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5 Tips for Students to Not Be Indolent

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1.छात्र-छात्राओं के लिए अकर्मण्य न रहने की 5 टिप्स (5 Tips for Students to Not Be Indolent),छात्र-छात्राएँ अकर्मण्य क्यों न रहें? (Why Should Students Not be Indolent?):

  • छात्र-छात्राओं के लिए अकर्मण्य न रहने की 5 टिप्स (5 Tips for Students to Not Be Indolent) के आधार पर छात्र-छात्राएं जान सकेंगे कि अकर्मण्य क्यों नहीं रहना चाहिए? अकर्मण्य का अर्थ है निठल्ला रहना,कुछ भी ना करना,समय को व्यर्थ गँवाना आदि।यह अकर्मण्यता बच्चों में क्यों पैदा होती है?
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2.छात्र-छात्राएँ अकर्मण्य क्यों बनते जा रहे हैं? (Why are students becoming indolent?):

  • आज के समय में बच्चों के अंदर पढ़ाई के प्रति एक तरह से घृणा का भाव जागृत होता जा रहा है;क्योंकि पढ़ाई उनके जीवन में मनोरंजन का साधन नहीं,बल्कि एक तरह का बोझ जैसा होता है,जिसे ढोने के लिए उन्हें विवश होना पड़ता है।
    इसके अलावा माता-पिता उन्हें पढ़ने,स्कूल जाने,होमवर्क करने,अच्छे अंक प्राप्त करने,प्रतियोगिताओं में प्रथम आने के लिए दबाव डालते हैं ना कि प्रेरित करते हैं।
  • इसी तरह अध्यापक भी उन पर होमवर्क पूरा करने के लिए मानसिक दबाव डालते हैं और न करने पर उन्हें सजा दी जाती है।बच्चों को इतना होमवर्क दिया जाता है कि उनका मनोरंजन का समय होमवर्क करने में ही चला जाता है और यदि वे इसे पूरा नहीं कर पाते हैं तो उन्हें अपने टीचर से डांट खानी पड़ती है या टीचर द्वारा बच्चों के अभिभावक को शिकायत करने पर अभिभावक से डांट खानी पड़ती है और इस डाँट के भय से वे स्कूल भी स्वेच्छा से नहीं जानना चाहते या स्कूल न जाने के लिए तरह-तरह के बहाने बनाते हैं।
  • बच्चे सबसे अधिक नकल करते हैं,वे अभिभावक और  अध्यापक ही हैं,लेकिन शायद आज ये लोग ही बच्चों को अपने जीवन से कुछ सार्थक नहीं दे पा रहे हैं,जिसके कारण बच्चे अपने जीवन को समझ सकें।पहले के समय में कहानियों,किस्सों,खेलों आदि के माध्यम से विद्यार्थियों का शिक्षण होता था,खेल-खेल में ही उन्हें बहुत कुछ सिखा दिया जाता था,जिसे वे जीवन भर भूल नहीं पाते थे,लेकिन आज के समय में कॉलेज पास बच्चे भी जीवन मूल्यों से परिचित नहीं है और न उन्हें जानने के इच्छुक हैं।तात्पर्य यह है कि इस उम्र में उनका कोमल मन इतना परिपक्व हो चुका होता है कि वह आसानी से कुछ सीखना नहीं चाहता।
  • वर्तमान समय में बच्चों को माता-पिता जितने अच्छे स्कूल में भर्ती कराते हैं,उतनी ही अधिक स्कूल फीस और बच्चों के लिए नई-नई गतिविधियां होती हैं,जिन्हें बच्चों और उसके माता-पिता को पूरा करना पड़ता है।इन बच्चों को वेल मेंटेंड (well maintained) होना (अच्छी तरह तैयार होना),अंग्रेजी बोलना,स्मार्ट आदि सब सिखाया जाता है,चाहे जीवन में उनकी भूमिका नगण्य हो।
  • एक ही विषय को लगातार पढ़ते रहने से मन धीरे-धीरे ऊबने लगता है तथा वह विषय हमें नीरस व बोझिल लगने लगता है।इसलिए व्यक्ति को अपने अध्ययन में विविधता लानी चाहिए।विविधता का अर्थ यह नहीं है कि हम अपने मुख्य विषय को छोड़कर अन्य सारे विषयों को पढ़ने लग जाएं।विविधता का तात्पर्य सिर्फ इतना है कि हम अपने मुख्य विषय से हटकर कुछ समय के लिए अपनी रुचि के अनुरूप एवं मनोरंजन की दृष्टि से पढ़ें।ऐसा करने से मन को विश्राम मिल जाता है तथा वह पुनः गंभीर विषय को धारण करने योग्य हो जाता है,जिससे मुख्य विषय के प्रति हमारी रुचि बनी रहती है।

3.कर्म ही जीवन है (Action is life):

  • कर्म ही जीवन है और अकर्मण्यता ही मृत्यु है।जीवन में विद्यार्थी को कर्म तो करना ही पड़ता है।यदि वह कुछ भी नहीं करता तो ‘कुछ नहीं करना’ यह भी तो कर्म करना ही हुआ।विद्यार्थियों को अकर्मण्य बनाने में माता-पिता,शिक्षक,वातावरण,परिवेश आदि जिम्मेदार है।आज पाठ्यक्रम में ऐसी-ऐसी पुस्तकें पढ़ाई जाती हैं जिनका जीवन में कोई उपयोग नहीं होता है और होता भी है तो बहुत कम।ऊपर से शिक्षकों,माता-पिता,अभिभावकों और अन्य लोगों का दबाव रहता है कि उसे अव्वल आना है।इस प्रकार उसे अध्ययन से घृणा सी होने लगती है।
  • जीवन में कठिन परिश्रम,कर्म किए बिना कुछ नहीं मिलता।यह सोचना कि अपने आप ही सब कुछ हो जाएगा-उस रहस्य को समझने की भूल करता है- जिसका निहितार्थ परिश्रम है।छल से या धोखा देकर किया गया परिश्रम,भगवान के फल की प्राप्ति का कारण नहीं बन सकता।गीता में भी कहा है कि कर्म करो और फल की चिंता छोड़ दो क्योंकि फल प्राप्त करना हमारे हाथ में है ही नहीं।कर्म का फल भगवान के विधि-विधान के अनुसार मिलता है।अर्थात् भगवान आपके कर्म का मूल्यांकन करके,उसके अनुरूप फल देगा।इसलिए कर्म तो अनिवार्य है किंतु उसके मर्म को समझना भी जरूरी है ताकि आप सही अर्थों में परिश्रम कर सकें।
  • प्रतिभा महान् कार्यों का प्रारम्भ करती है,किन्तु कर्म ही उसको समाप्त करता है।यदि आप में किसी कार्य की प्रतिभा है और आप उसका उपयोग करने के लिए नहीं करते हैं-तो वह व्यर्थ जाएगी।विद्यार्थी में परीक्षा में सफलता प्राप्ति की प्रतिभा है,किंतु वह कठिन परिश्रम नहीं करेगा,अध्ययन नहीं करेगा,कड़ी मेहनत नहीं करेगा तो उसके द्वारा अच्छे प्राप्त करना तो दूर वह परीक्षा में सफल भी नहीं हो पाएगा।आप प्रतिभाशाली हैं,हर कक्षा में प्रथम आए हैं किंतु प्रवेश परीक्षा में उत्तीर्ण होने के लिए और भी कठिन परिश्रम करना होगा।यदि आप कठिन परिश्रम नहीं करेंगे तो पास कैसे होंगे।भगवान का दिया फल भी तभी मिलेगा,जब आप उचित तरीके से,उचित विधि से कठिन परिश्रम करेंगे।इसलिए कहा गया है कि ‘कठिन परिश्रम ही उज्जवल भविष्य का पिता है।’
  • हर गणितज्ञ और वैज्ञानिक कठिन परिश्रम करते हैं,कठिन परिश्रम को महत्त्व देते हैं।उनके सहयोगियों को भी कठिन परिश्रम करना पड़ता था,चाहे वह उनका कितना ही निकट का संबंधी हो।जो विद्यार्थी बिना परिश्रम किये अथवा गलत तरीके अपनाकर परीक्षा में उत्तीर्ण करने के लिए परिश्रम करते हैं वे चोर-उचक्के हैं।जिनके भाग्य से छींका टूट जाता है।परंतु देर-सबेर उन्हें अपने अनैतिक,गलत तरीकों के परिणाम भुगतने पड़ते हैं।भगवान के घर देर है पर अंधेर नहीं हैं।अतः विद्यार्थियों को कार्य में निष्ठा रखनी चाहिए,कठिन परिश्रम से जी नहीं चुराना चाहिए।शुरू में कठिन परिश्रम का परिणाम दिखाई नहीं देता है लेकिन धैर्यपूर्वक लगातार कठिन परिश्रम करने पर उनके सुपरिणाम अवश्य मिलते हैं।इसलिए कठिन परिश्रम से मुँह न मोड़े,चाहे वह कितना ही कठिन क्यों न हो।चाहे कितना ही कष्ट भोगना पड़े।किंतु अंत में विजय आपकी ही होगी।सच्चा परिश्रम कभी व्यर्थ नहीं जाता।

4.अध्ययन को जीवन में उतारे (Take the study to life):

  • एक बालक को 10 वर्ष की आयु में स्कूल जाना छुड़ा दिया गया,क्योंकि पिता गरीब था।प्रतिकूल परिस्थितियाँ होने पर भी वह कुछ ना कुछ पढ़ने का अवसर निकाल लेता और प्रत्येक पढ़े हुए पर विचार किया करता तथा उन्नति के अनेक मनसूबे बनाया करता।इस बालक की जीवनी से पता चलता है कि उसकी क्रियाशीलता व प्रतिभा विलक्षण थी।पुस्तकें पढ़ने का उस पर तुरंत प्रभाव होता और वह प्रभाव उसके जीवन में कोई ना कोई परिवर्तन ही लाने वाला होता।जाॅब में ईमानदारी,लोगों की सहायता और राजनीतिक धड़ेबाजी से संघर्ष करने की हिम्मत भी उसे ऐसे ही मिली,पर मुसीबत्ती यह थी कि वह ज्यादा पढ़ा-लिखा नहीं था।
  • एक दिन फ्रैंकलिन की जीवनी पढ़ रहा था।फ्रैंकलिन को भी 10 वर्ष की आयु में पढ़ाई छोड़नी पड़ी थी,पर उसने अपने अध्यवसाय से स्वतः ही दुनिया की पांच भाषाएं सीखीं थी और एक साथ वैज्ञानिक,दार्शनिक एवं राजनैतिक के रूप में विश्व विख्यात हुआ।यह पढ़कर उस युवक ने विचार किया कि क्या वह दूसरा फ्रैंकलिन नहीं बन सकता? बन सकता है,उसके मन ने कहा,अध्यवसाय से क्या संभव नहीं? वह उस दिन से पढ़ने लगा।अंग्रेजी,चिली,फ्रेंच आदि कई भाषाएं उसने सीखी और राजनीति में भाग लेने लगा।इस पर उसे देश निकाला दे दिया गया।बहुत दिनों तक चिली में रहकर वह देश में चल रहे स्वार्थवादी राजनीति के विरुद्ध संघर्ष करता रहा।उसने पत्रकार के रूप में अर्जेंटीना निवासियों को भ्रष्टाचार के विरुद्ध संगठित किया और एक दिन विद्रोह की ज्वाला फूट पड़ी।
  • वह युवक अपने देश लौटा और एक दिन अर्जेंटीना का उपराष्ट्रपति बना।इस महत्त्वपूर्ण पद पर पहुंचकर भी उसने नियमित कर्म का मार्ग नहीं छोड़ा।उसने अर्जेंटीना को साक्षर बनाने का अभियान चलाया और उसे इतना तीव्र किया कि आज अर्जेंटीना विश्व के देशों में सबसे अधिक शिक्षित देश है।अमेरिका तक ने उसकी सेवाएं कीं।एक पुस्तक की प्रेरणा ने इस युवक को ‘डोमिंगो फास्टिनो सारमिन्टो’ के नाम से विश्वविख्यात कर दिया।

5.बचपन से ही कर्म करने की प्रेरणा दें (Inspire you to work from childhood):

  • छोटे से बालक में ही पढ़ने के द्वारा कर्म करने के लिए प्रेरित करते रहना चाहिए इससे बच्चों में अध्ययन के प्रति रुचि और कर्म में निष्ठा जागृत होगी।जब दोस्त मौज मस्ती,मटरगश्ती कर रहे हों,तो बच्चे को कोई कहानी,कविता,प्रेरक प्रसंग,धार्मिक साहित्य,सत्साहित्य की पुस्तकें पढ़ने के लिए प्रेरित करें।महापुरुषों,महान् गणितज्ञों,वैज्ञानिकों की जीवनियों में इतनी प्रेरणा होती है कि वे सोते हुए छात्र-छात्रा को भी जगा देती हैं क्योंकि उनमें उन महान् गणितज्ञों के जीवन के कड़वे और सच्चे अनुभव वर्णित होते हैं जो आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते रहते हैं।
  • परंतु बेकार किस्म के उपन्यास,नाटक,कहानियों की पुस्तकें पढ़ने के लिए ना दें क्योंकि ऐसे साहित्य से मन में कूड़ा-करकट भर जाता है।छात्र-छात्रा का थोड़ी देर के लिए भले मनोरंजन हो जाए परंतु ऐसा साहित्य छात्र-छात्रा को पतनोन्मुखी बनाता है।उन्हें रचनात्मक,निर्माणात्मक,रुचिकर,प्रेरक और जीवन को उन्नत करने वाले साहित्य का अध्ययन करने संबंधी पुस्तकें दें जिससे उनके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन हों।अच्छी पुस्तकें,अच्छी कहानियां,प्रेरक प्रसंग सुनाने से छात्र-छात्राओं में बुराइयों का समावेश नहीं होता है।
  • एक अच्छा साहित्य छात्र-छात्रा को शिखर की ओर,उन्नति की ओर ले जाता है तो एक खराब,गंदे,ऊटपटांग साहित्य उनके मन को दूषित करके रसातल की ओर ले जाता है।
  • तात्पर्य यह है कि अकर्मण्यता का जीवन में प्रवेश करने पर छात्र-छात्रा आलसी,निठल्ला,निकम्मा हो जाता है तो कर्म (उचित कर्म) करके एक छात्र-छात्रा सच्चा कर्मयोगी,उन्नति की ओर जाने वाला,एक श्रेष्ठ नागरिक,माता-पिता का यश फैलाने वाला,देश व समाज में लोगों को प्रेरित व आगे बढ़ने वाला बन जाता है।
  • छात्र-छात्रा के लिए  दोनों ही ओर जाने के रास्ते खुले रहते हैं,वह चाहे तो उन्नति,विकास,उत्थान,प्रगति कर सकता है और चाहे तो पतन,अवनति,विनाश का मार्ग अपनाकर रसातल में जा सकता है।लेकिन तब लोगों के निंदा का पात्र बनता है।माता-पिता,शिक्षकों व छात्र-छात्रा को स्वयं तय करना है कि वह कौन-सा रास्ते पर चलकर किस तरफ जाना चाहता है।अकर्मण्यता  का मार्ग लुभावना जरूर लगता है परंतु उसका अंत बुरा होता है,जिल्लत,अपमान,निंदा,तिरस्कार आदि का पात्र बनता है तथा कर्म करके,निरंतर कर्मयोगी बनकर सम्मान,यश,प्रशंसा का पात्र बनता है।
  • पढ़ते तो सभी हैं,कर्म भी करते हैं पर पढ़कर अपने जीवन को महान बनाने का अवसर कुछ लोगों को ही मिलता है।क्योंकि वे कर्म का,सत्कर्म का मार्ग कभी नहीं छोड़ते हैं,जो बीच मार्ग में प्रलोभनों में फंस जाते हैं तो उनका पतन चालू हो जाता है।ऐसे छात्र-छात्रा न इधर के रहते हैं न उधर के।संपूर्ण सृष्टि की तरफ देखो चर-अचर सभी तथा प्राणीजगत कर्म में तत्पर हैं।अतः कर्म का त्याग नहीं करना चाहिए,कर्म ही जीवन है,कर्म ही पूजा और आराधना है।जो छात्र-छात्रा कर्म में निष्ठा रखकर अध्ययन को पूजा और आराधना समझकर करता है वह अलौकिक आनंद की अनुभूति करता है परंतु जो भार व बोझ समझ कर करता है उसे अध्ययन (कर्म) में बोरियत और ऊब महसूस होने लगती है।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में छात्र-छात्राओं के लिए अकर्मण्य न रहने की 5 टिप्स (5 Tips for Students to Not Be Indolent),छात्र-छात्राएँ अकर्मण्य क्यों न रहें? (Why Should Students Not be Indolent?) के बारे में बताया गया है।

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6.छात्र के काम न करने का नाटक (हास्य-व्यंग्य) (Pretending Student Does Not Work) (Humour-Satire):

  • शिक्षक (पिंटू से):आज रिवॉर्ड मिलेगा,इसे कौन लेगा?
  • पिंटू:मैं लूँगा।
  • मैडम:आज प्रशंसा पत्र मिलेगा,उसे कौन लेगा?
  • पिंटू:मैं लूँगा।
  • मैडम:अच्छा,सभी कमरों में परीक्षा के लिए टेबल-स्टूल को रखवाने में कौन मदद करेगा?
  • पिंटू:मैडम आप सारा काम मुझसे ही करवाओगी या अन्य छात्र-छात्राओं से भी कुछ काम करवाओगी?

7.छात्र-छात्राओं के लिए अकर्मण्य न रहने की 5 टिप्स (Frequently Asked Questions Related to 5 Tips for Students to Not Be Indolent),छात्र-छात्राएँ अकर्मण्य क्यों न रहें? (Why Should Students Not be Indolent?) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.महाभारत में अकर्मण्य और कंजूस व्यक्ति के लिये क्या कहा गया है? (What does the Mahabharata say about the indolent man?):

उत्तर:महाभारत में अकर्मण्य और कंजूस व्यक्ति के लिए कहा गया है कि इन दोनों प्रकार के व्यक्तियों के गले में पत्थर बांधकर जल में डुबो देना चाहिए।

प्रश्न:2.अध्ययन क्यों करना चाहिए? (Why should you study?):

उत्तर:अध्ययन खण्डन और असत्य सिद्ध करने के लिए न करो,न विश्वास करके मान लेने के लिए करो,ना बातचीत और विवाद के लिए करो बल्कि मनन और परिशीलन के लिए करो।

प्रश्न:3.अकर्मण्य व्यक्ति की क्या दशा होती है? (What is the condition of an indolent person?):

उत्तर:पुरुषार्थी मनुष्य सर्वत्र भाग्य के अनुसार प्रतिष्ठा पाता है,परंतु जो अकर्मण्य है,वह सम्मान से भ्रष्ट होकर घाव पर नमक छिड़कने के समान असह्य दुःख,कष्ट और अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ता है।वह मनुष्य जीवन को भार स्वरूप समझकर ही जीता है और इस संसार में कुछ भी न करके जैसे आया था वैसे ही विदा हो जाता है।अकर्मण्यता मानवता के नाम पर कलंक और मृत्यु है।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा छात्र-छात्राओं के लिए अकर्मण्य न रहने की 5 टिप्स (5 Tips for Students to Not Be Indolent),छात्र-छात्राएँ अकर्मण्य क्यों न रहें? (Why Should Students Not be Indolent?) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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