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5Hymn to Give Children Right Direction

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1.बच्चों को सही दिशाएं देने के 5 मंत्र (5Hymn to Give Children Right Direction),बच्चों को सही दिशा देने के 5 अनोखे मन्त्र (5 Unique Hymns to Give Children to Right Direction):

  • बच्चों को सही दिशाएं देने के 5 मंत्र (5Hymn to Give Children Right Direction) के आधार पर आप जान सकेंगे कि बचपन से बच्चों को सही दिशा देना क्यों,कितना और कैसे जरूरी है? बच्चों पर सबसे अधिक प्रभाव माता-पिता,शिक्षकों,संगी-साथी का ही पड़ता है।इनका जैसा चाल-चरित्र होता है वैसे ही उसके संस्कार जागृत हो जाते हैं और वैसा ही वह बनता जाता है।
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2.बच्चों पर वातावरण का प्रभाव (Influence of Environment on Children):

  • बच्चों पर वातावरण और अर्जित संस्कारों दोनों का प्रभाव पड़ता है।वेल्स के प्रसिद्ध मनोविज्ञान हरबर्ट क्रेशर ने अपने दो बच्चों को अलग-अलग रखकर दो प्रकार के प्रयोग किये।एक के पास जाते समय वे अपना स्वभाव मसखरा रखते।अपनी धर्मपत्नी से उसके सामने ही मजाक और अश्लील बातें करते,फूहड़ हाव-भाव प्रदर्शित करते।फलस्वरूप वह बच्चा प्रारंभ से ही दुश्चरित्र हो गया और उच्च शिक्षा दिलाने के बाद भी वह अच्छा नहीं बन सका।दूसरे बच्चे के पास जाते समय क्रेशर सदैव विज्ञान की,वैज्ञानिक खोजों की बात करते।वहां उनका व्यक्तित्व एक गंभीर चिंतक की तरह रहता।फल यह हुआ कि ठीक यही प्रवृत्तियां बच्चे में विकसित हुई और उसने विज्ञान के क्षेत्र में बड़ा नाम कमाया।
  • डॉक्टर क्रेशर लिखते हैं:बच्चों को खराब-से-खराब घर में जन्म मिला हो,यदि उसे अच्छा वातावरण मिले,तो वह बहुत अच्छा बन सकता है,जबकि बुरे वातावरण में पड़कर अच्छे घरों के लड़के भी खराब हो जाते हैं।अच्छे और बुरे विचार अच्छे या दूषित वातावरण की ही उपज होते हैं।विचार कहीं अन्यत्र से नहीं आते।
  • बच्चा स्वयं भी एक मस्तिष्क और विचारशील प्राणी होता है।उसके अपने संस्कार भी होते हैं।आत्म-प्रदर्शन का भाव तो प्रत्येक बच्चे में अपना ही होता है।हमें यह देखना चाहिए कि उसकी यह भावना अच्छे अर्थ में है या खराब अर्थ में।यदि अच्छी और रचनात्मक दिशा में भावनाएं और विचार-शक्ति काम कर रही हो,तो उसे रोकना नहीं चाहिए वरन अपनी ओर से सहयोग भी देना चाहिए।
  • उदाहरणनार्थ कई बच्चे छोटी अवस्था से ही अध्यापक बनना खेल खेलते हैं,वे अपने पिता का चश्मा उठाकर पहन लेते हैं और झूठ-मूठ ही हाजरी भरने और बच्चों को डाँटने-डपटने का अभिनय करते हैं।यह आत्म-प्रदर्शन इस बात का प्रतीक है कि बच्चे को अध्यापक बनना पसंद है।भविष्य में भले ही उसकी मान्यता बदले,पर अभी तो उसे इस प्रदर्शन के फलस्वरूप कई अच्छी बातें सिखाई जा सकती हैं।उदाहरणार्थ अनुशासनपूर्वक एक पंक्ति में बैठना,पढ़ाई का सब सामान क्रम से सजाकर रखना,गंदगी से बचाना आदि।
  • सर जगदीशचंद्र बोस बाल्यावस्था में पौधों को बहुत प्रेम करते थे।छोटे-छोटे पौधे लाना,उनको लगाना,सींचना,उन्हें जानवरों से बचाना और फल-फूलों की रक्षा करने में उन्हें बहुत आनंद आता था।उनकी इस भावना को यदि रोका गया होता,तो वह प्रसिद्ध वनस्पति शास्त्री नहीं बन सके होते।
  • बच्चा प्रारंभ में अपने पूर्व जन्मों के प्रबल संस्कार ही प्रदर्शित करता है और यदि वह अच्छे अर्थ में-“भगवद उपासना,नेतृत्व विज्ञान,सुधारक किसी भी दिशा में हो,यदि उसमें उसका और समाज का हित होता हो,तो उस स्वभाव का पनपने में पूरा-पूरा सहयोग देना चाहिए।उसके इस विकास में सहयोग देने के लिए उसकी पूरी बातें सुनना चाहिए,डांटना या झिड़कना नहीं चाहिए।उसी की आयु का बनकर,उस जैसी ही टूटी-फूटी भाषा में बात करनी चाहिए ताकि वह निःसंकोच अपने को प्रकट कर सके।जो बच्चे प्रारंभ में दब्बू हो जाते हैं,वे बाद में बुराइयों की ओर आकर्षित होते हैं।

3.बच्चों की इच्छाओं को सही दिशा दें (Give the right direction to the wishes of children):

  • ‘चोर और कोतवाल’ का खेल प्रायः सभी बच्चे खेलते हैं।देखने में आया है कि दरोगा या कोतवाल,वही बच्चा बनता है,जो अपेक्षाकृत अधिक चतुर,हृष्ट-पुष्ट और स्वाभिमानी माता-पिता के घर जन्म होता है।चोर को पकड़ने,उसकी ढूंढ-खोज करने और दंड देने की अधिकांश क्रियाएं ऐसी होती है,जो उसने पुलिस वालों की देखी या सुनी होती है।न्याय के क्षेत्र में बालक कठोरता बरतता दिखाई देता है और उसमें वह अपनी कई बातें भी जोड़ता है,जो उसने देखी या सुनी भी नहीं होती।यह बातें बताती हैं कि बच्चे की भावनाओं में विकास की अच्छी संभावनाएं होती हैं।यदि उनको सही दिशाएं दे दी जाएं,तो बच्चों में योग्य नागरिक के गुणों का क्रमिक विकास सरलतापूर्वक किया जा सकता है।जिन बच्चों को इस तरह का सहयोग नहीं मिलता,वे बच्चे ही बुरे स्वभाव और आचरण करने लगते हैं।
  • भावनाओं के साथ बच्चों की इच्छाएं भी होती हैं।इच्छाओं को जीवन-शक्ति (लाइफ फोर्स) कहते हैं।इच्छाओं को लोग शरीर से बढ़कर प्रेम करते हैं।यह मनोविज्ञान का बहुत चर्चित सिद्धांत है और उसका निराकरण यह है कि उन्हें दबाना नहीं चाहिए।फ्रायड का कथन है की दबाई गई इच्छाएँ भी वैज्ञानिक नियम का पालन करती है अर्थात् जितनी शक्ति से उन्हें दबाया जाएगा,वह उतनी ही नई शक्ति से फिर फूटेंगी और विद्रोह पैदा करेंगी।इस तर्क को मानव-जीवन के हित में अचिन्त्य नहीं कहा जा सकता।
  • यदि इच्छाएँ ऐसी हैं,जिनसे बच्चे का अहित हो सकता है,तो उनकी दूसरी समानांतर अपनी इच्छा के लिए मोड़ना (रिडायरेक्ट) चाहिए।बच्चे को मालूम नहीं है कि चाय पीना स्वास्थ्य के लिए अहितकर है,उसने अपने मित्र,पिता या किसी पड़ोसी को चाय पीते देखा है।उसकी भी इच्छा है कि चाय पी जाए,उसे दबाना चाहेंगे,तो संभव है वह बाजार में जाकर चाय पिए और उसके लिए घर में पैसों की चोरी करे।
  • बेहतर है कि उसे आयुर्वेदिक या जड़ी बूटियों वाली चाय पिलाई जाए और बाजार वाली चाय की बुराई से परिचित कराया जाए अथवा प्रतिदिन मीठा दूध या कोई अन्य पौष्टिक पेय देने को प्रेरित किया जाए।बच्चा यह बात मान लेगा और फिर चाय के लिए हठ नहीं करेगा।
  • सुरुचि का विकास बालक को साहसी और स्वाभिमानी बनाने का महत्त्वपूर्ण साधन है।हमारी भूल यह है कि हम बच्चों को किसी भी काम के अयोग्य समझ लेते हैं।यदि उसमें थोड़ी-सी बुराइयां भी हों,तो भी उसे बिल्कुल अयोग्य न समझकर यह मानना चाहिए कि उन्हें गलत दिशा दी गई अथवा उसके पूर्वजन्म के संस्कार अच्छे नहीं रहे।
  • आगे के बच्चों में यह दोष ना हों,इसके लिए उन्हें सुरुचि वाला बनना चाहिए।पाश्चात्य देशों में प्रत्येक व्यक्ति की अपनी एक विशेष पसंद (हाॅबी) होती है,किसी की खेलने की,किसी की बागवानी की,किसी की घुड़सवारी की,किसी की बढ़ईगिरी,किसी की कंप्यूटर सीखने,किसी की नृत्य,गाने या भजन में और किसी की अपनी प्राइवेट प्रयोगशाला में बैठकर नए-नए प्रयोगों द्वारा छोटी-छोटी सुविधा बढ़ाने वाली नई वस्तुओं के अनुसंधान की।ऐसी रुचियाँ यदि हम अपने बालकों में पैदा कर सकें,तो उन्हें अनेक बुराइयों से सहज ही बचा सकते हैं।
  • क्रियाशीलता,आत्म-चेतना का गुण है।बच्चा चुप रह ही नहीं सकता,यदि उसे कोई निश्चित दिशा न दी जाए,तो यह आवश्यक है कि वह तोड़-फोड़,मार-धाड़,छीना-छपटी करे।यही आदतें धीरे-धीरे बुरे स्वभाव में बदल जाती हैं।यदि प्रारंभ से ही बच्चे में कोई रचनात्मक रुचि पैदा कर दें,तो बच्चा एक नया आत्मविश्वास लेकर आगे बढ़ सकता है।

4.बच्चों को पूर्ण स्नेह के साथ सिखाएं (Teach children with full affection):

  • कोई लड़का मान लीजिए क्रोधी स्वभाव का है,बहुत बढ़-चढ़कर बातें करता है,अहंकारी है,जहां जाता है वहीं झगड़ा कर लेता है।उसे यदि कोई अच्छी पुस्तक देकर या खेलने-कूदने की प्रेरणा देकर उस आदत को मोड़ना चाहें,तो संभव है कि वह किताब को भी फेंक दे और खेलने-कूदने वाले साथियों को भी मार-पीट बैठे।ऐसे बच्चों को उद्दात्तीकरण द्वारा उपयोगी बनाया जा सकता है।उदाहरण के लिए उसे ग्रुपिंग करना सिखाया जाए और उसे कोई स्काउटिंग,एनसीसी आदि किसी ग्रुप का नेता बनाकर उसे एक अच्छे सैन्य-अधिकारी का उत्तरदायित्व निबाहने की प्रेरणा दी जाए।इसमें उसके खराब गुणों का उसी प्रकार उपयोग हो सकता है जैसे गन्दी खाद का उपज बढ़ाने में।
  • इस तरह बच्चों को जब भी कुछ समझाया,सिखाया या अप्रत्यक्ष रूप से प्रेरित किया जा रहा हो,तो यह ध्यान बना रहे कि उसे पूर्ण स्नेह और सहानुभूति पाने का विश्वास हो रहा है।बीच-बीच में उसकी जिज्ञासाओं को भी जगाया जाता रहे।घटनाओं,प्रसंगों या कथाओं के माध्यम से उसकी पुष्टि भी की जाती रहे।उसे दूसरों के आगे परिचित (इंट्रोड्यूस) भी कराया जाता रहे।बच्चे की गलत प्रशंसा भूल कर भी नहीं की जाए,पर उसकी छोटी-सी विशेषता को भी बड़ा माना जाए,तो निश्चय ही एक दिन वह उस छोटी-सी अच्छाई को ही बहुत अधिक विकसित कर लेता है।
  • प्रत्येक स्थिति में बच्चे को व्यस्त रखना आवश्यक है,भले ही उसके काम का कोई उपयोग ना होता हो।व्यस्त रहकर सामाजिक जीवन को स्वस्थ और समस्याहीन शांतिमय बनाया जा सकता है।बहुत से विद्यालयों (प्राइवेट) में पाक्षिक,मासिक,रैंकिंग टेस्ट होते हैं।इन्हीं छोटी परीक्षाओं (टेस्ट्स) के नंबर जोड़कर विद्यार्थियों को उत्तीर्ण या अनुत्तीर्ण किया जाता है।इस व्यवस्था का मूल उद्देश्य बच्चों को पढ़ाई में सदैव व्यस्त रखना होता है और सचमुच इसका बच्चों पर बड़ा अच्छा असर होता है।शिक्षा के स्तर की दृष्टि से इस प्रकार के बच्चे दूसरे स्कूलों के बच्चों (जहां मासिक टेस्ट,रैंकिंग टेस्ट वगैरह नहीं होते) से योग्य होते हैं।
  • जीवन के किसी भी क्षेत्र में व्यस्तता बढ़ाकर आज की और भावी पीढ़ी की योग्यताओं का विकास जिस समाज में रहा होगा,वहां के लोगों में बुराइयां कम होंगी।आत्महीनता भी वहां कम होगी,क्योंकि वह तो बुराइयों का ही आत्मा पर पड़ा हुआ व्यापक प्रभाव है।बुराइयों को मिटाकर ही हम अपने देश में आत्मविश्वासी और प्रतिभा संपन्न नागरिकों को जन्म दे सकते हैं।
  • बच्चे प्रेम,स्नेह,आत्मीयता तथा अनुकरण से अधिक सीखते हैं।पर अक्सर देखा जाता है कि अधिकांश बच्चों को प्रेम,स्नेह आदि का वातावरण नहीं मिलता है और वे उद्दण्डी होते चले जाते हैं।बच्चों के अवचेतन मन में अच्छे और बुरे संस्कार सुप्त अवस्था में रहते हैं।अब बच्चों को जैसा संग-साथ मिलता है,घर में जैसा माहौल होता है,बच्चों के साथ जैसा व्यवहार किया जाता है वैसे ही वे बनते चले जाते हैं।कुछ मां-बाप अच्छे पढ़े-लिखे होते हैं,परंतु वे भी बच्चों की परवरिश कैसे की जाए,इस बात से अनभिज्ञ रहते हैं और जब बच्चे बिगड़ जाते हैं तो समझ में ही नहीं आता कि ऐसा कैसे हो हो गया है।बच्चों की सही ढंग से परवरिश वे माता-पिता ही कर सकते हैं जिन्हें बाल मनोविज्ञान का व्यावहारिक ज्ञान हो,केवल पढ़-लिख लेने से कोई भी मां-बाप सही मायने में माता-पिता नहीं हो सकता,न ही जन्म देने से कोई भी महिला-पुरुष किसी बच्चे के माता-पिता कहे जा सकते हैं।

5.बच्चों को दंड के बजाय प्यार से समझाएं (Explain to children with love instead of punishment):

  • बच्चे नादान होते हैं उन्हें कभी भी कार्य करते समय इस बात का एहसास नहीं होता कि वह अब मार खाने वाले हैं।बच्चे प्रायः वहीं अधिक बिगड़ते हैं,जहां बच्चों की देखभाल सही ढंग से नहीं हो पाती है।मसलन जैसे माता-पिता दोनों का व्यवसाय हो या घर में ज्यादा बच्चे हों या घर का माहौल तनावपूर्ण हो या माता-पिता को पता ना हो की बच्चों की परवरिश कैसे की जाए आदि।अन्य कई ऐसे कारण होते हैं,जहाँ बच्चे शैतान और जिद्दी बन जाते हैं।माता-पिता भी खीझकर उन्हें डांटते रहते हैं।हालांकि डाँट से बच्चे ढीठ हो जाते हैं।वह यह समझने लगते हैं कि बस कुछ देर की तो बात है,फिर कुछ देर बाद शैतानियां शुरू करेंगे।वैसे भी बच्चे कभी चुपचाप नहीं बैठ सकते।कुछ बच्चों पर डांट का असर होता भी है।वह दोबारा उस कार्य को नहीं करते हैं,लेकिन अन्य कोई दूसरी शरारत तो करेंगे ही।
  • बच्चों की शैतानियों को नजरअंदाज तो नहीं किया जा सकता है,परंतु उन पर ध्यान तो अवश्य ही देना पड़ेगा।बच्चे खेल-खेल में न जाने कौन सी भूल कर बैठे और उसमें माता-पिता को कितना नुकसान उठाना पड़े,ऐसे में केवल डांटने से काम नहीं चल पाएगा।बच्चों को प्यार से समझाएं व उन्हें अच्छे-बुरे का ज्ञान कराएं।बच्चों को प्यार दें तो उनका प्यार भी आपको मिलेगा।नहीं तो बच्चे स्वयं यह कहेंगे कि मेरे मम्मी-पापा तो मुझे हर समय डांटते रहते हैं।
  • बच्चे बड़े ही भोले,मासूम और कोमल होते हैं।जोर से डांटने पर वह सहम जाते हैं।ज्यादा डांट पढ़ने के कारण अपने माता-पिता या घर के अन्य सदस्यों से डरने भी लगता है।जैसे बहुत से बच्चे,मम्मी-पापा के आने से पहले,डरकर किताबें खोल लेते हैं कि कहीं डांट ना पड़ जाए।बच्चों को प्यार से समझाइए।मान लीजिए यदि बच्चे ने कोई भी गलती की हो या जिद कर रहा हो तो उसे यह बताएं कि इससे तुम्हें हानि होगी या तुम्हें अभी समझ में नहीं आएगा,जब तुम बड़े हो जाओगे हम तुम्हें ले देंगे या फिर उसका ध्यान उस चीज से हटाकर दूसरी जगह लगा दें।इसी प्रकार बच्चों से कोई गलत कार्य होता है,तो तुरंत डांटे।थोड़ी देर बाद बच्चा जब खेल कर थक जाता है,तब उसे प्यार से समझाइए कि तुमने जो काम किया है,वह पुनः मत करना,इससे यह नुकसान होता है।इससे बच्चा अच्छी तरह समझ जाएगा कि अब यह कार्य नहीं करना है।अतः ऐसा नहीं है कि बच्चे समझते नहीं है।वह केवल प्यार की भाषा को समझते हैं और उसी से सीखते हैं।बच्चों को हर चीज का वास्तविक ज्ञान कराएं।उनकी हर बुरी आदतों को प्यार से छुड़ाएं।कोशिश करें कि बच्चों को डांट या मार न पड़े।आपका बच्चा प्यार से ही सुधर जाएगा।
  • हर बच्चा अपने माता-पिता का लाडला होता है।उसे प्यार दें।अपने तनाव बच्चों पर ना डालें।उस पर न खीझें,ना डांटे।घर का स्वस्थ माहौल मिलेगा तो आपका लाडला भी होनहार निकलेगा।फिर आप स्वयं ही कहेंगे कि मेरा लाडला कितना अच्छा है,हर बात मानता है।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में बच्चों को सही दिशाएं देने के 5 मंत्र (5Hymn to Give Children Right Direction),बच्चों को सही दिशा देने के 5 अनोखे मन्त्र (5 Unique Hymns to Give Children to Right Direction) के बारे में बताया गया है।

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6.टीचर रोड पर कैसे आया? (हास्य-व्यंग्य) (How Did Teacher Get on Road?) (Humour-Satire):

  • पहला टीचर दूसरे टीचर से:तुम रोड पर कैसे आ गए?
  • दूसरा टीचर उधर से जाते हुए छात्र को बुलाकर,पहले टीचर से कहता है,पहले इसे एक घंटा पढ़ाओ,तब बताऊंगा।
  • पहले टीचर ने दूसरे टीचर के कहे अनुसार छात्र को पढ़ाकर भेज दिया।
  • दूसरे टीचर ने कहा:बस इसी तरह जो भी छात्र आता था,मैं फौरन उसे पढ़ा देता था।वह पढ़कर चलता बनता (बिना फीस दिए)।

7.बच्चों को सही दिशाएं देने के 5 मंत्र (Frequently Asked Questions Related to 5Hymn to Give Children Right Direction),बच्चों को सही दिशा देने के 5 अनोखे मन्त्र (5 Unique Hymns to Give Children to Right Direction) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.शरारती बच्चों को सही दिशा कैसे दें? (How to give naughty children the right direction?):

उत्तर:बच्चों से प्यार की भाषा बोलनी चाहिए।हालांकि बच्चे कम शरारती नहीं होते हैं।उनकी शैतानियां माता-पिता या घर के अन्य सदस्यों को गुस्सा दिलाती हैं।परंतु हर समय बच्चों को डांट मिलने से बच्चे का मन उदास हो जाएगा।उसे प्यार से समझाकर उसे मनाने का प्रयत्न करना चाहिए।

प्रश्न:2.बच्चे जिद्दी क्यों होते हैं? (Why are children stubborn?):

उत्तर:बच्चे जिद्दी होते हैं उन्हें हर अच्छी लगने वाली चीज चाहिए।उन्हें इतनी समझ नहीं रहती कि वह हर उस वस्तु को पा सकेगा या नहीं।अक्सर देखा गया है कि बच्चे नादानी में ऐसी भूल कर बैठते हैं,जिसके लिए घरवालों को परेशान होना पड़ता है।मसलन जैसे गलत दवा खा लेना,कोई गंदी चीज खा लेना।वह ऐसा कार्य अपने मन से करते हैं।

प्रश्न:3.क्या शैतानियां करने पर बच्चों को डांटे नहीं? (Should you not scold children for doing devilish things?):

उत्तर:बच्चों को शैतानियां करने में मजा आता है।जहां चार बच्चे मिले,घर में समझो तूफान आ गया।घर का सामान उथल-पुथल करना,किसी चीज का नुकसान कर देना,चोट लगा लेना,किसी को मार देना,किसी को धक्का दे देना,यह सब आम बातें हैं,जो कि माता-पिता को बच्चों पर क्रोध करने के लिए विवश कर देती हैं।ऐसे में बच्चे को डांटे नहीं तो बच्चा और भी अधिक शैतानियां करेगा।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा बच्चों को सही दिशाएं देने के 5 मंत्र (5Hymn to Give Children Right Direction),बच्चों को सही दिशा देने के 5 अनोखे मन्त्र (5 Unique Hymns to Give Children to Right Direction) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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