5 Best Techniques for Studying Books
1.पुस्तकों का अध्ययन करने की 5 बेहतरीन तकनीक (5 Best Techniques for Studying Books),विद्यार्थी पुस्तकों का अध्ययन क्यों करें? (Why Should Students Study Books?):
- पुस्तकों का अध्ययन करने की 5 बेहतरीन तकनीक (5 Best Techniques for Studying Books) के आधार पर आप क्या पढ़े और क्यों पढ़ें,इन दो प्रश्नों का यथोचित उत्तर मिल और जान सकें तो हमें पढ़ने की सही दिशा मिल सकती है।पुस्तक के पढ़ने के बारे में और भी लेख इस साइट पर मिल जाएंगे अतः उन लेखों को पढ़ेंगे तो ज्ञानवर्धन ही होगा।
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2.पुस्तकें क्यों पढ़ें? (Why Read Books?):
- मनुष्य विचारशील प्राणी है इसलिए वह पशुओं से ज्ञान और बुद्धि के आधार पर श्रेष्ठ माना और समझा जाता है।यदि ज्ञान प्राप्ति का प्रयत्न न करें,बुद्धि का विकास का प्रयत्न न करें तो हम पशु से श्रेष्ठ नहीं कहला सकते हैं।हालांकि बुद्धि का प्रयोग हम दुर्गुणों,दूसरों को सताने,खोटे,निकृष्ट कार्य करने में भी कर सकते हैं।तब हम पशुओं से भी नीचे गिर जाते हैं।
- अतः छात्र-छात्राओं तथा व्यक्तियों को ज्ञान प्राप्ति के लिए जिज्ञासु होना चाहिए।इसके अलावा हम हमारे लक्ष्य प्राप्ति के लिए भी अध्ययन करते हैं।यह लक्ष्य कोई परीक्षा उत्तीर्ण करना,जाॅब प्राप्त करने के लिए प्रतियोगिता परीक्षा उत्तीर्ण करना अथवा अन्य कोई भी लक्ष्य हो सकता है।व्यावहारिक ज्ञान और जीवन निर्माण के लिए भी अध्ययन करते हैं।अब आज ज्ञान प्राप्ति अथवा परीक्षा उत्तीर्ण करने के लिए तैयारी करने आदि के लिए आज ढेरों साधन उपलब्ध हैं।जैसे टीवी,इंटरनेट,वीडियो,यूट्यूब पर वीडियो,विभिन्न वेबसाइट्स,समाचार पत्र आदि।परंतु आप तुलनात्मक अध्ययन करेंगे तो पाएंगे कि पुस्तकों का स्थान इनमें से कोई भी नहीं ले सकता है।
- ज्ञान प्राप्ति का माध्यम महापुरुषों और श्रेष्ठ व्यक्तियों से सत्संग करके भी हो सकता है।परंतु आज के युग में श्रेष्ठ,सज्जन और संत पुरुषों की पहचान करना और सत्संग दुर्लभ है।क्योंकि आज ही नहीं प्राचीन काल से ही साधुवेश में कितने ही धूर्त और मक्कार तथा पाखंडी लोग हैं जो लोगों को मूर्ख बनाकर अपना उल्लू सीधा करते हैं।तुलसी देख सुवेश भूलहि मूढ़ न चतुर नर।सुंदर केकिहि पेखु वचन सुधा सम आसन अहि।।के अनुसार बाहरी पहनावे,वेशभूषा,सुंदरता को देखकर मूर्ख ही नहीं बल्कि बुद्धिमान लोग भी धोखा खा जाते हैं।जैसे सुंदर मोर के वचन तो अमृत के समान होता है परंतु वह आहार साँपों का करता है।
- अतः प्रमाणिक व्यक्तित्व व सज्जन पुरुषों का मिलना और उनकी पहचान करना कठिन है।दूसरा कारण यह भी है कि आज के व्यस्त जीवन में हर व्यक्ति के पास समय का अभाव रहता है।अतः ऐसे पुरुषों की खोज करने में समय नष्ट करने के बजाय पुस्तकों से सत्संग करना अच्छा माध्यम है।पुस्तकों से आप घर बैठे कभी भी,कहीं भी और किन्हीं भी सज्जन पुरुषों के सत्संग का लाभ उठा सकते हैं।क्योंकि पुस्तकों में उनके जीवन के निचोड़ का विवरण होता है।
- आज ज्ञान प्राप्ति के भले ही कितने भी सुपरफास्ट माध्यम हो गए हों परंतु वे सभी पुस्तकों का स्थान नहीं ले सकते हैं।आज शिक्षक भी विरले ही हैं जो छात्र-छात्राओं को ज्ञान प्रदान करते हैं,उनके चरित्र के विकास की तरफ ध्यान देते हैं।कारण स्पष्ट है कि आज की शिक्षा पद्धति ही ऐसी है।अब शिक्षा पद्धति में बदलाव करना तो हमारे हाथ में नहीं है।परंतु पुस्तकों,माता-पिता व सच्चे शिक्षकों से तो ज्ञान प्राप्त कर ही सकते हैं।
3.पुस्तकें पढ़ें ही नहीं उस पर मनन भी करें (Do not just read books but also meditate on them):
- एक दोहा हैः’पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ पंडित भया न कोय।ढ़ाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय।।यह इसलिए कही गई है कि जो लोग तथा छात्र-छात्राएं केवल पढ़ते ही रहते हैं और उस पर चिंतन-मनन नहीं करते,उसे अपने व्यवहार में नहीं उतारते,अपने जीवन का अंग बनाने का प्रयास नहीं करते उनको पढ़ने से फायदा नहीं होता।प्रायः लोग अच्छी पुस्तकें पढ़ते भी हैं,परंतु जो पढ़ा गया है,उस पर चिंतन-मनन और वार्तालाप नहीं करते उनके जीवन में बदलाव नहीं आ सकता।उस अध्ययन का प्रभाव जीवन में स्थायी नहीं हो पाता।यदि पुस्तकों-शास्त्रों के सार जीवन में उतारने की प्रक्रिया लोग सीख जाएँ तो सामान्य-सी परिस्थितियों में ही हर व्यक्ति उत्कृष्टता के चरम बिंदु तक पहुंच सकता है।अच्छी पुस्तकें,महापुरुषों की जीवन गाथाएं गोघृत एवं दुग्ध के समान पौष्टिक आहार है,जो मन-बुद्धि,आचार-विचार,तर्क व विवेक को परिपुष्ट करके भविष्य उज्ज्वल और जीवन निर्माण का पथ प्रशस्त करती है।
- आप कहेंगे कि गणित के सवालों,प्रमेयों और सिद्धांतों को पढ़ने से चरित्र निर्माण का संबंध कैसे हो सकता है।वस्तुतः प्रत्यक्ष रूप में दिखाई नहीं देता है।परंतु चिंतन-मनन करने से गणित की अनेक गुत्थियों और समस्याओं का समाधान मिलता है।दूसरी बात जब हम कड़ी मेहनत करते हैं तो कठिन परिश्रम करने की आदत का अप्रत्यक्ष रूप से विकास होता है।इसलिए गणित जैसे विषयों को पढ़ने के बाद चिंतन-मनन करने पर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों लाभ मिलते हैं।
- विश्व के अधिकांश गणितज्ञ,महान् वैज्ञानिक और महापुरुष अर्थात् जितनी भी प्रतिभाएं प्रकट हुई हैं,उनमें से अधिकांश पुस्तकों से ही निकली है।आज पढ़ते तो सभी हैं परंतु उन पढ़ने वालों में आतंकवादी,लुटेरे,चोर,अपहरणकर्ता,रिश्वतखोर,बेईमान भी होते हैं तो अल्बर्ट आइंस्टीन,इसाक न्यूटन,कार्ल फ्रेडरिक गाउस,आर्यभट्ट,महावीराचार्य,ब्रह्मगुप्त,भास्कराचार्य जैसे महान गणितज्ञ भी पढ़कर आगे बढ़े हैं।
- आज 75-80% बालक बालिकाएं पढ़ते हैं,रोज पढ़ते हैं,नियमित रूप से पढ़ते हैं,कक्षाएं उत्तीर्ण करते हैं,डिग्री हासिल करते हैं,जाॅब प्राप्त करते हैं परंतु उनमें से गिने-चुने शिखर पर पहुंचते हैं और अपने माता-पिता,परिवार,समाज,देश को गौरवांवित करते हैं।हम भी यदि महामानवों की तरह पढ़ें हुए विषय पर विचार-चिंतन करें,मनन करें,उनको जीवन में उतारें तो हम भी शिखर पर पहुंच सकते हैं।
- पढ़ना वही सार्थक होता है जब स्वाध्याय किया जाता है।स्वाध्याय यानी अपने आपका अध्ययन करना।अपने गुणों और अवगुणों को जानना।गुणों में वृद्धि करते रहना और उन्हें शिखर पर पहुंचाना तथा अवगुणों को छाँट-छाँटकर,एक-एक करके बाहर निकालना,जड़ से समाप्त कर देना।यही आदत हमें स्वाध्यायी बनाती है और पुस्तकों से प्रेम करना सिखाती है।केवल किताबी कीड़ा या पढ़ाकू न बनकर पढ़ें हुए को जीवन में उतारना।
- कुछ लोग स्वाध्याय का नाम सुनकर ही बिदकते हैं।परंतु स्वाध्याय का सही अर्थ जाने बिना केवल मुंह बिचकाना या बिदकना कैसे न्याय संगत और उचित हो सकता है।गुणों को धारण करना,आदर्शों को जीवन में उतारना और अवगुणों को निकाल बाहर फेंकने को चाहे तो और किसी भी नाम से पुकार सकते हैं।क्योंकि आदर्शों तथा सच्चाई,ईमानदारी,सरलता,विनम्रता आदि गुणों को युगानुकूल वे ही नहीं समझते जो इनके महत्त्व को नहीं जानते।
4.पुस्तकों का अध्ययन करें (Study Books):
- जीवन में सफल होने के लिए यह आवश्यक है कि हम एक सुसंस्कृत व्यक्ति बनने का प्रयास करें।सुसंस्कृत व्यक्ति बनने के लिए शिक्षित होना आवश्यक है।शिक्षा कतिपय सीमाओं में बद्ध न होकर बहुआयामी होनी चाहिए।हमको किसी विषय का पूर्ण ज्ञान हो तथा विभिन्न विषयों का थोड़ा-बहुत ज्ञान हो।अतः यह आवश्यक है कि जीवन में सफल होने के लिए उत्सुक युवक-युवती नियमित रूप से अध्ययन करने के अभ्यस्त होने चाहिए।वे जिस व्यवसाय को अपनाना चाहते हैं अथवा अपना चुके हैं,उसके विषय में यथासंभव अधिकाधिक जानकारी प्राप्त करने का प्रयत्न करें,विषय से संबंधित जो भी पुस्तक,पत्र-पत्रिका उपलब्ध हो,उसको ध्यानपूर्वक पढ़ें और उनमें उपलब्ध आवश्यक बातों को नोट करते रहें।जब भी विषय की चर्चा करने का अवसर आए,तब वे अधिकारपूर्वक बात करें और अपना पक्ष सशक्त रूप से प्रस्तुत करें।यदि ऐसे अवसर पर हम ज्ञानाभाव के फलस्वरूप बगलें झांकने लगते हैं,तो हमारी छवि एक अनाड़ी की छवि के रूप में उभरेगी और लोग हमारे प्रति न आकर्षित ही होंगे और न आश्वस्त ही होंगे।
- विभिन्न विषयों से संबंधित जानकारी प्राप्त करके हम सुशिक्षित समाज में भी अपनी पहचान बना सकेंगे तथा अशिक्षित एवं अनभिज्ञ व्यक्तियों को आवश्यक जानकारी द्वारा लाभान्वित कर सकेंगे।दोनों ही स्थितियों में समाज हमको आदर की दृष्टि से देखेगा और एक उपयोगी व्यक्ति समझेगा।ऐसा न होने पर हमारे बारे में लोगों की सोच बहुत कुछ इस प्रकार होगी-बेचारा किसी प्रकार अपना काम निकालकर गृहस्थी का काम चला रहा है।याद रखिए ‘बेचारा’ होना विवशता का द्योतक है,जीवन का बहुत बड़ा अभिशाप है।हमको दयापात्र होकर नहीं,सम्मान का अधिकारी बनकर जीने का लक्ष्य सामने रखना चाहिए।हमारे विचार से निर्धनता की अपेक्षा दीनता जीवन को अपेक्षाकृत अधिक अभिशप्त बना देती है।
- पुस्तकें पढ़ने से सामान्य ज्ञान में वृद्धि होती है तथा जीवनोपयोगी ज्ञान की उपलब्धि होती है।पुस्तक पढ़ते हुए हम आरंभ से अंत तक एक विशेष प्रकार के नयेपन का,ताजगी का अनुभव करते हैं।पुस्तक पढ़ने के उपरांत हम एक नए व्यक्ति बन जाते हैं।पुस्तकों के समान न कोई हमारा स्थायी मित्र होता है और ना सर्वत्र एवं सर्वथा उपलब्ध मार्गदर्शक।किसी अच्छी पुस्तक को कई बार पढ़ने का अभ्यास कीजिए,प्रत्येक बार आपको कोई न कोई नई बात मालूम पड़ेगी और संबंधित विषय के प्रति नई दृष्टि मिलेगी।
- पुस्तकें पढ़ने से बहुत लाभान्वित हुआ जा सकता है,अनेक विचार जो अस्पष्ट और अनिश्चित होते हैं,पुस्तकों की सहायता से स्पष्ट और सुनिश्चित हो जाते हैं।पुस्तकों के अध्ययन के फलस्वरूप नई-नई बातें तो मालूम होती ही हैं,साथ ही नवीन चिंतन को प्रेरणा मिलती है।जीवन में नई-नई विचारधाराओं से साक्षात्कार होता है।पुस्तकों से नई दृष्टि मिलती है और अनेक मान्यताओं में सुधार एवं परिवर्तन होता है।
- पुस्तकों को पढ़ते रहने से नया ज्ञान तो प्राप्त होता ही है,पुराना ज्ञान ताजा बना रहता है तथा उस पर सान चढ़ती रहती है।स्वाध्याय का भी तो यही लक्ष्य रहता है।स्वाध्याय और पुस्तकों का अवलोकन/अध्ययन पर्यायवाची हैं।जो स्वाध्याय नहीं करते हैं,पुस्तकों के संपर्क में नहीं रहते हैं,वे अर्जित ज्ञान को विस्मृत कर देते हैं और अंतत उससे वंचित हो जाते हैं।पुस्तकों के माध्यम से जो व्यक्ति ज्ञानार्जन का क्रम भंग कर देते हैं,वे ज्ञान के अभाव में जीवन-संघर्ष में भ्रमित हो जाते हैं और भावात्मक आदर्शों से दूर पड़ जाते हैं।
5.पुस्तकें पथ प्रदर्शन करती हैं (Books show the way):
- जो लोग पुस्तकें पढ़ते रहते हैं,उनके जीवन में भटकाव की स्थितियां बहुत कम आती हैं,क्योंकि अध्यनरत रहने के फलस्वरूप वे आदर्शो से विमुख नहीं हो पाते हैं और पुस्तकें उन्हें कर्त्तव्याकर्त्तव्य के प्रति सदैव जागरूक रखती हैं।पुस्तकों के माध्यम से मन-मस्तिष्क को जो ताजगी मिलती है,वह बहुत कुछ उस ताजगी के समान होती है जिसका आनंद दिनभर कठिन परिश्रम करने वाला व्यक्ति संध्या समय स्नान द्वारा प्राप्त करता है।पुस्तक में जब हम किसी भी महान व्यक्ति का चरित्र पढ़ते हैं,तो हमारी चेतना का स्तर ऊंचा उठ जाता है और हमको उच्च आदर्शों के अनुसरण की प्रेरणा प्राप्त होती है।जीवन में पूर्ण सफलता प्राप्त एक सौभाग्यशाली महानुभाव का कहना है कि मैं जिस पुस्तक को पसंद करता हूं,उसको अपना एक सच्चा साथी बना लेता हूं।वह एक सच्चे मित्र की भांति आवश्यकता के समय मेरी सहायता,मेरा मार्गदर्शन सब कुछ करती है,जो कथन अथवा उसकी पंक्तियां मुझे प्रभावित करती है अथवा रुचिकर लगती हैं,उनको मैं रेखांकित करता रहता हूं और उनको बार-बार पढ़ता हूं।इस विधि द्वारा मैं पुस्तक के महत्त्वपूर्ण अंशों को पूर्णतया आत्मसात कर लेता हूं।इन प्रभावशाली एवं मार्मिक पंक्तियों के सहारे मैंने संकट,निराशा की अनेक घड़ियां पार की हैं।
- आप भी अपनी पुस्तकों के प्रति इसी प्रकार का व्यवहार कीजिए,इससे आपको अच्छे-अच्छे काम करने की प्रेरणा प्राप्त होगी।इससे विचारों को नई ऊर्जा प्राप्त होगी।यह आपके समग्र व्यक्तित्व का कायाकल्प कर देगा।जब आपके ऊपर विपत्तियों के बादल छा रहे होंगे,उस समय पुस्तक-ज्ञान आपको साहस प्रदान करेगा।पुस्तकों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वे सतत कार्यशीलता की प्रेरणा करती है तथा व्यक्तित्व को प्रत्यंचायुक्त धनुष की भांति लक्ष्य-भेद के लिए प्रत्येक क्षण प्रस्तुत रखती है।
- आप पुस्तकों के साथ मित्रता स्थापित करने का प्रयत्न करेंगे और उनमें निहित ज्ञान द्वारा लाभान्वित होंगे।यदि वे प्रस्तुत पुस्तक के प्रति मित्रवत व्यवहार करेंगे और उसमें समाविष्ट ज्ञान द्वारा लाभान्वित होने का प्रयत्न करेंगे,तो वे सफलता-प्राप्ति के प्रति आश्वस्त हो सकते हैं।वे व्यक्ति अकेले नहीं रहते हैं,जिनके साथी श्रेष्ठ विचार होते हैं।कहने की आवश्यकता नहीं है कि श्रेष्ठ विचारों की प्राप्ति पुस्तकों के अध्ययन द्वारा होती है।स्मरण रखिए-पुस्तकों के मध्य मित्र भी उपलब्ध होते हैं और देवदूतों (Angles) के भी दर्शन होते हैं।
- एफ आस्बोर्न नाम के विद्वान का कहना है कि अच्छी तरह पढ़ी हुई और आत्मसात की हुई पुस्तकें उन सैकड़ों पुस्तकों की अपेक्षा हमारे ज्ञान को अधिक पुष्ट करती हैं,जिन्हें हम गरारे करने के लिए प्रयुक्त जल की भांति मुँह तक ही सीमित रखते हैं-A few books,well studied and thoroughly digested, nourish the understanding more than hundred books, gargled in the mouth. (F. Osborne)।स्वाध्याय के अभ्यास के साथ ज्यों-ज्यों ज्ञान में स्थायित्व आता जाता है,त्यों-त्यों अध्ययन-मनन के प्रति रुचि एवं लगन में वृद्धि होती जाती है।गंभीरतापूर्वक किए गए अध्ययन-मनन द्वारा अर्जित ज्ञान मस्तिष्क पर प्रस्तर रेखा की भांति सदा-सर्वदा के लिए अंकित हो जाता है।भारत के आर्षऋषियों की सम्मति में अध्ययन एवं स्वाध्याय का स्थान भगवत-स्मरण के समकक्ष ठहरता है।स्वाध्याय की रसायन द्वारा पर्यवेष्ठित ज्ञान मानव को मनीषी मानव बना देता है और वह प्रत्येक वस्तु एवं घटना के अतीत एवं भविष्य की परिकल्पना करने में समर्थ हो जाता है।
- उपर्युक्त आर्टिकल में पुस्तकों का अध्ययन करने की 5 बेहतरीन तकनीक (5 Best Techniques for Studying Books),विद्यार्थी पुस्तकों का अध्ययन क्यों करें? (Why Should Students Study Books?) के बारे में बताया गया है।
Also Read This Article:4 Tips for Students to Read Scriptures
6.आलसी छात्र (हास्य-व्यंग्य) (Lazy Student) (Humour-Satire):
- एक अध्यापिका ने बोर्ड पर सवाल लिखकर उसे हल करने को कहा।
- एक छात्र ने कॉपी में लिखा इसका हल तो पासबुक,कुंजियों में भी मिल जाएगा।फालतू छात्रों को कसरत कराने की क्या जरूरत है?
- अध्यापिका ने कहा:आलसी कहीं के।
- छात्र ने तपाक से कहाःआलसी भी तो छात्र (मनुष्य) ही होते हैं।
7.पुस्तकों का अध्ययन करने की 5 बेहतरीन तकनीक (Frequently Asked Questions Related to 5 Best Techniques for Studying Books),विद्यार्थी पुस्तकों का अध्ययन क्यों करें? (Why Should Students Study Books?) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:
प्रश्न:1.संघर्षों में पुस्तकें कैसे सहायक हैं? (How are books helpful in conflicts?):
उत्तर:यदि पुस्तकें होती है तो जब-जब जीवन में,जहां-जहां स्वयं को संघर्षों से घिरा पाएं तो पुस्तकों का सहारा लें,हर बार आपको कोई ना कोई मार्ग,नई सोच और एक नया नजरिया प्रस्तुत करेंगी जो उसे संघर्ष से बाहर निकलने में मदद करेगा।पुस्तकों का निरंतर अध्ययन एक ऐसी ही नई सोच प्रत्येक मनुष्य के मन में पैदा कर सकती है।
प्रश्न:2.क्या पुस्तकें एकाग्रता को विकसित करती हैं? (Do books improve concentration?):
उत्तर:निरंतर अध्ययन करने की क्षमता मानसिक एकाग्रता को विकसित करती है,वहीं दूसरी ओर विभिन्न पुस्तकों से प्राप्त सत्प्रेरणाएं मनुष्य के अंतर्मन को सहज ही श्रेष्ठता की ओर प्रेरित कर देती हैं।इसलिए अध्ययन का अर्थ मात्र कहीं से कुछ भी पढ़ लेने की आदत को बनाए रखना ही नहीं है,वरन् विभिन्न स्रोतों से सद्भावनाओं एवं सद्विचारों को एकत्र करना भी है,ताकि उनसे मिली प्रेरणाएं हमारे व्यक्तित्व का रूपांतरण करने में सक्षम हो सकें।
प्रश्न:3.क्या पुस्तकें सत्संग की पूर्ति कर सकती हैं? (Can books fulfill satsang?):
उत्तर:व्यक्तिगत सत्संग की अपेक्षा कई बार तो सत्साहित्य द्वारा प्राप्त किया सत्संग अधिक उपयुक्त सिद्ध होता है।जिसकी सत्साहित्य में अभिरुचि उत्पन्न हो गई और जो जीवन निर्माण के सद्ज्ञान को प्राप्त करने के लिए प्रयत्न करने लगा उसका कल्याण अति निकट है यही समझना चाहिए।
- उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा पुस्तकों का अध्ययन करने की 5 बेहतरीन तकनीक (5 Best Techniques for Studying Books),विद्यार्थी पुस्तकों का अध्ययन क्यों करें? (Why Should Students Study Books?) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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Satyam
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