Why Do Children Deteriorate?
1.बच्चे क्यों बिगड़ते हैं? (Why Do Children Deteriorate?),बच्चों के बिगाड़ने में कौन-कौनसे मूल कारण हैं? (What Are Root Causes of Children’s Deterioration?):
- बच्चे क्यों बिगड़ते हैं? (Why Do Children Deteriorate?) इसके अनेक मूलभूत कारण हैं।बच्चों को बिगाड़ने में माता-पिता की लापरवाही,माता-पिता द्वारा संस्कार न डालना,माता-पिता का अत्यधिक व्यस्त रहना,बच्चों के संगी-साथी,सामाजिक वातावरण,स्कूल का वातावरण,टीवी,फिल्में,अश्लील साहित्य,इंटरनेट पर पोर्न वेबसाइट तथा सोशल मीडिया इत्यादि किसी न किसी रूप में बिगाड़ने में कुछ न कुछ योगदान देते हैं।उपर्युक्त माध्यम सुधारने का कम बल्कि बिगाड़ने का काम अधिक करते हैं।
- बच्चों को बिगाड़ने की प्रथम पाठशाला घर-परिवार से ही शुरू होती है।माता-पिता जब अनैतिक जीवन जीते हैं जैसे शराब पीना,धूम्रपान करना,ड्रग्स का सेवन करना,आधुनिकता की आड में तड़क-भड़क जीवन शैली अपनाना,सादगीपूर्ण व्यवहार न करना,क्रोधी स्वभाव होना,बच्चों को समय न देना,बच्चों की शिक्षा पर ध्यान न देना,अत्यधिक व्यस्त दिनचर्या,बच्चों के साथ मारपीट करना,अत्यधिक कठोर अनुशासन में रखना,बच्चों की तुलना दूसरे बच्चों से करना,घर में सात्त्विक वातावरण न होना इत्यादि कारणों से बच्चे बिगड़ जाते हैं।
- ऐसी स्थिति में बच्चे दूसरों को सताने,छेड़ने तथा तंग करने में खुशी का अनुभव करते हैं।वे माता-पिता की आज्ञा का उल्लंघन करने लगते हैं।अपने से छोटे भाई-बहनों को मार-पीटने लगते हैं।बच्चों को नकारात्मक निर्देश पर वे जिद्दी,झूठ बोलना,बेईमानी करना,चोरी करना,अकर्मण्य,आलसी बनने लगते हैं।बड़े होने पर वे गंभीर अपराध करने लगते हैं क्योंकि छोटी-छोटी गलत आदतें ही उनको अपराध जगत की ओर ले जाती है।
- बच्चा शुरू में जैसा आचार-व्यवहार करता है उसके वैसे ही संगी-साथी मिल जाते हैं।वे वैसा ही साहित्य पढ़ते हैं।वैसे बच्चों के समूह में रहने लगते हैं।सोशल मीडिया तथा इंटरनेट वेबसाइट पर वैसी ही चीजे खँगालते है।
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2.बच्चों को बिगाड़ने में अभिभावक की भूमिका (The Role of Parents in Spoiling Children):
- (1.)माता-पिता द्वारा बच्चों को पीटने,अपमानित करने के कारण ऐसे बालक आवारागर्दी करने लग जाते हैं और समय रहते ध्यान न दिए जाएं तो वे घर से भागने लगते हैं।
- (2.)जो मां-बाप दिन भर अपने काम में उलझे रहते हैं।पिता सभा-सोसाइटी में तथा माता अपनी सहेलियों या किटी पार्टियों में व्यस्त रहते हैं।ऐसे माता-पिता न तो अपने बच्चों को समय देते हैं और न ही उन्हें संरक्षण,स्नेह,सहयोग और आत्मीयता का स्पर्श दे पाते हैं।फलतः बच्चे पथभ्रष्ट हो जाते हैं।क्योंकि बच्चों में चंचलता होती है,वे ऊर्जा से भरे हुए होते हैं,उनमें उर्जा का निर्माण होता है।यदि उनकी ऊर्जा को सही दिशा और मार्गदर्शन नहीं मिलता है तो वे गलत दिशा की ओर अग्रसर हो जाते हैं।आधुनिक जीवन शैली ने जहां माता-पिता,अभिभावकों और बच्चों के बीच संपर्क को कम कर दिया है वहाँ बच्चों के बिगड़ने में वृद्धि हुई है।
- (3.)आधुनिकता के इस दौर में हर माता-पिता बच्चों को अच्छी शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश दिलाते हैं,अच्छे कपड़े,अच्छे जूते,अच्छे स्तर की किताब,काॅपी,बैग,टाई,बेल्ट,विद्यालय तथा वाहन की सुविधा,अच्छा खान-पान,अच्छा पहनावा इत्यादि तो उपलब्ध कराते हैं।परंतु इन सुविधाओं को उपलब्ध कराने हेतु वे धनोपार्जन में इतने व्यस्त रहते हैं कि बच्चों को अच्छे संस्कार,बच्चों को अच्छी आदतें सीखाने,घर में तथा घर से बाहर व स्कूल में बच्चों की गतिविधियों पर नजर रखने,बच्चों को चरित्रवान बनाने,शिष्टाचार सिखाने,व्यवहार कुशल बनाने के लिए उनके पास समय नहीं है।अभिभावक बच्चों पर,बच्चों की शिक्षा पर धन खर्च करके आचरण खरीदना चाहते हैं जो कि संभव नहीं है।
- (4.)बच्चों को समाज व परिवार में जैसा वातावरण मिलता है वे वैसे ही बन जाते हैं बच्चे मन,वचन और कर्म से शुद्ध,सरल और निर्मल होते हैं।परिवार और समाज में बुरा सम्पर्क पाकर वे अपराध जगत की ओर बढ़ जाते हैं।माता-पिता तथा समाज के लोग शुरू में बच्चा समझकर बच्चे की छोटी-छोटी हेरा-फेरी,झूठ-सच,दांव-पेंच की अनदेखी करते हैं तो बाद में ये बीजरूप ही वृक्ष का रूप धारण कर लेता है।बड़े होने पर वे माता-पिता,अभिभावकों तथा समाज के बड़े-बुजुर्गों की आज्ञा का उल्लंघन करने लगते हैं और ऐसा करने में उन्हें प्रसन्नता होती है।बाद में वे शराब पीना,तेज गाड़ी चलाना,अय्याशी करना,देर रात तक घर से बाहर रहना,जुआ खेलना,सट्टेबाजी करना,दंगे-फसाद करना और कभी-कभी हत्या जैसे गंभीर अपराध करने लगते हैं।
- (5.)माता-पिता का झगड़ा भी बच्चों को बिगाड़ देता है।बच्चे कभी नहीं चाहते हैं कि माता-पिता आपस में झगड़ा करें।पिता द्वारा देर रात तक घर लौटना,घर आकर पत्नी से दुर्व्यवहार करना,डांटना-डपटना,गाली-गलौज करना,प्रताड़ित करना इत्यादि को बच्चे बर्दाश्त नहीं कर पाते हैं।बच्चों के अंतर्मन पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।वे अंदर ही अंदर पिता से आक्रोश में भर जाते हैं।माता-पिता के झगड़े देखने,सुनने और सहन करने वाले बच्चे तनावग्रस्त हो जाते हैं।बच्चों के मन में पिता का भय,घर में तनाव का माहौल बच्चों को क्रोधी,चिड़चिड़ा और कर्कश बना देता है।इस प्रकार बच्चे बिगड़ जाते हैं और माता-पिता के हाथ से निकल जाते हैं।
- (6.)बच्चों की ख्वाहिश होती है कि माता-पिता व अभिभावक उनकी इच्छाओं को जानें,अपेक्षाओं को जानें,पूरा करें,उनसे बातचीत करें,विचार-विमर्श करें,बच्चों के कैरियर में उन्हें सहयोग दें,स्कूल अथवा मित्रों के बारे में जानें।उनकी छोटी-बड़ी सफलताओं और उपलब्धियों की प्रशंसा करें।लेकिन आधुनिक और बड़ा बनने की सोच और ललक ने अभिभावकों को इतना व्यस्त बना दिया है कि उन्हें यह देखने का समय ही नहीं मिलता है कि उनके लड़के-लड़कियां क्या कर रहे हैं? क्या पढ़ रहे हैं? उनके घर से कितना जेब खर्च ले रहे हैं? उसका क्या उपयोग कर रहे हैं? माता-पिता अपने कामों में इतना व्यस्त रहते हैं कि कई-कई दिनों तक वे अपने बच्चों से मिल नहीं पाते हैं।फलतः बच्चे गलत रास्ता अपना लेते हैं।
- (7.)माता-पिता का प्यार के स्थान पर बच्चों को फटकारना,स्वयं बच्चों के जीवन में दिलचस्पी न लेकर उसे दूसरों पर छोड़ देना,अभिभावकों द्वारा उनके प्रति मनोरंजन,स्नेह का अभाव होना ऐसे कई बातें हैं जो बच्चों को बिगाड़ती हैं।स्मरण रहे,बच्चों को गड्ढे में गिरने वाला,पतित करने वाला,अपराधी बनाने वाला सर्वप्रथम बुरा साथ ही मुख्य होता है।यह साथ पहले घर में ही मिलता है।माता-पिता,रिश्तेदार,भाई-बहन कोई भी हो सकते हैं जो बच्चों को बुराई की ओर प्रवृत्त करते हैं।सबसे पहले बच्चों को बिगाड़ने के लिए घर में ही बुरा साथ मिलता है,उसके बाद पड़ोस,स्कूल और घर के बाहर।स्मरण रहे कई बुरी आदतों,कामवासना संबंधी बुराइयों का प्रारंभ बुरे साथ से ही होता है।अभिभावकों को इतना तक ध्यान नहीं रहता कि उनके बच्चे किनके साथ उठ-बैठ रहे हैं,किनके साथ खेलते हैं।कितना भी होनहार बालक क्यों न हो,बुरे संग में पड़कर वह भी पतित हो जाता है।बच्चों का ग्रहणशील किन्तु विवेकहीन मस्तिष्क शीघ्र ही बुराइयों की ओर आकर्षित हो जाता है।बच्चों में बुराइयों की जड़ अधिकतर बुरे साथियों से ही जगती है।
- (8.)अत्यधिक लाड़-प्यार और तथाकथित प्रगतिशीलता के ऐसे माॅड परिवार भी हैं जिनमें बाप अपने बच्चों के साथ शराब वगैरह पीता है और पिलाता है।इसकी शेखी बघारते हुए वे कहते हैं कि इसमें छिपाव किस बात का।आजकल तो बड़े-बड़े डॉक्टर,इंजीनियर,जज,वकील,प्रोफेसर सभी तो पीते हैं।जब घर के लोग ही बच्चों से बीड़ी,सिगरेट,तंबाकू,गुटखे,शराब,ड्रग्स आदि मँगवाते हैं तथा उनके साथ खाते-पीते हैं,सेवन करते हैं तो इस प्रकार की प्रगतिशीलता से बच्चों की करतूतें सिर चढ़कर बोलने लगती है।बाद में बच्चों की दूसरों से शिकायत करते फिरते हैं।इस प्रकार की शिकायतें करते समय शायद यह भूल जाते हैं कि खुद इन्हीं अभिभावकों ने अति लाड़-प्यार में आकर कभी इन्हीं बच्चों की अनुचित मांगों को पूरा किया था,सीखाया था।
- इन्हीं अभिभावकों ने अपने बच्चों की गलतियों को छुपाया था,अनुचित व्यवहारों पर पर्दा डाला था,अनदेखा किया था।अब जब बच्चों की वही बुरी आदतें और व्यवहार सिर चढ़कर बोलने लगे हैं तो अभिभावक परेशान हैं।उन्हें अपने बच्चों की ये आदतें और व्यवहार अखरते हैं कि तंग आकर बच्चों को प्रताड़ित करते हैं,अपमानित करते हैं यहां तक कि वे मारपीट कर बच्चों को सही रास्ते पर लाने की कोशिश में लग जाते हैं।लेकिन समस्या बढ़ती ही जाती है।बच्चे बिगड़ते चले जाते हैं।
3.बुरी संगति वाले मित्रों की बच्चों को बिगाड़ने में भूमिका (The Role of Friends with Bad Company in Spoiling Children):
- (1.)कभी-कभी मध्यवर्गीय बच्चों की मित्रता जाने-अनजाने में रईस परिवार के बच्चों से हो जाती है अथवा वे जानबूझकर ऐसे बच्चों से मित्रता कर लेते हैं।इस प्रकार की मित्रता से निम्न और मध्यमवर्गीय परिवारों के बच्चे रईस बच्चों के रहन-सहन,मोबाइल फोन,उनकी गाड़ी,महंगी टाई,गाॅगल्स,कार-जूते,पर्स में रखे नोटों आदि से इतने आकर्षित होते हैं कि वे भी वैसे ही बनने की सोचने लगते हैं।वे इन सभी चीजों की फरमाइश अपने माता-पिता व अभिभावकों से करते हैं।परंतु माता-पिता जब फरमाइश पूरी नहीं कर पाते हैं तो वे असंतुष्ट,विद्रोही और गुस्सैल बनने लगते हैं।
- (2.)अभिभावकों से निम्न वर्ग व मध्यम वर्ग के बच्चे अधिक जेब खर्च की मांग करते हैं और जब इन खर्चों की पूर्ति वे नहीं कर पाते तो बच्चे घर से चोरी अथवा हेराफेरी करने लगते हैं।बात जब बिगड़ने लगती है तो ये बच्चे माता-पिता को कोसते हैं,लड़ते-झगड़ते हैं और अंत में पटरी से उतरकर अपने इन रईस मित्रों के पिछलग्गू बन जाते हैं।उनकी कृपा पर पलने लगते हैं।रईस मित्र इन निम्न मध्यवर्गीय परिवार के बच्चों का उपयोग अपना प्रभाव बढ़ाने,अपने सर्वस्व को बनाए रखने,गुंडागर्दी करने,दूसरों पर रौब झाड़ने,लड़कियों को छेड़ने,दूसरे छात्र-छात्राओं को सताने में करने लग जाते हैं।
- (3.)यदि मध्यवर्गीय परिवारों के बच्चों तथा रईस लड़कों के बीच किसी बात को लेकर झगड़ा हो जाता है तो छात्रों के गुट बन जाते हैं।स्कूल-कॉलेज में इस प्रकार के लड़के गुटबाजी के शिकार होकर न केवल अपना भविष्य बिगाड़ते हैं बल्कि मित्रता के नाम पर साथी लड़कों का भविष्य बिगाड़ते हैं।
- (4.)गांव-कस्बों से लड़के जब शहरों के स्कूल-कॉलेजों में प्रवेश पाते हैं तो कभी-कभी ये लड़के अपने बॉस मित्र की कमजोरियों से भी परिचित होकर उनसे लाभ उठाने की सोचते हैं।दादा किस्म के लड़कों की यह कमजोरियां धूम्रपान से प्रारंभ होकर ड्रग्स तक हो सकती है।दादा किस्म के लड़के अपनी कमजोरियां छिपाने के लिए अपने साथी मित्रों (गांव-कस्बे के लड़कों) को भी गुमराह करने लगते हैं।उन्हें गाड़ी में घुमाना,होटल में चाय-कॉफी पिलाना या फिर बीयर पार्टी देना इनके शगल बन जाते हैं।बस छात्र-बच्चों को बिगड़ने के लिए इससे अधिक क्या चाहिए?
- (5.)यदि इन बच्चों को राजनीतिक संरक्षण मिल जाता है तो इन बिगड़ैल बच्चों की स्थिति नीम चढ़े करेले जैसी हो जाती है क्योंकि नेताओं को भी भीड़ जुटाने के लिए इन्हीं बिगड़े बच्चों की आवश्यकता होती है।क्योंकि अध्ययन करने वाले छात्र-छात्राएं तो फालतू कार्यों तथा इस तरह के कार्यों में रुचि नहीं लेते हैं।राजनीतिज्ञों का संरक्षण पाकर ये बिगड़ैल बच्चे बेखौफ होकर नित नई-नई करतूते करने लगते हैं और इस तरह अपराध के प्रति इनका डर खत्म हो जाता है और अपराध करने की प्रवृत्ति बढ़ती जाती है।
4.अध्यापकों की उदासीनता शिक्षा संस्थाओं के प्रशासक व वहाँ का अनुचित वातावरण का प्रभाव (The Apathy of Teachers and the Influence of Administrators of Educational Institutions and the Unfair Environment There):
- (1.)अध्यापकों का सहयोग,स्नेह और प्रोत्साहन नहीं मिलता तो छात्र-छात्राओं की रुचियों में निष्क्रियता आ जाती है।वे पढ़ाई-लिखाई में पिछड़ने लगते हैं।कक्षाओं से भागना और भागकर आवारा फिरना इनकी आदत बन जाती है।कक्षाओं से पलायन करने वाले बच्चों में हीनता का भाव आ जाता है जिससे उनमें द्वेष भावना और ईर्ष्या के रूप में प्रकट होने लगता है जो न केवल इन्हें बिगाड़ता है बल्कि ऐसे बच्चे अपराधों की ओर बढ़ने लगते हैं।
- (2.)अध्यापकों की निकटता बहुत कम बच्चे प्राप्त करते हैं।अध्यापकों की यह उदासीनता बच्चों की प्रतिभा को प्रभावित करती है।बच्चों और अध्यापकों में भावनात्मक संबंध स्थापित नहीं हो पाता है।अध्यापकों में अपने छात्रों के प्रति वे भाव नहीं रहे जो विद्यार्थियों को संस्कारवान बनाते हों।अतः स्कूलों का वातावरण दिनोंदिन नीरस,ऊबाऊ और आकर्षण विहीन होता जा रहा है।अध्यापक और विद्यार्थी दोनों ही एक-दूसरे को स्वीकार नहीं करते हैं।यही कारण है कि जहां बच्चों के भविष्य को सजना-संवरना चाहिए था वहीं वे अपेक्षित ध्यान के अभाव में बिगड़ रहा है।
- (3.)अनेक प्रयासों के बाद भी स्कूली जीवन में छात्रों की समस्याएं बढ़ रही हैं।व्यावहारिक संस्कारों के अभाव में इन स्कूलों में छात्रों की नकारात्मक सोच विकसित हो रही है।सच तो यह है कि संस्कार विहीन शिक्षा आज अधिक सुलभ है।
- (4.)स्कूल अथवा स्कूल के रास्ते में ही उन्हें अपनी कक्षा के अथवा अपने से बड़ी कक्षा के छात्रों की दादागिरी सहनी पड़ती है।रैगिंग के नाम पर वरिष्ठ कक्षाओं के लड़के-लड़कियां अपने से छोटी कक्षाओं के नए लड़कों और लड़कियों को इतना आतंकित करते हैं कि स्कूल,शिक्षा और शिक्षकों से घृणा होने लगती है।ऐसे लड़के या तो स्कूल छोड़कर भाग जाते हैं या फिर शेर का सवा शेर बनकर उन्हीं बिगड़ैल लड़कों में शामिल हो जाते हैं,जिनका वर्चस्व पहले ही है।
- (5.)शिक्षा के व्यावसायीकरण का प्रभाव सीधे रूप में बच्चों पर पड़ा है।ऊँची-ऊँची फीसें,शिक्षा के नाम पर साधन-सम्पन्नता,फैशन,ग्लैमर और दून संस्कृति के प्रभाव में बच्चों की मानसिकता को इतना प्रभावित किया है कि बच्चें शिक्षा ग्रहण करने के बजाए अपनी शान-शौकत बढ़ाने,धनलिप्सा को बढ़ाती है।बच्चों को बिगाड़ने में पैसा,लड़की के प्रति आकर्षण,अश्लील वातावरण की मुख्य भूमिका है।
- (6.)माता-पिता शिक्षा के नाम पर बच्चों को पैसा उपलब्ध करा देते हैं।लड़की से संपर्क स्कूल-कॉलेजों में हो जाता है।स्कूल-काॅलेजों का वातावरण सात्त्विक न होकर अश्लील ही कहा जा सकता है।इस स्कूली वातावरण में ये तीनों चीजें एक साथ मिल जाती है जो बच्चों के पतन का कारण बन जाती है।स्कूलों में पढ़ने वाले अधिकांश लड़के-लड़कियों में यौन भावनाएं पैदा होती हैं जिन्हें उचित दिशा नहीं मिलती है फलतः उनमें बिगाड़ ही पैदा करती है।
- (7.)जिन विद्यालयों-कालेजों में साधनों का अभाव रहता है वहां का वातावरण बच्चों को आकर्षित नहीं कर पाता है,ऐसे शिक्षा संस्थानों के बच्चे स्कूलों अथवा काॅलेजों से भागकर गलियों-बाजारों,सिनेमा के आसपास,
पार्कों अथवा रेलवे स्टेशन पर बिताते हैं जहाँ इन्हें असामाजिक लोग आकर्षित कर लेते हैं।इस प्रकार का आकर्षण बच्चों को बिगाड़ने के लिए प्रेरित करता है। - (8.)पढ़ाई-लिखाई में पिछड़े बच्चे घर और घर के बाहर मानसिक तनाव में रहते हैं।लड़-झगड़ कर वे अपने इस तनाव को कम करना चाहते हैं जबकि लड़ाई-झगड़े का यह व्यवहार उन्हें ओर अधिक बिगाड़ देता है।
- (9.)स्कूलों तथा काॅलेजों से पलायन करने वाले बच्चे उन बिगड़ैल बच्चों का साथ पा जाते हैं जो पहले से ही पढ़ाई-लिखाई में पिछड़े हुए होते हैं।ऐसे कुण्ठित और बिगड़े हुए बच्चे इन्हें बीड़ी-सिगरेट पीना इत्यादि सीखा देते हैं।गुटखा खाने की आदत डाल देते हैं।घर से पैसे चुराने अथवा हेरा-फेरी करने की कला सीखा देते हैं।झूठ बोलना,बहानेबाजी करना,लड़कियों को छेड़ना आदि आम बातें हो जाती हैं।
- (10.)ऐसे बच्चे अपनी यौन भावनाओं की संतुष्टि के लिए दीवारों पर अश्लील बातें लिखने लगते हैं,चित्र बनाने लगते हैं।यहाँ तक कि अवसर मिलने पर लड़कियों के साथ अश्लील छेड़छाड़ में अपनी बहादुरी समझते हैं।गलियों में आवारा फिरते ऐसे बच्चे अन्य बच्चों के साथ छोटे-मोटे अपराध करने लगते हैं और धीरे-धीरे बड़े अपराधियों के इशारों पर हाथ की सफाई दिखाने लगते हैं।इस प्रकार से उनका जीवन प्रारंभिक अपराधी जीवन व्यतीत करने लगता है।
5.टीवी-अश्लील साहित्य-सिनेमा तथा इंटरनेट की भूमिका (TV- Pornography- Cinema and the Role of the Internet):
- (1.)टीवी में कई बेसिर पैर के सीरियल तथा अश्लीलता परोसी जाती है जिसे देखकर बच्चों की कोमल भावनाएं भड़क उठती है।सिनेमा में कई गंदी,अश्लील फिल्में बनाई जाती है जिनका बच्चों की भावनाओं को दूषित करके उन्हें बुराइयों की ओर प्रवृत्त करती है।
- (2.)फिल्मों यहां तक कि धार्मिक फिल्मों में भी अश्लीलता,अशिष्टता तथा भौंडे संवाद,भद्दे कमेन्टस यह कहकर दर्शाए जाते हैं कि यह फिल्म की डिमांड थी।ऐसी फिल्मों में कामुकता,तथाकथित प्रेम,अश्लीलता,अर्धनग्न भड़कीली वेशभूषा,हावभाव,तड़क-भड़क की प्रधानता होती है जो बच्चों के कोमल मस्तिष्क पर बुरा प्रभाव डालती हैं।बच्चे भी वैसा ही करने लगते हैं और इस अभ्यास में उन्हें अपनी मानसिकता बिगाड़नी पड़ती है।उनके जीवन को फिल्मों का प्रभाव वासनामय बना देता है।
- (3.)अश्लील साहित्य,कहानियां,भद्दी तस्वीरें,बच्चों की कामभावना को जगाती है,बुद्धि तथा चरित्र को भ्रष्ट करते हैं।इंटरनेट पर ढेरो ऐसी पोर्न वेबसाइट हैं जिनमें अश्लीलता का पिटारा खुला हुआ है।बच्चे बेधड़क होकर इन पोर्न वेबसाइट्स को आए दिन खँगालते हैं और बिगड़ते हैं।अपनी कामुक भावनाओं को व्यावहारिक रूप में पूरा करने के षडयन्त्र रचते हैं।
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6.बच्चों के बिगड़ने का दृष्टान्त (Parable of Children’s Deterioration):
- एक नगर में पति-पत्नी के दो संतानें थी।एक लड़का व एक लड़की थी।लड़की बड़ी थी तथा लड़का,लड़की से छोटा था।पति और पत्नी के विचारों में उत्तर-दक्षिण दिशा का फर्क था।पत्नी तथाकथित आधुनिक विचारों वाली तथा पति सात्त्विक प्रकृति का था।चूँकि बच्चों पर माँ का प्रभाव पड़ता है इसलिए उसकी बेटी भी माँ की तरह तड़क-भड़क रहन-सहन करने लगी।
- हालांकि पुत्री पढ़ने में होशियार थी तथा उसमें गजब की प्रतिभा थी।परन्तु मां के असर से उसकी प्रतिभा पर पलीता लगता जा रहा था।माँ अपनी सहेलियों और किटी पार्टियों में व्यस्त रहती थी तथा अपनी बेटी को भी साथ ले जाती थी।
- इन्हीं पार्टियों में मां का संपर्क एक युवक से हो गया।युवक और उसके बीच अनैतिक यौन संबंध हो गया।पति को इस बात का पता चल गया।रात-दिन उनमें लड़ाई-झगड़ा होने लगा।पुत्र व पुत्री उनके झगड़े से दुखी रहते थे।
- वह महिला बाजार में निकलती तो बन ठनकर निकलती तथा बेटी को भी स्लीवलेस स्कर्ट पहना कर जापानी गुड़िया की तरह सजा संवारकर ले जाती।बेटी परिपक्व हो चुकी थी परंतु उस पर मां के संस्कार थे।एक दिन पति अनाज में डाली जाने वाली सल्फोस की गोलियां घर पर ले आया।उसने पत्नी को समझाया कि या तो वह रास्ते पर आ जाए अन्यथा वह सल्फोस की गोलियां खाकर आत्महत्या कर लेगा।
- युवक और उस महिला के यौन संबंध खुलकर समाज के सामने आ गए थे।परंतु उनको समाज की,सम्मान की यहाँ तक कि बच्चों की भी परवाह नहीं थी।युवक के शराब पीने की लत थी।महिला के पति की अनुपस्थिति में दोनों घर में मौज-मस्ती करते और अपनी कामवासना की तृप्ति करते थे।अन्धे कई प्रकार के होते हैं।जन्म से अंधा,अहंकार में अंधा,स्वार्थ में अन्धा और काम से वशीभूत अन्धा।इनमें कामवासना से वशीभूत अंधे को न रात में दिखाई देता है और न दिन में दिखाई देता है।कामान्ध व्यक्ति को न लोकलाज की चिंता रहती है।भोग-विलास तथा कामवासना की पूर्ति ही एकमात्र उनका उद्देश्य होता है।कहावत भी है कि उतर गई लोई तो क्या करेगा कोई?
- युवक के लिए शराब और सेक्स के अलावा ओर कुछ था ही नहीं।ऐसे व्यक्ति स्वयं तो अपना जीवन बर्बाद करते हैं परन्तु अन्य व्यक्तियों का जीवन भी बर्बाद कर देते हैं।महिला भी उसे छोड़ने के लिए तैयार नहीं थी भले ही इसके लिए उसे कितनी ही कुर्बानी देनी पड़े।
- जब पति के कहने का कोई असर नहीं हुआ अर्थात् पति मरे तो मरे परन्तु वह उस युवक को छोड़ने के लिए तैयार नहीं थी।दोनों में आपस में झगड़ा बढ़ गया।उसकी पुत्री ने उनके झगड़े से परेशान होकर चुपके से सल्फोस की गोलियां ले ली और खा गई।सल्फोस की गोलियाँ खाने के बाद उसकी पुत्री की मौत हो गई।पति-पत्नी की राहें अलग हो गई।उस महिला ने अपने बच्चों की खातिर,बच्चों के भविष्य को सोचकर भी नहीं छोड़ा।
- तात्पर्य यह कि माता-पिता के चरित्र का,संस्कारों का प्रभाव बच्चों पर पड़ता है।आधुनिक युग में पैसा,सैक्स और अनैतिक सम्बन्धों का बोलबाला है।विवेकहीन होने के कारण सही-गलत का निर्णय नहीं कर पाते हैं।इस आर्टिकल में बच्चे क्यों बिगड़ते हैं इस पर ही लिखा है।इसका समाधान के लिए “बच्चों को बिगड़ने से कैसे बचाएं” आर्टिकल पढ़ें।
- उपर्युक्त आर्टिकल में बच्चे क्यों बिगड़ते हैं? (Why Do Children Deteriorate?),बच्चों के बिगाड़ने में कौन-कौनसे मूल कारण हैं? (What Are Root Causes of Children’s Deterioration?) के बारे में बताया गया है।
7.काणा गणित का शिक्षक (हास्य-व्यंग्य) (One Eyed Mathematics Teacher) (Humour-Satire):
- एक बार एक व्यक्ति अपने बच्चों के लिए कोचिंग हेतु कोचिंग शिक्षक के पास गया।
- तरुणःश्रीमान,आप गणित की कोचिंग फीस कितनी लेते हैं?
- गणित शिक्षक: ₹3000।
- तरुणःश्रीमान ₹3000 तो आपकी फीस ज्यादा है।
- गणित शिक्षकःवह कैसे?
- तरुण:क्योंकि आपकी एक आंख नहीं है।
- गणित शिक्षकःआपको मुझसे बच्चों को गणित पढ़वाना है या अनाज का कचरा साफ करवाना है।
8.बच्चे क्यों बिगड़ते हैं? (Frequently Asked Questions Related to Why Do Children Deteriorate?),बच्चों के बिगाड़ने में कौन-कौनसे मूल कारण हैं? (What Are Root Causes of Children’s Deterioration?) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:
प्रश्न:1.बिगड़ैल बच्चे से क्या तात्पर्य है? (What do You Mean by a Spoiled Child?):
उत्तरःऐसे बच्चे जिन्हें अपने भविष्य,कैरियर की कोई चिंता नहीं,अपनी सामाजिक और पारिवारिक प्रतिष्ठा का कोई ख्याल नहीं,सामाजिक वर्जनाओं का उल्लंघन करने में जिन्हें जरा भी शर्म-संकोच नहीं।शराब पीकर तेज रफ्तार से गाड़ी चलाना और राहगीरों को कुचल कर मार देना,डिस्कोथिक,स्वच्छन्द आचरण करना,नशाखोरी का शिकार होना,ड्रग्स का सेवन करना,अफीम,चरस,गांजा इत्यादि का सेवन ये ऐसे ही बिगड़ैल बच्चों के लक्षण हैं।
प्रश्न:2.आज के युग के बिगड़ैल बच्चे किस तरह का जीवन व्यतीत करते हैं? (What Kind of Life do Spoiled Children Today Live?):
उत्तर:आज के युग में युवक-युवतियां बहुत ही महत्वाकांक्षी हैं।सिनेमाई संस्कृति,फैशन,डिस्को,डांस,पार्टियां,अय्याशी,मौज-मस्ती करना,शराब व ड्रग्स का सेवन करना और ग्लैमर की चकाचौंध,टीवी तथा भोगवादी हाई-फाई संस्कृति व भौतिक सुख-सुविधाओं के कारण भोग-विलास तथा विलासिता का जीवन जीना चाहते हैं।अभाव सहन रहना,अभावों में रहना,तप,साधनामय जीवन व्यतीत करना उन्हें पसंद नहीं है।मां-बाप भी उनकी ख्वाहिशे पूरी करने में लगे रहते हैं जिससे उन्हें जीवन की कठोर सच्चाइयों का अनुभव ही नहीं होता है।इसलिए आज के युवक-युवतियां काल्पनिक सपनों में जीने के आदी होते हैं।
प्रश्न:3.समाज का बच्चों के प्रति क्या दृष्टिकोण है? (What is Society’s Attitude Towards Children?):
उत्तर:समाज में आज अनुभवी,योग्य तथा युवाओं को उच्च आदर्श देने वाले बड़े-बुजुर्गों का अभाव है।आज कोई भी युवक-युवतियां गलतियां कर बैठे तो उसके प्रति बुरी धारणा बना ली जाती है और बात-बात में उसे अपमानित किया जाता है।इस कारण भी बच्चे सही रास्ते पर नहीं आ पाते हैं।भूल करना मनुष्य का स्वभाव है।परंतु भूलों में सुधार बच्चों के प्रति सौम्य व्यवहार रखने पर ही हो सकता है।बच्चे बिगड़ैल बच्चों की प्रेरणा और दबाव से गलत कार्य करते हैं।प्रत्येक स्थान पर ऐसे बिगड़ैल बच्चों का समूह होता है जो सीधे-सादे,सरल स्वभाव वाले बच्चों को बहला-फुसलाकर या धमकाकर बुरे कर्मों की ओर प्रेरित करते हैं।
- उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा बच्चे क्यों बिगड़ते हैं? (Why Do Children Deteriorate?),बच्चों के बिगाड़ने में कौन-कौनसे मूल कारण हैं? (What Are Root Causes of Children’s Deterioration?) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
Why Do Children Deteriorate?
बच्चे क्यों बिगड़ते हैं?
(Why Do Children Deteriorate?)
Why Do Children Deteriorate?
बच्चे क्यों बिगड़ते हैं? (Why Do Children Deteriorate?)
इसके अनेक मूलभूत कारण हैं।बच्चों को बिगाड़ने में माता-पिता की लापरवाही,माता-पिता
द्वारा संस्कार न डालना,माता-पिता का अत्यधिक व्यस्त रहना,बच्चों के संगी-साथी
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Satyam
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