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Video Games Poison for New Generation

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1.वीडियो गेम्स नई पीढ़ी के लिए जहर (Video Games Poison for New Generation),वीडियो गेम्स नई पीढ़ी के लिए जहर कैसे है? (How are Video Games Poison for New Generation?):

  • वीडियो गेम्स नई पीढ़ी के लिए जहर (Video Games Poison for New Generation) का काम कर रहा है।पहले की पीढ़ी के बच्चों को किशोरवय में सेक्सी और कामुकता के फोटोग्राफ तथा रेखाचित्र ढूँढते हुए पुस्तकों और लाइब्रेरियों में देखा जाता था।लेकिन अब की पीढ़ी तो बिना आवाज किए बंद कमरे में सब कुछ देखती है और आश्चर्यपूर्ण होकर भी आनंदित होती रहती है।इस मामले में तो सरकारी प्रतिबंधों का भी कोई लाभ दिखाई नहीं देता।
  • वीडियो गेम्स और इंटरनेट का मकड़जाल इतना विस्तृत है,इतना अधिक अंतर्राष्ट्रीय एवं इतना अधिक प्रभावोत्पादक कि यह सरकार के प्रतिबंधों के काबू में आ ही नहीं सकता।
  • इसके साथ सबसे बड़ी बात यह है कि यह दरवाजे पर धक्का मारता रहता है और बाहर के विश्व को,चाहे वह जितना भी खूबसूरत,बदसूरत,प्रेमपूर्ण अथवा घृणास्पद है,घर के आंगन तक ले आता है।
  • हम सभी चाहते हैं कि नग्न दृश्य,कामुकता,सांप्रदायिक झगड़े,नाजीवाद,हिंसात्मक मानव आदि कोई भी हमारे घर में प्रवेश न करें।लेकिन यदि दूसरे अच्छे उद्देश्यों के लिए इसका इस्तेमाल होता है तो ये हमारे घर में अवश्य मौजूद रहेंगे।हाँ,इतना जरूर है कि इस स्थिति में हम अपने दुश्मन को जरूर पहचान लेते हैं।वीडियो गेम्स के दुष्प्रभाव को जानने से पहले आधुनिक अमेरिका और विश्व पर उसका प्रभाव जान लेना जरूरी हैं।क्योंकि विश्व के अन्य देशों पर उसकी अच्छाई व बुराई का तत्काल प्रभाव पड़ता है और पैर पसार लेती है।
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2.आधुनिक अमेरिका और विश्व पर उसका प्रभाव (Modern America and Its Impact on the World):

  • यह अमरीका है।दुनिया में शक्ति संतुलन का अग्रणी देश।हमें यह स्वीकार करने में कोई कोताही नहीं बरतनी चाहिए कि प्रकृति ने अमेरिका को वैभव का जो उपहार दिया है।खनिज भंडार,प्राकृतिक जल स्रोत,शानदार समुद्र,वट प्रतिभा,संपन्न मानव संसाधन,उन्नत कृषि के आंकड़े विस्मय विमुग्ध कर देने वाले हैं।जो चीजें अमेरिका को प्राकृतिक तौर पर थोड़ी कम मिली है उन्हें वहां के निवासियों ने अपने पुरुषार्थ से प्राप्त कर लिया।
  • आज हालत यह है कि विकासशील अर्थव्यवस्था वाले सभी देशों में अमेरिकी कंपनियों के उद्योग लगाने के लिए भारी प्रतियोगिता मची हुई है।हर कोई अमेरिकी पूंजीपतियों को येन-केन-प्रकारेण लुभाने के रास्ते खोजता दिखाई देता है।विकास का अवसर उपलब्ध कराने,शिक्षा एवं स्वास्थ्य की सुविधाएं मुहैया कराने तथा विज्ञान एवं तकनीक की दिशा में अमेरिका का कोई सानी नहीं है।संसाधनों में विनियोग के मामले में वह इतना आगे है कि हम यह कहने के लिए मजबूर हो जाते हैं कि अमेरिका में किसी चीज की कमी नहीं है।अमेरिका में ‘कानून का राज’ चलता है और स्वयं अमेरिका यह दावा करने में पीछे नहीं रहता कि वह संसार का सर्वाधिक सभ्य राष्ट्र है।
  • लेकिन यह तस्वीर का एक पहलू है।दूसरा पहलू यह है कि अमेरिका में करोड़ों बच्चे ऐसे हैं जिनके माता-पिता में से कोई एक शराब का आदी है।प्रताड़ित बच्चों की अवधारणा तथा इसकी वैज्ञानिक परिभाषा की जरूरत सबसे पहले अमेरिका को पड़ी।पारिवारिक विपत्तियों के लिए सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कारण शराबखोरी।चतुर्थ श्रेणी के (जिनके पास पैसे का टोटा होता है) भी 50% लोग मद्य सेवन के आदी हैं।अमेरिका के गृहविहीनों में सबसे बड़ी संख्या नशाखोरों की है।यौन संबंधी सभी अपराधों की एकमात्र जड़ यही है।वहां लाखों लोग बलात्कार के आरोप में जेलों में बंद है।
  • अमेरिका स्वच्छंद यौन संबंधों में विश्वास करने वाला देश है,लेकिन सर्वाधिक शोचनीय आंकड़ा यह है कि अब अमेरिका के 12-14 वर्ष के बच्चे भी अल्कोहल अथवा ड्रग्स के सेवन का निर्णय लेते हैं जबकि एक दशक पहले यह आयु सीमा 16-18 वर्ष थी।
  • प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि सर्वाधिक संपन्न देश में नैतिकता का स्तर इतना गिरा हुआ क्यों है? ये सामाजिक विकृतियां कैसे पैदा होती हैं? वहां किसी चीज की कमी नहीं,लेकिन समय का निरन्तर प्रवाह तो वहाँ भी जारी है ही।अध्यात्म,नैतिक नीति आदर्शों की बातें सिखाई नहीं जाती,पढ़ाई नहीं जाती।अतः मानवीय अंत:प्रेरणा कुछ न कुछ करने,कहीं न कहीं व्यस्त रहने के लिए मनुष्य को प्रेरित तो करती ही रहती है।अमेरिका की यह संतृप्तावस्था अमेरिका को किस दिशा में ले जा रही है कोई नहीं जानता।धनातिरेक के कारण वह महीनों युगोस्लाविया,इराक,वियतनाम इत्यादि पर बमबारी करने का निर्णय आनन-फानन में ले लेता है और इसे क्रियान्वित भी कर डालता है।
  • अमेरिकी समाज की विकृतियों के अध्ययन के पीछे हमारा उद्देश्य सिर्फ इतना ही है कि जैसे-जैसे वैज्ञानिक संसाधनों का विकास हो रहा है सभी देशों की जीवन शैली अमेरिकी समाज का अंधानुकरण करती प्रतीत होने लगती है।अमेरिका दुनिया के धनी लोगों का आदर्श है।इसमें कोई बुरी बात भी नहीं है।किंतु देखा यह जाता है कि किसी देश में किसी खास वैज्ञानिक तकनीक वाले संसाधन का प्रचलन बाद में होता है,उससे जुड़ी सामाजिक बुराइयां पहले पहुंच जाती है।हम कहने की स्थिति में है कि अमेरिका सभ्यता ही प्रत्यक्षतः अंतर्राष्ट्रीय सभ्यता है जिसका प्रसार बढ़ रहा है और इसकी गतिशीलता से शेष विश्व देर-सबेर प्रभावित हो ही उठता है।अतः अमेरिका समाज की समस्याएं सार्वभौम समस्याएं हैं।इसका प्रसार रोकने की कोई भी कोशिश बेईमानी,अल्पजीवी साबित होती है।
  • ये समस्याएं ओर किन रूपों में प्रकट होगी यह तो एक अलग अध्ययन का विषय है,किंतु अमरिकी समाज में बुरी तरह प्रचलित हो चुके इंटरनेट तथा वीडियो गेम्स की पीढ़ी की मूल प्रवृत्तियां शेष विश्व पर भी छा गई हैं।हम इसी को केंद्रित करते हुए कुछ सुझावों की ओर भी संकेत करना चाहते हैं क्योंकि भविष्य के लक्षण ठीक दिखाई नहीं देते।

3.वीडियो गेम्स का कहर (The Havoc of Video Games):

  • वीडियो गेम्स खेलने की लत अमेरिका बच्चों को लग चुकी है।अब शेष विश्व तथा भारत के बच्चे इससे प्रभावित हो रहे हैं।इन वीडियो गेम्स में अधिकांश में हिंसा कहीं न कहीं शामिल होती है।जो बच्चे वीडियो गेम्स देखते हैं और खेलते हैं उनका मानना है कि खेल किसी समस्या का कारण नहीं बन सकते हैं।यहां तक कि उनका तो यह विश्वास है कि वीडियो एवं कंप्यूटर गेम्स से बच्चे तथा लोग स्मार्ट बनते हैं।वर्तमान समय में ड्रग्स से भी ज्यादा प्रचलन इन खेलों का हैं।हम इसे ड्रग्स से इसलिए जोड़ रहे हैं कि व्यक्तिगत एवं सामाजिक दोनों स्तरों पर इसके परिणाम घातक ही साबित हुए हैं।वीडियो गेम्स टेलीविजन के बाद सर्वाधिक लोकप्रिय मनोरंजन का साधन रहे हैं।अधिकांश बच्चे यह खेल प्रतिदिन खेलते हैं चाहे उनके पास उपकरण हो अथवा न हो।सिर्फ इतना ही नहीं है इनके समर्थकों की संख्या भी पर्याप्त है।
  • कई मनोवैज्ञानिकों की राय है की वीडियो खेलों से आई क्यू बढ़ता है।इससे समस्याओं को समझने तथा इन्हें हल करने की क्षमता में वृद्धि होती है।जबकि अमेरिका में हाई स्कूल में हत्यारे बच्चों की इस प्रवृत्ति का विकास करने में इंटरनेट व वीडियो गेम्स ने ही मदद की है।वस्तुतः माता-पिता,अभिभावक बच्चों को इंटरनेट व वीडियो गेम्स का इस्तेमाल करने की प्रेरणा देते हैं।सबकी यही मान्यता है कि आने वाली शताब्दी को इंटरनेट ही संचालित करेगा और कर ही रहा है।
  • एक तकनीकी आश्चर्य है और जिस तरह बिजली और टेलीफोन ने मानव सभ्यता की परिभाषा बदल दी थी,उसी तरह इंटरनेट और वीडियो गेम्स भी एक युगांतरकारी साधन साबित हो गया है।कुछ लोगों का सोचना है कि बच्चे रक्तरंजित खेल अथवा हिंसात्मक खेल गुत्थियां सुलझाते हैं साथ ही वे प्रभाव एवं मानकों,मूल्यों एवं प्रतीकों की एक अलग दुनिया में रहते हैं।और जितनी देर वे ये खेल खेलते हैं माता-पिता की आँखों से ओझल भी रहते हैं।
  • अब यदि वे माता-पिता के सामने तो जंगल के जीवों-वनस्पतियों की जानकारी से संबंधित पेज खोलते हैं,अब जानकारीप्रद चीजें वे कितनी देर तक देखते रह सकेंगे।आखिर उनमें जिज्ञासा की भावना केवल ज्ञानवर्धक वस्तुओं अथवा घटनाओं के लिए ही तो है नहीं।उनके लिए तो संपूर्ण चराचर जगत जिज्ञासा के लिए खुला है।ज्ञान पिपाशा के लिए न केवल उत्सुकता बल्कि पीढ़ियों के संस्कार तथा अनुशासित प्रशिक्षण की भी इतनी ही आवश्यकता होती है।माता-पिता के हटते ही उनकी उंगलियां घृणा,आवेश उत्पन्न करने वाली दुखांत घटनाओं एवं आत्महत्या,बच्चों की पैदाइश,कामुक,सेक्सी,हिंसा जैसी वास्तविकताओं की ओर ले जाने वाले बटनों पर दबती चली जाती है।
  • नशे की लत:क्या वीडियो खेलों का शौक कोई लत है? मनोवैज्ञानिक इसका उत्तर हाँ में देते हुए कहते हैं कि कुछ खिलाड़ी जो इसमें बहुत गहरी दिलचस्पी लेते हैं उसी तरह के लक्षण दिखाने लगते हैं जिस तरह के लक्षण ड्रग्स के शिकार अथवा किसी बहुत आनंददायक आदत के शिकारों में दिखाई देते हैं।गोली मारने,बम मारने,लड़ने और उड़ने के करतब में खेलों में उत्पन्न होते समय धमनियों और मांसपेशियों के बीच तालमेल की प्रणाली विकसित करनी पड़ती है।अतः मस्तिष्क न केवल चित्र देख रहा होता है अथवा उससे प्रभावित होता रहता है अपितु यह स्वयं उसमें भाग लेने की क्रिया में शामिल होता है।जब कोई व्यक्ति इन हिंसक स्रोतों के सामने होता है और अपनी उत्तेजना को नियंत्रण में रखते हुए खेल में शामिल होता है तो इससे उसके अंदर संवेदनात्मक तन्तुओं की सक्रियता बढ़ जाती है और यही सक्रियता ओर अधिक ओर अधिक की मांग करते हुए उसे लत का शिकार बना देती है।
  • निश्चित रूप से यह एक वैज्ञानिक की व्याख्या है जिससे सामान्य पाठक को कोई सरोकार नहीं होता।वीडियो खेल एंड्रेनेलिन की तरह होता है और एंड्रेनेलिन से किसी व्यक्ति को बचाने का केवल एक तरीका है कि उसे यह महसूस करा दिया जाए कि वह इसके कारण मौत के मुंह में चला जाएगा।इस पेशे से जुड़ा एक महत्त्वपूर्ण शब्द है ‘ब्लिंक रेट’।यदि व्यवसाय में लाभ कमाना है तो आपको ‘ब्लिंक रेट’ पर नजर रखनी होगी।यदि विज्ञापन व्यवसाय में किसी विज्ञापन पर लोगों का ध्यान है,तो आपकी ‘ब्लिंक दरे’ गिरती जाएंगी और खेल हिट होता जायेगा।शरीर और मस्तिष्क लगातार इतना अधिक इस खेल में पैठते चले जाते हैं कि कुछ लोगों का विचार है कि शरीर में डोपेमाइन नाम के अणु उत्पन्न होने लगते हैं जो लत के लिए जिम्मेदार माने जाते हैं।

4.संवेदना की मौत (Death of Sensation):

  • वीडियो गेम्स और इंटरनेट की सभ्यता संस्कृति से अलग करके देखना भारी भूल होगी।यह आई क्यू जरूरी,महत्त्वपूर्ण एवं कहें प्रभावशाली सामाजिकता के मूल्य पर बढ़ता है।इसका अर्थ है कि जो बच्चे इंटरनेट अथवा वीडियो के सामने घण्टों गुजारते हैं वे सामाजिक तौर पर अव्यावहारिक हो जाते हैं।हमारा दुर्भाग्य है कि हम ऐसे समाज में रहते हैं जहाँ आई क्यू को तो ज्यादा महत्त्व दिया जाता है किंतु सामाजिकता को नगण्य मान लिया जाता है।
  • यदि ये बच्चे सामाजिक संवेदना का मूल्य सीख ही नहीं सके तो बड़े होकर समाज की वे जो मशीनी सेवा करेंगे उसका क्या परिणाम सामने आएगा।यह सोचने की बात है और इसलिए ही भविष्य के लिए माता-पिता को स्पष्ट रेखांकन कर लेना चाहिए।क्योंकि वह समाज उनके बच्चों ने बनाया होगा जिसमें स्वयं की एवं दूसरों की रक्षा का गुरुतर भार उनके कंधों पर आ पड़ा होगा।
  • अतः सर्वाधिक सामाजिक प्रश्न यही है कि क्या वीडियो गेम्स बच्चों की संवेदना को मार रहे हैं? क्या वे बच्चों को यह शिक्षा दे रहे हैं कि दूसरों की हत्या एवं उत्पीड़न आनंददायक खेल है? क्या टीवी के सामने शांतचित्त बैठने से मस्तिष्क पर जो प्रभाव पड़ता है यह उससे घातक है? क्योंकि बच्चे खेलते समय ओर अधिक एकाग्रचित्त हो जाते हैं।एक समाज के रूप में हमारा दायित्व क्या है? क्या वीडियो गेम्स को प्रतिबंधित कर दिया जाना चाहिए? क्या इंटरनेट को बच्चों की पहुंच से दूर रखने के उपाय किए जाने चाहिए? लेकिन प्रतिबंध जैसी चीज कभी अमल में नहीं लायी जा सकेगी।क्या बच्चों को घातक हथियार लेकर स्कूलों में जाने से रोका जा सका? अवयस्क बालिकाओं के गर्भपात से तंग आकर स्कूलों के प्रधानाचार्यों द्वारा गर्भनिरोधकों के पैकेट बांटे जाने के समाचार भी प्रकाशित होते रहते हैं।व्यावसायिकता के इस दौर में किसी चीज पर प्रतिबंध नहीं लग पाता।
  • कुछ लोगों का तर्क है कि इससे हमारे मन में रक्त,हिंसा,उत्पीड़न के प्रति घृणा के स्तर को ढहाने में मदद मिलती है।वास्तव में ऐसे खेलों का इस्तेमाल सेना को दुश्मन पर गोलियां दागने के लिए प्रशिक्षित करने में किया जाता रहा है।आंकड़े बताते हैं कि द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान केवल 20% सैनिकों ने अपनी बंदूकों का इस्तेमाल मानव शरीर पर किया था जो वियतनाम युद्ध तक 95% कर लिया गया।इससे वीडियो गेम्स तथा प्रशिक्षणों दोनों का महत्त्व दृष्टिगोचर होता है।अब यदि वियतनाम युद्ध तक क्रूरता की सारी हदें पार कर दी गई थी तो भी तो हमें इसे मानक स्वीकार कर लेना चाहिए कि आने वाले वर्षों में अधिकांश बच्चे भी एक दूसरे नागरिक के प्रति रक्त पिपासा का वही स्तर बनाए रख सकेंगे।वियतनाम में उनके जीवित शरीर को अनेक सैनिक दोनों तरफ से पकड़कर इतनी देर तक खींचते थे कि वह टूटकर दो हिस्सों में बँट जाता था।ऐसी स्थिति में मानव शरीर पर गोलियों का खेल-खेल में अभ्यास करने वाले बच्चे निजी जिंदगी में गोली मारकर हत्या करने में क्या ‘नया तत्व’ हासिल कर पाएंगे?
  • यह क्रिया उन्हें बोर करेगी और वे दूसरे ज्यादा साहसी तरीके खोजने के लिए मजबूर हो जाएंगे।इंटरनेट और हिंसक वीडियो गेम्स के जरिए बच्चों को हत्या करने तथा उसका अनुभव हासिल कर लेने के लिए प्रशिक्षित किया जा रहा है।इसका मतलब यह नहीं है कि जितने बच्चे वीडियो गेम्स खेलते हैं वे सभी हत्यारे हो जाएंगे।जिस तरह हर सिगरेट पीने वाला कैंसर का मरीज भले ही नहीं होता।किन्तु कमजोर और बीमार सभी हो जाते हैं,उसी तरह संवेदना तो सभी बच्चों की मरेगी।जहर तो आखिर जहर है।18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिए वीडियो गेम्स,बंदूकों,अल्कोहल तथा तंबाकू पर प्रतिबंध लगा दिया जाना चाहिए।

5.बच्चों पर नजर रखें (Keep an Eye on the Children):

  • वीडियो गेमिंग इंडस्ट्री तो समाज की हर बुराई से पर्देदारी का काम कर रही है।सिगरेट और वीडियो गेम्स में केवल इतना ही अन्तर है कि वीडियो गेम्स को संवैधानिक मान्यता मिली हुई है।
  • वास्तव में फिल्मों की तरह ही वीडियो गेम्स भी कलात्मक कृतियां है जरूर,लेकिन उनमें किसी किस्म का कोई विभाजन नहीं किया गया है।फिल्मों में यह विभाजन आज भी है जैसे एडल्ट फिल्में एवं अन्य।पहले हिंसात्मक फिल्में उपलब्ध हो ही नहीं सकती थी।किंतु आज हर बच्चा अपनी पसंद का वीडियो गेम खरीद सकता है।कुछ माता-पिता तो अपने बच्चों पर कुछ खास वीडियो गेम देखने पर पाबन्दी लगा देते हैं।ऐसे माता-पिता,अभिभावक का मानना है कि वे पिनबाल मशीन से खेलें,एयर हाकी खेलें,दूसरे ढेर सारे विकल्प हैं,उनसे खेल सकते हैं।किन्तु हिंसा प्रधान वीडियो देखना इतना जरूरी तो नहीं है।प्रेमपूर्वक समझाने पर बच्चे मान भी जाते हैं।विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे माता-पिताओं ने अधिक तर्कसंगत कदम उठाया है।सर्वाधिक उपयुक्त कदम यही होगा कि आप अपने बच्चों की उपेक्षा और लापरवाही को त्याग दें तथा आराम छोड़कर सजगता दिखाने पर आ जाएं।अपनी आंखों और अपनी समझ का इस्तेमाल करें।
  • अतः वीडियो गेम्स का उपयोग करने देते समय माता-पिता को कभी-कभी बताकर और कभी-कभी चुपके से भी पीछे खड़े होकर माउस से घूमते इंटरनेट के पर्दे की जानकारी लेते रहना चाहिए।कुछ ही समय पहले फिल्टर सिस्टम का उपयोग होने लगा है।किन्तु इसकी निर्माता कम्पनियां अधिक से अधिक दर्शकों के लिए इंटरनेट सुलभ कराने के उद्देश्य से इसका पूरा इस्तेमाल करने का ढंग ही नहीं बताती।ऐसे में सबसे बेहतर सुझाव यह है कि माँ को अपने किशोर बच्चे को इंटरनेट का इस्तेमाल कामन रूम में करने की इजाजत देनी चाहिए और बीच-बीच में उससे आने वाले विषयों पर बहस भी करते रहना चाहिए।
  • माँ ही तो बच्चे के सारे क्रियाकलापों के लिए जिम्मेदार होती है।मां-बाप की जिम्मेदारियों के लिए तकनीकी अन्वेषणों एवं संसाधनों को दोष देना और उस पर बहस करना तो समय बर्बाद करना है।अधिकांश जागरूक माता-पिता का यही विचार है कि मां-बाप ही असली फिल्टर प्रणाली हो सकते हैं।संवेदना को जीवित रखना सबसे बड़ी जिम्मेदारी तथा सबसे अधिक चुनौतीपूर्ण काम है।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में वीडियो गेम्स नई पीढ़ी के लिए जहर (Video Games Poison for New Generation),वीडियो गेम्स नई पीढ़ी के लिए जहर कैसे है? (How are Video Games Poison for New Generation?) के बारे में बताया गया है।

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6.कोचिंग की फीस (हास्य-व्यंग्य) (Coaching Fees) (Humour-Satire):

  • छात्र ने कोचिंग निदेशक के काउंटर पर आकर कहा कि आज तो गणित के पीरियड में मजा आ गया,गणित जैसा विषय पढ़कर दिमाग बिल्कुल ठंडा हो गया।अब तो इसे हटाने जैसी चीज होनी चाहिए।
  • निदेशक:जी हां,यह लीजिए कोचिंग फीस का बिल,आपके दिमाग पर ठंडा होने का नशा उतर जाएगा।

7.वीडियो गेम्स नई पीढ़ी के लिए जहर (Frequently Asked Questions Related to Video Games Poison for New Generation),वीडियो गेम्स नई पीढ़ी के लिए जहर कैसे है? (How are Video Games Poison for New Generation?) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.क्या वीडियो गेम्स नई पीढ़ी के लिए वाकई जहर है? (Are Video Games Really a Poison for the New Generation?):

उत्तर:इलेक्ट्रॉनिक खेलों के जरिए विकसित देशों और शेष विश्व की नई पीढ़ी बर्बादी की अंधी सुरंग में प्रवेश कर चुकी है।बच्चों पर वीडियो गेम्स,इंटरनेट और ई-मेल का दुष्प्रभाव पड़ रहा है।समाज वीडियो खेलों और इंटरनेट की गिरफ्त में आ चुका है।इलेक्ट्रॉनिक खेलों ने परिवार संस्था को कमजोर किया है।

प्रश्न:2.क्या वीडियो गेम्स का अध्ययन पर प्रभाव पड़ा है? (Have Video Games Had a Side Effect on Studies?):

उत्तर:वीडियो खेलों आदि से किशोर-किशोरियों की पढ़ाई पर बुरा असर पड़ा है।वीडियो खेलों का बुखार बच्चों पर इस कदर हावी है कि बच्चे अध्ययन से कटते जा रहे हैं।यहाँ तक कि किशोर-किशोरियाँ अपने मां-बाप को वीडियो गेम सिखाने में भी लगे हुए हैं।पढ़ाई की बिल्कुल फिक्र नहीं है,बच्चे वीडियो कार्डों को संग्रह करने में मशगूल हैं।

प्रश्न:3.क्या ई-मेल से भी बच्चे दुष्प्रभावित हैं? (Are Children Also Affected by E-mail?):

उत्तर:ई-मेल ने मित्रता के सारे समीकरण बदल कर रख दिए हैं!न तो अब व्यक्ति का चेहरा महत्त्वपूर्ण रह गया है और न ही उसका नाम।अब तो केवल छद्म छाया व्यक्ति से ही ई-मेल पर संपर्क होते हैं।दोस्तियाँ होती हैं।अतः बच्चों की लापरवाही से किसी समाज विरोधी की दुरभि संधियों का शिकार होने में कितनी देर लगती है।लेकिन जब बच्चे बड़े होने लगते हैं और अपने लिए थोड़ी गोपनीयता की मांग करने लगते हैं,तब थोड़ी सी तकनीकी विशेषताओं को जान लेने की माता-पिता को हो सकती है।अधिकांश माता-पिता तो अपने किशोर बच्चों का ई-मेल इसलिए चेक नहीं कर पाते कि उन्हें आता ही नहीं कि वे क्या करें?

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा वीडियो गेम्स नई पीढ़ी के लिए जहर (Video Games Poison for New Generation),वीडियो गेम्स नई पीढ़ी के लिए जहर कैसे है? (How are Video Games Poison for New Generation?) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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