1.दूसरों के दोष देखना कैसे छोड़े? (How to Stop Seeing Faults of Others?),दूसरों के दोष-दुर्गुण देखना कैसे छोड़ें? (How to Stop Seeing Faults and Vices of Others?):
दूसरों के दोष देखना कैसे छोड़े? (How to Stop Seeing Faults of Others?) क्योंकि दोष-दुर्गुण देखने से न तो स्वयं का भला होता है और ना दूसरों का भला होता है।इसके विपरीत दोष-दुर्गुण देखने से स्वयं का ही अहित होता है।दूसरों के दोष-दर्शन से ना तो उसके दोष-दुर्गुण दूर हो सकते हैं और न ही स्वयं के।
हालांकि यदि दूसरों के दोष-दुर्गुण इस दृष्टिकोण से देखते हैं कि वैसे दोष-दुर्गुण आपके अंदर न आ जाएं तो बात दूसरी है। दोष-दुर्गुणों को कैसे दूर करें,इसको जानने से पहले यह जानना जरूरी है कि दूसरों में या स्वयं में दोष-दुर्गुण क्यों न देखें और यदि देखें तो किस दृष्टिकोण से देखें अथवा किस तरीके से देखें।
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यदि शांति चाहो तो किसी का दोष मत देखना।दोष देखना केवल अपना।संसार को अपना बना लेना सीखो।कोई पराया नहीं है,यह सारी दुनिया तुम्हारी अपनी है।जिसने दोष-दुर्गुण देखे हैं,उसका पारिवारिक,सांसारिक जीवन दुखों और कष्टों से भरा हुआ ही रहा है।
किसी का दोष देखने या उसके बारे में नकारात्मक सोचने से अपने मन में भी उसी तरह की छवि बन जाती है और इस तरह हमारे मन में नकारात्मकता का प्रवेश हो जाता है।यह एक तरह का अंधकार है,जो यदि हमारे मन में किसी भी रूप में है तो नुकसान देय है।हम सभी स्वेच्छा से या दूसरों को देखकर या आदतवश दूसरों की बुराई करना सीख जाते हैं।दूसरों की कमियों को देखना,उनकी गलतियां ढूंढना,दूसरों को नीचा दिखाने की कोशिश करना-ये सब हमारी आदतों में शामिल हो जाता है और यह हमारे व्यक्तित्व के विकास में बहुत बाधक सिद्ध होता है।
बुराई करने की आदत यदि हमारे जीवन में शामिल है तो यह हमारे व्यक्तित्व का नकारात्मक पहलू है,जो हमारे विकास में हमेशा बाधक है।इसके कारण हम अपने लक्ष्य से भटक जाते हैं और संसार के दोष ही देखते रहते हैं,अच्छाइयाँ नहीं देख पाते।दोष या बुराइयां देखते रहने से उनमें ही रस मिलने लगता है और धीरे-धीरे कभी-कभी की जाने वाली बुराई स्वभाव का स्थायी हिस्सा बन जाती है।
बुरा कहने की यह आदत केवल हम तक ही सीमित नहीं रहती,बल्कि इसका प्रभाव हमसे जुड़े अन्य लोगों पर भी होता है और धीरे-धीरे सब लोग अन्य लोगों की बुराई करने की गतिविधि में सम्मिलित हो जाते हैं।दूसरे लोग कितने गलत हैं? कितनी कमियां हैं उनमें? इस तरह दूसरे लोगों के बारे में नकारात्मक सोचकर अपना समय गँवाते हैं।स्वयं के बारे में अच्छा चिन्तन न करके,दूसरों के बारे में अच्छा न सोचकर बुरा ही सोचते रहते हैं।इससे किसी का भी भला नहीं होता और इसके कारण हमारी क्षमताएं,कार्यशैली,निर्णय क्षमता व विचार शैली पर ऐसा नकारात्मक प्रभाव पड़ता है कि जिसके कारण हम अपने जीवन के उच्चस्तरीय सोपानों के द्वार अपने लिए स्वयं बंद कर लेते हैं; क्योंकि सकारात्मकता व सृजनात्मकता का अभाव हमारे विकास के मार्ग को अवरुद्ध कर देता है।
3.दोष-दुर्गुण देखने के दुष्प्रभाव (Side effects of seeing defects and demerits):
बुराई करने की इच्छा को निंदा रस भी कहते हैं और लोग इसमें अनावश्यक रुचि भी लेते हैं,लेकिन शायद इसके दुष्परिणामों को नहीं जानते हैं।इस आदत की वजह से उनके चारों ओर एक ऐसा नकारात्मक औरा (सूक्ष्म आवरण) बन जाता है जिसकी वजह से कोई भी सकारात्मक विचार व भाव उनकी और आकर्षित नहीं होता।एक छोटी सी बुराई करने की आदत यदि इतनी हानिकारक है तो क्यों न इससे पीछा छुड़ाया जाए।
घर-परिवारों में बुराई,चुगली करने की आदत के कारण लड़ाई-झगड़े होते रहते हैं,कलह मची रहती है और घर की सुख-शांति खो जाती है।बुराई करने की आदत यदि अधिक बढ़ जाए तो व्यक्ति को दूसरों की बुराइयां,कमियां या गलतियां ही दिखाई व सुनाई देने लगती हैं और इस तरह उसके अंदर एक ऐसा भाव उत्पन्न होता है जो मात्र उसके व्यक्तित्व को तनाव,कुंठा और अस्थिरता देने के अतिरिक्त कुछ और प्रदान नहीं करता।
घर में यदि बड़े लोग बच्चों के सामने दूसरों की बुराइयां करते हैं तो उनमें भी दूसरों की कमियां ढूंढने,चुगली करने व झूठ बोलने की आदत शामिल होने लगती है,जो उनके भविष्य के लिए अच्छा नहीं है।बच्चों का मन बहुत कोमल होता है।वे जैसा देखते हैं,सुनते हैं,वैसा ही करने लग जाते हैं।क्या सही है,क्या गलत,इससे उन्हें कोई लेना-देना नहीं होता।इसलिए बच्चों में इस तरह की आदतें विकसित न हों,इसके लिए माता-पिता व घर के अन्य सदस्यों को ही जिम्मेदार होना पड़ेगा और सबसे पहले परिवार के सदस्यों को यह संकल्प लेना होगा कि किसी भी तरह की बुराई को अपने अंदर प्रवेश नहीं करने देंगे,न किसी की बुराई की चर्चा करेंगे और न ही उसे सुनने में उत्सुकता दिखाएंगे।
लेकिन ये कार्य करते रहना बहुत मुश्किल है; क्योंकि आदतवश इतने लंबे समय से यदि हम किसी की कमियां या बुराइयां देख रहे हैं तो अचानक उसे न करना संभव नहीं हो पाता और स्वाभाविक रूप से यह हो ही जाता है।इसलिए इस बात के लिए भी सतर्क रहें कि यदि हमें किसी की कमजोरी या गलती दिखाई देती है तो कोई बात नहीं,परंतु हम उसके अंदर की एक अच्छाई को अवश्य याद करेंगे।ऐसा करने पर धीरे-धीरे हम उसके अच्छे कार्यों की ओर ध्यान देने लगते हैं।
4.कमियां कैसे दूर करें? (How to overcome the drawbacks?):
अब प्रश्न यह उठ सकता है कि यदि हम हमेशा किसी के अच्छे कार्यों को देखेंगे और उसकी कमियों को नहीं,तो उसकी कमियों को कैसे दूर करेंगे? इसके लिए यही कहना उचित है कि कमियाँ तो स्वतः ही व्यक्ति को पहले दीखने लगती हैं,अच्छाई पीछे रह जाती है,जैसे पूरा कमरा साफ सुथरा है और उसका थोड़ा सा भाग गंदा है तो वह भाग हमें पहले दीखेगा।इसी तरह कमियां,गलतियां स्वतः ही उभरकर व्यक्ति को दीखती हैं; लेकिन यदि हम अपने जीवन में इतने सतर्क रहें कि उस व्यक्ति के द्वारा किए गए अच्छे कार्यों को पहले प्राथमिकता दें,उसके बाद उसकी कमियों को उजागर करके उन्हें दूर करने का प्रयास करें तो सुनने वाला व्यक्ति भी अपनी अच्छाई को देख सकेगा और प्रसन्नता के साथ अपनी कमियों को दूर करने के लिए सहमत हो सकेगा।
केवल दूसरों के साथ ही नहीं,हमें अपने जीवन में भी अच्छाई को देखने की आदत डालनी चाहिए और अपनी कमियों को दूर करने के लिए सतर्क रहना चाहिए।हो सकता है कि हमारे अंदर बहुत सारी कमियां या बुराइयां हों,लेकिन उनके बारे में सोचने से दूर नहीं होगी,बल्कि बढ़ती जाएंगी।उन्हें दूर करने का एक ही तरीका है कि हम अपने अंदर की अच्छाई व विशेषताओं के बारे में सोचें कि हमारे अंदर क्या-क्या गुण हैं और हम क्या-क्या कर सकते हैं? फिर अपनी क्षमताओं का सदुपयोग करें।ऐसा करने से हम ज्यादा अच्छा काम कर सकेंगे।जब कभी मन में स्वयं के प्रति नकारात्मक वृत्ति हो तो उसे दूर करने के लिए हमें अपने अंदर की सकारात्मकता को देखना चाहिए,ताकि हम निरंतर आगे बढ़ते रहें।
इस तरह सकारात्मक वृतियों को जागृत करके अपनी नकारात्मक वृत्तियों पर विजय पाई जा सकती है।इसके लिए यदि दूसरों से सहायता मिले तो ठीक अन्यथा स्वयं से ही दो मीठे बोल बोलकर,अपने अंदर की खूबसूरती को निहारकर हम अपना भला कर सकते हैं।यही तो स्वसंकेत (autosuggestion) है,जिसके द्वारा हम अपने जीवन की दिशाधारा को बदल सकते हैं और इसी सूत्र को अपनाकर दूसरों के जीवन को भी श्रेष्ठ दिशा दे सकते हैं।
अक्सर हम अपने पतन का मार्ग खुद ही ढूंढ लेते हैं और उस पर चलते भी रहते हैं।यदि कोई रोकता-टोकता है तो वह बुरा लगता है।दूसरों में केवल दुर्गुणों और दोषों को देखते रहना गलत है उसी प्रकार एक विद्यार्थी द्वारा दूसरे विद्यार्थी की कमजोरी देखना गलत है।अक्सर हम बात-बात में कहते रहते हैं कि इतना सरल सवाल नहीं आया है,उसे तो गणित में कुछ नहीं आता,वह तो गणित में बहुत कमजोर है,उसे तो गणित में बहुत कम अंक मिले हैं,वह तो निरा मूर्ख है,वह तो बिल्कुल बुद्धू है।इस प्रकार दोष-दुर्गुणों को देखते रहने से हमारी आदत दूसरे व्यक्तियों में कमी-खामी ढूंढते रहने की हो जाती है।
यह हमें पतन के मार्ग की ओर ले जाती है।क्योंकि जब तक हम दूसरों में गुणों को देखने की दृष्टि को विकसित नहीं करेंगे,जब तक हम अपने अवगुणों,कमियों को देखने की दृष्टि विकसित नहीं करेंगे तब तक सुधार होना मुश्किल है।दरअसल दूसरों में ऐब देखने,दोष देखने में ज्यादा कुछ प्रयत्न नहीं करना पड़ता है।दूसरों में गुण देखकर उसे अपनाना,अपने आपमें सुधार करने में प्रयत्न करना पड़ता है,अथक परिश्रम करना पड़ता है।जिस प्रकार किसी पहाड़ी से लुढ़कना आसान है,लुढ़कने के लिए ज्यादा कुछ प्रयत्न नहीं करना पड़ता है।परंतु पहाड़ी पर चढ़ने में हमें पूरी ताकत लगानी पड़ती है,परिश्रम करना पड़ता है,अवरोधों से टकराना पड़ता है।
अतः विद्यार्थीकाल में आदतों को अपनाना आसान होता है और बुरी आदतें,बुराइयां देखने के लिए हम आसानी से उस रास्ते पर चलने लगते हैं।उदाहरणार्थ यदि गणित में कोई छात्र-छात्रा होशियार है और उसकी तुलना में हम फिसड्डी हैं तो उससे आगे निकलने,उसके बराबर आने अथवा अच्छे अंक अर्जित करने के लिए गणित का अभ्यास करना पड़ता है।रात-दिन एक करने पड़ते हैं।हर समय गणित की जटिलताओं,समस्याओं से जूझकर उन्हें हल करते रहना पड़ता है।इसके बावजूद भी कमी-खामी रह जाती है तो फिर से गणित विषय की पुनरावृत्ति करना,मॉडल पेपर्स सॉल्व करना,मॉक टेस्ट हल करना,बार-बार अभ्यास करना,अपनी कमजोरियों को ढूंढ-ढूंढकर दूर करना,हतोत्साहित ना होना,धैर्य रखना तथा हमेशा सकारात्मक सोच रखना।इतना सब कुछ करते हुए आगे बढ़ना पड़ता है,फिसलने से बचने के लिए प्रयत्नपूर्वक ऊपर की ओर श्रेय मार्ग पर चलना पड़ता है।
अपने दोष-दुर्गुणों का केवल चिंतन करना ही पर्याप्त नहीं है बल्कि उनको जीवनचर्या से निकाल फेंकना होता है और साथ ही अच्छे गुणों और सद्गुणों को धारण करना होता है।अपने आप की तरफ नजर रहती है,अपने सुधार की तरफ नजर रहती है तो दूसरों के दोष-दुर्गुणों को देखने का समय नहीं मिलता है।
निरंतर अध्ययन करते रहने में अपने आपको संलग्न रखना होता है,प्रयत्न,और अधिक प्रयत्न तथा बार-बार प्रयत्न,अभ्यास तथा पुनरावृत्ति करते रहना होता हैं।ज्यों-ज्यों अभ्यास करते हैं त्यों-त्यों अध्ययन में,अपने विषय में सिद्धहस्त होते चले जाते हैं।सब कुछ करते का करतब है।यदि हम कुछ करें ही नहीं और शिकायत करते रहें की क्या करें अध्ययन में मन नहीं लगता है,अध्ययन करना बहुत मुश्किल है अर्थात् बहानेबाजी करते रहें,आलस्यवश पड़े रहे,सोते रहे हैं तो फिर उसका कोई उपाय नहीं है।फिर धीरे-धीरे हम अपनी क्षमता,योग्यता खोते चले जाते हैं,हमारी कार्यक्षमता में जंग लगती चली जाती है।अतः पतन के मार्ग को भूलकर भी कदम न बढ़ाएं।इस मार्ग पर चलने वाले के लिए फिसलने से बचना और वापस लौटना बहुत कठिन हो जाता है।कोई लौटना चाहे भी तो बिगड़ी हुई आदतें और परिस्थितियाँ लौटने नहीं देती।कटी हुई पतंग की तरह वह भटकता चला जाता है।इस मार्ग पर फिर विनाश निश्चित है।
उपर्युक्त आर्टिकल में दूसरों के दोष देखना कैसे छोड़े? (How to Stop Seeing Faults of Others?),दूसरों के दोष-दुर्गुण देखना कैसे छोड़ें? (How to Stop Seeing Faults and Vices of Others?) के बारे में बताया गया है।
गणित शिक्षक (छात्र से):आप गणित में कौनसा टॉपिक पढ़ना पसंद करते हो?
छात्र:रहने दीजिए सर,ज्यादा तकलीफ मत उठाइए।आप जो भी पढ़ाएंगे,वही पढ़ लूंगा।
7.दूसरों के दोष देखना कैसे छोड़े? (Frequently Asked Questions Related to How to Stop Seeing Faults of Others?),दूसरों के दोष-दुर्गुण देखना कैसे छोड़ें? (How to Stop Seeing Faults and Vices of Others?) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:
प्रश्न:1.विद्यार्थी को कौनसे कर्म नहीं करनी चाहिए? (What actions should a student not perform?):
उत्तर:विद्यार्थी यदि अपना भविष्य उत्तम बनाना चाहते हैं और आगे का जीवन अच्छा बनाना चाहते चाहे तो अध्ययन करते समय काम-वासना,क्रोध,स्वादिष्ट भोजन,लोभ-लालच,श्रृंगार प्रियता,व्यर्थ वार्तालाप,अतिनिद्रा,अधिक खेलकूद और अति सेवा इन 9 बातों को बिल्कुल छोड़ देना चाहिए क्योंकि विद्याध्ययन का यह समय पुनः नहीं मिलता है जबकि यह नौ चीजें जीवन में कभी भी मिल सकती है।जीवन का प्रारंभिक समय अच्छा होना जरूरी है,मकान की नींव मजबूत होती है तभी वह टिका रहता है।
प्रश्न:2.आत्म-प्रशंसा पर टिप्पणी लिखो। (Write comments on self-praise):
उत्तर:आत्म-प्रशंसा,स्वयं की प्रशंसा करना एक प्रकार से दूसरे की निंदा करना ही है क्योंकि प्रशंसा के द्वारा हम यह साबित करना चाहते हैं कि हम श्रेष्ठ हैं और सामनेवाला निकृष्ट है।वस्तुतः आत्म-प्रशंसा हीनभावना का द्योतक है।सात्त्विक बुद्धि से संपन्न व्यक्ति निंदा करना तो दूर,निंदा सुनना भी पसंद नहीं करते हैं।
प्रश्न:3.दोष-दुर्गुणों से कैसे बचाव कैसे करें? (How to prevent defects and vices?):
उत्तर:अपना आत्मनिरीक्षण करते रहें।रोजाना सोते समय दिनभर की दिनचर्या पर एक नजर डालनी चाहिए और देखना चाहिए कि क्या गलतियां हुई है जो नहीं करनी चाहिए और कौनसा कार्य छूट गया जो करना चाहिए था।अगले दिन उसमें सुधार करें।
उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा दूसरों के दोष देखना कैसे छोड़े? (How to Stop Seeing Faults of Others?),दूसरों के दोष-दुर्गुण देखना कैसे छोड़ें? (How to Stop Seeing Faults and Vices of Others?) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
About my self
I am owner of Mathematics Satyam website.I am satya narain kumawat from manoharpur district-jaipur (Rajasthan) India pin code-303104.My qualification -B.SC. B.ed. I have read about m.sc. books,psychology,philosophy,spiritual, vedic,religious,yoga,health and different many knowledgeable books.I have about 15 years teaching experience upto M.sc. ,M.com.,English and science.
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1.दूसरों के दोष देखना कैसे छोड़े? (How to Stop Seeing Faults of Others?),दूसरों के दोष-दुर्गुण देखना कैसे छोड़ें? (How to Stop Seeing Faults and Vices of Others?):
How to Stop Seeing Faults of Others?
दोष-दुर्गुणों को कैसे दूर करें,इसको जानने से पहले यह जानना जरूरी है कि दूसरों में या स्वयं में दोष-दुर्गुण क्यों न देखें और यदि देखें तो किस दृष्टिकोण से देखें अथवा किस तरीके से देखें।
2.दोष-दुर्गुण क्यों नहीं देखें? (Why not look at faults and vices?):
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3.दोष-दुर्गुण देखने के दुष्प्रभाव (Side effects of seeing defects and demerits):
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4.कमियां कैसे दूर करें? (How to overcome the drawbacks?):
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5.विद्यार्थी ध्यान दें (Students Attention):
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6.कौनसा टॉपिक पढ़ना पसंद करते हो? (हास्य-व्यंग्य) (Which Topic Do You Like to Study?) (Humour-Satire):
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7.दूसरों के दोष देखना कैसे छोड़े? (Frequently Asked Questions Related to How to Stop Seeing Faults of Others?),दूसरों के दोष-दुर्गुण देखना कैसे छोड़ें? (How to Stop Seeing Faults and Vices of Others?) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:
प्रश्न:1.विद्यार्थी को कौनसे कर्म नहीं करनी चाहिए? (What actions should a student not perform?):
उत्तर:विद्यार्थी यदि अपना भविष्य उत्तम बनाना चाहते हैं और आगे का जीवन अच्छा बनाना चाहते चाहे तो अध्ययन करते समय काम-वासना,क्रोध,स्वादिष्ट भोजन,लोभ-लालच,श्रृंगार प्रियता,व्यर्थ वार्तालाप,अतिनिद्रा,अधिक खेलकूद और अति सेवा इन 9 बातों को बिल्कुल छोड़ देना चाहिए क्योंकि विद्याध्ययन का यह समय पुनः नहीं मिलता है जबकि यह नौ चीजें जीवन में कभी भी मिल सकती है।जीवन का प्रारंभिक समय अच्छा होना जरूरी है,मकान की नींव मजबूत होती है तभी वह टिका रहता है।
प्रश्न:2.आत्म-प्रशंसा पर टिप्पणी लिखो। (Write comments on self-praise):
उत्तर:आत्म-प्रशंसा,स्वयं की प्रशंसा करना एक प्रकार से दूसरे की निंदा करना ही है क्योंकि प्रशंसा के द्वारा हम यह साबित करना चाहते हैं कि हम श्रेष्ठ हैं और सामनेवाला निकृष्ट है।वस्तुतः आत्म-प्रशंसा हीनभावना का द्योतक है।सात्त्विक बुद्धि से संपन्न व्यक्ति निंदा करना तो दूर,निंदा सुनना भी पसंद नहीं करते हैं।
प्रश्न:3.दोष-दुर्गुणों से कैसे बचाव कैसे करें? (How to prevent defects and vices?):
उत्तर:अपना आत्मनिरीक्षण करते रहें।रोजाना सोते समय दिनभर की दिनचर्या पर एक नजर डालनी चाहिए और देखना चाहिए कि क्या गलतियां हुई है जो नहीं करनी चाहिए और कौनसा कार्य छूट गया जो करना चाहिए था।अगले दिन उसमें सुधार करें।
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