A Sense of Self-Esteem Among Students
1.विद्यार्थियों में स्वाभिमान की भावना (A Sense of Self-Esteem Among Students),युवावर्ग में आत्म-सम्मान की भावना (A Sense of Self-Respect in Youth):
- विद्यार्थियों में स्वाभिमान की भावना (A Sense of Self-Esteem Among Students) में स्वाभिमान,आत्मसम्मान का समानार्थक शब्द है।जिस प्रकार दूसरों के अधिकारों की रक्षा करना प्रत्येक मनुष्य का कर्त्तव्य है उसी प्रकार अपने न्यायोचित अधिकारों की रक्षा करना भी उसका कर्त्तव्य है।
- आपको यह जानकारी रोचक व ज्ञानवर्धक लगे तो अपने मित्रों के साथ इस गणित के आर्टिकल को शेयर करें।यदि आप इस वेबसाइट पर पहली बार आए हैं तो वेबसाइट को फॉलो करें और ईमेल सब्सक्रिप्शन को भी फॉलो करें।जिससे नए आर्टिकल का नोटिफिकेशन आपको मिल सके।यदि आर्टिकल पसन्द आए तो अपने मित्रों के साथ शेयर और लाईक करें जिससे वे भी लाभ उठाए।आपकी कोई समस्या हो या कोई सुझाव देना चाहते हैं तो कमेंट करके बताएं।इस आर्टिकल को पूरा पढ़ें।
Also Read This Article:Self-confidence and WillPower and Goal
2.स्वाभिमान का आशय क्या है? (What is the meaning of self-respect?):
- अपने व्यक्तित्व और आचरण को ऐसा बनाए रखना जिससे स्वयं का मान भंग ना हो,अपमान व अनादर न हो और अपनी दुर्दशा व बदनामी ना हो,इस भावना,मान्यता और अनुभूति को स्वाभिमान कहते हैं।
- हीनता और हीन भावना से दूर रहना,बचकर रहना स्वाभिमान है।अपनी अस्मिता और अपने अस्तित्व के सम्मान का ख्याल रखना स्वाभिमान है और ऐसा कोई काम न करना जिसे अपमानित होना पड़े,इस मनोवृत्ति को स्वाभिमान कहते हैं।
परंतु अक्सर हम आत्म-सम्मान,स्वाभिमान,गर्व,अभिमान,दर्प और अहंकार आदि को एक-दूसरे का पर्यायवाची समझ लेते हैं परंतु यथार्थ में इनके अर्थों में काफी भेद है। - किसी मनुष्य में कोई सद्गुण है या उसके पास उत्तम वस्तु है,तो यह गौरव की बात है और इन पर उसे गौरव होना चाहिए।परंतु इस गर्व का बखान किया जाता है,बढ़ा-चढ़ाकर अतिरेक पूर्ण तरीके से वर्णन किया जाता है,तो वह अभिमान बन जाता है।दर्प इससे भी आगे की चीज है और इसका अर्थ है आत्मश्लाघा यानी अपने मुंह अपनी तारीफ करना।अहंकार सबसे नीचे है।अहंकारी मनुष्य समझता है कि मेरे समान दुनिया में और कोई नहीं।
- गर्व,गौरव या स्वाभिमान,आत्म-सम्मान स्वाभाविक है।अभिमान को भी कुछ हद तक सहन किया जा सकता है।परंतु दर्प या घमंड और अहंकार दुर्गुण हैं।दर्पी और अहंकारी लोगों को समाज में अच्छी नजर से नहीं देखा जाता बल्कि उनका मजाक भी उड़ाया जाता है।
- हमारे शास्त्रों में कहा गया है कि विद्यार्थी को ही नहीं बल्कि प्रत्येक मनुष्य को अपनी जाति पर,धन पर तथा विद्या और ज्ञान पर घमंड नहीं करना चाहिए अर्थात् लोगों पर यह छाप डालने की कोशिश नहीं करनी चाहिए कि वह किसी ऊंची जाति का है,या धनवान है,या रूपवान है,या विद्वान है।
- अक्सर कोई विद्यार्थी अपने से होशियार छात्र-छात्रा से तुलना करता है और उसके समान या आगे नहीं निकल पाता है तो हीनता पैदा हो जाती है।यदि हम दूसरों से तुलना न करके स्वयं से तुलना करें और अपनी उन्नति करें तो हीनता खत्म हो जाती है।दूसरों से तुलना भी स्वस्थ तरीके से करें तब भी हीनता की स्थिति पैदा नहीं होती है।
- इसी प्रकार कोई होशियार छात्र-छात्रा अपने से कमजोर छात्र-छात्रा से तुलना करता है और अपने आप को श्रेष्ठ समझने लगता है तो उसमें अहंकार पैदा हो जाता है और धीरे-धीरे यह अहंकार बढ़ता जाता है।उसे यह दिखाई नहीं देता है कि दुनिया में एक से बढ़कर एक विद्यार्थी और लोग मौजूद हैं।यदि वह इस वास्तविकता को समझ ले तो उसका अहंकार खत्म हो जाता है।परंतु यथार्थ में उसकी नजर अपने से कमजोर छात्र-छात्राओं पर रहती है और वह अहंकारी होता जाता है।अहंकार ज्यों-ज्यों बढ़ता जाता है त्यों-त्यों उसमें विद्या ग्रहण करने की उत्कंठा खत्म हो जाती है,क्योंकि विद्या का अर्जन विनम्रता धारण करने से ही हो सकता है।
3.स्वाभिमानी होने में बाधक (Hindrances to being self-respecting):
- अहंकार,घमंड और हीन भावना हमें स्वाभिमानी होने नहीं देती है।यदि आप लाख कोशिश करें तो भी अन्य व्यक्ति,माता-पिता,शिक्षक,मित्र और सहपाठी आदि आप में अहंकार,घमंड या हीनभावना पैदा कर देंगे।शुरू से ही माता-पिता दूसरों से तुलना करना प्रारंभ कर देते हैं।जैसे वह विद्यार्थी तो 90% से ऊपर अंक लाता है,तुम क्यों नहीं ला सकते हो।वह तो हर कांपटीशन में सफल हो जाता है,तुम क्यों नहीं हो सकते हो? या फिर कहते हैं कुछ बड़ा बनकर दिखाओ,कुछ उत्कृष्ट करके दिखाओ,आईएएस बनकर दिखाओ,इंजीनियर बनकर दिखाओ,नौकरी,जॉब करके दिखाओ,पैसा कमाकर दिखाओ,ऐसे करके दिखाओ,वैसा करके दिखाओ।बचपन से ही माता-पिता पीछे पड़ जाते हैं अथवा शिक्षक पीछे पड़ जाते हैं।
- यदि जीवन में दूसरों से तुलना खत्म हो जाए,अपनी प्रतिभा,योग्यता को स्वीकार करना सीख जाए,अपने आपसे तुलना करके उन्नति का रास्ता तय करना सीख जाए तो अनावश्यक प्रतिस्पर्धा खत्म हो जाएगी।उसके अंदर अहंकार और हीनता की भावना खत्म हो जाएगी और यहीं से वह अपने स्वाभिमान के सही रूप की पहचान करना प्रारंभ करता है।
- बात सिर्फ इतनी है कि अपनी योग्यता को पहचाने,अपनी क्षमता को पहचाने,अपनी सामर्थ्य को पहचाने और उसी के अनुसार अपनी मंजिल तय करें।सारी समस्या दूसरों से तुलना करके उस जैसा बनने के प्रयास से उत्पन्न होती है।इस समस्या में स्वयं छात्र-छात्रा और उसके हितैषी माता-पिता,शिक्षक व मित्र भागीदार होते हैं और आग में घी का काम करते हैं।
- हर छात्र-छात्रा ही नहीं बल्कि प्रत्येक प्राणी अपने आप में अनोखा है,वह दूसरा बन ही नहीं सकता है।महापुरुषों,महान गणितज्ञों और वैज्ञानिकों के आदर्श सामने इसलिए रखे जाते हैं ताकि आप प्रेरणा ग्रहण कर सकें।जो स्वयं प्रेरित नहीं होते हैं,वे श्रेष्ठ पुरुषों से प्रेरणा ग्रहण करें तो बुरा क्या है परंतु ऐसी स्वस्थ प्रेरणा कम देखने को मिलती है।हकीकत में हम ऐसी दौड़ और प्रतियोगिता में शामिल हो जाते हैं जो हमारे अंदर या तो अहंकार पैदा करती है या हीनता की भावना और यह भावना हमारे व्यक्तित्व को पलीता लगाती है।हमारे व्यक्तित्व को विखंडित,तार-तार कर देती है।
- यदि किसी विद्यार्थी ने कोई मुश्किल-सा सवाल हल कर दिया तो वह दूसरे को नीचा दिखाने के लिए अपनी शेखी बघारता है और कहता है कि ऐसे सवाल हल करना तुम्हारे वश की बात नहीं,तुम नाहक ही क्यों परेशान हो रहे हो,समय को नष्ट कर रहे हो? अच्छा है कि तुम परीक्षा में उत्तीर्ण होने के लिए सरल-सी प्रश्नावलियाँ हल कर दो।मैं तुम्हें बता दूंगा,तुम्हारे गणित में उत्तीर्ण होने लायक मार्क्स तो आ ही जाएंगे।
- इस प्रकार हम स्वयं या हमारे हितैषी हमारे चारों तरफ ऐसा वातावरण क्रिएट कर देते हैं जो हमारे अंदर अहंकार,ईर्ष्या,हीनता की भावना,घमंड,दर्प आदि दुर्गुणों को बढ़ाने का काम कर देते हैं।एक बार हम अपने चारों तरफ इस तरह का वातावरण क्रिएट कर लेते हैं तो फिर उस चक्रव्यूह से निकल पाना मुश्किल हो जाता है क्योंकि हम हकीकत को देखना पसंद नहीं करते हैं क्योंकि हमने हकीकत जानने का अभ्यास किया ही नहीं और ये सब परिस्थितियाँ हमें स्वाभिमानी होने से वंचित कर देती है।
4.छात्र-छात्राओं में आत्मसम्मान की रक्षा कैसे हो? (How to protect self-esteem in students?):
- माता-पिता व शिक्षकों को चाहिए कि छात्र-छात्राओं की पिटाई करने के बजाय प्यार से समझाए।दंड देने, पिटाई करने से बालकों के आत्म-सम्मान को ठेस पहुंचती है।अपने आत्म-सम्मान की रक्षा करने के लिए वह विरोध भी कर सकता है और वह विद्रोही बनकर अनैतिक कार्य भी कर सकता है।अतः यदि वे कोई अच्छा कार्य करते हैं,सृजन कार्य करते हैं तो उनके अच्छे कार्य,कृति और सृजन की प्रशंसा करें,उसके बाद यदि कोई दोष हमारी दृष्टि में हो,तो उसकी ओर इंगित न करके उसके वैकल्पिक स्वरूप के बारे में प्रस्ताव रूप में चर्चा कर दें।
- परीक्षा में अच्छे अंकों से उत्तीर्ण होता है अथवा अपनी पिछली परफॉर्मेंस में सुधार करता है तो उसकी सराहना करनी चाहिए न कि उससे श्रेष्ठ विद्यार्थी से तुलना करके आलोचना करनी चाहिए।हां,यह अवश्य ध्यान रखना चाहिए कि उसकी प्रशंसा करने से उसमें घमंड या अहंकार न आने पाए।यानी संतुलित प्रशंसा करनी चाहिए ताकि वह और आगे बढ़ने के लिए प्रेरित हो सके।
- माता-पिता व शिक्षकों तथा शुभचिंतकों की थोड़ी-सी भी असावधानी हो जाने पर छात्र-छात्राओं के उज्ज्वल भविष्य के सम्मुख प्रश्नवाचक चिन्ह लग जाता है अर्थात् वे गलत दिशा की तरफ जा सकते हैं,भटक सकते हैं।अतः माता-पिता को अपनी सूझबूझ और सामर्थ्य के अनुसार छात्र-छात्राओं की परवरिश करनी चाहिए,व्यवहार करना चाहिए।माता-पिता को किसी भी कार्य को करने में बहुत ही संजीदगी रखनी चाहिए।
- बच्चों से अनावश्यक दुराव-छिपाव नहीं रखना चाहिए।अपना आचरण भी उत्तम और अनुकरणीय रखना चाहिए।यदि आप फिजूलखर्ची करेंगे और फैशनपरस्त होंगे तो बालकों से मितव्ययी और सादगी से रहने की आशा कैसे कर सकते हैं? यदि बच्चों के फैशनपरस्त होने का चस्का लग गया तो वे चोरी करके अपनी कामनाओं की तृप्ति करेंगे।
- छात्र-छात्राओं को अपने जीवन का निर्माण करने की तरफ ध्यान देना चाहिए।प्रशंसा पाकर फूलकर कुप्पा न हो जाएं बल्कि उससे प्रेरणा ग्रहण करें और अधिक अच्छा करने की सीख लें।वरना आपका स्वाभिमान,गौरव कब घमंड और अहंकार में बदल जाएगा आपको पता भी नहीं चलेगा।
- किसी से भी अपनी तुलना करें तो स्वस्थ तुलना करें ताकि आपको आगे बढ़ने की प्रेरणा मिल सके।किसी की निंदा,चुगली करने से बचें।अच्छा तो यही है कि आप अपने पिछले परिणाम से तुलना करके उससे आगे बढ़ने का लक्ष्य रखें और उसे पाने का भरपूर प्रयास करें ताकि आपमें अहंकार या हीनता की भावना पैदा ही न हो सके।कोई भी बुराई हमारे अंदर घुसती है तो खरगोश की चाल से घुसती है और निकलती है तो कछुए की चाल से क्योंकि बुराई जड़ जमा लेती है जो निकलते,निकलते ही निकलती है एकदम से नहीं निकलती है।
- उदाहरणार्थ आप किसी कक्षा में 50% अंक प्राप्त करते हैं तो 90% अंक प्राप्त करने के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ेगा और समय लग जाएगा परंतु यदि 90% अंक प्राप्त करते हुए 40% अंक प्राप्त करना हो यानी लुढ़कना हो तो तत्काल कुछ समय में ही 40% प्राप्त कर लेंगे।अच्छाई की तरफ,श्रेष्ठ मार्ग की तरफ बढ़ने में समय लगता है,संघर्ष करना पड़ता है और बुराई की तरफ,बुरे कार्यों को सीखने में समय नहीं लगता है।आप कितनी भी ऊंचाई पर चढ़ जाएं पर अहंकार ना रखें क्योंकि आपसे ऊपर अनेक है।ऐसा कोई काम ना करें जो आपके स्वाभिमान को ठेस पहुंचाये।अपने आत्मसम्मान को बनाए रखें।न तो अपने आप को बिल्कुल नीचा रखें और न बहुत श्रेष्ठ समझें।
5.छात्र-छात्राओं के लिए आत्म-सम्मान की खोज (Exploring self-esteem for students):
- छात्र-छात्राएँ अपने आप पर नजर रखेंगे,पैनी नजर रखेंगे तो उन्हें समझ में आ जाएगा कि उसका अस्तित्व किस आधार पर टिका हुआ है और उसे कैसे बनाए रखना है।अपने को जलील होने से कैसे बचाए रखना।आत्म-सम्मान की कुंजी हमारे अंदर ही छिपी हुई है परंतु हमारी नजर दूसरों पर रहती है,दुनिया पर रहती है और हम भी देखा-देखी वैसा ही करने लगते हैं।इस पर तनिक भी विचार नहीं करते कि ऐसा करना चाहिए या नहीं करना चाहिए।यदि करना चाहिए तो क्यों करना चाहिए? कहीं ऐसा करने से मुझे अपमानित तो नहीं होना पड़ेगा।
- परीक्षा में अन्य छात्र-छात्राएं नकल कर रहे हैं तो उन्हें सोचना चाहिए कि ऐसा करना उनके लिए उचित क्यों नहीं है? कहीं वह पकड़ा जाएगा तो उसे अपमानित तो होना पड़ेगा ही,उसने जितना यश व प्रतिष्ठा प्राप्त की है वह भी नष्ट हो जाएगा।
- असफलता का दर्द तो कुछ समय के लिए रहेगा लेकिन अपमानित होकर,माता-पिता के यश को खोकर जीना भी कोई जीना है।क्या आज तक कोई अनैतिक तरीके अपनाकर अपने आप-सम्मान को बचा पाया है? क्या ऐसा करना समाज,देश,परिवार व मेरे हाथ में स्थायी रूप से उचित है? क्या सही तरीके अपनाकर कमजोर छात्र-छात्राएं आगे नहीं बढ़े हैं?
- जो गलत काम करते हैं,गलत तरीके अपनाते हैं उनका हश्र क्या होता है? वे किस स्थिति में थे और आज कैसी स्थिति में हैं? गलत काम करने के बाद सही मार्ग पर चलने पर क्या उनका कलंक मिट गया है अथवा हमेशा उसके साथ कलंक भी चिपका रहा है? क्या उसके नेक और अच्छे कार्यों का वर्णन करते समय उसके दुष्कर्मों को भी बताया जाता है? मेरे इस कार्य से मेरी प्रतिष्ठा,माता-पिता के यश,समाज व देश पर क्या प्रभाव पड़ेगा? क्या मुझे जीवनभर घृणा,तिरस्कार,हिकारत,हेय दृष्टि से देखा जाएगा या प्रशंसा,सम्मान,आदर की दृष्टि से देखा जाएगा? मुझे यह कार्य क्यों करना चाहिए यदि नहीं करना चाहिए तो क्यों नहीं करना चाहिए? अमुक स्थिति में सज्जनों और श्रेष्ठ पुरुषों ने कैसा आचरण किया है और उसका मूल्यांकन किस रूप में किया जाता है? मुझे किन लोगों से परामर्श और मार्गदर्शन लेना चाहिए? क्या मुझे अमुक व्यक्ति सही दिशा का ज्ञान कराने में समर्थ है?
- मुझे किन आदर्शों का पालन करना चाहिए? श्रेष्ठ विद्यार्थी किन कार्यों और गुणों के कारण सम्मानित होते हैं? क्या मुझे भी ऐसे गुणों को धारण करने की चेष्टा करनी चाहिए? क्या श्रेष्ठ गुणों को धारण करने के लिए जिन कष्टों,कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है,उससे ज्यादा कष्टकर अवगुणों को धारण करने और जिंदगीभर जलालत सहन करना है? क्या छिद्रों व दुर्गुणों के साथ बड़ा बनना अच्छा है या सद्गुणों,छिद्रोरहित व दुर्गुणोंरहित छोटा बनकर रहना अच्छा है? क्या खोटे कर्म करने से मैं स्वयं अपनी नजरों से नहीं गिर जाऊंगा? जिंदगीभर क्या अंतरात्मा मुझे नहीं धिक्कारेगी? क्या श्रेष्ठ कर्म करने से मैं अपनी नजरों में ऊंचा नहीं उठ जाऊंगा? क्या आत्म-सम्मान के साथ गुमनाम जिंदगी श्रेष्ठ नहीं है? क्या आत्म-सम्मान खोकर सुर्खियों में बने रहना कष्टकर नहीं होगा? क्या श्रेष्ठ पुरुषों ने खोटे कर्म करके अपना आत्म-सम्मान नहीं खोया,लोगों की नजरों से नहीं गिरे? मुझे ऐसे किन कार्यों से बचकर रहना चाहिए जिससे मेरी अस्मिता पर आँच ना आए? मुझे खोटे,निकृष्ट और पापपूर्ण कर्मों से किस प्रकार बचना चाहिए? इन सभी प्रश्नों पर विचार करेंगे तो आत्म-सम्मान बनाए रखना क्यों जरूरी है इसका ज्ञान हो जाएगा।
- उपर्युक्त आर्टिकल में विद्यार्थियों में स्वाभिमान की भावना (A Sense of Self-Esteem Among Students),युवावर्ग में आत्म-सम्मान की भावना (A Sense of Self-Respect in Youth) के बारे में बताया गया है।
Also Read This Article:6 Best Tips to Build Self-confidence
6.छात्र का स्वाभिमान (हास्य-व्यंग्य) (Self-Esteem of Student) (Humour-Satire):
- व्यक्ति (छात्र से):क्या कर रहे हो?
- छात्र:मांग कर खा रहा हूं।
- व्यक्ति:क्या पढ़े-लिखे नहीं हो?
- छात्र:डिग्री हासिल कर ली है।
- व्यक्ति:काम धंधा क्यों नहीं कर रहे हो,स्वाभिमान भी है या नहीं?
- छात्र:इस बेरोजगारी के युग में दर-दर की ठोकरे खाने के बाद स्वाभिमान बचता ही कहां है? जलालत व अपमान सहन करने के बजाय तो मांग कर खाना ठीक है।
7.विद्यार्थियों में स्वाभिमान की भावना (Frequently Asked Questions Related to A Sense of Self-Esteem Among Students),युवावर्ग में आत्म-सम्मान की भावना (A Sense of Self-Respect in Youth) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:
प्रश्न:1.आत्मसम्मान का क्या महत्त्व है? (What is the importance of self-respect?):
उत्तर:अपने आत्म-सम्मान को खोजकर अपनी प्रकृति के सागर में गोते लगाकर छिपे हुए रत्नों को बाहर निकालें।आप देखकर हैरान रह जाएंगे कि यह भी आपकी ही संपत्ति थे।
प्रश्न:2.सबसे पहले किसकी रक्षा करनी चाहिए? (Who should be protected first?):
उत्तर:हमें सबसे पहले अपने आत्म-सम्मान की रक्षा करनी चाहिए।हम कायर और दब्बू हो गए हैं,अपमान और हानि चुपके से सह लेते हैं।ऐसे प्राणियों को तो स्वर्ग में भी सुख नहीं प्राप्त हो सकता।
प्रश्न:3.क्या स्वाभिमानी को सफलता मिलती है? (Does self-respect succeed?):
उत्तर:स्वाभिमान को बचाए रखना सफलता की सीढ़ी पर पग रखना है।
- उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा विद्यार्थियों में स्वाभिमान की भावना (A Sense of Self-Esteem Among Students),युवावर्ग में आत्म-सम्मान की भावना (A Sense of Self-Respect in Youth) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
No. | Social Media | Url |
---|---|---|
1. | click here | |
2. | you tube | click here |
3. | click here | |
4. | click here | |
5. | Facebook Page | click here |
6. | click here | |
7. | click here |
Related Posts
About Author
Satyam
About my self I am owner of Mathematics Satyam website.I am satya narain kumawat from manoharpur district-jaipur (Rajasthan) India pin code-303104.My qualification -B.SC. B.ed. I have read about m.sc. books,psychology,philosophy,spiritual, vedic,religious,yoga,health and different many knowledgeable books.I have about 15 years teaching experience upto M.sc. ,M.com.,English and science.