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Achievement and Success for Students

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1.छात्र-छात्राओं के लिए उपलब्धि और सफलता (Achievement and Success for Students),गणित के छात्र-छात्राओं के लिए उपलब्धि और सफलता क्या है? (What is Achievement and Success for Mathematics Students?):

  • छात्र-छात्राओं के लिए उपलब्धि और सफलता (Achievement and Success for Students) से क्या तात्पर्य है अथवा उपलब्धि और सफलता में क्या अंतर है? उपलब्धि साधन है तो सफलता लक्ष्य (साध्य) है।छात्र-छात्राओं को साधन को सदैव साधन ही रखना चाहिए उसे साध्य का स्थान कभी भी प्रदान नहीं करना चाहिए।अपने साधन में लगे रहने वाले छात्र-छात्रा को यह बात अवश्य ध्यान रखना चाहिए कि जिस अध्ययन कार्य में वे संलग्न है अथवा जो जाॅब वे कर रहे हैं,उसका उद्देश्य क्या है? उस उद्देश्य को जान लेने या समझ लेने के बाद छात्र-छात्रा को उस उद्देश्य को प्राप्त करने में अपनी पूर्ण सामर्थ्य लगा देनी चाहिए।
  • उद्देश्य को प्राप्त करने में हो सकता है कि उनको अधिक धन की प्राप्ति न हो परंतु एक महान उपलब्धि अवश्य होगी वह है यश की प्राप्ति।उदाहरण के लिए गणितज्ञ को लिया जाए।यह पद उसकी जीविका का साधन है।गणितज्ञ के पद का उद्देश्य है गणित में नई-नई खोजें,अनुसंधान करना।यदि वह इस कार्य को श्रद्धा के साथ पूजा समझकर करता है तो असीम आनंद की प्राप्ति होती है।साथ ही वह यश,सम्मान आदि उपलब्धि प्राप्त करता है।
  • ऐसा छात्र-छात्रा भले ही भौतिक सुख-सुविधाओं के मोहजाल में न फँसे परन्तु उसके जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति अवश्य होती रहेगी।परंतु यदि वह आधुनिक आर्थिक युग और पाश्चात्य जीवन शैली के प्रभाव से केवल गणितज्ञ के जाॅब को धनोपार्जन का साधन बनाएगा तो सम्भव है वह धनोपार्जन कर ले।परंतु इस जाॅब (गणितज्ञ) से न तो उसे यश,सम्मान (उपलब्धि) की प्राप्ति होगी न जीवन में सफलता उसकी आत्मिक प्रगति में सहायक होगी।
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2.उपलब्धि और सफलता का स्वरूप (Nature of Achievement and Success):

  • एक विद्यार्थी का दायित्व है कि वह अध्ययन कार्य को साधना समझकर करे और उसमें डूब जाए।अक्सर माता-पिता बच्चों को नेगेटिव सजेशन देते रहते हैं।यह मत करो,वह मत करो तो वह असमंजस में पड़ जाता है,कुंठित और दमित मानसिकता में उलझा रहता है जिससे उसका उचित ढंग से विकास नहीं हो पाता।यह एक मनोवैज्ञानिक सत्य है कि बालकों को जिस काम के लिए मना किया जाता है उस काम के प्रति जिज्ञासा हो जाएगी कि ऐसा क्या है जो मना किया जा रहा है।इसलिए अक्सर ऐसा होता है कि जिस काम का जितना विरोध और निषेध किया जाता है वह काम उतना ही किया जाता है।
  • माता-पिता के रूप में सन्तान के प्रति यह दायित्व है कि वह संतान को ऐसी शिक्षा-दीक्षा दे जिससे वह जीवन के हर क्षेत्र में आगे बढ़ सके (सफलता प्राप्त कर सके) तथा एक मानव कहलाया जा सके।परंतु आजकल माता-पिता बच्चों को डाटेंगे,टोकेंगे या रोकेंगे।इससे बालक के मन-मस्तिष्क में यह संस्कार अंकित हो जाता हैं कि माता-पिता उसके शत्रु हैं।
  • अथवा सन्तान का बहुत लाड़-प्यार करेंगे,उनको भौतिक सुख-सुविधाएं उपलब्ध कराएंगे,उसकी हर इच्छा पूरी करेंगे जिससे जीवन में आने वाली कठिनाइयों,संघर्षों का सामना करने का व्यक्तित्त्व निर्माण नहीं हो पाता है।लाड़-प्यार में बच्चे निकम्मे और कायर बन जाते हैं।
  • वे अपने मन को नियंत्रित करना नहीं जानते हैं तथा उनमें जीवन की वास्तविक सच्चाइयों का मुकाबला करने का साहस नहीं होता है।ऐसे बच्चे नैतिक रूप से दुर्बल बन जाते हैं।आगे चलकर वे इच्छाओं की पूर्ति हेतु अनैतिक तरीके अपनाने लगते हैं।
  • न तो विद्यार्थी अध्ययन कार्य को पूर्ण निष्ठा के साथ करते हैं और न माता-पिता उसके उद्देश्य में सहायक होते हैं।एक विद्यार्थी का कर्त्तव्य है कि अपने कार्य को पूर्ण निष्ठा,समर्पण तथा सामर्थ्य के साथ प्रयत्नशील रहे।यदि वह ऐसा करता है तो अच्छे अंको से उत्तीर्ण होगा,जाॅब प्राप्त करने में कठिनाई नहीं होगी,अच्छा जाॅब प्राप्त करेगा।यह उसकी सफलता है और उसे यश,सम्मान या कोई अवार्ड मिलता है तो यह उसकी उपलब्धि है।
  • ज्यों-ज्यों वह उन्नति और तरक्की करता जाएगा त्यों-त्यों उसे सफलता प्राप्त होती जाएगी।सफलता कोई अंतिम पड़ाव नहीं है बल्कि यह आगे से आगे खिसकती जाती है।जैसे कोई विद्यार्थी 12वीं कक्षा के बाद बीएससी उत्तीर्ण कर लेता है,एमएससी उत्तीर्ण कर लेता है।इसके बाद पीएचडी करता है।पीएचडी के बाद शोध कार्य करता है।अन्तिम रूप से आत्मिक क्षेत्र में सफलता सर्वोच्च शिखर है जिसका कोई अंत नहीं है।

3.उपलब्ध में सफलता को सीमित न करें (Don’t Limit Success in Achievement):

  • यदि विद्यार्थी ने कोई उद्देश्य या लक्ष्य निश्चित कर रखा है।यदि उस लक्ष्य की उपलब्धि की प्राप्ति हो जाती है और छात्र-छात्रा वहीं तक सफलता को सीमित कर देता है तो उसी क्षण उसके जीवन का प्रयोजन समाप्त हो जाता है अथवा उसी क्षण उसका जीवन निष्प्रयोजन हो जाता है।
  • विद्यार्थी ऐसा करके खुद अपने प्रति अन्याय करता है तथा स्रष्टा के प्रयोजन को समझने में भूल करता है।विद्यार्थी को स्मरण रखना चाहिए कि उसके जीवन की सफलता आत्मिक उन्नति करना है जो अन्तहीन प्रयासों की श्रृंखला है।उपलब्धियां उक्त प्रयासों के परिणाम हैं।उपलब्धि को सर्वस्व मान लेना प्रयासों को विश्राम देना है जबकि सफलता के मार्ग में विश्राम के लिए कोई स्थान नहीं होता।
  • अतः हमारे मन में यह संकल्पना बद्धमूल होनी चाहिए की उपलब्धियां सफलता की साधन मात्र हैं।वे जीवन का साध्य नहीं हैं।साध्य तो सफलता है जिसकी कोई सीमा नहीं है क्योंकि आत्मिक उन्नति और विकास के साथ-साथ सफलता का स्तर उच्चतर तथा उसका स्वरूप श्रेष्ठतर होता जाता है।
  • दाहरणार्थ यदि किसी छात्र-छात्रा का लक्ष्य इंजीनियर बनना है।इसके लिए वह आईआईटी या अन्य संस्थान से बीटेक की डिग्री प्राप्त कर लेता है और किसी कंपनी में इंजीनियर बन जाता है।यदि वह सोचता है कि उसका लक्ष्य इंजीनियर बनना था और उसका प्रयोजन समाप्त हो गया है तो वह बहुत बड़ी भूल करता है। 
  • जब तक जीवन है तब तक उसका साध्य (सफलता) आगे से आगे क्षितिज की ओर बढ़ता जाता है।इंजीनियर बनने के साथ-साथ उसे इंजीनियर के पेशे का व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त करना होगा,व्यावहारिक जीवन को सुचारू रूप से सम्पन्न करने के लिए व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त करना होगा।इसके अलावा अपनी आत्मिक उन्नति के लिए उसे थोड़ा-बहुत आध्यात्मिक ज्ञान भी प्राप्त करना होगा।इस प्रकार जीवन क्षेत्र में उपलब्धि में सफलता सीमित नहीं बल्कि असीमित होती जाती है।
    अपने इंजीनियर के कार्य को पूर्ण निष्ठा से करने के लिए उसे अभ्यास करना पड़ेगा।महान गणितज्ञ
  • आर्कमिडीज,यूक्लिड,पाइथागोरस,भास्कराचार्य द्वितीय,आर्यभट प्रथम गणितीय कार्य को श्रद्धा के साथ पूजा समझकर करते थे।हमेशा अपने कार्य में तल्लीन रहते थे,अंतिम समय तक वे अपने कार्य में डूबे रहते थे।यदि आप अपने कार्य को साधना समझकर नहीं करेंगे तो कार्य में बोरियत या ऊब महसूस करोगे।जीवन से उकताहट हो जाएगी।आपको जीवन भार स्वरूप महसूस होगा।उपलब्धि में सफलता को सीमित करने के परिणाम अच्छे कैसे हो सकते हैं? जीवन में कोई भी किसी भी क्षेत्र में शिखर पर वही पहुंच सकता है जो अनवरत अपने काम को साधना समझ कर करें और उसमें डूब जाए।

4.उपलब्धि और सफलता की समीक्षा (Achievement and Success Review):

  • जीवन में सफल होने के लिए अनेक गुणों की आवश्यकता होती है।उन गुणों को धारण करके प्रत्येक छात्र-छात्रा उपलब्धि एवं सफलता अर्जित करता जाता है।छात्र-छात्रा अपने दोषों,दुर्बलताओं,कमियों को दूर करता रहे और पूर्ण निष्ठा एवं समर्पण की भावना के साथ अपने द्वारा निर्धारित लक्ष्य (सफलता) की प्राप्ति में लग जाए।उसको सफलता भी मिलेगी और उन्नति के अवसर भी प्राप्त होंगे।किसी भी छात्र-छात्रा के लिए प्रगति व उन्नति तथा सफलता के रास्ते हमेशा के लिए सभी रास्ते बंद नहीं हो जाते हैं।
  • किसी भी छात्र-छात्रा की सफलता का मूल्यांकन केवल उपलब्धि के आधार पर नहीं किया जाना चाहिए।छात्र-छात्रा की उत्कट आकांक्षा,उसको प्राप्त करने की इच्छाशक्ति की दृढ़ता और उसकी प्राप्ति के लिए किया जाने वाला संघर्ष इत्यादि के आधार पर अनुमान लगाया जा सकता है कि उनमें (छात्र-छात्रा) सफल होने की कितनी संभावनाएं हैं तथा वह सफलता की किन ऊंचाइयों को प्राप्त करने की क्षमता रखता है।
  • उत्साही एवं उत्कट आकांक्षा वाले विद्यार्थी के लिए यह पर्याप्त नहीं है कि वह श्रेष्ठ एवं सफल बनने में संतोष कर ले;उसके लिए अपेक्षित है कि श्रेष्ठतम तथा सफलता के उच्चतम शिखर पर पहुंचने का प्रयास करें।
  • उपलब्धि और सफलता के उपर्युक्त विश्लेषण से स्पष्ट है कि अन्तिम सफलता (लक्ष्य) प्राप्ति न तो किसी को होती है और न ही उन्हें (छात्र-छात्रा) कभी उपलब्धियों से सन्तोष होता है।
  • जीवन का लक्ष्य (सफलता) क्षितिज की भाँति है,हम ज्यों-ज्यों उसकी ओर बढ़ते जाते हैं वह हमसे दूर होता जाता है।क्षितिज की ओर बढ़ने वाले विद्यार्थियों को क्षितिज (अंतिम सफलता) भले प्राप्त न हुई हो परंतु उन्हें अनेक उपलब्धियां प्राप्त हो जाती है।
  • छात्र-छात्राओं को स्मरण रखना चाहिए कि शिक्षा का उद्देश्य उनके अंदर अंतर्निहित क्षमताओं व योग्यताओं को निखारना,उभारना व तराशना है।शिक्षा की सार्थकता है कि वह हमें अपनी आत्मिक शक्ति का अनुभव कराये।एक शिक्षित छात्र-छात्रा की दृष्टि पैनी एवं दृष्टिकोण विस्तृत होता है।
  • प्रत्येक छात्र-छात्रा उतनी ही वृद्धि,उन्नति अथवा प्रगति करता जाता है जितना वह अपने अंदर अंतर्निहित क्षमताओं और शक्तियों को प्रकट कर पाता है।उसकी उपलब्धियाँ परिस्थितियों के साथ उस छात्र-छात्रा द्वारा किए जाने वाले संघर्ष का परिणाम होती है।जो छात्र-छात्रा जीवन में सफलम छात्र-छात्रा से ईर्ष्या न करते हुए स्वस्थ प्रतियोगिता करता है उनको वांछित सफलता अवश्य प्राप्त होती है।
  • जो छात्र-छात्रा अपनी स्थिति-परिस्थितियों के प्रति असंतोष व्यक्त करते रहते हैं और अन्य छात्र-छात्राओं के प्रति ईर्ष्या करना पर्याप्त समझते हैं वे अपना अहित करते हैं और आगे नहीं बढ़ पाते हैं।

5.उपलब्धि और सफलता का दृष्टांत (The Parable of Achievement and Success):

  • एक नगर में गणित का एक विद्यार्थी था।बीएससी करने के बाद उसका चयन एक प्रतियोगिता परीक्षा में हो गया।उस पद के लिए प्रशिक्षण करना आवश्यक था।प्रशिक्षण का स्थान दूसरे नगर में था।उस विद्यार्थी के मित्र की बहिन उस दूसरे नगर में रहती थी।अपने मित्र से पता लेकर प्रशिक्षण हेतु वह दूसरे नगर में गया।विद्यार्थी के मित्र की बहिन ने उस विद्यार्थी की बहुत आवभगत की।जब तक उस विद्यार्थी के किराए के कमरे की व्यवस्था नहीं हुई तब तक वह मित्र की बहिन के घर ठहरा।
  • इसी दौरान मित्र के बहिन के लड़के का जन्मदिन था।उस विद्यार्थी ने बाजार से उसके जन्मदिन पर कपड़े देने के लिए रेडीमेड सूट खरीदा और दे दिया।परंतु उस मित्र की बहन ने स्वीकार नहीं किया।
  • मित्र की बहिन ने कहा कि अभी तुम विद्यार्थी हो,तुम्हारा खुद का खर्चा वहन करना ही मुश्किल है।ऐसी स्थिति में यह ठीक नहीं है कि इतना महंगा सूट खरीद कर जन्मदिन पर भेंट किया जाए।विद्यार्थी उसके उत्तर से स्तब्ध रह गया।
  • मित्र की बहन ने कहा कि जहां इतने परिवार के लोग भोजन करते हैं,वहाँ एक ओर व्यक्ति के लिए भोजन करना कौन-सी बड़ी बात है।वैसे भी भारतीय संस्कृति की परंपरा है कि अतिथि देवो भवः।
  • मित्र की बहिन ऐसा करके धन की क्षतिपूर्ति नहीं कर सकी हो परन्तु अपने पारिवारिक कर्त्तव्यों और अतिथि के रूप में कर्त्तव्य पालन करके सफलता तो प्राप्त कर ही ली।
  • उसकी यश उसकी उपलब्धि है जिसकी चर्चा इस लेख में की जा रही है।उसके पारिवारिक कर्त्तव्य और अतिथि सत्कार उसके जीवन की सफलता के खाते में जमा होता जाएगा।मित्र की बहन को इस मानवीय कर्त्तव्य पालन से उसे जो आत्म-संतोष मिला वह बड़ी से बड़ी सफलता और उपलब्धि से भी नहीं मिला होगा।इस अनुभूति से उस विद्यार्थी का जीवन ही बदल गया।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में छात्र-छात्राओं के लिए उपलब्धि और सफलता (Achievement and Success for Students),गणित के छात्र-छात्राओं के लिए उपलब्धि और सफलता क्या है? (What is Achievement and Success for Mathematics Students?) के बारे में बताया गया है।

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6.खतरनाक गणित के सवाल (हास्य-व्यंग्य) (Dangerous Math Questions) (Humour-Satire):

  • नित्यानंद:इतने खतरनाक गणित के सवालों पर तारांकित चिन्ह तथा कोई संकेत क्यों नहीं है?
  • चंद्रकांत:लगातार कई वर्षों से इन प्रश्नों को परीक्षा में देने पर भी कोई असफल नहीं हो रहा था इसलिए माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने तारांकित चिन्हों और संकेत को बेकार समझकर हटा दिए।

7.छात्र-छात्राओं के लिए उपलब्धि और सफलता (Frequently Asked Questions Related to Achievement and Success for Students),गणित के छात्र-छात्राओं के लिए उपलब्धि और सफलता क्या है? (What is Achievement and Success for Mathematics Students?) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.यश से क्या तात्पर्य है? (What Do You Mean by Repute?):

उत्तर:यश त्याग और सत्कर्म से मिलता है,धोखे-धड़ी से नहीं परन्तु इसको बनाए रखने के लिए व्यक्ति को हमेशा उन्नतिशील बने रहना और सत्कर्म करते रहना पड़ता है।ऋग्वेद में कहा गया है कि “यश मित्र का काम करता है,वह सभा-समाज में प्रधानता प्राप्त करता है।इसको प्राप्त करके सभी प्रसन्न होते हैं क्योंकि यश के द्वारा दुर्नाम दूर होता है,अन्न प्राप्त होता है,शक्ति मिलती है और सब तरह से लाभ होता है”।

प्रश्न:2.जाॅब में सन्तुष्टि किस बात पर निर्भर है? (What Does Job Satisfaction Depend on?):

उत्तर:किसी भी अभ्यर्थी को कोई भी जॉब अथवा कार्य से कितनी सन्तुष्टि मिलती है यह बात जाॅब की प्रकृति पर निर्भर न होकर इस बात पर निर्भर करती है कि सम्बन्धित अभ्यर्थी में सामर्थ्य,क्षमता,योग्यता एवं सम्भावनाएँ क्या हैं और कितनी हैं? जाॅब में सन्तुष्टि अथवा सफलता बाजार में बिकनेवाली अथवा आकाश कुसुम नहीं है वह तो निरंतर प्रयास द्वारा प्राप्त होने वाला रेडियम है।

प्रश्न:3.लोकैषणा से क्या तात्पर्य है? (What Do You Mean by Desire for World Prosperity?):

उत्तर:लोकैषणा अर्थात् यश प्राप्ति की इच्छा वस्तुतः मानव स्वभाव की दुर्बलता है।व्यक्ति निस्संतान रह सकता है,धन संपत्ति को दान करके दरिद्र का जीवन व्यतीत कर सकता है,जमीन,अन्न और घर का त्याग कर सकता है परंतु यश प्राप्ति की इच्छा से मुक्त नहीं हो सकता।यह भाव व्यक्ति में अंतिम क्षण तक जीवित रहता है कि लोग उसको कुछ समझें,समाज उसके नाम को जाने,मरने के बाद उसकी याद में कोई आयोजन करे,यदि संभव हो तो उसकी स्मृति को स्थायी बनाए रखने के लिए कोई स्मारक बना दें,उसकी जन्म-जयंती अथवा पुण्यतिथि मनाए आदि।समर्थ व्यक्ति तो उक्त प्रकार की व्यवस्था स्वयं कर सकते हैं।अपने नाम से कोई प्रतियोगिता कराना,किसी पुरस्कार की स्थापना कराना आदि लोकैषणा के ही स्थूल रूप हैं।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा छात्र-छात्राओं के लिए उपलब्धि और सफलता (Achievement and Success for Students),गणित के छात्र-छात्राओं के लिए उपलब्धि और सफलता क्या है? (What is Achievement and Success for Mathematics Students?) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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