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Ill-Effects of Neglect of Talents

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1.प्रतिभाओं की उपेक्षा के दुष्परिणाम का परिचय (Introduction to Ill-Effects of Neglect of Talents),प्रतिभाओं की उपेक्षा के महत्त्वपूर्ण कारण (Important Reasons for Neglect of Talent):

  • प्रतिभाओं की उपेक्षा के दुष्परिणाम (Ill-Effects of Neglect of Talents) देश को भुगतने पड़ रहे हैं।यदि प्रतिभाओं को उचित सम्मान,वेतन व साधन-सुविधाएँ दी हुई होती तो आज देश की दशा और दिशा बहुत अलग होती।
  • अमेरिका,रूस,ब्रिटेन,फ्रांस,जर्मनी इत्यादि देशों में प्रतिभाओं को भरपूर सुविधाएं,ऊँचे वेतन तथा सम्मान देने के कारण आज वे विकसित देशों की श्रेणी में खड़े हैं।इन देशों की पंक्ति में खड़ा होने के लिए आज कोई देश सोच भी नहीं सकता है।
  • यदि देश को विकास,उन्नति के पथ पर द्रुतगति से आगे बढ़ाना है तो हमें प्रतिभाओं को उचित सम्मान और साधन-सुविधाएँ उपलब्ध कराना ही होगा।भारत में प्रतिभाओं के बलबूते व्यावसायिक एवं आर्थिक महाशक्ति बनने की भरपूर क्षमता है।यहाँ समाज के सभी वर्गों से उभरने वाली प्रतिभाएं अपने प्रतिभा व परिश्रम के बल पर आगे बढ़ रहे हैं।उनकी व्यावसायिक समझ में आश्चर्यजनक क्षमता है।
  • देश के पास यह ऐसा अतुलनीय संसाधन (प्रतिभा) है जिसका कहीं कोई तोड़ नहीं है।यही तो वजह है कि अमेरिका जैसे विकसित देश व बड़े-बड़े व्यावसायिक प्रतिष्ठान भारत की प्रतिभाओं को तरजीह दे रहे हैं।देश को,राजनीतिक नेतृत्त्व को प्रतिभाओं की तरफ ध्यान देना होगा तभी राष्ट्र की प्रगति तेजी से आगे बढ़ सकेगी।
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2.प्रतिभाओं की उपेक्षा के दुष्परिणाम (Ill-Effects of Neglect of Talents):

  • प्रतिभाएँ राष्ट्र की अमूल्य धरोहर है।अतः इनकी उपेक्षा किसी भी दृष्टिकोण से अनुचित है।भारत में प्राचीन काल का इतिहास देख लें,प्रतिभाओं ने विभिन्न परिस्थितियों में अपनी प्रतिभा और बुद्धि व ज्ञान के सदुपयोग से राष्ट्र और समाज को नई दिशा दी है,अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया है।
  • आधुनिक युग में विकसित देशों को भी देख लें,वे विकसित इसलिए हैं क्योंकि प्रतिभाओं ने वहां महत्वपूर्ण योगदान दिया है।परंतु यह देश का दुर्भाग्य है तथा राजनीतिक नेतृत्त्व की अक्षमता है कि प्रतिभाओं को राष्ट्र निर्माण और विकास की प्रक्रिया से दूर रखा गया है।
  • इनकी योग्यता और सक्षमता को नकारा ही गया है जिसके दुष्परिणाम समग्र राष्ट्र को भोगने पड़े हैं।शासन में नीति निर्माण में प्रमुख भूमिका निभाने वाले सचिवों,कैबिनेट सचिव,मुख्य सचिव की नियुक्तियों,शाहबानो मुकदमा,योजना आयोग (अब नीति आयोग) में नियुक्तियां,उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीशों की नियुक्तियों में राजनीतिकरण का प्रभाव तथा न्यायपालिका को सरकार के प्रति प्रतिबद्ध करने का प्रयास,आरक्षण के नाम पर मनमानी करते हुए अयोग्य व्यक्तियों की नियुक्ति एवं प्रतिभा की उपेक्षा आदि अनेक ऐसे मामले हैं जिनमें प्रतिभाओं की उपेक्षा ही नहीं की गई है बल्कि उनको अपमानित भी किया गया है।
  • देश पतनोन्मुख स्थिति से निपटने के लिए जरूरत है समय पर कार्य निपटाना जिनमें प्रतिभाशाली वर्ग की सक्रियता प्रमुख शर्त है।हालांकि पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से विभिन्न लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु कदम उठाए गए जो पूर्णतः असफल ही रहे।इनकी असफलता का सबसे प्रमुख कारण इनकी रूपरेखा तथा लक्ष्यों का निर्धारण प्रायः भ्रष्ट राजनेताओं तथा भ्रष्ट नौकरशाहों के द्वारा किया गया जिसमें विषय विशेषज्ञ और प्रतिभाशाली वर्ग को उपेक्षित रखा गया जिसके परिणाम हमारे सामने हैं।आरक्षण की नीति के तहत अधिकांश सरकारी,गैर सरकारी तथा लाभकारी पदों पर अयोग्य व्यक्तियों की नियुक्ति की जाती है तथा योग्य और सक्षम व्यक्ति उचित अवसर से वंचित रह जाते हैं।समस्त शासन तंत्र इन्हीं गलत मापदंडों के इर्द-गिर्द उलझ गया हैं।दूसरी ओर समस्याएं विकराल रूप धारण करती जा रही है।
  • समस्याओं की श्रृंखला में बढ़ती जनसंख्या की विस्फोटक स्थिति वास्तव में समस्त समस्याओं की जननी है।इसके समाधान के लिए आज तक कोई प्रभावी कदम नहीं उठाए गए।लोगों में परिवार नियोजन के लाभ का प्रचार-प्रसार पूर्ण रूप से नहीं हुआ है।स्वास्थ्य सुविधाएं जर्जर हैं।देश में बड़ी संख्या को प्राथमिक चिकित्सा भी उपलब्ध नहीं है जिससे असामयिक मौतों की संख्या में उत्तरोत्तर वृद्धि हो रही है।एक ओर प्रदूषण की समस्या चरम सीमा पर है।हमारी राष्ट्रीय राजधानी का दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में शीर्ष स्थान में है तो दूसरी ओर लोगों को पीने के योग्य स्वच्छ पानी भी उपलब्ध नहीं है।
  • देश की आर्थिक और निर्माणी क्षेत्र पर नजर डालें तो वहां कृषि का पिछड़ापन,सिंचाई सुविधाओं का अभाव है।किसानों को रासायनिक खाद और बीज उपलब्ध नहीं है।जीवन के प्रत्येक क्षेत्र की समस्त समस्याओं के मूल में झाँके तो स्थिति स्पष्ट होती है कि देश के नवनिर्माण तथा नियोजनकाल में प्रतिभाओं की उपेक्षा ने ही देश की स्थिति को इतना जर्जर और भयावह बना दिया है।
  • राष्ट्र निर्माण में प्रतिभाशाली वर्ग को यथोचित अवसर प्रदान किया जाता तो देश आज ऊंचाइयों पर होता।इस कर्मयोगी,सामर्थ्यवान,योग्य तथा सक्षम वर्ग के महत्त्व को समझा ही नहीं गया।हमने विकास की ऐसी प्रक्रिया,जो एक कदम आगे चलकर दो कदम पीछे हटती है का अनुसरण किया है।
  • अयोग्य सत्तासीनों की तर्कहीन तथा त्रुटिपूर्ण नीतियों ने देश को दुर्दशा के ऐसे ताने-बाने में बुन दिया है जिससे निकल पाना दुसाध्य और चुनौतीपूर्ण कार्य है।समय रहते इस प्रतिभाशाली वर्ग को उचित अवसर देकर राष्ट्र आज भी इस समस्या और दुर्दशा की स्थिति से मुक्ति पा सकता है।अतः स्पष्ट है कि प्रतिभाओं की उपेक्षा के कारण ही ये दुष्परिणाम देखने को मिल रहे हैं।

3.प्रतिभाशाली वर्ग का पूर्वाग्रह (The Bias of the Talented Class):

  • उपर्युक्त शीर्षक दो बातें कहता-सा लगता है और दोनों ही की अपनी अलग-अलग प्रतिध्वनियाँ हैं।पहला तो यह है कि प्रतिभाशाली वर्ग द्वारा देश की घटनाओं के प्रति उदासीन व्यवहार के चलते ऐसी भयावह स्थिति पैदा हुई है और दूसरा यह है की प्रतिभाओं के प्रति जनता और सत्ता का ऐसा उपेक्षापूर्ण व्यवहार रहा कि यह वर्ग हाशिए पर चला गया।कारण चाहे जो भी हों इतना तो स्पष्ट है ही कि आजादी के बाद प्रतिभाशाली वर्ग अपने कुछ विशिष्ट आग्रहों के चलते ही यह भयावह स्थिति बनी है।
  • प्रतिभाओं के प्रति उपेक्षापूर्ण व्यवहार के बजाय प्रतिभाएं स्वयं जनता का नेतृत्त्व ग्रहण करने,अपने आपको आगे लाने,जनता के साथ जोड़ने से हिचकता रहा।उसकी अपनी ही एक दुनिया थी जिसकी अपनी विशिष्ट समस्या थी।वह जनता की सामान्य दुनिया से धीरे-धीरे कटता चला गया है,दूर होता गया है।यहां तक की यह वर्ग मतदान करते हुए भी संकोच करता है।
  • प्रतिभाओं के ऐसे उदासीन व्यवहार ने ही देश का नेतृत्त्व एक अकुशल एवं भ्रष्ट हाथों में जाने दिया जिसने अपने स्वार्थों को सर्वोपरि रखा।आजादी के बाद दो तरह की प्रतिभाएं थी।एक सरकारी प्रतिभाएं और दूसरे वास्तविक स्वतंत्र प्रतिभाएँ।
  • सरकारी प्रतिभाएं सरकार के हर अच्छे-बुरे काम पर ताली बजाकर सरकार की पीठ ठोकते हुए भांडों का ‘रोल’ निभाते रहे।जाहिर है इन्हें पूरा सरकारी संरक्षण दिया गया।उन्हें सरकारी पदों,उपाधियों से नवाजकर सरकारी रंगमहलों में ऊंचे पदों पर बिठाया गया।समस्त सरकारी सुविधाओं को भोगते हुए ये लोग मीडिया पर भी छाए रहे जो बचे रहे वे सत्तासीन राजनीति में मनोनीत होने के अवसर खोजते रहे।
  • दूसरे वर्ग की प्रतिभाएं अपने-अपने मतों (मठों) के कोपभवनों में बंद एक-दूसरे पर चिचिआते रहे।उनकी प्राथमिकता अपने विचार को ही श्रेष्ठ सिद्ध कर देने में रही।जिन्होंने हर समस्या की जड़े विरोधी मठों की दीवारों में घुसी देखी।
    इन दोनों वर्ग से हटकर जो प्रतिभाएं बची वे अपना अधिकांश समय दोनों वर्गों को कोसने में ही नष्ट करते रहे,परिणामस्वरूप वे समाज से पूरी तरह कट गए।
  • जाहिर है समस्त वर्गों की प्रतिभाओं के अपने-अपने आग्रह थे।आग्रहों की पूर्ति की डोर सरकारी खजाने से कहीं-न-कहीं जुड़ी थी।परिणामतः वे अपनी धमाचौकड़ी में व्यस्त रहे।प्रतिभाओं द्वारा राजनीति में प्रत्यक्ष हस्तक्षेप कर विकृति पर नियंत्रण करने की कोई जीवन्त परम्परा नहीं बन पाई।वे भूल गए कि एक प्रतिभा का धर्म पथभ्रष्ट हुए समाज,सत्ता,सरकार को आइना दिखाना है।बजाय इसके वे खुद उस कीचड़ में धँसते चले गए।
  • प्रतिभाओं ने अपने कर्त्तव्य की इतिश्री समस्या के पक्ष या विपक्ष में कुछ लिख भर देने में ही समझ ली।उसका कार्यक्षेत्र समस्या के विरुद्ध डंड-कमंडल लेकर उठ खड़े होने तक नहीं फैला।वह एयर कंडीशन में सिकुड़ा बैठा रहा।कहना न होगा कि वह अपने समय से जुड़ा नहीं रह सका और न ही उसने ऐसी कोई कोशिश की कि समाज को नेतृत्त्व दे सके।अगर ऐसा कभी हुआ भी तो केवल तब जब उनका अपना संकट बढ़ गया।वास्तव में उसमें ऐसा कोई साहस बचा ही नहीं था।गहराई,निडरता और उदारता के साथ सोचने के भाव को उसने तिलांजलि दे दी।परिणाम यह हुआ कि वह विचारों के प्रजातंत्र से सच्चाई का चुनाव कर पाने में असमर्थ रहा।
  • एक बड़ा प्रतिभाशाली वर्ग विभिन्न विचारों की वैधता के लिए खुद प्रमाण होता है अपनी प्रामाणिकता का आधार दूसरे विचारों या विचारधारा को नहीं बनाता।कालिदास ने जब ‘प्रत्यक्ष बुद्धि’ को नकारा तो वह प्रतिभा की गर्वोक्ति मात्र नहीं थी।बुद्धि के प्रति बुनियादी निष्ठा थी जिससे वे किसी भी कीमत पर समझौता करने को तैयार नहीं थे क्योंकि यह निष्ठा ही उनकी रचनात्मक ऊर्जा का स्रोत थी।आज इसी निष्ठा का लोप हो चुका है।प्रतिभाएँ अपने आपको किसी न किसी विचारधारा का पिछलग्गू बनाकर सुरक्षित हो गया है।परिणामस्वरूप उसके लिए पूरे उत्साह और ईमानदारी के साथ नेतृत्त्व करना असम्भव हो गया है।इस तरह न तो वह जनता से और न ही सत्ता से सार्थक संवाद स्थापित कर सका।
  • समाज में विसंगतियों का,टूटन का जो दौर शुरू हुआ है जिसमें समाज के ताने-बाने में न जाने कितने खोखल,दरारें,छिद्र पैदा कर दिए हैं वह इसलिए नहीं कि समाज ने प्रतिभाओं की उपेक्षा की बल्कि इसके उलट प्रतिभाओं के आग्रह ही कुछ अलग हो गए हैं।उनकी निष्ठा एवं प्रतिबद्धता गालबजाऊ गोष्ठियों और सत्ता सुख भोगने तक ही है।उनकी प्राथमिकताएं बुराई के विरुद्ध न होकर या तो बुराई का अंग बनने या चुपचाप बैठे रहने की हो गई है।
  • हमारे देश को दुर्जनों की दुर्जनता से उतना नुकसान नहीं पहुंचा है जितना सज्जनों की उदासीनता से।प्रतिभाशाली इस दृष्टि से विचार करें तो राष्ट्र का भला होगा।

4.निष्कर्ष (Conclusion of the Ill-Effects of Neglect of Talents):

  • भारत में वर्तमान समय में लोकतंत्र है और लोकतंत्र में सबसे प्रभावी राजनेता वर्ग होता है यदि कोई स्वतंत्र विचारधारा और निर्भीक व्यक्ति राष्ट्र के हित की,सही बात कहता है और लागू करने का प्रयास करता है तो या तो राजनीतिक नेता उसे हाशिए पर डाल देता है अथवा ऐसे व्यक्ति पर कोई-न-कोई झूठा आक्षेप लगाकर सत्ता से बेदखल करवा दिया जाता है अथवा उसकी हत्या करवा दी जाती है।इसका अर्थ यह नहीं है की प्रतिभाओं को अपनी स्वतंत्र विचारधारा और राष्ट्र हित की बात कहना छोड़ देना चाहिए।यहाँ मंतव्य यह है कि राष्ट्र के विकास में,राष्ट्र की भागीदारी में ऐसे व्यक्ति को किसी भी प्रकार हटा दिया जाता है।
  • उदाहरणार्थ मुंबई नगर निगम के अधिकारी श्री खैरनार ने ईमानदारी से कार्य करने का प्रयास किया तो उन्हें निलंबित कर दिया गया।इसी प्रकार मुख्य चुनाव आयुक्त टी. एन. शेषन ने ईमानदारी से कार्य किया तो उनके मार्ग में कई अड़चने डाली गई।सेवानिवृत्त होने के बाद जब वे राष्ट्रपति के चुनाव में खड़े हुए तो राजनीतिज्ञों ने उन्हें नहीं चुना क्योंकि उन्हें पता था कि टी एन शेषन एक योग्य और कुशल शासक हैं और किसी के दबाव में काम करने वाले नहीं है।वे सत्ता पक्ष के हाथ की कठपुतली (Rubber Stamp) साबित नहीं होंगे।
  • नोबेल पुरस्कार प्राप्त डॉक्टर हरगोविंद खुराना को देश में कोई तवज्जो नहीं दी गई।उन्होंने कोशिश की कि कोई पद मिल जाए किंतु निराश होकर उन्हें अमेरिका जाना पड़ा।सुब्रमण्यम चंद्रशेखर विदेश से पढ़कर भारत लौटे,उन्होंने बहुत कोशिश की कि उन्हें किसी विश्वविद्यालय में प्रोफेसर का पद मिल जाए परंतु कोई पद नहीं मिला।अंत में वे भी अमेरिका चले गए और शोधकार्य में उन्हें नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ।
  • एक नोबेल पुरस्कार जितनी प्रतिभा यदि देश छोड़कर जाती है तो देश को अपार क्षति उठानी पड़ती है।परंतु देश के राजनेताओं और कर्त्ताधर्ताओं को यह बात समझ में नहीं आती है।
  • इन परिस्थितियों में कोई प्रतिभा स्वतंत्र विचारधारा रखकर निर्भीक होकर कैसे कार्य कर सकता है,यह आसानी से अनुमान लगाया जा सकता है।इस प्रकार हजारों गणितज्ञ और वैज्ञानिक देश में उनको उचित सम्मान व सुविधाएँ न मिलने के कारण देश छोड़कर चली गई हैं।राजनीतिक नेतृत्त्व और सत्तासीन व्यक्ति शासन में इस तरह कुंडली मारकर बैठ जाते हैं कि वे अपनी निजी हित,दल के बारे में सोचते हैं न कि राष्ट्र के बारे में।
  • वास्तव में स्वतंत्र विचारधारा,निष्पक्ष और निष्पक्ष निर्णय लेने वाले तथा राष्ट्र के हित के बारे में सोचने वाले उपर्युक्त उदाहरणों से स्पष्ट है कि कोई भी प्रतिभा कैसे प्रेरणा ग्रहण करके आगे बढ़ सकती है और राष्ट्र के विकास में योगदान दे सकती है? ऐसे त्यागपूर्ण और ईमानदारीपूर्ण कार्य करने वाले दुर्लभ इसलिए ही होते जा रहे हैं क्योंकि उनकी उपेक्षा की जाती है,प्रताड़ित किया जाता है अथवा हत्या करवा दी जाती है।

5.प्रतिभाओं की उपेक्षा का दृष्टांत (An Example of Neglect of Talents):

  • एक विद्यार्थी स्कूली शिक्षा प्राप्त करने के बाद विदेश पढ़ने के लिए चला गया।विदेश में गणित से पीएचडी करने के बाद देश लौटकर आ गया।हालांकि वहां (विदेश में) बेहतरीन ऑफर दिए गए परंतु उसकी नजर में धन कमाना ही सब कुछ नहीं था बल्कि समाज व देश के लिए भी वह कुछ करना चाहता था।जिंदगी का यही मकसद लेकर वह भारत लौटा।
  • वह बड़े उत्साह और उम्मीद से भारत लौटा था।उसे आशा थी कि किसी विश्वविद्यालय में अथवा किसी प्रयोगशाला में शोधकार्य करने हेतु सुविधाएँ मिल जाएगी।वह इधर-उधर भटकता रहा।कई महीनो तक कोशिश करने के बाद भी उसकी प्रतिभा को नहीं पहचाना गया जिससे उसकी सारी आशाओं पर पानी फिर गया।जाहिर है उसे भारत में न तो कोई पद मिला और न शोधकार्य के लिए सुविधाएं मिली।
  • देश में खोजकार्य करने के लिए उचित वातावरण नहीं है,अच्छी प्रयोगशालाएं नहीं है,इसलिए देश के प्रतिभाशाली शोधकर्ता विदेश चले जाते हैं।विदेश में उन्हें खूब सुविधाएं,पर्याप्त पैसा मिलता है इसलिए वे वहां जाकर वही बस जाते हैं।भारत में आज भी एक योग्य व्यक्ति को किस प्रकार की कठिनाइयां झेलनी पड़ती है इससे डॉक्टर हरगोविंद खुराना और डॉक्टर चंद्रशेखर सुब्रमण्यम के जीवन संघर्ष से अच्छी तरह से समझा जा सकता है।
  • अंत में उस युवा प्रतिभाशाली गणित के विद्यार्थी ने विदेश जाने का निश्चय कर लिया।देश छोड़ने से पहले उसने एक भारतीय तरुणी से विवाह कर लिया ताकि भारत के प्रति उसका लगाव रहे।
  • फिर उस विद्यार्थी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा।विदेश में वह तरक्की के रास्ते पर आगे ही बढ़ता चला गया।उसके दर्जनों शोध-निबंध विदेश की पत्र-पत्रिकाओं में छपते रहे।उनके शोध कार्य के लिए उन्हें कुछ प्रसिद्ध पुरस्कार भी मिले।उन्होंने विदेश के कई विश्वविद्यालयों में भाषण भी दिए।पर अपना देश उनकी प्रगति से बेखबर था।वहाँ वह गणितीय शोध संस्थान में प्राध्यापक नियुक्त हुए।बाद में उन्हें इस संस्था का महानिदेशक भी बनाया गया।एक भारतीय को विदेश में इतना बड़ा पद मिलना सचमुच ही बड़े गौरव की बात है।पर हमारे देश के शासन के सूत्रधार अभी भी उस विद्यार्थी के शोध कार्य से बेखबर रहे।अंत में उसे गणित का सर्वोच्च पुरस्कार मिला तब भारत के देशवासियों को पता लगा।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में प्रतिभाओं की उपेक्षा के दुष्परिणाम (Ill-Effects of Neglect of Talents),प्रतिभाओं की उपेक्षा के महत्त्वपूर्ण कारण (Important Reasons for Neglect of Talent) के बारे में बताया गया है।

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6.गणित में होशियार छात्र (हास्य-व्यंग्य) (Brilliant Student in Mathematics) (Humour-Satire):

  • पिता:बेटा तुम्हारी कक्षा में गणित में सबसे होशियार कौन है?
  • बेटा:जी,कमलेश।
  • पिता:अच्छा,तब तो वह कक्षा में सबसे मेधावी होगा और फर्स्ट आता होगा।
  • बेटा:जी,इसलिए नहीं।वह परीक्षा में नकल करता है परंतु कभी पकड़ा नहीं जाता है।

7.प्रतिभाओं की उपेक्षा के दुष्परिणाम (Frequently Asked Questions Related to Ill-Effects of Neglect of Talents),प्रतिभाओं की उपेक्षा के महत्त्वपूर्ण कारण (Important Reasons for Neglect of Talent) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.क्या विदेश में अच्छे जॉब के ऑफर प्रतिभाओं ने ठुकराएं हैं? (Have Talents Turned Down Offers of Good Jobs Abroad?):

उत्तर:हां,देश के शीर्ष मैनेजमेंट स्कूल इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट अहमदाबाद के छात्रों द्वारा विदेश के बेहतरीन ऑफर ठुकराए हैं।कई छात्रों ने तो विदेश जाने के लिए होने वाली चयन प्रक्रिया में भाग ही नहीं लिया क्योंकि उनकी नजर में धन कमाना ही सब कुछ नहीं है बल्कि देश व समाज की सेवा करना भी एक मकसद है।

प्रश्न:2.युवा वर्ग में देश में जॉब करने के प्रति उत्साह कम क्यों है? (Why is There Less Enthusiasm Among the Youth to Work in the Country?):

उत्तर:इस उत्साह की कमी का कारण सरकारी नीतियाँ और राजनीतिक दल हैं,जो जात-पाँत की विभाजनकारी रेखाएं खींचकर देश और समाज को बांटने का काम कर रहे हैं।परंतु युवाओं को यह भी सोचना होगा कि आने-जाने वाली सरकारें या फिर अपनी टूटन से परेशान राजनीतिक दल इस देश का पर्याय नहीं है।भारत हम सब का देश है।इस पर किसी एक राजनीतिक दल का एकाधिकार नहीं है।राष्ट्रीय गौरव की रक्षा के लिए युवा प्रतिभाओं को ही आगे आना है।

प्रश्न:3.विदेशी विश्वविद्यालय भारतीय विद्यार्थियों को क्यों लुभाते हैं? (Why Do Foreign Universities Attract Indian Students?):

उत्तर:विदेशी विश्वविद्यालय क्षेत्रीय छात्रों की तुलना में विदेशी छात्रों से दो-तीन गुना ज्यादा फीस लेते हैं।अतः उनके लिए यह बड़ा ही लाभप्रद व्यवसाय है।विदेशी विश्वविद्यालय भारतीय विद्यार्थियों को लुभाने के लिए कई हथकंडे अपना रहे हैं परंतु देश के प्रति जज्बा रखने वाले ये युवा प्रतिभाएं इस बात को समझ रहे हैं।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा प्रतिभाओं के उपेक्षा की दुष्परिणाम (Ill-Effects of Neglect of Talents),प्रतिभाओं की उपेक्षा के महत्त्वपूर्ण कारण (Important Reasons for Neglect of Talent) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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