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6 Strategies for Spiritual Development

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1.आध्यात्मिक विकास के लिए 6 रणनीतियाँ (6 Strategies for Spiritual Development),छात्र-छात्राओं के लिए आध्यात्मिक विकास हेतु 6 टाॅप टिप्स (6 Top Tips for Spiritual Development for Students):

  • आध्यात्मिक विकास के लिए 6 रणनीतियों (6 Strategies for Spiritual Development) के आधार पर छात्र-छात्राएं अपनी क्षमताओं को जान-समझकर निखार सकेंगे।अध्यात्म का अर्थ केवल इतना ही नहीं है की पूजा-पाठ,कर्मकांड,मंत्र पाठ कर लेना अथवा रामायण,महाभारत,गीता आदि का अध्ययन कर लेना।
  • अध्यात्म अपने अस्तित्व की अनुभूति करना,अपनी क्षमताओं को पहचानकर उनको जगाने,अपने अंदर झांकने से भी है।यह एहसास शरीर के तल पर जीने से नहीं होता है बल्कि मन और आत्मा तक जीने,समझने और सुप्त प्रतिभा को जगाने से होता है।
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2.अपनी क्षमताओं को पहचानें (Recognize Your Capabilities):

  • जिंदगी की वास्तविक समझ अनुभव और बोध से पैदा होती है।हम अपनी क्षमताओं का समुचित आकलन एवं नियोजन अनुभव करके ही कर सकते हैं।अनुभव किए बगैर न तो हम अपनी जिंदगी जी सकते हैं और न अपने अंदर समाई दिव्य क्षमताओं का परिचय पा सकते हैं।इन सबको जानने,समझने एवं सही नियोजन करने के लिए हमें उसी रूप में उन्हें महसूस करना चाहिए।जिंदगी तर्क नहीं है,जिसे कि सिद्ध किया जा सके।इसे बुद्धि से अभिव्यक्त अवश्य कर सकते हैं,परंतु इसकी वास्तविकता को जानने के लिए,इसकी क्षमता को पहचानने के लिए हमें अंदर झाँकना पड़ेगा,जो कि तर्क से नहीं,बुद्धि से भी नहीं,केवल अनुभव व एहसास से संभव है।
  • हम आखिर कौन हैं? और हमारे अंदर क्या है,जो बाहर फूटकर आना चाहता है? जो अंदर से निकलना चाहता है और जिसे लिए बगैर चैन नहीं मिलता है,वे हमारी वास्तविक क्षमताएं होती हैं।क्षमताएं अंदर सुप्त रूप में पड़ी रहती हैं।इन्हें तभी जगाया एवं जगाकर निर्दिष्ट कार्य में नियोजित किया जा सकता है,जब हम इन्हें गहराई से महसूस करेंगे।इन्हें हम जितना अधिक महसूस करेंगे,उनकी पहचान उतनी ही अधिक होगी।
  • क्षमताओं को महसूस करना कोई बौद्धिक व्याख्या नहीं है और कोई तर्क भी नहीं है कि यह ऐसा होगा या नहीं होगा।इनके बारे में तभी सार्थक रूप से बताया जा सकता है,जब उनकी बारीकियों को हम महसूस करेंगे या हम कह सकते हैं कि महसूस करने की तीव्रता के आधार पर ही जीवन की गहरी परतों में समाई क्षमताओं को उभार सकते हैं।
  • जीवन में असीम क्षमताएं समाई हुई हैं,परंतु ये सोई पड़ी हैं।ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं है,जो इन दिव्य विभूतियों से वंचित होगा।सभी में ऐसी महान विभूतियां समाई हुई हैं कि उनके एक अंश के उभरकर सामने आने पर मनुष्य कहां से कहां पहुंच सकता है।आंतरिक और भौतिक,दोनों ही क्षेत्रों में वह महारथ हासिल कर सकता है।
  • भौतिक क्षेत्र की पद-प्रतिष्ठा-जाॅब,मान-सम्मान,अर्थ-संपदा,सभी कुछ अपनी वास्तविक क्षमता को उभारकर पा सकता है।ठीक इसी प्रकार वह अपनी आंतरिक चेतना की अतल गहराइयों में,अनंत व्यापकता में भी यात्रा कर सकता है।उसके लिए फिर कुछ भी असंभव नहीं रह जाता है,परंतु इन सबके लिए हमें अपनी दिव्य विभूतियों की क्षमता का स्पर्श करना पड़ेगा,उसमें डूबना एवं उतरना पड़ेगा,गहरे गोता लगाना पड़ेगा,तभी ऐसा सब कुछ होना संभव हो सकता है।
  • जीवन अनुभवों का जखीरा है,बातें बनाना नहीं है।जो बातें बनाता रहता है शेखचिल्ली की तरह और जो इन शेखचिल्ली की बातों से फूला नहीं समाता है,वह जिंदगी में कुछ भी सार्थक नहीं कर सकता है।वह निरी कल्पना से जिंदगी को सुखद मानता है,परंतु जिंदगी की राहें कँटीले कांटों से अटी पड़ी हैं।इन कांटों को भेदकर ही गुलाब का सुखद स्पर्श किया जा सकता है।
  • ऊपरी धरती की मिट्टी एवं पत्थर को देखकर निराश-हताश होने वालों की कमी नहीं है,परंतु वे जांबाज विरले ही होते हैं,जो धरती की छाती को फोड़कर मीठी जलधारा का स्रोत बहा देते हैं।एक ने जिंदगी में निरी कल्पना की,तर्क दिया परंतु दूसरा उसे रूबरू हुआ,अनुभव किया और उसने अनुभव के लिए अपनी समस्त कुशलता को झोंक दिया।इसके बाद ही वह सब कुछ उपलब्ध कर सका।

3.अपनी क्षमताओं को निखारें (Refine Your Abilities):

  • क्षमताओं को हम निखार सकते हैं और इन्हें कुंद कर राख की परतों में दबा सकते हैं।क्षमता को सतत प्रक्रिया से उभारा जा सकता है।निरंतर प्रयास से क्षमता निखरती है,परंतु इससे ठीक विपरीत रुक जाने से यह छिप जाती है,ढक जाती है।क्षमता तो राख की परतों में ढकी हुई होती है।जो इसे महसूस करता है,उसे अंगारों के समान धधका देता है।
  • जैसे कई अभ्यर्थी लेख लिखना जानते हैं।यदि उनकी लेखनी में आग बरसती है,सोए हुए को भी जगा सकती है,उठ खड़ा होने के लिए विवश कर देती है,अंदर से झकझोर देती है तो ऐसे लेखकों की मांग चारों ओर रहती है।प्रकाशक पुस्तकें लिखने के लिए ऐसे लेखकों की तलाश में ही रहते हैं अथवा ऑनलाइन अनेक वेबसाइट ऐसे लेखकों को हायर कर लेती है।ऐसे लेखक अनगिनत हृदयों में दबी करुणा को भी उभार सकता है।ऐसे बहुत लेखक हुए हैं जिन्होंने बहुत से लोगों की दिशा-धारा पलट दी है।उनकी लेखनी जनमानस को झकझोर देती है।उनका हर लेख ऊर्जा से लबालब भरा रहता है,लोग उनके लेखकों को पढ़ने के लिए लालायित रहते हैं,प्रतीक्षा करते रहते हैं कि लेखक का अगला लेख कैसा होगा?
  • इतिहास में कई क्रांतियों को ऐसे लेखकों ने जन्म दिया है।बाल गंगाधर तिलक केसरी,मराठा अखबार में लेख लिखा करते थे तो लोगों को उनके लेख की प्रतीक्षा रहती थी।माया पत्रिका में बीडीएस गौतम तथा शाहिद चौधरी के लेख बहुत ही प्रेरक,ज्ञानवर्धक,स्वस्थ संदेश देने वाले ,शिक्षाप्रद होते थे।माया के पाठकों को उनके लेखों की प्रतीक्षा रहती थी।वस्तुतः माया पत्रिका अपने आपमें अनूठी पत्रिका थी।माया पत्रिका की स्थापना क्षितीन्द्र मोहन मित्र ने स्वतंत्रता आंदोलन के समय 1929 में की थी।ऐसे महामानव विपत्तियों की आग में तपकर कुंदन बनते हैं।आज भले ही माया पत्रिका का भौतिक रूप से प्रकाशन बंद हो गया परंतु आज भी उनके लेख विचारोत्तेजक,प्रेरणाप्रद,उच्च आदर्श और मानदंडों पर खरे उतरते हैं।उसमें अधिकतर राजनीतिक,सामाजिक,शिक्षा,स्वास्थ्य से संबंधित लेख छपा करते थे।यह जितीन्द्र मोहन की अद्वितीय निष्ठा और कर्मठता का ही फल था कि उन्होंने पत्रकारिता के माध्यम से जनचेतना जगाई।वस्तुतः किसी में कुछ कर गुजरने का माद्दा हो तो क्या नहीं किया जा सकता।पत्थरों में भी पेड़ उगते देखे गए हैं।
  • तात्पर्य यह है कि जब हम अपनी क्षमताओं को महसूस करते हैं तो अंतःप्रेरणा जगती है और चीजों को हम साफ-स्वच्छ देख सकते हैं।अंतःप्रेरणा एक सघन अनुभव का परिणाम है,जो हमारी क्षमताओं का आकलन करने में अत्यंत सहायक है।यह अंतःप्रेरणा तभी जगती है,जब हम अपनी क्षमताओं को बड़ी गहराई से एवं पास से अनुभव करते हैं।यह प्रक्रिया जितनी सघनता से होगी एवं अनवरत होगी,हमारी अंत:प्रेरणा उतनी ही व्यापक होगी।अथक एवं अविरल श्रम ही इसको जगाने का राज एवं रहस्य है,परंतु श्रम में भी अंतर है।मजदूर का श्रम शरीर के तल पर होता है,लेकिन इंजीनियर मन के तल पर श्रम करता है।मन की सुप्त शक्तियां उसके श्रम हथोड़े से जागती है और वह तभी किसी बड़ी बिल्डिंग,पुल आदि की कल्पना कर सकता है।यह एक चुनौती है,जिसे क्षमता को विकसित करने वाले स्वीकारते हैं,जिससे उनकी क्षमता में भारी अभिवृद्धि होती है और वे उसी गति से कार्य करते चले जाते हैं।

4.क्षमताओं को उभारना ही प्रतिभा है (To Raise High Capabilities is Talent):

  • चुनौतियों का सामना करने वाला अपनी क्षमताओं पर विश्वास करता है और किसी भी कार्य में जुट जाता है तथा उसे पूरा करके ही रूकता है,परंतु जो इसका एहसास नहीं करते,वे मसीहा ढूंढते हैं और उस मसीहा पर अपनी इच्छाओं,वासनाओं और महत्त्वाकांक्षाओं का पूरा भार लाद देते हैं।यह अतिनिर्भरता हमें पंगु बनाती है,हमारी क्षमताओं को जगाने में बाधक होती है।ऐसी स्थिति में हमें यह नहीं पता रहता कि हमें करने की जरूरत क्या है? और हम कुछ कर ही नहीं सकते।हर छोटी-छोटी बातों के लिए मसीहा का दामन थाम उसका खून चूसते रहते हैं।यह विकास नहीं,विनाश की बड़ी भारी विडंबना है;जबकि विकास आत्मानुभव की प्रगाढ़ता है।यह अनुभव दरकता,टूटता,बंटता नहीं है।
  • क्षमताओं के आकलन से परिस्थितियों का आकलन हो जाता है।क्षमता की सही समझ एवं परिस्थितियों के उचित नियोजन से विकास की ऐसी अविरल धारा फूट पड़ती है,जिसे हम ‘प्रतिभा’ कहते हैं।प्रतिभा कुछ नहीं है,बल्कि हमारी क्षमताओं एवं परिस्थितियों के बीच सामंजस्य स्थापित कर श्रेष्ठ एवं नया करने के लिए सतत अवसर तलाशने तथा उसे कर गुजरने के हौसले का नाम है।प्रतिभा अपनी क्षमताओं में जीती है,उन्हें अनुभव करती है।वह संतुलित होती है- वह न तो अति उत्साह में और न अति निराशा में रहती है।अति उत्साह का तात्पर्य है हम सब कुछ कर सकते हैं,परंतु अति निराशा कहती है कि चलो छोड़ो इस दुनिया में रखा क्या है! यों पड़े रहना और ठोकरें खाना उसकी नियति है,परंतु ध्यान रहे,हम परमात्मा नहीं है कि सब कुछ कर सकते हैं।ऐसा भी नहीं है कि हम कुछ नहीं कर सकते हैं।अनुभव की बात है।हम अपनी क्षमताओं को जितना अनुभव करेंगे,हमारी प्रतिभा उतनी ही विकसित होगी।

5.अपने अस्तित्व का अनुभव करना अध्यात्म है (Experiencing Your Existence is Spirituality):

  • जिंदगी कोई कोरी बौद्धिक व्यवस्था नहीं है।यह अनुभव की सघनता एवं प्रगाढ़ता का आगार है।इसको प्रगाढ़ता से अनुभव करने वाले को ही ज्ञानवान कहते हैं।सच्चे ज्ञानवान का अनुभव सागर के समान गहरा एवं हिमालय से भी ऊंचा होता है।
  • अनुभव से जो मिलता है,वही ज्ञान है।बिना अनुभव से मिली बातें एवं तथ्य हमारे लिए एक आंकड़ा मात्र हैं।भले हम समाज में कितने ही प्रतिष्ठित क्यों ना हों,भले हम कितना ही अच्छा क्यों ना बोल लें और कितने ही शास्त्रों के श्लोकों का क्यों न बखान कर लें,पर विपरीत परिस्थितियों में,गंभीर चुनौतियों में यदि उनका एक मंत्र,सूक्त या उक्ति हमारे काम नहीं आ सकी तो समझना चाहिए की सारी बातें एवं विद्वता व्यर्थ है।ठीक इसके विपरीत जो चीजों को अनुभव करता है,जो उनमें डूबा रहता है,वह बोले तो क्या और ना बोले तो क्या,सच्चा ज्ञानी वही है।
  • महर्षियों ने जिंदगी के अस्तित्व को गहराई से देखा,परखा,समझा एवं उस पर गंभीर प्रयोग किए,परंतु उन्होंने बोला नहीं मौन हो गए।
  • कई ऋषियों ने इसी तत्त्व को अनुभव किया और इससे ऐसा विस्फोट किया की सारी दुनिया उनके पीछे-पीछे चल पड़ी।दोनों ही रास्तों पर चलने वाले ऋषियों ने अपने अनुभव की पराकाष्ठा पर जीवन जीया,दोनों ही रास्ते पर चलने वाले महाज्ञानी के रूप में जाने जाते हैं।
  • भले वह विदेह राजा जनक,भक्त अमरीश,मुनि वेदव्यास,शुकदेव जी हों या महान गणितज्ञ ब्रह्मगुप्त,आर्यभट,भास्कराचार्य हो या होमी जहाँगीर भाभा,चंद्रशेखर वेंकटरामन,सुब्रमण्यम चंद्रशेखर,मेघनाथ साहा,कर्य्यमाणिक्य श्रीनिवास कृष्णन हों।आध्यात्मिक एवं भौतिक क्षेत्र में ऋषियों का त्याग,तप रहा है कि उन सभी का इस लेख में वर्णन करना संभव नहीं हो सकता है।
  • हमें भी अनुभव करना चाहिए।अध्यात्म अपने अस्तित्व को गहराई से अनुभव करने का नाम है।ध्यान में हम अनुभव करते हैं,अपने इष्ट पर एकाग्र होते हैं तथा वह एकाग्रता हमें उसका जीवनबोध कराती है।इससे अंतः प्रेरणा जगती है,अंतर्दृष्टि खुलती है।यही अध्यात्म का द्वार है,जहां से हम अपने अस्तित्व में जमे-दबे संस्कारों का परिष्कार,परिमार्जन करते हैं तथा इसकी वास्तविक क्षमताओं को विकसित करते हैं।हम जब अपने अंदर की क्षमताओं का खनन करते हैं,खुदाई करते हैं तो आंतरिक विभूतियां जाग्रत होती है और जब भौतिक जगत में इसी प्रक्रिया को क्रियान्वित करते हैं तो भौतिक उपलब्धियां हस्तगत होती हैं।यह तो हमें तय करना है कि हमारी क्षमताएं क्या हैं और हमें किस ओर अग्रसर होना है।
  • हर व्यक्ति दिव्य क्षमतावान है परंतु सोचने वाली बात है कि हम क्या कर सकते हैं और इस धरती पर क्या करने के लिए पैदा हुए हैं? इसे जानने के लिए एक आसान तरीका है कि कोई चीज हमारे अंदर ऐसी है,जो अभिव्यक्त कर लेने के लिए बार-बार छटपटाती है।उसे अभिव्यक्त कर लेने के बाद एक अनिर्वचनीय खुशी मिलती है।समझ लेना चाहिए कि यही हमारा कार्य है।अगर ऐसा ना हो सके तो किसी कुशल एवं योग्य मार्गदर्शक से सहायता लेनी चाहिए,जो हमारे मन के आर-पार देख सके।ध्यान रहे,शास्त्र हो या मसीहा,ये सभी हमें राह बताते हैं।चलना तो हमें है।क्षमताओं का अनुभव तो हमें करना है।जिंदगी हमें जीनी है।
  • हमें बुद्धि से नहीं,अनुभव से सीखना चाहिए।बौद्धिक व्याख्या से जिंदगी नहीं चलती,वह अनुभव की डगर से गुजरती है।आइए,हम अपनी जिंदगी को स्वयं अनुभव करें,इसकी अनंत क्षमताओं को विकसित करें एवं देवत्व की राह में बढ़ चलें।

6.अध्यात्म का दृष्टांत (Illustration of Spirituality):

  • एक गणित का विद्यार्थी था उसके पास धन-दौलत की कोई कमी नहीं थी।उसने एक गणितज्ञ का नाम सुना कि वे केवल गणित के मर्मज्ञ विद्वान ही नहीं है बल्कि आध्यात्मिक विद्या के जानकार भी हैं।वह बहुत-सी धनसंपत्ति उपहारस्वरूप लेकर अपने मित्र के साथ गणितज्ञ के पास गया।
  • वह उनके कोचिंग संस्थान में गणितज्ञ महोदय को बोला कि उसे अध्यात्म विद्या,ब्रह्म विद्या का उपदेश दें तथा यह उपवासस्वरूप धनराशि ग्रहण करें।महान् गणितज्ञ निर्लोभी थे।उन्होंने विद्यार्थी से धनराशि लेना अस्वीकार कर दिया और कहा की वह एक वर्ष बाद पुनः आने पर अध्यात्म विद्या और ब्रह्म विद्या के बारे में उपदेश की संभावना व्यक्त की और कहा कि इस एक वर्ष की अवधि में वह अंतर्मुखी होने का अभ्यास करें।धन-संपत्ति में आसक्ति न रखें और अपनी वृत्तियों से मुंह मोड़े।
  • धनाढ्य विद्यार्थी निराश लौटा और उसे बहुत बुरा लगा तथा क्षुब्ध भी था।उसके मित्र ने उसकी चिंता दूर करते हुए कहा कि मित्र! भूखे को ही अन्न पचता है।जिज्ञासु अर्थात् जिसे जानने की तीव्र उत्कंठा हो,मुमुक्षु,साधक को ही ज्ञान का लाभ मिलता है।गणितज्ञ ने एक वर्ष की साधना देकर आपकी जिज्ञासा को परखा है।अनधिकारी में ज्ञान को पचाने की सामर्थ्य नहीं होती है।
  • मनोरंजन के लिए,विनोद के लिए केवल गणितज्ञ की अध्यात्म में रुचि और प्रसिद्धि सुनकर अध्यात्म ज्ञान प्राप्त करना समय की बर्बादी समझकर ही गणितज्ञ ने आपको लौटाया है।उसमें बुरा मानने जैसी कोई बात नहीं है।गणितज्ञ का अभिप्राय विद्यार्थी के समझ में आ गया।
  • एक वर्ष तक गणित के विद्यार्थी ने ब्रह्मचर्य और संयम का पालन कर अपनी वृत्तियों पर नियंत्रण कर आत्मज्ञान प्राप्त करने के लिए गणितज्ञ के पास पुनः कोचिंग में पहुंचें।गणितज्ञ ने उस विद्यार्थी को गले से लगा लिया।वे बोले धैर्यवान,ब्रह्मचारी,संयमी,श्रद्धावान,जिज्ञासु ही आध्यात्मिक ज्ञान के अधिकारी होते हैं।अब तुम अध्यात्म ज्ञान का लाभ उठा सकोगे।
  • वस्तुतः आधुनिक युग में ऐसे शिक्षक और गणित शिक्षक का मिलना दुर्लभ है जो गणित के ज्ञान,अपने विषय के ज्ञान के साथ-साथ आध्यात्मिक ज्ञान में भी पारंगत हो।आधुनिक शिक्षा व्यावसायिक हो गयी है।अतः शिक्षकों का ध्यान ज्यादा से ज्यादा धन बटोरना रह गया है।ऐसे शिक्षक विरले होते हैं जो गुरु का दर्जा प्राप्त करने की क्षमता रखते हैं।इसीलिए युवक-युवतियां तथा आधुनिक पीढ़ी गलत रास्ते की तरफ अपराध,सेक्स तथा अनेक विकृतियों की ओर मुड़ रही है।वे आध्यात्मिक शिक्षा को आउट ऑफ डेट समझते हैं।यदि कोई शिक्षक ऐसे उपदेश देते भी हैं तो उन्हें दकियानूसी,पुरातनपंथी,ढोंगी,आधुनिक समय के साथ न चलने वाला,अंधविश्वासी समझा जाता है।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में आध्यात्मिक विकास के लिए 6 रणनीतियाँ (6 Strategies for Spiritual Development),छात्र-छात्राओं के लिए आध्यात्मिक विकास हेतु 6 टाॅप टिप्स (6 Top Tips for Spiritual Development for Students) के बारे में बताया गया है।

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7.शिक्षक का पुत्र गणित अच्छा पड़ता है (हास्य-व्यंग्य) (Teacher’s Son Teaches Maths Well) (Humour-Satire):

  • चिंटू (गणित शिक्षक से):आपसे अच्छी गणित तो आपका पुत्र पढ़ाता है जबकि आपको गणित पढ़ाते हुए इतना समय व्यतीत हो गया है।
  • गणित शिक्षक:मेरा बेटा मुझसे 24 साल छोटा है,तरोताजा है,ऊर्जावान है,आधुनिक स्टाईल के अनुसार चलने वाला है,इसलिए
  • छात्र-छात्राएं उसी से पढ़ना पसंद करते हैं।

8.आध्यात्मिक विकास के लिए 6 रणनीतियाँ (Frequently Asked Questions Related to 6 Strategies for Spiritual Development),छात्र-छात्राओं के लिए आध्यात्मिक विकास हेतु 6 टाॅप टिप्स (6 Top Tips for Spiritual Development for Students) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.धर्म और धन में क्या अंतर है? (What is the Difference Between Duty and Money?):

उत्तर:अध्यात्मिक विषय का बल धर्म है वैसे ही भौतिक विषय का बल धन है।धर्म के बिना आध्यात्मिक क्षेत्र में गति और उन्नति नहीं हो सकती और धन के बिना भौतिक क्षेत्र में।धर्म तो आध्यात्मिक ही नहीं,भौतिक क्षेत्र में भी उपयोगी सिद्ध होता है पर धर्म सिर्फ भौतिक क्षेत्र में ही उपयोगी सिद्ध होता है।

प्रश्न:2.अध्यात्म और धर्म में क्या अंतर है? (What is the Difference Between Spirituality and Duty?):

उत्तर:अध्यात्म ज्ञान पक्ष है तथा धर्म उसका आचरण एवं क्रियापक्ष है जिस पर चलकर जीवात्मा अपनी उन्नति करता चला जाता है।धर्म के बिना उसकी उन्नति नहीं होती।

प्रश्न:3.सच्ची संतुष्टि कब मिल सकती है? (When Can True Satisfaction Be Found?):

उत्तर:जब हम भौतिक उन्नति के साथ-साथ भगवान की आराधना,आत्मोन्नति के उपाय,योग-साधना,तपस्या,परोपकार और जनकल्याण करने वाली गतिविधियां करते हैं तभी सच्ची संतुष्टि को उपलब्ध हुआ जा सकता है।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा आध्यात्मिक विकास के लिए 6 रणनीतियाँ (6 Strategies for Spiritual Development),छात्र-छात्राओं के लिए आध्यात्मिक विकास हेतु 6 टाॅप टिप्स (6 Top Tips for Spiritual Development for Students) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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