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7 Tips for Personality Development

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1.व्यक्तित्त्व के विकास हेतु 7 बेहतरीन टिप्स (7 Tips for Personality Development),सफलता का मंत्र व्यक्तित्त्व का विकास (The Mantra of Success Is The Development of Personality):

  • व्यक्तित्त्व के विकास हेतु 7 बेहतरीन टिप्स (7 Tips for Personality Development) के आधार पर आप अपने व्यक्तित्त्व को ओर अधिक विकसित कर सकते हैं।जीवन के किसी भी क्षेत्र अथवा कैरियर में सफलता प्राप्त करने के लिए व्यक्तित्व का विकास सबसे अधिक जरूरी है। व्यक्तित्व कई गुणों का जोड़ है।संक्षिप्त रूप में व्यक्तित्व शारीरिक,मानसिक और आन्तरिक गुणों का जोड़ है।शारीरिक गुणों में शरीर का रूप-रंग, कद,वेशभूषा,हावभाव,चेहरे की मुद्रा,बॉडी लैंग्वेज हेयर स्टाइल आदि को शामिल किया जाता है। जबकि मानसिक तथा आंतरिक गुणों में सकारात्मक दृष्टिकोण,आत्मविश्वास,निरंतर सीखना,कठिन परिश्रम,दृढ़ संकल्पशक्ति,विनम्रता,धैर्य इत्यादि गुणों को शामिल किया जाता है।कुछ दुर्गुणों का अभाव भी होना आवश्यक है जैसे:क्रोध,लोभ,मोह,आलस्य, नकारात्मकता इत्यादि।सबसे पहले कोई भी व्यक्ति हमारे बाह्य गुणों (शारीरिक गुणों) को देखता है तथा उससे परिचित होता है।इसलिए बाह्य गुणों की अनदेखी नहीं करनी चाहिए।आंतरिक गुणों के साथ-साथ बाह्य गुणों को विकसित करने पर भी ध्यान देना चाहिए।इस आर्टिकल में कुछ ऐसे टिप्स बताई जा रही है जिनके आधार पर आप अपने व्यक्तित्व का विकास कर सकते हैं।
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2.जाॅब के अनुसार पहनावा पहने (Dress According to Job):

  • जाॅब के अनुसार वेशभूषा और पहनावा होना चाहिए।यह ठीक है कि परंपरागत भारतीय पोशाक में हम भारतीय होने का सबूत दे सकते हैं।परंतु समय के अनुसार अपने आपमें परिवर्तन करना लाजमी है।आप जिस प्रकार के जॉब के लिए साक्षात्कार देने जाते हैं उसके अनुसार तथा आप पर फबनेवाली पोशाक पहनकर जाएं।पहली मुलाकात में आप प्रभाव जमाना चाहते हैं तो अपनी वेशभूषा,हेयर स्टाइल का चुनाव कीजिए।कपड़ों और वेशभूषा का चुनाव इस प्रकार हो कि आपके व्यक्तित्व को निखारने में सक्षम हो तभी वह सामने वाले पर प्रभाव डालता सकता है।हर पोशाक हर व्यक्ति पर फिट नहीं होती है और न ही फबती है। पोशाक इस प्रकार की हो कि उसमें आप अपने आपको सहज महसूस करें।अपने आपको अच्छा दिखने और लगने की कोशिश करें।अपने जॉब तथा व्यक्तित्व के अनुसार कपड़ों का चुनाव करें।

3.सकारात्मक दृष्टिकोण रखें (Have a Positive Attitude):

  • कैंडीडेट्स को हमेशा सकारात्मक दृष्टिकोण रखना चाहिए।सकारात्मक दृष्टिकोण का अर्थ यह नहीं है कि सब कुछ आपके अनुकूल हो।बल्कि आपके प्रयास करने पर जो भी हो उसे सहज रूप से स्वीकार करें।अर्थात् जो हो रहा है उसे स्वीकारें। सकारात्मक दृष्टिकोण से आपका व्यक्तित्व निखरता है।जैसे आपने इंजीनियर,असिस्टेंट इंजीनियर की परीक्षा दी हो।आपका चयन अस्सिटेंट इंजीनियर के पद पर हो जाता है।सकारात्मक दृष्टिकोण रखनेवाला इसमें यही देखता है कि उसके पास कोई जॉब नहीं था लेकिन जाॅब तो मिला। नकारात्मक दृष्टिकोण रखने वाला व्यक्ति इससे यह निष्कर्ष निकालता है कि उसमें काबिलियत इंजीनियर से ज्यादा है फिर भी असिस्टेंट इंजीनियर के लिए चयन हुआ है।मेरी काबिलियत के अनुसार यह जाॅब नहीं है।

4.सीखने की जिज्ञासा (Curiosity to Learn):

  • ज्ञान का कोई अन्त नहीं है।आप जिस जाॅब को कर रहे हैं अथवा करने वाले हैं उसमें जाॅब से संबंधित तकनीकी व उपयोगी बातों को जब तक सीखते रहेंगे तब तक उस जाॅब के योग्य हो।हमेशा जाॅब के लिए तथा अपने व्यावहारिक ज्ञान हेतु नई-नई बातों को सीखते रहना चाहिए।वैसे भी आधुनिक युग तकनीकी प्रधान युग है।इसमें कुछ समय में ही जाॅब व चीजों से संबंधित नए-नए आविष्कार होते रहते हैं।इसलिए अपने आप को अपडेट व अपटुडेट करते रहें।इससे आप कभी पिछड़ेगें नहीं।यदि आपने यह सोच लिया कि उसके संबंधित जॉब के लिए ज्ञान पर्याप्त है तथा उसे ओर सीखने की जरूरत नहीं है।तभी उसके व्यक्तित्व का विकास रुक जाता है।उसके तरक्की के अवसर खत्म हो जाते हैं।सीखने के लिए आपमें रुचि,लगन,तीव्र उत्कंठा तथा जिज्ञासा का होना आवश्यक है।

5.ध्यान और योगाभ्यास करें (Meditate and Practice Yoga):

  • ध्यान करने से हमारे विचारों की तरंगे तथा ऊर्जा जो अनेक दिशाओं में बँटी हुई होती है उसे एकाग्र करने में मदद मिलती है।योगाभ्यास द्वारा मन को अनुशासित,संयमित और धैर्य धारण करने में सहायता मिलती है।यह मन के साथ-साथ यदि आपका शरीर बेडौल,थुलथुल है तो उसको भी सुगठित करने में सहायक है।योगाभ्यास हमें कई बीमारियों से मुक्त करता है।प्रातःकाल रोजाना सुबह जल्दी उठकर नित्य कर्मों से निवृत्त होकर 20-30 मिनट का समय आसानी से दिया जा सकता है।

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6.कठिन परिश्रम करें (Work Hard):

  • सुविधाभोगी मनोवृत्ति न रखकर कठिन परिश्रम करें।आपके व्यक्तित्व को निखारने के लिए ज्ञान और विद्या का महत्त्व है।ज्ञान और विद्या के लिए कठिन परिश्रम करना ही होगा।परंतु पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव के कारण आजकल के नवयुवक सुविधाभोगी होते जा रहे हैं।जबकि विद्याध्ययन और ज्ञान के लिए तप,समर्पण व कठिन परिश्रम करना ही होगा।कठिन परिश्रम के द्वारा ही विद्या अर्जित की जा सकती है।
  • कठिन परिश्रम भी लक्ष्य केंद्रित होना चाहिए। एक-एक क्षण का सदुपयोग करना।अपने कार्य में जी-जान से जुटकर पूरा करने का यत्न करना।आजकल युवकों में धैर्य की कमी होती है।वे कार्य तथा जाॅब में तत्काल परिणाम चाहते हैं।परंतु जितना ऊँचा लक्ष्य होता है उतना ही अधिक कठिन परिश्रम और धैर्य धारण करना होता है।धैर्य पूर्वक निरंतर अपने लक्ष्य में जुटे रहने वाला अंततः अपने लक्ष्य को प्राप्त कर ही लेता है।

7.दृढ़ संकल्प शक्ति के साथ कार्य करें (Act With Determination):

  • विद्यार्थी अपनी क्षमता तथा योग्यता के अनुसार लक्ष्य तय करें।फिर दृढ़ संकल्पशक्ति के साथ उस कार्य को पूरा करने में जुट जाए।इस संसार में बड़े-बड़े कार्य,महान कार्य,असंभव लगने वाले कार्य संकल्प शक्ति के बल पर ही किए गए हैं।परंतु हम मनोबल को संकल्पशक्ति समझने की भूल कर जाते हैं।संकल्पशक्ति आत्मिक बल है।मन का स्वभाव है कि वह विकल्पों का आदी होता है।विकल्पों को ही, मनोबल को जब संकल्पशक्ति समझ बैठते हैं तो वह कार्य पूर्ण होने में संशय रहता है।परंतु आत्मिक बल को जो पहचान लेता है,अपनी आंतरिक शक्तियों से जो परिचित हो जाता है उसका कोई भी कार्य रुक नहीं सकता है।

8.आत्मविश्वास बनाए रखें (Maintain Self-confidence):

  • आत्मविश्वास का अर्थ है कि अपने आप पर विश्वास रखना।कहा भी गया है कि भगवान भी उसी की मदद करता है जो व्यक्ति स्वयं अपनी मदद करता है।अपनी मदद करने का अर्थ है पुरुषार्थ करना अर्थात् भगवान भी पुरुषार्थी की ही मदद करता है। जिस व्यक्ति को अपने आप पर विश्वास होता है संशय वाली स्थिति नहीं होती तो बड़ी से बड़ी समस्याएं भी ऐसे व्यक्ति के मार्ग में अवरोधक नहीं बन सकती है।
  • अपने जाॅब,अपने विषय तथा अपने काम के बारे में ज्ञानार्जन करने तथा उसको व्यवहार में लागू करने से व्यक्ति का आत्मविश्वास बढ़ता जाता है।ज्यों-ज्यों विद्यार्थी अपने विषय के बारे में जानकारी हासिल करता जाता है उसके आत्मविश्वास में वृद्धि होती जाती है।जो विद्यार्थी ज्ञान प्राप्ति को समाप्त समझ लेता है।वह आगे नहीं बढ़ सकता है।विद्यार्थी कितना ही ज्ञानार्जन प्राप्त कर लें परंतु संपूर्ण ज्ञान कभी प्राप्त नहीं कर सकता है।ज्ञान प्राप्ति से उसके विषय पर पकड़ मजबूत होती है।उसके आत्मविश्वास में वृद्धि होती है।एक आत्म-विश्वासी व्यक्ति का व्यक्तित्व तेजस्वी तथा ओजपूर्ण होता है। उसके मुखमुद्रा पर एक आभा प्रकट होती है।
  • इसके विपरीत जो विद्यार्थी संशय में जीता है “संशयात्मा विनश्यति” के अनुसार संशय में पड़ा हुआ विद्यार्थी विनाश को प्राप्त होता है।

9.अभिव्यक्ति के कौशल को विकसित करें (Develop the Skills of Expressing):

  • कई विद्यार्थी अंतर्मुखी होते हैं।अपने अंदर के ज्ञान अथवा विषय का ज्ञान है उसे अभिव्यक्त नहीं कर पाते हैं।ऐसे विद्यार्थियों को किसी भी टॉपिक को जो उसे याद है अपने मोबाइल से रिकॉर्ड करके उसे सुनना चाहिए।जहां भी आवाज में गलती दिखाई दें अथवा आपके बोलने का ढंग प्रभावशाली नहीं हो तो बार-बार अभ्यास करें।रिकाॅर्ड करके सुने और उसमें सुधार करते रहे।धीरे-धीरे अभिव्यक्त करने का कौशल विकसित होता जाएगा।कई वक्ता घंटों तक भाषण देते रहते हैं और लोग मंत्रमुग्ध होकर सुनते रहते हैं।उसके पीछे उनका बहुत अभ्यास किया हुआ होता है।
  • इसके अलावा दर्पण के सामने उठने,बैठने और बोलने से आपकी मुखमुद्रा और हावभाव में सुधार किया जा सकता है।आपके चेहरे पर आने वाले भावों में सुधार किया जा सकता है।मुख्य बात यही है कि बार-बार अभ्यास करते रहे और जहां भी त्रुटि दिखाई दे उसमें सुधार करते रहें।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में व्यक्तित्त्व के विकास हेतु 7 बेहतरीन टिप्स (7 Tips for Personality Development),सफलता का मंत्र व्यक्तित्त्व का विकास (The Mantra of Success Is The Development of Personality) के बारे में बताया गया है।

10.सवाल का पता नहीं (हास्य-व्यंग्य) (I don’t Know Question) (Humour-Satire):

  • एक छात्र गणित के कालांश में ख्यालों में खोया हुआ था।गणित अध्यापक ने तत्काल ताड़ लिया।
    उन्होंने उस छात्र को खड़ा करके पूछा।
  • गणित अध्यापक (छात्र से):तुम कहां खोए हुए थे?
  • छात्र:पता नहीं।
  • गणित अध्यापक:कक्षा में क्या पढ़ाया जा रहा है?
  • छात्र:पता नहीं।
  • गणित अध्यापक:कौनसा सवाल हल करवाया जा रहा है?
  • छात्र:पता नहीं।
  • गणित अध्यापक (छात्र से):तुम हाथ ऊपर करके खड़े हो जाओ।
  • छात्र ने ऊपर हाथ खड़े करके कहा:सर,अभी भी पता नहीं चल रहा है।

11.व्यक्तित्त्व के विकास हेतु 7 बेहतरीन टिप्स (7 Tips for Personality Development),सफलता का मंत्र व्यक्तित्त्व का विकास (The Mantra of Success Is The Development of Personality) के सम्बन्ध में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.शीलगुण से क्या तात्पर्य है? ( What is Meant by Decency?):

उत्तर:व्यक्तित्व एक ऐसा सिस्टम है जिसमें शीलगुण,संवेग,आदत,ज्ञानशक्ति,चित्तप्रकृति,चरित्र आदि मानसिक गुण शामिल है।शीलगुण में संगति (Consistency) तथा स्थिरता (Stability) रहती है तभी वह शीलगुण कहलाता है।जैसे कोई व्यक्ति सत्य बोलता है परंतु विपरीत परिस्थिति में भी सत्य बोलता है।यदि कुछ समय बाद सत्य बोलना छोड़ देता है तो यह शीलगुण नहीं है।शीलगुण में स्थायित्व भी रहना चाहिए।

प्रश्न:2.व्यक्तित्व से क्या तात्पर्य है?(What is Meant by Personality?):

उत्तर:प्रारंभ में व्यक्तित्व का अर्थ बाहरी वेशभूषा तथा दिखावे के आधार पर परिभाषित किया जाता था।Personality लैटिन शब्द persona से बना है जिसका अर्थ होता है नकाब (mask),मुखोटा।इसे नायक (Actor) नाटक करते समय पहनते हैं। परंतु अब व्यक्तित्व का अर्थ विस्तृत हो गया है। व्यक्तित्व का अर्थ मानसिक,शारीरिक तथा आंतरिक गुणों के जोड़ से है।

प्रश्न:3.क्या व्यक्तित्व में वातावरण से समायोजन भी शामिल है?(Does the Personality Also Include Adjustment with the Environment?):

उत्तर:व्यक्ति वातावरण के साथ सिर्फ समायोजन (adjustment) या अनुकूलन (adaptation) ही नहीं करता है बल्कि वातावरण के साथ इस तरह अन्त:क्रिया (interaction) करता है कि वातावरण को भी व्यक्ति के साथ अनुकूलन योग्य होना पड़ता है।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा व्यक्तित्त्व के विकास हेतु 7 बेहतरीन टिप्स (7 Tips for Personality Development),सफलता का मंत्र व्यक्तित्त्व का विकास (The Mantra of Success Is The Development of Personality) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

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जीवन के किसी भी क्षेत्र अथवा कैरियर में सफलता प्राप्त करने के लिए व्यक्तित्व का विकास सबसे अधिक जरूरी है।

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