत भारी मालूम पड़ता है,किसी को हलका मालूम पड़ता है तो किसी को मालूम ही नहीं पड़ता।यह सब हमारे मनोबल,विवेक और धैर्य पर निर्भर करता है कि हम दुःख का अनुभव करें या ना करें।

4.दुःख का कारण (Cause of grief):

  • सुख-सुविधाओं का उपयोग करना,भोगों को भोगना या सुख-सुविधाओं का अभाव होना,भोगों का भोग ना करना दुःख का कारण नहीं होता क्योंकि सुख-सुविधाएँ और भोग होते ही हैं उपयोग करने और भोगने के लिए।सुख-सुविधाओं का अत्यधिक उपयोग हमें अति की ओर ले जाता है और हमें विलासी बना देता है।विलासी जीवन (Luxurious Life) का कोई ओर-छोर नहीं है और जो इसके चक्रव्यूह में फंस जाता है वह दुःखों को आमंत्रित कर लेता है क्योंकि इसका कोई अंत नहीं है।अंत न होने के कारण और अधिक पाने की लालसा बनी रहती है।विलासी जीवन में नियम-संयम और अनुशासन का पालन करने का ख्याल नहीं रहता है।
  • सुख-सुविधाओं और भोगों का भोग करने में अति की जाए तब तो दुःख भोगना पड़ता ही है साथ ही सुख-सुविधाओं और भोगों का चिंतन करने से भी दुखी होना पड़ता है।नाना प्रकार की सुख-सुविधाओं और भोगों का चिंतन करने वाली बुद्धि चंचल रहती है और किसी एक विषय पर स्थिर नहीं हो पाती।विषयों में आसक्त और अस्थिर बुद्धि भोगों का चिंतन करती है जिससे कामनाएं जागृत होती है।कामनाओं की पूर्ति न हो तो दुःख उत्पन्न होता है और बाधा व विलंब होने पर क्रोध उत्पन्न होता है।क्रोध से विवेक नष्ट होता है और अविवेक से स्मृति का नाश होता है।स्मृति नष्ट होने से बुद्धि नष्ट होती है।इस प्रकार व्यक्ति अनेक विकारों से ग्रस्त होता चला जाता है।अतः सुख-सुविधाओं और भोगों का भोग करने के बाद इसका चिंतन (ख्याल) कदापि नहीं करना चाहिए।
  • वस्तुतः सुख सब चाहते हैं परंतु सुख-सुविधाओं में सुख नहीं मिलता।जैसे पलंग तो मिल जाता है पर नींद नहीं मिलती,पुस्तकें मिल जाती है ज्ञान नहीं मिलता,भोजन मिल जाता है पर भूख नहीं मिलती,रुपया-पैसा मिल जाता है,मन का चैन नहीं मिलता इसी तरह सुख के साधन तो मिल जाते हैं पर सुख नहीं मिलता।
  • सुख पाने के लिए कुछ उपाय करने होंगे जैसे आप विवेक,धैर्य और साहस का साथ कदापि न छोड़े,निराश होने की आदत ना रखें,अपनी आमदनी में से कुछ हिस्सा बचा कर रखें,एक क्षण भी व्यर्थ नष्ट न करें,नियम-संयम,अनुशासन,परिश्रम और पुरुषार्थ करने के अभ्यस्त रहें,आज का काम कल पर न छोड़े,दिनचर्या ठीक रखकर उचित आहार-विहार एवं आचार-विचार का पालन करें,संतोषी भाव रखें और भगवान के विधि-विधान पर बेशर्त श्रद्धा रखकर शुभ कर्म करते रहें,सुनियोजित जीवन जीने की कला सीखें तो कभी ना कभी आप सुखपूर्ण जीवन को उपलब्ध हो ही जाएंगे क्योंकि जीवन में देर तो होती है पर अन्धेर नहीं होती।आपने एक प्रसिद्ध कहावत अवश्य सुनी या पढ़ी होगी:वक्त से पहले और मुकद्दर से ज्यादा ना किसी को मिला है और न कभी मिलेगा।
  • दरअसल सुख और दुःख एक ही सिक्के के दो पहलू हैं जिसने सुख चाह लिया तो उसके साथ कुछ ना कुछ दुःख भी साथ चला आता है।सुख का अर्थ है दुःख की कम से कम अनुभूति और दुःख का अर्थ है सुख की कम से कम अनुभूति।दोनों दो पृथक अवस्थाएं नहीं है परंतु हम समझते ऐसा ही हैं।

5.सुख का आधार सुनियोजित जीवन (The basis of happiness is a well-planned life):

  • इस संसार में हर व्यक्ति में कुछ ना कुछ फर्क है।कोई धनी,कोई निर्धन,किसी के पास विद्या अधिक,कोई बुद्धिहीन,कोई अपने साधन पर निर्वाह करता है,किसी ने उधार लेने की आदत डाल ली है।किसी का स्वास्थ्य बहुत अच्छा है,कोई खा-पीकर भी दुबला है।विविधतापूर्ण संसार है,यहां व्यक्ति-व्यक्ति में अंतर स्वाभाविक है।
  • जीवन विकास के लिए यह जरूरी है कि प्रत्येक व्यक्ति अपनी विशिष्टता को बढ़ाकर अपना ऐसा विकास करे कि वह अपने आश्रित परिजनों का जीवन उत्कृष्ट श्रेणी का बनाता हुआ मानवीय उद्देश्य की प्राप्ति के लिए अग्रसर होता चले।इस जीवन की शांति ही पारलौकिक शांति है,इस जीवन का संतोष ही पारलौकिक संतोष है।यह जीवन-सुख ही पारलौकिक सुख है,इसलिए स्वर्ग पाना है तो इसी जीवन को स्वर्ग बना लो।
  • इसे समझने के लिए हम तुलनात्मक अध्ययन करते हैं और एक उदाहरण से इसे समझते हैं।एक व्यक्ति धनाढ्य है,उसकी बड़ी हवेली है।बैंक में पैसा जमा है और भी सब साधन मुहैया हैं,यदि कोई वस्तु उनके घर में नहीं है,वह है सुख,शांति और संतोष।
    दूसरा एक और व्यक्ति है जो निर्धन है।बैंक में पैसे भी जमा नहीं।घर भी बहुत साधारण श्रेणी का है।उसके लड़के और लड़कियां पढ़ती भी हैं।कभी उससे पूछो कि तुम कैसे हो,क्या हाल-चाल है तो उत्तर मिलता है कुशलमंगल है।खूब आनंद से जिंदगी कट रही है,बच्चे सुखी हैं,किसी का लेना नहीं देना नहीं।
  • सौभाग्यजनक स्थिति में दुर्भाग्य और अभावग्रस्त स्थिति में आनंद,इन दोनों के जीवन को गौर से देखें तो समझ में आ जाएगा।
    कारण स्पष्ट है धनाढ्य व्यक्ति के परिवार में सब स्वतंत्र हैं,परम स्वतंत्र हैं।वैसे ही उन सबकी इच्छाएं और वृत्तियाँ स्वतंत्र हैं।सब मनमाना पैसा पाते हैं और उसे जी चाहे जहां खर्च करते हैं।आर्थिक नियंत्रण न होने से बच्चे बिगड़ गए हैं,रोज एक टंटा मोल ले आते हैं,स्त्रियों में परस्पर अधिकार के लिए झगड़ा होता है।धनाढ्य व्यक्ति समझता है कि करोड़ों रुपए कमाकर अपना कर्त्तव्य पूरा कर रहा है,पर उसका किसी पर नियंत्रण नहीं।सच पूछो तो घर के लोग कहां जा रहे हैं,क्या कर रहे हैं,उसका भी उन्हें कुछ पता नहीं रहता।
  • जबकि निर्धन व्यक्ति कि जितनी आय उतना व्यय।बच्चों को रुपए तब देते हैं,जब पिछले पांच रुपए का हिसाब मिल जाता है।बच्चे भी नई कॉपी तब खरीदते हैं,जब पुरानी खत्म हो जाती है।बाजार में खाने-पीने की आदत डाली नहीं,जो कुछ बनता है,चौके में बनता है और घर के लोग वहीं बैठकर बराबर खा लेते हैं।सब एक-दूसरे के हित और आवश्यकताओं का ध्यान रखते हैं।अब आप सोच सकते हैं कि इनके घर में क्यों उधम होने लगा? सब अपने-अपने काम में लगे हैं।
  • दोनों व्यक्तियों के रहन-सहन और परिस्थितियों की तुलना करने के बाद हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि सुखी जीवन के लिए प्रत्येक वस्तु का योजनापूर्वक उपयोग आवश्यक है।नियंत्रण और सुचारुरूप से बरती थोड़ी-सी वस्तु एवं साधारण सी स्थिति भी यथेष्ट सुख और आनंद दे सकती है,जबकि अनियंत्रित,अयोजनाबद्ध बड़े लाभ,बड़े काम उतने ही दुःखदायी होते हैं।
    मनुष्य जीवन एक बौद्धिक कला है,जिसे संपन्न करने के लिए परमात्मा ने अनेक आवश्यक और उपयोगी शक्तियां दी हैं।शक्ति का योजनापूर्वक अपनी व दूसरों की भलाई में उपयोग करने की कला जिसे आ जाती है,वह थोड़े से साधनों में भी आनंद-लाभ प्राप्त कर सकता है,जीवन को सफल और सार्थक बना सकता है।आत्मानुशासन,अर्थानुशासन की कला जिसने सीख ली वह दुःखी नहीं रह सकता है।
  • जो लोग साधारण परिस्थितियों से उठकर बड़े व्यवसायी,सफल नेता अथवा महान गणितज्ञ,वैज्ञानिक,महामानव बने हैं,उनके जीवन में आत्मशक्तियों के सुनियोजित व्यवहार ही ऊपर उठने के आधार रहे हैं।जिन लोगों ने सफलता के मद में आकर उन आधारों को छोड़ दिया है,वे उच्च स्थिति से गिरकर बिल्कुल चकनाचूर भी हो गए हैं।जीवन का सनातन नियम है,अपनी शक्तियों को सही दिशा में योजनापूर्वक उपयोग कर आगे बढ़ना।उसी का उल्टा रूप असंतोष,अशांति,फूट-कलह,कटुता और नरक के रूप में प्रस्फुटित और परिलक्षित होता है।
  • जरूरत से अधिक पैदा करना बुरा नहीं।अपनी स्थिति से और से स्पर्धा कर आगे बढ़ना भी बुरा नहीं।आज की अपेक्षा कल का जीवन अधिक सुखद,सुरुचिपूर्ण रहे तो यह ठीक है,पर यह ध्यान प्रतिक्षण रहे कि गतिविधियों का संचालन करने वाला स्टियरिंग-अपना संतुलन न बिगड़ने दें।आय से अधिक खर्च और आवश्यकता से अधिक उपभोग की आदत ही मनुष्य को दुःखद स्थिति में पहुंचाती है।उसके लिए धनाढ्य और निर्धन व्यक्ति दोनों एक जैसे हैं।जो उस नियम पर चलेगा,सुखी रहेगा,इसके विपरीत चलनेवाला कष्ट भोगेगा,कलह में पड़ा रहेगा।
  • हमारा एक उद्देश्य होना चाहिए-आत्मोन्नति।आत्मोन्नति बड़ा व्यापक शब्द है,आत्मोन्नति का भाव अपने आप तक ही सीमित नहीं,वह सार्वजनिक हित का बोध कराता है।हम अपना ध्येय अपना तथा औरों का हित बना लें और फिर यह सोचते रहे कि उस ध्येय की सिद्धि कैसे हो? इसी विचार को यदि कार्यरूप में परिणत करते समय इतनी योग्यता प्राप्त कर ली जाए कि उसका सुव्यवस्थित ढांचा क्या हो तो फिर मार्ग और साधन अलग-अलग होते हुए भी सुखी जीवन जिया जा सकता है।उपर्युक्त दृष्टांत में निर्धन व्यक्ति के जीवन में यही विशेष है,जबकि धनाढ्य व्यक्ति के जीवन में शेष सब कुछ है,नियोजन नहीं है,इसी से उनका जीवन असफल और दुखी है।
  • जीवन विकास के लिए हमें उपर्युक्त निर्धन व्यक्ति की तरह सुनियोजित और सुव्यवस्थित जीवन जीना चाहिए।सुखी जीवन की यह व्यावहारिक कुंजी है।

6.छात्र-छात्राएं दुःखी होने से कैसे बचें? (How do students avoid being sad?):

  • शारीरिक पीड़ा कष्ट तो भुगतना ही पड़ता है उससे बचना तो बहुत कठिन है।परंतु मानसिक कष्ट से मुक्ति पाई जा सकती है।मानसिक दुःख,पीड़ा और कष्ट अज्ञान के कारण महसूस होता है।विद्यार्थी काल ज्ञान अर्जित करने और अपने अज्ञान को दूर करने के लिए मिला है।ज्यों-ज्यों हम ज्ञान अर्जित करते जाते हैं त्यों-त्यों अज्ञान खुद-ब-खुद दूर होता जाता है।इसके लिए अज्ञान के पीछे लट्ठ लेकर भागने की जरूरत नहीं है।ज्ञान प्रकाशस्वरूप है और ज्योंही प्रकाश होता है अज्ञान,अन्धकार खुद दूर हो जाता है।
  • सुख और दुःख की अनुभूतियाँ अज्ञान के कारण होती है।अज्ञान ही मोह है और ‘मोह सकल व्याधिन कर मूला’ के अनुसार सब व्याधियों की जड़ यह मोह यानी अज्ञान ही है।लेकिन इसके लिए भौतिक ज्ञान अर्जित करना ही पर्याप्त नहीं है।भौतिक ज्ञान तो हम हमारे कोर्स की पुस्तकें पढ़ते हुए अर्जित करते ही हैं या कह लीजिए करना पड़ता ही है।भौतिक ज्ञान के साथ-साथ थोड़ा-बहुत आध्यात्मिक ज्ञान और व्यावहारिक ज्ञान भी अर्जित करना चाहिए।चूँकि यह ज्ञान शिक्षा संस्थानों में प्राप्त नहीं किया जा सकता है,क्योंकि वर्तमान पाठ्यक्रम में ऐसी व्यवस्था नहीं है।इसके लिए आपको थोड़ा-सा समय नित्यप्रति निकालकर स्वयं प्रयास करके अर्जित करना पड़ेगा।कोर्स की पुस्तकों को पढ़ने के साथ-साथ व्यावहारिक जीवनोपयोगी और आध्यात्मिक पुस्तकें भी पढ़ते रहना चाहिए।
  • परंतु वास्तव में होता यह है कि अधिकांश छात्र-छात्राएं अपनी कोर्स की पुस्तकें पढ़ने में ही व्यस्त रहते हैं और उन्हें इस तरफ ध्यान दिलाने वाला कोई होता नहीं है,न वे स्वयं इस तरफ ध्यान देते हैं,ध्यान जाता भी है तो वे इसे निरर्थक व अनुपयोगी मानते हैं।फलस्वरूप डिग्री लेकर जब वे स्कूल,कॉलेज या विश्वविद्यालय से निकलते हैं और जीवन क्षेत्र में कदम रखते हैं तो जीवन की वास्तविक सच्चाइयों से उनका साबका होता है।विपरीत परिस्थिति,मन की इच्छाएं पूरी न होने पर दुःखी भी होते हैं और काम सफल हो जाता है,मन की कामना पूरी हो जाती है तो सुख का अनुभव करते हैं।इस प्रकार उनकी जीवन नैया सुख व दुःख का अनुभव करते हुए गुजरती रहती है।
  • सुख व दुःख एक ही सिक्के के पहलू हैं।विद्यार्थी काल में सुख व दुखों को सहन करते हुए ज्ञान अर्जित करना ही तप है।जो विद्यार्थी जितना तपता है,उतना ही निखरता जाता है,उसके गुणों का विकास होता जाता है।सुख व दुःख को सम्भाव रखने की कला में जो विद्यार्थी पारंगत हो जाता है वही तपस्वी है।सुख-दुःख से प्रभावित न होना ही तप है,द्वंद से (जय-पराजय,हानि-लाभ,सुख-दुःख,सर्दी-गर्मी,सफलता-असफलता आदि) से दूर रहना ही तप है और यही आनंद है।जहां न सुख हो और न ही दुःख हो,वहीं आनंद होता है इसलिए तपस्वी ही आनंदित होता है।संसारी व्यक्ति सुखी भी होता है,दुःखी भी होता है पर आनंदित नहीं होता हालांकि वह कहता जरूर है कि बड़ा आनंद आया,बड़े आनंद में हूं पर ऐसा वह आदतन कहता है।बिना यह जाने की वास्तव में आनंद है क्या?यह सुख को आनंद समझने का ही भ्रम है।
  • सुख व दुःख की परवाह न करने,सम्भाव रखने से वे शोक,निराशा और चिंता से बचें रहते हैं क्योंकि सुख पाकर वे अत्यधिक खुश नहीं होते और दुःख उन्हें विषादग्रस्त नहीं कर पाता है।ऐसा विद्यार्थी अपना जीवन आनंदपूर्वक गुजारकर जीवन का अंत होने पर आगे की उत्तम यात्रा पर चल देता है,अपना उत्तम रोल प्ले करके विदा होता है।
    उपर्युक्त आर्टिकल में सुखी जीवन का आधार सुनियोजित जीवन (Basis of Pleasure Life is Planned Life),सुनियोजित जीवन से सुखी जीवन (Happiness Life from Planned Life) के बारे में बताया गया है।

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7.अतिरिक्त विषय का पाठ (हास्य-व्यंग्य) (Additional Subject Text) (Humour-Satire):

  • छात्र (निदेशक से):मुझे गणित विषय के साथ-साथ अन्य विषय के पाठ भी पढ़ाए गए हैं जबकि मैंने गणित पढ़ाने का ही निवेदन किया था।
  • निदेशकःठीक है तो क्या हुआ,आप एक्स्ट्रा विषय की फीस भी दे दो।

8.सुखी जीवन का आधार सुनियोजित जीवन (Frequently Asked Questions Related to Basis of Pleasure Life is Planned Life),सुनियोजित जीवन से सुखी जीवन (Happiness Life from Planned Life) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.आज छात्र सुख और दुःख के प्रति समभाव क्यों नहीं रखते? (Why do students not today have equanimity towards happiness and sorrow?):

उत्तर:आज के छात्र-छात्राएं तप यानी सुख और दुःख के प्रति समान भाव रखकर और इन दोनों से अलिप्त और अप्रभावित रहकर अपने कर्त्तव्यों का पालन नहीं करते और श्रम से जी चुराते हैं क्योंकि मौजूदा वातावरण और साथ-संगत के प्रभाव से वे बचपन से ही सुविधाभोगी मनोवृत्ति धारण कर लेते हैं तो नियम-संयम का पालन करने में उनकी जरा भी रुचि नहीं रहती।

प्रश्न:2.दुःख क्यों आवश्यक है? (Why is grief necessary?):

उत्तर:दुःख मनुष्य के विकास का साधन है।सच्चे मनुष्य का जीवन दुःख में ही खिल उठता है।सोने का रंग तपाने पर ही चमकता है।

प्रश्न:3.सात सुख कौनसे हैं? (What are the seven pleasures?):

उत्तर:धन का लाभ,आरोग्यता,प्रियतमा और मधुरभाषिणी स्त्री,आज्ञाकारी पुत्र,धन का लाभ करने वाली विद्या और सज्जनों का संग,अच्छा आवास ये सात सुख हैं।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा सुखी जीवन का आधार सुनियोजित जीवन (Basis of Pleasure Life is Planned Life),सुनियोजित जीवन से सुखी जीवन (Happiness Life from Planned Life) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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