Menu

7 Top Techniques to Avoid Cyber Fraud

Contents hide

1.साइबर ठगी से बचने की 7 टॉप तकनीक (7 Top Techniques to Avoid Cyber Fraud),साइबर ठगी से कैसे बचें? (How to Avoid Cyber Fraud?):

  • साइबर ठगी से बचने की 7 टॉप तकनीक (7 Top Techniques to Avoid Cyber Fraud) से आप बचाव के तरीके जान सकेंगे।हालांकि ऑनलाइन धोखाधड़ी से पूर्णतया सुरक्षित रह पाना तो मुश्किल है परंतु कुछ सुरक्षा उपाय अपनाये जा सकते हैं जिनके आधार पर आप धोखाधड़ी के शिकार होने से बच सकते हैं।
  • आपको यह जानकारी रोचक व ज्ञानवर्धक लगे तो अपने मित्रों के साथ इस गणित के आर्टिकल को शेयर करें।यदि आप इस वेबसाइट पर पहली बार आए हैं तो वेबसाइट को फॉलो करें और ईमेल सब्सक्रिप्शन को भी फॉलो करें।जिससे नए आर्टिकल का नोटिफिकेशन आपको मिल सके।यदि आर्टिकल पसन्द आए तो अपने मित्रों के साथ शेयर और लाईक करें जिससे वे भी लाभ उठाए।आपकी कोई समस्या हो या कोई सुझाव देना चाहते हैं तो कमेंट करके बताएं।इस आर्टिकल को पूरा पढ़ें।

Also Read This Article:What Are Reasons for Crime by Women?

2.डॉक्टर और प्रोफेसर से करोड़ों की ठगी (Doctors and professors cheated of crores?):

  • दृश्य एक:(14 अगस्त,2024) साइबर ठगों ने उत्तर प्रदेश के पीजीआई,लखनऊ अस्पताल की डॉक्टर रुचिका टंडन को डिजिटल अरेस्ट कर करोड़ रुपए ठग लिए।यह डिजिटल अरेस्ट फ्रॉड का अब तक का सबसे बड़ा मामला बताया जा रहा है।ठगों ने डॉक्टर टंडन को 7 दिन तक झांसे में रखकर धीरे-धीरे रकम हड़पी।
  • डॉक्टर ने बताया कि कुछ दिन पहले फोन आया कि उनके नंबर पर लोगों को परेशान करने वाले मैसेज के केस दर्ज हैं।फिर 6-7 दिन तक ऑनलाइन तरीके से कोर्ट में फर्जी केस चलाया।ठगों ने कई बैंक खातों के नंबर दिए और कहा कि इनमें पैसे भेजिए।चिकित्सक ने रकम भेज दी।
  • दृश्य दो:ठगों ने आईआईटी की सहायक प्रोफेसर जोधपुर की सहायक प्रोफेसर अमृतापुरी को मुंबई एयरपोर्ट पर पार्सल में ड्रग्स की धमकी देकर डिजिटल अरेस्ट कर लिया।ठगों ने 10 दिन तक मोबाइल-लैपटॉप के वीडियो कैमरा के सामने डिजिटल अरेस्ट रखा और फिर 23 लाख से अधिक रुपए ट्रांसफर करवा लिए।अमृतापुरी ने मोबाइल नंबर के आधार पर साइबर ठग गैंग के खिलाफ धोखाधड़ी व डरा-धमकाकर अवैध वसूली का मामला दर्ज कराया।आरोप है कि गत एक अगस्त,2024 को उनके मोबाइल पर कॉल आए थे।ठगों ने प्रोफेसर के नाम के पार्सल में एमडीएम होने के आधार पर धमकी दी और अपने खातों में पैसे डलवा लिए।

3.एकाधिकार का मुगालता (Monopoly Mugalata):

  • पुलिस के लिए ये अदृश्य अपराधी अब नया सिरदर्द हैं।यह सिर्फ उत्तर प्रदेश व राजस्थान की पुलिस के लिए ही नहीं है,क्योंकि पूरे भारत में इस तरह के अपराध हो रहे हैं।बल्कि अगर यह कहा जाए की पूरी दुनिया में कंप्यूटर,मोबाइल और इंटरनेट अपराध बड़ी तेजी से बढ़ रहे हैं तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।कंप्यूटर नेटवर्क के जरिए अपराध करने या ‘हैकिंग’ की घटनाओं ने कंप्यूटर क्षेत्र में बादशाहत रखने वाली बिल गेट्स की ‘माइक्रोसॉफ्ट’ तक को परेशानी में डाल दिया तो आम आदमी कहां लगता हैं।जब कंप्यूटर सॉफ्टवेयर के क्षेत्र में एकाधिकार का दम भरने वाली कंपनी की खुद की सुरक्षा में सेंध लगाया जा सकता है अर्थात् उसकी खुद की सुरक्षा व्यवस्था सतही है तो आम लोगों को (कंप्यूटर उपभोक्ता) क्या सुरक्षा प्रदान की जा सकती है।
  • वास्तव में हैकर्स और साइबर फ्रॉड करने वाले एक ऐसा ‘कोड’ विकसित कर लेते हैं जो पूरी दुनिया में करोड़ों ईमेल बैंक खातों को तहस-नहस कर सकता है।यह खतरा केवल उन कंप्यूटरों का इस्तेमाल करने वाले लोगों के सामने होगा जो साधारणतौर पर महज साइबर नेटवर्किंग से जुड़े हैं अपितु यह कोड कंप्यूटर ‘पासवर्ड’ सुरक्षा व्यवस्था से लैस है तथा मोबाइल कंज्यूमर को अपनी ठगी का शिकार बनाते जा रहे हैं।
  • ‘साइबर स्पेस’ में जिस तरह चोरियां और ठगी बढ़ती जा रही हैं,उनको देखते हुए उपर्युक्त अपराध एक बहुत बड़ी और विस्फोटक समस्या का आगाज भर है।आज की तारीख में अमेरिका और यूरोप में हर साल लाखों की संख्या में साइबर क्राइम हो रहे हैं।21वीं सदी में सबसे तेज रफ्तार ढंग से कंप्यूटर अपराध,साइबर ठगी,ऑनलाइन फ्रॉड ही बढ़ रहे हैं।
  • आज के युग में पुलिस और खुफिया एजेंसियों के एजेंटों को तेज दिमाग कंप्यूटर विशेषज्ञ बनने की आवश्यकता है,क्योंकि ज्यादातर अपराध अपनी प्रकृति में हाईटेक हो रहे हैं।साइबर स्पेस अपराध का सबसे बड़ा गढ़ बन गया है।यहां तक की हत्या,डकैती,अपहरण,बलात्कार आदि के लिए भी इस तकनीक क्रांति का जबरदस्त इस्तेमाल हो रहा है।
  • यह तथ्य शायद तमाम लोगों को चौंकाये मगर हकीकत यही है कि भारत में भी हर साल हजारों की संख्या में इस तरह के अपराध हो रहे हैं जिनके आने वाले वर्षों में बहुत ज्यादा बढ़ जाने की उम्मीद है।वर्तमान में भारत में आतंकवाद के क्षेत्र में भी कंप्यूटर अपराधियों के तेज रफ्तार में सक्रिय हो रहे हैं।

4.सुपर हाईवे की देन (Gift of Super Highway):

  • जब से कंप्यूटर इंटरनेट से संबद्ध हुए हैं तब से उन्हें अनेक तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।सूचना माध्यमों के तीव्रतम विकास से तैयार ‘इनफॉरमेशन सुपर हाईवे’ वास्तव में तमाम तरह के कंप्यूटर अपराधों का स्रोत है।इंटरनेट के चलते आज किसी भी व्यक्ति के बारे में गोपनीय सूचनाएँ एकत्र करना,बैंकों के जटिल रिकॉर्डों में धोखाधड़ी करना,लोगों को ठगी का शिकार बनाना तथा संवेदनशील सुरक्षा व्यवस्था में गड़बड़ कर देना बहुत आसान हो गया है।अब तो कंप्यूटर हत्या,डकैती,अपहरण जैसे क्रूर अपराध में भी बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने लगे हैं।
  • इस मामले में जो अस्पताल या इंस्टिट्यूट जितना एडवांस है उसे उतना ही ज्यादा खतरा है।कंप्यूटर ने मेडिकल के क्षेत्र में तमाम क्रांतिकारी फायदे पहुंचायें हैं।लेकिन अब तेजी से बढ़ते कंप्यूटर अपराधों ने उतनी ही रफ्तार से इस क्षेत्र में खतरे बढ़ा दिए हैं।अब तो फ्रॉड का जरिया कंप्यूटर के साथ-साथ मोबाइल फोन भी बन गया है।अब हर उच्च तकनीक से लैस अस्पताल को एक अलग से नेटवर्किंग विभाग खोलना पड़ रहा है जहां कई सूचना इंजीनियरों को इसलिए रखने की जरूरत पड़ गई है कि कोई कंप्यूटर अपराधी रोगियों के साथ किस तरह का अपराध न करें।
  • कंप्यूटर और मोबाइल की दुनिया में बढ़ते क्रूर अपराधों के कारण ही आज दुनिया भर के इंटरनेट उपभोक्ता सूचनाओं के अविरल प्रवाह से खुश नहीं है।दरअसल,इंटरनेट का ग्राहक बनते ही किसी कंप्यूटर मालिक का अपने कंप्यूटर पर से एकाधिकार खत्म हो जाता है।इंटरनेट के कारण दूरी ही नहीं गोपनीयता भी खत्म हो जाती है।इंटरनेट की बदौलत न्यूयार्क में बैठा कोई खुराफाती हैकर न केवल इलाहाबाद के किसी व्यापारी के कंप्यूटर में मौजूद आंकड़ों के साथ छेड़छाड़ कर सकता है,अपितु उन्हें नष्ट भी कर सकता है।कंप्यूटर में चोरियां,उनके इंटरनेट से संबद्ध होने की वजह से बढ़ रही हैं।दरअसल गोपनीयता खत्म हो जाने से ही साइबर ब्लैकमेलिंग जैसे अपराधों के रास्ते खुल गए हैं।साइबर अपराधी धमकियों,डराकर तथा विभिन्न तरीकों से अच्छी-खासी आमदनी कर रहे हैं।अंतरराष्ट्रीय बैंकिंग संघ की एक रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका और यूरोप के बैंक अरबों डालर का नुकसान इन ब्लैकमेलरों के चलते उठा चुके हैं।

5.भारत में साइबर अपराध (Cyber Crime in India):

  • पूरी दुनिया को कंपकंपा रही ‘साइबर ब्लैकमेलिंग’ की शुरुआत बेमतलब खुराफात से हुई थी।मगर आज दुनिया में ऐसे कंप्यूटर अपराधियों की संख्या हजारों की संख्या से ज्यादा है।अकेले भारत में ऐसे 100-150 संगठन हैं।भारत में इंटरनेट के करोड़ों उपभोक्ता हैं।पाकिस्तान में इंटरनेट के ग्राहकों की संख्या कम है लेकिन कंप्यूटर अपराधियों की इस क्षेत्र में अनुमानित संख्या सौ के लगभग पाकिस्तान में सक्रिय हैं।दरअसल,पाकिस्तान जिस तरह इस्लामी आतंकवाद का गढ़ बना हुआ है उसी तरह ‘साइबर आतंकवाद’ का भी गढ़ बना हुआ है।इस तरह पाकिस्तान में जितने भी ‘हैकर’ संगठन हैं उनमें 90% मुजाहिदों के हाथ में हैं।
  • आईएसआई की तो पूरी कई शाखाएं ‘टेक्नोटेरोरिज्म’ को समर्पित है।पाकिस्तानी इस चोरी में कितना आगे है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि भारत के पास परमाणु विस्फोट से संबंधित महत्त्वपूर्ण आंकड़े थे,उन्हें भाभा अनुसंधान केंद्र से कुछ हैकरो ने चुरा लिए थे जो कि पाकिस्तान के थे।
  • हर गुजरते दिन के साथ साइबर चोरियों,ठगों की संख्या बढ़ती जा रही है।दुनिया का हर देश इन चोरियों और ठगी के मामलों से परेशान है।हर देश की पुलिस अभी इन अपराधों से निपटने में इतनी दक्ष नहीं है जितने इस अपराध के करने वाले दक्ष हैं।

6.साइबर सेंधमारी से कैसे बचें? (How to avoid cyber breaches?):

  • मोबाइल धारक:यदि कोई भी ई-मेल,मोबाइल मैसेज संदिग्ध लगे तो उसे तत्काल डिलीट कर दें।इंटरनेट पर सर्फिंग करते हुए किसी भी साइट पर जाते समय हर किसी लिंक से छेड़छाड़ न करें।विश्वसनीय साइट पर जानकारी जुटाने का प्रयास करें।सोशल मीडिया साइट्स पर भी नोटिफिकेशन के जरिए आने वाले लिंक अथवा सोशल मीडिया पर हर लिंक को क्लिक न करें,विश्वसनीय स्रोतों पर ही विश्वास करें।
  • अपने गैजेट्स (मोबाइल) में सुरक्षा सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करें और समय-समय पर उन्हें अपडेट करते रहें।
    साइबर फ्रॉड से बचने के लिए फोन नंबर,बैंक के नंबर आदि को पासवर्ड के रूप में इस्तेमाल न करें बल्कि मजबूत पासवर्ड का इस्तेमाल करें और समय-समय पर उन्हें बदलते रहें।
  • टु-फैक्टर ऑथेंटिकेशन का उपयोग करें,यह अतिरिक्त सुरक्षा प्रदान करता है।जो भी ऐप डाउनलोड कर रहे हैं और उन्हें इस्तेमाल करते हैं तो उन्हें नियमित रूप से अपडेट करते रहें।
  • कंप्यूटर धारक:साइबर स्पेस की चोरियों यानी हैकिंग से बचने के कई रास्ते हैं।इनमें से एक सबसे सरल और लोकप्रिय रास्ता है,विविध किस्म के ‘फायरवॉल’ प्रोग्राम।ये प्रोग्राम न केवल घुसपैठ की कोशिश कर रहे ‘हैकर’ से मोर्चा लेते हैं,बल्कि उनकी पहचान करने की हर संभव कोशिश भी करते हैं।इस ‘फायरवॉल’ प्रोग्राम में सबसे संवेदनशील प्रोग्राम का नाम है ‘डायनेमिक फायरवॉल’।
  • यह प्रोग्राम आपके कंप्यूटर पर किए जाने वाले हमले को कई तरह से नाकाम बनाता है,जैसे:अगर प्रोग्राम से आपका कंप्यूटर लैस है,तो इसका मतलब यह हुआ कि वह आपातकाल की पूरी तैयारी से सज्जित है।अगर कोई ‘हैकर’ इसकी उपस्थिति में आपके कंप्यूटर पर हमला करता है,तो यह प्रोग्राम सबसे पहले हमला झेल रहे कंप्यूटर और इंटरनेट के बीच संबंध खत्म कर देता है।एक तरह से यह अग्निशमन के उस सिद्धांत की तरह है की सबसे पहले आग को बढ़ने से रोका जाए।
  • ‘फायरवाॅल’ आपके कंप्यूटर और इंटरनेट के बीच एक निगरानी पुलिस चौकी की तरह काम करता है।
  • यह अनजानी और ऐसी फाइलों को कंप्यूटर की मेमोरी में घुसने से रोकता है जो आमतौर पर हैकिंग का आधार होती है।
    ‘फायरवॉल,एंटीवायरस सॉफ्टवेयर के साथ मिलकर कंप्यूटर की सुरक्षा व्यवस्था को और अधिक मजबूती प्रदान करता है।
    भारत में इंटरनेट की सेवा विदेश संचार निगम लिमिटेड प्रदान करता है,जिसने अपने ग्राहकों को हैकर से बचाने के लिए एक विशिष्ट सॉफ्टवेयर तैयार किया है।इसके इस्तेमाल से हैकिंग से बचा जा सकता है।
  • निगम द्वारा प्रदत्त यह सॉफ्टवेयर बेंगलुरू स्थित संस्थान ‘कृत्रिम बुद्धिमत्ता एवं रोबोटिक केंद्र’ द्वारा तैयार किया गया है,जो कि भारत के रक्षा अनुसंधान एवं विश्लेषण संस्थान का सहयोगी संस्थान है।इस संस्थान ने उन्नत किस्म के ‘फायरवॉल’ सॉफ्टवेयर के साथ ही एक और सॉफ्टवेयर विकसित किया इसका नाम ‘सेकनेट’ है।यह सॉफ्टवेयर कंप्यूटर में मौजूद गोपनीय सूचनाओं को हैकर्स से बचाने के लिए इन्हें कूट भाषा में बदल देता है।सूचनाओं को कूटभाषा में बदल दिए जाने को ‘एनक्रिप्शन’ कहते हैं।अगर किसी जानकारी को कूट भाषा में बदल दिया जाए,तो उसे पुनः ‘डिकोड’ करने में इतना समय लगता है कि कोई भी हैकर वह नहीं कर सकता।उदाहरण के लिए किसी गोपनीय जानकारी की ‘एनक्रिप्शन’ को अगर अमेरिकी विशेषज्ञ भी पढ़ना चाहें,तो उन्हें इसके लिए नौ अरब वर्षों (कंप्यूटर समय) की दरकार होगी।
  • ‘फायरवॉल और सेकनेट’ जैसे सॉफ्टवेयर के अलावा भी साइबर चोरियों से बचने के रास्ते हैं,जैसे:एक अमेरिकी वैज्ञानिक लैकी डाल्टन ने एक ऐसे ताले का आविष्कार किया,जो कंप्यूटर नेटवर्क के अंदर लगाया जा सकता है।यह एक तरह का ‘कंबीनेशन लॉक’ होगा,जो की पूर्व निर्धारित ‘कोड’ से खुलेगा:इसे खोल पाना साइबर चोरों के लिए आसान नहीं होगा।
  • अमेरिका में ही एक घड़ी ईजाद की गई है जो कंप्यूटर नेटवर्क के साथ लगाई जाएगी।यह हैकर्स पर नजर रखती है और जैसे ही किसी अवांछित फाइल को कंप्यूटर मेमोरी में घुसते देखेगी वैसे ही सावधानी का अलार्म बजा देगी।जिससे कंप्यूटर मालिक सावधान हो जाएगा।
  • लेकिन इन तमाम सावधानियों और प्रतिरक्षा उपकरणों के बावजूद साइबर ठगों,चोरों से 100% बच पाना मुश्किल है।100% सुरक्षा का एक ही उपाय है और वह है:इंटरनेट को अलविदा कहना।लेकिन ऐसा करना सही नहीं होगा।

7.साइबर अपराध और कानूनी अंकुश (Cybercrime and legal curbs):

  • ऑनलाइन ठगी के लगातार बढ़ते मामलों को देखते हुए केंद्र सरकार अब ऑनलाइन डिजिटल पेमेंट की प्रक्रिया में बदलाव करने की तैयारी में है।नए प्रावधानों के तहत जल्दी ही ऑनलाइन पेमेंट करने से पहले यूजर्स को दोहरे सत्यापन की प्रक्रिया को पूरा करना पड़ सकता है।आरबीआई ने ठगी के बढ़ते मामलों के मद्देनजर भुगतान प्रक्रिया में बदलाव करने का फैसला लिया।इसके तहत सिर्फ वनटाइम पासवर्ड (ओटीपी) या कैप्चा डालकर भुगतान नहीं होगा।ओटीपी और कैप्चा कोड के साथ में पिन नंबर,बायोमेट्रिक,पासफ्रेज,टोकन जैसा कोई एक अन्य सत्यापन करना होगा।नए प्रावधानों के तहत बैंकों और एनबीएफसी के लिए अंतिम रूप से भुगतान करने से पहले ग्राहकों से जुड़े दो वैकल्पिक सत्यापन करने आवश्यक होंगे।मौजूदा समय में अधिकांश बैंक सिर्फ ओटीपी के आधार पर भुगतान की सुविधा प्रदान कर रहे हैं।आज की तारीख में भारत में लगभग 10 करोड लोग ऐसे हैं जो इंटरनेट के उपभोक्ता है और कंप्यूटरों की संख्या 50 करोड़ के लगभग है।इस तरह भारत इंटरनेट और कंप्यूटरों का उपभोग करने वाले दुनिया के अग्रणी देशों में है।जाहिर है,भारत भी कंप्यूटर अपराधों का एक बड़ा गढ़ है।यहाँ हैकर्स उसी तरह सक्रिय हैं जैसे अमेरिका में है।
  • हमारे यहां जो अपराधों को रोकने के कानूनी प्रावधान हैं वे 19वीं शताब्दी के हैं।ऐसे अपराधों में अंकुश लगाने के लिए जिस साक्ष्य अधिनियम की सबसे महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है,हमारा वह साक्ष्य अधिनियम 1872 का बना है जिसे अब जाकर 2024 में बदला गया है।
  • कंप्यूटर अपराधों में अंकुश लगाने के लिए अपराधों से सजग बनाने वाले कार्यक्रम होते रहने चाहिए,ताकि इंटरनेट का उपयोग करने वाले लोग सतर्क रह सकें।इन सजग बनाने वाले कार्यक्रमों में सामूहिक रूप से प्रशिक्षण देने वाली ‘वर्कशॉप’ हो सकती है,बुलेटिनों का नियमित प्रकाशन हो सकता है,कानून को लागू करने वाले एजेंसियों द्वारा लोगों की मांग पर कंप्यूटर अपराधों को अंजाम देने वाले अपराधियों की मुस्तैदी से धरपकड़ और ऐसे मामलों में जिम्मेदारी तथा संवेदनशीलता का बर्ताव भी कारगर भूमिका अदा कर सकता है।
  • सभी अर्धसरकारी,सरकारी और निजी संस्थानों,जहां कंप्यूटरों का बड़ी संख्या में इस्तेमाल होता हो,अनिवार्य रूप से एक सूचना सुरक्षा अधिकारी की नियुक्ति होनी चाहिए।इस सूचना सुरक्षा अधिकारी पर सभी तरह के कम्प्यूटर संसाधनों की सुरक्षा का दायित्व होना चाहिए।साथ ही,इस अधिकारी को सभी तरह की सूचना और कंप्यूटरगत खामियों का उत्तरदायित्व वहन करना चाहिए।
  • ‘राष्ट्रीय कंप्यूटर अपराध स्त्रोत केंद्र’ स्थापित किया जाना चाहिए,जिसमें भारतीय रिजर्व बैंक,केंद्रीय जांच ब्यूरो,फॉरेंसिक विशेषज्ञ,राष्ट्रीयकृत बैंक,बीमा कंपनियों तथा कानून को लागू करवाने वाली एजेंसियों के प्रतिनिधियों की नियुक्ति की जाए।
    केंद्रीय जांच ब्यूरो को एक ‘सेंट्रल कंप्यूटर क्राइम विंग’ की स्थापना करनी चाहिए जो कि तमाम दूसरी जांच एजेंसी को एक सूत्र में पिरोकर उन्हें सुझाव देने और मार्गदर्शन देने का काम करें।
  • सभी राज्यस्तरीय जाँच एजेंसियों और केंद्रीय जांच ब्यूरो को त्वरित रूप से ‘विशेष कंप्यूटर जांच केंद्र’ (प्रकोष्ठ) की स्थापना करनी चाहिए।इससे सभी तरह के कंप्यूटर अपराधों को लेकर अपराधियों में डर पैदा होगा।
  • ‘फॉरेंसिक साइंस लैबोरेट्रीज’ अपने यहाँ तुरंत एक ‘फोरेंसिक कंप्यूटर डिवीजन’ की स्थापना करें ताकि कंप्यूटर अपराधियों के अपराधों का तीव्रता से निर्धारण किया जा सके और उन्हें उनके अपराधों की कोटि के अनुसार सजा दिलाई जा सके।
    भारतीय अपराध संहिता में आमूल-चूल परिवर्तन करते हुए,कंप्यूटर अपराधों को रोकने के ठोस उपाय करने चाहिए।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में साइबर ठगी से बचने की 7 टॉप तकनीक (7 Top Techniques to Avoid Cyber Fraud),साइबर ठगी से कैसे बचें? (How to Avoid Cyber Fraud?) के बारे में बताया गया है।

Also Read This Article:Why Do Affluent Youth Become Criminals?

8.चालाक गणित शिक्षक (हास्य-व्यंग्य) (Clever Math Teacher) (Humour-Satire):

  • गणित शिक्षक (चपरासी से):सुनो जाओ,जरा स्टेशन जाओ मेरे मेहमान आने वाले हैं इसके लिए मैं तुम्हें ₹10 दूंगा।
  • चपरासी:अगर गुरुजी,आपके मेहमान ना आए तो।
  • शिक्षक:फिर मैं तुम्हें ₹20 दूंगा क्योंकि मुझे स्कूल और कोचिंग की छुट्टी नहीं करनी पड़ेगी।खर्चे की बचत होगी वो अलग।

9.साइबर ठगी से बचने की 7 टॉप तकनीक (Frequently Asked Questions Related to 7 Top Techniques to Avoid Cyber Fraud),साइबर ठगी से कैसे बचें? (How to Avoid Cyber Fraud?) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.कंप्यूटर वायरस क्या है? (What is a Computer Virus?):

उत्तर:कंप्यूटर के क्षेत्र में वायरस शब्द का इस्तेमाल इसलिए किया जाता है,क्योंकि कंप्यूटर में होने वाले विकारों के जो प्रोग्राम जिम्मेदार होते हैं उतनी कार्य प्रक्रिया भी कुछ-कुछ वैसी ही होती है,जैसे शरीर को अस्वस्थ बनाने वाले वायरस की होती है।दरअसल,वायरस हमारे शरीर में घुसकर हमारी ही कोशिकाओं के साथ कुछ इस तरह का तारतम्य बना लेते हैं कि हमारी कोशिकाएं इन वायरसों की जननी बन जाती है।
ठीक यही प्रक्रिया कंप्यूटर वायरसों की होती है।कंप्यूटर वायरस भी आमतौर पर खुराफात की देन होते हैं।इन्हें किसी प्रोग्राम के साथ चोरी-छिपे भेजा जाता है।कंप्यूटर वायरस में एक इलेक्ट्रॉनिक कोड छिपा होता है जो इसके लिए ‘गेट पास’ का काम करता है:इसी कोड की बदौलत कंप्यूटर प्रणाली उसे मुख्य मेमोरी में प्रवेश की इजाजत देती है:एक बार जब यह वायरस कंप्यूटर की मुख्य मेमोरी में घुस जाता है तो फिर शीघ्र ही कंप्यूटर की समूची ‘कंडक्टिंग लाइन’ (परिचालन व्यवस्था) पर कब्जा जमा लेता है।इसके साथ ही शुरू हो जाता है इसकी असंख्य प्रतिलिपियों के बनने का सिलसिला।यह अपने संपर्क में आने वाले प्रोग्राम को तेजी से संक्रमित करने लगता है।

प्रश्न:2.लॉजिक बम क्या है? (What is a logic bomb?):

उत्तर:’बम’ आमतौर पर ‘लाॅजिक बम’ के संक्षिप्त रूप को कहते हैं,वैसे इसकी कुछ किस्मों को ‘टाइम बम’ के नाम से भी जाना जाता है।आमतौर पर यह होता है कि कोई असंतुष्ट कर्मचारी किसी कंप्यूटर कंपनी के प्रोग्राम में इस तरह के हानिकारक सॉफ्टवेयर को डाल देते हैं।ये एक निश्चित समय अथवा सुनिश्चित संकेत पाकर सक्रिय होते हैं,इसलिए ऐसे कंप्यूटर विकारों को ‘टाइम बम’ अथवा ‘लॉजिक बम’ के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न:3.वर्म किसे कहते हैं? (What is a worm?):

उत्तर:कम्प्यूटर के तीसरे शत्रु होते हैं,’वर्म’।आमतौर पर इन्हें वायरस ही माना जाता है।मगर अपनी कार्य प्रक्रिया में एक जैसे होने के बावजूद दोनों में कुछ मूलभूत अंतर होते हैं।दरअसल ‘वर्म’ एक तरह का स्वतंत्र प्रोग्राम होता है,जबकि वायरस का किसी दूसरे प्रोग्राम के साथ परजीवी रिश्ता होता है।

प्रश्न:4.राजस्थान में हाल ही में साइबर ठगी का उल्लेख करें।(Mention the recent cyber fraud in Rajasthan):

उत्तर:(1.)जनवरी,2024 में झुंझनू की प्रोफेसर से 7.67 करोड़ रुपये की ठगी
(2.)अप्रैल,2024 में जयपुर के व्यापारी से 50 लाख रुपये का फ्राड
(3.)जून,2024 में जयपुर की महिला बैंककर्मी से 17 लाख रुपये ठगे
(4.)जुलाई, 2024 में हाइकोर्ट के रिटायर्ड जज से 2 लाख रुपये ठगे
(5.)अगस्त,2024 में जयपुर के युवक से 4.55 लाख रुपये की ठगी
(6.)अगस्त में ही IIT जोधपुर की प्रोफेसर से 12 लाख रुपये ठगे।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा साइबर ठगी से बचने की 7 टॉप तकनीक (7 Top Techniques to Avoid Cyber Fraud),साइबर ठगी से कैसे बचें? (How to Avoid Cyber Fraud?) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
No. Social Media Url
1. Facebook click here
2. you tube click here
3. Instagram click here
4. Linkedin click here
5. Facebook Page click here
6. Twitter click here

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *