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5 Techniques to Adopt Ideal Life Style

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1.आदर्श जीवन पद्धति अपनाने की 5 तकनीक (5 Techniques to Adopt Ideal Life Style),छात्र-छात्राओं के लिए आदर्श जीवन पद्धति को अपनाने की 5 बेहतरीन तकनीक (5 Best Techniques for Ideal Life Style for Students):

  • आदर्श जीवन पद्धति अपनाने की 5 तकनीक (5 Techniques to Adopt Ideal Life Style) छात्र-छात्राओं के लिए बहुत महत्ता रखती है।आप चाहे ध्यान करें,जाॅब करें,अपनी हॉबी में समय बिताएं,अपने जीवन को आनंदपूर्वक व्यतीत करें हर अवसर पर आदर्श जीवन पद्धति के अनुसार कार्य करना फायदेमंद है।
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2.हर किसी के लिए प्राकृतिक रहन-सहन आवश्यक (Natural living is essential for everyone):

  • नदी-तालाब के मीठे जल वाले जल-चरों को यदि खारे पानी में,समुद्र में रखा जाए,तो उनका जीवन दूभर हो जाएगा।हो सकता है,वे वहाँ जीवित न रह सकें,मर जाएँ या फिर अपना सामान्य स्वभाव त्याग दें और असामान्य व्यवहार करने लगें।यह सिर्फ जलीय जीवों की बात नहीं है,मनुष्यों पर भी समान रूप से लागू होती है।कृत्रिम वातावरण मानवी देह के अनुकूल नहीं।इसमें वह अपना स्वाभाविक विकास खो देती है,प्रखरता-क्षमता गँवाती और ह्रास की ओर चल पड़ती है।संपूर्ण अवयवों में ऐसे ही परिणाम परिलक्षित होने लगते हैं।उनकी कुशलता कुंद पड़ती जाती है,सक्रियता मंद होने लगती है और क्षमता में विशिष्टता का लोप हो जाता है,जबकि प्राकृतिक जीवन में वे अपने सर्वोच्च विकास को अर्जित करते और अद्वितीय बनते देखे जाते हैं।
  • मनुष्य एक प्राकृतिक प्राणी है।प्रकृति के सान्निध्य में प्राकृतिक ढंग से रहकर वह अपनी क्षमताओं और योग्यताओं को जितना अधिक संवर्द्धित कर सकता है,उतना अप्राकृतिक जीवन शैली को अपनाकर नहीं।आज खान-पान से लेकर रहन-सहन तक में ऐसे और इतने अस्वाभाविक तरीके अपनाए जा रहे हैं,जो हमारी शारीरिक,मानसिक,बौद्धिक सामर्थ्य को पंगु बनाते चले जा रहे हैं।इस और यदि तनिक भी ध्यान दिया जा सके और अपनी दिनचर्या को सहज-सरल बनाए रख सके,तो प्रखरता और प्रतिभा,स्वस्थता और सामर्थ्य प्राप्त कर सकना कठिन नहीं रह जाता।
  • वनवासी शारीरिक रूप से जैसे सशक्त और मानसिक रूप से जितने सुदृढ़ होते हैं,उतना आम शहरी नहीं होता।उनमें प्रतिकूलता से जूझने,कष्ट-कठिनाइयों से लड़ने की शक्ति के अतिरिक्त शारीरिक सहिष्णुता और मानसिक मनोबल इतना प्रबल होता है कि वैसा विकास नगर के कृत्रिम जीवन शैली में यत्र-तत्र और यदा-कदा ही देखने को मिलता है।इसका क्या कारण है? इस पर गंभीरतापूर्वक विचार करने से यही ज्ञात होता है कि गांवों से दूर शहरों में जीवन की भाग-दौड़ इतनी तीव्र होती है कि वहां हम अपनी नैसर्गिक दिनचर्या बनाए नहीं रख पाते और प्रकृति से दूर चले जाते हैं।परिणाम कुंठित प्रतिभा के रूप में सामने आता है।
  • जो इस सच्चाई से अवगत है,उन्हें यह भी विदित होगा कि हमारी अपनी सत्ता में क्षमता विशिष्टता तो है,पर वह स्वतः विकसित होने में असमर्थ होती है।जब उन्हें किसी ऐसे तत्व का सामीप्य मिलता है,जो किसी प्रकार उन क्षमताओं और योग्यताओं को कुरेदकर उभार सके,तो व्यक्ति असाधारण और अद्भुत बन जाता है परंतु इस उन्नयन का श्रेय किसी और को नहीं,अपितु उस जीवन प्रणाली को दिया जाना चाहिए,जिसके जीवन में समाविष्ट न रहने पर सब कुछ सामान्य बना रहता है।

3.प्रयास और अभ्यास में किसका महत्त्व अधिक है? (Which is more important in effort and practice?):

  • रसायन शास्त्र में ‘उत्प्रेरक’ नाम से रसायनों का एक समूह है।जब उन्हें किन्हीं दो रसायनों के साथ मिलाया जाता है,तो वे उनके बीच की प्रतिक्रिया को एकदम तीव्र कर देते हैं।मानवी जीवन में आदर्श जीवन पद्धति की लगभग ऐसी ही भूमिका है।जिंदगी में सम्मिलित होकर वह व्यक्ति की ऐसी कितनी ही विशेषताओं को मूर्तिमान कर देती है,जो अब तक या तो प्रच्छन्न या साधारण स्थिति में पड़ी हुई थीं।इस क्रम में जब धृति,स्मृति और बुद्धि जैसी मस्तिष्कीय क्षमताओं का उदय होता है,तो मनुष्य अद्वितीय बुद्धिमान और ज्ञानवान बन जाता है,किंतु जब धैर्य,साहस और सहिष्णुता जैसे गुण प्रकट होते हैं,तो वे ‘जीवट’ प्रदान करते हैं,इसलिए यहां प्रयास की तुलना में अभ्यास पर अधिक ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है।
  • उल्लेखनीय है कि प्रयास-पुरुषार्थ से सामर्थ्य परिवर्द्धित तो की जा सकती है,पर वह किसी विशिष्ट जीवन प्रणाली के अभ्यास द्वारा उपार्जित प्रतिभा की अपेक्षा अधिक श्रमसाध्य होती है।उतना पराक्रम हर कोई कर भी नहीं सकता।ऐसे में प्रकृति की सन्निकटता ही क्षमता-संवर्द्धन का सरल उपाय दीखता है।इसमें दक्षता के साथ-साथ स्वच्छता भी बढ़ती है,इसलिए भी यह अधिक उपयोगी है।जो यह समीपता उपलब्ध कर पाने में असमर्थ हैं,उन नगर के निवासियों के लिए प्राकृतिक जीवनक्रम अपना लेना भर ही पर्याप्त है।
  • जल्दी शयन,प्रातः जागरण,प्रातः भ्रमण,दैनिक यज्ञ,नियमित जप,शुद्ध आचार,सात्विक आचार,श्रेष्ठ चिंतन और परोपकार की वृत्ति-इसे आदर्श जीवन पद्धति कहते हैं।इसको अपना लेने से भी आवश्यकता की काफी हद तक पूर्ति हो जाती है और वह लाभ प्राप्त हो जाता है,जो प्रकृति के मध्य रहकर प्राप्त किया जा सकता था।खोजने से ऐसे अनेकों उदाहरण मिल जाते हैं,जो इस बात की पुष्टि करते हैं की सरल,सहज और सात्विक जीवन जीने से कौशल और निपुणता बढ़ती है एवं अनेक बार व्यक्ति को अद्भुत बना देती है।
  • ऐसा ही एक दृष्टांत शहर के एक गणित प्राध्यापक का है।वे गणित के उद्भट विद्वान थे।देखने में अत्यंत सरल,व्यवहार में विनम्र,पहनावे में सादगी,पर चिंतन में इतनी प्रखरता और विद्वता मानो साक्षात सरस्वती ही रूप बदलकर उपस्थित हुई हों।उन्हें गणितशास्त्र का ही गहन और गहरा ज्ञान नहीं था बल्कि धर्म,दर्शन,भारतीय संस्कृति का भी गहरा और विस्तृत ज्ञान था।उनकी दिनचर्या बहुत नियमित थी।वह प्रातः 3:00 बजे उठ जाते और दैनिक क्रिया से निवृत्त होकर प्रायः एक घंटे तक ध्यान-योग और उपासना करते।उसके उपरांत योगासन-प्राणायाम करते थे तत्पश्चात भ्रमण के लिए निकल जाते।प्रतिदिन तीन मील की पैदल यात्रा करने के बाद यज्ञ करते,तत्पश्चात उनका अध्यापन कार्य आरंभ होता।
  • गणित को पढ़ाते समय उनकी अद्भुत स्मरण शक्ति की झलक मिलती।छात्रों के सम्मुख पुस्तकें खुली रहतीं।वे गणित के सवालों को हल करते,कोई कठिन शब्द आ जाता तो उसकी व्याख्या करते।गणित के सवाल समझ में नहीं आते तो दूसरे तरीके से समझाते।कई बार छात्र-छात्राएं किसी सवाल को हल करने में भूल कर देते,तो वे उसे तत्काल पकड़ लेते और बताते अमुक जगह यह भूल की है।उन्हें गणितशास्त्र के अनेक ग्रंथ कंठस्थ थे।गणित के साथ-साथ छात्र-छात्राओं को प्रसंगवश वे आध्यात्मिक,व्यावहारिक बातें भी बताते और समझाते।उनकी अद्भुत स्मरण शक्ति,गणित विषय तथा अन्य आध्यात्मिक व व्यावहारिक विषयों पर मजबूत पकड़ के कारण छात्र-छात्राएँ दंग रह जाते थे।वे अपने पाण्डित्य का प्रदर्शन नहीं करते थे,परंतु छात्र-छात्राओं को आदर्श जीवन पद्धति को अपनाने पर बल देते थे।
  • वे एक सरल चित्त इंसान थे।चिंतन और आचरण में आश्चर्यजनक साम्य था।जिस प्रकार उनका चिंतन श्रेष्ठ था,उसी के अनुरूप उनके व्यवहार में सात्विकता और उदात्तता थी।वे शुष्क ज्ञान को निरर्थक बताते और कहते थे कि ज्ञान की गरिमा सद्आचरण में है।जो इसका परिपालन करते और प्रकृति के अनुसार जीवनयापन करते हैं,उनमें प्रतिभाओं की कमी नहीं रहती।वे विकसित होती चली जाती हैं।

4.जीवनचर्या में रुकावटें स्वयं के कारण (Lifestyle interruption due to self):

  • मानव जीवन प्रखरता और प्रतिभा का पुंज है।वह प्रकट हुए बिना रह नहीं सकता,पर अनेक बार अस्वाभाविक जीवनक्रम अपना लेने से वह आच्छादित हो जाता है और अप्रकट स्तर का बना रहता है।यदि उक्त आवरण को हटा दिया लिया जाए,छल-कपट,द्वेष-दुर्भाव से दूर रहा जाए एवं जीवन को एकदम अकृत्रिम बना रहने दिया जाए,तो विशिष्टताएँ स्वयंमेव प्रतिभासित होने लगती हैं और चरम विकास तक जा पहुंचती हैं।जहां बीज होगा,वहां वृक्ष के पनपने की संभावना निरंतर बनी रहती है।यदि उसे उचित माध्यम मिल जाए,तो वह आवरण फोड़कर बाहर निकल आता है।यह साधारण से असाधारण का प्रकटीकरण हुआ।
  • इसकी संभाव्यता मनुष्य में भी बराबर बनी रहती है,पर हम जीवनशैली के नाम पर,प्रगति और सभ्यता के नाम पर इतनी रुकावटें खड़ी कर लेते हैं कि जो जीवन प्रवाह सहज ढंग से प्रवाहित हो रहा था,वह बाधित हो जाता है।बाधित और अवरुद्ध जीवन में सब कुछ ठप्प बना रहता है,इसलिए भारतीय मनीषी प्राकृतिक जीवन की सलाह देते हैं,जिसमें प्रकृति की समीपता के साथ-साथ जीवन की सरलता और स्वाभाविकता भी सम्मिलित हो।ऐसी जिंदगी ही सर्वांगीण विकास के अनुकूल है।
  • प्रकृति को माँ कहा गया है।माँ अपने बेटे को जितना सहज व सरल जीवन जीते देखना चाहती है,वह बात शायद ही किसी अन्य रिश्ते में पाई जाती हो।मनुष्य को चाहिए कि वह उसके इस मानोभाव को समझें और इसके अनुरूप आचरण करे,कृत्रिमिता से दूर रहे और सब कुछ स्वाभाविक ढंग से चलने दे।देव मानव बनने का यह बहुत सरल उपाय है।

5.छात्र-छात्राएँ जीवनचर्या में व्यायाम भी शामिल करें (Students should also include exercise in their lifestyle):

  • भोजन को पचाने और शरीर को हृष्ट-पुष्ट रखने के लिए मनुष्य को व्यायाम की बहुत आवश्यकता है।व्यायाम से फुर्ती आती है,कार्य करने की शक्ति बढ़ती है,पेट की आग बढ़ती है,चर्बी अर्थात् शरीर का बलगम नाश हो जाता है,शरीर के सब अंग-प्रत्यंग यथोचित रूप से सुदृढ़ मजबूत हो जाते हैं।जो लोग रबड़ी-मलाई-पकवान इत्यादि गरिष्ठ अन्न खाते हैं,और शारीरिक परिश्रम के कार्य करने का जिनको बिल्कुल मौका नहीं मिलता,उनके लिए तो व्यायाम अत्यंत आवश्यक है।
  • ऐसे लोग जो प्रकृति के विरुद्ध गरिष्ठ भोजन करते हैं,उनका भोजन भी व्यायाम से पच जाता है,और शरीर में शीघ्र शिथिलता नहीं आने पाती।जिन लोगों की चर्बी बेतरह बढ़ रही हो,और शरीर बेडौल मोटा हो रहा हो,उनके लिए व्यायाम एक बड़ी-भारी औषधि है।
  • यदि व्यायाम बराबर करता रहे,तो मनुष्य मृत्युपर्यंत अजर,अर्थात् युवा रह सकता है।और जो लोग बेडौल मोटे हो जाते हैं,उनका मोटापन भी छूट जाता है।परंतु सब लोगों के लिए सदैव व्यायाम हितकर भी नहीं है।
  • जो अभी हाल ही में भोजन अथवा स्त्रीप्रसंग (सहवास) कर चुका है,अर्थात् जो ब्रह्मचर्य के नियमों का पालन नहीं करता,जिसको खांसी या श्वास का रोग है,जो बहुत कमजोर है,जिसको क्षय,रक्तपित्त,क्षत,शोष का रोग है,उनको व्यायाम कभी न करना चाहिए।हां,यदि हो सके,तो खुली हवा में धीरे-धीरे टहलने का व्यायाम ये लोग भी कर सकते हैं।अत्यंत कठोर व्यायाम तो सभी के लिए हानिकारक है।जितना व्यायाम शरीर से सहन हो सके,उतना ही व्यायाम करना चाहिए।अति सब जगह वर्जित है।
  • बहुत व्यायाम करने से शरीर में खुश्की बढ़ती है,तृषा का रोग हो जाता है ;क्षय,श्वास,रक्तपित्त,ग्लानि,खांसी इत्यादि के रोग हो जाते हैं।
  • इसलिए अधिक व्यायाम न करना चाहिए।व्यायाम का इतना ही मतलब है कि,शरीर से परिश्रम किया जाए,जिससे भोजन पचे; और दृढ़ता आवे।व्यायाम अनेक प्रकार के हैं; परंतु अनुभव से जाना गया है कि योगासन-प्राणायाम,खुली हवा में,बस्ती के बाहर,प्रकृति सौंदर्य से पूर्ण हरे-भरे जंगल अथवा पहाड़ों इत्यादि में खूब तेजी के साथ भ्रमण करना सबसे अच्छा व्यायाम है।भ्रमण करते समय हाथ बिल्कुल खुले छोड़ देना चाहिए; और सब शरीर के अंग प्रत्यंगों का संचालन स्वाभाविक रूप से होने देना चाहिए।श्वास को रोकने का प्रयत्न न करना चाहिए और मुख से श्वास कभी नहीं लेना चाहिए।किसी प्रकार का भी व्यायाम हो,सदैव नासिका से ही श्वास लेना और छोड़ना लाभदायक है।
  • आजकल हमारे विद्यार्थियों में अंग्रेजी व्यायाम की प्रथा चल पड़ी है।यह बहुत ही हानिकारक है।
  • दंड,मुगदर,कुश्ती,दौड़,कबड्डी,योगासन-प्राणायाम इत्यादि देशी व्यायाम का समय सुबह और शाम बहुत अच्छा है।असमय में भूखे-प्यासे विद्यार्थियों को व्यायाम कराना मानों उनको जानबूझकर मृत्यु के मुख में देना है।
  • प्रातः काल सूर्योदय से पूर्व उठकर नित्य कर्मों से निवृत्त होकर व्यायाम और योगासनों का अभ्यास करने से सुस्ती व शिथिलता मिट जाती है और शरीर में चुस्ती-फुर्ती तथा तबीयत में ताजगी आ जाती है जिससे पढ़ाई में मन लगता है और पाठ अच्छी तरह याद रहता है।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में आदर्श जीवन पद्धति अपनाने की 5 तकनीक (5 Techniques to Adopt Ideal Life Style),छात्र-छात्राओं के लिए आदर्श जीवन पद्धति को अपनाने की 5 बेहतरीन तकनीक (5 Best Techniques for Ideal Life Style for Students) के बारे में बताया गया है।

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6.ट्यूशन का महत्त्व (हास्य-व्यंग्य) (Importance of Tution) (Humour-Satire):

  • गणित अध्यापक (ट्यूशन का महत्त्व बताते हुए):अनीश,अगर तुम्हारा भाई गणित या अन्य विषय में फेल हो जाए,तो तुम क्या करोगे?
  • अनिश:कुछ नहीं,हमारे पास दो-दो ऑप्शन हैं।या तो घर का काम संभाल लेगा,घर पर बहुत कार्य रहता है।या फिर पिताजी को काम में हाथ बँटा देगा।

7.आदर्श जीवन पद्धति अपनाने की 5 तकनीक (Frequently Asked Questions Related to 5 Techniques to Adopt Ideal Life Style),छात्र-छात्राओं के लिए आदर्श जीवन पद्धति को अपनाने की 5 बेहतरीन तकनीक (5 Best Techniques for Ideal Life Style for Students) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.आदर्श जीवन पद्धति का पालन करने में क्या रुकावटें हैं? (What are the barriers to following an ideal way of life?):

उत्तर:विद्यार्थी की मनःस्थिति दुर्बल होना,पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव,टीवी और फिल्मों का दुष्प्रभाव,मोबाइल की लत और सोशल मीडिया पर व्यस्त रहना,अनावश्यक कार्य करना आदि के कारण विद्यार्थी आदर्श जीवन पद्धति को नहीं अपनाते हैं।फलतः अध्ययन में मन नहीं लगता है,पढ़ा हुआ समझ में नहीं आता और अन्य अनेक विकृतियां पैदा हो जाती हैं।

प्रश्न:2.आदर्श जीवन पद्धति को कैसे अपनाएं? (How to adopt an ideal life style?):

उत्तर:बच्चों व छात्र-छात्राओं को बाल्यकाल से आदर्श जीवन पद्धति अपनाने की ओर माता-पिता व शिक्षकों को ध्यान देना चाहिए।यथा प्रातः काल जल्दी उठना,निश्चित समय पर सोना और उठना,नियमित रूप से शौच,स्नान,व्यायाम,योगासन-प्राणायाम,ध्यान-योग साधना आदि को नियमित रूप से करना।याद रहे स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का निवास होता है।विद्यार्थियों को शुरू से इन सबकी शिक्षा नहीं दी जाती है फलतः वे अनेक विकारों से ग्रस्त हो जाते हैं।

प्रश्न:3.जीवन में सफल होने के लिए आदर्श जीवन पद्धति की क्या भूमिका है? (What is the role of the ideal lifestyle to succeed in life?):

उत्तर:हमारे सामने आदर्श होता है तो आदर्श को प्राप्त करने के लिए जी-जान से जुट जाते हैं।इसी प्रकार आदर्श जीवन पद्धति का पालन करते हैं तो अध्ययन में ही नहीं बल्कि जाॅब में,जीवन में सफलता दर सफलता मिलती जाती है।बेसमय सोने,उठने,जागने,भोजन करने,आलसी दिनचर्या आदि के कारण विद्यार्थी काल और आगामी जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है।हमें हर काम में,हर समय असफलताओं का सामना करना पड़ता है।हम समझ ही नहीं पाते कि यह असफलता क्यों मिल रही है।अतः आदर्श जीवन पद्धति का पालन अवश्य करना चाहिए।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा आदर्श जीवन पद्धति अपनाने की 5 तकनीक (5 Techniques to Adopt Ideal Life Style),छात्र-छात्राओं के लिए आदर्श जीवन पद्धति को अपनाने की 5 बेहतरीन तकनीक (5 Best Techniques for Ideal Life Style for Students) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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  1. Jyo December 6, 2024 / Reply

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