5 Techniques to Get Rid of Scarcity
1.अभावमुक्त होने की 5 तकनीक (5 Techniques to Get Rid of Scarcity),विद्यार्थियों के लिए अभावमुक्त होने के 5 उपाय (5 Ways for Students to Get Rid of Scarcity):
- अभावमुक्त होने की 5 तकनीक (5 Techniques to Get Rid of Scarcity) में बताया गया है कि अभावों से मुक्त होने का एक ही उपाय है अपने दृष्टिकोण में परिवर्तन।यदि जो जो नहीं है उस पर दृष्टि रहेगी तो अपने आपको अभावग्रस्त समझेंगे और जो जो है उस पर दृष्टि रहेगी तो अभावमुक्त महसूस करेंगे।
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2.अभाव कैसे महसूस होता है? (How does deprivation feel?):
- इस दुनिया में ऐसा कोई नहीं है,जिसका अभाव से परिचय न हुआ हो।सब कुछ होते हुए भी किसी न किसी तरह का अभाव व्यक्ति को होता है और उसे दूर करने के लिए प्रयास भी होता है,लेकिन अभावों की सूची इतनी बड़ी होती जाती है कि उसे पूरा करने में जिंदगी बीत जाती है,लेकिन अभाव पूरे नहीं होते।किसी के पास पैसा नहीं है,तो किसी के पास घर नहीं है;किसी को नींद का अभाव है,तो किसी के पास समय नहीं है; किसी में सुंदरता की कमी है,तो कोई अस्वस्थ है; किसी के पास खुशी की कमी है,तो कोई शांति की कमी महसूस कर रहा है।इस तरह न जाने कितनी तरह की कमियां हैं,जिन्हें लोग दूर करना चाहते हैं,लेकिन प्रयास करने पर भी कुछ ना कुछ अधूरा रह जाता है।
- एक महत्त्वपूर्ण कथन है:’सब कुछ तो किसी के पास नहीं होता,पर कुछ ना कुछ हर किसी के पास होता है।’ जरूरी यह है कि हम ‘कुछ ना कुछ’ पर भी अपना ध्यान केंद्रित करें,अन्यथा हमारे जीवन की दौड़ कभी थमेगी नहीं।हमारे मन का पूरा ध्यान इस बात पर केंद्रित होता है कि ‘हमारे पास क्या नहीं है?’ और उस खाली स्थान को भरने का हम प्रयास करने लगते हैं।हम कभी भी स्वयं से संतुष्ट नहीं रहते और बहुत कुछ होते हुए भी अभावों का रोना रोते हैं कि हमारे पास ये नहीं है।
- अगर अमुक वस्तु हमारे पास होती तो कितना अच्छा होता,परंतु उस वस्तु के मिलते ही उसका महत्त्व कम हो जाता है और थोड़े दिनों के बाद फिर कोई नई चीज पाने की इच्छा जाग जाती है।इस तरह यह क्रम चलता रहता है।न हम अपने अभावों को दूर करने वाली इन वस्तुओं से खुश होते हैं और न स्वयं से।इसे दूर करने का केवल एक ही तरीका है:’देखने का सही दृष्टिकोण’।
- सही दृष्टिकोण के अभाव में जीवन में अभाव बना रहता है और पूरी तरह से दूर नहीं हो पाता।जिस समाज में हम रहते हैं,वहां हम अपने समान दूसरे लोगों को देखते हैं कि कौन कितनी प्रगति कर पाया है? किसके पास क्या है? और दूसरों से अपनी तुलना करने लगते हैं।जब हम अपने से कम स्तर के लोगों से अपनी तुलना करते हैं तो अहंकार पैदा होता है और अपने से अधिक संपन्न लोगों की ओर देखते हैं तो अभाव की भावना जन्म लेती है।दोनों ही परिस्थितियों में हम स्वयं की ओर नहीं देखते कि हमारे पास क्या है और स्वयं को अभावग्रस्त महसूस करते हैं।
- दूसरों से तुलना करते हुए स्वयं को कम आँकने से यह लगता है कि कहीं ऐसा तो नहीं है कि अभाव के कारण हमें कम प्यार या कम सम्मान मिल रहा है और इस तरह की सोच व्यक्ति को हीनताग्रस्त बना देती है तथा नकारात्मकता से भर देती है।यदि इस सोच को सकारात्मक दृष्टि से देखा जाए तो यह एहसास हो सकता है कि हमारे पास जो कुछ भी है,वह किसी से कम नहीं हैं।हमने जो कुछ कमाया है,वह अपने प्रयास और परिश्रम से अर्जित किया है और उसकी तुलना दूसरों से करना उचित नहीं है;क्योंकि ऐसा करके हम स्वयं को कमजोर व हीन सिद्ध करते हैं।दूसरों की प्रगति देखकर खुश होना चाहिए और आगे बढ़ने की प्रेरणा लेनी चाहिए,लेकिन हर समय अपना ध्यान दूसरों पर केंद्रित रखते हुए अनावश्यक परेशान रहना,अपनी कमियों को निहारना बिल्कुल भी ठीक नहीं है;क्योंकि इस तरह की सोच रखने से न हम कभी भी प्रगति कर सकते हैं और न ही अपना सही मूल्यांकन कर पाते हैं।
3.अभावों से कैसे मुक्त हों? (How to get rid of deprivation?):
- यदि हम अपने अभावों को सही अर्थों में दूर करना चाहते हैं तो सबसे पहले हमें स्वयं का मूल्यांकन करना आना चाहिए।हमें अपनी योग्यता,क्षमता को स्वीकारना आना चाहिए ना कि उसे नकारना; क्योंकि इसी के माध्यम से हम कुछ कर पाते हैं।यह जरूर है कि योग्यता होने के बावजूद बहुत-सी चीजें ऐसी हैं,जो हमारी पहुंच से दूर होती हैं।हमारी जिंदगी भी शिकायतों से भरी है,लेकिन हम अकेले ऐसे व्यक्ति नहीं हैं,जो अभावों में जी रहे हैं।कहीं ऐसा तो नहीं कि इन अभावों के आगे हम हार मान गए हैं या इन अभावों को कोसते रहने की हमारी आदत हो गई है और हम अपनी उन खुशियों से दूर होते जा रहे हैं,जो हमारी अपनी हैं और जिन्हें हम दूसरों को देकर उन्हें भी खुश कर सकते हैं।
- अभावों को दूर करना है तो सबसे पहले हमें अपने जीवन की वास्तविकता को पहचानना होगा,अपनी योग्यता व क्षमता का सही आकलन करना होगा।जीवन को उसकी विविधता के साथ स्वीकार होगा,तभी हम यह जान सकेंगे कि दूसरों से हमारी तुलना संभव नहीं है।किसी के जीवन का एक पक्ष मजबूत है तो किसी के जीवन का दूसरा पक्ष।जीवन की बहुत-सी बातें तो ऐसी हैं,जिन्हें हम जानते भी नहीं,फिर तुलना कैसी? जो दीख रहा है,वह बहुत थोड़ा होता है और उसे ही देखकर तुलना करना और परेशान रहना,जीवन की विविधता को नकारना है।हमें हर परिस्थिति में स्वयं को स्वीकारना है और जीवन के सकारात्मक पहलुओं को देखना है,तभी हम जीवन की बहुमूल्यता को समझ सकेंगे।
- एक प्रसिद्ध व्यक्ति से जब भी यह पूछा जाता है कि वह जीवन में क्या कर सकता है? तो उसका उत्तर था:”मैं सोच सकता हूं,मैं इंतजार कर सकता हूं,मेरे पास संयम है।” हमें भी अपने जीवन के अभावों को दूर करने के लिए इन सूत्रों को अपनाना चाहिए अर्थात् हमारे अंदर सोचने-समझने की,विचार करने की क्षमता होनी चाहिए और जो हम पाना चाहते हैं,उसके लिए इतना धैर्य होना चाहिए कि हम उसके लिए अनुकूल समय की प्रतीक्षा कर सकें और अंत में,यदि वह ना मिले तो भी संयम रख सकें।
- इस तरह अभावों को दूर किया जा सकता है,अपने नजरिए में बदलाव से,अपनी योग्यता व अपने श्रम से; लेकिन अभावों को लेकर परेशान रहना,इनके पूरा न होने पर दुःखी होना समस्या का हल नहीं हैं।सकारात्मक दृष्टि से देखा जाए तो अभावों को पूरा करने के कारण ही जीवन में कुछ करने के लिए आगे बढ़ते हैं और अपने हर संभव प्रयास से इन अभावों को दूर करना चाहते हैं।
- ‘अभाव’ शब्द ही अपने आप में नकारात्मक है,जिसके लगातार चिंतन से हीनता का जन्म होता है और व्यक्ति इसके आगे स्वयं को विवश समझने लगता है,इसलिए अभावों को दूर करना जरूरी है,लेकिन इसके लिए हर अपने अभावों को याद करने की जरूरत नहीं,बल्कि अपनी योग्यता,क्षमता को बढ़ाने में श्रम करने की जरूरत है और हमारे पास क्या-क्या है,यह देखने व जानने की जरूरत है।ऐसा करने से ही जीवन अभावों से मुक्त हो सकेगा और हम अपने जीवन में पूर्ण विकसित हो पाएंगे।
4.अभावग्रस्त छात्र-छात्राएँ (Destitute students):
- अभाव का अर्थ होता है ना होना,अनस्तित्व,कमी आदि।किसी विद्यार्थी के लिए अभाव का प्रयोग करें तो इसे अभागा छात्र-छात्रा या बदनसीब छात्र-छात्रा की तरह प्रयोग किया जा सकता है।ऐसे अनेक या बहुतायत संख्या में छात्र-छात्राएं मिल जाएंगे जिनके पास पर्याप्त मात्रा में संसाधन नहीं मिलेंगे।किसी के यहां उत्कृष्ट श्रेणी के स्कूलों या कोचिंग का अभाव है।किसी की ट्यूशन या कोचिंग करने अथवा प्राइवेट स्कूलों,पब्लिक स्कूलों में पढ़ने के लिए फीस चुकाने की सामर्थ्य नहीं है।कोई विद्यार्थी पुस्तकें,गाइड,संदर्भ पुस्तकें,खरीदने में असमर्थ है।किसी के पास बौद्धिक क्षमता का अभाव है अर्थात् ठस बुद्धि का है।
- किसी स्कूल में योग्य,प्रतिभावान शिक्षकों का अभाव है,कहीं शिक्षकों का अभाव है और स्कूल,कॉलेज रामभरोसे चल रही हैं।कहीं पर छात्र-छात्राएं दूषित पानी पीने के लिए मजबूर हैं अर्थात् शुद्ध जल नसीब नहीं है।कहीं पर सफाई कर्मचारी नहीं है और उन्हें गंदगी के ढेर में बैठना पड़ता है।कहीं पर स्कूल भवन का अभाव है और खुले में ही उन्हें पढ़ना पड़ता है।
- कहीं पर विद्यार्थियों की संख्या इतनी अधिक है कि छात्र-छात्राओं को भेड़-बकरी की तरह भर दिया जाता है उन्हें श्वास लेना भी मुश्किल हो जाता है।कहीं पर परीक्षा केंद्र का अभाव है तथा छात्र-छात्राओं को पैदल चलकर दूर कस्बा या शहर में परीक्षा केंद्र पर परीक्षा देनी पड़ती है।
- किन्हीं छात्र-छात्राओं को स्कूल की ड्रेस पहनना या खरीदना मुश्किल पड़ता है।यानी पहनने के लिए कपड़े-लत्ते नहीं है।किन्हीं बच्चों को शिक्षा प्राप्त करना दूर की कोड़ी है और वे होटलों,ढ़ाबों,रेस्तरां में मजदूरी करके अपना पेट पालते हैं अथवा किन्हीं फैक्ट्रियों में मजदूरी करते हैं।किन्हीं बच्चों को भोजन ही नसीब नहीं होता है और उन्हें मांगकर,भीख मांगकर खाना पड़ता है।लाचार होकर अपने हाथ बड़े-बड़े साहब,सूट-बूट पहने लोगों के आगे पसारना पड़ता है।शिक्षा-दीक्षा की बात तो छोड़ दीजिए ऐसे बच्चों को रोटी,कपड़ा भी नसीब नहीं होता है।कई बच्चे,युवा हष्ट-पुष्ट हैं और काम कर सकते हैं लेकिन भीख मांग कर खाते हैं क्योंकि उन्हें सही मार्गदर्शक नहीं मिलता हैं।अज्ञानवश ऐसे गोरखधंधे में बचपन से ही लिप्त हो जाते हैं।मांग कर या भीख मांग कर खाने के संस्कार पड़ जाते हैं और बड़े होने पर भी संस्कारवश भीख मांग कर ही खाते हैं।
- डेढ़ अरब वाले देश में ऐसी अनेक विचित्रताएँ मिल जाएंगी,जो न केवल सोचने के लिए विवश करती हैं बल्कि हृदय द्रवित हो जाता है।ऐसे में सवाल उठता है क्या दृष्टिकोण परिवर्तन से इस तरह की बेहद निम्न स्तर की समस्याएँ समाप्त हो जाएंगी? क्या दृष्टिकोण परिवर्तन से देश का नक्शा बदल जाएगा,क्या संसार के विकसित,धनाढ्य देशों की नजर में हमें सम्मानजनक स्थिति के रूप में देखा जाएगा? दूसरों की छोड़िए स्वयं छात्र-छात्रा,बालक-बालिका अपनी नजरों में ऊँचा समझेगा।हाँ,जिनके पास बहुत कुछ है,जो साधन-संपन्न हैं वे सहयोग की दृष्टि रखें,कुछ निःस्वार्थ त्याग की वृत्ति रखें तो शायद देश की दशा और दिशा दोनों बदल सकती हैं।जिनके पास पर्याप्त साधन-सुविधाएँ हैं,उन्हें अपना सकारात्मक दृष्टिकोण रखना होगा।ऐसे छात्र-छात्राएं कैसे अपने दृष्टिकोण में बदलाव करके अभावमुक्त हो सकते हैं इसके कुछ सूत्र बताए जा रहे हैं जिन पर अमल करके वह खुशहाल हो सकते हैं।
5.छात्र-छात्राएँ सकारात्मक दृष्टिकोण रखें (Students should have a positive attitude):
- जिन छात्र-छात्राओं की सामर्थ्य पब्लिक स्कूलों में पढ़ने की नहीं है।ऐसे छात्र-छात्राएं सरकारी या अर्द्ध-सरकारी स्कूलों में पढ़ सकते हैं,अपनी सामर्थ्य के अनुसार आकांक्षा रखें,यदि अधिक की आकांक्षा रखते हैं तो उन्हें पार्टटाइम जॉब करके आय अर्जित करनी चाहिए और ट्यूशन व कोचिंग करके इस तरह अपनी आकांक्षा की पूर्ति कर सकते हैं।यदि पार्टटाइम जॉब नहीं करना चाहते हैं और अपना ध्यान शिक्षा अर्जित करने पर ही केंद्रित करना चाहते हैं तो कई ऐसे संगठन है,समर्थ व्यक्ति हैं जो छात्र-छात्राओं को स्कॉलरशिप देते हैं।स्कॉलरशिप प्राप्त करके अपने मंसूबे अर्थात शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं।स्कॉलरशिप भी कहीं से प्राप्त नहीं हो रही है तो किसी रिश्तेदार अथवा दानदाता से सहयोग लेकर शिक्षा अर्जित कर सकते हैं।
- यदि ये तीनों तरीके पसंद नहीं है तो सरकारी या अर्द्ध-सरकारी स्कूल में पढ़ते हुए अपने बलबूते कठिन परिश्रम करें,एक-एक क्षण का सदुपयोग करें,पुस्तकों का अध्ययन करें इस प्रकार आपकी कमजोरी दूर होती जाएगी।धैर्य रखें,एक बार समझ में नहीं आता है तो बार-बार पढ़ें और कोशिश करें।अपने मस्तिष्क पर जोर डालें,अपने सहपाठी,होशियार छात्र-छात्राओं से मिलकर समस्याओं को हल करें।
- इस प्रकार आप सरकारी स्कूल में पढ़कर भी मेधावी छात्र-छात्रा बन सकते हैं।साधन सुविधाओं,प्रतिभाशाली शिक्षकों,पब्लिक स्कूलों एवं कान्वेंट स्कूलों,कॉलेजों जैसे अभाव को दूर कर सकते हैं।अपनी सामर्थ्य पर विश्वास रखें और उसे निरंतर बढ़ाने का प्रयास करते रहें।आप कितने ही साधन-संपन्न हैं।यदि आपकी दृष्टि अभाव पर रहेगी तो जो-जो आपको उपलब्ध है उसका आप फायदा नहीं उठा सकते हैं।अभाव हमारी क्षमताओं,सामर्थ्य,योग्यताओं को तराशने के लिए आते हैं।ऐसे अनेक छात्र-छात्राओं के उदाहरण दिए जा सकते हैं जो अभावों में पले-बढ़े और शिक्षा अर्जित की परंतु निखरकर शीर्ष पर जा विराजे।एकलव्य के पास कौन-सी साधन-सुविधाएँ थीं,कौनसा गुरु था सिखाने के लिए,परंतु अपनी लगन,कठिन परिश्रम और तपस्या के बल पर धनुर्विद्या सीख ली।दानवीर कर्ण किस राजा का पुत्र था,कौनसा ऐश्वर्य उसके पास था,कुछ भी नहीं परंतु अपनी प्रतिभा के बल पर राजा बन गया और संसार में दानवीर कर्ण कहलाया।
- भारत को स्वतंत्रता मिली उस समय भारत की स्थिति कैसी थी,कितनी अर्थव्यवस्था खराब थी परंतु प्रतिभाओं ने,देशभक्त प्रतिभाशाली वैज्ञानिकों,गणितज्ञों,इंजीनियरों,महामानवों,संतों,सज्जनों ने आज भारत की तस्वीर बदल दी है,हालांकि पूरी तरह तस्वीर बदलने में तो समय लगेगा।यदि इन योगदान देने वाले महामानवों की नजर भारत की अभावग्रस्त स्थिति पर ही रहती तो वह भाग खड़े होते और ऐसी अनेक प्रतिभाएं हैं जिन्होंने भारत छोड़कर विदेश में शरण ले लीं।परंतु सभी उनकी तरह ही करते तो क्या भारत की तस्वीर बदल सकती थी? ,नहीं,बिल्कुल नहीं।
- इसी प्रकार कुछ छात्र-छात्राएं केवल अभावों का रोना रोते रहते हैं और उनके पास जो कुछ उपलब्ध है उसका फायदा भी नहीं उठा पाते।परंतु जो छात्र-छात्राएँ संघर्षशील हैं,अभावों (कठिनाइयों) से टक्कर लेने का माद्दा रखते हैं वे निखरते हुए चले जाते हैं।दरअसल हमारी दृष्टि अगर अंधकार पर रहेगी या अंधकार के पीछे लट्ठ लेकर पीछे पड़ेंगे तो अंधकार ही मिलने वाला है यानी अभावग्रस्त स्थिति में ही पड़े रहेंगे और यदि हमारी दृष्टि प्रकाश पर है तो प्रकाश बढ़ता जाएगा और अंधकार खुद-ब-खुद हटता चल जाएगा क्योंकि जहाँ प्रकाश है वहाँ अंधकार रहेगा ही नहीं।
- उपर्युक्त आर्टिकल में अभावमुक्त होने की 5 तकनीक (5 Techniques to Get Rid of Scarcity),विद्यार्थियों के लिए अभावमुक्त होने के 5 उपाय (5 Ways for Students to Get Rid of Scarcity) के बारे में बताया गया है।
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6.बात सुनी होती तो अभावमुक्त होता (हास्य-व्यंग्य) (I Wow Have Been Free from Destination If I Had Listened to It) (Humour-Satire):
- गिरीश:बचपन में मां की बात सुनी और मानी होती तो आज ये दिन न देखने पड़ते।
- शंकर:क्या बात कहती थी मां?
- गिरीश:जब बात ही नहीं सुनी तो मुझे क्या पता,क्या कहती थी? उस समय तो सिर पर मौजमस्ती करने का मूड सवार था।
7.अभावमुक्त होने की 5 तकनीक (Frequently Asked Questions Related to 5 Techniques to Get Rid of Scarcity),विद्यार्थियों के लिए अभावमुक्त होने के 5 उपाय (5 Ways for Students to Get Rid of Scarcity) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:
प्रश्न:1.अभागा मनुष्य क्यों बना रहता है? (Why does the wretched man persist?):
उत्तर:अभागा मनुष्य सज्जनों की सहायता प्राप्त करके भी उससे लाभ नहीं उठा पाता और दुखदायक पाप-कर्म में प्रवृत्त होता है।यानी अभागे मनुष्य को खाई में गिरने से बचा लिया जाए तो कुएं में गिर पड़ता है इसलिए अभागा बना रहता है।
प्रश्न:2.बल से श्रेष्ठ क्या है? (What is better than force?):
उत्तर:अन्न,बल से श्रेष्ठ है।राष्ट्र में अन्न नहीं होगा तो बल कहां से आएगा।पहले अन्न का प्रबंध होगा,तब ज्ञान,शिक्षा का प्रबंध हो सकेगा।परंतु अन्न भी सात्विक होना चाहिए।
प्रश्न:3.आत्मनिर्भरता की क्या महत्ता है? (What is the importance of self-reliance?):
उत्तर:अंधे,लूले और लंगड़े भी जो काम कर सकें वह काम उनसे लेकर उन्हें रोटी देनी चाहिए।इससे श्रम की पूजा होती है और अन्न की भी।और उनमें भी स्वाभिमान की भावना रहती है।
- उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा अभावमुक्त होने की 5 तकनीक (5 Techniques to Get Rid of Scarcity),विद्यार्थियों के लिए अभावमुक्त होने के 5 उपाय (5 Ways for Students to Get Rid of Scarcity) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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Satyam
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