Mahakumbh of Faith in Prayagraj 2025
1.प्रयागराज में आस्था का महाकुंभ 2025 (Mahakumbh of Faith in Prayagraj 2025),त्रिवेणी के संगम तट पर आस्था का महाकुम्भ (Mahakumbh of Faith on Bank of Sangam of Triveni):
- प्रयागराज में आस्था का महाकुंभ 2025 (Mahakumbh of Faith in Prayagraj 2025) के अवसर पर आखिर हादसा हो ही गया।कुछ लोगों के मरने और घायल होने पर इस महाकुंभ पर दाग लगा ही दिया है।दरअसल ऐसे हादसे को रोकना बड़ा मुश्किल होता है।प्रशासन और सरकार की व्यवस्था चाक-चौबंद हो तो भी श्रद्धालुओं का अनुशासन में रहना बड़ा मुश्किल काम होता है।किसी भी एक पक्ष या दोनों पक्षों की थोड़ी-सी लापरवाही ऐसे हादसों को जन्म दे देती है।
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2.कुंभ पर्व की ऐतिहासिक परंपरा (Historical Tradition of Kumbh Parva):
- 21वीं सदी के इस भव्य और अलौकिक महाकुंभ के आयोजन का सौभाग्य इस बार प्रयागराज (इलाहाबाद,उत्तर प्रदेश) को मिला।एक माह तक (जनवरी-फरवरी 2025) चलने वाले पवित्र त्रिवेणी (गंगा,यमुना,सरस्वती) तट पर बसी इस पवित्र नगरी में करोड़ों लोग मौनी अमावस्या पर स्नान के लिए एकत्रित हुए।हालांकि टेंट जलने,सिलेंडर फटने पर कोई बड़ी दुर्घटना नहीं घटी लेकिन 28-29 जनवरी 2025 को भगदड़ में अनेक लोग मारे गए और घायल हो गए।
- इससे पूर्व अक्सर विभिन्न अखाड़ों के साधुओं के बीच शाहीस्नान को लेकर टकराव के कारण पवित्र माहौल किंचित बिगड़ जाया करता था।इस बार ऐसी स्थिति तो देखने को नहीं मिली और शांतिपूर्ण तरीके से अखाड़ों के संतों ने त्रिवेणी घाट पर स्नान किया।
- कुंभ पर्व भारत के आज तक के धार्मिक इतिहास में सिर्फ अद्भुत आयोजन ही नहीं,दीर्घ परंपरा के प्रवाह का निर्वहन भी है।कुंभ की परंपरा कम से कम अठारह सौ साल पुरानी मानी जाती है।जिस आधार पर कुंभ को अठारह सौ साल पुराना बताया जाता है,उसका एक आधार ज्योतिष है।ज्योतिष के आधार पर कुंभ दो हजार साल से ज्यादा पुराना प्रतीत नहीं होता है।दरअसल,भारत में घटनाओं और सूत्रपातों का तिथिवार विवरण कभी नहीं रखा गया।फिर भी जिन्हें कालखंड को वर्षों और शताब्दियों में बाँटकर देखने की आदत है वे मात्र मान लेने से ही संतुष्ट नहीं होते हैं।इतिहास में कुंभ का सबसे पुराना विवरण हर्षवर्द्धन के काल में मिलता है।सातवीं शताब्दी में जब हर्षवर्द्धन राज्य कर रहे थे तो वे परिवार सहित कुंभ स्नान में भाग लेते थे और पूजा पाठ करते थे।यह जानकारी ह्वेनसांग के यात्रा-संस्मरणों से मिलती है।
- कुंभ पर्व का महत्त्व 12 वर्ष में चार जगह और इस तरह हर चौथे साल तक एक तीर्थ में आयोजित होने में नहीं है।असल में यह चौथे साल अलग-अलग स्थान में होता भी नहीं है।उज्जैन और नासिक में यह एक ही वर्ष में,कुछ महीनों के अंतर से होता है।निश्चित वर्षों का अंतर हरिद्वार,प्रयाग और उज्जैन में ही होता है।जिस आधार पर कुंभ की तिथियों का निर्धारण होता है,उनमें निश्चित समय के स्थान पर खगोलीय घटना या ग्रहों की विशेष स्थिति ज्यादा महत्त्वपूर्ण होती है।
3.कुंभ की शुरुआत कहां से हुई? (When did the Kumbh begin?):
- सबसे पहले तो यह जानना महत्त्वपूर्ण है कि कुंभ की परंपरा की शुरुआत कैसे हुई? यह माना जाता है कि पुराणों में दी गई समुद्र मंथन की कथा को लेकर कुंभ पर्व की शुरुआत हुई।देवता और दानवों में सदा वैमनस्य रहा है।किंतु एक समय ऐसा आया जब दोनों में समझौता हो गया था।दोनों ओर के प्रमुखों ने परस्पर विचार-विमर्श के बाद यह निश्चय किया कि हम लोग इस पृथ्वी का चप्पा-चप्पा तो देख चुके हैं और ऐसी कोई वस्तु नहीं है जिसे हमने प्राप्त नहीं किया हो।लेकिन सागर ही हमारे अन्वेषण में शेष है,समस्त भूमंडल को घेरे हुए रत्नाकर नाम से विख्यात,असीम जलराशि के अधिपति सागर में अनेक अमूल्य रत्न तथा अमरत्व प्रदान करने वाला अमृत है।विलक्षण शक्ति वाले देव दानवों में अमृत प्राप्ति की सुखद कल्पना को लेकर अदम्य उत्साह था,किंतु समुद्र की खोज और अमृत प्राप्ति कोई साधारण कार्य नहीं था।फिर भी समुद्र मंथन के लिए मंदराचल पर्वत को मथानी बनाया गया और सर्पराज वासुकि को रस्सी।मंथन शुरू हुआ।मंथन की भीषणता से तीनों लोक काँप रहे थे।परंतु देव-दानवों की संगठनात्मक शक्ति के आगे रत्नाकर को झुकना पड़ा और अन्य चौदह रत्नों के साथ क्रमशः स्वर्ण कलश में बंद अमृत भी बाहर आ गया।अमृत प्राप्ति से चारों ओर प्रसन्नता का वातावरण छा गया।
- देवताओं और दानवों का श्रम सफल सिद्ध हुआ।वे अपनी थकान भूल चुके थे।दोनों ही दल अमृत कलश हड़पने की कूट चाल सोच रहे थे।इसी बीच देवराज इंद्र ने अपने युवा पुत्र जयंत को अमृत कलश लेकर भागने का इशारा कर दिया।जयंत को कलश लेकर भागता देख दानवों को देवताओं की चाल समझते देर नहीं लगी,परिणामस्वरूप देवताओं और दानवों में 12 दिन तक (पृथ्वी के 12 वर्ष) तक भयंकर युद्ध हुआ।इन 12 वर्षों के बीच में संग्राम में जयंत चार स्थानों पर दानवों की पकड़ में आ गया था।आपसी संघर्ष और छीना-छपटी में अमृत की कुछ बूँदें इन स्थानों पर छलक पड़ीं।ये स्थान थे-प्रयागराज (इलाहाबाद),उज्जैन,हरिद्वार एवं नासिक।अमृत कलश का हरण करने के लिए दानवों ने अपनी पूरी शक्ति लगा दी थी किंतु देवताओं के संगठन और कुटिल चालों ने उन्हें सफल नहीं होने दिया।देवों में से सूर्य,चंद्र और गुरु का अमृत-कलश संरक्षण में विशेष सहयोग था।चंद्र ने कलश को गिरने से,सूर्य ने फटने से और गुरु ने असुरों के हाथों में जाने से बचाया।
- इस कारण इन तीन ग्रहों की विशिष्ट स्थिति में इन्हीं चार तीर्थों पर जहाँ अमृत की बूंदे गिरी थीं,पर्व मनाए जाने की परंपरा है।मान्यता के अनुसार ये चारों तीर्थ अमृत-बिंदु के पतन से अमृतत्व पा गए हैं।धार्मिक बूंदों से ये तीर्थ तथा यहां की पवित्र नदियां गंगा,यमुना,सरस्वती,गोदावरी और क्षिप्रा अमृतमयी हो गई हैं।समुद्र में इस भीषण संग्राम को समाप्त करने के लिए भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण किया और अपने ही वर्ग देवों को अमृत पान करा दिया था।
4.कुम्भ पर्व के लिए स्थान का निर्धारण (Determination of location for Kumbh festival):
- इस मंथन की कथा से यह स्पष्ट है कि सूर्य,गुरु और चंद्रमा अमृत-बिंदु के पतन के समय जिन राशियों में थे,वैसा ही संयोग जब बनता है,तभी कुंभ पर्व मनाया जा सकता है।ग्रह और राशियों के संगम के अनुसार इन स्थानों पर गंगा में स्नान करना मोक्षदायी माना जाता है।इन सभी योगों में बृहस्पति का स्थान महत्त्वपूर्ण माना जाता है।बृहस्पति जब कुंभ राशि में और सूर्य मेष राशि में होता है तो हरिद्वार में कुंभ होता है।बृहस्पति वृषभ राशि में और सूर्य मकर राशि में हो तो प्रयाग में कुंभ मनाया जाता है।बृहस्पति और सूर्य दोनों सिंह में हों तो नासिक में कुंभ मनाया जाता है।बृहस्पति सिंह में और सूर्य मकर राशि में हो तो उज्जैन में कुंभ होता है।बृहस्पति के सिंह राशि में होने पर उज्जैन और नासिक दोनों जगह कुंभ होता है।इसलिए वहाँ कुंभ को ‘सिंहस्थ’ भी कहते हैं।एक मान्यता के अनुसार शुद्ध कुंभ हरिद्वार में होता है।हालांकि इस मान्यता का उद्देश्य दूसरे पर्वों का महत्त्व कम करना नहीं है।
- कुंभ पर्व में साधु-महात्माओं की उपस्थिति,पुण्यग्राही भाव से विराट जन-समुदाय का आना,पवित्र मनःस्थिति में नियम-उपचार संपन्न करना,विभिन्न कारणों से आत्मिक और सांस्कृतिक चेतना को समर्थ बनाता है।पारंपरिक अनुष्ठान यदि नियत समय पर नियत विधान से पूरे किए जाएं तो जल्दी सफल होते हैं,ऐसी मान्यता रही है।इस मान्यताओं के पीछे पूरी परंपरा का बल होता है।अब तक हुए सैकड़ो कुंभ आयोजनों में अरबों लोगों ने एक विशिष्ट घड़ी में,विशेष योगों में और विशेष वातावरण,विशेष मनोभूमि में प्रार्थना की है।इन लोगों की प्रार्थना और संकल्प भगवान को मथते ही रहते हैं।साधुओं के अनुसार इस मंथन का पुण्य लाभ लेने वाले बड़े भाग्यशाली होते हैं।
- कुंभ में साधु-संतों के दर्शन और उनके प्रति श्रद्धा निवेदन के कारण ही लाखों लोग इस अवसर पर अनेक कठिनाइयाँ और असुविधाएँ सहते हुए भी पहुंचते हैं।परंतु,सांस्कृतिक परंपराओं में भी विकृतियाँ आई हैं।पहले जो साधु व संस्थाएं श्रद्धा के केंद्र थे वही आपस में मारपीट पर उतारू रहे हैं।पहले धर्म-भावना को प्रश्रय मिलता था,उसका आज इस हद तक पतन शोचनीय है।यह एक निर्विवाद तथ्य रहा है कि भारतीय समाज और संस्कृति को अक्षुण्ण रखने में साधु-संगठनों की भूमिका अत्यंत महत्त्वपूर्ण रही है।अतएव इन संगठनों की पवित्रता और पवित्र-भावना को बचाए रखना बहुत जरूरी है।इस बार ‘शाही स्नान’ जैसा विवाद तो नहीं हुआ परंतु भविष्य में ‘शाही स्नान’ जैसे विवाद का निराकरण करने की जरूरत ही न पड़े,ऐसी कोशिश की जानी चाहिए।
5.प्रयाग का आध्यात्मिक महत्त्व (Spiritual Significance of Prayag):
- भारत विश्व गुरु रहा है उसका प्रमुख कारण है कि भारत के लोग आध्यात्मिक प्रवृत्ति के हैं।धर्म में अटूट विश्वास प्राचीन काल से लेकर वर्तमान काल तक जारी है।
- गंगा-यमुना के संगम स्थल प्रयाग को पुराणों में ‘तीर्थराज’ (तीर्थों का राजा) नाम से अभिहित किया गया है।इस संगम के संबंध में ऋग्वेद के खिल सूक्त में कहा गया है कि जहां कृष्ण (काले) और श्वेत (स्वच्छ) जल वाली दो सरिताओं का संगम है वहां स्नान करने से मनुष्य स्वर्गारोहण करता है।पुराणोक्ति यह है कि प्रजापति (ब्रह्मा) ने आहुति की तीन वेदियाँ बनाई थीं- कुरुक्षेत्र,प्रयाग और गया।इनमें प्रयाग मध्यम वेदी है।माना जाता है कि यहां गंगा,यमुना और सरस्वती (पाताल से आने वाली) तीन सरिताओं का संगम हुआ है।पर सरस्वती का कोई बाह्य अस्तित्व दृष्टिगत नहीं होता।इसलिए इसे त्रिवेणी भी कहते हैं।
- सर्वात्मा ब्रह्मा ने सर्वप्रथम यहाँ यजन किया था (आहुति दी थी) इसलिए इसका नाम प्रयाग पड़ गया।पुराणों में प्रयाग-मंडल,प्रयाग और वेणी अथवा त्रिवेणी की विविध व्याख्याएँ की गई है।मत्स्य तथा पद्मपुराण के अनुसार प्रयागमण्डल पांच योजन की परिधि में विस्तृत है और उसमें प्रविष्ट होने पर एक-एक पद पर अश्वमेध यज्ञ का पुण्य मिलता है।प्रयाग की सीमा प्रतिष्ठान (झूँसी) से वासुकिकेतु तक तथा कंबल और अश्वतर नागों तक स्थित है।यह तीनों लोकों में प्रजापति की पुण्यस्थली के नाम से विख्यात है।
- गंगा,यमुना और सरस्वती के त्रिवेणी संगम को ‘ओंकार’ नाम से अभिहित किया गया है।’ओंकार’ का ‘ओम’ परब्रह्म परमेश्वर की ओर रहस्यात्मक संकेत करता है।यही सर्वसुखप्रदायिनी त्रिवेणी का भी सूचक है।ओंकार का अकार सरस्वती का प्रतीक,उकार यमुना का प्रतीक तथा मकार गंगा का प्रतीक है।तीनों क्रमशः प्रद्युम्न,अनिरुद्ध तथा संकर्षण (हरि के व्यूह) को अद्भूत करने वाली हैं।इस प्रकार इन तीनों का संगम त्रिवेणी नाम से विख्यात है।हिंदू धर्म में नदियां पवित्र मानी जाती हैं,दो नदियों का संगम और अधिक पवित्र माना जाता है और तीन नदियों का संगम तो और भी अधिक पवित्र समझा जाता है।यहां पर स्नान और दान का विशेष महत्त्व है।
- जैसा कि उल्लेख किया जा चुका है कि जब सूर्य तथा चंद्रमा मकर राशि पर हों,गुरु वृषभ राशि पर हो,अमावस्या हो,ये सब योग जुटने पर प्रयाग में कुंभ योग पड़ता है।इस अवसर पर त्रिवेणी में स्नान करना सहस्रों अश्वमेध यज्ञों,सैकड़ो वाजपेय यज्ञों तथा एक लाख बार पृथ्वी की प्रदक्षिणा करने से भी अधिक पुण्य प्रदान करता है।कुंभ के इस अवसर पर श्रद्धालुओं और तीर्थयात्रियों को अनेक लाभ होते हैं;गंगा स्नान और संत समागम साथ ही पवित्र धार्मिक व आध्यात्मिक नगरी की यात्रा करने से मन को शांति मिलती है।आम दिनों में हम सांसारिक प्रपंचों में उलझे रहते हैं,नून,तेल और भोजन की व्यवस्था करने में जुटे रहते हैं।हमें पता ही नहीं रहता है कि हमारे जीवन की आयु के दिन घटते जा रहे हैं।हमारे जीवन का वास्तविक उद्देश्य क्या है,क्या करने आए हैं और क्या कर रहे हैं।ऐसी स्थिति में आध्यात्मिक स्थान की यात्रा करने से हमारे मन को सुकून मिलता है और हम हमारे जीवन के वास्तविक उद्देश्य से रूबरू होते हैं।इसका अर्थ यह नहीं है कि घर पर रहकर हम अपने जीवन के उद्देश्य को नहीं जान सकते हैं,घर पर रहकर साधना नहीं की जा सकती है।यदि आप सच्चे मन और दिल से अपने अंदर झांके और अपने आपमें सुधार करते रहें,मन को निर्विकार करते रहें तो अपने सांसारिक व आध्यात्मिक लक्ष्यों से न केवल ठीक से परिचित हो सकते हैं बल्कि लक्ष्य को प्राप्त करने की साधना जहां भी आप हैं,रहते हैं वहां भी कर सकते हैं।मुख्य चीज है अपने मन को निर्विकार करना,मन को साधना,मन को नियंत्रित करना,मन को तप का अभ्यस्त करना (द्वन्द्वों में समभाव रखना)।
- कबीरदास जी गृहस्थ संत ही थे और घर पर ही रहकर तप का जीवन व्यतीत किया था।अपने जॉब को साधना समझकर करें तो कस्टमर,लोगों का आशीर्वाद ही हमारे लिए पुण्य फलदायी हो सकता है।श्रद्धा और विश्वासपूर्वक किया गया कर्म ही हमें मुक्ति को उपलब्ध करा सकता है।श्रद्धा और विश्वास के कारण ही श्रद्धालु तीर्थाटन,कुंभ जैसे आयोजनों में भाग लेते हैं।
भारत में धार्मिक पर्वों,उत्सवों के प्रति आधुनिक काल में भी रुझान कम नहीं हुआ है।जो लोग तीर्थाटन नहीं कर सकते हैं वे अपने घर ही रहकर साधना कर सकते हैं और करनी ही चाहिए।जो तीर्थाटन,कुंभपर्व जैसे आयोजन में जाने के अभिलाषी हैं उन्हें अपनी सुरक्षा के प्रति सावचेत रहकर ही तीर्थाटन करना चाहिए।यथा बच्चों,वृद्धों,अशक्तजनों को ले जाए या नहीं ले जाएं।क्योंकि यदि आप अनुशासन में रहें भी तो यह आवश्यक नहीं है कि सामने वाला भी अनुशासन में होगा ही।आप सड़क पर अनुशासित होकर गाड़ी चला रहे हैं परन्तु सामने से आने वाली गाड़ी आपकी गाड़ी में ही घुस पड़े तो आप क्या करेंगे? - उपर्युक्त आर्टिकल में प्रयागराज में आस्था का महाकुंभ 2025 (Mahakumbh of Faith in Prayagraj 2025),त्रिवेणी के संगम तट पर आस्था का महाकुम्भ (Mahakumbh of Faith on Bank of Sangam of Triveni) के बारे में बताया गया है।
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6.श्रद्धालु का जवाब (हास्य-व्यंग्य) (Devotee’s Answer) (Humour-Satire):
- पुलिस वाला (श्रद्धालु से):आप सड़क पर ही क्यों लेट गए?
- श्रद्धालु:सर,सड़क के किनारे श्रद्धालुओं के लिए लिख रखा था।श्रद्धालु कृपया ध्यान दें:धीरे-धीरे,आहिस्ता से चलो।वीआईपी के लिए तो यह सड़क है नहीं,उनके लिए तो अलग से व्यवस्था है।
7.प्रयागराज में आस्था का महाकुंभ 2025 (Frequently Asked Questions Related to Mahakumbh of Faith in Prayagraj 2025),त्रिवेणी के संगम तट पर आस्था का महाकुम्भ (Mahakumbh of Faith on Bank of Sangam of Triveni) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:
प्रश्न:1.इस लेख का क्या उद्देश्य है? (What is the purpose of this article?):
उत्तर:तीर्थाटन,कुम्भ पर्व के आयोजन में शामिल होने वालों को सावधान व सतर्क करने के लिए तथा तीर्थराज प्रयागराज का महत्त्व प्रकट करने के लिए लिखा गया है। अपनी सुरक्षा का खुद इंतजाम करने के लिए यह लेख लिखा गया है।
प्रश्न:2.क्या आम दिनों में प्रयाग जाने का लाभ नहीं होता है? (Is it not beneficial to go to Prayag on normal days?):
उत्तर:आम दिनों में भी लाभ होता है।परंतु संत समागम,श्रद्धालुओं से सत्संग का योग आम दिनों में मिले यह आवश्यक नहीं है।
प्रश्न:3.क्या प्रयाग का पुण्य घर पर रहकर प्राप्त नहीं हो सकता है? (Can not the merit of Prayag be attained by staying at home?):
उत्तर:मान्यता तो ऐसी ही है कि यदि अपने घर में मरते समय भी व्यक्ति प्रयाग का नाम स्मरण कर ले तो ब्रह्मलोक को पहुंच जाता है और सन्यासियों,सिद्धों तथा मुनियों के बीच रहता है।
- उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा प्रयागराज में आस्था का महाकुंभ 2025 (Mahakumbh of Faith in Prayagraj 2025),त्रिवेणी के संगम तट पर आस्था का महाकुम्भ (Mahakumbh of Faith on Bank of Sangam of Triveni) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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Satyam
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