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Causes and Prevention of Failure

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1.असफलता के कारण और निवारण (Causes and Prevention of Failure),अभ्यर्थी असफल क्यों होते हैं? (Why Do Candidates Fail?):

  • असफलता के कारण और निवारण (Causes and Prevention of Failure) के बारे में पूर्व में भी लेख लिखे जा चुके हैं।असफलता के अनेक कारण होते हैं,किसी अभ्यर्थी को किसी कारण से,तो अन्य अभ्यर्थी को अन्य कारण से असफलता मिलती है।अतः अभ्यर्थी को असफलता का कारण जानकर उसे दूर करने का प्रयास करना चाहिए तभी वह इस गलाकाट प्रतिस्पर्धा में सफल हो सकता है।
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2.वर्तमान भारतीय समाज में ये कैसा बदलाव? (What kind of change is this in Indian society today?):

  • पिछले चार दशक के दौरान हमारा भारतीय समाज बड़ी तेजी से बदला है,न केवल बदल गया है बल्कि अभी भी बदलता जा रहा है।यह बदलाव जीवन के हर क्षेत्र में आया है:शिक्षा,रहन सहन,सोच-विचार,पोशाक यहां तक कि आचरण और बोलचाल तक में भी।अपनी संस्कृति,भारतीयता की रक्षा करते हुए लाया गया यह सकारात्मक बदलाव तो विकास का सूचक है,लेकिन कथित पश्चिमी सभ्यता या आधुनिकता के नाम पर किया गया अंधानुकरण न केवल अपसंस्कृति का सूचक है,बल्कि वह तत्कालीन समाज और नवागत पीढ़ी को अवनति की राह पर ले जाने वाला भी है।
  • आप सोचते होंगे कि जो समाज 35-40 सालों में (1985 तक) इतनी तेजी से नहीं बदल पाया,वह केवल कुछ सालों में ही कैसे इतनी तेजी से छद्म आधुनिकता  के सांचे में ढल गया? दरअसल इसके पीछे भारतीय समाज के भीतर अनावश्यक रूप से बैठी वह हीनभावना है,जो पश्चिमी या अंग्रेजी मानसिकता के कारण उत्पन्न हुई है।इस हीनभावना को दूर करने के लिए लोग नकली साधनों का सहारा ले रहे हैं।
  • समाज के कथित आधुनिक सांचे को बनाने के लिए केवल अपसंस्कृति और बॉलीवुड कहीं अधिक जिम्मेदार हैं,जिन्होंने पिछले तीन-चार दशक में हिंसा व अश्लीलता का वह दृश्य सार्वजनिक रूप से परोसा है,जिसे देख-सुनकर संस्कृतनिष्ठ व्यक्ति शर्म के मारे जमीन में गड़ा जाता है।इस दुनिया ने व्यक्तित्व की अंतर्निहित शक्तियों को विकसित करने पर जोर देने के बजाय लटकों-झटकों पर ही जोर दिया है।इसके कारण आज की किशोर पीढ़ी मानवीय सरोकारों से दूर होकर अपने वर्ग के साथ ही डिस्कोथेक व क्लबों आदि तक सीमित होती जा रही है।उन्हें न तो राजनीति से मतलब है,न देश की हजारों-हजार समस्याओं से।
  • चूँकि वे अपने गुरूर में चूर नव-धनाढ्यों के पालित होते हैं,इसलिए उन्हें अपने खर्च और करियर की भी चिंता नहीं होती है।ऐसे बिगड़े कपूतों को ना तो दूसरे की परवाह होती है और न ही नियम-कानूनों की।जहाँ-तहाँ नियम-कानूनों की धज्जियाँ उड़ाते और अपनी गाड़ियों की स्पीड से लोगों को आतंकित करते चलते हैं।ऐसे नव-धनाढ्य घरों की किशोरियाँ अपनी जुल्फें बिखेरती,कम से कम वस्त्र में तितली की तरह इतराती फिरती हैं।
  • महानगरों-नगरों में बिखरी फैशन और हेलो-हाय की दुनिया उस दुनिया उस समाज के लोगों में और भी हीनभावना पैदा करती हैं,जो मध्यमवर्ग से जुड़े हैं।जिनकी जेब एक सीमा से अधिक खर्च करने की इजाजत कभी नहीं देती।इस वर्ग के अभिभावक अपने बच्चों से यह उम्मीद करते हैं कि उसके बड़ा होते ही उनके सपने पूरे होने लगेंगे।उसके द्वारा अच्छा पद,पैसा हासिल कर लेने के बाद वे भी कारों में घूम सकेंगे।इसके लिए वे उनके सामने बड़े सरकारी पदों या बहुराष्ट्रीय कंपनियों के प्रबंधन पद को हासिल करने का आदर्श रखते हैं।इस प्रकार महानगरों से लेकर कस्बों तक दो तरह की शहरी दुनिया है।

3.भ्रष्टाचार और पेपर लीक प्रकरण (Corruption and paper leak cases):

  • धनाढ्य,साधन-संपन्न और छोटे रास्ते से नौकरी प्राप्त करने वाले भ्रष्टाचार व अनैतिक तरीके अपनाते हैं।जब मेहनती और कुशल तथा योग्य अभ्यर्थी ऐसे प्रकरणों को देखता है तो उसका सिस्टम पर से विश्वास उठ जाता है।उसे लगता है कि सही तरीके,मेहनत करने वाले अभ्यर्थियों को सफलता नहीं मिलती है और अयोग्य व्यक्ति अपने संसाधनों,पहुंच का इस्तेमाल,घूस देकर पद हासिल कर लेता है।ऐसे व्यक्तियों को देखकर योग्य अभ्यर्थियों में नकारात्मकता पैदा होना स्वाभाविक है।लेकिन याद रखना चाहिए कि बुरे काम का नतीजा बुरा ही होता है।भगवान के घर देर है,पर अंधेर नहीं।एक न एक दिन ऐसे व्यक्तियों को दंड मिलता ही है।
  • अभी पिछले समय पेपर लीक,पेपर घोटाला राजस्थान और नीट-यूजी प्रकरण में भी देखा होगा।राजस्थान में एसआई (सब-इंस्पेक्टर) भर्ती में जो घोटाला हुआ है,आज वे पकड़े जाकर जेल में चक्की पीस रहे हैं,जेल की सीखचों के भीतर बंद हो गए हैं।अतः अपने नैतिक तरीकों,सही तरीकों तथा जेनुइन तरीकों से परीक्षा में सफल होने के रास्ते को नहीं छोड़ना चाहिए।
    भारत में 2000 के आसपास ऐसे बड़े-बड़े स्कैम कोयला घोटाला,चारा घोटाला जैसे अनेक घोटाले हुए और उनका पर्दाफाश हुआ,उनको सजा भी हुई।हालाँकि भारत की न्याय प्रणाली ऐसी है कि किसी भी घोटाले की जांच होने में इतना समय लग जाता है कि लोग उस घोटाले को जल्दी ही भूल जाते हैं।
  • जो घूस देकर पद प्राप्त कर लेता है,वह घूस की रकम वसूल करने के लिए भ्रष्टाचार करता है और फिर उसकी आदत बन जाती है।योग्य अभ्यर्थियों का चयन होने में,भ्रष्टाचार पेपर लीक आदि अवरोधक बन जाते हैं।सरकारी नौकरियों में ही घूस देकर पद प्राप्त करने की तिकड़में लगाई जाती हो ऐसी बात नहीं है,बल्कि प्राइवेट और बहुराष्ट्रीय कंपनियों में भी चोर दरवाजे से पद हासिल करने के तरीके अपनाए जाते हैं।वहां पर भी घूस देकर या अपनी पहुंच का इस्तेमाल करके पद प्राप्त कर लिया जाता है।
  • जो सच्चाई के रास्ते पर चलता है तो उसे बहुत सी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।घूसखोर अधिकारी ऐसे कर्मचारी/अधिकारी को तंग करते हैं और उसे भी अपनी टीम में शामिल करने के हथकंडे अपनाते हैं।यदि वह शामिल हो जाता है तो एक न एक दिन उसे भी बुरे दिन देखने पड़ सकते हैं।यदि अपने उसूलों,सच्चाई के मार्ग को पकड़े रहता है तो शुरू में जरूर ऐसे कर्मचारी/अधिकारी को तंग करते हैं परंतु यदि वह ईमानदारी,सच्चाई और सही रास्ते का त्याग नहीं करता है तो उसे सफलता अवश्य मिलती है और उसका आत्मविश्वास बढ़ता है,स्वाभिमान बना रहता है।
  • परंतु ऐसे अभ्यर्थी को सही रास्ते को पकड़े रखने में कई परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है।आप यह भी कह सकते हैं कि भगवान सच्चे और सही व्यक्ति की परीक्षा लेता है,कदम-कदम पर लेता है।यदि ऐसे व्यक्ति को असफलता मिलती भी है तो उसके और कोई कारण हो सकते हैं जिनकी वह अनदेखी कर देता है।उस कारण को यदि समय पर पहचान कर दूर कर ले,सतत अपने पर निगरानी रखें तो सफलता अवश्य मिलती है।

4.गांवों के युवकों की स्थिति (Status of village youth):

  • एक तीसरी दुनिया भी है:भारत के गांवों की दुनिया।वहां का समाज मिला-जुला समाज है।सामाजिक न्याय का नारा बुलंद होने के बाद वहाँ उपेक्षितों में भी आशा का संचार हुआ है और वे भी गांव के अन्य वर्ग के लोगों की तरह अपने बच्चों को लिखाने-पढ़ाने में रुचि लेने लगे हैं।लेकिन स्थिति अभी विशेष उत्साहजनक नहीं है।गांव का नौजवान किसी तरह पढ़-लिखकर छोटी-मोटी नौकरी या फिर दिल्ली जैसे शहर जाकर प्राइवेट नौकरी पाना चाहता है।हालांकि उसके पास भी अपने सपने हैं,लेकिन सपनों को पूरा करने के लिए उसके पास संसाधन नहीं है।फलतः मन मसोसकर उसे अपनी जिंदगी बसर करनी पड़ती है।
  • गांव और कस्बों का नौजवान बीए,एमए,बीएससी या एमएससी आदि कर लेने के बाद आगे की राह खुद बनाने के लिए हाथ-पैर फेंकता है।उसके सामने आदर्श तो होता है,लेकिन कोई मार्गदर्शक नहीं होता,जो उसे उसकी कमजोरियाँ बता सके।इसका परिणाम यह होता है कि स्ट्रगल (संघर्ष) करने वाले उस नौजवान के तमाम प्रयत्न प्रायः निष्फल हो जाते हैं।नौजवान को असफलता इसलिए भी मिलती है क्योंकि बचपन से वह जिस परिवेश में पलता-बढ़ता है,उस परिवेश से उसे आदर्श प्राप्ति के अस्त्र-शस्त्र बिल्कुल ही नहीं मिलते।आदर्श या लक्ष्य प्राप्ति के लिए उसे दूसरा परिवेश चुनना पड़ता है जो होता तो उसकी मनोवृति के प्रतिकूल,पर सफलता प्राप्ति के लिए स्वयं को इस कथित परिवेश में ढालना पड़ता है।
  • अब जो नौजवान असफलताओं और स्ट्रगल से घबराकर प्रयत्न करना बंद कर देता है,वह सफलता से वंचित रह जाता है,लेकिन जो असफलताओं के बावजूद हार न मानते हुए अंतिम दम तक प्रयत्न करता रहता है,उसे एक न एक दिन आदर्श की प्राप्ति जरूर होती है इसलिए असफलता के लिए सबसे पहले हमें अपनी वह कमजोरी तलाशनी चाहिए जो सामान्यतया स्वयं को दिखाई नहीं देती।
  • असफलता के ये कारण हो सकते हैं:गलत लक्ष्य का चुनाव,कठिन परिश्रम की कमी या न कर पाना,प्रेरणा का अभाव,संघर्ष करने की वृत्ति का न होना,कर्त्तव्य व भावना में द्वन्द्व,नकारात्मक चिंतन,अस्त-व्यस्त जीवन शैली,स्वार्थी प्रवृत्ति,अहंकार,लोभी प्रवृत्ति,समय प्रबंधन का अभाव,योजना पूर्वक तैयारी न करना या योजना का क्रियान्वयन न कर पाना आदि अनेक कारण हो सकते हैं।यदि इन कारणों या अन्य कारणों को अभ्यर्थी न पहचान सके तो उसे असफलता मिलती है।अतः एक सच्चे मार्गदर्शक का होना आवश्यक है जो आपको आपकी कमजोरियों को बता सके।केवल मात्र भ्रष्टाचार व पेपर लीक जैसे प्रकरण तो परिस्थितिजन्य कारण हैं,वे आपके वश में है भी नहीं,उनको रोकने के लिए तो आप ज्यादा कुछ नहीं कर सकते हैं।
  • परंतु उपर्युक्त या अन्य कारण या कमजोरियाँ जो स्वयं  में मौजूद हैं उनकी पहचान करके उसे दूर करना जरूरी है।कभी-कभी तो छोटी-सी कमजोरी भारी पड़ जाती है और लक्ष्य या सफलता हाथ से छिटक जाती है।हाथ में आया हुआ लक्ष्य फिसल जाता है और फिर बाद में पता चलता है कि यदि वह ऐसी सावधानी रखना तो उसे सफलता मिल जाती।अतः जीवन में मार्गदर्शक की भी बहुत भूमिका होती है जो हमें सफलता दिलवाने में बहुत बड़ी भूमिका निभाता है।

5.सफलता का दृष्टांत (Parable of Success):

  • एक विद्यार्थी बहुत मेहनती था।उसने जाॅब प्राप्त करने के लिए अनेक कॉम्पीटिशन दिए परंतु हर बार उसे असफलता ही मिलती थी।उसके मन में नकारात्मकता का प्रवेश हो गया,उसने सोचा की काम्पीटिशन देने,कठिन परिश्रम करने का क्या फायदा? किसी भी काम्पीटिशन में चयन तो होता नहीं है,अतः उसने काम्पीटिशन न देने का निश्चय किया और सोचा जो भी छोटा-मोटा जाॅब मिल जाएगा उसी से जीवनयापन या गुजारा करूँगा।पुनः वैकेंसी निकली और उसने घर वालों को बताया कि इस बार मैं वैकेंसी में आवेदन-पत्र नहीं भरूगा क्योंकि काम्पीटिशन देते-देते मैं थक चुका हूं।किसी भी काम्पीटिशन में चयन के थोड़े-बहुत आसार भी नजर नहीं आते हैं।
  • उसकी छोटी बहन पढ़ी-लिखी थी,उसने उस विद्यार्थी की हिम्मत बँधायी।उसने कहा कि भैया कभी-कभी छल्ले की आखिरी चाबी से भी ताला खुल जाता है।आप इस काम्पीटिशन में आवेदन जरूर करें,जो आपने तैयारी की है,उसी के बल पर परीक्षा देने जाएं।आवेदन-पत्र और परीक्षा की फीस ही तो लगेगी।आप जिस तरह की तैयारी कर रहे हैं,उस तरह तैयारी करते रहें,हिम्मत ना हारें और परीक्षा जरूर दें।
  • बहिन के बहुत आग्रह करने पर उस विद्यार्थी ने आवेदन-फॉर्म भर दिया और जिस तरह से पहले तैयारी कर रहा था उसी तरह करता रहा,परंतु अब उसकी तैयारी में वह जोश नहीं था जो हर बार परीक्षा देते समय होता था।निश्चित दिन परीक्षा देने परीक्षा केंद्र पहुंच गया और तीनों पेपर अच्छी मनःस्थिति से दिए।कुछ समय बाद परीक्षा परिणाम आया और वह यह देखकर चकित रह गया कि उसका चयन उस परीक्षा में हो गया था।
  • लेकिन फिर रोड़ा अटक गया।कुछ अभ्यर्थियों ने हाईकोर्ट में रिट याचिका दायर की और कहा कि ये प्रश्न गलत हैं जिनके उत्तर सही मान लिए गए हैं।हाईकोर्ट ने पुनः उत्तर पुस्तिकाओं की जांच के आदेश दिए।पुनः जांच करके मेरिट लिस्ट निकाली गई तो उस छात्र का फिर से चयन हो गया और आज वह उस जाॅब (नौकरी) को बखूबी कर रहा है।यहाँ सोचने वाली बात यह है कि यदि उसने बहिन के परामर्श को ना माना होता तो वह मनोवांछित जाॅब प्राप्त करने से वंचित रह जाता।इस प्रकार एक छोटी-सी गलती से भी असफलता मिल जाती है।हमें पता नहीं होता है कि हमारा भाग्योदय का अवसर कौन सा है? इस उक्ति को ध्यान रखना चाहिए कि हारिए न हिम्मत बिसारिए न राम।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में असफलता के कारण और निवारण (Causes and Prevention of Failure),अभ्यर्थी असफल क्यों होते हैं? (Why Do Candidates Fail?) के बारे में बताया गया है।

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6.कोचिंग की फीस (हास्य-व्यंग्य) (Coaching Fees) (Humour-Satire):

  • एक छात्र (गणित शिक्षक से):टेलीफोन करके पूछता है कि नाइट क्लास की फीस कितनी है और दिन में पढ़ने की फीस कितनी है।
  • गणित शिक्षक:दिन में पढ़ने की 5000 और रात में पढ़ने की फीस ढाई हजार।
  • छात्र:तो जल्दी से तैयार होकर (रात में) कोचिंग में आ जाइए।मैं अभी (रात को) कोचिंग सेंटर पहुंच रहा हूं।

7.असफलता के कारण और निवारण (Frequently Asked Questions Related to Causes and Prevention of Failure),अभ्यर्थी असफल क्यों होते हैं? (Why Do Candidates Fail?) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.असफलता को दूर करने का लौकिक उपाय क्या है? (What is the cosmic remedy to overcome failure?):

उत्तर:अपनी वास्तविक सामर्थ्य,प्रतिभा,रुचि,मौलिक प्रतिभा को पहचानें और उसी दिशा में,उसी दिशा में लक्ष्य तय करके कठिन परिश्रम करें,स्मार्ट वर्क करें।जीवनशैली को व्यवस्थित करें और स्वभाव में विनम्रता एवं निःस्वार्थता को स्थान दिया जाए।हमेशा अपने चिंतन को सकारात्मक व आशावादी रखें।

प्रश्न:2.जीवनशैली को व्यवस्थित कैसे करें? (How to organize a lifestyle?):

उत्तर:संभव हो तो रात को जल्दी सो जाएं,प्रातः जल्दी उठें।नित्यकर्मों से निवृत्त होकर ध्यान-योग साधना करें और अध्ययन करें।प्रातःकाल वातावरण शांत रहता है तथा मस्तिष्क भी तरोताजा रहता है अतः मस्तिष्क की ग्रहणशीलता अधिक होती है।

प्रश्न:3.क्या चंचल चित्त से सफलता मिल सकती है? (Can a fickle mind lead to success?):

उत्तर:यदि चित्त चंचल है,तो महापुरुषों का सत्संग भी आपको सफल नहीं बना सकता है।चित्त को एकाग्र रखने के उपाय करने चाहिए तभी अन्य तकनीक सफलता प्राप्ति में सहायक हो सकती है।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा असफलता के कारण और निवारण (Causes and Prevention of Failure),अभ्यर्थी असफल क्यों होते हैं? (Why Do Candidates Fail?) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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