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How to Keep Students Restraint?

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1.छात्र-छात्राएं संयम कैसे रखें? (How to Keep Students Restraint?),गणित के छात्र-छात्राएं संयम कैसे रखें? (How to Keep Mathematics Students Moderation?):

  • छात्र-छात्राएं संयम कैसे रखें? (How to Keep Students Restraint?) क्योंकि आधुनिक जीवन शैली या वातावरण इस तरह का हो गया है जिसमें अर्थ संयम,समय संयम,इंद्रिय संयम इत्यादि रखना बहुत मुश्किल हो गया है।परंतु यह भी सच है कि छात्र-छात्राएं बिना संयम रखें कोई विशिष्ट उपलब्धि हासिल नहीं कर सकते हैं।जो छात्र-छात्राएं श्रम और समय का संयम नहीं करता है तो अध्ययन और विद्या की प्राप्ति नहीं कर सकता है।श्रम और समय का संयम किए बिना जब विद्या की प्राप्ति नहीं कर सकता है तो न तो उत्कृष्ट जाॅब प्राप्त कर सकता है और न ही उसका व्यक्तित्त्व उच्च बन सकता है।जैसे आहार और व्यायाम का संयम-संतुलन नहीं रखने पर कोई भी युवक पहलवान नहीं बन सकता है।
  • यम के नियमों का पालन करने को संयम कहा जाता है।अष्टांग योग (यम,नियम,आसन,प्राणायाम,प्रत्याहार,धारणा,ध्यान और समाधि) में यम पाँच हैंःअहिंसा,सत्य,अस्तेय (चोरी न करना),ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह (आवश्यकता से अधिक वस्तुओं का संग्रह करने का स्वभाव न रखना)।जो छात्र-छात्राएं तथा व्यक्ति इन पाँचों को अपने आचरण में पालन करता है उसके लिए बलपूर्वक संयम को धारण नहीं करना पड़ता है बल्कि उसके लिए संयम रखना स्वभाव में शामिल हो जाने से सरल हो जाता है।
  • पाश्चात्य संस्कृति के दुष्प्रभाव और वातावरण को देखते हुए छात्र-छात्राओं को सतर्क,जागरूक और प्रयत्नशील रहना होगा अन्यथा सब कुछ लुटा कर भी घर (होश में) आए तो फिर पश्चाताप करने से कुछ नहीं होगा।
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2.संयम में कामवासना बाधक (Sexual Desire Hinders self-Control):

  • शास्त्रों में दर्शन,केलि (काम-क्रीड़ा,हँसी मजाक),नेत्र कटाक्ष,एकांत में भाषण,संकल्प,प्रयत्न,वीर्य नाश का कार्य करना,ये आठ प्रकार के स्त्री प्रसंग संयम में बाधक हैं।अतः भूतकाल में किए गए सम्भोग को याद करना,कामुक (अश्लील) साहित्य पढ़ना या विचार-विमर्श करना, सैक्स सम्बन्धी छेड़छाड़ तथा हँसी मजाक करना,छिपकर काम-क्रीड़ा करते हुए को देखना,गुप्त रूप से या छिपकर सैक्स सम्बन्धी बातें करना या चिन्तन करना,सैक्स करने के उपाय करना या तिकड़म लगाना और इंटरनेट,टीवी इत्यादि पर पोर्न फिल्में देखना,पोर्न वेबसाइट को खंगालना,जानबूझकर वीर्यपात करने के कार्य करना है इत्यादि संयम के दुश्मन हैं,संयम में बाधक हैं और इनसे बचना ही संयम रखना है।आधुनिक युग में पाश्चात्य संस्कृति के दुष्प्रभाव,वातावरण तथा अच्छी शिक्षा न मिलने के कारणों से बचना कठिन अवश्य हो गया है परंतु उनके बिना कुछ उपलब्धि प्राप्त करना भी संभव नहीं है,विद्याध्ययन करना संभव नहीं है।
  • कीचक राजा विराट का साला और प्रधान सेनापति था।वीरता में श्री कृष्ण के भाई बलराम,भीम,दुर्योधन और कीचक को समतुल्य समझा जाता था।एक दिन विराट की रानी सुदेष्णा की सेवा करने वाली द्रोपदी को देखकर वासना पर संयम नहीं रख सका।उसने रानी सुदेष्णा (कीचक की बहन) को द्रोपदी को उसके पास भेजने के लिए तैयार किया।राजा विराट से भी उससे कोई डर नहीं था।उसे द्रौपदी से कामवासना की पूर्ति करने के लिए निवेदन करने में भी लाज-शर्म नहीं आई।वह लम्पट और कामवासना से ग्रसित हो चुका था।द्रोपदी ने उसे चेताया कि उसके रक्षक यक्ष हैं और यक्ष के कोप से डराने की कोशिश की परन्तु उसने न यक्षों की परवाह की और राजा विराट से तो किसी प्रकार का डर था ही नहीं।इसलिए उसने विराट के सामने भरी सभा में द्रोपदी के लात मारी और अपमानित किया।अन्ततः द्रोपदी ने भीम से मिलकर कीचक का वध कराया और कामवासना पर संयम न रखने के कारण उसे सम्मान और जीवन से हाथ धोना पड़ा।
  • इन्द्रिय संयम न रखने के समान ही वाणी पर संयम न रखने के दुष्परिणाम भुगतने पड़ते हैं।कई छात्र-छात्राएं तथा व्यक्ति अपनी वाणी पर बिल्कुल ही संयम नहीं रखते हैं और मन में जो आता है वही बकते रहते हैं।ऐसे छात्र-छात्राएं अपनी प्रामाणिकता (Validity) खो देते हैं,उनकी कही हुई बातों पर कोई विश्वास नहीं करता है।वाणी पर संयम न रखने पर उनकी वाणी में ओज पैदा नहीं होता है।ऐसे छात्र-छात्राओं का जब साक्षात्कार (interview) होता है तो इंटरव्यूअर (interviewer) लेने वालों पर अपना प्रभाव नहीं छोड़ पाते हैं फलस्वरूप साक्षात्कार में असफल कर दिए जाते हैं।
  • जाॅब प्राप्त करने करने तथा परीक्षा में ही वाणी का संयम नहीं है बल्कि हमारे व्यावहारिक जीवन में भी वाणी का संयम जरूरी है।जो वाणी पर संयम नहीं रखते वे अपने बहन-भाइयों,मित्रों से लड़ाई-झगड़ा,क्लेश-कलह करते हुए देखे जा सकते हैं।इस प्रकार ऐसे छात्र-छात्राओं का व्यक्तित्त्व प्रभावी नहीं बन पाता है।
  • इसी प्रकार अर्थ (धन) संयम न रखने पर भी हमें दुर्दिन देखने पड़ते हैं।अक्सर छात्र-छात्राओं को माता-पिता,अभिभावकों से जो पॉकेट मनी के रुपए मिलते हैं उसे मौज-मस्ती,ऐशोआराम या अन्य फालतू कार्यों में खर्च कर देते हैं।जब उन्हें किसी आवश्यक कार्य के लिए जरूरत पड़ती है जैसे किसी कंपनी में साक्षात्कार हेतु किराया-भाड़ा,भोजन इत्यादि की व्यवस्था,आवेदन पत्र भरने अथवा डिग्री हासिल करने के बाद किसी छोटे-मोटे व्यवसाय के लिए माता-पिता,अभिभावकों का मुँह ताकते रहते हैं।यह सोचने वाली बात है कि अभिभावक कब तक और क्या-क्या छात्र-छात्राओं की फरमाइशें पूरी करते रहेंगे।

3.संयम रखने के उपाय (Measures to Keep Restraint):

  • यम पाँच हैंःअहिंसा,सत्य,अस्तेय,ब्रह्मचर्य,अपरिग्रह इत्यादि का पालन तो करना ही है।साथ ही वाणी का संयम,अर्थ संयम,इन्द्रिय संयम इत्यादि का पालन भी करना चाहिए।इन्द्रियों को बलपूर्वक रोकना नहीं है अर्थात् दबाना नहीं है।जैसे आँखें है और आँखों का कार्य देखना है तो देखने का कार्य तो करेंगी ही।इन्द्रिय संयम रखने का तात्पर्य है कि इन्द्रियों को शुभ कार्य करने में लगाना।
  • छात्र-छात्राओं के लिए शुभ कार्य है अध्ययन करना,परीक्षा की तैयारी करना,सत्साहित्य पढ़ना,अच्छे-अच्छे कार्यों का विचार-चिंतन करना अर्थात् गणित की कोई समस्या,सवाल और अन्य विषय का कोई प्रश्न हल नहीं हो रहा हो तो उस पर विचार-चिंतन करके हल करने का प्रयास करना।
  • इंद्रियों को बुरे कार्यों में न लगाना जैसे नकल करने के प्रयास या तिकड़म न भिड़ाना,परीक्षा में परीक्षक को डराने-धमकाने का कार्य न करना,लड़ाई-झगड़ा तथा दंगा-फसाद न करना,बस का किराया देकर यात्रा करना अथवा विधिवत छूट प्राप्त करना,चोरी-चकोरी न करना,ड्रग्स,नशीली चीजों इत्यादि का सेवन न करना इत्यादि।वस्तुतः इन्द्रियाँ मन के आदेश से ही कार्य करती है।इसलिए मन को विवेकपूर्वक नियंत्रण करना चाहिए।
  • माँ मदालसा ने अलर्क को राजा बनाया।पहले तीन पुत्र भगवान का भजन करने लग गए थे।अलर्क ने माँ से पूछा कि अपना कल्याण करने के लिए तीनों भाइयों ने साधन-सम्पन्न तथा सुविधायुक्त राजपाट तथा शासन सम्हालने के बजाय कम साधनों से युक्त भगवान का भजन करने का मार्ग क्यों चुना।क्योंकि भगवान के भजन में तो तप और साधना ही करनी होती है।
  • मां ने कहा कि नदी पार करने के लिए सुविधा सामग्री से भरी विशाल लेकिन छिद्रवाली नौका चुननी चाहिए या साधारण बिना छिद्रवाली नौका।अलर्क ने कहा कि साधारण बिना छिद्रों वाली नौका ही चुनी जाएगी।
  • तब माँ ने समझाया कि राजपाट और वैभव तथा सुख-सुविधाओं का उपयोग करने में अक्सर लोग भटक जाते हैं और राजपाट को कर्त्तव्य समझकर नहीं संभालते हैं।इसलिए उनमें कई दोष-दुर्गुण आ जाते हैं।जबकि तप-साधना युक्त जीवन जीने में दोष-दुर्गुण आने की संभावना बहुत क्षीण होती है।तुम भी राजपाट,शासन तथा सुख-सुविधाओं को कर्त्तव्य समझकर उपयोग में लेना,ज्यादा महत्त्व मत देना।
  • नियम-संयम का पालन करने वाले कई छात्र-छात्राओं की दुविधा यह होती है कि आजकल टीवी,इंटरनेट पर रोमांटिक फिल्में,रोमांटिक उपन्यास,सोशल मीडिया पर पोर्न फोटो तथा ढेरों ऐसे प्रसंग मौजूद हैं कि पालन कर ही नहीं पाते हैं।
  • इस प्रकार छात्र ऐसी आइडियल सुन्दर सी पत्नी की तथा छात्रा सुन्दर से आइडियल पति की कल्पना मन में बसा लेती है।ऐसे रोमांटिक फिल्में,इंटरनेट पर दृश्य और सोशल मीडिया पर अनेक मन को उत्तेजित करने वाली सामग्री मिल जाती है कि वे नियम-संयम का पालन ही नहीं कर पाते हैं।परंतु उनकी इस बात में आंशिक सच्चाई है।यदि दृढ़ संकल्पशक्ति तथा विवेक का मन पर नियंत्रण हो तो ऐसे छात्र-छात्राएं न तो ऐसे दृश्य देखते हैं और न ही मन में ऐसे विचार आने देते हैं।
  • यदि छात्र-छात्राएं अध्ययन करने,सत्साहित्य पढ़ने,योगासन-प्राणायाम,ध्यान करने,यम के नियमों का पालन करने में अपने आप को व्यस्त रखें तो उनको ऐसे बेहूदा दृश्य तथा ऐसी फिल्में देखने का वक्त ही नहीं मिलेगा।यदि कोई चलते-फिरते समय ऐसा दृश्य सामने आ भी गया तो उसका मन पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा।आंखें गलत दृश्य देखती हैं,कामुक दृश्य देखती हैं,कानों में अंट-शंट,बेहूदा,अश्लील और बुरी बातें प्रवेश करती हैं,जीभ के चटोरेपन,अभक्ष्य पदार्थों को खाने की आदत पड़ी हुई है इत्यादि का समस्त दारोमदार मन का ही है।मन से प्रेरणा,आज्ञा और आदत के अनुसार ही इन्द्रियाँ कार्य करती हैं।इन्द्रियों का सदुपयोग-दुरुपयोग करना मन पर ही निर्भर है।इन्द्रियों का राजा मन है।इन्द्रियाँ स्वयं कुछ भी नहीं करती है बल्कि मन के द्वारा ही संचालित होती है।कुछ छात्र-छात्राएं सोचते हैं कि इन्द्रियों के वशीभूत होकर ही हम गलत या सही कार्य करते हैं जबकि यह वास्तविकता नहीं है।यदि इंद्रियां दोषपूर्ण कार्य करती हैं तो उसका कारण हमारी मनोवृत्ति,हमारा संकल्प होता है।मन को बुरी आदतों से छुड़ाना,बुरे कार्यों की ओर न जाने देना तथा अच्छे कार्यों की ओर लगाने के लिए मन पर सद्बुद्धि और विवेक का पूर्ण नियंत्रण रहे तथा बुद्धि आत्मा द्वारा निर्देशित हो तो संयम ही क्या कोई भी कार्य करना सरल हो जाता है और कार्य करने की दिशा सही रहती है।
  • इन्द्रियों का उपयोग लिप्त होकर न करें बल्कि अलिप्त होकर करें।जैसे स्वादिष्ट भोजन बना हो तो अत्यधिक मात्रा में भोजन न करके उतना ही भोजन करना चाहिए जिसमें शरीर की भूख मिटती है,शरीर के निर्वाह के लिए आवश्यकता है।यदा-कदा अधिक भोजन कर भी लें तो उसे आदत नहीं बनाना चाहिए।

4.संयम का दृष्टान्त (Parable of Moderation) :

  • एक शहर में एक विद्यार्थी रहता था।उसके गुरु उसे एक महान गणितज्ञ बनाना चाहते थे।इसके लिए आवश्यक था कि वह कामवासनाओं से दूर रहे।परंतु वह युवक मकान के ऊपरी मंजिल के कमरे में रहता था,उसके पड़ोसी मकान में भी एक युवती रहती थी।वह बहुत सुंदर थी।उस युवक तथा युवती की पहले बोलचाल चालू हो गई।धीरे-धीरे उनमें प्रेमपत्र चालू हो गए।
  • युवती उसको चाय पिला देती तथा कभी-कभी खिड़की से भोजन भी दे देती थी।युवती के माता-पिता को इस बात का पता नहीं था।एक बार युवती को उस युवक ने रात को अपने कमरे में बुला लिया।उसके सैक्स संबंध हो गए।धीरे-धीरे उसका गणित विषय तथा अन्य विषयों से पढ़ने का रुझान हट गया।
  • उसके गुरु ने इस प्रकार का बदलाव देखा तो उन्होंने अनुमान लगाया कि कुछ न कुछ गड़बड़ है।उन्होंने गुप्त रूप से उसके मित्रों के द्वारा रहस्य का पता लगाया।गुरु ने सोचा कि इस पर उसकी नसीहत काम नहीं करेंगी।क्योंकि एक बार यौन संबंध अर्थात् कामवासना में कोई अंधा हो जाता है तो उसको कुछ भी दिखाई नहीं देता है।
  • धीरे-धीरे विद्यार्थी की गणितीय प्रतिभा को जंग लगने लगी।उसकी इन्द्रिय शक्ति नष्ट होने लगी।तब गुरु ने एक उपाय सोचा।उन्होंने लड़की का कॉलेज मालूम किया और उसके कॉलेज में जाकर लड़की से मिले।
  • लड़की को नौकरी का झांसा दिया।लड़की झांसे में आ गई।तब गुरु ने कहा कि उसके साथ यौन संबंध बनाने पड़ेंगे।लड़की ने बातों ही बातों में पता लगा लिया वह उसके प्रेमी के गुरु हैं।उसका प्रेमी अपने गणित प्राध्यापक (गुरु) की बहुत प्रशंसा करता रहता था।
  • तब लड़की ने अपने प्रेमी के गुरु से कहा कि पहले उन्हें एक काम करना पड़ेगा।गुरु ने पूछा कि वह क्या? तब लड़की बोली सिनेमा हॉल में सिनेमा देखेंगे और मैं आपकी गोद में बैठकर देखूंगी।वह लड़की अपने प्रेमी की नजरों से गुरु को गिराना चाहती थी।उसने अपने प्रेमी को सिनेमा हाॅल में आने के लिए कह दिया।
  • लड़की प्रेमी के गुरु को लेकर पहले ही सिनेमा हाॅल में पहुंच गई और गुरु की गोद में बैठ गई।लड़की ने प्रेमी का टिकट भी अपनी बगल में ही ले लिया था। ज्योंही प्रेमी (विद्यार्थी) सिनेमा हॉल के अंदर पहुंचा तो गुरु को देखकर बोला कि गुरुदेव यह क्या? तब गुरु ने कहा कि जिस मार्ग पर कदम बढ़ाते ही ज्ञानी व्यक्ति की यह दुर्गति हो सकती है।मूर्ख उस कीचड़ के दलदल से निकलना तो तुम्हारे लिए असंभव हो जाएगा।विद्यार्थी ने वास्तविकता को समझा और पतन की ओर जाने वाले रास्ते को बदल दिया तथा गणित का गम्भीर अध्ययन करने लगा।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में छात्र-छात्राएं संयम कैसे रखें? (How to Keep Students Restraint?),गणित के छात्र-छात्राएं संयम कैसे रखें? (How to Keep Mathematics Students Moderation?) के बारे में बताया गया है।

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5.छात्र द्वारा सवाल का जवाब (हास्य-व्यंग्य) (Answer to Question By Student) (Humour-Satire):

  • श्याम (पिता से):आज गणित अध्यापक ने एक ऐसा सवाल पूछा जिसका जवाब सिर्फ मैं ही जानता था।
    पिता:शाबास! पर सवाल क्या था?
  • श्याम:गणित अध्यापक ने पूछा कि यह उत्तर पुस्तिका किसकी है जिसमें सवाल का हल पासबुक से नकल करके उतारा गया है।

6.छात्र-छात्राएं संयम कैसे रखें? (Frequently Asked Questions Related to How to Keep Students Restraint?),गणित के छात्र-छात्राएं संयम कैसे रखें? (How to Keep Mathematics Students Moderation?) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.अपरिग्रह से क्या तात्पर्य है? (What do You Mean by Non-Possession?):

उत्तर:अपनी आवश्यकता से अधिक वस्तुओं का संग्रह न करना और उनके प्रति आसक्ति न रखना अपरिग्रह है।आवश्यकता जितना अर्थात् जीवन निर्वाह योग्य वस्तुएँ तथा धन-संपत्ति इत्यादि परिग्रह रखने से इन्द्रिय निग्रह होता है और इन्द्रिय निग्रह रखने से अपरिग्रह का पालन होता है।अपरिग्रह और इन्द्रिय निग्रह एक ही भाव रखने वाले शब्द अलग-अलग हैं।

प्रश्न:2.अहिंसा से क्या तात्पर्य है? (What do You Mean by Non-Violence?):

उत्तर:शरीर,वाणी,बुद्धि से किसी प्राणी को किसी प्रकार से कष्ट न देना,उसका वध करना तो दूर रहा।इस कारण अहिंसा का क्षेत्र अति विस्तृत है और इसका पालन करना अति कठिन है।

प्रश्न:3.अनुशासन से क्या तात्पर्य है? (What do You Mean by Discipline?):

उत्तर:मन,वचन तथा कर्म एक दूसरे को प्रभावित करते हैं।शुद्ध कर्म मन को भी शुद्ध रखते हैं और शुद्ध मन शुद्ध कर्म को प्रेरित करता है।हम जिस प्रकार की वाणी का व्यवहार करते हैं,वैसे ही हमारे विचार बनते हैं और ये विचार कर्म को भी अवश्य प्रभावित करते हैं।अतः मन,वचन एवं कर्म द्वारा अपनी दुर्वृत्तियों को नियंत्रित करना अनुशासन का प्रथम अंग है।तो आपको How to Keep Students Restraint? के संयम का पालन करना ही होगा तभी जीवन में अनुशासन आ सकता है। ओर यह सौ टंच सही बात है कि एक बार छात्र-छात्राओं तथा व्यक्तियों के जीवन में नियम-संयम और अनुशासन का पालन करना आ गया याकि इनका पालन करने लगे तो इनका फायदा आपको मिलेगा, इसे कोई ओर लूटकर नहीं ले जाएगा।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा छात्र-छात्राएं संयम कैसे रखें? (How to Keep Students Restraint?),गणित के छात्र-छात्राएं संयम कैसे रखें? (How to Keep Mathematics Students Moderation?) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।How to Keep Students Restraint?
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