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4Tips for Staying Silent to Gain Power

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1.शक्ति अर्जित करने के लिए मौन रहने की 4 टिप्स (4Tips for Staying Silent to Gain Power),छात्र-छात्राओं के लिए मौन रहने की 4 टिप्स (4 Tips for Students to Stay Silent):

  • शक्ति अर्जित करने के लिए मौन रहने की 4 टिप्स (4Tips for Staying Silent to Gain Power) के आधार पर छात्र-छात्राएं अनावश्यक ऊर्जा के क्षय को रोक सकेंगे और उसे उपयोगी कार्य में लगा सकेंगे।मौन मूर्ख का बल अर्थात् मौन रहने पर मूर्ख की मूर्खता प्रकट नहीं होती और ज्ञानियों का आभूषण है।इसलिए रोजाना कुछ समय मौन रहने का अभ्यास करना चाहिए।
  • ज्ञानी व्यक्ति के शब्दों में बहुत शक्ति होती है परंतु उसके मौन में तो ओर अधिक शक्ति होती है।हम व्यर्थ तथा अनावश्यक बातें करके अपना बहुत सा समय नष्ट करते हैं जबकि सार्थक बातें बहुत कम करते हैं।मौन रहकर हम अपने दोषों का अवलोकन कर सकते हैं और आत्मिक मार्गदर्शन प्राप्त कर सकते हैं।
  • मौन के द्वारा संकेत में कही हुई बातों को हम बहुत काल तक याद रखते हैं।जबकि रोजाना बोले गए शब्दों,कथा,प्रवचनों को सुबह सुनते हैं तो शाम तक भुला देते हैं।
  • महात्मा गौतम बुद्ध से ब्रह्म विषयक कोई कुछ पूछता था तो वे मौन हो जाते थे क्योंकि ब्रह्म (परमात्मा) का शब्दों के द्वारा वर्णन किया ही नहीं जा सकता है।ब्रह्म तो अनुभूति का विषय है।
  • हम लोग परमात्मा को जानने की उत्सुकता तो दिखाते हैं परंतु स्वयं को जानने का प्रयास बिल्कुल नहीं करते हैं।अतः अपने सद्गुणों का विकास करके परमात्मा की सृष्टि का विकास करने में योगदान दें तो यह ज्यादा अच्छा है।
  • मूर्ख व्यक्ति बड़बड़ करता है,गप्प हाँकता है,विवाद करता है।वह यह कहते हुए गौरव का अनुभव करता है कि उसने अपने विपक्षी की बोलती बंद कर दी और अंततः उसी की बात रही।वह सदैव अपने बचाव में अपनी ऊर्जा को व्यय करता रहता है तथा अलाभकर माध्यमों द्वारा अपनी शक्ति का दुरुपयोग करता है।बुद्धिमान व्यक्ति आत्म-प्रशंसा,वाद-विवाद आदि से दूर रहता है और दृष्टा बनकर रहता है।
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2.मौन न रहने के दुष्परिणाम (Consequences of Not Being Silent):

  • व्यावहारिक जीवन में मौन न रहने से कई अनर्थ पैदा होते हैं।समाज में विग्रह,लड़ाई,झगड़े,कलह आदि की शुरुआत बोलने से होती है।एक-दूसरे को भला-बुरा करने पर ही लोग उत्तेजित होकर अनीति करते हैं।वाचाल की स्थिति में हम अपने अज्ञान,मूर्खता,फूहड़पन को प्रकट कर देते हैं।अज्ञानी व्यक्ति यदि वाचाल होगा तो जल्दी ही अपनी मूर्खता प्रकट कर देगा।
  • वाचालता,व्यर्थ प्रलाप चाहे वह किसी प्रेरणा से क्यों न हो,हानिकारक है।अंडे देने वाली जलमुर्गी यह मूर्खता करती है कि वह चहचहाने लगती है।उसकी चहचहाहट सुनकर डोमकौआ आ जाता है,वह उसके अंडे भी छीन लेता है तथा उन वस्तुओं को भी खा जाता है जो उसने अपनी भावी संतान के लिए रखी थी।
  • जिस विषय में कोई जानकारी नहीं होती है और हम उस विषय में बोलते हैं तो हमारा अज्ञान प्रकट हो जाता है तथा हमें लज्जित और अपमानित होना पड़ता है।अनावश्यक रूप से बोलने वाला,ज्यादा बोलने वाला,बिना विचारे बोलने वाला,जिस विषय का ज्ञान न हो उस विषय में बोलने वाला,झूठ बोलने वाला,गलत बोलने वाला और दूसरे की निंदा करने वाले वचन बोलने वाला कभी न कभी लज्जित और अपमानित होता ही है।
  • दुनिया में अधिकांश लड़ाई,झगड़े,दंगे-फसाद अनावश्यक व अहितकर बोलने से ही होते हैं,इन सबकी दवा मौन रहना ही है।अनावश्यक बोलने से व्यक्ति की संचित ऊर्जा नष्ट होती है।

3.मौन रहने के लाभ (Benefits of Silence):

  • मौन से हमारी ऊर्जा का क्षय रुक जाता है और ऊर्जा संचित होने लगती है,जिसे कई उपयोगी कार्य कर सकते हैं।जिस तरह इंद्रियसंयम से ब्रह्मचर्य की रक्षा होती है,उसी तरह मौन के लिए वाणी का संयम जरूरी है।
  • अगर बोलना ही हो तो कम बोलो।एक शब्द से काम चल जाए तो दो मत बोलो।मौन में शब्दों की अपेक्षा अधिक शक्ति होती है।
  • यदि विद्यार्थियों को उन्नति और विकास करना है तो उसे लंबे समय तक मौन का सहारा लेना ही पड़ेगा क्योंकि मौन से ऊर्जा का संचय होता है।मौन का सहारा लिया जाए तो बुरे शब्द मुंह से नहीं निकलेंगे और कोई लड़ाई-झगड़ा होने की संभावना नहीं रहेगी।यदि दूसरा व्यक्ति लड़ना चाहे,हाथ चलाकर छेड़छाड़ करें,झगड़ने लगे ऐसी स्थिति में पहला व्यक्ति मौन का सहारा ले ले तो झगड़ा कभी हो ही नहीं सकता।
  • मौन की स्थिति में हम दूसरों की अधिक सुन सकते हैं और अपने ज्ञानकोश को बढ़ा सकते हैं।लोगों को समझने,उनका अध्ययन करने के लिए भी मौन की आवश्यकता होती है।मौन बुद्धिमानी रूपी सहयोगी है जो मनुष्य को अच्छे मित्र देता है।सचमुच जो वाचाल रहते हैं,उनसे भले आदमी दूर रहने का प्रयत्न करते हैं।
  • जिस प्रकार गंदगी के दुष्प्रभाव और बदबू को दूर करने के लिए ढक देना आवश्यक है,उसी तरह अज्ञान,मूर्खता,फूहड़पन को छिपाए रखने के लिए मौन अपेक्षित है।
  • शास्त्रों में तीन प्रकार के पाप बताए गए हैं:वाणी,कर्म और मन से किए गए,ये तीनों ही त्रिपाप हैं।इसमें कोई संदेह नहीं है कि मौन के सहारे से हम वाणी से होने वाले पापों से तो निश्चित रूप से बच सकते हैं।किसी को अप्रिय बोलना,कठोर वचन,गाली देना,झूठ बोलना,चुगलखोरी,आलोचना आदि वाणी के पापों से मौन ही हमें बचा सकता है।इस तरह मौन के द्वारा जीवन में किए जाने वाले एक तिहाई पापों से बच सकते हैं।
  • मौन के द्वारा अधिक बोलने से उत्पन्न दोष जिनसे लड़ाई,झगड़े,क्लेश,ईर्ष्या,द्वेष आदि का उदय होता है,उनसे बच जाएँ।स्मरण रहे सहज मौन हमारे ज्ञान की कसौटी है।जानने वाला बोलता नहीं और बोलने वाला जानता नहीं।
  • ज्ञान की सर्वोच्च भूमिका में सहज मौन स्वयंमेव पैदा हो जाता है।स्थिर जल बड़ा गहरा होता है।उसी तरह मौन मनुष्य के ज्ञान की गंभीरता का चिन्ह है।वाचालता पाण्डित्य की कसौटी नहीं है,गहन-गंभीर मौन ही मनुष्य के पंडित,ज्ञानी होने का प्रमाण है।
  • मौन ही मनुष्य का विपत्ति में सच्चा साथी है,जो अनेक कठिनाइयों से उसे बचा लेता है।
  • मौन के माध्यम से हम अपनी वाणी की क्षमता को नियंत्रित करते हैं।हमारे शरीर व मन से अपार ऊर्जा का बहाव होता है।
  • बोलने के द्वारा भी हमारी बहुत सारी ऊर्जा व्यय होती है।यदि हम मौन धारण करते हैं तो इस ऊर्जा को व्यय होने से बचा सकते हैं और इसका सदुपयोग कर सकते हैं।अनर्गल बोलना,अत्यधिक बोलना,वाद-विवाद करना आदि इसलिए साधनाकाल में वर्जित है।जितना आवश्यक व उपयोगी है उतना ही बोलना चाहिए अन्यथा चुप रहना चाहिए।हमें सार्थक बोलना चाहिए और अधिक सुनना चाहिए।इसलिए भगवान ने इस मानव शरीर में दो कान और एक मुंह दिया है ताकि हम दो कानों से सुने और उसका कम शब्दों में उत्तर दें,साथ में अपनी भावाभिव्यक्ति भी करें।
  • यदि हमें कोई अप्रिय व असहनीय कठोर बातें सुनने को मिलती है उन्हें एक कान से सुनें और दूसरे कान से निकाल दें।उन पर ध्यान न दें क्योंकि उन पर ध्यान देने का मतलब है स्वयं को दुखी और परेशान करना।कई बार ऐसी बातों को सुनने से व्यक्ति का क्रोध व अहंकार जाग्रत होता है जो उसे दिग्भ्रमित कर सकता है।
  • इसलिए हमें इतना समझदार तो होना ही चाहिए कि हम किस तरह की बातों को ध्यान से सुनें? किन बातों पर ध्यान न दें? कैसी वाणी बोलें? कितना बोलें? और क्यों बोलें? इस संसार में सुनने योग्य वही बातें हैं जो महापुरुषों ने जीवन के संदर्भ में व्यक्ति के लिए कही हैं।वही बातें हमारा मार्गदर्शन करती है,जीवन जीना सिखाती है।

4.मौन के साथ एकांत भी (Even Solitude with Silence):

  • एकांत और मौन ऐसे साधन है जिनका अभ्यास विद्यार्थियों को अवश्य करना चाहिए।अध्ययन में अथवा जीवन में जब कोई समस्या हल नहीं हो रही हो तो एकांत एवं मौन के द्वारा उनका समाधान करने का प्रयास करना चाहिए।एकांत में विद्यार्थी अन्य विद्यार्थियों के साथ से बचता है,वहीं मौन में वह किसी से वार्तालाप नहीं करता,शांत होकर देखता है।
  • एकांत और मौन अपने जीवन में शक्ति अर्जित करने के सशक्त साधन है जिनके द्वारा प्रतिकूल परिस्थितियों का मुकाबला कर सकते हैं।जब हम किसी से मिलते नहीं हैं,एकांत में रहते हैं तो हम स्वयं के सबसे करीब होते हैं।इस समय हमें चिंतन-मनन करने का अधिक समय मिल पाता है।हम स्वयं के प्रति,अपनी क्षमताओं के प्रति आसानी से एकाग्र हो जाते हैं।यद्यपि बाहरी परिस्थितियों द्वारा मिलने वाला तनाव हमें एकाग्र होने में बाधा पहुंचाता है,लेकिन फिर भी एकांत होने पर यह हमें स्थिर व एकाग्र होने से रोक नहीं सकता।
  • इन परिस्थितियों में हम आसानी से यह सोच सकते हैं की विकट परिस्थितियों से निपटने के लिए हमें क्या उपाय करना चाहिए? किस तरह इनका सामना करना चाहिए? हमें क्या-क्या सहायताएं मिल सकती हैं? और अपने अतिरिक्त क्षमताओं को बढ़ाने के लिए हमें क्या करना चाहिए?
  • आत्मा की वाणी को सुनने के लिए,जीवन और जगत के रहस्यों को जानने के लिए,लड़ाई-झगड़े,वाद-विवादों को नष्ट करने के लिए,वाणी के पाप से बचने के लिए,वाणी के तप के लिए तथा अन्यान्य हितकर परिणाम के लिए हमें मौन का सहारा लेना चाहिए।दैनिक जीवन में कम बोलना और हितकर बोलने की आदत डालकर हम लौकिक और आध्यात्मिक प्रगति का द्वार प्रशस्त कर सकते हैं,यह एक सुनिश्चित तथ्य है।
  • एकांत और मौन में यदि हमारा मन स्वस्थ विचारों से परिपूर्ण नहीं है तो अनावश्यक विचारों की दौड़ से मन ओर भी उद्विग्न हो जाएगा।इसी कारण तो कई लोग एकांत एवं मौन में रह ही नहीं सकते।अकेलेपन से उनका जी घबराता है,डर लगता है क्योंकि जब हम अकेले होते हैं तो हम स्वयं का सामना करते हैं।यदि हम अच्छे हैं,अच्छे कर्म किए हैं तो स्वयं का सामना करने से हमें शक्ति प्राप्त होती है और यदि हमने बुरे कार्य किए हैं हमारी अंतरात्मा हमें प्रताड़ना देती है,बुरी तरह से दुत्कारती है और उसका सामना करने का हमारे अंदर साहस नहीं होता।इसलिए उचित यही है कि व्यक्ति अच्छे कर्म की शुरुआत करे।जीवन के अतीत में जो भी दुष्कर्म हुए हैं उनका प्रायश्चित करें।स्वयं की गलतियों को हम स्वीकारें और अपने जीवन को फिर से संवारने के लिए हम कटिबद्ध हो जाएँ।ऐसा होने पर निश्चित रूप से एकांत व मौन का समन्वय हमारे लिए वरदान सिद्ध हो जाएगा।

5.मौन का दृष्टांत (The Parable of Silence):

  • एक उद्दंड गणित का छात्र था परंतु मेधावी था।एक दिन वह कोचिंग करने के बहाने कोचिंग सेंटर गया।कोचिंग निदेशक उस युवक को जानते थे।इसलिए उन्होंने गणित शिक्षक को समझा दिया कि वह किस तरह का छात्र है।गणित शिक्षक बहुत ही विनम्र और सरल स्वभाव के थे।छात्र कोचिंग के नाम से ही चिढ़ता था।वह कोचिंग करने नहीं बल्कि उनको परेशान करने आया था परंतु कोचिंग के निदेशक ऐसे मेधावी छात्र को खोना नहीं चाहते थे।
  • छात्र ने गणित शिक्षक को देखते ही गाली-गलोज करना प्रारंभ कर दिया।गणित शिक्षक शांत भाव से उसकी गालियां सुनते रहे।गालियां देते-देते वह छात्र थक गया।उसने गणित शिक्षक पर गालियों का कुछ भी प्रभाव नहीं देखा तो बड़ा लज्जित हुआ।
  • गणित छात्र गणित शिक्षक के पैरों में गिर पड़ा और बोला मैंने आपके दिल को काफी चोट पहुंचाई है।गणित शिक्षक ने कहा कि मुझे कोई कष्ट नहीं हुआ है मुझे मेरी सहनशीलता और धैर्य को परखने का अवसर मिला है।
  • गणित छात्र उस कोचिंग संस्थान में कोचिंग करने लग गया और अपना स्वभाव सुधार लिया।कोचिंग संस्थान के निदेशक गणित शिक्षक की रीति-नीति देखकर बहुत प्रसन्न हुए।उन्होंने कहा कि काश मैं भी तुम्हारी तरह मौन व एकांत की साधना करता।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में शक्ति अर्जित करने के लिए मौन रहने की 4 टिप्स (4Tips for Staying Silent to Gain Power),छात्र-छात्राओं के लिए मौन रहने की 4 टिप्स (4 Tips for Students to Stay Silent) के बारे में बताया गया है।

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6.पुस्तक किसने फाड़ी (हास्य-व्यंग्य) (Who Torn Book?) (Humour-Satire):

  • पिताजी:यह पुस्तक किसने फाड़ी है?
  • मीकू:रानी ने।
  • पिताजी:कैसे?
  • मीकू:मैंने पुस्तक से रानी को मारने के लिए पुस्तक फेंकी थी परंतु वह नीचे बैठ गई और पुस्तक दीवार से टकरा गई।

7.शक्ति अर्जित करने के लिए मौन रहने की 4 टिप्स (Frequently Asked Questions Related to 4Tips for Staying Silent to Gain Power),छात्र-छात्राओं के लिए मौन रहने की 4 टिप्स (4 Tips for Students to Stay Silent) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.मौन का क्या अर्थ है? (What Does Silence Mean?):

उत्तर:मौन उस अवस्था को कहते हैं जो वाक्य और विचार से परे है।यह एक शून्य ध्यानावस्था है,जहां अनंत वाणी की ध्वनि सुनी जा सकती है।अध्यात्म जगत का साधक तो मौन के बिना एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सकता।आत्मा से और विश्वव्यापी सूक्ष्म शक्ति से मनुष्य तब तक संबंध स्थापित नहीं कर सकता,जब तक कि वह बाह्य कोलाहल में उलझा रहेगा,बहिर्मुखी रहेगा।अंतर्मुखी होने और अपनी संपूर्ण शक्तियों को एकाग्र तथा संगठित करने के लिए मौन का सहारा विद्यार्थी के लिए अत्यंत आवश्यक है।

प्रश्न:2.क्या आध्यात्मिक साधना में मौन आवश्यक है? (Is Silence Necessary in Spiritual Practice?):

उत्तर:आध्यात्मिक जीवन के विकास के लिए मौन बहुत आवश्यक है।आध्यात्मिक जीवन अपने भीतर भगवद चेतना को प्रतिष्ठित करने और उसे सहज रूप में व्यक्त होने देने की साधना है।इस साधना में सबसे बड़ी बाधा हमारी वाचालता ही है,जो विश्वात्मा की सूक्ष्म वाणी और उसके आदेशों को नहीं सुनने देती।मौन की अवस्था में ही हम आत्मा की वाणी सुन सकते हैं।कितनी ही उत्तम भाषा बोली क्यों न हो,वाणी से आत्मा को नहीं समझा जा सकता,मौन ही आत्मा की भाषा है।

प्रश्न:3.मौन और वाचालता में क्या अंतर है? (What is the Difference Between Silence and Loquacity?):

उत्तर:भड़भड़िया और बड़बड़िया वाचाल है जबकि शांत और चुप रहने वाला मौन व्यक्ति है।बोलना यदि चांदी है तो मौन स्वर्ण है।मौन का महत्त्व वास्तव में बहुत अधिक होता है।वाचाल व्यक्ति प्रभावहीन हो जाता है क्योंकि उसकी आत्मिक ऊर्जा बिखर जाती है।मौनव्रतधारी व्यक्ति ही वास्तव में सामर्थ्यवान एवं बलवान व्यक्ति होता है।मौन रहने वाले व्यक्ति बाह्य जगत की विसंगतियों द्वारा अप्रभावित रहता है और अंतर की शांति के संगीत का आनन्द प्राप्त करता है।मौन शांतधारक कोई भी बात ऐसी नहीं कहता जिसका परिणाम कष्ट अथवा दुःख हो।उसका मन शांत रहता है और जीवन वरदान स्वरूप बन जाता है।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा शक्ति अर्जित करने के लिए मौन रहने की 4 टिप्स (4Tips for Staying Silent to Gain Power),छात्र-छात्राओं के लिए मौन रहने की 4 टिप्स (4 Tips for Students to Stay Silent) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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