6 Tips on How to Diagnose Psychopathy
1.मनोरोग का निदान कैसे हो की 6 टिप्स (6 Tips on How to Diagnose Psychopathy),मनोरोगी के प्रति सही दृष्टिकोण कैसे रखें? (How to Have Right Attitude Towards a Psychopath?):
- मनोरोग का निदान कैसे हो की 6 टिप्स (6 Tips on How to Diagnose Psychopathy) के आधार पर आप जान सकेंगे की मनोरोगी के प्रति सही दृष्टिकोण,उनका सही निदान और देखरेख से वे काफी हद तक ठीक हो सकते हैं और अपना सामान्य जीवन जी सकते हैं।
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2.देश के ज्यादातर मानसिक अस्पतालों की हालत (The condition of most mental hospitals in the country):
- रोगी को जितनी आवश्यकता दवाओं एवं सही उपचार की होती है,उतनी ही आवश्यकता उसको दुलार,प्यार एवं सामाजिक अधिकार की भी होती है।इसी प्यार एवं अधिकार के बल पर वह अपने अन्दर पनपने वाली हीन भावनाओं पर काबू पाने में सक्षम हो पाता है।उसके अंदर की जड़ता व शून्यता खत्म होती है तथा उसके स्थान पर इसी से उसके अंदर नवीन चेतना व शक्ति का संचार होता है,जिसके सहारे वह फिर से जीवन को जिंदादिली के साथ जीने में समर्थ हो पाता है।
- संयुक्त राष्ट्र ने अपने एक घोषणापत्र में कहा है कि मानसिक रोगी का इलाज पूरी सद्भावना और सम्मान के साथ किया जाना चाहिए।मानसिक रोगी को अस्पताल में सम्मान के साथ रहने का अधिकार है और उसके साथ क्रूर व्यवहार नहीं किया जाना चाहिए।एक बार ठीक हो जाने पर उसे सामाजिक एवं पारिवारिक जीवन जीने का पूरा अधिकार है।लेकिन अफसोस की बात यह है कि इस घोषणा पत्र के बावजूद भी देश के ज्यादातर मानसिक अस्पतालों में मानसिक रोगियों के साथ जैसा व्यवहार होता है,वह किसी यातनागृह की याद ही दिलाता है।
- देश के ज्यादातर मानसिक अस्पतालों की हालत इतनी बदतर है कि उसे अस्पताल कहना ही बेमानी लगता है।अधिकांश मानसिक अस्पतालों में आज भी मानसिक स्वास्थ्य की पुरानी मान्यताओं को ही अपनाया जाता है।यहां उपचार का दृष्टिकोण न अपनाकर एक तरह से मानसिक रोगियों को बंदी बनाकर रखा जाता है।ज्यादातर अस्पतालों में क्षमता से ज्यादा रोगियों के भरे होने के कारण वहां बुनियादी सुविधाओं का भी अभाव बना रहता है।इतना ही नहीं,जिन रोगियों को अतिरिक्त संवेदना की जरूरत होती है,उनके साथ आम मानवीय सहानुभूति भी नहीं बरती जाती।मानसिक रोगियों को एक तरह से बोझ समझा जाता है।स्वयं परिवार वालों की सहज सहानुभूति भी उन्हें नहीं मिलती,इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 1986 में मानसिक अस्पतालों में हुए 55,000 दाखिलों में से 53,000 लोग वापस चले गए।
- एक सर्वेक्षण में पाया गया कि भारत में 37 में से 24 सरकारी मानसिक अस्पतालों द्वारा भेजी गई जानकारी के मुताबिक लगभग 43 फीसदी रोगी निर्धारित 6 हफ्ते की अवधि के बजाय 2 साल से भी ज्यादा समय से वहां रह रहे हैं।दाखिलों का हिसाब देखते हुए देश के मानसिक अस्पतालों में लगभग 20,000 बिस्तर में से प्रत्येक को लगभग चार रोगी के लिए पर्याप्त होना चाहिए,लेकिन इनमें से आधे बिस्तरों पर तो लंबे समय से रह रहे रोगियों का कब्जा बने होने से एक बिस्तर के मुकाबले 8 मरीज पड़ते हैं।राष्ट्रीय सर्वेक्षण के मुताबिक करीब 4 करोड़ भारतीयों को किसी न किसी रूप में मानसिक चिकित्सा की जरूरत है।इनमें बहुत से ऐसे परिवार हैं,जो अपने मानसिक रूप से बीमार सदस्य का खर्च नहीं उठा सकते।ऐसे में सरकारी अस्पताल ही उनका सहारा होते हैं।
- बदलते सामाजिक मूल्यों,शहरीकरण और संयुक्त परिवारों के बिखराव के कारण भारत जैसे विकासशील देश में मानसिक रोगों का होना कोई आश्चर्य का विषय नहीं है।चिंता और बढ़ती कुंठाएं अंततः दिमाग को ही अपना निशाना बनाती है।आमतौर पर मानसिक रोग धीरे-धीरे विकसित होता है।अगर शुरुआती दौर में उचित इलाज करवाया जाए तो 70% मामलों में रोग मुक्त होने या स्थिति में सुधार आने की संभावना रहती है।हमारा समाज प्रतिष्ठा के लिए जीता-मरता है।समाज में अपनी प्रतिष्ठा बनाए रखने एवं समाज की कानाफूसी से बचने के लिए प्रारंभिक लक्षणों को अनदेखा कर दिया जाता है।लेकिन रोग के निदान की चिंता की जाने लगती है,तब तक उसका इलाज सहज नहीं रह जाता।
3.मानसिक अस्पतालों में सुधार की जरूरत (Mental hospitals need to be reformed):
- मानसिक स्वास्थ्य का सीधा संबंध सामाजिक परिवेश से होता है।लेकिन कोई व्यक्ति यदि मानसिक रोग से पीड़ित हो जाए,तो समाज उसे अपने ऊपर बोझ समझने लगता है।यही कारण है कि देश के अनेक मानसिक अस्पतालों में ऐसे लोगों की बहुतायत है,जो ठीक हो जाने के बावजूद अस्पतालों में ही रहने को मजबूर हैं।अकेले पुणे मानसिक अस्पताल के कुल में से 50% ऐसे मरीज हैं,जिन्हें समाज और परिवारवालों ने ठीक हो जाने के बावजूद भी ठुकरा रखा है।मद्रास में भी कुल में से 60% रोगियों ने तो आरोग्यशाला को ही अपना घर मान लिया है।
- विशेषज्ञों का सुझाव है कि परिवार के सदस्यों के अंदर हमदर्दी की भावना जगाने के लिए उन्हें संस्थान में रोगियों के साथ ही रहने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।यह सुविधा भारत के मात्र पांच मानसिक आरोग्यशालाओं में उपलब्ध है।हालांकि हर अस्पताल में यह सुविधा उपलब्ध कराना मुश्किल काम है,क्योंकि इसके लिए पैसों एवं साधन दोनों की जरूरत होती है।ऐसे में छोटे अस्पताल कारगर साबित हो सकते हैं,जहां पारिवारिक माहौल और निजी देखभाल की व्यवस्था आसानी से की जा सकती है।
- मानसिक आरोग्यशालाओं में अब भी मानसिक स्वास्थ्य चिकित्सा की पुरानी मान्यताओं को ही अपनाया जा रहा है।एक मरीज से जब यह पूछा गया है कि उसको सबसे ज्यादा डर किस चीज से लगता है,तो उसका जवाब था, “मुझे मौत से भी ज्यादा डर बिजली के झटके से लगता है।” देशभर की आरोग्यशालाओं के मनोरोगियों में तीन चौथाई मनोविदलन से पीड़ित हैं और चूँकि बिजली का झटका देना सबसे सस्ता इलाज है,सो इसका सबसे ज्यादा उपयोग या यूं कहें कि दुरुपयोग होता है।जबकि इस बीमारी के इलाज में उपयोगी हर माह लगने वाला इंजेक्शन भी करीब ₹60 में उपलब्ध ही है।
- राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भी देशभर के मानसिक अस्पतालों की बदतर हालात पर चिंता जताई है।जो कि एक शुभ संकेत है।आयोग ने इस दिशा में कुछ कदम भी उठाए हैं।इसके तहत अस्पताल में गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए एक शोध परियोजना भी शामिल है,जो बेंगलुरु के राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य एवं चेतना विज्ञान के सहयोग से शुरू की गई है।दरअसल,मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 की धारा 12 जी के तहत राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को मानवाधिकार के क्षेत्र में शोध को बढ़ावा देने की जिम्मेदारी भी सौंपी गई है।इस परियोजना के तीन चरण होंगे।पहले चरण में विभिन्न मानसिक अस्पताल में विस्तृत सूचना जुटाई गई है।उसके बाद मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ विभिन्न अस्पतालों का दौरा करेंगे और मानवाधिकार के स्तर का जायज लेंगे।दूसरे चरण में इन अस्पतालों के कर्मचारियों के लिए कार्यशालाएं आयोजित की जाएंगी और अंतिम चरण में रपट तैयार की जाएगी।आयोग ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से अनुरोध किया है कि वे इस प्रयास को आवश्यक सहयोग दें।
- जहां तक सीधे सरकार का सवाल है तो वह दावा करती है कि सबके लिए स्वास्थ्य सुविधाएं सुनिश्चित कर दी जाएंगी,किंतु यदि सिर्फ मानसिक रोगियों की विशाल फौज को ही देखें तो साफ पता चलता है कि सरकार का दावा कितना खोखला है।अन्य तरह के रोगियों की बात छोड़ दें,तो सिर्फ 4 करोड़ मानसिक रोगियों को समुचित स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराना एक टेढ़ी खीर लगती है।सरकार अक्सर पर्याप्त संसाधनों का रोना रोती है,लेकिन ईमानदारी से प्रयास किया जाए तो समस्या से काफी हद तक निपटा जा सकता है।असली जरूरत ईमानदारी से प्रयास करने की है।
4.मनोरोग के बारे में लोगों की धारणा (People’s perception of psychiatry):
- हमारे देश में मनोरोग विज्ञान अभी तक अल्प विकसित अवस्था में है।मनोरोगों के बारे में आम व्यक्ति की जानकारी गलत धारणाओं से भरी है।यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि वह आज के वैज्ञानिक युग में भी भूत-प्रेत,ऊपरी साया,देवी-देवता,मौसम,नक्षत्र,भाग्य,बुरे कर्मों का फल आदि को इन रोगों का कारण मानता है।इसलिए हमारे देश में ओझा,पुजारी,मौलवी,साधु,नकली वैद्य,नीम-हकीम,अप्रशिक्षित यौन विशेषज्ञ इत्यादि अवैज्ञानिक रूप से मनोरोग चिकित्सकों का कार्य कर रहे हैं।
- सामान्य चिकित्सक एवं चिकित्सा-विशेषज्ञ मनोरोगों को सही समय पर पहचानने तथा रोगियों को मनोरोग चिकित्सक के पास भेजने में प्रायः असमर्थ हैं।इसके लिए कारण है; जिनमें प्रमुखता हैं धन लोलुपता,अपर्याप्त जानकारी,अपर्याप्त प्रशिक्षण,मनोचिकित्सकों की कमी,गरीबी,रोगी या उसके रिश्तेदारों द्वारा मनोरोग को स्वीकार न करना आदि।
- हमारे देश की 140 करोड़ से अधिक आबादी पर मात्र लगभग 5000 मनोरोग चिकित्सक हैं।यह संख्या बहुत कम है।भारत में 42 मनोरोग के अस्पताल हैं जिनमें लगभग 20,000 बिस्तर हैं।सभी सरकारी अस्पतालों में मनोरोग चिकित्सा प्रदान करने की योजना बनाई गई है ताकि मनोरोगियों को सामान्य अस्पतालों में ही चिकित्सा प्रदान की जा सके।परंतु मनोरोग चिकित्सकों का काफी समय और मनोरोग चिकित्सालयों को मिलने वाली काफी अधिक सहायता नशेड़ियों के उपचार में खर्च हो जाती है।समाचार-पत्र तथा अन्य प्रचार-प्रसार माध्यम भी लोगों को मनोरोगों के बारे में सही जानकारी देने में असफल रहे हैं।परिणामस्वरूप लोगों में इन रोगों के बारे में डर व अज्ञानता की गलत धारणाएं दूर नहीं हुई हैं।
5.मनोरोगों के मुख्य कारण (The main causes of psychiatric diseases): जैविक कारण:
- आनुवांशिक:मनोविक्षिप्त या साइकोसिस (जैसे स्कीजोफ्रीनिया,उन्माद अवसाद इत्यादि),व्यक्तित्व रोग,मदिरापान,मंदबुद्धि,मिर्गी इत्यादि रोग उन लोगों में अधिक पाए जाते हैं,जिनके परिवार का कोई सदस्य इनसे पीड़ित रहा हो।यदि माता और पिता दोनों इन रोगों से पीड़ित हों तो संतान को इनका खतरा लगभग दो गुना हो जाता है।
- शारीरिक गठन:स्थूल (मोटे) व्यक्तियों में भावात्मक रोग (उन्माद,अवसाद या उदासी इत्यादि),हिस्टीरिया,हृदय रोग इत्यादि अधिक होते हैं जबकि लंबे एवं दुबले गठन वाली व्यक्तियों में विखंडित मनस्कता (स्कीजोफ्रीनिया),तनाव,व्यक्तित्व रोग अधिक पाए जाते हैं।
- व्यक्तित्व रोग:अपने में खोए हुए,चुप रहने वाले,कम मित्र रखने वाले,किताबी-कीड़े जैसे गुण वाले,स्कीजायड व्यक्तित्व वाले लोगों में इसकी स्कीजोफ्रीनिया अधिक होता है,जबकि अनुशासित तथा सफाई पसंद,समयनिष्ठ,मितव्ययी जैसे गुणों वाले खपती व्यक्तित्व के लोगों में खपत का रोग (बाध्य विक्षिप्त) अधिक पाया जाता है।
- शारीरिक वृत्तिक कारण:किशोरावस्था,युवावस्था,वृद्धावस्था,गर्भधारण जैसे शारीरिक परिवर्तन कई मनोरोगों का आधार बन सकते हैं।
- अन्य कारण:मस्तिष्क के दाहक रोग,सिर पर चोट लगना,विटामिन या विद्युत-विश्लेष्य तत्वों की कमी,इंद्रिय संबंधी बदलाव इत्यादि भी मनोरोगों का कारण बन सकते हैं।
- वातावरण जनित कारणः
जैविक कारण:
शारीरिक खान-पान संबंधी कारण:कुछ दवाओं,रासायनिक तत्वों,धातुओं,मदिरा तथा अन्य मादक पदार्थों इत्यादि का सेवन मनोरोगों की उत्पत्ति का कारण बन सकता है। - मनोवैज्ञानिक कारणःआपसी संबंधों में तनाव,किसी प्रिय व्यक्ति की मृत्यु,सम्मान को ठेस,कार्य खो बैठना,आर्थिक हानि,विवाह,तलाक,शिशु जन्म,कार्य निवृत्ति इत्यादि मनोरोगों को उत्पन्न करने या बढ़ाने में योगदान देते हैं।
सामाजिक-सांस्कृतिक कारण:सामाजिक एवं मनोरंजक गतिविधियों से दुराव,अकेलापन,राजनीतिक,प्राकृतिक या सामाजिक दुर्घटनाएं (जैसे कि लूटमार,आतंक,भूकंप,अकाल,बाढ़,सामाजिक बोध एवं अवरोध,महंगाई,बेरोजगारी आदि) मनोरोग उत्पन्न कर सकते हैं। - छात्र-छात्राओं में मनोरोग के मुख्य कारण:परीक्षा या प्यार में असफलता (मनोवैज्ञानिक कारण),बुद्धि से संबंधित (मंदबुद्धि इत्यादि),विकास से संबंधित (विकास में कुछ मुख्य बाधाएँ-जैसे पढ़ने,लिखने,बोलने या गणित के प्रश्न हल करने तथा माँ से बिछड़ने पर मानसिक व सामाजिक विकास में पिछड़ जाना),गणित फोबिया,व्यवहार से संबंधित (अधिक चंचलता,अधिक क्रोध,चोरी करना,जुआ खेलना,स्कूल से भाग जाना,आग लगाना,गाली देना इत्यादि),आदत के रोग (अंगूठा चूसना,नाखून काटना,बाल तोड़ना,पागलपन,सिर पटकना इत्यादि),स्कूल से संबंधित (ज्यादा खाना,ना खाना,मिट्टी खाना इत्यादि),नींद से संबंधित (ज्यादा सोना,कम नींद,नींद में अधिक सपने देखना,डरकर उठ जाना,नींद में बोलना,दांत पीसना या चलना इत्यादि),बोलने से संबंधित (हकलाना या तुतलाना इत्यादि) व अन्य (बिस्तर पर पेशाब करना,कपड़ों में पा खाना कर देना,विखंडित मनस्कता अवसाद आदि)।
6.मनोरोगों का निदान (Diagnosis of Psychiatric Diseases):
- मनोरोगों का उचित निदान रोग के सही इतिहास (लक्षणों),शारीरिक एवं मानसिक परीक्षा तथा शारीरिक एवं मानसिक जांच पड़ताल पर निर्भर करता है।
- रोक के बारे में विस्तृत जानकारीःयह जानकारी यदि नजदीकी रिश्तेदार (जो रोगी के साथ रहता हो,पढ़ा-लिखा हो,वयस्क तथा उसी लिंग का हो तथा किसी शारीरिक या मनोरोग का शिकार ना हो और नशेड़ी ना हो) से मिले तो रोग का निदान उचित किया जा सकता है।इसमें रोग के लक्षणों की विस्तारपूर्वक जानकारी तथा आनुवंशिक एवं पारिवारिक वातावरण के प्रभाव के बारे में जानकारी आवश्यक है।
- रोग के बारे में वर्तमान जानकारी (वर्तमानवृत्त),पुराने शारीरिक या मनोरोग की जानकारी (पूर्वरोगवृत्त),परिवार के किसी व्यक्ति को शारीरिक या मनोरोग होने की जानकारी,रोगी के पैदा होने से लेकर बचपन,स्कूल,किशोरावस्था,व्यावसायिक तथा सामाजिक समायोजन,साथी,बच्चों तथा ससुराल के लोगों के साथ संबंध,आदतें एवं शौक इत्यादि के बारे में जानकारी प्राप्त करना आवश्यक होता है।इन सबसे रोग के उचित निदान,उसके कारण तथा अनुकूल बनाने वाली परिस्थितियों का पता लगता है।
- शारीरिक एवं मानसिक परीक्षाःशारीरिक परीक्षा में रोगी की सामान्य शारीरिक परीक्षा तथा अंग-विन्यास (सांस,हृदय,पाचन क्रिया,तंत्रिका तंत्र इत्यादि) की जांच की जाती है।
- मानसिक परीक्षा में रोगी के सामान्य स्वरूप (स्वच्छता,कपड़ों या वातावरण का ध्यान इत्यादि),व्यवहार,मनःप्रेरक गतिविधि (जैसे उन्माद में उतावलापन तथा उदासी में चुप हो जाना इत्यादि),भाव (स्कीजोफ्रीनिया में अनुचित भावुकता या भाव में कमी,उदासी में मन का दुखी होना,उन्माद में बहुत खुश रहना तथा चिंता के रोग में घबराहट इत्यादि),वाक् (उदासी रोग में एक ही लय में बोलना,स्कीजोफ्रीनिया में बीच-बीच में चुप हो जाना,उन्माद में ज्यादा बोलना तथा बीच में न रुक पाना इत्यादि),अवगम या इंद्रियग्राह्यता (भ्रम या विभ्रम),चिंतन (मत,विचार,वहम,बेतुकी बातचीत इत्यादि);स्मृति,वातावरण का आभास,निर्णय शक्ति,बुद्धि,सामान्य ज्ञान,परिज्ञान (अंतर्दृष्टि) इत्यादि की परीक्षा की जाती है।
- शारीरिक तथा मानसिक जांच पड़तालःशारीरिक जांच पड़ताल के अंतर्गत खून,पेशाब,एक्सरे,दिमाग की ई.ई.जी. (विद्युत मस्तिष्क लेख),स्कैनिंग इत्यादि मुख्य हैं।
- मानसिक जांच पड़ताल में मनोवैज्ञानिक जांच जिसमें योग्यता जांच,बुद्धि,व्यक्तित्व या स्मरण शक्ति की जांच प्रमुख हैं,वातावरण के बारे में सामाजिक कार्यकर्ता की सूचना,व्यावसायिक चिकित्सक द्वारा रोगी की जांच पड़ताल,वार्ड में रोगी के व्यवहार की नर्स द्वारा सूचना इत्यादि मुख्य हैं।
- छात्र छात्राओं व बच्चों के मनोरोग बड़ों से भिन्न होते हैं क्योंकि अक्सर इनके कारणों का पता चल जाता है (ज्यादातर बच्चों में मनोरोग माता-पिता,परिवार या स्कूल में तनाव से हो जाते हैं जैसे की मां-बाप से बिछड़ना,पिता का शराब पीना,पिता द्वारा मां को मारना,नए शिशु का जन्म,अन्य भाई या बहनों से ईर्ष्या,परीक्षा या अध्यापक का डर इत्यादि) और इनका उपचार भी सरल एवं सफल है।बच्चों में तनाव के कारण को दूर करके,व्यवहार परिवर्तन से या दवाओं से बहुत से मनोरोगों को दूर किया जा सकता है।
- उपर्युक्त आर्टिकल में मनोरोग का निदान कैसे हो की 6 टिप्स (6 Tips on How to Diagnose Psychopathy),मनोरोगी के प्रति सही दृष्टिकोण कैसे रखें? (How to Have Right Attitude Towards a Psychopath?) के बारे में बताया गया है।
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7.छात्रा के पेट में दर्द (हास्य-व्यंग्य) (Student’s Stomach Pain) (Humour-Satire):
- माँ ने देखा,नन्ही पढ़ते हुए अपना पेट दबा रही है।
- मां:नन्ही,क्या हुआ? पढ़ते हुए पेट क्यों दबा रही है?
- नन्ही:पेट में दर्द हो रहा है।
- मां:सुबह से तुमने कुछ खाया नहीं।खाली पेट पढ़ने के कारण पेट दर्द हो रहा है।कुछ खा लो ताकि पेटदर्द दूर हो जाए।
अगले दिन मां सिर पकड़ कर बैठी थी। - नन्ही:मां आपके सिर में दर्द हो रहा है,सिर खाली हो गया होगा,इसे भर लीजिए।
8.मनोरोग का निदान कैसे हो की 6 टिप्स (Frequently Asked Questions Related to 6 Tips on How to Diagnose Psychopathy),मनोरोगी के प्रति सही दृष्टिकोण कैसे रखें? (How to Have Right Attitude Towards a Psychopath?) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:
प्रश्न:1.मनोविक्षिप्त के लक्षण बताइए। (Describe the symptoms of psychotic disease):
उत्तर:यह रोगों का ऐसा समूह है जिसमें व्यक्ति को अपनी बीमारी का आभास नहीं रहता तथा वह अपनी निर्णय शक्ति खो देता है।इसकी वजह से उसका वास्तविकता से नाता टूट जाता है तथा उसकी मानसिक क्रियाओं जैसे चिंतन शक्ति,व्यवहार,भाव,दृष्टि,व्यक्तित्व इत्यादि में विकार उत्पन्न हो जाते हैं।
प्रश्न:2.विक्षिप्त रोग के बारे में बताइए। (Tell me about the neurotic disease):
उत्तर:इसका तात्पर्य रोगों के ऐसे समूह से है जिनमें मानसिक क्रियाओं में बहुत कम विकार आता है तथा रोगी को बीमारी का आभास रहता है।रोगी तनाव,चिंता,घबराहट तथा अन्य कई तरह के शारीरिक लक्षणों से घिरा रहता है।
प्रश्न:3.व्यक्तित्व रोग क्यों उत्पन्न होते हैं? (Why do personality diseases arise?):
उत्तर:यह रोग व्यक्तित्व के उन गुणों के कारण उत्पन्न होता है जिनकी वजह से व्यक्ति का व्यवहार असामाजिक,आपराधिक या प्रतिकूल हो जाता है तथा उसे अपनी दैनिक गतिविधियों में रुकावट महसूस होती है।गैरकानूनी गतिविधियां,मदिरापान,नशाखोरी,यौन विकृति इत्यादि इन व्यक्तियों की मुख्य जटिलताएं हैं।
- उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा मनोरोग का निदान कैसे हो की 6 टिप्स (6 Tips on How to Diagnose Psychopathy),मनोरोगी के प्रति सही दृष्टिकोण कैसे रखें? (How to Have Right Attitude Towards a Psychopath?) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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Satyam
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