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How to Become Aware of Enlightement?

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1.ज्ञान प्राप्ति के प्रति जागरूक कैसे बनें? (How to Become Aware of Enlightement?),ज्ञान प्राप्ति के लिए सतर्क और जागरूक कैसे बनें? (How to Become Alert and Aware for Acquiring Knowledge?):

  • ज्ञान प्राप्ति के प्रति जागरूक कैसे बनें? (How to Become Aware of Enlightement?) क्योंकि जागरूक हुए बिना,होश में हुए बिना हम बहुत जानकारी,बातों,व्यावहारिक ज्ञान तथा अनुभव को अनदेखा करते रहते हैं और सच्चे ज्ञान संपदा से वंचित रहते हैं।
  • दूसरा कारण यह है कि किसी कर्म को होशपूर्वक,जागरूक रहकर ग्रहण करते हैं तो वह कर्म निष्काम कर्म होता है।निष्काम कर्म करने से कर्म के फल से नहीं बंधते हैं।अनासक्त कर्म ही हमें कर्म के बंधन से मुक्त करता है।
  • इसका अर्थ यह नहीं है कि अनासक्त कर्म का कोई परिणाम नहीं भोगना पड़ता।कर्म चाहे आसक्तिपूर्वक किया जाए या अनासक्तिपूर्वक किया जाए उसका फल तो मिलेगा ही परंतु अनासक्तिपूर्वक कर्म करने से हम उस कर्म के परिणाम को सहज भाव से भोगते हैं।
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2.ज्ञान प्राप्ति से क्या आशय है? (What Do You Mean by Acquiring Wisdom?):

  • ज्ञान प्राप्त करना,आत्म-ज्ञान प्राप्त होना,व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त करना,आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करना,भौतिक विषयों का ज्ञान प्राप्त करना आदि बोलचाल की और व्यवहार की भाषा में कहा जाता है।वस्तुतः न तो ज्ञान लिया जाता है और न ज्ञान दिया जाता है।क्योंकि यदि शिक्षक,धर्मगुरु अथवा अन्य कोई व्यक्ति ज्ञान देता होता तो उसके पास ज्ञान की कमी हो जाती और जो ज्ञान लेता उसके पास ज्ञान बढ़ जाता।परंतु जो ज्ञान देता है उसके ज्ञान में वृद्धि होती है और साथ ही जो ज्ञान लेता है उसके ज्ञान में भी वृद्धि होती है।
  • ज्ञान जीवात्मा का स्वभाव है परंतु अज्ञान से ढका हुआ है,अज्ञान का पर्दा पड़ने के कारण हम ज्ञान को भूले हुए रहते हैं।यदि हम जाग्रत भाव रखें तो धीरे-धीरे ज्ञान प्रकट होने लगता है।
  • शिक्षक छात्र-छात्राओं को पढ़ाता है,शिक्षित करता है,शिक्षा देता है,ज्ञान देता है ऐसा हम व्यावहारिक भाषा में कहते हैं जबकि असलियत यह है कि शिक्षक ज्ञान देता नहीं है सिर्फ याद दिलाता है,धर्मगुरु हमें आध्यात्मिक शिक्षा देता नहीं है बल्कि हमारे स्वरूप का बोध कराता है,पुस्तकों से ज्ञान अर्जित नहीं होता है बल्कि पुस्तकें पढ़ने से हमें ज्ञान का स्मरण हो जाता है।
  • यदि शिक्षक,धर्मगुरु,कथावाचक,उपदेशक अथवा पुस्तकें,धार्मिक ग्रंथ ज्ञान देते होते तो उनके पास ज्ञान की कमी हो जाती जबकि उनके ज्ञान में कमी नहीं होती है बल्कि शिक्षकों,धर्म गुरुओं,उपदेशकों तथा अन्य व्यक्तियों के ज्ञान में वृद्धि ही होती है क्योंकि जब वे छात्र-छात्राओं,शिष्यों व अन्य व्यक्तियों को ज्ञान के बारे में बताते हैं तो उनका छिपा हुआ ज्ञान ओर प्रकट होता है अर्थात् अपने भूले हुए ज्ञान को वे भी स्मरण कर पाते हैं।
  • ज्ञान देने वाले का ज्ञान कम नहीं होता इससे सिद्ध होता है कि वह जो ज्ञान विस्मृति यानी भूल जाने के कारण छिपा हुआ है,जो भूला हुआ है उसे याद दिला देता है।स्वाध्याय,सत्संग,अध्ययन करने और पुस्तकें पढ़ने से भुला हुआ याद आने लगता है यानी अज्ञान का पर्दा हटता जाता है,अज्ञान कम होता जाता है और ज्ञान प्रकट होता जाता है।
  • भगवान ने जितने प्राणी संसार में पैदा किए हैं,उन सबमें मनुष्य श्रेष्ठ है।मनुष्य क्यों श्रेष्ठ है? उसमें ऐसी कौनसी बात है,जो ओर प्राणियों में नहीं है? आहार,निद्रा,भय,मैथुन इन चार बातों का ज्ञान मनुष्य को है,इसी तरह अन्य प्राणियों को भी है।परंतु एक बात मनुष्य में ऐसी है कि जो अन्य प्राणियों में नहीं है।और वह बात है;बुद्धि (सद्बुद्धि) या विवेक (ज्ञान)।इसी को मनु ऋषि ने धी कहा है।मनुष्य को ही परमात्मा ने यह शक्ति दी है,जिससे वह भली-बुरी बात का ज्ञान कर सकता है,अनुभव कर सकता है।किस मार्ग से चलें,जिससे हमारा उपकार हो और दूसरों को हानि न पहुंचे? किस मार्ग से चलें,जिससे हमारा भी उपकार हो और दूसरों का भी उपकार हो? यह विवेक (ज्ञान) मनुष्य को ही परमात्मा ने दिया है।उसने मनुष्य को बुद्धि (सद्बुद्धि) दी है,जिससे दूसरे प्राणियों के मन की बात जान सकता है।उसको यह ज्ञान है कि,जिस बात से हमको सुख होता है उसे दूसरे को भी होता है और जिस बात से हमको कष्ट होता है,उससे दूसरों को भी कष्ट होता है ;इन सब बातों को सोचकर ही वह संसार में व्यवहार करता है।और यदि यह विवेक (ज्ञान) और यह बुद्धि मनुष्य में ना हो तो पशु में और मनुष्य में कोई अंतर नहीं।

3.व्यर्थ और उपयोगी बातों का अंतर समझें (Understand the Difference Between Useless and Useful Things):

  • ज्ञान अनन्त है,इसका तात्पर्य यह नहीं है कि हर बात को ग्रहण करते रहें,याद करते रहें।उदाहरणार्थ रास्ते में कोई पुस्तक पड़ी हुई है और सैकड़ों लोग उधर से गुजरते हैं।कुछ लोग आंखें बंद करके चलते हैं,उस तरफ ध्यान ही नहीं देते हैं।कुछ आंखें देख रही होती है परंतु उसे अपने लिए उपयोगी नहीं समझते हैं।समझदार और जागरूक व्यक्ति बहुत-सी बातों को अनदेखा कर देते हैं तथा कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो आंखें बंद करके चिंतन-मनन में लीन रहते हैं।कहने का तात्पर्य यह है कि मतलब की बात पर मनन करने वाले तथा व्यर्थ की बात को अनदेखा कर देने वाले दोनों ही प्रकार के व्यक्ति जीवन के प्रत्येक पल का सदुपयोग करते हैं।
  • एक छात्र किसी महान गणितज्ञ का उपदेश सुनते समय आंखें बंद किए रहता था।देखने वाले अन्य छात्र समझते थे कि वह छात्र सो रहा है,परंतु वास्तविकता भिन्न थी।एक बार उपदेश समाप्त होने के बाद किसी बहाने किसी अन्य छात्र ने उसे आंख बंद करके सुनने वाले छात्र से पूछा कि क्या आप सो गए थे? उत्तर में आँख बंद करके सुनने वाले ने गणितज्ञ महोदय का पूरा उपदेश तो बता ही दिया,साथ ही यह भी बता दिया कि उसने उस उपदेश में कौनसी महत्त्वपूर्ण बात बताने से छोड़ दी और कौनसी गलत बात बता दी थी।
  • तथ्य यह है कि हम व्यर्थ की बातों को सुनें नहीं अथवा सुनते हुए भी अनसुना कर दें तथा जो वस्तु हमारे लिए उपयोगी ना हो,उसकी ओर दृष्टि भी न डाली जाए।
  • एक बार एक साक्षात्कार में एक प्रत्याशी से यह प्रश्न किया गया:आप अपने आपको अंगूठी से कैसे निकालेगे? उस युवक ने पेन से पर्ची पर अपना नाम लिखा और पर्ची को अंगूठी में से निकाल कर दिखा दिया।उस प्रत्याशी का चयन हो गया।इसी प्रकार एक बहुत बड़े प्राइवेट संस्थान में इंजीनियर पद हेतु एक प्रत्याशी साक्षात्कार के लिए दिल्ली गया था।उसके स्वागतार्थ रेलवे स्टेशन पर जो व्यक्ति गया,उसने मोटर कार में बातें करते हुए उस युवक से मार्ग के विषय में अनेक विषयों से संबंधित जानकारी प्राप्त की थी जिसे बताने में वह असमर्थ रहा और उसको अयोग्य मान लिया गया।
  • कहने का तात्पर्य यह है कि आप जहां भी जाएं अथवा बैठें,उस स्थान के विषय में पूरी-पूरी जानकारी प्राप्त करने के लिए उत्सुक रहें अर्थात् सदैव पूरी तरह जागरूक रहें।यदि आप ऐसा नहीं करते हैं तो अपने जीवन के अनेक महत्त्वपूर्ण क्षण नष्ट कर देते हैं अथवा उनका सम्यक् उपयोग करने में चूक जाते हैं।
  • सुकरात नाम के यूनानी महान चिंतक ने लिखा है कि जागरूकता रहित जीवन जीने योग्य नहीं होता है।सुकरात के बारे में कहा जाता है कि वह रास्ता चलते हुए युवकों से बात कर करने लगते थे और वार्तालाप के मध्य अनेक स्थानीय जानकारियाँ प्राप्त करते रहते थे।

4.ज्ञान के प्रति जागरूक बनें (Be Wisdom-Conscious):

  • प्रसिद्ध गणितज्ञ आर्किमिडीज,अल्बर्ट आइंस्टीन,महान गणितज्ञ आर्यभट,ब्रह्मगुप्त,गणितज्ञ एवं वैज्ञानिक न्यूटन आदि के जीवन का अवलोकन करोगे तो पाओगे कि उनका स्वभाव था कि वह प्रत्येक सिद्धांत,नियम की अच्छी तरह जानकारी प्राप्त करते थे और उसकी पूरी जांच-पड़ताल करते थे।यदि वे ऐसा नहीं करते,तो इतने अद्भुत गणित व विज्ञान के नियमों की खोज नहीं कर पाते।
  • किसी महान् गणितज्ञ के प्रत्येक विचार में गणित का कोई न कोई नियम दिखाई देने लगता है।पेड़ के पत्तों में भी उसे कोई ना कोई ज्यामितीय आकृति दिखाई देती है और उसके गूढ़ रहस्य का पता लगाने में कोई न कोई संभावना टटोलता रहता है।मधुमक्खी के छत्ते में भी बहुभुज के दर्शन होते हैं और उसमें भी किसी न किसी गणितीय नियम-सिद्धांत को अपने चिंतन-मनन द्वारा पता लगा लेता है।
  • हम और आप भी किसी वस्तु को जिस दृष्टि से देखते हैं अथवा जिस प्रयोजन से देखते हैं,हमको उस वस्तु में अपना वही प्रयोजन सिद्ध होता हुआ दिखाई देने लगता है।
  • उदाहरणार्थ रास्ते में एक गणित की पुस्तक पड़ी हुई है।उसको एक अनपढ़ व्यक्ति उठाकर ले जाता है,क्योंकि वह उसको रद्दी में बेचकर कुछ रुपए अर्जित कर सकेगा।एक उद्दण्ड और नटखट बालक उठा लेता है,क्योंकि उससे खेलकर वह अपना मनोरंजन कर लेगा।उसको एक गणित का छात्र उठा लेता है,क्योंकि उसका विचार है कि उसे गणित की पुस्तक को पढ़ने से कोई नई जानकारी,सूत्र,सिद्धांत,नियम का पता लग सकेगा।
  • निष्कर्ष यह है कि हमेशा आंखें खोल कर चलो,जागरूक रहकर हर कार्य करो और वस्तुओं की उपयोगिता के विषय में चिंतन-मनन करते चलो।जीवन की इस पद्धति से दो लाभ होते हैं:हमको अनेक प्रकार की जानकारी प्राप्त होती रहती है और अनुपयोगी अथवा कुत्सित विचार हमारे मस्तिष्क में प्रवेश नहीं कर पाते हैं।
  • यदि छात्र-छात्राएं सदैव एक डायरी रखा करें और प्राप्त जानकारी को,मस्तिष्क में आए नवीन विचार को लिखते जाएं और उसके संदर्भ में चिंतन करते रहें,तो उनके ज्ञान में सहज भाव से कितनी वृद्धि होती रहे अर्थात् अपने भूले हुए ज्ञान को स्मरण करते रहें तो अपने अनंत ज्ञान का स्रोत ढूंढ पाने में सक्षम हो सकेंगे।इसी वृत्ति को जागरूकता (Awareness) कहा जाता है।
  • बहुत से छात्र-छात्राएं व व्यक्ति रास्ते चलते रहते हैं अथवा कुछ भी कार्य आदतन करते रहते हैं और वे इस संसार की सुंदरता,महानता,अच्छाई तथा प्रत्येक कार्य में छुपे हुए रहस्य,किसी गणितीय नियम,सिद्धांत के प्रति अनभिज्ञ बने रहते हैं,क्योंकि वे जागरूक नहीं रहते हैं।इस दृष्टि से उनकी आत्मा गरीब बनी रहती है।यह अधिक अच्छा है कि वे अपने साथ एक डायरी रखा करें तथा कोई नवीन विचार-चिंतन मस्तिष्क में आए,किसी नई बात के बारे में आत्म-ज्ञान हो अथवा संसार में किसी चीज के बारे में कोई जानकारी प्राप्त हो तो उसे लिख लें।
  • तुम जैसे ही जागरूक बनते हो,तुम्हारा जीवन प्रगति करता चला जाता है।इस दशा में तुमको कोई विशेष प्रयत्न नहीं करना पड़ता है।यह एक सुंदर विरोधाभास है:तुम्हारी जागरूकता जितनी बढ़ती जाती है,अनिशष्टकारी बातों का प्रवेश उतना ही कम होता जाता है।
  • किसी वस्तु पर दृष्टि डाल देना एक बात है,जिस पर दृष्टि  डालो,उसको भली प्रकार देखो,यह दूसरी बात है,जिसको देखो,उसको भली प्रकार समझो-एक तीसरी बात है,जिसको समझो,उससे कुछ सीखो-एक सर्वथा अन्य बात है और वास्तविक महत्त्व की बात यह है कि जिस बात को समझो,उसके अनुसार आचरण करो,क्या तुम इससे सहमत हो?
  • मनोविज्ञान के मनीषियों एवं आत्म-ज्ञान के साधकों का कथन है कि समस्त ज्ञान हमारे मन (अंतरात्मा) में निवास करता है।जिस प्रकार जल-सिंचन द्वारा मेदिनी (पृथ्वी) में निहित सुगंध प्रकट हो जाती है,उसी प्रकार जीवन और जगत के साथ जागरूक संस्पर्श एवं सम्पर्क द्वारा हमारा अंतर्निहित ज्ञान प्रकट हो जाता है और हमको तदनुसार आचरण करने की प्रेरणा प्राप्त होती रहती है।हम उन्हीं क्षणों में जागरूक कहे जा सकते हैं।जब हम अपने हृदय में निहित ज्ञान राशि के कोष के प्रति सचेत होंगे।

5.जागरूकता का दृष्टांत (Illustration of Awareness):

  • दो विद्यार्थी गणित के सवाल हल कर रहे थे।एक विद्यार्थी ने सवाल हल किया परंतु उसके उत्तर पुस्तक के उत्तर से मिलान नहीं हो रहे थे।पहले विद्यार्थी ने दो-तीन बार सवाल को हल कर लिया और अच्छी तरह जांच-पड़ताल कर ली परंतु फिर भी पुस्तक के उत्तरों से मिलान नहीं हो रहा था।पहले विद्यार्थी ने सोचा हो सकता है की पुस्तक के उत्तर गलत हों।अंतिम निर्णय करने से पहले उसने अपना प्रश्न व उसका हल अपने साथी दूसरे विद्यार्थी को दिखाया।
  • दूसरे विद्यार्थी ने उसके सवाल के हल को देखा परंतु उसे भी पहले विद्यार्थी के सवाल का हल ठीक लगा।तब पहला विद्यार्थी बोला की पुस्तक में अलग उत्तर दे रखे हैं।दूसरे विद्यार्थी ने पुस्तक के उत्तरों से मिलान किया तो उसे जोरदार झटका लगा।उसकी चेतना को जोरदार झटका लगते ही वह जागरूक हो गया और होश में आकर उसने पहले विद्यार्थी के सवाल के हल को पुनः जाँचा।जांच करते ही उसे पहले विद्यार्थी की गलती पकड़ में आ गई।
  • दूसरे विद्यार्थी ने पहले विद्यार्थी को उसकी गलती बताई।पहले विद्यार्थी ने कहा कि मैंने दो-तीन बार इसको जाँचा और हल किया परंतु मुझे यह गलती पकड़ में नहीं आई।तुमने इस गलती को कैसे पकड़ लिया? दूसरे विद्यार्थी ने कहा कि पहली बार में तो मैं भी बेहोशी की हालत में,आदतन ही इसको जांच पाया था परंतु पुस्तक के उत्तरों से मिलान करने पर मेरी चेतना को जोरदार झटका लगा और मैं होश में आ गया।जागरूक और होश में आने पर इसकी जांच की तो मुझे यह गलती पकड़ में आ गई।यदि जागरूक और होश में रहकर इसी प्रकार अध्ययन किया जाए तो हमारे अंदर का ज्ञान प्रकट होने लगता है और हमें उस ज्ञान के प्रकाश में अपने अज्ञान की बातें मालूम पड़ जाती है और उनको दूर कर सकते हैं।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में ज्ञान प्राप्ति के प्रति जागरूक कैसे बनें? (How to Become Aware of Enlightement?),ज्ञान प्राप्ति के लिए सतर्क और जागरूक कैसे बनें? (How to Become Alert and Aware for Acquiring Knowledge?) के बारे में बताया गया है।

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6.गणित की खोज का वृतांत (हास्य-व्यंग्य) (History of Discovery of Mathematics) (Humour-Satire):

  • गणित शिक्षक (छात्र से):मैंने टोपोलॉजी के एक सिद्धांत की खोज वर्तमान युग में की है।बताओ इस खोज का भूतकाल कैसा था?
  • छात्र:आपने टोपोलॉजी के सिद्धांत की खोज करने में अपना सर खपाया था।
  • गणित शिक्षक (खीझते हुए):चलो इसके भविष्य के बारे में बताओ।
  • छात्र (आंख मटकाते हुए):आपको दिमागी दौरे पड़ेंगे।

7.ज्ञान प्राप्ति के प्रति जागरूक कैसे बनें? (Frequently Asked Questions Related to How to Become Aware of Enlightement?),ज्ञान प्राप्ति के लिए सतर्क और जागरूक कैसे बनें? (How to Become Alert and Aware for Acquiring Knowledge?) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.जागरण का क्या अर्थ है? (What Does Awakening Mean?):

उत्तर:जागरण का अर्थ है कर्मक्षेत्र में जुझारूपन होना और कर्मक्षेत्र में जुझारूपन से तात्पर्य है जीवन-संग्राम अर्थात् अपने दोषों,कर्मियों और अज्ञान को हटाना जो लड़ने से नहीं हटता है बल्कि समझ से,अंतरात्मा के स्वभाव ज्ञान प्रकट होने,अनुभव होने से खुद-ब-खुद हट जाता है।

प्रश्न:2.सब धनों में ज्ञान-धन श्रेष्ठ क्यों है? (Why is the Wealth of Wisdom the most Elevated of All Wealth?):

उत्तर:ज्ञान को न तो कोई चुरा सकता है,ना राजा दण्ड लगा सकता है,न भाई बँटा सकता है; और न ज्ञान का बोझा है,फिर व्यय करने से रोज ज्ञान बढ़ता है अर्थात् ज्यों-ज्यों हम ज्ञान को बाँटते हैं त्यों-त्यों हमें अपने ज्ञान की स्मृति हो जाती है जिससे यह आभास होता है कि ज्ञान में वृद्धि हो रही है जबकि वास्तव में ज्ञान का हमें स्मरण होता हैं।अतः सब धनों में ज्ञान धन,विद्या धन श्रेष्ठ कहा गया है।

प्रश्न:3.ज्ञानार्जन की सही दिशा क्या है? (What is the Right Direction of Learning?):

उत्तर:हम स्वाध्याय,सत्संग करें,अच्छा साहित्य,अच्छी पुस्तकें,व्यावहारिक ज्ञान,आध्यात्मिक ज्ञान से संबंधित पुस्तक पढ़ें और समझें तथा आचरण में उतारे।इनसे,इनके माध्यम से हमें अपने ज्ञान का स्मरण हो जाता है।जितना ज्ञान का स्मरण होता जाता है उतना ही हमें एहसास होता है कि हमें कम ज्ञान है तो समझना चाहिए की ज्ञानार्जन की दिशा सही है।यदि ज्ञानार्जन करने से हमें यह एहसास होता है कि हमें बहुत ज्ञान हो गया है,ज्ञान का अहंकार हो जाता है तो ज्ञानार्जन की दिशा विपरीत है और हमारे पतन का रास्ता तैयार हो जाता है।क्योंकि ज्ञानार्जन से व्यक्ति विनम्रता,सरलता धारण करता है,विनम्रता का आचरण करता है तभी सही मायने में हमें आत्म-ज्ञान होता है।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा ज्ञान प्राप्ति के प्रति जागरूक कैसे बनें? (How to Become Aware of Enlightement?),ज्ञान प्राप्ति के लिए सतर्क और जागरूक कैसे बनें? (How to Become Alert and Aware for Acquiring Knowledge?) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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