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5 Tips to Overcome Faults and Vices

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1.अपने दोष-दुर्गुणों को दूर करने की 5 टिप्स (5 Tips to Overcome Faults and Vices),अपने दोष-दुर्गुणों को कैसे दूर करें? (How to Overcome Your Faults and Vices?):

  • अपने दोष-दुर्गुणों को दूर करने की 5 टिप्स (5 Tips to Overcome Faults and Vices) के आधार पर दोष-दुर्गुणों को दूर करना संभव है।प्रायः लोगों को यह शिकायत रहती है कि क्या करें,आदत तो बुरी है पर अभ्यास में आ गई है,छुटती नहीं।गन्दी और निकम्मी आदतों पर बहुधा ऐसी सफाई दिया करते हैं।पान खाना,बीड़ी पीना,ड्रग्स का सेवन करना,मादक द्रव्यों का सेवन करना,सिनेमा देखना,अश्लील गाने गाना,बुरे लोगों की संगति,कुटिल-कुटेव,कुविचार आदि को अपने स्वभाव की बुराई मानते हुए भी लोग इन्हें छोड़ने से घबराते हैं।
  • उन्हें ऐसा लगता है की यह आदतें छूट जाएँगी,तो कोई हानि हो जाएगी,अपने मित्र साथ छोड़ देंगे या जीवन का आनंद जाता रहेगा।इस तरह की विचारणा बहुत बिल्कुल निम्न स्तर की है।
  • भूल सुधार मनुष्य का सबसे बड़ा विवेक है।बुरे स्वभाव को अच्छे स्वभाव में बदल देना,मनुष्य की सबसे बड़ी चतुराई है।स्व-संशोधन इतनी बड़ी समस्या नहीं,जिसे पूरा न किया जा सके।मनुष्य अपने आपको बदल भी सकता है।
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2.दोष-दुर्गुणों को अपनाने के कारण (Reasons for Adopting Defects and Vices):

  • हर बालक अच्छे व बुरे संस्कार लेकर जन्म लेता है परंतु प्रारंभ में ये संस्कार सुप्त रहते हैं।माता-पिता का व्यवहार,वातावरण,संगी-साथियों,विद्यालय का वातावरण,शिक्षकों का आचरण जैसा होता है वैसे ही संस्कार सक्रिय हो जाते हैं।
  • यदि माता-पिता लापरवाह रहते हैं,माता-पिता दुराचरण अपनाएं रहते हैं अथवा अपने कार्य में बहुत अधिक व्यस्त रहते हैं तो बच्चे दुर्गुणों को अपनाते हैं।बच्चे कच्ची बुद्धि के अनुभवहीन होते हैं वे इसी उम्र में गंदी बातें और आदतें सीखते हैं,बुरे व्यसन सीखते,बशर्ते वे हमेशा अच्छे और करने योग्य कामों में व्यस्त न रहते हों।
  • कई माता-पिता सामाजिक कार्यों,क्लबों और अनेक संस्थाओं से जुड़े रहकर अपने शौक पूरे करने में व्यस्त रहते हैं।वे समाज व देश का तथाकथित कल्याण करने में व्यस्त रहते हैं और उनके बच्चों का दूसरे ढंग का कल्याण हो जाता है।अर्थात् दोष-दुर्गुणों को अपनाते जाते हैं।
  • बच्चों को उन्नत करने और ऊपर चढ़ने के लिए शिक्षा पहले पायदान का काम करती है।परंतु आज जो स्कूल-काॅलेजों में पढ़ाया-सिखाया जाता है वह व्यावहारिक जीवन में काम नहीं आता और जो व्यावहारिक जीवन में काम आता है वह किसी स्कूल-कॉलेज में नहीं पढ़ाया-सिखाया जाता है फलस्वरूप बच्चे दोष-दुर्गुणों को अपनाते हैं।
  • आज के भोगवादी एवं अर्थ प्रधान युग में अधिकांश युवक-युवतियों में जल्दी से जल्दी अर्थ संपन्न होने की कामना इतनी बलवती होती जा रही है कि वे इसके लिए कुछ भी करने को तैयार हैं अपने आदर्श और सिद्धांतों को छोड़कर वह भेड़चाल में शामिल हो रहे हैं।
  • अच्छे राह के लिए वे इसी राह पर चलना ठीक समझते हैं।हो सकता है कुछ लोगों को दोष-दुर्गुणों को अपनाने पर सफलता मिल भी जाती होगी पर अधिकांश लोगों को इस राह पर चलकर निराशा,कुण्ठा,जिल्लत और असफलता ही मिलती है।जो कुछ हमें अन्याय मार्ग से मिलता है वह अन्याय मार्ग में ही नष्ट होती है और साथ में अन्यायी को भी नष्ट कर देता है।
  • कोई भी मनुष्य जन्म से कोई निश्चित स्वभाव लेकर पैदा नहीं होता बल्कि जैसे वातावरण व शिक्षा दीक्षा से बड़ा होता है वैसा स्वभाव धारण कर लेता है क्योंकि जैसा वातावरण और संग साथ होता है वैसा ही प्रभाव जन्म के बाद से ही पड़ना शुरू हो जाता है।
  • यह प्रभाव उस व्यक्ति के भूतकालीन और अनेक जन्मों में किए गए कर्मों से भी फलित होता है।यह प्रभाव पिछले सोए हुए संस्कार जगा देता है।बस,जैसे-जैसे बालक बड़ा होता जाता है,वैसे-वैसे स्वभाव भी बनता जाता है।बाद में इसे बदल पाना बहुत मुश्किल होता है।
  • यह एक तरह से सौभाग्य की बात भी है कि मनुष्य कर्म करने में स्वतंत्र है अतः जैसा चाहे वैसा कार्य कर सकता है।उन्नति कर सकता है या अवनति कर सकता है।अच्छा कर सकता है या बुरा कर सकता है इसलिए उसमें कमीबेशी हो सकती है पर पशु-पक्षी आदि को ऐसी स्वतंत्रता नहीं है।जो पशु जैसा है वैसा है उसमें कोई कमीबेशी या भूलचूक नहीं मिलेगी क्योंकि वह कर्म करने को स्वतंत्र नहीं है।हम किसी गधे से यह नहीं कह सकते कि तुम थोड़े कम गधे या ज्यादा गधे हो क्योंकि सब गधे एक जैसे और बराबर होते हैं।हाँ,मनुष्य से कह सकते हैं कि तुममें मनुष्यता कम है या ज्यादा है या नहीं है।मनुष्य को स्वतंत्रता है कि वह श्रेष्ठ कर्म करके श्रेष्ठ गति प्राप्त करें या बुरे कर्म करके दुर्गति को प्राप्त हो।यही स्वतंत्रता मनुष्य का दुर्भाग्य भी बन जाती है जब वह स्वतंत्रता का दुरुपयोग करता है।

3.बुरी आदतें क्यों नहीं छूटती? (Why Don’t We Get Rid of Bad Habits?):

  • लोग तरह-तरह की योजनाएं बनाते हैं कल से प्रातः काल जल्दी उठा करेंगे और टहलने जाया करेंगे,सिगरेट पीना कम करेंगे और धीरे-धीरे उसे छोड़ देंगे।सप्ताह में एक बार ही सिनेमा देखने जाएंगे।चाय के स्थान पर दूध लिया करेंगे।बुरी आदतों को छोड़ने के लिए योजनाएं तो बहुत बनती है,पर चाहकर भी वे ऐसा कर नहीं पाते।मान्यता भले ही अनुकूल हो,पर यदि व्यावहारिकता में कोई परिवर्तन नहीं आता,तो योजनाएं भी किसी काम की नहीं होती।
  • तब फिर एक प्रश्न सामने आता है कि क्या आदतों से मुक्ति पाने का कोई उपाय नहीं है।मनुष्य का जो अच्छा-बुरा जीवन क्रम बन गया है,क्या उसमें किसी तरह के परिवर्तन की गुंजाइश नहीं? इस तरह के उलझन भरे प्रश्न प्रायः लोग उठाते हैं,अपने मित्रों,अध्यापकों या अभिभावकों से भी समस्या के हल में मदद मांगते हैं।
  • आदत सुधार का अर्थ सामान्यतया बुरी आदतों के सुधार से लिया जाता है।यहां भी इन्हीं पर विचार किया जाना है।मनुष्य में अच्छी-बुरी दोनों ही तरह की आदतें होती हैं।वह स्वभाव शून्य रह नहीं सकता।इसलिए विचारणीय  प्रश्न यह है की बुराइयों का सुधार या निष्कासन किस तरह किया जाए?
  • स्वभाव की गहराईयों में प्रविष्टि आदतों का सुधार करना भी कठिन है।यह वैज्ञानिक सत्य है की मन के अभ्यास में जो आदतें आ जाती हैं,वे बुरी ही क्यों न हों,वह उन्हें छोड़ना नहीं चाहता,पर चूँकि उनसे शारीरिक,आर्थिक या नैतिक हानि होती है,कष्ट मिलता है या लज्जा का अनुभव होता है।अतः लोग उनसे बचना भी चाहते हैं।
  • इसके लिए कुछ लोग संकल्प भी लेते,सौगंध भी खाते हैं,तो भी बात निभती नहीं और इंद्रियों की अभ्यासगत उत्तेजना के आगे उन्हें परास्त हो जाना पड़ता है।
  • साधारण काम-काज की आदतों में जो बुराइयां होती हैं,उन्हें तो लोग आसानी से सुधार सकते हैं,घर में झाड़ू लगाना,कपड़े धोना,दातुन करना,प्रातः काल उठना,मालिश करना,टहलना आदि।इनमें कुछ देर के लिए तात्कालिक प्रसन्नता का अनुभव होता है।अतः ऐसी स्वाभाविक कमजोरियों को ठीक करने में कुछ अधिक श्रम करना नहीं पड़ता।
  • घर का सामान ठीक-व्यवस्थित ढंग से रखना,सड़क पर कूड़ा न फेंकना,समय पर भोजन करना,समय से सो जाना,कम बातें करना,ये आदतें ऐसी हैं,जिन्हें मामूली सावधानी से भी ठीक किया जा सकता है।
  • शरीर संबंधी कई छोटी-छोटी आदतें,बच्चों के साथ,धर्मपत्नी के साथ व्यवहार आदि में यदि थोड़ी सावधानी भी रखें,तो उससे अनेक कठिनाइयां दूर हो जाती हैं।
  • बुरी आदतों को छोड़ना कठिन भले ही हो,पर बिल्कुल असंभव नहीं।किसी बुरी आदत से मुक्ति की दिशा में सबसे पहले यह आवश्यक है कि मनुष्य के मन में सुधार की तीव्र आकांक्षा हो। इच्छा जितनी बलवती होगी,उतना ही संकल्प दृढ़ होगा,मनोबल बढ़ा हुआ होगा।
  • देखा गया है कि आवेश में आकर लोग सिगरेट आदि पीना छोड़ देते हैं,पर उनका मनोबल इतना कमजोर होता है कि इंद्रियों की हुड़क उठते ही वे अपने पुराने ढर्रे में आ जाने के लिए मजबूर हो जाते हैं।
  • हमें यह जानना चाहिए कि किसी महत्त्वपूर्ण कार्य का संपादन सच्ची आकांक्षा से ही होता है।इसके बिना कुछ भी संभव नहीं।आदतों को बदलने के लिए भी दृढ़ मनोबल की आवश्यकता है।संकल्प की अजेय शक्ति से ही दुष्ट आदतों का निवारण हो सकता है।इस बात को गांठ बांध लेना चाहिए।

4.आदतें कैसे सुधारें? (How to Improve Habits?):

  • किसी आदत को छोड़ने के लिए मनुष्य को पूरे मन से निश्चय करना चाहिए और इस निश्चय को क्रियान्वित करने करते समय एक भी अपवाद नहीं आने देना चाहिए।
  • जो लोग बुराई को धीरे-धीरे खत्म करने की बात कहते हैं,वे यथार्थत: पूर्ण निश्चय से परे होते हैं।उपर्युक्त  सिद्धांत के अनुसार उनके संकल्प में अपवाद बना रहता है।धीरे-धीरे छोड़ेंगे-इसका अर्थ है-चित्त अभी दुविधा की स्थिति में है।वह छोड़ भी सकता है और नहीं भी।इस स्थिति के रहते हुए कोई महत्त्वपूर्ण सफलता नहीं मिल सकती।
  • मन बहलाव या बाल बुद्धि के लोगों को समझाने के लिए कोई ऐसा भले ही कह दे,पर सच बात तो यही है कि आदतों का सुधार पूर्ण इच्छा से किया जाना चाहिए।
  • इस संबंध में एक सुझाव यह हो सकता है कि जिस बुराई को छोड़ना चाहते हैं,उसके संबंध में सदैव उन हानियों पर विचार किया करें,जो उस स्वभाव के कारण पैदा होतीं या पैदा हो सकती हैं।उदाहरण के लिए सिगरेट-बीड़ी पीने वाले या तंबाकू खाने वाली यह सोच सकते हैं कि फेफड़े खराब होंगे,रक्त अशुद्ध होगा,पाचन क्रिया पर दूषित प्रभाव पड़ेगा,इससे मुँह तथा फेफड़ों का कैंसर हो सकता है,मुंह से बदबू आती है इत्यादि।
  • इस तरह के विचार करने लगें,तो कितनी ही अव्यक्त हानियां भी समझ में आने लगेंगी और उस बुराई से बचना आसान हो जाएगा।
  • जिन नशों की आपको आदत पड़ी हो,उनके बारे में ऐसी कल्पना कीजिए कि वह आपके पेट पर बुरा असर डालते हैं,स्नायु संस्थान को शिथिल करते हैं,आंखों की ज्योति नष्ट करते हैं और वीर्य को निर्बल बनाते हैं,तो आपके अंतःकरण से उसके प्रति घृणा उत्पन्न होगी।
  • बुराइयों के बुरे पहलू को जब तक नहीं देखते,तब तक घृणा उत्पन्न नहीं होती।वासना से उत्पन्न शारीरिक दुर्बलता का ध्यान पहले से हो जाए,तो काम प्रवृत्ति पर अंकुश लगाया जाना संभव हो सकता है।
  • जिस तरह बुरी आदत से उत्पन्न बुरे परिणामों को चिंतन करने से उसके प्रति घृणा उत्पन्न होती है,उसी तरह उससे होने वाले लाभों को चिंतन करना आनंद का विषय भी बनाया जा सकता है।
  • सिगरेट पीना छूट जाएगा तो प्रतिदिन ₹5 भी बचेंगे,एक महीने में डेढ़ सौ रुपए और एक वर्ष में 1800 रुपए बचेंगे।इस तरह बचत यदि 10 वर्ष भी करें तो 18000 रुपए की रकम जमा हो सकती है।इसका ब्याज बनेगा,सो अलग।इसी प्रकार शरीर स्वस्थ रहेगा।खांसी नहीं आएगी।बीमारी का भय नहीं रहेगा।फेफड़े शुध्द रहेंगे।इन सारे लाभों पर आप प्रसन्नता व्यक्त करते रहिए,तो बुराई छोड़ने से उत्पन्न मानसिक अस्थिरता आपको तंग नहीं करेगी वरन आपको अपने उद्देश्य में सफल हो जाने की प्रसन्नता ही अनुभव होगी।
  • आदतें बदलने की ये क्रियाएं पूर्णतया मनोवैज्ञानिक हैं।इनका उपयोग यदि स्व-संशोधन में किया जा सके,तो मनुष्य बुराइयों को दूर करने में आशाजनक सफलता प्राप्त कर सकता है।कहते रहने से किसी समस्या का हल नहीं निकलता।उसके लिए रचनात्मक कदम भी उठाने पड़ते हैं,तभी कुछ लाभ दिखाई दे सकते हैं।अपनी आदतों का सुधार कर जो आत्मनिर्माण के कार्यों में प्रवृत्त होते हैं,उनका जीवन सुखी और समुन्नत भी होता है।हमें अपने जीवन के पुनर्निर्माण पर सदैव गंभीर दृष्टि रखनी चाहिए।आत्मावलोकन द्वारा अपनी बुराइयाँ खोजनी चाहिए और उन्हें दूर करने का प्रयास संकल्पपूर्वक करना चाहिए।

5.दोष-दुर्गुणों का दृष्टांत (An Example of Faults and Vices):

  • जब सत्संग का अवसर मिलता है,तो वह पारस की तरह से जंग लगे लोहे को भी स्वर्ण बना देता है।अनेक ऐसे व्यक्ति होते हैं,जिनके जीवन का पूर्ण इतिहास दुष्प्रवृत्तियों का समुच्चय होता है।किंतु कालांतर में सही अवसर व सत्संग का वातावरण मिलने पर वे अपनी दिशा बदल देते हैं।
  • गणित का एक विद्यार्थी था।वह अपने मित्र के साथ उसके घर जाया करता था।वहां पर वधिकों के घर थे।उनका निर्लज्ज मदिरापान,नृत्य और व्यभिचार चलता रहता था।उन्हें निकट से देखने की इच्छा हुई।वधिकों ने भी उस हष्ट-पुष्ट युवक का स्वागत किया और मद्यपान,व्यभिचार का स्वाद चखा दिया।पतन के मार्ग पर एक बार चल पड़ने और कुसंग में फंसने पर फिर वापस लौटना कठिन पड़ता है।थोड़े दिनों में विद्यार्थी उनके रंग में पूरी तरह रंग गया।
  • एक दिन एक संत उधर से गुजर रहे थे।उन्होंने विद्यार्थी का परिचय पूछा।उन्होंने मानव जीवन की सार्थकता बताई तब उस विद्यार्थी की आंखें खुली।विद्यार्थी ने पूछा अब मेरा कैसे उद्धार हो सकता है।संत ने कहा कि सत्संग,स्वाध्याय और भगवान की भक्ति से पुनः उद्धार हो सकता है।सत्संग,स्वाध्याय और अध्ययन से उस विद्यार्थी की सभी गलत आदतें छूट गई।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में अपने दोष-दुर्गुणों को दूर करने की 5 टिप्स (5 Tips to Overcome Faults and Vices),अपने दोष-दुर्गुणों को कैसे दूर करें? (How to Overcome Your Faults and Vices?) के बारे में बताया गया है।

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6.छात्रा का बैग घर पर पहुंचाना (हास्य-व्यंग्य) (Delivering Student’s Bag) (Humour-Satire):

  • स्कूल की छुट्टी होने पर एक छात्रा ने छात्र से कहा:मैं एक लड़की हूं और तुम एक लड़के हो,इसलिए मैं तुमसे एक अलग किस्म का काम करवाना चाहती हूं।लेकिन तुम्हें वादा करना होगा कि तुम उसे राज (गुप्त) ही रखोगे।
  • छात्र थूक निगलते हुए बोला:क्यों नहीं-क्यों नहीं।
  • छात्रा: क्या तुम यह बैग मेरे घर तक पहुंचाने में मेरी मदद करोगे?

7.अपने दोष-दुर्गुणों को दूर करने की 5 टिप्स (Frequently Asked Questions Related to 5 Tips to Overcome Faults and Vices),अपने दोष-दुर्गुणों को कैसे दूर करें? (How to Overcome Your Faults and Vices?) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.हमारी दुर्दशा का मुख्य कारण क्या है? (What is the Cause of Our Plight?):

उत्तर:लोगों ने सामाजिक कार्य (सारे काम) सरकार के सुपुर्द कर दिए हैं और उसके पुर्जे बन गए हैं।उत्तराधिकार,वैवाहिक सुधार,भूमि कानून,काव्य-शास्त्र,साहित्य,शिक्षा,स्वास्थ्य आदि।यह इसलिए कि काम करने की न तो लगन है और न ईमानदारी।चाहे समाज सुधार हो या कोई क्षेत्र हो सब पर सरकार का नियंत्रण है या सरकार की कृपा है।कृपा को प्राप्त करने के लिए लोग राजनेताओं को सब कामों में प्रधानता देते हैं।जनता बेचारी या तो बैल बन गई है या भेड़।बैल को चाहे जितना हाँक दो और भेड़ पर से कोई भी ऊन उतार लो।एक भेड़ जिधर दौड़ी उधर ही सारा रेवड़ दौड़ पड़ता है।

प्रश्न:2.क्या सभी मनुष्य समान है? (Are All Human Beings Equal?):

उत्तर:प्राकृतिक दृष्टि से सब मनुष्य समान है और सबको विकास के अवसर तथा जीवनयापन के आवश्यक साधन समान रूप से मिलने चाहिए।परंतु ऐसे आदर्श की व्यवस्था हो भी जावे तो भी मनुष्य-मनुष्य में भेद बना रहेगा।जैसे जन्मजात प्रतिभावान (जीनियस) तथा जन्मजात वज्रमूर्ख (इडियट),शारीरिक क्षमता या अक्षमता,बौद्धिक विलक्षणता या जड़ता आदि।ये बातें भी जन्मजात होती है।ऐसे दो जनों को समान अवसर भी दिए जाएं तो एक उनका उचित उपयोग करके आगे बढ़ जाता है और दूसरा फिसड्डी रह जाता है।
जिस मनुष्य में असाधारण प्रतिभा होती है वह किसी साधन का मोहताज नहीं होता।वह स्वयं प्रकाशमान होता है।दूसरी ओर जड़मूर्ख को चाहे जितने अवसर या साधन दिए जाएं,वह उनका उपयोग नहीं कर सकता।व्यवहार में समानता का सिद्धांत कोरी आदर्श कल्पना है।

प्रश्न:3.मनुष्य और पशु में भेद क्या है? (What’s the Difference Between Man and Animal?):

उत्तर:साहित्य,संगीत और कलाएं मानव जीवन के सौंदर्य हैं,आनंद के साधन हैं।इनमें रुचि न होना अर्थात् न इनमें कोई रस अनुभव करना और न प्रभावित होना यदि ऐसा मनुष्य है तो उसे पशु ही कहा जा सकता है।
परंतु आज तो ऐसा लगता है मानों देश का बच्चा-बच्चा साहित्य,संगीत और कला का रसिक बना हुआ है,ये तीनों चीजें सिमट कर मानों फिल्मों में आ गई हैं।फिल्मी साहित्य,फिल्मी संगीत और फिल्मी कला के पीछे आजकल के लोग दीवाने हो रहे हैं।युवक-युवतियों में फिल्मी कहानियाँ और फिल्मी गीत,फिल्मी सितारों के अभिनय की चर्चाएं ही जीवन का अंग बन गई है।
साहित्य,संगीत और कलाएं जीवन को उदात्त बनाने के साधन हैं।इसके विपरीत यदि इसे जीवन गिरता है,मन दुष्प्रवृत्तियों की ओर प्रेरित होता है तो यह साहित्य,संगीत और कला का विद्रूप है।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा अपने दोष-दुर्गुणों को दूर करने की 5 टिप्स (5 Tips to Overcome Faults and Vices),अपने दोष-दुर्गुणों को कैसे दूर करें? (How to Overcome Your Faults and Vices?) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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