Mathematician Pythagoras
1.गणितज्ञ पाइथागोरस (Mathematician Pythagoras):
- गणितज्ञ पाइथागोरस (Mathematician Pythagoras) बहुत प्रसिद्ध गणितज्ञ हुए हैं।गणित के क्षेत्र में अनेक विद्वान हुए हैं जिनमें पाइथागोरस भी एक उच्चकोटि के गणितज्ञ थे।इनका जन्म ग्रीस के निकट,एजियन सागर के मध्य,सामोस (Samos) नामक द्वीप में ईसा से लगभग 580 वर्ष पूर्व हुआ था।यह सामोस द्वीप थेल के जन्म नगर मिलेटस से काफी नजदीक था।इनके गुरु मिलेटस निवासी थेल्स (Thales) इतिहास प्रसिद्ध ग्रीस के सात विद्वानों में से एक थे।पाइथागोरस की प्रारम्भिक शिक्षा थेल्स की देखरेख में हुई थी।देश-विदेश में घूमकर थेल ने जितना भी ज्ञान अर्जित किया वह सब उन्होंने पाइथागोरस को बता दिया।थेल के पास जब कोई नई बातें बताने के लिए नहीं रही तो उन्होंने पाइथागोरस से कहा कि तुमने वह सब कुछ सीख लिया जो मुझे ज्ञात है।यदि तुम अधिक ज्ञान अर्जित करना चाहते हो तो तुम्हें अब मेरी तरह मिश्र,बेबीलोन (वर्तमान ईराक) आदि देशों की यात्रा करनी होगी।गुरु के आदेश पर पाइथागोरस ने मिश्र देश में जीवन का प्रारम्भिक काल व्यतीत किया।वहाँ लगभग 22 वर्ष रहकर उन्होंने विभिन्न विज्ञान विशेषत: गणित का गहन अध्ययन किया।
- इसके बाद लगभग 12 वर्ष बादल इराक,ईरान और भारत की यात्रा में व्यतीत करके पाइथागोरस स्वदेश लौट गए।तब तक उनकी आयु लगभग 50 वर्ष हो चुकी थी।यूक्लिड ने इस पाइथागोरस प्रमेय की जानकारी पाइथागोरस के शिष्यों से प्राप्त की थी।इसलिए उसने पाइथागोरस का आविष्कार माना तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है।लेकिन हमारे शुल्व ग्रंथों के रचियिताओं को पाइथागोरस से भी बहुत पहले इस प्रमेय का ज्ञान था।इसलिए उचित यही होगा कि हम इसे शुल्व-प्रमेय के नाम से जाने।
- दरअसल गणित और ज्योतिष में ऐसी बहुत सी बाते हैं जिनका हमारे गणितज्ञ आर्यभट, ब्रह्मगुप्त, भास्कर जैसे आचार्यों को ज्ञान था।हमसे यूरोपवालों ने बहुत सी बातें सीखी हैं।परन्तु आज हमें गणित के किसी भी सिद्धान्त या विधि के साथ हमारे किसी गणितज्ञ का नाम जुड़ा हुआ देखने को नहीं मिलता।वरना आज गणित में बहुतायत-सी विधियाँ जिन्हें हम आर्यभट या भास्कराचार्य की विधियाँ कह सकते हैं।
- विदेश यात्रा के बाद वे सामोस में नहीं रह पाए।सामोस छोड़कर दक्षिणी इटली के क्रोटोना (Crotona) नगर में आ बसे।वहाँ मिलो नामक व्यक्ति के अतिथि बने रहे।वहीं लगभग 60 वर्ष की आयु में मिलो की तरुण एवं सुन्दर कन्या थियोना से विवाह किया।कहा जाता है कि थियोना ने अपने पति के जीवन-चरित्र पर एक पुस्तक लिखी है जो आज अप्राप्य है।
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(1.)गणितज्ञ पाइथागोरस का ज्यामिति में.योगदान (Contribution of Mathematician Pythagoras in Geometry):
- क्रोटोना में पाइथागोरस ने एक विद्यालय की स्थापना की।यह विद्यालय आज के विद्यालयों जैसा नहीं था।यह हमारे देश के प्राचीन नालन्दा विश्वविद्यालय की पद्धति का था।आज से लगभग डेढ़ हजार वर्ष पहले नालन्दा के विद्यालय में बौद्ध पंडित अध्ययन-अध्यापन करते थे।
- क्रोटोना में पाइथागोरस ने गणित और दर्शन-शास्त्र पर व्याख्यान देना आरम्भ किया।सभी वर्गों के लोग इनके विद्वतापूर्ण भाषण सुनने आते थे।वहाँ वैधानिक रूप से सार्वजनिक भाषणों में स्त्रियों के आने पर रोक थी परन्तु फिर भी स्त्रियाँ इस नियम का उल्लंघन कर काफी संख्या में इनका भाषण सुनने आया करती थी।
- इनके भाषण इतने प्रभावशाली होते थे कि नियमित रूप से भाषण सुनने वालों ने अपना एक स्वतन्त्र संगठन तैयार कर लिया।वही संगठन पाइथागोरस स्कूल के नाम से प्रसिद्ध हुआ।उस संगठन के अपने कुछ विशेष नियम थे जैसे:संस्था की सभी वस्तुओं पर समान अधिकार तथा सभी सदस्यों की दार्शनिक विचारों एवं मान्यताओं में समानता।सभी सदस्यों को शपथ लेनी पड़ती थी कि वे अपनी गुप्त विद्या को किसी बाहरी व्यक्ति के सामने व्यक्त न करेंगे।उस संगठन का यह नियम भी था कि प्रत्येक खोज तथा आविष्कार को पाइथागोरस के नाम से जोड़ा जाय।इसलिए आज यह पता लगाना असम्भव प्रतीत होता है कि कौनसी खोज स्वयं पाइथागोरस ने की और कौनसी शिष्यों ने।
- अजीब-अजीब मान्यताएँ थी पाइथागोरस की।जिस प्रकार थेल का विश्वास था कि यह विश्व जलमय है, उसी प्रकार पाइथागोरस तथा उसके शिष्यों का विश्वास था कि विश्व की सभी घटनाओं को परिमेय (रेशनल) संख्याओं में व्यक्त किया जा सकता है।जो संख्याएँ a/b भिन्न के रूप में व्यक्त की जा सकती हैं, गणितशास्त्र में उन्हें परिमेय संख्याएँ कहते हैं।परिमेय का अर्थ है जिसे मापा जा सके।
- पाइथागोरस और उनके शिष्यों ने संख्याओं के अनेक गुणधर्मों की खोज की।संक्षेप में कहें तो पाइथागोरस ने संख्या सिद्धान्त की स्थापना की।उसका पक्का विश्वास था कि संख्या ही विश्व का मूलतत्त्व है।भौतिक जगत की सभी बातों को संख्याओं में व्यक्त किया जा सकता है।मजेदार बात तो यह है कि स्वयं पाइथागोरस को ही बाद में पता चला कि उसकी यह मान्यता खोखली है।लेकिन उसने अपनी इस खोज को छिपाए रखा और पुरानी मान्यता पर ही डटा रहा।लेकिन सत्य कहीं छिपता है? सत्य भी कैसा? गणित की एक महान् खोज।
- पाइथागोरस को बाद में पता चला कि ऐसी संख्याओं का अस्तित्व है जो परिमेय नहीं है अर्थात् जो a/b के रूप व्यक्त नहीं की जा सकती।√2,√3,√7,√11,√13 इत्यादि इसी प्रकार की संख्याएं हैं।विचित्र बात तो यह है कि जिस प्रकार 1,2,3,4,……..संख्याओं वाले क्रम का कोई अन्त नहीं है, उसी प्रकार √2,√3,√7, जैसी संख्याएँ भी अनन्त हैं।
- इस खोज से पाइथागोरस की आंखें खुल गई।उसने जाना कि विश्व में ऐसी वस्तुएँ (परिमाण) हैं।पाइथागोरस ने अपनी इस नई खोज को बाहर के लोगों के सामने प्रकट नहीं होने दिया।उसने अपने शिष्यों को आदेश दे रखा था कि जो कोई इस खोज को बाहर प्रकट करेगा उसका बड़ा अहित होगा।लेकिन यह महान् सत्य बहुत दिनों तक छिपा नहीं रह सका।पाइथागोरस के एक शिष्य, क्रोटोना के हिपाक्स ने इस खोज को बाहरी दुनिया में उजागर कर दिया।दरअसल हिपाक्स ने ही इन अपरिमेय संख्याओं का पता लगाया था जिसके कारण हिपाक्स का दुर्भाग्यपूर्ण अंत हो गया।
- आजकल पढ़ाई जाने वाली ज्यामिति ग्रीक गणितज्ञ यूक्लिड के ‘एलिमेंटस (Elements)’पर आधारित है।उसी ग्रंथ का 47 वाँ प्रमेय में पाइथागोरस प्रमेय के नाम से प्रसिद्ध है जिसमें बताया गया है कि समकोण त्रिभुज के कर्ण पर आधारित चौरस (Rectangular) इस त्रिभुज के लंब और आधार पर आधारित चौरसों के योग के तुल्य होता है।
- प्राचीनकाल में भारतवर्ष में यज्ञ आदि के लिए जो वेदी बनाई जाती थी,इसके निर्माणार्थ ज्यामितीय आंकड़ों का निश्चित विधान था।वह विधान हमें ‘शुल्वसूत्र’ ग्रंथों में मिलता है।इन ग्रंथों में भी पाइथागोरस प्रमेय का उल्लेख मिलता है।साथ ही 3^2+4^2=5^2 का संबंध भी अन्य अनेक संबंधों सहित मिलता है।इससे यह भी पुष्टि होती है कि पाइथागोरस सचमुच भारत आया था और उसने भारत की प्राचीन ज्यामिति को सीखा था।
- इसके अतिरिक्त पाइथागोरस ने संख्या-शास्त्र पर कार्य किया है।उसने समस्त संख्याओं को सम और विषम भागों में बाँटा उसी से विषम संख्याओं को शुभ और सम संख्याओं को अशुभ मानने की एक प्रथा चल पड़ी।संख्याओं के संबंध में कुछ और भी विचित्र मान्यताएं थी।जैसे :एक अंक विचार का, दो तर्क का,चार न्याय का,पांच विवाह का द्योतक है।
- इसी प्रकार ज्यामिति में एक अंक बिंदु का,दो रेखा का,तीन समतल का और चार ठोस का प्रतीक माना जाता था।इन्हीं कुछ संख्याओं को त्रिभुज संख्या नाम दिया;जैसे 3,6 और 10 आदि त्रिभुज संख्याएं हैं।प्रथम 2 संख्याओं का योग 1+2=3 प्रथम त्रिभुज संख्या कहलाती हैं।प्रथम तीन संख्याओं का योग 1+2+3=6 द्वितीय त्रिभुज संख्या और प्रथम चार संख्याओं का योग 1+2+3+4=10 तीसरी त्रिभुज कहलाती है।
- पाइथागोरस स्कूल ने गणित के अनेक शब्दों को जन्म दिया;जैसे मैथमेटिक्स (Mathematics),पैराबोला (Parabola),ईलिप्स (Ellipse) और हाइपरबोला (Hyperbola)।मिश्रवासियों को केवल तीन ठोस ज्ञात थे:घन (Cube),समचतुष्फलक (Tetrahedron),समअष्टफलक (Octahedrin) और पाइथागोरस ने दो समठोसों समद्वादशफलक (Dodecahedron) और विंशतिफलक (Icosahedron) की खोज की।
- वास्तव में पाइथागोरस और उसके द्वारा संस्थापित स्कूल की गणितशास्त्र को जो देन है,उसका ग्रीक गणित में सर्वोच्च सर्वोच्च स्थान है।पाइथागोरस की कई धारणाएं आधुनिक काल के गणित में पूर्ण रूप से विकसित हैं।
उपर्युक्त आर्टिकल में गणितज्ञ पाइथागोरस (Mathematician Pythagoras) के बारे में बताया गया है।
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2.गणितज्ञ पाइथागोरस (Mathematician Pythagoras) के सम्बन्ध में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:
प्रश्न:1.एक गणितज्ञ पाइथागोरस क्या है? (What Pythagoras a mathematician?):
प्रश्न:2.पाइथागोरस का गणित में क्या योगदान था? (What was Pythagoras contribution to mathematics?):
प्रश्न:3.पाइथागोरस एक प्रसिद्ध गणितज्ञ और दार्शनिक क्यों हैं? (Why is Pythagoras a famous mathematician and philosopher?):
प्रश्न:4.पाइथागोरस ने ज्यामिति में कैसे योगदान दिया? (How did Pythagoras contribute to geometry?):
उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा गणितज्ञ पाइथागोरस (Mathematician Pythagoras) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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Mathematician Pythagoras
गणितज्ञ पाइथागोरस (Mathematician Pythagoras) बहुत प्रसिद्ध गणितज्ञ हुए हैं।गणित के क्षेत्र में अनेक विद्वान हुए हैं
जिनमें पाइथागोरस भी एक उच्चकोटि के गणितज्ञ थे।इनका जन्म ग्रीस के निकट,
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