Mathematician Satyendra Nath Bose
1.गणितज्ञ सत्येन्द्र नाथ बोस का परिचय (Introduction to Mathematician Satyendra Nath Bose),सत्येंद्र नाथ बोस के बारे में रोचक तथ्य (interesting facts about Satyendra Nath Bose)-
- गणितज्ञ सत्येन्द्र नाथ बोस (Mathematician Satyendra Nath Bose) का गणित और भौतिकी के क्षेत्र में जाना पहचाना नाम है।भौतिक शास्त्र में दो प्रकार के अणु माने जाते हैं-बोसाॅन और फर्मीआन।इनमें से बोसाॅन गणितज्ञ सत्येन्द्र नाथ बोस (Mathematician Satyendra Nath Bose) के नाम पर ही है।
- जर्मन भौतिकविद् मैक्स प्लांक ने कणों की प्रकृति के बारे में क्वांटम सिद्धांत का प्रतिपादन किया था।उसका अर्थ यह है कि ऊर्जा को छोटे-छोटे हिस्सों में बांटा जा सकता है।
- जर्मनी में अल्बर्ट आइंस्टीन ने ” सापेक्षता सिद्धांत” का प्रतिपादन किया था।
- गणितज्ञ सत्येन्द्र नाथ बोस (Mathematician Satyendra Nath Bose)इन सभी खोजों का अध्ययन कर रहे थे।बोस तथा आइंस्टीन ने मिलकर बोस-आइंस्टीन स्टैटिस्टिक्स की खोज की।
- महान् व्यक्ति दो प्रकार के होते हैं-पहले वे जो स्कूल में अध्ययन के दौरान कमजोर रहते हैं लेकिन उनकी प्रतिभा बाद में निखरती है, खिलती है जैसे अल्बर्ट आइंस्टीन, जेम्स वाट।दूसरे वे व्यक्ति होते हैं जो स्कूल में अध्ययन के दौरान ही प्रतिभाशाली होते हैं जैसे-सत्येंद्र नाथ बोस।
- सत्येन्द्र नाथ बोस प्रारंभ से ही गणित में कुशाग्र थे।एक बार सत्येंद्र नाथ बोस ने गणित के प्रश्न पत्रों में कुछ सवालों के हल को एक से ज्यादा तरीके से किया था, इसलिए गणित के शिक्षक ने उन्हें 100 में से 110 अंक दिए थे।
- गणितज्ञ सत्येन्द्र नाथ बोस (Mathematician Satyendra Nath Bose) हमेशा कक्षा में प्रथम स्थान पर रहते थे और मेघनाथ साहा जो उनके सहपाठी थे द्वितीय स्थान पर रहते थे।
- मेघनाथ साहा और प्रशांत चंद्र महालनोविस गणितज्ञ सत्येंद्र नाथ बोस के सहपाठी थे।मेघनाथ साहा तथा सत्येंद्र नाथ बोस ने बीएससी तथा एमएससी की पढ़ाई साथ-साथ की थी।
- भारत में उस समय विश्वविद्यालय और कॉलेज बहुत कम थे। इसलिए विज्ञान शिक्षा प्राप्त छात्रों का भविष्य निश्चित नहीं था।इसलिए बहुत सारे छात्र विज्ञान के बजाय दूसरे विषय को चुनते थे।
- परंतु कुछ छात्रों ने ऐसा नहीं किया और ये वही विद्यार्थी थे जिन्होंने भारत में विज्ञान की नींव डाली।गणितज्ञ सत्येन्द्र नाथ बोस (Mathematician Satyendra Nath Bose) तथा सीवी रमन इसका उदाहरण है।
- सी.वी. रमन ने विज्ञान शिक्षा प्राप्त करके नौकरी करने लगे। नौकरी के साथ-साथ में वे 10 वर्षों तक शोध कार्य करते रहे।परंतु विज्ञान के प्रति लगाव के कारण उन्होंने सरकारी नौकरी छोड़ दी और विज्ञान की साधना में लग गए।
- गणितज्ञ सत्येंद्र नाथ बोस कोलकाता विश्वविद्यालय में पढ़ाते थे तो उन्होंने सोचा कि विज्ञान में कुछ नया करना चाहिए। इसलिए वे पढ़ाने के साथ-साथ कुछ समय शोध कार्य में देते थे।शोध के लिए नए-नए विचारों की आवश्यकता होती है।इसलिए बॉस ने गिब्बस और प्लांक की पुस्तकें पढ़ना प्रारंभ किया।
- उस समय विज्ञान की सामग्री अधिकांशतया फ्रांसीसी व जर्मनी भाषा में मिलती थी। अतः व्यक्ति को इन भाषाओं का ज्ञान भी होना चाहिए।गणितज्ञ सत्येन्द्र नाथ बोस (Mathematician Satyendra Nath Bose) ने जल्दी ही इन भाषाओं को सीख लिया।
- उस समय खराब स्वास्थ्य के कारण ऑस्ट्रिया के निवासी डॉक्टर ब्रुह्ल भारत आ गए थे क्योंकि चिकित्सकों ने उन्हें गर्म जलवायु में रहने के लिए कहा था।डॉक्टर ब्रुह्ल बंगाल कॉलेज में शिक्षक बन गए और यही विवाह करके बस गए।डॉक्टर ब्रुह्ल का विषय वनस्पति विज्ञान था किंतु वे भौतिकी पढ़ाने का कार्य भी अच्छी तरह करते थे।डॉक्टर ब्रुह्ल के पास बहुत सारी अच्छी पुस्तकें थी।गणितज्ञ सत्येन्द्र नाथ बोस (Mathematician Satyendra Nath Bose) तथा मेघनाथ साहा ने डॉक्टर ब्रुह्ल के पास पढ़ने के लिए पुस्तकें प्राप्त की।
- गणितज्ञ सत्येंद्र नाथ बोस का मानना था कि विषय का अध्ययन करना है तो उसके मूल तक जाना आवश्यक है अर्थात् विषय विशेषज्ञों द्वारा किए गए कार्य का अध्ययन करना।
- गणितज्ञ सत्येन्द्र नाथ बोस (Mathematician Satyendra Nath Bose) स्वयं तो इन पुस्तकों को पढ़ने में समर्थ थे परंतु दूसरों के फायदे के लिए जिन्हें इन भाषाओं का ज्ञान नहीं था उनके लिए बोस ने ‘सापेक्षता सिद्धांत ‘के शोध पत्रों का अनुवाद करना प्रारंभ किया जिन्हें बाद में कोलकाता विश्वविद्यालय द्वारा प्रकाशित कराया गया।
- आइंस्टीन ने अपने शोध पत्रों को जर्मन भाषा में लिखा था।अंग्रेजी भाषा में अनुवाद के लिए उन्होंने ने इंग्लैंड के मैथुइन को यह अधिकार दिया था।
- जब मेथुइन को गणितज्ञ सत्येन्द्र नाथ बोस (Mathematician Satyendra Nath Bose) द्वारा शोध-पत्रों को अंग्रेजी में अनुवाद का पता चला तो उन्होंने इसे रोकने की कोशिश की।परंतु आइंस्टीन ने मध्यस्थता करते हुए कहा कि बोस की पुस्तक केवल भारत में ही वितरित होती है तो उन्हें कोई आपत्ति नहीं है।
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2.सत्येंद्र नाथ बोस के आविष्कार क्या हैं? (What are inventions of Satyendra Nath Bose?)-
- गणितज्ञ सत्येन्द्र नाथ बोस (Mathematician Satyendra Nath Bose) पढ़ने और अनुवाद करने के अलावा समस्याओं के हल ढूंढने में व्यस्त रहते थे।एक वर्ष के भीतर ही बोस और साहा ने एक शोध पत्र लिखा जो इंग्लैंड के प्रसिद्ध जर्नल ‘फिलोसॉफिकल मैगजीन’ में प्रकाशित हुआ।सन् 1919 में गणितज्ञ सत्येन्द्र नाथ बोस (Mathematician Satyendra Nath Bose) के दो शोध-पत्र’ बुलेटिन आफ दि कोलकाता मैथमेटिकल सोसायटी’ में और 1920 में ‘फिलोसॉफिकल मैगजीन’ में प्रकाशित हुए।
- इसमें कोई संदेह नहीं कि उनका यह कार्य अच्छा था परंतु ऐसा भी कार्य नहीं था जिससे आश्चर्यजनक कहा जा सके।
3.बोस-आइंस्टीन सांख्यिकी सिद्धांत (Bose-Einstein Statistical Theory),सत्येन्द्र नाथ बोस अविष्कार (Satyendra Nath Bose invention)-
- ग्रहों और उनके संबंधों को समझने के लिए न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत दिया था।न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत के अनुसार संसार की प्रत्येक वस्तु अपने आसपास की प्रत्येक वस्तु को आकर्षित करती है।जैसे सूर्य ग्रहों ,पृथ्वी चंद्रमा को। यह सिद्धांत ज्यादातर जगहों पर लागू होता है परंतु कुछ ऐसी जगह जहां यह नियम कार्य नहीं करता है।
- यदि हम जैसों के अणुओं में गति का अध्ययन करें तो यह नियम लागू नहीं होता है।गैसों में असंख्य प्रकार के अणु पाए जाते हैं जो सदैव गतिशील रहते हैं।गैसों में इन अणुओं की गतिशीलता का, गैस के दाब और ताप से एक खास संबंध पाया जाता है।गैस के इन अणुओं की गति को समझने के लिए गणित के औसत नियम का सहारा लिया जाता है।
- गणित के औसत के नियम को समझने के लिए मैक्सवेल और बोल्ट्जमैन ने गणितीय सिद्धांत की व्युत्पत्ति की उसे सांख्यिकी के नाम से जाना जाता है।आधुनिक भौतिकी विज्ञान में इसकी आवश्यकता कदम-कदम पर पाई जाती है।
- मैक्सवेल और बोल्ट्जमैन द्वारा प्रतिपादित यह नियम तब तक सही समझे जाते थे जब तक परमाणुओं के बारे में जानकारी थी।
- लेकिन जैसे ही वैज्ञानिकों को यह पता चला कि परमाणु के अंदर भी अनेक प्रकार के कण पाए जाते हैं और उनकी गतियां विचित्र होती है ,वहां उनका नियम असफल हो गया।
- गणितज्ञ सत्येन्द्र नाथ बोस (Mathematician Satyendra Nath Bose) ने नए नियमों की खोज की जो आगे चलकर ‘बोस-आइंस्टीन सांख्यिकी’ के नाम से जाना गया।
- इस नियम के आने के बाद वैज्ञानिकों ने परमाणु का गहन अध्ययन किया और पाया कि ये दो प्रकार के होते हैं।इनमें एक का नामकरण गणितज्ञ सत्येन्द्र नाथ बोस (Mathematician Satyendra Nath Bose) के नाम पर ‘बोसाॅन’ रखा गया और दूसरे का नाम प्रसिद्ध वैज्ञानिक एनरिको फर्मी के नाम पर ‘फर्मीआन’ रखा।
- आज भौतिकी में कण दो प्रकार के होते हैं एक बोसाॅन और दूसरे फर्मीआन।बोसाॅन यानि फोटाॅन,ग्लुआॅन,गेज बोसाॅन (फोटाॅन, प्रकाश की मूल इकाई) और फर्मीआन यानि क्वार्क और लैप्टाॅन एवं संयोजित कण प्रोटाॅन,न्यूट्राॅन,इलेक्ट्राॅन है।
- वर्तमान में बोस-आइंस्टीन आधार है स्टैंडर्ड मॉडल ऑफ पार्टिकल फिजिक्स।वर्तमान में जो भी अणु भौतिकी से जुड़े हैं सभी की सभी शोधो का आधार कहीं ना कहीं बोस-आइंस्टीन सांख्यिकी है।
- निस्संदेह आइंस्टीन ही बोस के जीवन की प्रेरणा थे। ऐसा कहा जाता है कि आइंस्टीन की मृत्यु का समाचार सुनकर गणितज्ञ सत्येन्द्र नाथ बोस (Mathematician Satyendra Nath Bose) रो पड़े थे। आइंस्टीन वाकई में विज्ञान के क्षेत्र में महानायक थे और गणितज्ञ सत्येन्द्र नाथ बोस (Mathematician Satyendra Nath Bose) उनमें श्रद्धा रखते थे।
4.गणितज्ञ सत्येन्द्र नाथ बोस का संक्षिप्त परिचय (A brief introduction by Mathematician Satyendra Nath Bose),सत्येन्द्र नाथ बोस की मृत्यु (Satyendra Nath Bose death)सत्येन्द्र नाथ बोस पुस्तकें (Satyendra Nath Bose books)-
- 3 April 1952 – 2 April 1960
जन्म- 1 जनवरी, 1894 कलकत्ता, बंगाल प्रेसीडेंसी, ब्रिटिश भारत
Died-4 फरवरी 1974 (80 वर्ष की आयु) कलकत्ता, भारत
Nationality- भारतीय
मातृ संस्था-कलकत्ता विश्वविद्यालय
पहचान- बोस-आइंस्टीन संघनित
बोस-आइंस्टीन आँकड़े
बोस-आइंस्टीन वितरण
बोस-आइंस्टीन सहसंबंध
बोस गैस
बोसॉन - आदर्श बोस समीकरण की स्थिति
फोटॉन गैस
पति / पत्नी -उस्वती बोस
पुरस्कार- पद्म विभूषण
रॉयल सोसाइटी के साथी - वैज्ञानिक कैरियर
fields- भौतिकी
संस्थान- कलकत्ता विश्वविद्यालय
ढाका विश्वविद्यालय
विश्वभारती - अकादमिक सलाहकार- जगदीश चंद्र बोस
प्रफुल्ल चंद्र रे
डॉक्टरल की छात्राएं पूर्णिमा सिन्हा
पार्था घोष
शिवा ब्राटा भट्टाचर्जी - अन्य उल्लेखनीय छात्र- मणि लाल भौमिक
लीलाबती भट्टाचार्जी
असीमा चटर्जी
रतन लाल ब्रह्मचारी
संसद सदस्य, राज्य सभा
कार्यालय में हूँ - 3 अप्रैल 1952 – 2 अप्रैल 1960
- सत्येंद्र नाथ बोस, FRS (1 जनवरी 1894 – 4 फरवरी 1974) एक भारतीय गणितज्ञ और भौतिक विज्ञानी थे जो सैद्धांतिक भौतिकी में विशेषज्ञता रखते थे।वह 1920 के दशक की शुरुआत में क्वांटम यांत्रिकी पर अपने काम के लिए जाना जाते है, बोस-आइंस्टीन के आंकड़ों की नींव विकसित करने में अल्बर्ट आइंस्टीन के साथ सहयोग और बोस-आइंस्टीन के सिद्धांत को संघनित करता है।रॉयल सोसाइटी के एक साथी, उन्हें भारत सरकार द्वारा 1954 में भारत के दूसरे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार, पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था।
कणों का वह वर्ग जो बोस-आइंस्टीन के आँकड़ों, बोसॉन का पालन करते हैं, उनका नाम बोस ने पॉल डीराक के नाम पर रखा था। - एक पॉलिमैथ, उनके पास भौतिकी, गणित, रसायन विज्ञान, जीव विज्ञान, खनिज विज्ञान, दर्शन, कला, साहित्य और संगीत सहित विभिन्न क्षेत्रों में उनकी रुचि थी।उन्होंने भारत में संप्रभु भारत में कई अनुसंधान और विकास समितियों में काम किया।
5.सत्येन्द्र नाथ बोस की लघु जीवनी (short biography of Satyendra Nath Bose),सत्येन्द्र नाथ बोस की शिक्षा (Satyendra Nath Bose education)-
- बोस का जन्म कलकत्ता (अब कोलकाता) में हुआ था,जो एक बंगाली कायस्थ [10] परिवार में सात बच्चों में सबसे बड़े थे।वह इकलौता बेटा था,उसके बाद छह बहनें थीं।उनका पैतृक घर बंगाल प्रेसीडेंसी में,नादिया के तत्कालीन जिले,बारा जगुलिया गाँव में था।उनकी स्कूली शिक्षा पांच साल की उम्र में, उनके घर के पास से शुरू हुई।
- जब उनका परिवार गोआबागान चला गया, तो उन्हें न्यू इंडियन स्कूल में भर्ती कराया गया।स्कूल के अंतिम वर्ष में, उन्हें हिंदू स्कूल में भर्ती कराया गया।उन्होंने 1909 में अपनी प्रवेश परीक्षा (मैट्रिक) पास की और योग्यता के क्रम में पाँचवे स्थान पर रहे।इसके बाद वे कलकत्ता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में इंटरमीडिएट साइंस कोर्स में शामिल हो गए,जहाँ उनके शिक्षकों में जगदीश चंद्र बोस, शारदा प्रसन्न दास और प्रफुल्ल चंद्र रे शामिल थे।
- बोस ने अपने बीएससी के लिए अनुप्रयुक्त गणित (applied mathematics) को चुना और 1913 में प्रथम स्थान पर रहते हुए परीक्षा पास की। उन्होंने इसके बाद सर आशुतोष मुखर्जी के नवगठित साइंस कॉलेज में दाखिला लिया,जहाँ वे 1915 में फिर से एमएससी अनुप्रयुक्त गणित (applied mathematics) की परीक्षा में प्रथम स्थान पर रहे। एमएससी की परीक्षा में उनके अंक बने।कलकत्ता विश्वविद्यालय के इतिहास में एक नया रिकॉर्ड, जिसे अभी पार किया जाना बाकी है।
- अपनी एमएससी पूरा करने के बाद, बोस 1916 में एक शोध विद्वान के रूप में कलकत्ता विश्वविद्यालय के साइंस कॉलेज में शामिल हो गए और सापेक्षता के सिद्धांत में अपनी पढ़ाई शुरू की।यह वैज्ञानिक प्रगति के इतिहास में एक रोमांचक युग था।क्वांटम सिद्धांत अभी क्षितिज पर दिखाई दिया था और महत्वपूर्ण परिणाम सामने आने लगे थे।
- उनके पिता, सुरेंद्रनाथ बोस, ईस्ट इंडियन रेलवे कंपनी के इंजीनियरिंग विभाग में काम करते थे।1914 में, 20 साल की उम्र में, सत्येंद्र नाथ बोस ने कलकत्ता चिकित्सक की 11 वर्षीय बेटी उषाबाती घोष से शादी की।उनके नौ बच्चे थे, जिनमें से दो बचपन में ही मर गए थे।जब 1974 में उनकी मृत्यु हो गई, तो वे अपने पीछे अपनी पत्नी, दो पुत्र और पाँच पुत्रियाँ छोड़ गए।
- बहुभाषाविद के रूप में, बोस को कई भाषाओं जैसे बंगाली, अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन और संस्कृत के साथ-साथ लॉर्ड टेनिसन, रवींद्रनाथ टैगोर और कालीदासा की कविता में भी पारंगत किया गया था।वह इसराज, एक वायलिन के समान एक भारतीय संगीत वाद्ययंत्र बजा सकते थे।वह रात के स्कूल चलाने में सक्रिय रूप से शामिल थे जिन्हें वर्किंग मेन्स इंस्टीट्यूट के रूप में जाना जाता था।
6.गणित में सत्येंद्र नाथ बोस का क्या योगदान है? (What is the contribution of Satyendra Nath Bose in mathematics?),अनुसंधान कैरियर (Research career),गणित में सत्येंद्र नाथ बोस का योगदान (Satyendra Nath Bose contribution to mathematics)-
- बोस ने कलकत्ता में हिंदू स्कूल में भाग लिया,और बाद में कलकत्ता में प्रेसीडेंसी कॉलेज में भी भाग लिया, प्रत्येक संस्थान में सर्वोच्च अंक अर्जित किए,जबकि साथी छात्र और भविष्य के खगोल वैज्ञानिक मेघनाद साहा दूसरे स्थान पर आए।वे जगदीश चंद्र बोस, प्रफुल्ल चंद्र रे और नमन शर्मा जैसे शिक्षकों के संपर्क में आए जिन्होंने जीवन में उच्च लक्ष्य रखने की प्रेरणा प्रदान की।1916 से 1921 तक, वे कलकत्ता विश्वविद्यालय के अंतर्गत राजाबाजार साइंस कॉलेज के भौतिकी विभाग में व्याख्याता थे।साहा के साथ, बोस ने 1919 में आइंस्टीन की विशेष और सामान्य सापेक्षता पर मूल पत्रों के जर्मन और फ्रेंच अनुवादों के आधार पर अंग्रेजी में पहली पुस्तक तैयार की।1921 में, उन्होंने हाल ही में स्थापित ढाका विश्वविद्यालय के भौतिकी विभाग के रीडर के रूप में ज्वाइन किया (वर्तमान बांग्लादेश)।
- बोस ने एमएससी और बीएससी ऑनर्स के लिए उन्नत पाठ्यक्रम (advanced courses) सिखाने के लिए प्रयोगशालाओं सहित पूरे नए विभागों की स्थापना की और थर्मोडायनामिक्स के साथ-साथ जेम्स क्लर्क मैक्सवेल के विद्युत चुंबकत्व के सिद्धांत को भी पढ़ाया।
- सत्येंद्र नाथ बोस ने साहा के साथ 1918 से सैद्धांतिक भौतिकी और शुद्ध गणित में कई पेपर प्रस्तुत किए।1924 में, ढाका विश्वविद्यालय के भौतिकी विभाग में रीडर (प्रोफेसर के बिना एक अध्यक्ष) के रूप में काम करते हुए, बोस ने एक समान कणों के साथ राज्यों की गिनती के उपन्यास तरीके का उपयोग करके शास्त्रीय भौतिकी के संदर्भ में बिना किसी नियम के प्लैंक क्वांटम विकिरण कानून को प्राप्त किया।यह पत्र क्वांटम आँकड़ों का बहुत महत्वपूर्ण क्षेत्र बनाने में मदरसा था।
- हालांकि प्रकाशन के लिए एक बार में स्वीकार नहीं किया गया, उन्होंने सीधे जर्मनी में अल्बर्ट आइंस्टीन को लेख भेजा।आइंस्टीन ने कागज के महत्व को पहचानते हुए, इसे खुद जर्मन में अनुवादित किया और बोस की ओर से प्रतिष्ठित ज़िट्क्रिफ्ट फ़िर फिजिक को प्रस्तुत किया।इस मान्यता के परिणामस्वरूप, बोस यूरोपीय एक्स-रे और क्रिस्टलोग्राफी प्रयोगशालाओं में दो साल तक काम करने में सक्षम थे, जिसके दौरान उन्होंने लुई डी ब्रोगली, मैरी क्यूरी और आइंस्टीन के साथ काम किया।
7.बोस-आइंस्टीन आँकड़े (Bose–Einstein statistics)-
- ढाका विश्वविद्यालय में विकिरण के सिद्धांत और पराबैंगनी तबाही पर एक व्याख्यान प्रस्तुत करते हुए, बोस ने अपने छात्रों को यह दिखाने का इरादा किया कि समकालीन सिद्धांत अपर्याप्त था, क्योंकि यह प्रायोगिक परिणामों के अनुसार परिणामों की भविष्यवाणी करता था।
इस विसंगति का वर्णन करने की प्रक्रिया में, बोस ने पहली बार यह स्थिति ली कि मैक्सवेल-बोल्ट्जमैन वितरण सूक्ष्म कणों के लिए सही नहीं होगा, जहां हाइजेनबर्ग के अनिश्चितता सिद्धांत के कारण उतार-चढ़ाव महत्वपूर्ण होगा।इस प्रकार उन्होंने चरण अंतरिक्ष में कणों को खोजने की संभावना पर बल दिया, प्रत्येक अवस्था में वॉल्यूम { h }^{ 3 }, और कणों की विशिष्ट स्थिति और गति को त्याग दिया।
बोस ने इस व्याख्यान को “प्लैंकज लॉ एंड द हाइपोथीसिस ऑफ लाइट क्वांटा” नामक एक लघु लेख में रूपांतरित किया और निम्नलिखित पत्र के साथ अल्बर्ट आइंस्टीन को भेजा: - आदरणीय महोदय, मैंने आपके प्रतिवाद और राय के लिए आपको एक साथ लेख भेजने का उपक्रम किया है।मैं यह जानने के लिए उत्सुक हूं कि आप इसके बारे में क्या सोचते हैं।आप देखेंगे कि मैंने शास्त्रीय इलेक्ट्रोइडैमिक्स से स्वतंत्र प्लैंक के नियम में गुणांक 8\pi \frac { { v }^{ 2 } }{ { c }^{ 3 } } को कम करने की कोशिश की है, केवल यह मानते हुए कि चरण-स्थान में अंतिम प्राथमिक क्षेत्र में सामग्री { h }^{ 3 } है।मैं कागज का अनुवाद करने के लिए पर्याप्त जर्मन नहीं जानता।यदि आपको लगता है कि प्रकाशन के लायक पेपर मुझे आभारी होगा यदि आप भौतिकी के लिए पत्रिका (magazine for physics) में इसके प्रकाशन की व्यवस्था करते हैं।यद्यपि आप के लिए एक पूर्ण अजनबी, मुझे ऐसा अनुरोध करने में कोई हिचकिचाहट महसूस नहीं होती है।क्योंकि हम आपके सभी शिष्य हैं, जो केवल आपकी शिक्षाओं के माध्यम से आपके लेखन के माध्यम से पेश करते हैं।मुझे नहीं पता कि क्या आपको अभी भी याद है कि कलकत्ता के किसी व्यक्ति ने आपके कागजात को अंग्रेजी में सापेक्षता पर अनुवाद करने की अनुमति मांगी थी।आप अनुरोध करने के लिए पुस्तक तब से प्रकाशित हो रही है।मैं वह था जिसने सामान्यीकृत सापेक्षता पर आपके पत्र का अनुवाद किया था।
- आइंस्टीन ने उनके साथ सहमति व्यक्त की, बोस के पेपर का अनुवाद “प्लैंक का नियम और लाइट क्वांटा की परिकल्पना” जर्मन में किया, और इसे बोस के नाम पर भौतिकी के लिए पत्रिका (magazine for physics) में 1924 में प्रकाशित किया था।
- दो सिक्कों को फ़्लिप करने के संभावित परिणाम
- तीन परिणाम हैं। दो सिर के आने की संभावना क्या है?
परिणाम की संभावनाएँ
Coin 1
Head Tail
Coin Head HH HT
2 Tail TH TT - चूँकि सिक्के अलग हैं, ऐसे दो परिणाम हैं जो एक सिर और एक पूंछ का रखते हैं। दो सिर की संभावना एक चौथाई है।
- बोस की व्याख्या के सटीक परिणाम उत्पन्न होने का कारण यह था कि चूंकि फोटोन एक दूसरे से अविभाज्य हैं, कोई भी दो अलग-अलग पहचान वाले फोटॉन होने के नाते बराबर ऊर्जा वाले दो फोटोन का इलाज नहीं कर सकता है। सादृश्य द्वारा, यदि एक वैकल्पिक ब्रह्मांड के सिक्कों में फोटॉन और अन्य बोसॉन की तरह व्यवहार किया जाता था, तो दो सिर के उत्पादन की संभावना वास्तव में एक तिहाई (पूंछ-सिर = सिर-पूंछ) होगी।
- बोस की व्याख्या को अब बोस-आइंस्टीन सांख्यिकी कहा जाता है।बोस द्वारा प्राप्त इस परिणाम ने क्वांटम आँकड़ों की नींव रखी, और विशेष रूप से कणों की अविभाज्यता की क्रांतिकारी नई दार्शनिक अवधारणा, जैसा कि आइंस्टीन और डीराक द्वारा स्वीकार किया गया है।जब आइंस्टीन बोस से आमने-सामने मिले, तो उन्होंने उनसे पूछा कि क्या उन्हें पता है कि उन्होंने एक नए प्रकार के आँकड़ों का आविष्कार किया था, और उन्होंने बहुत स्पष्ट रूप से कहा कि नहीं, वह बोल्ट्ज़मन के आँकड़ों से परिचित नहीं थे और उन्हें एहसास नहीं था कि वह गणना अलग तरीके से कर रहा था।वह किसी के साथ भी उतना ही स्पष्टवादी था जिसने पूछा था।
8.बोस-आइंस्टीन संघनित (Bose–Einstein condensate)-
- रुबिडियम परमाणुओं के एक गैस का वेग-वितरण डेटा, पदार्थ के एक नए चरण की खोज की पुष्टि करता है, बोस-आइंस्टीन संघनित।बायां: बोस-आइंस्टीन की उपस्थिति से ठीक पहले संघनित।केंद्र: संक्षेपण की उपस्थिति के ठीक बाद।सही: आगे वाष्पीकरण के बाद, लगभग शुद्ध संघनित का एक नमूना छोड़कर।
- आइंस्टीन ने भी पहले यह महसूस नहीं किया कि बोस के जाने के बाद कट्टरपंथी किस तरह से आगे बढ़े और बोस के बाद उनके पहले पेपर में उन्हें बोस की तरह मार्गदर्शन दिया गया, इस तथ्य से कि नई पद्धति ने सही जवाब दिया। लेकिन आइंस्टीन द्वारा बोस की विधि का उपयोग करने के दूसरे पेपर के बाद, जिसमें आइंस्टीन ने बोस-आइंस्टीन के संघनित होने की भविष्यवाणी की (चित्र छोड़ दिया), उन्होंने महसूस करना शुरू कर दिया कि यह कितना कट्टरपंथी था, और उन्होंने इसकी तुलना लहर या कण द्वंद्व से की, यह कहते हुए कि कुछ कण व्यवहार नहीं करते थे कणों की तरह।बोस ने अपने लेख को ब्रिटिश जर्नल फिलोसोफिकल मैगज़ीन को पहले ही प्रस्तुत कर दिया था, जिसने इसे आइंस्टीन को भेजने से पहले ही उसे अस्वीकार कर दिया था।यह ज्ञात नहीं है कि इसे अस्वीकार क्यों किया गया था।
आइंस्टीन ने इस विचार को अपनाया और इसे परमाणुओं तक बढ़ाया।इससे घटना के अस्तित्व की भविष्यवाणी हुई, जिसे बोस-आइंस्टीन संघनित के रूप में जाना जाता है, बोसॉन का एक घने संग्रह (जो कि पूर्णांक स्पिन वाले कण हैं, जिसका नाम बोस के नाम पर रखा गया है), जिसे 1995 में प्रयोग के दौरान अस्तित्व में प्रदर्शित किया गया था।
9.गणितज्ञ सत्येंद्र नाथ बोस का ढाका में कार्य (Work of Mathematician Satyendra Nath Bose in Dhaka)-
- 1930 के दशक में ढाका विश्वविद्यालय में बोस
यूरोप में रहने के बाद, बोस 1926 में ढाका लौट आए। उनके पास डॉक्टरेट (PhD) नहीं था, और इसलिए, प्रचलित नियमों के तहत, वह प्रोफेसर के पद के लिए योग्य नहीं होंगे, जिसके लिए उन्होंने आवेदन किया था, लेकिन आइंस्टीन ने उनकी सिफारिश की थी।फिर उन्हें ढाका विश्वविद्यालय में भौतिकी विभाग का प्रमुख बनाया गया। उन्होंने ढाका विश्वविद्यालय में मार्गदर्शन और अध्यापन जारी रखा। - बोस ने एक्स-रे क्रिस्टलोग्राफी प्रयोगशाला के लिए खुद ही उपकरण तैयार किए। उन्होंने एक्स-रे स्पेक्ट्रोस्कोपी, एक्स-रे विवर्तन, पदार्थ के चुंबकीय गुणों,ऑप्टिकल स्पेक्ट्रोस्कोपी, वायरलेस, और एकीकृत क्षेत्र सिद्धांतों में विभाग को अनुसंधान का केंद्र बनाने के लिए प्रयोगशालाओं और पुस्तकालयों की स्थापना की।उन्होंने मेघनाद साहा के साथ वास्तविक गैसों के लिए राज्य का एक समीकरण भी प्रकाशित किया।वह 1945 तक ढाका विश्वविद्यालय में विज्ञान संकाय के डीन भी थे।
10.गणितज्ञ सत्येंद्र नाथ बोस का कलकत्ता में कार्य (Work of Mathematician Satyendra Nath Bose in Calcutta)-
- जब भारत का विभाजन आसन्न (1947) हो गया, तो वे कलकत्ता लौट आए और 1956 तक वहां पढ़ाया। उन्होंने प्रत्येक छात्र को स्थानीय सामग्रियों और स्थानीय तकनीशियनों का उपयोग करके अपने स्वयं के उपकरण डिजाइन करने पर जोर दिया।उनकी सेवानिवृत्ति पर उन्हें प्रोफेसर एमेरिटस बनाया गया था।इसके बाद वे शांतिनिकेतन में विश्व-भारती विश्वविद्यालय के कुलपति बने।वह परमाणु भौतिकी में अनुसंधान जारी रखने और कार्बनिक रसायन विज्ञान में पहले के कार्यों को पूरा करने के लिए कलकत्ता विश्वविद्यालय लौट आए।बाद के वर्षों में, उन्होंने बकरेश्वर के गर्म क्षेत्रों में हीलियम के निष्कर्षण जैसे अनुप्रयुक्त अनुसंधान में काम किया।
11.गणितज्ञ सत्येंद्र नाथ बोस का अन्य क्षेत्र में कार्य (Work of Mathematician Satyendra Nath Bose in Other fields)-
- भौतिकी के अलावा, उन्होंने जैव प्रौद्योगिकी और साहित्य (बंगाली और अंग्रेजी) में कुछ शोध किया।उन्होंने रसायन विज्ञान, भूविज्ञान, प्राणीशास्त्र, नृविज्ञान, इंजीनियरिंग और अन्य विज्ञानों में गहन अध्ययन किया।बंगाली होने के नाते, उन्होंने बंगाली को एक शिक्षण भाषा के रूप में प्रचारित करने, उसमें वैज्ञानिक पत्रों का अनुवाद करने और क्षेत्र के विकास को बढ़ावा देने के लिए बहुत समय समर्पित किया।
12.गणितज्ञ सत्येंद्र नाथ बोस का सम्मान (Honours of of Mathematician Satyendra Nath Bose),सत्येन्द्र नाथ बोस को पुरस्कार (Satyendra Nath Bose awards)-
- 1937 में, रवींद्रनाथ टैगोर ने विज्ञान पर अपनी एकमात्र पुस्तक, विश्व-परिचय, सत्येंद्र नाथ बोस को समर्पित की। बोस को भारत सरकार द्वारा 1954 में पद्म विभूषण की उपाधि से सम्मानित किया गया था।1959 में, उन्हें राष्ट्रीय प्रोफेसर के रूप में नियुक्त किया गया था, जो एक विद्वान के लिए देश में सर्वोच्च सम्मान,15 वर्षों के लिए एक पद था।1986 में, एस.एन. बोस नेशनल सेंटर फॉर बेसिक साइंसेस की स्थापना संसद के एक अधिनियम, भारत सरकार, साल्ट लेक, कलकत्ता में की गई थी।
- बोस उस समय के नवगठित वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद के सलाहकार बन गए।वह इंडियन फिजिकल सोसाइटी और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस के अध्यक्ष थे।उन्हें भारतीय विज्ञान कांग्रेस का महासचिव चुना गया था।वह भारतीय सांख्यिकी संस्थान के उपाध्यक्ष और तत्कालीन अध्यक्ष थे।1958 में, वे रॉयल सोसाइटी के फेलो बन गए।उन्हें राज्यसभा के सदस्य के रूप में नामित किया गया था।
पार्थ घोष ने कहा है कि - बोस का कार्य प्लैंक, बोह्र और आइंस्टीन के ‘पुराने क्वांटम सिद्धांत’ और श्रोडिंगर, हाइजेनबर्ग, बोर्न, डिराक और अन्य के नए क्वांटम यांत्रिकी के बीच संक्रमण पर खड़ा था।
13.गणितज्ञ सत्येंद्र नाथ बोस का नोबेल पुरस्कार के लिए नामांकन (Mathematician Satyendra Nath Bose nomination for Nobel Prize)-
- एस.एन. बोस को के. बनर्जी (1956), डी.एस. कोठारी (1959), एस.एन. बागची (1962) और ए.के. बोस-आइंस्टीन सांख्यिकी और एकीकृत क्षेत्र सिद्धांत में उनके योगदान के लिए भौतिकी में नोबेल पुरस्कार के लिए दत्ता (1962)।उदाहरण के लिए, 12 जनवरी, 1956 के पत्र में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के भौतिकी विभाग के प्रमुख केदारेश्वर बनर्जी ने नोबेल समिति को निम्नानुसार लिखा: “(1)।उन्होंने (बोस) ने अपने नाम के बाद बोस के आँकड़ों के रूप में ज्ञात आँकड़ों को विकसित करके भौतिकी में बहुत उत्कृष्ट योगदान दिया।हाल के वर्षों में इस आंकड़े का मूलभूत कणों के वर्गीकरण में गहरा महत्व पाया जाता है और इसने परमाणु भौतिकी के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।1953 से अब तक की अवधि के दौरान उन्होंने आइंस्टीन के यूनिटी फील्ड थ्योरी के विषय पर दूरगामी परिणामों के कई बेहद दिलचस्प योगदान दिए हैं। ”बोस के कार्य का मूल्यांकन नोबेल समिति के एक विशेषज्ञ ओस्कर क्लेन ने किया था, जिन्होंने अपने काम को नोबेल पुरस्कार के योग्य नहीं देखा था।
14.विरासत (Legacy)-
- भारत की 1994 की मोहर पर बोस
बोसोन, कण भौतिकी में प्राथमिक उप-परमाणु कणों की एक श्रेणी का नाम सत्येंद्र नाथ बोस के नाम पर विज्ञान में उनके योगदान को स्मरण करने के लिए रखा गया था।
हालांकि एस एन बोस की बोसोन की अवधारणाओं, बोस-आइंस्टीन के आँकड़ों और बोस-आइंस्टीन के घालमेल से संबंधित अनुसंधान के लिए सात नोबेल पुरस्कार दिए गए, लेकिन बोस को स्वयं नोबेल पुरस्कार से सम्मानित नहीं किया गया। - अपनी पुस्तक द साइंटिफिक एज में, भौतिक विज्ञानी जयंत नार्लीकर ने देखा:
एसएन बोस के कण आँकड़ों पर काम (1922), जिसने फोटॉनों के व्यवहार (एक बाड़े में प्रकाश के कण) को स्पष्ट किया और क्वांटम सिद्धांत के नियमों का पालन करने वाले माइक्रोसिस्टम्स के आँकड़ों पर नए विचारों के द्वार खोले, उनमें से एक था 20 वीं सदी के भारतीय विज्ञान की शीर्ष दस उपलब्धियाँ और उन्हें नोबेल पुरस्कार वर्ग में माना जा सकता है। - जब बोस को स्वयं एक बार यह सवाल पूछा गया था, तो उन्होंने बस जवाब दिया, “मुझे वह सभी मान्यता मिली है जिसके मैं हकदार हूं” – शायद इसलिए कि विज्ञान के दायरे में वह जो था, जो महत्वपूर्ण है वह नोबेल नहीं है, लेकिन क्या किसी का नाम जीवित रहेगा आने वाले दशकों में वैज्ञानिक चर्चाओं में।
15.सत्येंद्र नाथ बोस क्वांटम सिद्धांत का अनुवाद किसने किया? (Who translated Satyendra Nath Bose quantum theory?),जर्मन में क्वांटम भौतिकी का अनुवाद किसने किया? (Who translated quantum physics into German?)-
- आइंस्टीन ने उनके साथ सहमति व्यक्त की, बोस के पेपर का अनुवाद “प्लैंक के नियम और लाइट क्वांटा की परिकल्पना” जर्मन में किया, और इसे बोस के नाम के तहत ज़िट्स्क्रफ्ट फ़्यूर फिजिक में 1924 में प्रकाशित किया था।
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