Indian Mathematician Bhaskaracharya 2
1.भारतीय गणितज्ञ भास्कराचार्य द्वितीय (Indian Mathematician Bhaskaracharya 2):
- भारतीय गणितज्ञ भास्कराचार्य द्वितीय (Indian Mathematician Bhaskaracharya 2) का जन्म 1114 ईसवी में हुआ था।उनका जन्म सहयाद्रि प्रदेश में स्थित विज्जडविड गांव में हुआ था।सहयाद्रि पर्वत आजकल के महाराष्ट्र में है।प्राचीनकाल में विद्वान राज्याश्रय पाकर अपना जीवन निर्वाह करते थे और राजा-महाराजाओं का स्तुति अपने ग्रंथों में करते थे।
- परन्तु भास्करचार्य द्वितीय स्वतंत्र प्रकृति के गणितज्ञ थे। उनके किसी ग्रंथ में राजा-महाराजाओं का यशोगान नहीं मिलता है।उन्होंने अपने बल पर ही गणित और विज्ञान के क्षेत्र में अनुसंधान किए थे।
- भास्कराचार्य भले ही किसी राज्यश्रय में न रहे हों पर उनके कुल के कई व्यक्ति उनके पहले और बाद में राज्याश्रय में रहे।उनके कुल के कुछ विद्वान देवगिरि के यादववंशी राजाओं के दरबार में राजज्योतिषी थे।भास्कराचार्य के कुल में ज्योतिष का अध्ययन परंपरा से चला आ रहा था।उनके पिता महेश्वरभट खुद ज्योतिषी थे और वे ही भास्कराचार्य के गुरू थे ।
- भास्कराचार्य ने प्रमुख ग्रंथ सिद्धांत शिरोमणि की रचना 36 वर्ष की आयु में की अर्थात् 1150 ईसवी में इस महान् ग्रन्थ की रचना की।इनके प्रमुख ग्रन्थ हैं लीलावती( (पाटीगणित, अंकगणित),बीजगणित,सिद्धांत शिरोमणि,करण कुतूहल तथा सर्वतोभद्र।इनका सिद्धान्त शिरोमणि ग्रन्थ ब्रह्मगुप्त के ब्रह्मस्फुट और पृथुसेन स्वामी के भाष्य पर आधारित है।
आर्यभट,लल्ल, ब्रह्मगुप्त आदि के ज्योतिषीय और गणितीय मतो की उन्होंने समालोचना की है। - भारतीय गणितज्ञ भास्कराचार्य द्वितीय (Indian Mathematician Bhaskaracharya 2) का सिद्धांत शिरोमणि ग्रंथ संस्कृतभाषा में है। उस समय हमारे देश की जनता की भाषा संस्कृत नहीं थी। संस्कृत,पालि,प्राकृत,अपभ्रंश आदि सीढ़ियों को लांघकर उस समय हमारे देश में प्रांतीय भाषाएं जन्म ले चुकी थी। ज्ञान-विज्ञान के ग्रंथ जनसामान्य की भाषा में न लिखे जाने के कारण ज्ञान-विज्ञान का प्रसार जनता तक न हो सका।उच्च वर्ग के लोग ही ज्ञान-विज्ञान के ठेकेदार हो गए।जनसामान्य की भाषा में ग्रन्थ न लिखे जाने के कारण नए-नए विद्वान तैयार नहीं हो सके।
- सिद्धांत शिरोमणि ग्रंथ पद्य में है।भास्कराचार्य ने इन ग्रन्थों को पद्य में तो लिखा परंतु वे जानते थे कि उनके समय के संस्कृत जाननेवाले विद्वान इसे समझ नहीं पाएंगे।इसलिए उन्होंने स्वयं ही अपने पर टीका लिखी।अपनी इस टीका को उन्होंने ‘वासनाभाष्य’ का नाम दिया।
- सिद्धांत शिरोमणि ग्रंथ काफी बड़ा है।यह चार पुस्तकों में बंटा हुआ है:पाटी गणित (अंकगणित) या लीलावती,बीजगणित,गोलाध्याय और ग्रह गणित।प्रथम पुस्तक पाटी गणित का विषय है अंक गणित।दूसरी पुस्तक नाम से ही जाहिर है बीजगणित है।तीसरी और चौथी पुस्तकों में कालगणना और ज्योतिष सम्बन्धी बातें हैं।प्रथम पुस्तक पाटीगणित ‘लीलावती’ के नाम से ही अधिक मशहूर है।
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(1.)लीलावती(पाटीगणित) [Lilavati]:
- प्राचीन भारत के वैज्ञानिक साहित्य में यही पुस्तक सबसे अधिक प्रसिद्ध हुई है।पर इस पुस्तक का यह ‘लीलावती’ नामकरण बड़े कुतूहल का विषय है।
- इस पुस्तक में सम्बोधन के रूप में ‘लीलावती’ शब्द कई बार आया है।भारतीय गणितज्ञ भास्कराचार्य द्वितीय (Indian Mathematician Bhaskaracharya 2) की लीलावती के सामने गणित के सवाल रखते हैं और वे लीलावती को इन सवालों के हल खोजने को कहते हैं।भास्कराचार्य कभी लीलावती की आंखों की तुलना हरिण की आंखों से करते हैं,तो कभी उसकी बुद्धि की तारीफ करते हैं।वे कभी उसे ‘सखी’ कहते हैं,कभी बाले’ कहते हैं तो कभी ‘प्रिये’ भी कहते हैं।ऐसी स्थिति में हम उलझन में पड़ जाते हैं और समझ नहीं पाते कि लीलावती के साथ भास्कराचार्य का क्या रिश्ता था?क्या लीलावती उनकी प्रेमिका थी या उनकी पुत्री थी?
- पुराने संस्कृत साहित्य में भास्कर और लीलावती के रिश्ते के बारे में हमें कोई ठोस जानकारी नहीं मिलती।पर अकबर बादशाह के दरबार के एक रत्न फैजी ने जब ‘लीलावती’ का फारसी भाषा में अनुवाद किया तो उन्होंने इसमें लीलावती के बारे में एक किस्सा लिख दिया।
- फैजी ने लिखा है कि लीलावती भास्कर की पुत्री थी।किस्सा यों है कि लीलावती जब बालिका थी तो उसके पिता भास्कराचार्य ने ज्योतिष के आधार पर यह जान लिया था कि लीलावती का विवाह एक खास मुहूर्त पर होगा तभी उसका आगे का वैवाहिक जीवन सुखमय होगा।वह शुभ मुहूर्त खोजा गया।शादी की तैयारियां हुई।वह शुभ मुहूर्त का ठीक-ठीक समय जानने के लिए जलघड़ी का इंतजाम किया गया।उस जमाने में आज जैसी घड़ियां नहीं थी।तांबे या कांसे का एक अर्धगोलाकार पात्र लिया जाता था।इस पात्र के पेंदी में एक छेद बनाया जाना था।फिर इस पात्र को पानी से भरे हुए एक बड़े बर्तन में तरंगता छोड़ दिया जाता था ।पात्र की पेंदी के छेद से धीरे-धीरे पानी पात्र के भीतर पहुंचता।पात्र के भीतर के पानी की मात्रा का मापन करके समय की अवधि ज्ञात की जाती थी।उस समय की घड़ियां इसी प्रकार की होती थी।
- नन्हीं लीलावती शादी का खूबसूरत लिबास पहने हुए थी। अपनी सखियों के साथ वह उस जलघड़ी के पास गई।भूल से उसके वस्त्रों की एक मणि उस जलघड़ी के पात्र में गिर गई।किसी को भी इस बात की खबर नहीं थी कि वह मणि पात्र के पेंदी में जाकर बैठ गई है और पात्र के भीतर पानी का आना रुक गया है।समय का प्रवाह अपनी अखंड गति से चल रहा था किंतु मानव को समय का ज्ञान दिलानेवाली वह जलघड़ी रुक गई थी।शुभ मुहूर्त टल गया था।लीलावती का विवाह न हो सका।पिता को बेहद रंज हुआ।कहते हैं कि भास्कराचार्य ने अपनी पुत्री को इन शब्दों में तसल्ली दी-बेटी मैं तुम्हें वह शास्त्र पढ़ाऊंगा जिससे आकाश के इन ग्रह नक्षत्रों की गतियों को समझा जा सकता है और इस शास्त्र के बारे में जो पुस्तक लिखूंगा उसे ‘लीलावती’ नाम दूंगा।
- लगता है कि यह किस्सा बाद का गढ़ा हुआ है।यह सही है कि भास्कराचार्य के जमाने के लोग फलित ज्योतिष में यकीन करते थे।परंतु भारतीय गणितज्ञ भास्कराचार्य द्वितीय (Indian Mathematician Bhaskaracharya 2) के सिद्धांत शिरोमणि ग्रंथ में इस अंधविश्वास की कोई चर्चा नहीं है।उन्होंने अपने ग्रंथ में गणित और ज्योतिष की शुद्ध वैज्ञानिक चर्चा की है।ये सारे विषय आजकल हाईस्कूल की कक्षाओं में पढ़ाए जाते हैं,पर लीलावती के कुछ प्रश्न काफी कठिन भी हैं।इतने कठिन कि वे बहुतों की बुद्धि को झकझोर दे सकते हैं।
- भास्कर ने बीजगणित को अव्यक्त गणित कहा है। बीजगणित में अव्यक्त यानी अज्ञात राशियों की सहायता से गणना की जाती है।आजकल इन अज्ञात राशियों के लिए हम क्ष,य जैसे अक्षरों का प्रयोग करते हैं।
- भारतीय गणितज्ञ भास्कराचार्य द्वितीय (Indian Mathematician Bhaskaracharya 2) के जमाने में इन अज्ञात राशियों को ‘यावत्-तावत्’ कहते थे और इसे संक्षेप में ‘या’ लिखते थे। पुराने जमाने में हमारे देश में वर्गमूल के लिए आज जैसा √ चिन्ह नहीं था।जिस राशि का वर्गमूल जानना होता था,उसके लिए ‘क’ अक्षर लिख दिया जाता था।यह इसलिए कि उस समय वर्गमूल की क्रिया के लिए ‘करणी’ शब्द प्रचलित था।हमारे देश में भास्कराचार्य के भी बहुत पहले सरल-समीकरण,वर्ग समीकरण आदि को अच्छी तरह जान लिया गया था।भास्कर ने अपनी दूसरी पुस्तक में इनका बढ़िया विवेचन किया है।
- आधुनिक गणित में शून्य और अनन्त की धारणाओं का बड़ा महत्त्व है।शून्य के चिन्ह तथा इसके पीछे निहित गणितीय धारणा की खोज भारत में ही हुई थी।भास्कराचार्य ने गणित के प्रयोग का बढ़िया विवेचन किया है।अनन्त को उन्होंने ‘ख-हर’ का नाम दिया था।’ख’ का अर्थ होता है ‘शून्य’।जिस संख्या के हर स्थान में शून्य हो वह संख्या ‘ख-हर’ अर्थात् अनंत होती है।इससे पता चलता है कि भास्करचार्य को अनंत से संबंधित गणित की बुनियादी बातों की अच्छी पहचान थी।भास्कर के लगभग 4 सौ साल बाद यूरोप के महान् वैज्ञानिक आइज़ेक न्यूटन और लाइबनिट्ज ने इसी धारणा को आगे बढ़ा कर एक नए प्रकार के गणित को जन्म दिया था।इन नए गणित को कलन गणित (कैलकुलस) कहते हैं।कलन गणित आज एक अत्यंत उपयोगी विज्ञान है।भास्कराचार्य के बाद यदि उनकी जैसी प्रखर प्रतिभा वाले विद्वान हमारे देश में पैदा होते तो इस गणितांग का निर्माण हमारे देश में भी हो सकता था।
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(2.)सिद्धांत शिरोमणि [Siddhanta Shiromani]:
- भास्कराचार्य एक ऊंचे दर्जे के ज्योतिषी भी थे।सिद्धान्त शिरोमणि ग्रंथ की दो पुस्तकों में ज्योतिष की चर्चा है।अब तो ज्योतिषशास्त्र ने बहुत तरक्की की है।आधुनिक ज्योतिष के सामने भास्करचार्य के समय का ज्योतिष ज्ञान फीका नजर आता है।भास्कर के समय में दूरबीन जैसे आधुनिक ज्योतिष यंत्र नहीं थे।ग्रह-नक्षत्रों की सही-सही दूरियां जानने के लिए कोई साधन उपलब्ध नहीं था।फिर भी हमारे पुराने ज्योतिषियों को ग्रह नक्षत्रों की गतियों और स्थितियों को जानने के लिए कई प्रकार के ज्योतिष-यंत्रों का प्रयोग होता था।भास्कर ने अपने ग्रंथ में इन ज्योतिष ग्रन्थों की जानकारी दी है।
- देखने में आता है कि वैज्ञानिक जब तरुण होता है,जब उसकी बुद्धि प्रखर होती है,तब वह अपनी सारी शक्ति शुद्ध वैज्ञानिक खोज में ही जोत देता है।उमर बढ़ती है तो वह भिन्न प्रकार से सोचता है,कुछ-कुछ दार्शनिक की तरह सोचता है।भास्कर के सिद्धांत शिरोमणि ग्रंथ में फलित ज्योतिष की कोई चर्चा नहीं।पर भास्कर जब बूढ़े हुए तो उन्होंने करण-कुतूहल नाम से एक पुस्तक लिखी।जिस पुस्तक में पंचाग बनाने के तरीके बताए जाते हैं उसे कारण ग्रंथ कहते हैं।भास्कर की यह पुस्तक भी पंचांग बनाने के तरीके बतलाने के लिए लिखी गई थी।पंचांग के साथ फलित-ज्योतिष भी मिला रहता है।भास्कर ने अपनी यह पुस्तक 68 साल की उम्र में लिखी थी।हम नहीं जानते भास्कराचार्य की मृत्यु किस वर्ष हुई परंतु 68 साल की आयु में करण कुतूहल जैसे कठिन ग्रंथ को उन्होंने लिखा तो पता चलता है कि उस उम्र में भी उनके शरीर और दिमाग में कोई थकावट नहीं आई थी।
- भास्कराचार्य निस्संदेह एक महान गणितज्ञ थे।उनके ग्रंथों पर अनेक टीकाएं लिखी गई है।अकबर के आदेश से फैजी ने 1587 ईसवी में लीलावती का फारसी में अनुवाद किया था।शाहजहां के दरबार के अताउल्लाह रसीदी ने 1634 ईसवी में भास्कराचार्य के बीजगणित का फारसी में अनुवाद किया।ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारी एडवर्ड स्ट्रैची ने 1813 ईसवी में पहली बार भास्कर के बीजगणित का फारसी से अंग्रेजी में अनुवाद किया था।फिर जे. टेलर ने 1816 में लीलावती का अंग्रेजी अनुवाद प्रकाशित किया।परंतु लीलावती और बीजगणित का मूल संस्कृत से अंग्रेजी में पहली बार प्रामाणिक अनुवाद हेनरी थॉमस कोलब्रुक ने 1817 में किया था।अब भास्कराचार्य के ग्रंथों के हिंदी में भी कई अनुवाद उपलब्ध है।पुरानी पीढ़ी के लोगों को कहते हुए अब भी सुना जा सकता है कि जो भास्कर को पढ़ेगा वह पेड़ों की पत्तियां तक गिन सकता है।इसका अर्थ यही है कि भास्कर के गणित को पढ़ने से आदमी बड़ा गणितज्ञ बन सकता है।पर आज यह कथन सत्य नहीं है।भास्कर के बाद पिछले करीब 800 सालों में गणितशास्त्र में बहुत उन्नति की है।>
2.भारतीय गणितज्ञ भास्कराचार्य द्वितीय (Indian Mathematician Bhaskaracharya 2) के बारे में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:
प्रश्न:1.भास्कराचार्य ने क्या आविष्कार किया था? (What bhaskaracharya invented?),भास्कराचार्य का आविष्कार क्या है? (What is the invention of bhaskaracharya?):
उत्तर:उन्होंने आर्यभट के स्कूल की पंक्ति में दो खगोलीय कार्य भी लिखे,महाभास्कर्य (Mahābhāskarīya) और लघुभास्कर्य (Laghubhāskarīya)।7 जून 1979 को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने गणितज्ञ को सम्मानित करते हुए भास्कर I को लॉन्च किया।
भास्कर प्रथम
व्यवसाय गणितज्ञ;वैज्ञानिक
भास्कर I के ज्या सन्निकटन सूत्र के लिए जाना जाता है।
प्रश्न:2.भास्कराचार्य किस लिए प्रसिद्ध थे? (What was bhaskaracharya famous for?):
उत्तर:भास्कर II, जिसे भास्कराचार्य या भास्कर द लर्न्ड भी कहा जाता है, (जन्म 1114, बिद्दूर (Biddur),भारत—मृत्यु सी.1185, शायद उज्जैन (Ujjain)),12वीं सदी के प्रमुख गणितज्ञ, जिन्होंने दशमलव संख्या प्रणाली के पूर्ण और व्यवस्थित उपयोग के साथ पहला काम लिखा।
प्रश्न:3.भास्कराचार्य की सबसे बड़ी कृति कौन सी है? (Which is the greatest work of bhaskaracharya?):
उत्तर: भारतीय गणितज्ञ भास्कराचार्य द्वितीय (Indian Mathematician Bhaskaracharya 2) को उनके दो मुख्य कार्यों के लिए जाना जाता है: एक ‘सिद्धांत’ पाठ,’सिद्धांत-सिरोमणि (Siddhanta-siromani)’ और एक ‘करण’ पाठ, ‘करणकुतुहल (Karanakutuhala)’।
प्रश्न:4.भास्कराचार्य की पुत्री कौन है? (Who is the daughter of bhaskaracharya?):
उत्तर:लीलावती (Lilavati)
भास्कर द्वितीय/बेटियाँ
भास्कराचार्य ने अपनी बेटी लीलावती के लिए एक कुंडली बनाई और भविष्यवाणी की कि वह निःसंतान और अविवाहित दोनों रहेगी।
बच्चे: लोकसमुद्र,लीलावती (Children: Loksamudra, Lilavati)
प्रश्न:5.क्या भास्कराचार्य ने गुरुत्वाकर्षण की खोज की थी? (Did bhaskaracharya discovered gravity?):
उत्तर:भारतीय गणितज्ञ भास्कराचार्य द्वितीय (Indian Mathematician Bhaskaracharya 2) ने न्यूटन से पहले गुरुत्वाकर्षण की खोज की थी।वे बारहवीं शताब्दी के बीच भारत में रहे जबकि न्यूटन सत्रहवीं शताब्दी से थे।
प्रश्न:6.भास्कराचार्य का जन्म कहाँ हुआ था? (Where did bhaskaracharya born?):
उत्तर:बिज्जरगी (Bijjaragi)
भास्कर II/जन्म स्थान
प्रश्न:7.भास्कर 1 का क्या योगदान है? (What are the contributions of Bhaskara 1?):
उत्तर:गणित में भास्कर I के कुछ योगदान हैं: संख्याएं (numbers) और प्रतीकवाद (symbolism),गणित का वर्गीकरण (categorization of mathematics),प्रथम डिग्री समीकरणों के नाम और समाधान (the names and solution of the first degree equations),द्विघात समीकरण (quadratic equations),घन समीकरण (cubic equations) और समीकरण जिनका एक से अधिक अज्ञात मान है, प्रतीकात्मक बीजगणित (symbolic algebra),एल्गोरिथम रैखिक हल करने की विधि (algorithm method to solve linear)।
भास्कर I एक भारतीय गणितज्ञ और खगोलशास्त्री थे।उनका जन्म कर्नाटक के बीजापुर (Bijapur in Karnataka) में हुआ था।
प्रश्न:8.भास्कराचार्य का अनुवाद किसने किया?
उत्तर:फारसी में इसके अनुवाद को तूतिनामा (Tutinamah) कहा जाता है।
भास्कराचार्य की कृति ‘लीलावती’ का फारसी में अनुवाद किसके द्वारा किया गया था।
फखरे मुदब्बीर (D. Fakhre Mudabbir):तारीख-ए-हिन्दी (Tarikh-i-Hind)
प्रश्न:9.गुरुत्वाकर्षण की खोज सबसे पहले किसने की थी भास्कराचार्य या न्यूटन? (Who discovered gravity first bhaskaracharya or Newton?):
उत्तर:भारतीय गणितज्ञ भास्कराचार्य द्वितीय (Indian Mathematician Bhaskaracharya 2) ने न्यूटन से पहले गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत की खोज की थी।
प्रश्न:10.लीलावती का अर्थ क्या है? (What is the meaning of Lilavati?):
उत्तर:लीलावती का संस्कृत में “मनोरंजक (amusing),आकर्षक (charming),सुंदर (graceful)” अर्थ है।12वीं सदी के गणितज्ञ भास्कर ने अपनी एक गणित प्रणाली का नाम अपनी बेटी लीलावती के नाम पर रखा। यह श्रीलंका की 13वीं सदी की एक रानी का भी नाम था।
प्रश्न:11.क्या आर्यभट्ट और भास्कराचार्य एक ही हैं? (Is aryabhatta and bhaskaracharya same?):
उत्तर:उन्हें उसी नाम के 10 वीं शताब्दी के भारतीय गणितज्ञ से अलग करने के लिए उन्हें आर्यभट I या आर्यभट द एल्डर के रूप में भी जाना जाता है।वह कुसुमपुर (Kusumapura) में विकसित हुआ-पाटलिपुत्र (Patalipurta) (पटना) के पास,फिर गुप्त वंश की राजधानी-जहां उन्होंने कम से कम दो रचनाओं की रचना की,आर्यभटीय (Aryabhatiya) (499 ईसा पूर्व) और आर्यभटसिद्धांत (Aryabhatasiddhanta) जो अब खो गए।
उत्तर:भास्कर द्वितीय
प्रश्न:13.भास्कर के पिता कौन थे? (Who was Bhaskara’s father?):
उत्तर:महेश्वर भट (Mahesvara Bhatta):
भास्कर द्वितीय/पिताजी
प्रश्न:14.अकबर दरबार के किस विद्वान ने भास्कराचार्य की लीलावती का फारसी में अनुवाद किया? (Which scholar of Akbar court translated bhaskaracharya’s Lilavati into Persian?):
उत्तर:अकबर के नवरत्न में से फैजी ने भास्कराचार्य के प्रसिद्ध संस्कृत ग्रंथ लीलावती का फारसी में अनुवाद किया।इसकी प्रस्तावना के अनुसार यह कार्य एएच 995 (1587) में पूरा हुआ।
प्रश्न:15.इस अविश्वसनीय कथा का स्रोत कौन रहा है कि लीलावती का नाम भास्कर की दुर्भाग्यपूर्ण बेटी के नाम पर रखा गया है? (Who has been the source for the implausible narrative that Līlāvatī is named after Bhāskara’s ill fated daughter?):
उत्तर:अंकगणित पर उनकी पुस्तक दिलचस्प किंवदंतियों का स्रोत है जो दावा करती है कि यह उनकी बेटी लीलावती के लिए लिखी गई थी।लीलावती भास्कर द्वितीय की पुत्री थी।भास्कर द्वितीय ने लीलावती की कुंडली का अध्ययन किया और भविष्यवाणी की कि वह निःसंतान और अविवाहित दोनों रहेंगी।
प्रश्न:16.सिद्धांत शिरोमणि में क्या लिखा है? (What is written in Siddhanta Shiromani?):
उत्तर:सिद्धांत शिरोमणी (संस्कृत:”क्राउन ऑफ ट्रीट्स” के लिए संस्कृत: वैद्युत शिरोमणि) भारतीय गणितज्ञ भास्कर II का प्रमुख ग्रंथ है।उन्होंने सिद्धांत शिरोमणि की रचना 1150 में की जब वे 36 वर्ष के थे।संस्कृत भाषा में 1450 श्लोकों में रचना की गई है।
प्रश्न:17.किस भारतीय वैज्ञानिक को डिफरेंशियल कैलकुलस का जनक कहा जाता है? (Which Indian scientist is called the founder of differential calculus?):
उत्तर:भास्कर द्वितीय
जबकि न्यूटन (Newton) और लाइबनिज़ (Leibniz) को अवकलन (differential) और समाकलन (integral calculus) का श्रेय दिया गया है,इस बात के पुख्ता सबूत हैं कि भास्कर अवकलन के कुछ सिद्धांतों में अग्रणी थे।
भास्कर द्वितीय
1158 ई. उज्जैन में मृत्यु।
अन्य नाम:भास्कराचार्य:
अकादमिक पृष्ठभूमि
शैक्षणिक कार्य
प्रश्न:18.गणित की बाइबिल कौन सी है? (Which is the bible of mathematics?):
उत्तर:यूक्लिड की ऐलीमेन्टस (Euclid’s Elements)
सर हेनरी बिलिंग्सले (Sir Henry Billingsley’s) के यूक्लिड की ऐलीमेन्टस (Euclid’s Elements) के पहले अंग्रेजी संस्करण का अग्रभाग, 1570
लेखक यूक्लिड
भाषा प्राचीन यूनानी
विषय यूक्लिडियन ज्यामिति (Euclidean geometry),प्राथमिक संख्या सिद्धांत (elementary number theory),अतुलनीय रेखाएं (incommensurable lines)
शैली गणित (Genre Mathematics)
प्रश्न:19.भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन इसरो ने भास्कर II उपग्रह कब लॉन्च किया? (When did the Indian Space Research Organization ISRO launch the Bhaskara II satellite?):
उत्तर:भास्कर-II
मिशन प्रायोगिक रिमोट सेंसिंग (Mission Experimental Remote Sensing)
लॉन्च की तारीख 20 नवंबर,1981
लॉन्च साइट वोल्गोग्राड लॉन्च स्टेशन (वर्तमान में रूस में) (Launch site Volgograd Launch Station) (presently in Russia)
प्रक्षेपण यान सी-1 इंटरकॉसमॉस (Launch vehicle C-1 Intercosmos)
कक्षा 541x 557 किमी (Orbit 541 x 557 km)
प्रश्न:20.प्रसिद्ध खगोलीय ग्रंथ सिद्धांत तिलक की रचना किसने की? (Who wrote the famous astronomical book Siddhanta Tilaka?):
उत्तर:11वीं सदी के फारसी विद्वान और पोलीमैथ अल-बिरूनी (al-Biruni) के अनुसार,सूर्य सिद्धांत नामक एक ग्रंथ एक लता द्वारा लिखा गया था।
पृथ्वी एक गोला है।
सूर्य सिद्धांत आधुनिक मूल्य
शनि (Saturn):10,765.77 दिन 10,759.202 दिन
प्रश्न:21.लीलावती पुस्तक किसने लिखी? (Who wrote Lilavati book?):
उत्तर:भास्कर द्वितीय
लीलावती/लेखक
1150 ईस्वी में भारतीय गणितज्ञ भास्कराचार्य द्वितीय (Indian Mathematician Bhaskaracharya 2) ने लीलावती लिखी,जिसमें अंकगणित (arithmetic),ज्यामिति (geometry),संचय (combinations),रैखिक और द्विघात समीकरणों (linear and quadratic equations) में परिभाषाएँ, उदाहरण और एल्गोरिदम शामिल हैं।लीलावती ने तुरंत पिछले कार्यों को हटा दिया और भारत में अंकगणित पर मानक पाठ्यपुस्तक बन गई।
प्रश्न:22.सिद्धांत का अर्थ क्या है? (What is the meaning of Siddhanta?):
उत्तर:सिद्धांत एक संस्कृत शब्द है जो भारतीय दर्शन के भीतर किसी विशेष स्कूल के स्थापित और स्वीकृत दृष्टिकोण को दर्शाता है; शाब्दिक रूप से “स्थापित राय या सिद्धांत,हठधर्मिता,स्वयंसिद्ध, प्राप्त या स्वीकृत सत्य; किसी भी विषय पर कोई निश्चित या स्थापित या विहित पाठ्य-पुस्तक”।
प्रश्न:23.प्राचीन भारत के प्रसिद्ध खगोलशास्त्री कौन थे? (Who was the famous astronomer of ancient India?):
उत्तर:आर्यभट्ट प्रथम
आर्यभट्ट प्रथम (476 ई.) प्राचीन भारत के महानतम गणितज्ञों और खगोलविदों में से एक है।
उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा भारतीय गणितज्ञ भास्कराचार्य द्वितीय (Indian Mathematician Bhaskaracharya 2) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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