Zero and Infinity
1.शून्य और अनन्त (Zero and Infinity):
- शून्य और अनन्त (Zero and Infinity) गणित के दो अनमोल रतन है।रतन के बिना तो जीवन चल सकता है परंतु शून्य और अनंत के बिना गणित कुछ नहीं है।शून्य और अनंत जिनका भौतिक जगत में कहीं नाम निशान नहीं और केवल मनुष्य के मस्तिष्क की उपज है।इसके बावजूद गणित और विज्ञान के माध्यम से विश्व के कठिन से कठिन रहस्यों को स्पष्ट करते हैं।शून्य और अनंत की चर्चा भास्कराचार्य द्वितीय ने अपनी पुस्तक बीजगणित में इनका उल्लेख किया है।बीजगणित भास्कराचार्य के बड़े ग्रंथ सिद्धांतशिरोमणि का एक अध्याय है।
- शून्य का आविष्कार भारतीय गणितज्ञों के दिमाग की उपज है।आज जो दाशमिक पद्धति अर्थात् दस के आधार पर अंकों को लिखने की पद्धति है वह भी पूर्णत: भारतीय पद्धति है।भारतीय गणितज्ञ अन्य अंकों की तरह शून्य को भी एक अंक की तरह ही मानते थी और इसे सूचित करने के लिए प्रतीक चिन्ह भी भारतीय गणितज्ञों ने दिया था।उपर्युक्त 0 से 9 अंक अरब देशों के माध्यम से यूरोप पहुंचे जिससे आज गणित और विज्ञान में प्रयोग किया जाता है।लेकिन इस शून्य में बहुत कुछ छुपा हुआ है।जिस शून्य का अर्थ कुछ नहीं है वही शून्य जब अंकों के बाद प्रयोग किया जाता है तो उसका महत्त्व बहुत बढ़ा देता है।
- शून्य में किसी संख्या को जोड़ने पर वही संख्या प्राप्त होती है।शून्य का वर्ग आदि (वर्ग,वर्गमूल,घन,घनमूल) करने पर भी परिणाम शून्य प्राप्त होता है।शून्य में किसी संख्या का भाग देने पर शून्य प्राप्त होता है।किसी संख्या की घात शून्य होने पर उसका मान एक हो जाता है,चाहे वह संख्या कितनी ही बड़ी हो।किसी संख्या में शून्य को जोड़ने और घटाने पर भी संख्या में कोई परिवर्तन नहीं होता है।
- किसी संख्या को 0 से भाग देने पर हर के स्थान पर हो अथवा किसी अन्य का गुणक शून्य हो और हर भी शून्य हो तो क्या समझना चाहिए?किसी संख्या का गुणक शून्य हो और हर भी शून्य हो तो उस संख्या में कोई परिवर्तन नहीं होता है।लेकिन यदि किसी संख्या में शून्य का भाग दिया जाए तो क्या मान क्या होगा?अर्थात्
\frac {a}{0} का मान क्या होगा?शायद इसका उत्तर ‘कुछ भी नहीं या शून्य हो।’परंतु नहीं।
शून्य की एक ऐसी राशि के रूप में कल्पना करो जोकि अत्यंत छोटी संख्या है और धीरे-धीरे शून्य में विलीन हो जाती है।जैसे:
0.000001,0.0000001,……..,0.0000000000001,……..
जो अंत में शून्य में विलीन हो जाती है। - शून्य की ओर धीरे-धीरे आगे बढ़ने वाली इन राशियों से यदि हम किसी संख्या को,मान लो कि a को भाग देते हैं तो भिन्न का मान धीरे-धीरे बढ़ता ही जाएगा।जैसे:
\frac{a}{0.001}=\frac{a}{\frac{1}{1000}}=1000a और \frac{a}{0.00000001}=100000000 a - यह तो बहुत आश्चर्य की बात है।हर के स्थान की संख्या का मान धीरे-धीरे घटकर शून्य की स्थिति पर पहुंच रहा है परंतु भिन्न का मान उसी अनुपात में बड़ा …. बहुत बड़ा होता जाता जा रहा है।इस बड़ी संख्या को क्या कहेंगे?
- गणित में इसे ‘अनंत’ राशि (इन्फिनिटी) कहते हैं और आधुनिक गणित में अनन्त के लिए चिन्ह है (∞):
- भास्कराचार्य प्रथम गणितज्ञ हैं जिन्होंने ‘परमाल्प संख्या’ के रूप में शून्य की कल्पना करके अनन्त की इस धारणा को अधिक स्पष्ट किया।इसी धारणा को ओर आगे बढ़ाकर भास्कराचार्य अवकलन गणित (कैलकुलस) की मूल बातों पर पहुंच गए थे जबकि कलन गणित का आविष्कार भास्कराचार्य से लगभग 550 वर्ष बाद न्यूटन और लाइबनिट्ज ने किया।वास्तव में कलन के मूल सिद्धांतों का आभास हमें भास्कराचार्य के ग्रंथों में भी मिलता है।
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(1.)अनंत का रहस्य (The Secret of Infinity):
- संख्याओं के इस 1,2,3,4,5,…….क्रम का कोई अंत नहीं।पहले की संख्या में एक को जोड़ देने पर आगे की संख्या मिलती है और यह क्रम चलता ही रहता है;इसका कोई अंत नहीं।इस आर्टिकल की प्रथम पंक्ति को शून्य रखकर आखिरी पंक्ति तक सब शून्य ही लिखे जाएं तब भी वह संख्या ‘अनंत’ नहीं कहलाएगी भले ही तुम उसे ‘बहुत-बहुत-बहुत-बहुत-बहुत बड़ी संख्या’ का नाम दो।
- भास्कराचार्य ने किसी संख्या को शून्य से भाग देने पर \frac{a}{0} जो प्राप्ति होती है उसे उन्होंने ‘ख-हर’ (वह राशि जिसका हर ‘ख’ अर्थात् शून्य हो) कहा है।
- जिस प्रकार अनंत और अच्युत भगवान् में प्रलय के समय बहुत से भूतगणों का प्रवेश होने से अथवा सृष्टि के समय उनके निकल जाने से,कोई विकार नहीं होता,उसी प्रकार इस शून्य हर वाली,’ख-हर’ राशि में बहुत बड़ी संख्या को भी जोड़ने अथवा घटाने से कोई परिवर्तन नहीं होता।
- संसार के समस्त जीवों की संख्या अनंत नहीं है।संसार की सभी वस्तुओं की संख्या अनंत नहीं है।संसार के सभी पेड़ों की संख्या अनंत नहीं है।विश्व के सभी तारों की संख्या अनंत नहीं है।यहाँ तक की विश्व के अणु-परमाणुओं की संख्या भी अनंत नहीं!संक्षेप में इस भौतिक जगत में ऐसी वस्तुसंख्या नहीं है जिसे अनंत कहा जा सके!
- उच्च गणित में से ‘अनंत’ निकाल दिया जाए तो उसमें कुछ भी नहीं बचता।उच्च गणित में कदम-कदम पर ‘अनंत’ की जरूरत पड़ती है।
(2.)अनंत का क्रम (order of infinity):
- ‘अनन्त’ संबंधी जो उच्च-गणित आज विकसित हो रहा है,उस ‘अनन्त’ की काफी सही व्याख्या आज से लगभग 850 वर्ष पहले हमारे देश के महान् गणितज्ञ भास्कराचार्य द्वितीय ने की थी।
1,2,3,4,5,………,44,………1567, …….. - संख्याओं के इस क्रम का कोई अंत नहीं।अर्थात् यह एक अनंत क्रम है।इसे प्राकृतिक संख्याओं का क्रम भी कहते हैं।इन्हीं प्राकृतिक संख्याओं में केवल सम संख्याएँ चुनी जाए (वे संख्याएँ जिन्हें 2 से भाग देना संभव हो) तो उनका भी कोई अंत नहीं है।अर्थात् सम संख्याएं भी अनंत है।यदि इन सम संख्याओं को क्रमानुसार प्राकृत संख्याओं में जोड़ा जाए तो जोड़ने का यह क्रम भी अनंत दूरी तक चलता रह सकता है।जैसे:1+2=3,2+4=6,3+6=9,4+8=12,5+10=15,….
- यदि प्राकृत संख्याओं को 2 से गुणा किया जाए तो गुणनफल में सम संख्याएँ प्राप्त होती है।
- दो अनंत क्रमों (श्रेणियों) को इस प्रकार जोड़ने की रीति को उच्च-गणित में ‘एक-एक का संबंध’ कहते हैं।
कोई भी संख्या समूह ‘अनंत’ है कि नहीं,यह जानने के लिए उसे इसी ‘एक-एक के संबंध’ की रीति से प्राकृतिक संख्याओं के मान्य अनंत क्रम से जोड़कर देखा जाता है। - उपर्युक्त विवरण में शून्य और अनन्त (Zero and Infinity) के बारे में बताया गया है।
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(3.)शून्य और अनंत का निष्कर्ष (Conclusion of Zero and Infinite):
- गणित में ऐसे बहुत से रोचक और मनोरंजक तथ्य मिल जाएंगे जो न केवल हमारा मनोरंजन करते हैं बल्कि हमारी बौद्धिक व तार्किक क्षमता में अप्रत्याशित वृद्धि करते हैं।
- हमारे प्राचीन भारतीय गणितज्ञ उच्चकोटि के गणितज्ञ थे जिन्होंने शून्य,दाशमिक पद्धति तथा अनंत संबंधित खोज दी है।इस खोज और आविष्कार के बल पर ही आज गणित और विज्ञान का इतना सुंदर और भव्य महल खड़ा है।
भारतीय गणितज्ञों की वजह से गणित और ज्यामिति ने बिल्कुल एक नई विकास की राह पकड़ी है।
शुल्वसूत्रों द्वारा ज्यामिति की बातें भारत में 800 ईसा पूर्व के लगभग आई।यह यूनानियों द्वारा ज्यामिति की शुरुआत करने से बहुत पहले की बात है।पाइथागोरस प्रमेय के नाम से जिस प्रमेय को जाना जाता है उसे बौद्धायन (भारतीय गणितज्ञ) ने बहुत पहले पता लगा लिया था। - इस प्रकार गणित में अनेक ऐसे रहस्य और चमत्कार भरे पड़े हैं जो अभी भी अज्ञात हैं। दरअसल ज्ञान का कोई अंत नहीं है।जितना गणित की गहराई में हम डूबते जाते हैं तो गणित के अनेक रहस्यों का पता लगता जाता है।चमत्कार को ही नमस्कार है।वरना इस विश्व में किसी को कोई कौन पूछता है और क्यों पूछेगा?
- यदि आप अपनी प्रतिभा को उभारने,तराशने का कार्य नहीं करोगे तो अपने आप के साथ अन्याय ही कर रहे हो।प्रतिभा हर मनुष्य में होती है केवल मानसिक रोगी,पागल,असाध्य रोग से ग्रस्त व्यक्तियों को छोड़कर।हमारे अंदर छुपी हुई प्रतिभा को जगाना तो हमें ही पड़ेगा।यदि हम प्रयास ही नहीं करेंगे तो हमारी प्रतिभा छुपी हुई,सुप्त रह जाएगी।प्रत्येक व्यक्ति को भगवान् ने अनंत संभावनाओं से युक्त करके भेजा है।अब यह हम पर है कि हमारे अंदर कैसी प्रतिभा है और उसे कैसे विकसित करें?
उक्त विवरण में शून्य और अनन्त (Zero and Infinity) का निष्कर्ष निकाला गया है।
2.शून्य और अनन्त (Zero and Infinity) के सम्बन्ध में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:
प्रश्न:1.क्या शून्य और अनंत एक ही हैं? (Are zero and infinity the same?):
प्रश्न:2.अनंत में शून्य का मूल्य क्या है? (What is the value of zero into infinity?):
प्रश्न:3.0 और अनंत का गुणा क्या है? (What is the product of 0 and infinity?):
प्रश्न:4.क्या शून्य अनंत के विपरीत है? (Is zero the opposite of infinity?):
Zero and Infinity
शून्य और अनन्त (Zero and Infinity)
Zero and Infinity
शून्य और अनन्त (Zero and Infinity) गणित के दो अनमोल रतन है।रतन के बिना तो जीवन चल सकता है
परंतु शून्य और अनंत के बिना गणित कुछ नहीं है।शून्य और अनंत जिनका भौतिक जगत में कहीं नाम निशान नहीं
और केवल मनुष्य के मस्तिष्क की उपज है।
उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा शून्य और अनन्त (Zero and Infinity) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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