How to Get Rid of Inferiority Complex?
1.हीनभावना से छुटकारा कैसे पाएं? (How to Get Rid of Inferiority Complex?),हीनता से छुटकारा कैसे पाएं? (How to Get Rid of Inferiority?):
- हीनभावना से छुटकारा कैसे पाएं? (How to Get Rid of Inferiority Complex?),हीनभावना अर्थात् हीनता यह ऐसा शब्द है जो अच्छे-भले और योग्य व्यक्ति को अयोग्य कर देता है।कुछ व्यक्ति बड़े-बड़े कार्य करना चाहते हैं किंतु उनके अंदर हीनता है,झिझक है,वे जाने क्यों,किस कारण से,अपने आपको छोटा और अयोग्य समझकर वह कार्य करने में हिचकिचाते हैं और यही कारण है कि वे जहां-के-तहां पड़े रहते हैं।
- ऐसा कोई दूसरा व्यक्ति,जो वाक्पटु है,जिसमें झिझक लेशमात्र को भी नहीं….जिसके शब्दकोश में हीनता नामक शब्द ही नहीं,वह उन योग्य व्यक्तियों से कहीं आगे निकल जाता है।
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2.हीनभावना से ग्रस्त ना हों (Do not suffer from inferiority complex):
- बहुत संभव है कि आपमें बहुत से बच्चे इसलिए पिछड़े हुए हों कि उनके मन में यह विश्वास बैठ गया कि वे दीन-हीन हैं और अच्छे कुल में पैदा नहीं हुए।इसी धारणा के कारण बहुत से व्यक्ति हतोत्सवित रहते हैं तथा उनकी चेतना पंगु बनी रहती है।उनके दिल में सदा यही विचार घूमते रहते हैं कि वे तो कुछ भी नहीं।इस हीनभावना के कारण ही वे तुच्छ और नगण्य बने रहते हैं।उनकी इच्छाशक्ति में वह बल नहीं आ पाता जो हीनता के इस मिथ्या विश्वास को उखाड़ फेंके।बल्कि उन्हें ऐसा विश्वास करना चाहिए कि यदि वे अच्छा और श्रेष्ठ कार्य करेंगे तो उसका फल भी श्रेष्ठ ही मिलेगा।
- जब मनुष्य को इस सत्य पर विश्वास हो जाता है तो उसका भ्रम और मिथ्या विश्वास भी समाप्त हो जाता है।यदि माता-पिता से आपको विरासत में कुछ नहीं मिला तो इसमें अपने आपको हीन समझने की क्या बात है? आप यह क्यों सोचते हैं कि आपको उस परमपिता परमात्मा से उत्तराधिकार में कुछ नहीं मिला? वह तो सर्वज्ञ और सर्वशक्तिमान है।उसने आपको सोचने की शक्ति दी है और आपके लिए इस विशाल विश्व की रचना कर इसे आपके लिए छोड़ दिया है।अब आवश्यकता और किस बात की है? केवल उसके साथ नाता जोड़ लेने की और उसे पहचान लेने की कि वही आपका परमपिता है-जब आप यह समझ लेंगे तो आपमें अभूतपूर्व शक्ति का संचार होने लगेगा।
- जब आप अपने उस वास्तविक पिता से नाता जोड़ लेंगे तो आपकी सभी दुर्बलताएं स्वयं ही समाप्त हो जाएंगी और यह हीनभावना नष्ट हो जाएगी कि आप ऊंचे नहीं उठ सकते या उच्च पद प्राप्त नहीं कर सकते।आपको चाहिए कि आप हीनभावना को मन से निकालकर बाहर करें और अपने विषय में उंचे विचारों को ही अपने मन में स्थान दें।
- अपने मन में अपना एक महान चित्र बनाइए।अपने आपको उच्च और महान मानव बनाने की आकांक्षा संजोइये।मन में उत्साह की भावना जगाइये और इसके साथ ही दूसरों की सहायता करते रहने का बीड़ा उठाइए।आप देखेंगे कि आप भी ऊंचे उठते चले जा रहे हैं,क्योंकि जब आप दूसरों की सहायता करेंगे तो आप स्वयं सामर्थ्यवान होते चले जाएंगे।किसी दूसरे की सहायता कोई सामर्थ्यवान व्यक्ति ही कर सकता है।इस प्रकार आप देखेंगे कि आपमें स्वयं शक्ति आती जा रही है,आप सामर्थ्यवान हो रहे हैं।
- आपको चाहिए कि आप अपने सम्मुख एक ऐसे आदर्श व्यक्ति की ही कल्पना करें जैसे आप स्वयं बनना चाहते हैं,लेकिन यह ध्यान रखें कि वह आपका आदर्श व्यक्ति स्वार्थी ना हो वरन् गौरवशाली और महान हो।
3.हीनभावना का कारण है हमेशा अपने दोषों को देखना (The reason for inferiority complex is to always look at your faults):
- अपने दोषपूर्ण जीवन पर संतोष करके बैठे रहना कहां तक उचित है? आप तो पूर्ण मनुष्य बनने के योग्य हैं।आपमें इतनी शक्ति और सामर्थ्य है कि यदि आप चाहें तो पूर्ण मनुष्य बन सकते हैं।यदि आप चाहें तो अपने आपको भी सुधार सकते हैं,आप पूर्णतया परिवर्तित हो सकते हैं।आपका जीवन गौरवपूर्ण बन सकता है,क्योंकि आप भी उस महान चेतना के ही तो जीते-जागते अंश हैं।
- यदि आप केवल अपनी कमजोरियों,भूलों और त्रुटियों के विचार के भंवर में ही डूबते-उतराते रहेंगे तो उन दोषों से अवश्य ही मुक्त नहीं हो पाएंगे।उन दोषों के दबाव में ना आएं बल्कि अपने आपको उन दोषों से अधिक सशक्त समझें।जब तक आपके मन में यह विश्वास नहीं जगेगा,आप उन्नति नहीं कर सकेंगे।जब आपका अपने आप द्वारा पोषित मिथ्या भ्रम दूर हो जाएगा तो आपकी उन्नति होने लगेगी।आप स्वयं सफलता की सीढ़ियां चढ़ते चले जाएंगे।निराशा दम तोड़ देगी और आपके जीवन में आशाओं का एक नया सवेरा उद्दीप्त हो उठेगा।
- यदि आप अपना सारा समय अपने दोषों,कमजोरियों और त्रुटियों के चित्र बनाने में ही लगा देते हैं तो आप काम किस समय करेंगे? आपको आज ही,अभी अपने मन की तख्ती को साफ करके उस पर यह लिखना होगा कि मैं पूर्ण स्वस्थ हूँ,मैं अवश्य सफल होऊंगा।आप यदि अपूर्णता का ही ध्यान करते रहेंगे तो आप पूर्ण कैसे बन पाएंगे?
- अब तो आपने अपना दोषपूर्ण,त्रुटियुक्त,दुर्बल और दीनहीन चित्र ही बनाया और सामने रखा है।उसी की सोच-फिक्र और उपासना में ही आपने अपना सारा समय खो दिया।अब उस चित्र को उठाकर एक ओर फेंक दीजिए और उसके स्थान पर अपना एक ऐसा नया चित्र मन में अंकित कीजिए जो सर्वगुण-संपन्न और महान हो।इस प्रकार की धारणा के बाद जब आप काम में लगेंगे तो आप पाएंगे कि आप सर्वथा परिवर्तित व्यक्ति हैं।आपको स्वयं अपने पर ही आश्चर्य होने लगेगा कि आपने अब तक अपनी योग्यताओं को ताले में बंद कर रखा था।अब तक आपने अपनी शक्तियों को कुंठित कर रखा था।
- इस हीनभावना के कारण ही बहुत से व्यक्ति वे कार्य भी नहीं कर पाए जिन्हें वे बहुत सरलता से कर सकते थे,जिन्हें करने की सामर्थ्य उनमें थी।ऐसा इसलिए हुआ कि उन्हें स्वयं पर भरोसा नहीं था।उन्हें अपनी हीनभावना पर ही भरोसा था और वे उसी पर विश्वास कर लेने के कारण आगे नहीं बढ़ पाते थे।उनका वास्तविक स्वरूप उनके सामने उभरकर आता ही नहीं था।
- जब आप अपना मूल्य आंके तो आपको समझबूझ से काम लेना चाहिए,क्योंकि यदि आप अपने आपको सस्ता बना देते हैं और अपना कम मूल्य आंकते हैं तो आप अपने पर ही चोट करते हैं,अपने पर ही प्रहार करते हैं।अपना ही नुकसान करते हैं।यदि आप अपनी दृष्टि में गिर जाएंगे तो दूसरे लोग आपको ऊंचा कैसे समझ सकेंगे?
- हजारों-लाखों लोग इसलिए छोटे-मोटे कामों पर लगे रहते हैं,क्योंकि वे जरूरत से अधिक डरपोक,दब्बू और लज्जा करने वाले होते हैं।उनमें आत्मबल की कमी होती है।कुछ व्यक्ति अपने से उच्च अधिकारियों से असंतुष्ट रहते हैं,क्योंकि उन्हें पता होता है कि उनमें उनसे अधिक योग्यता है और वे काफी ऊंचे पद का उत्तरदायित्व संभाल सकते हैं।वे यह अवश्य सोचते हैं कि उनके साथ अन्याय हो रहा है,पर उन्हें इस अन्याय के लिए स्वयं को ही दोष देना चाहिए।अवसर मिला था,पर उन्होंने उससे लाभ न उठाया।साहस करते तो उत्तरदायित्व संभालते,अपने कंधों पर जिम्मेदारी लेते,पर उन्होंने अपने व्यक्तित्व को दबाया,वे डर गए,लजा गए और मौका उनके हाथ से निकलकर दूसरों के हाथ में चला गया।अब पछताने से क्या होगा? यदि आप में आत्मविश्वास और उत्तरदायित्व को संभालने की प्रबल आकांक्षा है तो निश्चय ही उच्चाधिकारियों का ध्यान आपकी ओर आकर्षित होगा।
4.हीनता के बजाय अपनी योग्यता को प्रकट करें (Reveal your worthiness instead of inferiority):
- यह बात गलत है कि योग्यता की विजय अपने आप होती है।सच्चाई यह है कि जिसे अपने मूल्य का पता नहीं,उसे आगे बढ़ने का अवसर नहीं मिल सकता।जो व्यक्ति योग्य है,उसे अपना मूल्यांकन पहले स्वयं करना होगा,उसके बाद ही दूसरा व्यक्ति उसका मूल्य समझेगा।परंतु इसके साथ ही यह बात भी सच है कि आप अपना मूल्य कितना भी अधिक आंकें,परंतु यदि मौका आने पर संकोच,लज्जा या कायरता के कारण अपना मूल्य प्रकट नहीं कर पाते तो निश्चय ही आप पिछड़ जाएंगे।आपमें जो योग्यता,शक्ति और सामर्थ्य है,जो कार्यक्षमता है उसे दूसरों के आगे प्रकट करना ही होगा।दूसरे तो आपकी योग्यता को खोजेंगे नहीं,क्योंकि किसी के पास इसके लिए समय नहीं होता।यह काम आपका है,यह जिम्मेदारी आपकी है कि आप दूसरों को यह विश्वास दिलाएं कि आप और भी अधिक ऊंचे पद को संभालने के योग्य हैं।जो कार्य प्रगट में काम कर रहे हैं,आपमें उससे भी उत्तम कार्य करने की क्षमता है।मैं इससे भी बड़े उत्तरदायित्व को संभाल सकता हूं।
- अतः आगे बढ़ें,काम को हाथ में लें और उस कार्य को अच्छे ढंग से करें।उसको सुचारू रूप से करने में अपनी सूझबूझ का परिचय दें,उत्तरदायित्वों को संभालने की इच्छा व्यक्त करें।आप में जो विशिष्ट गुण हैं,उन्हें प्रकट करें।अपना जौहर दिखाएं।जब तक आप जौहर नहीं दिखाएंगे,तब तक आप उन्नति भी नहीं कर पाएंगे।
- कुछ मां-बाप,अध्यापक और परिवार के लोग बच्चों में स्वयं हीनभावना भर देते हैं।हर बात में उनकी आलोचना करते हैं,उन्हें मूर्ख बताते हैं।परंतु ऐसा करना उचित नहीं।उन्हें अयोग्य,मूर्ख और अनाड़ी कहना ठीक नहीं।बड़े-बूढ़ों या माता-पिता के इस व्यवहार से बच्चों में निरुत्साह पैदा होता है,कायरता आ जाती है।उनके आत्मविश्वास की हत्या हो जाती है।उन्हें बात-बात में डांटते रहने और बुरा-भला कहने से उनकी प्रतिभा मंद पड़ जाती है,उनकी स्वतंत्र रूप से सोचने की दूसरी शक्ति नष्ट हो जाती है और उनकी हंसी खुशी और मन का सारा उल्लास समाप्त हो जाता है।उनका आत्म-विश्वास समाप्त होने लगता है।अतः ऐसे माता-पिता,ऐसे अभिभावक यह बात भलीभांति समझ लें कि इस प्रकार चोट करना हानिप्रद होता है।समझदार माता-पिता को चाहिए कि वे उन्हें उत्साहित करें तथा उनका उत्साह भंग ना होने दें।यदि उनकी स्वाभाविक प्रतिभा में कुछ कमी है तो आपके निरंतर निरुत्साहित करने से वह और भी कम हो जाएगी और फिर धीरे-धीरे समाप्त हो जाएगी।मगर यदि आप उन्हें थोड़ा-सा भी उत्साहित करेंगे तो उनमें प्रतिभा का विकास होता चला जाएगा।
- जिन कार्यों को आप अपने जीवन में नहीं करना चाहते,उन्हें अपने मन से निकाल दें।यदि आप स्वस्थ रहना चाहते हैं तो स्वास्थ्य का विचार कीजिए।सदैव यही चिंतन कीजिए कि आप दिनोंदिन अधिक स्वस्थ होते जा रहे हैं।यदि आप धन चाहते हैं,धनाढ्य बनना चाहते हैं तो मन में वैसे ही विचार कीजिए और सदा यही सोचिए कि आप दिनोंदिन अधिक धनी होते जा रहे हैं।यदि आप किसी कार्य में सफल होना चाहते हैं तो प्रतिक्षण सफलता का विचार ही कीजिए,असफलता के विचारों को मन से निकाल दीजिए।
- आप जो कुछ बनना चाहते हैं,अपने मन और मस्तिष्क में वैसे ही विचार भर लीजिए और अपने मन के आदेशों के अनुसार काम कीजिए।अपने मन से हीनता के विचारों को निकाल फेंकिए,अपनी कमजोरियों और कमियों को भूल जाइए।अपने मन के सामने स्वस्थ,सुंदर,सफल और एक आदर्श मूर्ति की स्थापना कीजिए और सभी प्रयत्न उस कार्य की सिद्धि के लिए ही कीजिए।कुछ ही समय बाद ऐसा समय आ जाएगा कि आपके अवरुद्ध मार्ग अपने-आप खुलते चले जाएंगे।
5.अंतरात्मा की आवाज सुनें (Listen to the voice of conscience):
- अपने गुणों को,अपनी योग्यता को,सामर्थ्य को और अपनी दक्षताओं को प्रकट कीजिए।उन्हें दबाना या कुचलना ठीक नहीं।जब आप अपना आदर्श लक्ष्य या ध्येय दूसरों पर प्रकट कर देंगे तो उनमें से अधिकांश व्यक्ति आपके सहायक बन जाएंगे।हर आदमी अपने आपमें पूर्ण है और पूर्णता को प्रत्येक व्यक्ति मान्यता देता और उसकी सेवा करता है।आपने अनुभव किया होगा कि जब आप अपने मन में किसी आदर्श मूर्ति की स्थापना करते हैं,उसका निर्माण करते हैं,तो आपको प्रसन्नता होती है और जब आप उस मूर्ति के संबंध में दूसरों को बताते हैं तो वे भी प्रसन्न होते हैं।जब तक आपके मन में गड़बड़ी नहीं होती,कोई बेचैनी पैदा नहीं होती या कोई दूसरी अव्यवस्था उत्पन्न नहीं होती तब तक आपके आदर्श की मूर्ति स्थित रहती है,किंतु जब आपके विचारों में समानता नहीं रहती उनके साथ तालमेल समाप्त हो जाता है,आपके भीतर कोई गड़बड़ होती है तो आपका आदर्श धुंधला पड़ जाता है और धीरे-धीरे आपकी आंखों से ओझल हो जाता है।उस समय आपके काम,आपके आदर्श या लक्ष्य के अनुरूप नहीं हो पाते और आप असफल हो जाते हैं।एक मशीन तभी तक ठीक काम करती है,जब तक उसके पुर्जों में कोई गड़बड़ी नहीं होती,वे यथास्थान रहते हैं।पुर्जों में थोड़ी-सी गड़बड़ होते ही मशीन रुक जाती है।
- आप जब कभी कोई बुरा या अनुचित काम करते हैं तो आपकी आंतरिक शक्तियां उसका विरोध करती हैं,आपका मन उसका विरोध करता है,टोकता है और आपके अंदर एक द्वन्द्व छिड़ जाता है।इससे आपका मानसिक संतुलन बिगड़ जाता है।उस समय काम करने की आपकी क्षमता नष्ट हो जाती है और जिस कार्य के करने से आपको यह यश प्राप्त होना चाहिए था,उसके अपूर्ण रह जाने से आपकी निंदा होने लगती है।आपका अपयश होता है।आपकी कार्यशक्ति मंद पड़ जाती है,वह कुंठित हो जाती है और एक कुचक्र-सा चल जाता है।अतः कोई भी कार्य करने से पहले उसके विषय में भलीभांति सोचें।अच्छे-बुरे का विचार करके ही कोई कदम उठाएं।
- आप जब कभी बुरा या गलत काम करते हैं तो आपकी आत्मा ही आपको बुरा-भला कहने लगती है,आपका मन कचोटने लगता है।इसका कारण यही है कि आपको मशीन बढ़िया काम करने के लिए दी गई थी,मगर आपने उसका दुरुपयोग किया है।इससे स्पष्ट है कि यह शरीर,यह मन,यह आत्मा,अच्छे काम करने के लिए मिले हैं।इसलिए आपको चाहिए कि आप अच्छे विचार रखें,अच्छी बातों का विचार करें,अच्छी कामनाएं करें,अच्छी और उच्च महत्त्वाकांक्षाएं रखें और उचित तथा सही मार्ग पर ही चलें।
- क्या आप अपने को कमजोर,अधमरा,मंदबुद्धि या दुर्बल मानते हैं? क्या आप भरी जवानी में ही अपने को बूढ़ा मानने लगे हैं? क्या आपको मस्ती,सफलता और लोकप्रियता चाहिए? क्या आप महान नहीं बनना चाहते? यह सदा ध्यान में रखिए कि यदि आप किसी छोटे या तुच्छ व्यक्ति को अपना आदर्श बनाएंगे तो आप भी तुच्छ और छोटे बन जाएंगे।आप अपने मन में जैसा चित्र बनाएंगे,वैसा ही चित्र भी बनेगा।यदि आप मकान का सुंदर नक्शा बनाएंगे तो आपका मकान भी सुंदर बनेगा और नक्शा ही गलत और बदसूरत बनेगा तो,मकान कैसे सुंदर बन सकेगा? जो पदार्थ पवित्र है,जो प्राणी ईमानदार हैं,उन्हीं का ध्यान कीजिए।
- इसका भावार्थ यही है कि पवित्र,सत्य,ईमानदार और उच्च को ही अपना आदर्श बनाना चाहिए।उन्हीं का ध्यान करना चाहिए और उन्हीं का चित्रण करना चाहिए,उन्हीं के गुणों पर अपना ध्यान केंद्रित कीजिए और अपना मानदंड ऊंचा उठाइए।जो हाथ आपको सहारा देते हैं,उनके प्रति ईमानदारी और सच्चाई का प्रमाण दीजिए और अपने आदर्श के प्रति अटूट विश्वास और असीम श्रद्धा रखिए।उसी का अनुसरण कीजिए,वैसा ही आचरण कीजिए।उस पर अमल कीजिए।केवल विश्वास ही काफी नहीं,आचरण आवश्यक है।मन की ऊंची आकांक्षा का अनुसरण कीजिए,उसे पूर्ण करने का यत्न कीजिए।अपनी स्थायी आकांक्षा को पूर्ण करने की शक्ति आपमें है।यदि यह शक्ति ना होती तो यह अभिलाषा आपके मन ही में न उठती।अतः उसे पूरा करने के लिए आगे बढ़िये।उसे पूरा करने के लिए आप आगे बढ़ेंगे तो उससे संबद्ध सफलताएं आपको स्वयं प्राप्त होने लगेगी।
6.अपने आदर्श का गहराई से चिंतन करें (Think deeply about your ideal):
- गहराई से चिंतन कीजिए कि प्रभु आपको क्या बनाना चाहता है? किस प्रकार का मनुष्य बनाने की उसकी इच्छा है उसी आदर्श की एक पूर्णतायुक्त मूर्ति अपने मन-मंदिर में,अपने अंतःकरण में स्थापित कीजिए।मूर्ति में कोई दोष नहीं होना चाहिए,दाग-धब्बे भी नहीं होने चाहिए,कलंक का कहीं नामोनिशान न हो।बस,यही रूप है जो भगवान ने आपको देने के लिए निश्चित किया है।क्या आप भगवान की आज्ञा पूरी करने के लिए तैयार हैं?
- आप ऐसा सोचते ही क्यों है कि आप तुच्छ,नाचीज और छोटे हैं? आपको स्मरण रखना चाहिए कि आप तब तक अपने जीवन में महानता नहीं ला सकते जब तक आप इस प्रकार के विचारों को छोड़ नहीं देते।आपके विचार ही आपका आदर्श हैं,वही उस तक पहुंचने में सहायक भी होंगे।अपने मन में हीनता की मूर्ति एक पलभर के लिए भी न टिकने दें,क्योंकि आप तो भगवान की रचना हैं,अतः आप अवश्य श्रेष्ठ हैं।भगवान पूर्ण है,वह नाशवान नहीं,वह सर्वव्याप्त है,फिर उसकी रचना होते हुए आप हीन कैसे हो सकते हैं?
- अब तक आपके मन में जो मूर्ति थी,वह टूटी-फूटी व छिन्न-भिन्न थी,न वह पूर्ण थी और ना आदर्श।अब आपने एक पूर्ण मूर्ति बना ली है।अब आप उसे प्रकट कीजिए।उसे अपने चरित्र में उतारिए।आपमें उसका अवतरण होते ही आपको जितनी प्रसन्नता और खुशी होगी,उससे कम औरों को नहीं होगी।अब यदि आपने यह निश्चय कर लिया कि आप अपने पूर्ण और विशाल स्वरूप को इस पृथ्वी पर साकार करेंगे,उसे क्रियान्वित करेंगे तो उन कार्यों और दोषों पर प्रभुत्व स्थापित कीजिए,उनके स्वामी बन जाइए जो अब तक आपको गिराते चले आ रहे थे।उन सभी हरकतों को,कष्टों को अपने वश में कीजिए जो अब तक आपकी महत्ता में बाधक बन रहे थे।आपको चाहिए कि आप दीन-हीन,अकर्मण्य और नाकारा बनाने वाली शक्तियों को नई दिशा दें।फिर आपके विराट स्वरूप के प्रकट होने में देर नहीं लगेगी।यह हीनभावनाएं ही है जो आपको तुच्छ बना रही हैं।इस हीन भावना का नाश कीजिए।यही सफलता की सीढ़ी है।यही उन्नति का स्रोत है।
- उपर्युक्त आर्टिकल में हीनभावना से छुटकारा कैसे पाएं? (How to Get Rid of Inferiority Complex?),हीनता से छुटकारा कैसे पाएं? (How to Get Rid of Inferiority?) के बारे में बताया गया है।
Also Read This Article:Students Should Not Condemn Anyone
7.जल्दबाजी न करें (हास्य-व्यंग्य) (Do Not Rush) (Humour-Satire):
- माँ (शिवांगी से):भोजन कर लिया,अब पढ़ने बैठ जाओ,परीक्षा नजदीक है।
- शिवांगी:मां आज नहीं,कल पढ़ूंगी।
- मां:आज क्यों नहीं,कल क्यों?
- शिवांगी:टीचर ने कहा था कि किसी भी काम में जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए।
8.हीनभावना से छुटकारा कैसे पाएं? (Frequently Asked Questions Related to How to Get Rid of Inferiority Complex?),हीनता से छुटकारा कैसे पाएं? (How to Get Rid of Inferiority?) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:
प्रश्न:1.हीनभावना पैदा होने का मुख्य कारण क्या है? (What is the main reason for the inferiority complex?):
उत्तर:अपने आपकी तुलना दूसरों से करने और उस जैसा न होने से हीनभावना पैदा होती है।वह अपने आपको निम्न कोटि का समझने लगता है।उसकी नजर हमेशा दूसरों पर लगी रहती है,अपनी ओर नजर नहीं रहती है।दुनिया में एक से बढ़कर एक व्यक्ति हैं,यदि तुलना करेंगे तो हीनता पैदा होगी।
प्रश्न:2.आत्महीनता की परिणिति क्या है? (What is the result of inferiority complex?):
उत्तर:मृत्यु दुखदायी मानी जाती है,परंतु वह जीवन में एक बार ही दुःख देती है लेकिन आत्महीनता ऐसी मृत्यु है जो पल-पल पर आती है और तिल-तिल करके आंतरिक शान्ति को जलाती रहती है।
प्रश्न:3.हीनभावना से कैसे मुक्त हों? (How to get rid of inferiority complex?):
उत्तर:अपने कर्म में निष्ठा,भगवद विश्वास,आत्म-विश्वास,उत्साह व प्रेरणाप्रद साहित्य पढ़ने,स्वाध्याय,सत्संग करने,अपने कार्य में व्यस्त रहना,किसी से तुलना न करना आदि उपाय से आत्महीनता से बचा जा सकता है।
- उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा हीनभावना से छुटकारा कैसे पाएं? (How to Get Rid of Inferiority Complex?),हीनता से छुटकारा कैसे पाएं? (How to Get Rid of Inferiority?) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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Satyam
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