Menu

How to Keep Goal in Front 2025?

Contents hide

1.लक्ष्य को सामने कैसे रखें 2025? (How to Keep Goal in Front 2025?),अपने लक्ष्य को सदैव सामने रखें (Always Keep Your Goal in Front):

  • लक्ष्य को सामने कैसे रखें 2025? (How to Keep Goal in Front 2025?) क्योंकि लक्ष्य तय करने के बाद जब तक वह हमारी नजरों के सामने नहीं रहेगा,हमारे दिल और दिमाग में लक्ष्य नहीं बसा रहेगा तब तक उसको प्राप्त करने का प्रयत्न क्यों कर सकेंगे?
  • आपको यह जानकारी रोचक व ज्ञानवर्धक लगे तो अपने मित्रों के साथ इस गणित के आर्टिकल को शेयर करें।यदि आप इस वेबसाइट पर पहली बार आए हैं तो वेबसाइट को फॉलो करें और ईमेल सब्सक्रिप्शन को भी फॉलो करें।जिससे नए आर्टिकल का नोटिफिकेशन आपको मिल सके।यदि आर्टिकल पसन्द आए तो अपने मित्रों के साथ शेयर और लाईक करें जिससे वे भी लाभ उठाए।आपकी कोई समस्या हो या कोई सुझाव देना चाहते हैं तो कमेंट करके बताएं।इस आर्टिकल को पूरा पढ़ें।

Also Read This Article:Keep Moving Continuous to Achieve Goal

2.लक्ष्य परिवर्तन और संतुलन (Goal Change and Balance):

  • अपने आदर्श को सदैव अपने सामने रखें,क्योंकि यदि आप शक्ति और स्थिरता से अपने जीवन के लक्ष्य का पालन करेंगे तो दुनिया स्वयमेव आपकी उन्नति का मार्ग प्रशस्त कर देगी,क्योंकि वह ऐसे ही लोगों का सम्मान करना जानती है।
  • यदि आप कुछ भी अस्तित्व रखते हैं,यदि आपके अस्तित्व की कुछ भी वास्तविकता है तो आप जीवन की निकृष्टतम परिस्थितियों में भी निर्वाह कर सकते हैं।यदि कोई घटना अथवा दुर्घटना आपके लक्ष्य को कम करके आंके तो भयभीत होने की आवश्यकता नहीं।आप तो केवल चिंताजनक विचारों से दूर रहें,किंतु अपने आदर्श पर दृढ़ता से डटे रहें।अपने लक्ष्य को परिवर्तित करने का अर्थ यह है कि आपका कोई लक्ष्य है ही नहीं और यह भयंकर स्थिति है,जो किसी भी व्यक्ति के मन में उत्पन्न हो सकती है,मानो उसकी जीवन-नौका की पतवार खो गई हो और वह चरम-बिंदु से एकदम नीचे गिर गया हो।यहां तक कि वह साधारण तथा निम्नकोटि का जीवन अनिच्छा से व्यतीत करने पर विवश हो जाता है।वह अपने अस्तित्व को जीवन-सागर की लहरों के सुपुर्द कर देता है,ताकि वे उसे जिधर चाहें बहाकर ले जाएं,जबकि स्वयं वह जीवन के धिक्कार को उदासीनतापूर्वक सहन कर रहा होता है,उसे अपने जीवन के उद्देश्यों तथा लक्ष्यों के निम्नस्तर होने का अनुभव होता है,तथापि उसमें वह उत्साह व उमंग नहीं होती,जिसके बल पर मानव उच्च लक्ष्यों की प्राप्ति कर लेता है।
  • खेद है इस विनाशकारी स्थिति पर,जो आदर्श के समाप्त होने पर प्रकट होती है।शायद हमारे लक्ष्य का उज्ज्वल सितारा वास्तव में मलिन नहीं पड़ा,अपितु हमारी दृष्टि के सम्मुख पर्दा पड़ गया है।
  • इस समय हमें रुककर अपने अंतःकरण से प्रश्न करना चाहिए कि कहीं हम अपने जीवनोद्देश्य से आगे तो नहीं निकल गए? क्या हमारे साहस से हमारा उद्देश्य पीछे तो नहीं रहा? एक चरम लक्ष्य है जो जीवन में हमारे सामने आ सकता है।इस समय हमें अपने आगे-पीछे देखना चाहिए।ज्यों-ज्यों जीवन के राजपथ पर हमारी दृष्टि व्यापक होती जाती है,हमारे उद्देश्य भी उच्चतर तथा महान होते जाते हैं,किंतु अच्छा यही है कि हमारे लक्ष्य का आधार गंभीर तथा संतुलित होना चाहिए।उनमें किसी प्रकार की कमी-वृद्धि नहीं होनी चाहिए तथा वे संतुलन के मार्ग से हटने न पाएं।श्रीगणेश परमात्मा की स्तुति से किया जाना चाहिए,केवल स्वप्निल संसार में विचरण न किया जाए,बल्कि अपनी आंखों के साथ तथ्यों का पर्यवेक्षण किया जाए।तदन्तर सर्वश्रेष्ठ और सदाचारितापूर्ण चरित्र पर अपने जीवन को ढालने का प्रयत्न करें।
  • जो लोग जीवन-यात्रा आरंभ करें,वे इस उपदेश को ध्यानपूर्वक सुनें कि जब तक वे अपने जीवन का लक्ष्य स्थिर न कर लें,एक डग भी आगे ना चलें।जब वे अपना जीवनोद्देश्य निश्चित कर लें तो फिर पीछे न हटें,ताकि उनका लक्ष्य प्राप्त होने से रह न जाए।उन्हें इस बात की तनिक भी चिंता नहीं करनी चाहिए कि संसार उन्हें सफलता के नाम से पुकारता है या दुर्भाग्य अथवा विफलता के नाम से।
  • जो कुछ तुम्हारे ह्रदय में है,वही तुम्हारे होठों पर होना चाहिए।यदि तुम्हें कोई देवता नहीं मिलता तो उसका कारण यह है कि स्वयं तुम्हारे मन में कोई देवता नहीं।यदि तुम्हारे अंदर स्वयं महानता के चिन्ह लुप्त हैं तो संसार उन्हें ढूंढ निकालेगा और तुम्हें सत्ता के सिंहासन पर आसीन करेगा,यदि तुम टूटे-फूटे सपने देखते रहते हो और तुम्हारे विचार विच्छिन्न तथा हेय हैं तो तुम जीवन-भर कुछ नहीं कर सकते और संसार में तुम्हारा कहीं मान ना होगा।

3.भिन्न-भिन्न और स्थायी लक्ष्य (Different and Lasting Goals):

  • यह भी सत्य है कि हमारा जीवनोद्देश्य चिरस्थायी नहीं है,बल्कि वह परिस्थितियों के साथ परिवर्तित होता रहता है।कल जो हमारा उद्देश्य था,वह आज हमारे सामने नहीं।बाल्यावस्था,युवावस्था तथा वृद्धावस्था में मानव के जीवनोद्देश्य भिन्न-भिन्न होते हैं।इस परिवर्तन में अधिकतर अनुभव का हाथ होता है और जीवन स्तर के परिवर्तन से भी ऐसा हो जाता है।अधिकतर वृद्ध लोगों का कथन है कि इंसान आधी आयु तक अपने और अपने माता-पिता के लिए जीवित रहता है और उसकी शेष आधी आयु अपनी संतान के लिए व्यतीत होती है।उसके प्रयत्नों का झुकाव निश्चित रूप से इस ओर होता है कि उसके बच्चों की दशा बेहतर हो और उनका भविष्य उज्ज्वल हो।माता-पिता इस विचार से कार्य करता है कि जब उसकी मृत्यु हो जाएगी तो उसके बाद पुत्र उसका स्थान ले लेगा।इसलिए पिता का युवावस्था का उद्देश्य वृद्ध होने पर बदल जाता है,लेकिन एक जीवन लक्ष्य ऐसा भी है,जिसमें किसी प्रकार के परिवर्तन की आवश्यकता नहीं….. और वह है सच्चे उल्लास और उज्ज्वल चरित्र का आदर्श।
  • बाल्यावस्था तथा युवावस्था की सीमाओं को पार करने के पश्चात जब मानव वृद्धावस्था में प्रवेश करता है और उसका शरीर क्षीण तथा दुर्बल हो जाता है तो उस समय उल्लास ही एक ऐसी वास्तविक एवं स्थायी संपत्ति होती है जो उसका साथ देती है।यह एक ऐसा अमिट व अनंत भंडार है जो समय की टूट-फूट तथा प्रभाव से बचा रहता है।यह एक ऐसा लक्ष्य है जो नश्वर नहीं।यह एक ऐसी वस्तु है,जिसका फल इस लोक में तो मिलता ही है,परलोक में भी अवश्य मिलेगा।यह एक ऐसी अनश्वर देन है,जिसके सम्मुख संसार के अन्य सारे उपहार और संपत्तियाँ हेय है।
  • आत्मा की योग्यता की परीक्षा उस समय होती है जब उससे बलिदान मांगा जाता है और यह देखा जाता है कि वह लक्ष्य प्राप्ति के लिए कितना बलिदान करने के लिए तैयार है।आप निस्संदेह यह कहें कि मैं अमुक काम करने के लिए तैयार हूं,किंतु प्रश्न यह है कि आप अपने उद्देश्य-प्राप्ति के प्रयास में कितना बलिदान कर सकते हैं।
  • कथनी और करनी में बड़ा अंतर है।किसी वस्तु को प्राप्त करने की मात्र इच्छा प्रकट करना और उसे पाने के लिए दृढ़ संकल्प करना (चाहे मार्ग में कितनी बाधाओं का सामना क्यों न करना पड़े),इन दोनों में भारी अंतर है।बहुत-से लोग ठंडी आहें भरते हैं,कराहते हैं और कहते हैं कि यदि हमें सांसारिक झंझटों से मुक्ति मिल जाए,पेट की समस्या मार्ग में बाधा ना हो,दरिद्रता का भय न हो,बीमारी की आशंका न हो तो हम अनेक महान कार्य करके दिखा सकते हैं,परंतु सत्य तो यह है कि इसमें रत्ती-भर भी अतिशयोक्ति नहीं कि काम करनेवालों ने संसार के बड़े-बड़े कार्य कष्ट व संकट तथा दुःख व पीड़ा से घिरकर किए हैं…….और ये काम ऐसे लोगों ने संपन्न किए हैं,जो एक ओर तो अपनी शारीरिक तथा मानसिक शक्ति के बल पर जीविकोपार्जन के लिए संघर्ष करते हैं और दूसरी ओर उन्हें प्रतिकूल परिस्थितियों में रहकर अपने जीवनोद्देश्य की प्राप्ति में सचेष्ट रहते हैं।
  • यह विचित्र बात है कि लोग अवकाश के बहुत अभिलाषी रहते हैं और जिनका अपने बारे में यह विचार होता है कि वे अवकाश के क्षणों में कोई महान कार्य करके दिखाएंगे,जब उन्हें अवकाश प्राप्त होता है तो वे कुछ करते-कराते नहीं।जिन नवयुवकों और बौद्धिकाचार्यों ने सभ्यता तथा संस्कृति को प्रगति के ऊंचे सोपान पर पहुंचाया है और मानवीय संस्कृति को जिलाया है,उनका संबंध अवकाश चाहनेवाले लोगों से नहीं था,बल्कि वे उन संस्थाओं से संबंध रखते थे,जो जीवनोपयोगी वस्तुओं की प्राप्ति के लिए धक्के खाती और घोर संघर्ष करती है और जिन्हें जीवन की गहन व्यस्तताओं में बहुत कम अवकाश मिलता है।

4.जीवन का लक्ष्य अपने आपका उत्थान हो (The goal of life is to uplift oneself):

  • इसका कारण तो विदित नहीं,किंतु साधारणतया यह विचार है कि व्यस्त तथा सक्रिय जीवन प्रायः मानव-प्रकृति के कवित्व-प्रेम को समाप्त कर देता है।वह सौंदर्य तथा लालित्य की अनुभूति को नष्ट कर देता है।बहुत ही चालाक व्यक्ति जीवन की मृदुलता तथा ललिता की तह तक पहुंच सकते हैं,किंतु वास्तविकता यह है कि बहुधा अत्यंत सुंदर तथा ललित चमत्कार ऐसे पुरुषों और स्त्रियों ने कर दिखाए हैं,जो संकट तथा विपत्तियों में घिरे हुए थे और जिन्हें दैनिक व्यस्तताओं के कारण सिर खुजाने की भी फुर्सत नहीं मिलती।
  • संसार की कतिपय सर्वश्रेष्ठ तथा महानतम पुस्तकें दरिद्रता तथा विपत्ति के दिनों में लिखी गई हैं।कुछ शास्त्रकारों ने तो बहुत ही कठिन परिस्थितियों में प्रस्तुतीकरण किया,जिन्हें दैनन्दिन दुख-भरे जीवन में संतोष की सांस लेने का अवकाश प्राप्त न हुआ।जीवनोद्देश्य या आदर्श अनश्वर होता है।परिस्थितियों के कारण आदर्श नष्ट नहीं हो सकता,न उसकी प्यास बुझ सकती है।हां,यदि इंसान स्वयं न चाहे तो वह कुछ भी नहीं कर सकता।बहुत कम लोग ऐसे हैं,जो जीवन को ललित कला समझते हैं।बहुमत ऐसे व्यक्तियों का है,जो जीवन के कार्यों को अनिच्छा और उकताहट के साथ पूरा करते हैं।वे अपना बहुमूल्य समय और प्रयत्न को अपनी वासना-पूर्ति और निम्न उद्देश्यों की प्राप्ति में नष्ट कर देते हैं,जबकि उन्हें अपनी हिम्मत और प्रयत्न को ऊंचे तथा पवित्र उद्देश्यों की प्राप्ति में लगाना चाहिए।
  • जीवन का आदर्श मात्र धन नहीं,अपितु आत्मा का उत्थान होना चाहिए।क्या यह बुद्धिमानी होगी कि एक व्यक्ति शारीरिक व मानसिक योग्यताओं,शक्तियों तथा उस हर वस्तु को जो उसके अधिकार में हो,मात्र धन-प्राप्ति में लगा दे,जबकि उसके पास जीवित रहने-भर की पूंजी हो? क्या जीवनरूपी दान जो परमपिता परमेश्वर ने हमें प्रदान किया है,इतना सस्ता,मूल्यहीन तथा निरर्थक है कि हम अपने मूल्यवान समय को मात्र नश्वर तथा भौतिक वस्तुओं पर नष्ट कर दें और अपने अनश्वर तथा चिरस्थायी उद्देश्य को भूल जाएं? तथ्य यह है कि हमारा अधिकांश समय इन्हीं नश्वर एवं क्षणभंगुर वस्तुओं की प्राप्ति में नष्ट हो जाता है और फिर भी हम आहें भरते हैं और अभिलाषा रखते हैं कि काश! हम अपने आदर्श को प्राप्त कर लेते।
  • हम धन-दौलत के लिए बड़े से बड़ा बलिदान कर सकते हैं,किंतु अपनी आत्मा की महत्ता तथा व्यापकता के लिए व्यावहारिक रूप में कुछ भी नहीं करते।हम जानते हैं कि किसी वस्तु को प्राप्त करने की मात्र इच्छा करना,जिसके साथ व्यवहार न हो,रेल के इंजन के गर्म पानी की भांति है।जीवन की रेल को चलाने के लिए उद्देश्य तथा संकल्प खौलाव की सीमा तक होना चाहिए।यदि गर्म पानी से ही इंजन को चलाना चाहेंगे तो वह एक मील तो क्या,एक गज भी नहीं चलेगा।हमारी दृष्टि सदैव छोटी-छोटी वस्तुओं पर रहती है,जो हमारे आसपास होती हैं,परंतु महान तथा उच्च उद्देश्य बहुत दूर दिखाई देते हैं।यही कारण है कि निम्न वस्तुएं और साधारण उद्देश्य हमारे महान तथा उच्च उद्देश्य के मार्ग में बाधक हो जाते हैं…. और यही कारण है कि हम उच्च तथा महान आदर्श के सामने धन की ओर आंखें बंद नहीं कर सकते।
  • हमें समुचित मार्ग पर चलने वाले इंसान अत्यंत निम्नकोटि का जीवन व्यतीत करते हुए मिलते हैं।वे अपने कार्य में हैडक्लर्क,बैरिस्टर,अध्यापक तथा इंजीनियर के रूप में सफल होते हैं,किंतु अच्छे मानव की दृष्टि से वे असफल तथा अभागे होते हैं।इसका कारण यह है कि वे अपने उच्चतम आदर्श को प्राप्त नहीं करते।प्रत्येक स्थान पर ऐसे लोग देखने में आते हैं,जो हेय तथा साधारण वस्तुओं के लिए उच्च तथा महान जीवनोद्देश्य की बलि दे देते हैं।वे अपनी स्वाभाविक योग्यताओं को सतही तथा भौतिक लाभ की वेदी पर बलिदान करते हैं,अपने भव्य उद्देश्यों को कुछ सुनहरे तथा रुपहले सिक्कों के बदले में बेच देते हैं।

5.जीवनोद्देश्य बहुमूल्य मोती (Precious Pearls of Life Purpose):

  • यह सत्य नहीं कि लोग वस्तुतः विनम्रता तथा नैतिकता की अपेक्षा धन को प्रधानता देते हैं या अपने जीवन के स्वप्न की पूर्ति कुछ हजार रुपए एकत्र करने या संपत्ति बनाने तक सीमित समझते हैं,अपितु तथ्य यह है कि वे साधारण प्रसिद्धि एवं फैशनपरस्ती के उन्माद में लोक-कल्याण तथा सिद्धि के मार्ग से भटक जाते हैं।दूसरे शब्दों में हम यों कह सकते हैं कि वह उच्च आध्यात्मिक आदर्श की अपेक्षा संसार की साधारण डगर पर चल पड़ते हैं।
  • जीवनोद्देश्य एक बहुमूल्य मोती है,जिसके सम्मुख सांसारिक सुख हेय है।परंतु मानव तथा उसका जीवन-आदर्श वस्तुतः धन संचय और चांदी-सोने के सामने एक अत्यंत बहुमूल्य रत्न है,जिसकी चमक के सम्मुख सबकुछ फीका है।जिन लोगों के नाम लोक-कल्याण के आकाश पर सूर्य बनकर चमके हैं,उनके सम्मुख सर्वदा उच्च लक्ष्य तथा आदर्श रहे हैं।उन्होंने कभी अपने उद्देश्य से मुंह नहीं मोड़ा,बल्कि स्थिरता तथा दृढ़ता के साथ उस पर डटे रहे और अपनी भरसक शक्ति उसकी प्राप्ति में लगा दी।
  • ऐसी सक्रियता तथा निष्ठा के साथ जीवनोद्देश्य की प्राप्ति का प्रयत्न करना स्वयमेव एक महान कार्य है।यदि आप उस आह्वान को सुनें,जो सदैव आपको उस मार्ग की खोज के लिए तत्पर करता है,जो ऊंचाई की ओर जाती है;यदि आप उस ध्वनि को ध्यानपूर्वक सुनें और उसके अनुसार व्यवहार करें,जो आपको आज्ञा देती है कि गिरावट के बजाय ऊंचाई पर दृष्टि रखो;जो आगे डग भरने और उन्नति के लिए अनुप्रेरित करती है तो आपका जीवन कभी भी असफल नहीं हो सकता,चाहे संसार तथा संसारवाले कुछ भी क्यों न कहें।मुझे अटल विश्वास है कि वह युग आने वाला है,जब लोगों की सेवा तथा सुधार के लिए अपना व्यक्तित्व,अपनी माता तथा अपनी संतान की बलि सबसे बड़ी संपत्ति समझी जाएगी और इस प्रकार की बलि देने वाले व्यक्ति का जीवन अत्यंत सफल समझा जाएगा।आज संसार महात्मा गांधी को इसी कारण सफल व्यक्ति समझता है कि उन्होंने अपना तन-मन-धन सब कुछ मानवता की सेवा हेतु अर्पित कर दिया।
  • वास्तविक संपत्ति त्याग व बलिदान है,रूपए-पैसे का ढेर नहीं।वास्तविक तथा अनश्वर संपत्ति के स्वामी वे व्यक्ति हैं,जो जीवन को सुखद बनाने और मानवता के कल्याण के लिए प्रयत्न करते हैं,न कि वे लोग जिन्होंने स्वार्थ,धोखे तथा आडंबर द्वारा रूपए-पैसे के ढेर एकत्रित कर लिए हैं।जो व्यक्ति वस्तुतः दानशील और परमार्थी है,वह पारस पत्थर की भाँति है।जिसको वह स्पर्श करता है,उसे सोना बना देता है।जो कोई ऐसे व्यक्ति की संगति में रहता है,वह अनुभव करता है कि उसने कुछ खोया नहीं,वरन पाया ही है और उसका जीवन सुधर गया है।
  • ऐसे यंत्र का आविष्कार हुआ है,जिसके पुर्जे इतने कोमल और सरल बनाए गए हैं कि उनके द्वारा शारीरिक शक्ति के कम-से-कम व्यय का अनुमान किया जा सकता है,किंतु यह दुर्भाग्य नहीं तो और क्या है कि गुणों का अनुमान करने और सफल जीवन को मापने का कोई यंत्र आज तक नहीं बना।यदि कोई ऐसा यंत्र संसार में बन जाता तो कई लखपति अपना नाप देखकर आग-बबूला हो जाते और अनेक राष्ट्रीय सेवक तथा नेता अपने सक्रिय प्रयत्नों तथा सेवाओं का भव्य नाप देखकर चकित रह जाते।
  • वह समय समीप है जबकि पीले रत्न,विशाल तथा गगनचुंबी भवन,बड़ी-बड़ी संपत्तियां,विस्तृत व व्यापक जागीरें और बड़े-बड़े कारखाने वास्तविक संपत्ति एवं धन के प्रचलित मानदंड नहीं रहेंगे,वरन मानसिक एवं नैतिक विचार उनका स्थान ले लेंगे,जिनके कारण किसी भी व्यक्ति का जीवन अधिक लाभदायक तथा बेहतर हो सकता है।किसी व्यक्ति की महानता का अनुमान उसकी आत्मा के मानदंड से किया जाएगा।सज्जनता,उदार हृदयता,सभ्यता तथा संस्कृति उसकी महत्ता तथा उच्चता के मानदंड होंगे,ना कि एक मोटी-सी चेक-बुक, जिसकी मदद से वह विरोधियों के मुंह बंद कर सकता है।
  • प्रत्येक व्यक्ति को जीवन में एक बार तो अवश्य अपने पूर्ण जीवन की कल्पना का स्वप्न दिखाई देता है।हमें अपनी वर्तमान परिस्थितियों में यह अनुभव होता है कि हमें क्या बनना है।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में लक्ष्य को सामने कैसे रखें 2025? (How to Keep Goal in Front 2025?),अपने लक्ष्य को सदैव सामने रखें (Always Keep Your Goal in Front) के बारे में बताया गया है।

Also Read This Article:Let Move Forward to Achieve Goal

6.एक पासबुक को हाथ नहीं लगाया (हास्य-व्यंग्य) (Did Not Touch a Passbook) (Humour-Satire):

  • टीचर:क्या सारी गणित की पासबुक्स (स्पेसिमेन कॉपी) तुमने ही ली है।
  • रवि:मैंने एक पासबुक के हाथ नहीं लगाया।
  • टीचरःतो फिर वे सारी पासबुक्स कहां गई? रेक (अलमारी) में तो सिर्फ एक ही पासबुक बची है।
  • रविःउसी को तो मैंने हाथ नहीं लगाया था।

7.लक्ष्य को सामने कैसे रखें 2025? (Frequently Asked Questions Related to How to Keep Goal in Front 2025?),अपने लक्ष्य को सदैव सामने रखें (Always Keep Your Goal in Front) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.लक्ष्य कब दृष्टिगोचर होता है? (When is the goal visible?):

उत्तर:भगवान ने हर मानव को कोई-न-कोई लक्ष्य उसकी अंतरात्मा में छिपाकर भेजा है।प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में एक समय ऐसा आता है जबकि उसके हृदय में महान कल्याण अथवा परमार्थ करने की अभिलाषा जागृत होने लगती है।उसके मस्तिष्क में श्रेष्ठ कार्य करने की प्रबल इच्छा उत्पन्न होती है और इसी समय इंसान के सामने उच्च जीवनोद्देश्य दृष्टिगोचर होता है।

प्रश्न:2.व्यक्ति लक्ष्य को व्यावहारिक रूप देने के लिए कब तत्पर होता है? (When does a person look forward to putting the goal into practice?):

उत्तर:यदि कोई व्यक्ति दैनिक जीवन के झमेलों में उस समय की व्याकुल दशा को व्यावहारिक रूप दे दे और अपना सर्वस्व उत्सर्ग करने को तत्पर हो जाए तो उस व्यक्ति का एक आदर्श बन जाता है और एक ऐसी अक्षुण्ण शक्ति का रूप धारण कर लेता है,जो एक बार तो समस्त संसार को झकझोर देती है जिससे सब विस्मित रह जाते हैं।

प्रश्न:3.लक्ष्य से पीछे कब न हटें? (When not to retreat from the goal?):

उत्तर:जब तक लक्ष्य सामने ना हो एक पग भी आगे न बढ़े और लक्ष्य के सामने आते ही पीछे हटने का विचार भी दिलो-दिमाग में न लाएं।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा लक्ष्य को सामने कैसे रखें 2025? (How to Keep Goal in Front 2025?),अपने लक्ष्य को सदैव सामने रखें (Always Keep Your Goal in Front) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
No. Social Media Url
1. Facebook click here
2. you tube click here
3. Instagram click here
4. Linkedin click here
5. Facebook Page click here
6. Twitter click here
7. Twitter click here

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *