What is main cause of anger in hindi
1.गुस्से का मुख्य कारण क्या है? का परिचय (Introduction to What is main cause of anger in hindi),गुस्से पर नियंत्रण कैसे रखें? (How to control anger?):
- गुस्से का मुख्य कारण क्या है? (What is main cause of anger in hindi),गुस्से पर नियंत्रण कैसे रखें? (How to control anger?):मनुष्य को किसी पर गुस्सा आता है लेकिन वहाँ चलती नहीं तो वह अपना गुस्सा कमजोर पर उतारता है।दफ्तर में अफसर से फटकार खाया हुआ बाबू घर आकर पत्नी या बच्चों पर गुस्सा उतारता है।
राजनेता अपना गुस्सा विपक्षी पार्टियों पर उतारते हैं क्योंकि वे उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकतीं। - किसी पर गुस्सा आए और मजबूर होकर उसे दबाना पड़े तो इसका दिमाग पर असर पड़ता है।आदमी अपनी बेबसी पर मन में कुढ़ता है और अनमना हो जाता है।क्रोध के वेग को रोकने से शरीर के स्नायुमण्डल पर भी बुरा असर पड़ता है।
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2.गुस्से का मुख्य कारण क्या है? (What is main cause of anger in hindi),गुस्से पर नियंत्रण कैसे रखें? (How to control anger?):
- श्रीमद्भगवत गीता में भगवान कृष्ण ने कहा है किः
“क्रोधाद्भवति संमोहः संमोहात्स्मृति विभ्रम।
स्मृतिभ्रंशाद बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति।। - अर्थात क्रोध से मूढ़ता उत्पन्न होती है,मूढ़ता से स्मृति भ्रान्त हो जाती है।स्मृति भ्रान्त होने से बुद्धि का नाश हो जाता है और बुद्धि नष्ट होने पर प्राणी स्वयं नष्ट हो जाता है।काम,क्रोध,लोभ,मोह,मद,मत्सर ये छह मन के विकार हैं जो मनुष्य के शत्रु माने गए हैं।इन छह विकारों को जिसने जीत लिया उसने मानो अपने को जीत लिया।यह छह विकार मन के अंदर ऐसे बसते हैं कि जिनके कारण मनुष्य आप ही अपना दुश्मन हो जाता है और यदि इनको जीतकर अपने मन में वश कर लिया जाए तो मनुष्य आप ही अपना मित्र है।
- जिसने अपने-आपको अपने-आपके द्वारा जीत लिया है अर्थात् उपर्युक्त छहों मनोविकारों को अपने वश में कर लिया है,उसका आत्मा उसका मित्र है।अर्थात् इन छह मनोविकारों को अपने वश में रखकर वह इनसे अपना कल्याण कर सकता है और जिसने इनको अपने आप वश में नहीं किया है,उसके लिए शत्रु तो बने-बनाए हैं।इनके वश में होकर रहनेवाला मनुष्य आप ही अपना घात करने के लिए काफी है।उसके लिए किसी बाहरी शत्रु की आवश्यकता नहीं।
- यह काम और क्रोध जो मनुष्य के रजोगुण अर्थात् अज्ञानमुलक स्वार्थ से पैदा होता है,बड़ा भारी भक्षक,पापी राक्षस है।इस संसार में मनुष्य का यह भारी दुश्मन है।यह किस प्रकार पैदा होता है और किस प्रकार मनुष्य का नाश करता है यह भी जानना आवश्यक है।
- अक्रोध अर्थात् शान्ति से क्रोध को जीते और दुष्टता से सज्जनता को जीते।व्यर्थ क्रोध करने से अपना ही हृदय जलता है,दूसरे की कोई हानि नहीं होती।क्रोध में आकर जब मनुष्य अपने आपे से बाहर हो जाता है,तब अपने बड़े-बड़े प्रियजनों की भी हत्या कर डालता है और जब कभी वही क्रोध घोर दुख और पश्चाताप के रूप में परिवर्तित हो जाता है तब मनुष्य आत्महत्या करने में में भी नहीं चूकता।
- क्रोध और कालकूट जहर में एक बड़ा भारी अंतर है।क्रोध जिसके पास रहता है उसी को जलाता है परंतु जहर जिसके पास रहता है उसको कोई हानि नहीं पहुंचाता।
- हमारा आचरण मधुरतापूर्ण हो,हम जिस कार्य में तत्पर हों,वह मधुरता पूर्ण हो,हम मधुर वाणी बोले,हमारा सब कुछ मधुमयी हो।
भगवान गौतम बुद्ध ने कहा है कि जो मनुष्य मन में उठे हुए क्रोध को दौड़ते हुए रथ के समान शीघ्र रोक लेता है उसी को मैं सारथी समझता हूं,क्रोध के अनुसार चलने वाले को केवल लगाम रखने वाला कहा जा सकता है।
परंतु नीति में यह भी कहा है कि “जिस क्रोध से कुटुंबी,अपने इष्ट-मित्र अथवा दूसरों का आचरण सुधरें,भगवान में पूज्य बुद्धि उत्पन्न हो,दया,उदारता और परोपकार में प्रवृत्ति हो वह क्रोध बुरा नहीं है।
3.क्रोध का दृष्टान्त (A Parable of Anger):
- विश्वामित्र वास्तव में बहुत क्रोधी थे।क्रोध में उन्होंने सोचा कि मैं महर्षि वशिष्ठ को मार डालूंगा।फिर मुझे ब्रह्मऋषि की जगह राजऋषि कहने वाला कोई नहीं रहेगा।ऐसा सोचकर वे एक छुरा लेकर उस वृक्ष पर जा बैठे जिसके नीचे बैठकर वशिष्ठ अपने शिष्यों को पढ़ाते थे।महर्षि वशिष्ठ के पास शिष्य पढ़ने के लिए आए और नीचे बैठ गए।महर्षि वशिष्ठ आए और अपने आसन पर विराजमान हो गए।शाम हो गई।आकाश में पूर्णमासी का चांद निकल आया।विश्वामित्र सोच रहे थे कि अभी सब विद्यार्थी चले जाएंगे।इसके पश्चात मैं नीचे उतरूँगा और एक ही वार से शत्रु (वशिष्ठ) को खत्म कर दूंगा।तभी एक विद्यार्थी ने चांद की ओर देखकर कहा कि कितना मनमोहक चांद है।कितनी सुन्दरता है आज इस चाँद में।
- महर्षि वशिष्ठ ने चाँद की ओर देखा और बोले,यदि तुम ऋषि विश्वामित्र को देखो तो इस चाँद को भूल जाओ।यह चाँद सुंदर अवश्य है परंतु ऋषि विश्वामित्र इससे भी अधिक सुंदर है।यदि उसके अंदर क्रोध का कलंक न हो तो वे सूर्य की भांति चमक उठे।
- विद्यार्थी ने कहा कि परंतु महाराज ऋषि विश्वामित्र तो आपके शत्रु हैं।स्थान-स्थान पर आपकी निंदा करते हैं।
महर्षि वशिष्ठ बोले मैं जानता हूँ परन्तु मैं यह भी जानता हूं कि वे मुझसे अधिक विद्वान है।मुझसे अधिक तप उन्होंने किया है।मुझसे अधिक महान् है वे।मेरा माथा उनके चरणों में झुकता है। - वृक्ष पर बैठे विश्वामित्र इस बात को सुनकर चौंक पड़े।वह वशिष्ठ को मारने के लिए बैठे थे और वशिष्ठ वृक्ष के नीचे अपने विद्यार्थियों को विश्वामित्र के गुणों का वर्णन कर रहे थे।
- ऋषि विश्वामित्र का ह्रदय परिवर्तन हुआ और उनके अंदर का क्रोध बर्फ की तरह पिघलकर समाप्त हो गया,गायब हो गया।एकदम से वे पेड़ से नीचे कूद पड़े।छुरे को एक ओर फेंककर वशिष्ठ के चरणों में गिरकर बोले,मुझे क्षमा कर दो।मैं आपका अपराधी हूँ।
- वशिष्ठ ने प्रेम से उन्हें उठाकर बोले,उठो ब्रह्मऋषि।विश्वामित्र के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा जब वशिष्ठ ने उन्हें ब्रह्मऋषि कहकर पुकारा।विश्वामित्र ने कहा कि आप तो मुझे ब्रह्मऋषि मानते ही नहीं थे।वशिष्ठ बोले आज से तुम ब्रह्मऋषि हुए महापुरुष।तुम्हारे अन्दर का क्रोध रूपी चाण्डाल था वह निकल गया है।यह क्रोध बहुत बुरी बला है।यह संपूर्ण जीवन के जप और तपस्या को क्षणभर में नष्ट कर देता है।
- उपर्युक्त आर्टिकल में गुस्से का मुख्य कारण क्या है? (What is main cause of anger in hindi),गुस्से पर नियंत्रण कैसे रखें? (How to control anger?) के बारे में बताया गया है।
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