Let Move Forward to Achieve Goal
1.लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए आगे बढ़ते चलो (Let Move Forward to Achieve Goal),लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए रुको मत (Do Not Stop to Achieve Goal):
- लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए आगे बढ़ते चलो (Let Move Forward to Achieve Goal) का यह द्वितीय भाग (part-2) है।आगे बढ़ते चलो,उन्नति की ओर बढ़ते जाना ही जीवन है,रुक जाना,ठहर जाना,कुछ भी ना करना ही मृत्यु है।चैतन्य न होकर काम करना,होशपूर्वक कार्य न करना,सजग होकर कार्य न करना शरीर शव के समान है।शव भी कोई कार्य नहीं करता और चेतनहीन होने पर भी कुछ कार्य नहीं होता।
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2.संकल्प शक्ति का महत्त्व (Importance of Determination):
- किसी आकस्मिक घटना पर गूंगे भी बोल उठते हैं,लंगड़े दौड़ पड़ते हैं।परंतु कभी-कभी इसके विपरीत भी घटित हो जाता है।मनुष्य एक पल में वाणी खो देता है,अपनी स्मृति गँवा देता है।यह सब मन की इसी शक्ति का चमत्कार है।मन में छिपी यह असीम शक्ति ही मनुष्य को उन्नति की ओर ले जाती है।अपने काम को पूर्ण करने का संकल्प शारीरिक उत्साह की सबसे बड़ी कुंजी है।कर्त्तव्य-पालन का निर्धारण करके ही हमारे शरीर में अपूर्व साहस आ जाता है।कर्त्तव्य की पुकार हमें सजग बना देती है।आलस्य इस प्रकार भाग जाता है जैसे सूर्य निकलने पर अंधकार।मनुष्य तब अकर्मण्यता की जंजीरें तोड़कर अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए कमर कसकर निकल पड़ता है।
- सफलता संकल्प का ही दूसरा नाम है।मन इन संकल्पों का जन्मदाता है।अतः मन को कभी जंग न लगने दें।हमारा मन सक्रिय है,तो हम बराबर उन्नति की ओर बढ़ सकते हैं।
- हमारा मन अनेक प्रकार की शक्तियों का भंडार है।मन की सभी शक्तियां हमारी मित्र हैं।मन की दृढ़ता से व्यक्तित्व का तथा व्यक्तित्व से जीवन का निर्माण होता है।मन के प्रति आस्थावान होना उन्नति की पहली सीढ़ी है।यही आस्था व्यक्ति में आत्मविश्वास जगाती है।इसी आत्मविश्वास की सहायता से व्यक्ति अपने मन की बिखरी हुई शक्तियों को एकत्रित कर अपनी सफलता का मार्ग प्रशस्त कर सकता है।उसके भीतर निर्बलता के स्थान पर दृढ़ता का जन्म होता है।वह दुर्भाग्य,संकटों से लड़कर विजयी होता है।हंसते हुए हर दुःख,हर मुसीबत का सामना करता है।
- आवश्यकता इस बात की है कि अपने आपको अशक्त महसूस करने की बजाय,सशक्त और समर्थ महसूस किया जाए।
आत्मबल की भावना का जीवन में वही स्थान है,जो शरीर में रीड की हड्डी का है।मनुष्य के जीवन में पग-पग पर संकट आते हैं,इन संकटों का सामना करने के लिए धैर्य की आवश्यकता है।धैर्य ही मनुष्य को विजयी बना सकता है।संकटों पर विजय पाने का यही एकमात्र उपाय है।
- विपन्नता की दशा में उन्नति का संकल्प बड़ा प्रेरणादायक होता है।बिगड़ी हुई हालत में यह कहने वाला व्यक्ति:मेरी दशा खराब है तो क्या हुआ,मैं अपनी शक्ति और संकल्प के बल पर सुधार करके रहूंगा-ऐसा व्यक्ति सचमुच अपनी दशा सुधार लेता है और उन्नति की ओर बढ़ने लगता है।पुरुषार्थ प्रत्येक संकट का अचूक इलाज है।भविष्य के प्रति आशावान रहने वाला व्यक्ति निश्चित रूप से उन्नति करता है।जिंदगी पुरुषार्थ करने वाले की गुलामी करती है।भाग्य केवल परिश्रमी व्यक्तियों का साथ देता है।भगवान भी उनकी ही सहायता करता है जो,अपनी सहायता खुद करते हैं।
- एक विद्यार्थी का चयन आईआईटी के लिए हो गया था।वह हॉस्टल में रहता था।उसकी पढ़ाई का खर्चा प्रतिमाह घर से आता था।अचानक घर से खर्च आना बंद हो गया।पता चला कि पिताजी का धंधा ठप्प हो गया है और वे खर्चा भेजने में असमर्थ हैं।विद्यार्थी के सामने संकट खड़ा हो गया।उसने संकल्प किया कि कुछ भी करना पड़े वह पढ़ाई (आईआईटी) अवश्य करेगा।उसने विवेक से काम लिया।प्रतिदिन जो समय यार-दोस्तों में बैठकर गपशप में गुजार दिया करता था,उसका उपयोग कर ट्यूशन करना ठीक समझा।उसे ट्यूशन मिल गए।वह सफल हो गया।उसने तब घर से खर्चा लेना बंद कर दिया।वह आईआईटी में बीटेक की डिग्री लेकर एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में इंजीनियर बन गया।अगर उसने विवेक और साहस से काम न लिया होता तो गयी-गुजरी जिंदगी गुजार रहा होता।
- बहुत-से ऐसे नौजवान हैं,जो अपने माता-पिता की संपन्नता के बावजूद ट्यूशन या पार्ट टाइम काम कर अपनी पढ़ाई का सारा खर्चा स्वयं निकालते हैं।एक पैसा अपने मां-बाप से नहीं लेते।ऐसे युवकों को उन्नति की ओर बढ़ने से कौन रोक सकता है।
3.अध्ययन के प्रति आस्था रखें (Have faith in study):
- संकट का सामना करते हुए,उन्नति की ओर बढ़ने के लिए मन का अस्थावान होना जरूरी है।अपने कार्य और कर्म के प्रति रुचि अनिवार्य हैं।तुच्छ और हीन विचारों वाला व्यक्ति कभी उन्नति नहीं कर सकता।यह बात उतनी ही सच है जितनी यह की उत्तम विचारों वाला व्यक्ति कभी असफल नहीं हो सकता।आशावान होने के साथ-साथ सशक्त होना बहुत जरूरी है।जिंदगी का संघर्ष बड़ा कठोर है।दुर्बल व्यक्ति तो उसमें वैसे ही पिसकर रह जाता है।मनहूसियत,उद्विग्नता और अरुचि तो दुर्बलता की निशानियां हैं।यही दुर्बलताएं मनुष्य को विनाश की ओर ले जाती है।परिस्थितियों के विरुद्ध लड़ने वाले व्यक्तितियों को अपने भीतर शक्ति का संचय करना चाहिए।यह शक्ति निरंतर कार्यान्वयन से आती है।आशावादी भी व्यक्ति तभी बन पाता है जब उसकी नसों में बहने वाला खून गर्म तथा प्रेरित करने वाले आदर्श सुखदायी हैं।विश्व के तमाम सफल व्यक्ति आशावादी थे।यदि वे आशावादी ना होते तो सफलता प्राप्त नहीं कर पाते।आशावाद व्यक्ति को हंसकर जीना सिखाता है।मन के यही विचार उसके व्यक्तित्व का निर्माण करते हैं।अपने व्यक्तित्व के बल पर वह एक दिन सुख-समृद्धि की चरमसीमा को छू लेता है।
4.मन में सुविचारों को स्थान दें (Give space to good thoughts in your mind):
- एक प्रसिद्ध सूक्तिकार ने कहा है,”मैं केवल उल्लास के क्षण याद रखता हूं।” यह बड़ी मार्मिक उक्ति है।यदि हम इसे चरितार्थ करते हैं तो जीवन का रंग कुछ और ही होता है।इसमें बहुत से छात्र-छात्राएं अध्ययन में आने वाली कठिनाइयों,कष्टों और समस्याओं को याद रखते हैं।कभी भी समस्याओं से घबराए नहीं बल्कि ये आपके व्यक्तित्व का निर्माण करने के लिए आती हैं।समस्याओं से घबराने जैसी बात आपके जीवन से प्रकट नहीं होनी चाहिए।विपत्तियाँ आएं तो हंसते हुए उनका सामना करें।आशावादिता ही आपके जीवन का उज्जवल पक्ष दिखलायेगी।अपने मस्तिष्क और मस्तिष्क के विचारों पर नियंत्रण रखें।विचारों को योजनाबद्ध तरीके से ही रखें।
- अपने दिमाग में व्यर्थ का कूड़ा-कर्कट जमा करने की आवश्यकता नहीं है।कुछ लोग अपने दिमाग को लोकल ट्रेन के समान बना लेते हैं जिसमें जो भी आया बैठता चला जाता है।ऐसे ही लोग हर एक के विचार अपने दिमाग में बैठाते चलते हैं।जो धंसता चला गया।भीड़ हो गयी।विचार ताबड़तोड़ ठूँस-ठूँस कर भर गए।बस! इस दशा में आदमी कहीं का नहीं रह जाता।मस्तिष्क को ऐसा कभी ना बनाएं।मस्तिष्क इस शरीर का सबसे बड़ा कारखाना है।उसको कबाड़खाना मत बनाइए।
- मनुष्य का कर्त्तव्य है कि वह मन की समस्त शक्तियों को केंद्रित कर मस्तिष्क की क्षमताओं का विकास करे।अपने संयम से उन तमाम विचारों से बचना चाहिए जिनका प्रभाव आपके मस्तिष्क के लिए हानिकारक है।बादलों से ढके आकाश के कारण सितारों को नहीं देखा जा सकता।इसी प्रकार जब मस्तिष्क धुंधला पड़ जाएगा तो विचारों के सितारे आप नहीं देख सकेंगे।अपने मस्तिष्क के आकाश को एकदम निर्मल रखिए।आलस्य भरे या गलत विचारों को पास न फटकने दें।मस्तिष्क का निर्माण उच्च-विचारों के लिए किया गया है।अच्छे विचार ही हमेशा अपने मन में लायें।
- कुरुचिपूर्ण विचारों से बचना,उनका आना रोकने से बचाना,बड़ा कठिन है।इसके लिए पर्याप्त संयम की आवश्यकता होती है।आपके मन में विचारों की रेलमपेल होती है तो आत्मविश्वास का सहारा लीजिए।अपने मन को तत्काल अच्छी बातों की ओर घुमाइए।ज्यादा परेशानी हो तो ध्यान (mediation) में बैठ जाइए या फिर अध्ययन में मन को लगाइए।
- मन को एकाग्र करने के उपायों से मन एकाग्र होने लगता है और धीरे-धीरे एकाग्रता सधने लगती है।मन को एकाग्र करने के उपाय के लिए इस वेबसाइट पर लेख मिल जाएंगे,उन्हें पढ़कर मन को एकाग्र करने के उपाय कर सकते हैं।दूषित विचार,कुविचार आपके मन और शरीर दोनों को दूषित कर डालते हैं।आपकी कार्यक्षमता में बाधा बन जाते हैं।दूषित मस्तिष्क जीना दूभर कर देता है।हमारा हर काम बिगाड़ देता है।हमें दूसरों से घृणा होने लगती है और दूसरों से घृणा करते-करते हम स्वयं घृणा की प्रतिमूर्ति बन जाते हैं।
- जिस प्रकार आज तक कोई भी आदमी काजल की कोठरी से बेदाग नहीं निकल सका है,इसी प्रकार कुविचार हमारे जीवन में दाग लगा जाते हैं।
- विचार व्यक्तित्व का निर्माण करते हैं।शुद्ध विचारों वाला व्यक्ति ही सफलता प्राप्त कर सकता है।मन को हमेशा उत्तम विचारों से घेरे रखें।मन एक खेत के समान है।जिस प्रकार के बीज आप इस खेत में डालेंगे,वैसी ही आपकी फसल होगी।सुविचारों से ही आपका भविष्य समृद्ध होगा।
- शरीर मस्तिष्क का एक बिम्ब है।सुंदर विचारों से भरे मनुष्य का शरीर फूलों से भरी वाटिका के समान लहलहाता रहता है।सुंदर विचार आपको अच्छे कार्य करने के लिए प्रेरित करेंगे।इस कारण अगर आप उन्नति की ओर बढ़ना चाहते हैं,तो मस्तिष्क को सुंदर बनाएं रखें।सफलता प्राप्त करने के लिए,आगे बढ़ने के लिए एक अनिवार्य शर्त है,जब तक आप ऐसा नहीं कर पाते हैं,तब तक आपकी प्रगति के द्वार बंद रहेंगे।
5.अपना लक्ष्य तय करें (Set your goal):
- दो युवा छात्र थे।एक अत्यंत रूपवान था और दूसरा कुरूप था।दोनों एक साथ कॉलेज जा रहे थे।अचानक कॉलेज की तरफ जाती हुई एक सुंदर छात्रा पर उनकी नजर पड़ी।लड़कियों और स्त्रियों में एक विशेषता होती है कि चेहरे के हावभाव देखकर वे मन के भावों को ताड़ लेने की,पढ़ लेने की क्षमता रखती हैं।रूपवान युवक उसे घूरने लगा जबकि कुरूप छात्र ने नजरें झुका ली।
- रूपवान युवक की ओर घृणा से देखकर वह सुंदर छात्रा कुरूप छात्र के पास गई और उसके साथ-साथ चलने लगी।रूपवान युवक छात्र यह देखकर हैरान रह गया।कुरूप युवक ने ऐसा करने का कारण पूछा,तो उस छात्रा ने कहा, “मुझे देखकर तुम्हारे मन में गंदे विचार नहीं आए।मन-ही-मन तुम मेरे रूप की प्रशंसा कर रहे थे।पर वह रूपवान छात्र मुझे देखकर ही सेक्स,भोग-विलास की कल्पनाओं में खो गया।वह एकटक मेरे अंगों को देखकर नाना प्रकार की कल्पना करने लगा।यहाँ हमारा लक्ष्य अध्ययन करके काबिल बनना है।छात्र जीवन में इस तरह की बातों (सेक्स) से दूर रहेंगे तभी अध्ययन कर सकेंगे।ऐसे बिगड़ैल छात्रों से तुम मुझे सुरक्षा प्रदान कर सकते हो।तुम्हारा विचार सुंदर है।
- मन की सुंदरता सब कुछ है।शारीरिक सुंदरता क्षणिक होती है,जिसके ढलते ही सारा खेल समाप्त हो जाता है।अतएव अपने मन को हमेशा सुविचारों से भरा रखें और अपने लक्ष्य (अध्ययन) पर नजर रखें।सफलता की सुंदरी एक न एक दिन आपका वरण अवश्य करेगी।इस बात का आप पूरा विश्वास रखें।
- जीवन केवल खाने-पीने,मौज मनाने या भोग-विलास के लिए नहीं मिला है।कुछ करने के लिए मिला है।अतएव कोई ना कोई लक्ष्य बनाइये और आगे बढ़िये।आखिर आप क्या करते हैं? आप अपना अधिकांश समय व्यर्थ के कार्यों में लगा देते हैं।आपके पास समय बहुत है।आप उसका उपयोग करना सीखिए।जब आप उसका उपयोग करेंगे तो चमत्कारी परिणाम आपके सामने आएंगे।आप कुछ दिन अपने समय का सदुपयोग तो करके देखें।बहुत लोग यह सोचते हैं कि उनके पास समय ही कहां है कि वह कुछ कर सकें।खाने-कमाने से ही फुर्सत नहीं मिलती।उनका इस प्रकार सोचना गलत है।इस प्रकार के व्यक्तियों के पास तो औरों से अधिक समय होता है।
- सबके पास समय है।कमी है,तो केवल निश्चय की,दृढ़संकल्प की।इसी कमी के कारण हम जीवन में कुछ नहीं कर पाते हैं।आप स्वयं इस पर सोचें।आपको क्या करना है? क्या बनना है? कैसे आगे बढ़ना है? स्वयं आपको इसका रास्ता मिल जाएगा।किसी के पास जाने या किसी की भी राय लेने की कोई आवश्यकता नहीं है।अपना निर्णय स्वयं करिए और उस मार्ग पर चल पड़िए सफलता आपके पास आकर ही रहेगी।यह निश्चित है।समय हर एक व्यक्ति के पास है।हर एक प्रकार से प्रत्येक व्यक्ति समय निकाल सकता है।बस! इच्छा भर हो।एक-एक मिनट का भी प्रतिदिन उपयोग करके लोग क्या से क्या हो गए।
- जो लोग निराशा को त्याग कर आगे बढ़ते हैं,उनके पास दुनिया-जहान की दौलत अपने आप आ जाती है।जो जिंदगी में कुछ करते हैं,सफलता न केवल उनके कदम चूमती है बल्कि पूरी दुनिया उन्हें प्रसन्नता व आदर की दृष्टि से देखती है।
- एक युवक के घूमने-फिरने,मौज-मस्ती करने का शौक था।इस कार्य में वह घंटों व्यतीत कर देता था।एक बार मोबाइल पर वीडियो देखने पर कंटेंट राइटर बनने के बारे में प्रेरक प्रसंग देखा।वह घंटों मौज-मस्ती के समय को बचाकर कन्टेन्ट लिखने का अभ्यास करने लगा।उसे अच्छा और प्रभावी लेख लिखने के लिए 3 साल का समय लग गया।इन 3 साल के पीरियड में उसने अनेक पुस्तकें पढ़ी।प्रेरक वीडियो देखे।कई वेबसाइट्स पर लेख लिखने के तरीके पढ़े।3 साल बाद वह कंटेंट राइटर बन गया और कंटेंट राइटर हायर करने वाली वेबसाइट्स पर कंटेंट लिखने लगा।उसे अच्छी खासी आमदनी होने लगी।व्यक्ति अपना लक्ष्य तय करके उसमें अपने आपको पूरी तरह झोंक दे तो क्या नहीं किया जा सकता है।
- उपर्युक्त आर्टिकल में लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए आगे बढ़ते चलो (Let Move Forward to Achieve Goal),लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए रुको मत (Do Not Stop to Achieve Goal) के बारे में बताया गया है।
Also Read This Article:4 Tips to Achieve Goals for Students
6.नकली और असली संख्या (हास्य-व्यंग्य) (Fake and Real Numbers) (Humour-Satire):
- गणित शिक्षक:बताओ संख्या किसे कहते हैं।
- छात्र:सर,कौन सी संख्या की परिभाषा देनी है?
- गणित शिक्षक:क्या मतलब?
- छात्र:सर,संख्याएं दो प्रकार की होती है नकली और असली।
- शिक्षक:ये नकली और असली संख्या कौन सी आ गई?
- छात्र:0 से 9 तक असली संख्याएँ हैं,वे असली हैं और इनसे जो संख्याएं बनती है 18,20,21 आदि नकली संख्याएं हैं।
7.लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए आगे बढ़ते चलो (Frequently Asked Questions Related to Let Move Forward to Achieve Goal),लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए रुको मत (Do Not Stop to Achieve Goal) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:
प्रश्न:1.संकल्प से क्या आशय है? (What do you mean by resolution?):
उत्तर:मन संकल्प का ही दूसरा नाम है।मन इन संकल्पों का जन्मदाता है।अतः मन को कभी जंग ना लगने दें।मन में शुभ संकल्प ही करें।अशुभ संकल्प हमारे पतन का जिम्मेदार है।हमारा मन सक्रिय है और शुभ संकल्प सक्रिय रहते हैं तो हम बराबर उन्नति की ओर बढ़ सकते हैं।
प्रश्न:2.संकल्प और कामनाओं में क्या फर्क है? (What is the difference between determination and desires?):
उत्तर:संकल्प में निश्चित लक्ष्य तक पहुंचने के लिए अभीष्ट पुरुषार्थ करने की लगन होती है,उसमें प्रतिफल के लिए उतावली नहीं होती,उसका निश्चय होता है।उतावली में आदमी समय अधिक लगने पर अधीर हो उठता है।व्यवधान पड़ जाने पर भी उसे अपनाए रहने और कठिनाइयों से जूझते रहने का साहस नहीं होता।संकल्प में इच्छाशक्ति और भावनाशक्ति दोनों ही जुड़ी होती है।उसकी रूपरेखा विचारपूर्वक बनाई जाती है और उसे उपलब्ध करने के लिए जिन साधनों और सहयोग की अपेक्षा है,उनकी भी समय रहते व्यवस्था जुटा ली गई होती है।उसके पीछे सुनियोजित भावना रहती है,किंतु मनोकामना तो एक प्रकार का भावावेश है।उसके पीछे न दूरदर्शी विवेकशीलता का समावेश होता है और न समुचित तैयारी वाली परिकल्पना एवं साधन संपन्नता।
प्रश्न:3.संकल्प कैसे पूरे होते हैं? (How are resolutions fulfilled?):
उत्तर:संसार का कोई कार्य इतना सरल नहीं है कि वह चुटकी बजाते तुरत-फुरत पूरा हो जाया करे।सभी प्रयासों के लिए प्रतिस्पर्धा में उतरना पड़ता है और अपनी क्षमता का इतना विकास करना पड़ता है कि कठिनाइयां विचलित नहीं कर सके तथा देर लगने पर मन उतावली न करने लगे।कामनाएं उबलते दूध के समतुल्य खाली बर्तन को भी भरा दिखा देती है और कुछ ही समय में बैठ भी जाती हैं,किंतु संकल्प शब्दभेदी बाण की तरह है,जो निशाना बेधकर ही रहता है।हम कामनाओं की नहीं,संकल्पों की पूर्ति में अपना पुरुषार्थ जुटाएँ यही उचित है।
- उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए आगे बढ़ते चलो (Let Move Forward to Achieve Goal),लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए रुको मत (Do Not Stop to Achieve Goal) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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Satyam
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