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5Tips for Collaborating and Supporting

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1.सहयोग करने और सहयोग मिलने की 5 युक्तियाँ (5Tips for Collaborating and Supporting),लेने और देने में सन्तुलन कैसे रखें की 5 युक्तियाँ (5 Tips on How to Balance Giving and Receiving):

  • सहयोग करने और सहयोग मिलने की 5 युक्तियों (5Tips for Collaborating and Supporting) के आधार पर आप जान सकेंगे कि सहयोग लेना जितना जरूरी है उतना ही जरूरी है सहयोग करना।यानी इसमें संतुलन बना रहता है अन्यथा यदि आप लेते ही रहेंगे तो स्वार्थी कहलायेंगे और देते ही रहेंगे तो आप अपने कार्य की अनदेखी करेंगे,अपने काम का नुकसान करेंगे जो की व्यावहारिक नहीं है।
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2.किसी भी व्यक्ति से काम पड़ सकता है (Anyone can do the job):

  • किसी से भी लड़ना-झड़ना ठीक नहीं होता।आदमी को कड़वे नीम से भी काम पड़ जाता है।उक्त कथन सुनकर आपकी चिंतन धारा के तार झनझना उठ सकते हैं।नीम से भी अधिक कड़वा क्या,जिसको हम तुरंत थू-थू करके थूक देते हैं? परंतु वही नीम हमको आवश्यकता पड़ने पर कितना उपयोगी प्रतीत होने लगता है! उसकी कोपलें,टहनियाँ,उसकी शाखाएं तथा उसकी छाल सभी कुछ तो हमारे काम आती हैं।चिंतन आगे बढ़ने पर और विश्व ब्रह्मांड की झांकी आंखों के सामने आती जाएगी।यह देखकर सुखद आश्चर्य होता है कि विश्व का प्रत्येक पदार्थ कुछ ना कुछ देने की क्षमता रखता है।दुनिया में कोई वस्तु,जीव-जंतु,लता,पुष्प,वृक्ष आदि ऐसा नहीं है,जो दुनियाँ के किसी काम का ना हो।यहां तक कि सांप,बिच्छू के विष भी औषधि के रूप में प्रयुक्त किए जाते हैं।
  • यह तो हुई जड़-चेतन से लेने की बात।परंतु,इसके साथ यह प्रश्न भी तो उत्पन्न होता है कि हम दुनिया को क्या दे सकते हैं? क्या हमारे पास भी ऐसा कुछ है जो हम समाज को दे सकें? जड़-चेतन की परिधि में तो हम भी आ जाते हैं।
  • क्या आपने कभी यह सोचा है कि आपके पास देने को बहुत कुछ है? आप समझते हैं कि आप अकिंचन (जिसके पास कुछ ना हो,दरिद्र) हैं,आप किसी को क्या दे सकते हैं? आप याद करें कि आपके पास मीठी वाणी है,जिसके द्वारा आप अपने संपर्क में आने वालों का मन शीतल और शांत कर सकते हैं तथा दीन-दुखियों को सान्त्वना प्रदान कर सकते हैं।कोयल मीठी वाणी बोलकर सबको प्रसन्न करती है,आप भी मीठे वचन सुनाकर लोगों के हृदय में स्थान प्राप्त कर सकते हैं।इतना ही नहीं,आप भूले-भटकों को राह भी दिखा सकते हैं।
  • गुह निषाद से अधिक अकिंचन तो आप नहीं होंगे।परंतु वह भी समाज की सेवा करने में पीछे नहीं था।उसका कहना था कि हम किसी के कपड़े,बर्तन नहीं चुराते हैं-हमारी यही सेवा है।हम यदि किसी की कोई हानि न करें,तो प्रकारान्तर से हम भी समाज की सेवा कर सकते हैं।
  • भगवान श्री राम वनवासी के रूप में नाव पर बैठकर गंगा पार हुए थे।केवट ने उनसे उतराई नहीं ली,यह कहकर कि “फिरती बार नाव जो देवा,सो प्रसाद मैं सिर धर लेवा”। मुसीबत में पड़े हुए लोगों का काम यदि हम निःशुल्क करने का नियम बना लें,तो हम समाज को बहुत कुछ दे सकते हैं।आज भी गंगा की रेती में,अनेक व्यक्ति निःशुल्क सेवा करते हुए देखे जा सकते हैं।अनेक मंदिरों में,गंगा के घाटों पर अनेक व्यक्ति सेवाभाव से झाड़ू लगाते रहते हैं।
  • आपने उच्च शिक्षा प्राप्त की है।आपके पड़ोस में अनेक निरक्षर व्यक्ति होंगे।इस संदर्भ में आपके पास देने को विद्या एवं ज्ञान है।आप यदि वर्ष में एक व्यक्ति को भी साक्षर बना दें,तो भी समाज को आप बहुत कुछ दे देंगे।दो कदम आगे बढ़ने पर यदि आप यह नियम बना लें कि आप प्रतिदिन एक घंटा नित्य निःशुल्क पढ़ाएंगे,तो आप समाज को कितना ज्ञान-दान कर देंगे? ज्ञान-दान का फल कितना और क्या हो सकता है।इसके लिए वाल्मीकि और नारद का आख्यान स्मरण कर लेना पर्याप्त होगा।देवर्षि नारद ने दस्यु रत्नाकर को राम-राम की दीक्षा दी थी।रत्नाकर इतने जड़ थे कि राम-राम का उच्चारण भी ठीक तरह नहीं कर सकते थे।परंतु उसी के कारण वह आदि कवि की पदवी को प्राप्त हुए।आपके ज्ञान-दान के द्वारा कब किसके हृदय-कपाट खुल जाएँ-कौन कह सकता है?

3.आपके पास देने को बहुत कुछ है (You have a lot to give):

  • प्रत्येक समझदार एवं प्रबुद्ध व्यक्ति अनेक विषयों का चिंतन करता है और उनके बारे में अपनी राय रखता है। जहाँ-तहाँ होने वाले छोटे-पूरे विवादों को देखकर हम समझ सकते हैं कि अनेक व्यक्ति विभिन्न विषयों पर काफी गहराई के साथ चिंतन करते रहते हैं।हमारा विश्वास है कि आप भी ऐसा कुछ करते होंगे।आप यदि अपने विचारों को लेखबद्ध कर दें,तो साहित्य के भंडार में अभिवृद्धि हो।पंडितजन का कहना है कि विचारों को लिखित रूप प्रदान करने का नाम ही साहित्य की सर्जना है और इससे समाज को मुख्यतः पाँच लाभ होते हैं-वाणी पावन होती है,व्यक्ति का चिंतन रचनात्मक होता है,उसका अंतःकरण पवित्र होता है,साहित्य की उन्नति होती है,तथा भावी संतान हेतु सुपथ का निर्माण होता है।इतना ही नहीं,स्वयं लिखने वाले के ज्ञान में भी वृद्धि होती है तथा उदारता,परोपकार जैसी उदात्त वृत्तियों का विकास होता है।
  • आपकी आर्थिक स्थिति अच्छी है,तो आप धन-दान द्वारा अनेक लोगों का भला कर सकते हैं,अनेक समाजोपयोगी कार्य कर सकते हैं।अनेक चिकित्सालय,धर्मशालाएं,कुएं,विद्यालय,छात्रावास आदि उदारमना धन-दाताओं की ‘कुछ देने’ की वृत्ति के ही तो सुफल हैं।
    कहने का तात्पर्य है कि आप अपने स्वरूप का स्मरण करें।आप देखेंगे कि आपके पास देने को बहुत कुछ है।तन,मन एवं धन तीनों के माध्यम से आप समाज को बहुत कुछ लाभ पहुंचा सकते हैं।समाज को देने वालों के स्मारक उनके यश,कीर्ति के रूप में स्थायी बने रहते हैं।यही देवत्व है।आप समाज को अपना कुछ भी दीजिए,आप देवत्व की ओर एक पग आगे बढ़ जाएंगे।वैसे भी प्रकृति का यह नियम है कि उसमें कहीं भी रिक्तता के लिए स्थान नहीं है।आप जैसे ही कुछ देते हैं,यानी अपना कोई कोना खाली करते हैं,वैसे ही प्रकृति की संपत्ति उस रिक्त स्थान को भरने के लिए सक्रिय हो जाती है।अनुसारी परिणाम यह होगा कि आप जो और जैसा देंगे,वैसा ही और उतना ही प्रकृति आपको दे देगी-साथ ही प्रकृत एवं परिष्कृत रूप में।
  • अपना कुछ समय,श्रम,धन,ज्ञान आदि देने का नाम ही परोपकार है।परोपकार की महिमा अपार है।जो परोपकार में रत है,उसी का अभ्युदय होता है।वेद का यह वाक्य सतत मनन करने योग्य है-द्युलोक में स्थित सूर्य अपना प्रकाश व ताप सर्वत्र पहुंचाता है और सबका प्यार पाता है-इसी तरह विद्वान अपने ज्ञान रूपी प्रकाश को विकीर्ण करता हुआ भला लगता है।
  • प्रत्येक व्यक्ति तीन ऋण लेकर जन्म लेता है-पितृ ऋण,देव ऋण और ऋषि ऋण।इनको चुकाना ही मानव-जीवन का सर्वोपरि धर्म कहा गया है।ऋषियों का कथन है कि जो सबके लिए कर्म करता है,उस पर कोई ऋण नहीं चढ़ता।जो व्यक्ति अपने मन को परोपकार में लगाता है,वही मानव-जाति का भूषण बनता है।हमारा मन तभी तक हमारा भूषण है,जब तक वह हमको कुछ देते रहने की प्रेरणा प्रदान करता रहता है।
  • यदि आप अपने आप पर अपनी क्षमताओं पर नजर डालेंगे तो पाएंगे कि आपके पास देने को बहुत कुछ है।आप पूर्ण मनोयोगपूर्वक विचार कीजिए कि आपके पास देने के लिए कौन-कौन सी वस्तुएं हैं:ज्ञान,धन,मीठी वाणी आदि।यह देने की बात तो हुई सामान्य जन की,अब छात्र-छात्राओं के बारे में विचार करते हैं कि वे क्या दे सकते हैं,उन्हें क्या देना चाहिए और किस हद तक।

4.ज्ञान प्राप्ति के साधन और छात्र (Means of wisdom acquisition and students):

  • छात्र-छात्रा अथवा कोई भी व्यक्ति विद्या,ज्ञान तीन तरीकों से प्राप्त कर सकते हैं।शिक्षक से शुल्क देकर और निःशुल्क सेवा करके अथवा धन का भुगतान करके जैसे पुस्तकें खरीद कर,स्कूल तथा शिक्षण संस्थानों को फीस चुकाकर तथा तीसरा तरीका है एक विद्या पढ़ाकर और दूसरी विद्या एवज में पढ़ना।आजकल के छात्र-छात्राएँ इन तीनों तरीकों से शिक्षा प्राप्त करते हैं।वस्तुतः आजकल जो शिक्षा अर्जित की जाती है उसे सही मायने में विद्या तथा वास्तविक ज्ञान कहा ही नहीं जा सकता है।आज जो शिक्षा अर्जित की जाती है वह छात्र-छात्राओं को साक्षर करती है,सैद्धांतिक शिक्षा प्राप्त करते हैं,जाॅब करने योग्य बनाती है।
  • यदि छात्र-छात्राओं को सही मायने में विद्या अर्जित करना हो तो उसे किसी गुरु की शरण में जाना होगा और इस युग में विरले ही शिक्षक ऐसे हैं जो गुरु हैं।विद्या अर्जित करने के लिए उन्हें कोर्स की पुस्तकें पढ़ने के साथ-साथ अलग से प्रयास करना होगा।ऐसे विद्यार्थी बहुत कम है जो विद्या और शिक्षा के अर्थ को ठीक से समझते हैं।जो विद्यार्थी इस अर्थ को समझते हैं वे विद्या प्राप्ति के प्रति जिज्ञासु होते हैं और पुरुषार्थ करके विद्या अर्जित कर ही लेते हैं परंतु ऐसे विद्यार्थी बहुत कम होते हैं।
  • अब प्रश्न यह है कि क्या विद्यार्थी को सेवा कार्य,सहयोग तथा सहायता करनी चाहिए अथवा नहीं।चाणक्य नीति में छात्र-छात्राओं तथा विद्यार्थी के लिए आठ कार्यों को करने के लिए वर्जित किया गया है उसमें सेवा कार्य भी शामिल है।अर्थात विद्यार्थी को अति सेवा कार्य नहीं करना चाहिए।सेवा कार्य को श्रेष्ठ समझा जाता है और जितना सेवा कार्य किया जाए उतना ही व्यक्ति उन्नत और श्रेष्ठ होता जाता है।परंतु विद्यार्थी के लिए अधिक सेवा करना इसलिए वर्जित किया गया है क्योंकि विद्यार्थी काल विद्या और शिक्षा अर्जित करने का समय होता है।उसे कोर्स की पुस्तकें पढ़ने,व्यावहारिक ज्ञान अर्जित करने और कोई भी कौशल सीखने के कारण समयाभाव रहता है।अतः यदि वह अधिक सेवा कार्य करेगा तो सेवा करने के लिए उसे समय भी देना होगा और उसका समय नष्ट होगा तो विद्या का अर्जन नहीं कर पाएगा।उसके पास विद्या का अर्जन करने के लिए समय नहीं बचेगा।
  • अतः विद्यार्थी को अपना भविष्य उज्ज्वल बनाने,जीवन को सफल और श्रेष्ठ बनाने के लिए अधिक सेवा कार्य नहीं करना चाहिए।वरना उसका मूल्यवान समय नष्ट हो जाएगा और विद्याध्ययन के लिए समय नहीं बचेगा।
  • आज विद्यार्थी के समय को नष्ट करने के अनेकों साधन मौजूद है।जैसे सोशल मीडिया पर व्यस्त रहना,चैटिंग करना,मित्रों से घंटों वीडियो कॉल करते रहना,फोन करना आदि।मोबाइल फोन की लत लगने के बाद उन्हें पता ही नहीं लगता है कि उनका कीमती समय नष्ट हो रहा है।मीठी-मीठी,मधुर और मन को सुकून देने वाली लत है तो एक बार लगने के बाद छुड़ाए नहीं छूटती है।जिस प्रकार शराबी शराब की लत को यह जानते हुए कि यह उसके स्वास्थ्य को नष्ट करने वाली लत है लेकिन फिर भी नहीं छोड़ता क्योंकि उसका मनोबल कमजोर हो जाता है।इसी प्रकार इंटरनेट व सोशल मीडिया तथा मोबाइल फोन की गिरफ्त में आने के बाद भी छात्र-छात्राएं इस आदत को छोड़ नहीं पाते हैं।कोई भी बुरी आदत के चंगुल में फंस जाता है तो वह आदतन उस कार्य को करता रहता है,यह जानते-समझते हुए कि यह समय को नष्ट करने वाली है।

5.परीक्षार्थी सहयोग लें और दें (Examinee seek support and give):

  • अब परीक्षा का समय है अतः प्रश्न-पत्र के श्रेष्ठ उत्तर देने,परीक्षा को अच्छे अंकों से उत्तीर्ण करने का दाब-दबाव रहता है।ऐसी स्थिति में प्रश्नों,सवालों और कोर्स की,टाॅपिक की समस्याओं से निजात पाने के लिए सहयोग की आवश्यकता होती है।यह सहयोग पुस्तकों,संदर्भ पुस्तकों,पासबुक्स,मॉडल पेपर्स,गत वर्षो के सॉल्वड पेपर्स,मॉक टेस्ट,ऑनलाइन वीडियो,वेबसाइट्स आदि से हो सकती है।परंतु इनसे सजीव सहयोग प्राप्त नहीं हो सकता है।आपके सामने तत्काल कोई समस्या उत्पन्न हो जाए तो आवश्यक नहीं है कि ऑनलाइन टूल्स से उसका समाधान हो ही जाए।
  • इसके अलावा शिक्षकों से,मित्रों से,सहपाठियों से भी सहयोग मिल लिया जा सकता है।इनसे आपके मन में कोई भी तत्काल समस्या उत्पन्न होने पर समाधान प्राप्त किया जा सकता है।शिक्षकों से अब तक आपने जो सहयोग लिया है वह परीक्षा के समय पर सीमित हो जाता है।अतः परीक्षा के समय आप घर पर ही तैयारी कर रहे होते हैं।घर पर तैयारी करते समय टॉपिक से संबंधित कोई समस्या उत्पन्न हो जाए तो मित्रों व सहपाठियों से सहयोग लिया जाता है।
  • मित्रों व सहपाठियों से सहयोग लेते समय उन्हीं मित्रों व सहपाठियों से सहयोग लेना चाहिए जिनके गुण-कर्म-स्वभाव आपके अनुकूल हो,आपके शुभचिंतक  हों और आपको प्रोत्साहित व प्रेरित करते हों।ऐसे मित्रों व सहपाठियों से दूर रहना चाहिए जो आपके मनोबल को गिराते हों,नकारात्मक बातें करते हों और आपको हतोत्साहित करते हों तथा आपकी उन्नति से ईर्ष्या करते हों।
  • यदि आप मित्रों व सहपाठियों से सहयोग लेते हों तो आपको भी किसी-न-किसी प्रकार उनका सहयोग करना चाहिए ताकि सहयोग लेने व देने का संतुलन बना रहे।यदि आप केवल सहयोग लेते रहेंगे,टॉपिक्स से संबंधित समस्याओं का समाधान पूछते रहेंगे और अपना ही मतलब साधते रहेंगे तो कुछ समय बाद वे आपसे किनारा करने लगेंगे।यदि आपके समान बौद्धिक स्तर के हैं तो यदि आप किसी सवाल,समस्या या टॉपिक्स को समझने में मदद लेते हैं तो आपको भी उसके सामने आने वाली प्रॉब्लम्स को हल करने में मदद करनी चाहिए।यदि बौद्धिक स्तर आपसे अधिक है तो आप अन्य प्रकार से उसकी मदद कर सकते हैं।जैसे रिवीजन के लिए उसे कोई पाठ सुनाना हो तो पाठ सुन सकते हो।किसी चैप्टर के नोट्स बनाने हों तो नोट्स बनाकर दे सकते हो।यदि वह निर्धन छात्र-छात्रा है और आप संपन्न छात्र-छात्रा है तो उसकी आर्थिक मदद कर सकते हो।
  • आपस में किसी टॉपिक,किसी समस्या पर विचार-विमर्श भी कर सकते हो।विचार-विमर्श से जो बातें आपके दिमाग में आती हैं वे उसे बता सकते हो और जो बातें आपके मित्र या सहपाठी के दिमाग में आती है वे बातें वह बता सकता है।इस प्रकार विचार-विमर्श करने से भी किसी समस्या,सवाल को हल किया जा सकता है।लेकिन आपस में सहयोग का आदान-प्रदान होने के लिए समान गुण-कर्म-स्वभाव का होना जरूरी है।इसके लिए विद्याध्ययन की तीव्र उत्कंठा,लगन,कठिन परिश्रम करने की आदत का होना भी आवश्यक है।यदि आप में जिज्ञासु प्रवृत्ति,कठिन परिश्रम की आदत और विद्याध्ययन के प्रति तीव्र उत्कण्ठा नहीं होगी तो आपस में एक-दूसरे का सहयोग फलदायी नहीं हो सकेगा।इन शर्तों के होने पर ही ग्रुप स्टडी का लाभ प्राप्त किया जा सकता है।अन्यथा ग्रुप स्टडी में यदि आपस में फालतू की बातें करेंगे,मनोरंजन करने का माध्यम बना लेंगे तो ग्रुप स्टडी जी का जंजाल बन जाएगी।आपका कीमती समय व्यर्थ में ही नष्ट हो जाएगा।उपर्युक्त बातों का ध्यान रखकर परीक्षा की तैयारी करेंगे,अध्ययन करेंगे तो ग्रुप स्टडी का लाभ प्राप्त किया जा सकता है।किसी भी चीज का उपयोग और दुरुपयोग करना हमारे ऊपर निर्भर करता है।यानी आप सावधान और जागरुक रहेंगे तो किसी भी माध्यम का,सहयोग का बेहतरीन लाभ उठा सकते हैं।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में सहयोग करने और सहयोग मिलने की 5 युक्तियाँ (5Tips for Collaborating and Supporting),लेने और देने में सन्तुलन कैसे रखें की 5 युक्तियाँ (5 Tips on How to Balance Giving and Receiving) के बारे में बताया गया है।

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6.प्रिंसिपल का बिल (हास्य-व्यंग्य) (Bill of Principal) (Humour-Satire):

  • पिता:अनमोल,तुमने स्कूल के प्रिंसिपल का बिल (रसीद) कहीं देखा है?
  • अनमोल:पिताजी,क्या स्कूल के प्रिंसिपल भी बिल में रहते हैं।

7.सहयोग करने और सहयोग मिलने की 5 युक्तियाँ (Frequently Asked Questions Related to 5Tips for Collaborating and Supporting),लेने और देने में सन्तुलन कैसे रखें की 5 युक्तियाँ (5 Tips on How to Balance Giving and Receiving) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.निश्छल सहयोग कब मिलता है? (When do you get sincere support?):

उत्तर:जब हम विनम्र होते हैं,अहंकार रहित होते हैं तो दूसरे लोग भी हमारी सहायता और सहयोग करने के लिए तत्पर रहते हैं।दुर्बलों और असहायों तथा विनम्र व्यक्तियों को ही अच्छे लोगों का सहयोग मिलता है।

प्रश्न:2.स्वयं की मदद करने से क्या तात्पर्य है? (What do you mean by helping yourself?):

उत्तर:अपनी सहायता आप करने का अर्थ है कि हम पुरुषार्थ करते हैं,अध्ययन करते हैं,कठिन परिश्रम करते हैं तो भगवान हमारी मदद आत्मिक शक्ति के रूप में करते हैं।पुरुषार्थी व्यक्ति की मदद ही भगवान करते हैं।

प्रश्न:3.उपदेश और सहयोग में श्रेष्ठ कौन सा है? (Which is the best in preaching and cooperating?):

उत्तर:किसी भी असहाय,असमर्थ,विपत्ति में फंसे हुए विद्यार्थी या व्यक्ति को ढेरों उपदेश देने के बजाय थोड़ी सी सहायता-सहयोग बहुत अधिक श्रेष्ठ है।यदि किसी की सहायता-सहयोग न कर सकें तो कम से कम बातों के द्वारा उसके घावों पर नमक-मिर्च नहीं छिड़कना चाहिए।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा सहयोग करने और सहयोग मिलने की 5 युक्तियाँ (5Tips for Collaborating and Supporting),लेने और देने में सन्तुलन कैसे रखें की 5 युक्तियाँ (5 Tips on How to Balance Giving and Receiving) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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