6 Best Techniques on How to Be Human
1.इंसान कैसे बनें की 6 तकनीक (6 Best Techniques on How to Be Human),इंसान बनने की राह पर कैसे चलें की 6 बेहतरीन युक्तियाँ (6 Best Tips on How to Walk to Becoming a Human Being):
- इंसान कैसे बनें की 6 तकनीक (6 Best Techniques on How to Be Human) के आधार पर बताया गया है कि हमें इंसान बनने के लिए किन-किन गुणों को धारण करना आवश्यक है और इंसान क्यों बनें? यों फुटकर रूप से हम जानते हैं कि इंसान बनना कितना जरूरी है परंतु उन गुणों को धारण करना कठिन है।
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2.युवाओं में इंसान बनने की तड़प (The yearning to become a human being among the youth):
- कितना ही छोटा आदमी क्यों ना हो,उसे कभी मनुष्य से हीन मत समझना।यही समझना कि वह महान् जाति का घटक है।किसी विशिष्ट जाति,कौम,राष्ट्र या देश का है,ऐसा कभी मत सोचना।
- प्रत्येक मनुष्य मानव की आत्मा लेकर जन्म लेता है,यह बात दूसरी है कि समस्त मनुष्यों की आत्मा अथवा आत्म तत्त्व का विकास समान रूप से नहीं होता है।विकास के स्तर की असमानता के मूल में कई हेतु कारण स्वरूप होते हैं।इसमें पूर्व जन्मों की श्रृंखला को प्रधानता दी जाती है।इसी कारण वह शासन पद्धति आदर्श शासन पद्धति मानी जाती है जिसमें प्रत्येक मनुष्य को पुरुष एवं नारी को असमान विकास के लिए समान अवसर प्राप्त होते हैं।
- इतिहास साक्षी है कि हमारे पूर्वजों में अनेक असाधारण गणितज्ञ,वैज्ञानिक,महापुरुष अथवा श्रेष्ठ मानव हुए हैं।पिछली शताब्दी में भी हमने अनेक ऐसे महान गणितज्ञों को पाया है जो न केवल गणितज्ञ ही थे बल्कि महामानव भी कहे जाते हैं।इन्सान निर्माण की परम्परा अबाध,अखंड एवं सनातन है।वर्तमान काल में इंसान निर्माण की परंपरा शिथिल हो गई है और हम कभी-कभी कह उठते हैं कि आजकल वह प्रतिभा लुप्तप्राय हो गई है जो मनुष्य को मानवता की ओर उन्मुख करती है।
- हमारे युवा वर्ग को भविष्य का कर्णधार बनना है,अध्यापक,प्राध्यापक,गणितज्ञ,वैज्ञानिक,शासक,प्रशासक,समाजसेवी आदि रूपों में।अतएव हमारे युवक-युवतियों का यह कर्त्तव्य है कि वे प्राणपण से इंसान अथवा महान व्यक्ति बनने का प्रयत्न करें।कुछ व्यक्तियों का कहना है कि इंसान की शक्ति,गरिमा उसके आत्मविश्वास,शौर्य,पराक्रम,सामर्थ्य आदि लुप्त हो गए हैं।
- अपूर्व पुरुषार्थ संपन्न मनुष्य आज निर्बल,असहाय,दरिद्र,व्याकुल,हीन,पीड़ित एवं संत्रस्त अनुभव करने लगा है।ऐसा प्रतीत होता है कि मानव महानता की कुंजी को कहीं रखकर भूल गया है।विशाल ब्रह्मांड की सापेक्षता में वह लघुत्व का अनुभव करने लगा है,परंतु महान बनने की तड़प,कुछ कर गुजरने की छटपटाहट हमारे युवा वर्ग में प्रायः देखने को मिल जाती है।अधिक-से-अधिक हम यह कह सकते हैं कि आज इस बात की महती आवश्यकता है कि युवा वर्ग को आवश्यक प्रेरणा प्रदान की जाए,महानता की कुंजी उसको इंगित की जाए-यह कहकर “का चुप साध रहेहु बलवाना।”हमारे युवा वर्ग को इस कथन पर गंभीरता पूर्वक विचार करना चाहिए-“मानव की महत्ता इसमें नहीं है,जो कुछ वह प्राप्त कर लेता है,बल्कि उसमें है जिसे वह प्राप्त करने की आकांक्षा करता है।”
- जो कुछ मिल जाए उसी में संतोष कर बैठना अपनी क्षमताओं,अपने आदर्श की अवहेलना करना है।हम जिस लक्ष्य को प्राप्त कर लेते हैं तभी हमें वहां उससे आगे बढ़ने का लक्ष्य दिखाई देने लगता है।लक्ष्य तक पहुंचने के बाद हमें लगता है कि उससे आगे का लक्ष्य प्राप्त करना अभी बाकी है।इस प्रकार अनवरत अपने लक्ष्य की ओर आगे कदम बढ़ाते रहना ही महानता की ओर अग्रसर होना है।इंसान बनने की ओर कदम बढ़ाने की यही कुंजी है कि सतत आगे बढ़ते रहना जिसका कोई ओर छोर नहीं है बल्कि क्षितिज की ओर आगे-आगे बढ़ते जाना है।
3.महान बनना या नराधम बनने की कुंजी (The key to becoming great or becoming a low person):
- मानव चरित्र न बिल्कुल श्यामल होता है और न बिल्कुल धवल।उसमें दोनों रंगों का विचित्र सम्मिश्रण होता है।स्थिति अनुकूल होने पर मनुष्य महान वैज्ञानिक,गणितज्ञ,कलाकार,ऋषि तुल्य हो जाता है और प्रतिकूल होने पर वही विध्वंसक वैज्ञानिक,नराधम गणितज्ञ बन जाता है।मानवता के हित में कार्य करें वह महान वैज्ञानिक,गणितज्ञ बन जाता है और मानवता को नष्ट करने का कार्य करे वह नराधम वैज्ञानिक,गणितज्ञ बन जाता है।हमारे विचार से मानव बनने का,श्रेष्ठ मनुष्य बनने का सर्वमान्य उपाय यह है कि हम अपने दोषों को पहचानें और उनको दूर करने का प्रयत्न करें।साथ ही सद्गुणों का विकास करें,अवगुणों का प्रक्षालन स्वयं ही सद्गुणों को जन्म देता है।
- स्थिति परिस्थितियाँ स्वयं में न अनुकूल होती हैं और न प्रतिकूल होती हैं।हमारा विवेक उन्हें अनुकूल अथवा प्रतिकूल बना देता है।उदाहरणार्थ सन् 1947 में कश्मीर की समस्या को यदि संयुक्त राष्ट्र संघ में न ले जाया गया होता,तो आक्रमणकारियों को खदेड़ कर परिस्थिति को सर्वथा अनुकूल बनाया जा सकता था।एक ही ग्रह नक्षत्र में अनेक बालक-बालिकाओं का जन्म होता है।उनकी परिस्थितियाँ समान होती हैं,परंतु उनकी उपलब्धियां भिन्न होती है।
- स्पष्ट है कि मानव जिस मार्ग पर चलकर दिव्य या महान बनता है,उसकी कुंजी उसके पास रहती है।यह बात दूसरी है कि वह प्रमादवश यह समझ बैठे कि कुंजी उसके पास नहीं है।हम यहां यह निवेदन कर देना आवश्यक समझते हैं कि जिन मार्गों पर चलकर हमारे पूर्वज या अग्रज महान बने थे,उन्हीं मार्गों पर चलकर ही हम महान् गणितज्ञ,वैज्ञानिक,महापुरुष,महामानव,महान कलाकार आदि बन सकेंगे।हम पुरातन गरिमा को प्राप्त करने का प्रयत्न अवश्य करें,परंतु पुरातनवादी,दकियानूसी,पाखंडी,अन्धविश्वासी बनकर नहीं,अपने व्यक्तित्व तथा देश काल के अनुरूप आचरण करें।
- जीवन मूल्य प्रायः शाश्वत रहते हैं,परंतु उनको जीवन में ढालने की पद्धति व्यक्ति सापेक्ष होती है।हम शाश्वत जीवन-मूल्यों को पहचानें एवं निर्धारित आदर्शों को प्राप्त करने के लिए अपने अनुकूल मार्ग का चयन,निर्माण एवं अनुसरण करें।यह हमारा सौभाग्य है कि हमारा युवावर्ग आंख मूंदकर चलने को,हर प्राचीन आस्था को बिना तौले स्वीकार करने को तैयार नहीं है।वह केवल उस सत्य को अपनाने को तैयार है जो तर्क तथा सत्य पर आधारित हों।
- पुरातन सभ्यताएँ इतनी ऊँचाइयों तक क्योंकर उठ सकी थीं,इस रहस्य को जानना परम आवश्यक है,वह रहस्य ही तो वस्तुतः महानता की कुंजी है।वह कुंजी यह है कि कतिपय शाश्वत मूल्यों एवं श्रेष्ठ आधार पर ही जीवन को चलाने पर महानता की उपलब्धि की जा सकती है।किसी भी काल के,किसी भी देश के मानव-रत्नों की जीवनी का विश्लेषण करने पर सर्वथा स्पष्ट रूप से विदित होता है कि जब-जब उन शाश्वत मूल्यों का अनुसरण किया गया तब-तब दिव्य व्यक्तियों एवं श्रेष्ठ समाजों का निर्माण हुआ है।अवसरवादिता द्वारा प्रेरित हम जब मूल्यों से समझौता करने लगते हैं तब व्यक्ति एवं समाज दोनों पराभव की ओर उन्मुख हो जाते हैं।हमारे देश में उत्कर्ष का बहुत बड़ा कालखंड भी देखा है और अधःपतन,गुलामी,त्रासदी का भी कालखंड देखा है।उत्कर्ष की ओर बढ़ने के लिए हमें उन महान गणितज्ञों,वैज्ञानिकों,महापुरुषों,महान कलाकारों आदि के जीवन चरित्र को देखना होगा,झांकना होगा।
4.अपने अंदर की इंसानियत को उभारे (Unleash your inner humanity):
- दिव्य गुणों से हमारा तात्पर्य है मानवोचित गुण वे गुण जो हमारी अंतर्निहित मानवता को उभारते हैं और उसकी प्रेरणा के अनुसरण को विवश करते हैं।मानवता का अर्थ देवत्व की प्राप्ति अथवा आसमान की ओर के जाने वाले मार्ग की प्राप्ति नहीं है।मानवता का अर्थ है श्रेष्ठ मानव बनना,अभेद बुद्धि एवं प्रेम का विकास करना।मानव का फरिश्ता बनना आसान है,उसका मानव अथवा इंसान बनना दुश्वार (अत्यंत कठिन) होता है।ठीक ही कहा गया है-“मानव का दानव होना उसकी पराजय है,मानव का महामानव या फरिश्ता बनना उसका चमत्कार है और मनुष्य का मानव होना उसकी जीत है।”
- प्रकृति ने केवल मनुष्य को ये विशेष शक्तियां प्रदान की हैं-मानसिक,नैतिक,आध्यात्मिक,कलात्मक संवेदनशीलता तथा विवेकशीलता अर्थात् मनुष्य ही अपनी शारीरिक,मानसिक,बौद्धिक और आत्मिक शक्तियों का विकास कर सकता है।इनमें किसी भी एक शक्ति का पूर्ण विकास महानता के मार्ग की कुंजी साबित हो जाएगा।आप अपनी इच्छा एवं सामर्थ्य के अनुसार उपर्युक्त किसी शक्ति के विकास में लग जाइए,महानता का द्वार आपके सम्मुख उन्मुक्त हो जाएगा।याद रखिए अभी तक पूर्ण मानव का निर्माण संभव नहीं हो सका है।अपने सार्थक प्रयत्नों द्वारा आप अपने मानव को मानवता की ओर एक कदम आगे ले जा सकते हैं।चीन देश की एक कहावत है-“संसार में दो ही व्यक्ति ऐसे हैं जो सही शब्दों में मानव हैं-एक जो मर चुका है,दूसरा जिसका अभी तक जन्म नहीं हुआ है।
5.युवा इंसान कैसे बनें? (How to become a human being?):
- युवा वर्ग,छात्र-छात्राएं अपने जीवनयापन का कोई सा भी क्षेत्र चुनें।अध्यापक,प्राध्यापक,गणितज्ञ,इंजीनियर,डॉक्टर,खिलाड़ी,कलाकार,शासक,आईएएस आदि अपनी क्षमता,योग्यता व मौलिक गुणों के अनुसार बन सकते हैं।परंतु जिस क्षेत्र को अपने करियर के लिए चुने उसमें दिन-प्रतिदिन कोई भी कार्य करने से पहले यह अवश्य सोचें कि इस कार्य को करने से इन्सानियत जिन्दा रहेगी या इन्सानियत मर जाएगी।
- उदाहरणार्थ एक कोचिंग संस्थान छात्र-छात्राओं को परिश्रम करके उन्हें परीक्षा में उत्तीर्ण करने के लिए तैयार कर सकता है और चाहे तो उन्हें परीक्षा में नकल करने,अनैतिक तरीके से उत्तीर्ण करने की तकनीक भी सिखा सकता है।यानी किसी विद्या का उपयोग या दुरुपयोग करना हमारे हाथ में ही होता है।यदि हम उसका उपयोग करते हैं,मानव बनने की राह पर चलते हैं तो वह विद्या हमें महानता की ओर ले जाती है और यदि उसका दुरुपयोग करते हैं,नराधम,नरपिशाच बनने की राह पर चलते हैं तो वह विद्या हमें इंसान नहीं हैवान बना देती है।
- गलत राह पर चलने के लिए हमारे मित्र,सहपाठी,माता-पिता या अन्य कोई भी निकट सहयोगी कई उदाहरणों व तर्कों से हमें संतुष्ट करने की कोशिश करते हैं और अपनी बात को सही ठहराते हैं।यदि गलत मार्ग पर चलने की राह पकड़ ली तो गलत काम करते समय हमें हमारी अंतरात्मा हमें बार-बार धिक्कारती है।परंतु फिर भी नहीं सम्हलें तो एक बार गलत कार्य की दल-दल में फँसने के बाद उससे निकलना मुश्किल हो जाता है।हिरोशिमा व नागासाकी पर परमाणु बम गिराकर लाखों लोगों को काल कवलित करने वाले वैज्ञानिक ही थे।परंतु इस कार्य को करने से मानवता कलंकित ही हुई।
6.मानवता का दृष्टांत (The Parable of Humanity):
- एक महान गणितज्ञ थे।बचपन से युवावस्था तक के समय को उन्होंने अकेलेपन में गुजारा था।माँ की मानसिक स्थिति ठीक नहीं थी,पिता का स्वभाव थोड़ा कठोर था।पढ़ने के लिए उन्हें घर से अपनों से दूर रहना पड़ा।यह अकेलापन उन्हें बार-बार घेर लेता था।कहीं प्यार पाने की चाहत उनके अंतर्मन में घेर लेता था।उन्होंने विश्वविद्यालय से एमएससी (गणित) प्रथम श्रेणी में किया था।प्रथम श्रेणी में होने के साथ उन्हें विश्वविद्यालय में भी प्रथम स्थान प्राप्त हुआ था।इसी के साथ उन्होंने गणित में शोध (पीएचडी) भी विशिष्ट उपलब्धि के साथ उत्तीर्ण की थी।सांसारिक सुखों के अनेक द्वार उनके सामने खुले थे।इस बीच उनका विवाह भी हो गया।सामान्य महिलाओं की भाँति उनकी पत्नी की चाहत थी कि उनका पति दुनिया के सभी झमेलों से दूर रहकर सुख,शांति और सुरक्षा का जीवन जिए।अपनी प्रतिभा से घर-गृहस्थी के लिए साधन जुटाएं,पर महान गणितज्ञ को यह स्वीकार न था।उन्होंने सोचा व्यक्तिगत प्रेम जीवन के महान उद्देश्य से श्रेष्ठ नहीं हो सकता।
- घर के लोग तो अपने पुत्र की प्रतिभा पर मुदित थे।उन सबने इन्हें लेकर अनेकों रम्य कल्पनाएं कर रखी थीं,पर महान् गणितज्ञ के हृदय में तो मानवता के लिए कुछ कर गुजरने की कल्पनाएं मन में हिलोरें ले रही थीं।भोग की बजाय उन्होंने त्याग को,सेवा को,संवेदना को चुना।उन्होंने आश्रम खोला और छात्र-छात्राओं को गणित की शिक्षा देने लग गए।मन-मसोस कर पत्नी को भी उनका साथ देना पड़ा।वे अक्सर कहा करते थे कि प्रतिभा भगवदीय वरदान है,इसका यथार्थ उपयोग भोग सुख में नहीं संवेदनशील सेवा भावना में है।छात्र-छात्राएं उनसे न केवल गणित की शिक्षा ही प्राप्त करते थे बल्कि जीवन निर्माण कैसे किया जाए इसके गुर भी सीखते थे।
- धीरे-धीरे उनकी ख्याति चारों ओर फैल गई।वे ऋषि तुल्य जीवन जीते थे।एक दिन एक महिला उनसे मिलने आई और उनसे एक प्रश्न का उत्तर देने की प्रार्थना की।उन्होंने महिला से पूछा कि वह कौन से प्रश्न का उत्तर जानना चाहती है।महिला ने पूछा कि “महान आप हैं या मैं।” गणितज्ञ ने उत्तर दिया कि इस प्रश्न का उचित समय पर जवाब दिया जाएगा।
- महिला ने अनेक वर्ष तक उनकी प्रतीक्षा की और फिर भूल गई।जीवन के अंतिम क्षण में महान गणितज्ञ ने छात्रों से कहकर उस महिला को बुलवाया।महिला तत्काल उनके आश्रम में उपस्थित हुई।गणितज्ञ ने कहा कि आपने एक प्रश्न पूछा था,उसका उत्तर है की महान मैं हूं।महिला ने कहा कि यह उत्तर तो आप उस समय भी दे सकते थे।गणितज्ञ ने कहा,नहीं।उस समय मेरे जीवन का कोई पता नहीं था,कितना शेष है।अब मेरा अंतिम समय है।जीवन में मनुष्य का पतन कभी भी हो सकता है परन्तु मेरा जीवन शेष नहीं है अतः अब पतन के अवसर नहीं है।परंतु तुम्हारे सामने तो जीवन काफी बचा है और तुम्हारे पतन के अनेक रास्ते खुले हैं।अतः अब मैं आपके प्रश्न का उत्तर देने में सक्षम हूं।
- उपर्युक्त आर्टिकल में इंसान कैसे बनें की 6 तकनीक (6 Best Techniques on How to Be Human),इंसान बनने की राह पर कैसे चलें की 6 बेहतरीन युक्तियाँ (6 Best Tips on How to Walk to Becoming a Human Being) के बारे में बताया गया है।
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7.छात्र की जिद (हास्य-व्यंग्य) (Stubbornness of Student) (Humour-Satire):
- एक व्यक्ति अपने बच्चे को गोद में लेकर कोचिंग के गेट पर पहुंचा।उन्होंने हाथ का इशारा करके शिक्षक को गेट पर बुलाया।शिक्षक ने कहा बच्चे को जल्दी कक्षा में बिठाओ,पहले ही मैं लेट हो चुका हूं।
- व्यक्ति ने कहाःमुझे बच्चे को पढ़ाना नहीं है।जरा आपको बुलाने की बच्चा जिद कर रहा था,इसीलिए आपको बुलाया है।
8.इंसान कैसे बनें की 6 तकनीक (Frequently Asked Questions Related to 6 Best Techniques on How to Be Human),इंसान बनने की राह पर कैसे चलें की 6 बेहतरीन युक्तियाँ (6 Best Tips on How to Walk to Becoming a Human Being) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्नः
प्रश्न:1.मनुष्य होने की क्या पहचान है? (What is the identity of being human?):
उत्तर:जैसे शरीर के किसी एक अंग में पीड़ा होती है,तो उसका प्रभाव सारे शरीर पर पड़ता है।इसी प्रकार यदि किसी मनुष्य को तकलीफ होती है,तो उसका दुःख दूसरों को भी अनुभव होना चाहिए।परंतु ऐसा देखने में बहुत कम आता है।आज तो मनुष्य और मनुष्य ही क्या,सगे भाई भी एक दूसरे के दुश्मन बन जाते हैं और एक-दूसरे को नुकसान पहुंचाते हैं।
प्रश्न:2.असाधारण प्रतिभावान और वज्रमूर्ख में क्या अंतर है? (What is the difference between an extraordinarily talented man and a thunderbolt?):
उत्तर:जिस मनुष्य में असाधारण प्रतिभा होती है वह किसी साधन का मोहताज नहीं होता।वह स्वयं प्रकाशमान होता है।दूसरी ओर जड़मूर्ख को चाहे जितने अवसर या साधन दिए जाएं,वह उनका उपयोग ही नहीं कर सकता।
प्रश्न:3.श्रेष्ठजनों का आचरण कैसा होता है? (What is the conduct of the noble?):
उत्तर:श्रेष्ठ पुरुषों का आचरण शुद्ध,पवित्र और अनुकरणीय होता है।जिसका आचरण ऐसा नहीं हो वह श्रेष्ठजन कहलाने का अधिकारी नहीं होता है।साधारण मनुष्य श्रेष्ठ पुरुषों के आचरण का ही अनुकरण करते हैं।
- उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा इंसान कैसे बनें की 6 तकनीक (6 Best Techniques on How to Be Human),इंसान बनने की राह पर कैसे चलें की 6 बेहतरीन युक्तियाँ (6 Best Tips on How to Walk to Becoming a Human Being) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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Satyam
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