Menu

5 Top Tips to Develop Art of Dealing

Contents hide

1.व्यवहार करने की कला विकसित करने की 5 टॉप टिप्स (5 Top Tips to Develop Art of Dealing),छात्र-छात्राओं के लिए व्यवहार करने की कला विकसित करने की 5 बेहतरीन टिप्स (5 Best Tips for Students to Develop Art of Behaviour):

  • व्यवहार करने की कला विकसित करने की 5 टॉप टिप्स (5 Top Tips to Develop Art of Dealing) के आधार पर आप जान सकेंगे कि व्यवहार हमारे जीवन में कितना महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है।किस तरह का व्यवहार करें,व्यावहारिक कैसे बनें? ये सब बातें बचपन से,विद्यार्थी काल से ही विकसित करने की आवश्यकता होती है क्योंकि बाद में तो आदतें परिपक्व हो चुकी होती हैं जिन्हें बदलना मुश्किल होता है।
  • आपको यह जानकारी रोचक व ज्ञानवर्धक लगे तो अपने मित्रों के साथ इस गणित के आर्टिकल को शेयर करें।यदि आप इस वेबसाइट पर पहली बार आए हैं तो वेबसाइट को फॉलो करें और ईमेल सब्सक्रिप्शन को भी फॉलो करें।जिससे नए आर्टिकल का नोटिफिकेशन आपको मिल सके।यदि आर्टिकल पसन्द आए तो अपने मित्रों के साथ शेयर और लाईक करें जिससे वे भी लाभ उठाए।आपकी कोई समस्या हो या कोई सुझाव देना चाहते हैं तो कमेंट करके बताएं।इस आर्टिकल को पूरा पढ़ें।

Also Read This Article:6 Tips for Making A Practical Plan

2.व्यवहार करने में ध्यान रखने वाली बातें (Things to keep in mind while dealing):

  • इस दुनिया में सुखी,संतुष्ट जीवन जीने के लिए व्यवहार करने की कला सीखनी चाहिए।हमारा व्यवहार ही हमारे व्यक्तित्व का परिचय दूसरों से कराता है और उनसे हमारा संबंध जोड़ता है।हम स्वयं भी दूसरों के व्यवहार से प्रभावित होते हैं और उसी के अनुसार उनके प्रति अपनी सोच बनाते हैं।किसी व्यक्ति के प्रति मन में बनी हुई छवि के अनुसार ही हम किसी दूसरे व्यक्ति से व्यवहार की अपेक्षा रखते हैं और उसके प्रति वैसा व्यवहार भी करते हैं।
  • कई बार हमें दूसरों द्वारा किया जाने वाला व्यवहार बहुत अच्छा लगता है और कई बार व्यवहार बहुत बुरा भी लगता है।अच्छे व्यवहार के कारण हम दूसरों से मित्रता कर लेते हैं और बुरे व्यवहार के कारण शत्रुता,लेकिन ऐसा नहीं है कि अच्छा व्यवहार करने वाला व्यक्ति हमेशा अच्छा व्यवहार करेगा और बुरा व्यवहार करने वाला व्यक्ति हमेशा बुरा व्यवहार करेगा।ऐसा भी हो सकता है कि अच्छा व्यवहार करने वाला बुरा व्यवहार करने लगे और बुरा व्यवहार करने वाला व्यक्ति हमारे प्रति सहानुभूति से भर जाए।
  • इस तरह दूसरों द्वारा किए जाने वाले व्यवहार पर हमारा नियंत्रण नहीं हो सकता और न दूसरों के विचारों और कार्यों पर हमारा नियंत्रण हो सकता है; लेकिन हम स्वयं के व्यवहार,विचार व कार्यों पर नियंत्रण जरूर कर सकते हैं।यही व्यवहार करने की कला है।
  • इस कड़ी में सबसे पहले हमें यह बात ध्यान रखनी चाहिए कि कोई व्यक्ति पूरी तरह से बुरा नहीं होता; बुराई तो केवल उसकी वृत्तियों में होती है।जिस तरह डॉक्टर रोगी व्यक्ति के रोग की चिकित्सा करके उसके रोग को दूर भगाता है,न की रोगी व्यक्ति को नुकसान पहुंचाता है,उसी प्रकार हमें भी किसी भी व्यक्ति की बुराई को दूर भगाना चाहिए,न कि उस व्यक्ति से ही नफरत करनी चाहिए।
  • लेकिन व्यावहारिक जगत में होता यह है कि हम किसी भी व्यक्ति की बुराई के कारण उस व्यक्ति से घृणा एवं नफरत करने लगते हैं,उसके प्रति नकारात्मक सोचने लगते हैं,उससे क्रोधित होते हैं और उसे नुकसान पहुंचाने की कोशिश करते हैं।इस तरह दूसरे व्यक्ति की बुराई तो यथावत रहती है,लेकिन उसकी लगातार निंदा करने के कारण हम अपनी वृत्तियाँ भी दूषित कर लेते हैं।
  • इस बारे में दूसरी बार ध्यान रखने योग्य है कि हम दूसरों के प्रति जो भी बुरा सोचते हैं,घृणा व नफरत करते हैं,क्रोधित होते हैं,गुस्सा करते हैं,वह सब अपने मन में करते हैं।ये सब कलुषित भावनाएँ मन में होने के कारण हमें ही ज्यादा नुकसान पहुंचाती हैं।इन सब के कारण दूसरे व्यक्तियों का कोई नुकसान नहीं होता,बल्कि हमारा ही अंतर्मन इनकी आग से जलने लगता है व अशांत होने लगता है।
  • हमारी ही शांति,हाहाकार में तब्दील हो जाती है और ऐसी स्थिति में हम न तो कुछ सोच पाने की स्थिति में होते हैं और ना कुछ अच्छा कर पाने की स्थिति में।इस बारे में महत्त्वपूर्ण बात यह है कि ऐसा करने पर हम अच्छे कार्यों को करने से बहुत दूर चले जाते हैं और हमारा मन कलुषित हो जाता है।इसी को व्यक्ति की उद्विग्न मनःस्थिति भी कहते हैं।

3.व्यवहार करने का सही तरीका (The right way to behave):

  • यदि हमारे जीवन में ऐसे लोग हैं,जो हमें अच्छे नहीं लगते तो हमें इन व्यक्तियों से लड़ने के बजाय उनसे दूरी बना लेनी चाहिए।यहां दूरी का तात्पर्य शारीरिक दूरी नहीं,वरन मन से उन सीमाओं को निश्चित करना है,जिससे हमें व्यक्ति विशेष के साथ कटु व्यवहार करने के लिए विवश न होना पड़े।कटु व्यवहार करना न तो उस व्यक्ति के लिए हितकर होता है और न स्वयं के लिए।यदि व्यक्ति किसी को अपना अच्छा मित्र नहीं बना सकता,अच्छे संबंध नहीं जोड़ सकता तो उसे अपने शत्रु भी नहीं बनाने चाहिए।
  • ज्यादा अच्छा यही है कि किसी को भी अपना नजदीकी मित्र बनाने से पहले उसे हम कई बार परखें और तदुपरान्त ही निर्णय लें।सोच-परख कर रखी गई रिश्तों की नींव सदा मजबूत रहती है।कई बार ऐसा भी होता है कि बहुत गहरी व लंबी दोस्ती में भी दरार पड़ जाती है और फिर शुरू होती है एक-दूसरे से बदला लेने की भावना।
  • इस बारे में यही कह सकते हैं कि इस संसार में उन व्यक्तियों को,जिन्होंने अपना जीवन भगवान को समर्पित कर रखा हो छोड़कर किसी भी व्यक्ति का अंतःकरण शुद्ध नहीं होता।इस श्रेणी में वे महामानव आते हैं,जिन्होंने अपनी वृत्तियों का परिमार्जन व परिष्कार कर लिया है और जिनके व्यक्तित्व में रूपांतरण की प्रक्रिया घटित हो चुकी है।ऐसे लोग ही किसी व्यक्ति के व्यवहार को गहराई से समझते हैं,उस व्यवहार के प्रति उचित क्रिया करते हैं और संबंधों को बखूबी निभा पाते हैं।
  • सांसारिक व्यक्तियों की वृत्तियां दूषित होती हैं,इसी कारण उनका व्यवहार कभी अच्छा तो कभी बुरा होता है।उनसे रिश्ता निभाने का सही तरीका यही है कि उनसे उनके अच्छे भावों व विचारों के बारे में ही बातचीत की जाए और कभी भी किसी के प्रति बुराई को अपनी चर्चा का विषय न बनाया जाए; क्योंकि यदि किसी के प्रति थोड़ी भी बुराई या चर्चा किसी से की जाती है तो वह वापस लौटकर कभी ना कभी,किसी न किसी रूप में हमारे पास जरूर आती है,क्योंकि यहां भी प्रकृति का ‘बोओ-काटो’ का सिद्धांत लगता है और अपना प्रभाव दिखाता है।
  • ‘बोओ-काटो’ के इस सिद्धांत को व्यावहारिक जगत में गहराई से न जानने व समझने के कारण हम सभी से अभी तक जो अनगिनत गलतियां हुई हैं,उन्हें सुधारने का यही तरीका है कि अपने द्वारा खोदी गई खाई को अब हम पाटने का प्रयास करें,अर्थात अब तक जितनी गलतियां अब तक हमसे हुई है,उन्हें सुधारें और अपने अच्छे विचारों व भावों को ही अभिव्यक्ति दें।अपने अंदर की नकारात्मकता को दूर करते हुए सकारात्मकता को बढ़ावा दें।अच्छी बातें करें,अच्छी चर्चाएँ करें,सत्प्रेरणा देने वाला साहित्य पढ़ें और ऐसे कर्म करें कि हमारे जीवन में फैला हुआ अंधकार नष्ट हो और आत्मिक शक्ति के प्रकाश का उजाला आए।
  • जीवन में सकारात्मक भाव,अच्छे विचार व प्रसन्न मनः स्थिति ही वे बेशकीमती उपहार हैं,जिनके सानिध्य में आने से व्यक्ति के अंदर वर्षों से घर जमाए अंधकार से तुरंत छुटकारा मिल जाता है।अतः स्वयं का परिष्कार व इसके लिए प्रयास व्यावहारिक जीवन जीने में हमें कुशल बनाता है।

4.छात्र-छात्राओं के व्यवहार करने का तरीका (The way students behave):

  • असल में अधिकांश छात्र-छात्राएं इस तरफ ध्यान नहीं देते हैं और सहपाठियों की आधी बात भी सुनने को राजी नहीं होते हैं।उनके नाक पर गुस्सा चढ़ा रहता है और ज्योंही कोई थोड़ी-बहुत ऊंची-नीच साथी मित्रों के साथ हो जाती है तो वे फट पड़ते हैं।
  • छात्र-जीवन जीवन निर्माण का समय होता है और जो छात्र अपने व्यवहार करने पर जितनी पैनी नजर रखता है,वह व्यवहार कला में उतना ही कुशल होता जाता है।व्यवहार करने की कला की केवल आपके सांसारिक,पारिवारिक व सामाजिक जीवन में करने वाले कार्यों में ही आवश्यकता नहीं पड़ती,बल्कि जॉब,इंटरव्यू,जॉब में कार्य करते समय,पदोन्नति के समय तथा अपने से कनिष्ठ कर्मचारियों/अधिकारियों से काम लेते समय आदि अवसरों पर भी आवश्यकता पड़ती है।
  • इसके अतिरिक्त छात्र जीवन में अध्ययन करते समय भी व्यवहार कुशलता की आवश्यकता होती है।आप अपने सहपाठी से एक तो रौब-दाब से कोई सवाल पूछे,दूसरे मधुर वचन,विनम्रता से कोई सवाल या समस्या का हल पूछे।ऐसी स्थिति मैं आप व्यवहार कुशल होंगे,मधुर वाणी में पूछेंगे तो तत्काल दूसरा छात्र या सहपाठी सवाल बता देगा और साथ में यह और कहेगा कि तुम्हारे सामने कभी भी कोई समस्या आए तो मुझसे पूछ लेना।
  • जबकि रौब-दाब,कटु व्यवहार से हमें दोतरफा नुकसान होता है।एक तो वह छात्र आपको जरूरी नहीं है कि सवाल बताये,यदि आप शक्तिशाली हैं और रौब-दाब,कटु वचन बोलकर पूछ भी लें तो भी उसके मन में आपके प्रति घृणा का भाव पैदा हो जाएगा।हर सहपाठी छात्र से आप कटते जाएंगे।दूसरे छात्र-छात्राएं आपको पसंद नहीं करेंगे।हो सकता है आपके अत्याचार से पीड़ित होकर वे छात्र-छात्राएं संगठित होकर आपके साथ मारपीट कर दें या शिक्षा संस्थान का प्रशासन आपके व्यवहार से तंग आकर आपको शिक्षा संस्थान से ही बहिष्कृत कर दे।
  • तात्पर्य यह है कि आप अपने अच्छे व्यवहार के कारण उन्नति,प्रगति कर सकते हैं,आपके व्यक्तित्व को निखार सकते हैं और बुरे,रूड़ व्यवहार के कारण बदनाम हो सकते हैं,आपका व्यक्तित्व सिरफिरे,बड़बोले जैसे व्यक्ति का हो जाएगा,आप अवनति,पतन की ओर अग्रसर होते जाएंगे।
  • अच्छा व्यवहार हमारे व्यक्तित्व में चार चांद लगा देता है और बुरा व्यवहार हमारे व्यक्तित्व को बदरंग कर देता है।हो सकता है आपके सामने कोई आपके इस बुरे व रूड़ व्यवहार के बारे में चर्चा न करता हो परंतु छात्र-छात्राओं के दिल से आप उतर जाते हैं,आपका दिल से कोई सम्मान करने के लिए राजी नहीं होगा।वे छात्र-छात्राएं आपकी जड़े खोद देंगे,आपकी हर कहीं निंदा होगी,आप घृणा के पात्र बन जाएंगे।एक बार व्यक्ति अच्छी लाइन की पटरी से उतर जाता है तथा बुरी लाइन की पटरी पकड़ लेता है तो फिर वह गिरता ही जाता है।वह बदमाश,लुच्चे,अय्याश,झगड़ालू,चोर,उचक्के छात्रों के गैंग में शामिल हो जाता है।
  • उनमें शामिल होने के बाद उसे यह एहसास नहीं होता है कि वह कोई गलत व्यवहार करता है क्योंकि अन्य छात्र भी,उसके गैंग के छात्र भी ऐसा ही करते हैं।यदि उसके दिल व दिमाग में कभी अच्छे विचार आते भी हैं तो उसके संगी-साथी उसे सही रास्ते पर आने से रोक देते हैं।जमाने का हवाला देकर कहते हैं कि जमाना सीधे-सादे व्यक्तियों को जीने नहीं देता है अतः सीधा,सच्चा व सरल बनने का ख्याल छोड़ दें।इस प्रकार की घुट्टी पिलाते ही उसके दिमाग में अच्छे ख्यालात हवा हो जाते हैं और वापस से वह दुर्व्यवहार करने लगता है।

5.सफल होने के लिए व्यावहारिक बनें (Be practical to succeed):

  • छात्र-छात्राओं को यदि सफल होना है तो उन्हें व्यावहारिक होना चाहिए।यदि उनकी सोच,चिंतन शैली व्यावहारिक व सकारात्मक होगी तो वे सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ते जाएंगे।व्यावहारिक होने का एक अर्थ यह भी है कि अपनी वास्तविकता को जानना,अपनी क्षमताओं व योग्यताओं को पहचानना,उसे स्वीकार करना तथा उसके अनुसार ही लक्ष्य को तय करना और उस पर कार्य करना।
  • जो छात्र-छात्रा व्यावहारिक होते हैं,वे कल्पनाओं व भ्रमों में नहीं जीते,बल्कि अध्ययन करने,कठोर परिश्रम में विश्वास रखते हैं और कार्य करके दिखाते हैं।इन्हें अपनी संभावनाओं पर विश्वास होता है,किंतु ये संभावनाओं में नहीं जीते,बल्कि यथार्थ में जीते हैं।ऐसे छात्र-छात्राएं अपने कार्य की शुरुआत वहां से करते हैं,जिन्हें वह आज और अभी कर सकते हैं।कल्पनाओं व भ्रमों में जीने वाले व्यक्ति ही असफल होते हैं।ऐसे छात्र-छात्रा न अपनी वास्तविकता को समझना चाहते हैं और न ही उसे स्वीकार करना चाहते हैं।
  • प्रायः ऐसे छात्र-छात्रा अपने कार्य की शुरुआत वहां से करना चाहते हैं,जिसके लिए वह अभी तैयार नहीं और इस भ्रम में रहते हैं कि वह चाहे तो कुछ भी कर सकते हैं।यह बात कुछ हद तक सच है कि हम चाहे तो बहुत कुछ कर सकते हैं,किंतु इसके लिए पर्याप्त समय व श्रम चाहिए,इन्हें हम आज और अभी नहीं कर सकते।इस कारण बहुत कुछ कर सकने की काल्पनिक सोच और वास्तव में कुछ न कर पाना उनकी असफलता का एक कारण होता है।
  • एक छात्रा पढ़ने में होशियार थी,उसकी सहपाठिनी भी मेधावी थी।दोनों ने CA का कोर्स करने के लिए CPT की परीक्षा देने का निश्चय किया।छात्रा को उसके शिक्षक ने समझाया कि सीपीटी (CPT) के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी,उस छात्रा ने कहा कि वह कर लेगी,आप निश्चिंत रहें।परंतु ज्योंही उसने 11वीं व 12वीं कक्षा की तैयारी चालू की तो उसे पता चल गया की कितनी कड़ी मेहनत की आवश्यकता है।उसने कड़ी मेहनत नहीं की,फलतः CPT की परीक्षा देने का विचार ही त्याग दिया।उसने प्रवेश परीक्षा के लिए आवेदन पत्र ही नहीं भरा।जबकि वह होशियार थी,परंतु CPT के लिए असाधारण परिश्रम और लगन की आवश्यकता होती है।उसने जैसे-तैसे बीकॉम परीक्षा उत्तीर्ण कर ली।यदि वह व्यावहारिक सोच रखते हुए अपनी क्षमताओं के अनुसार लक्ष्य तय करती और उसके अनुसार कड़ी मेहनत करती तो परिणाम अच्छा रहता।उसकी सहपाठिनी का CPT में चयन हो गया और CA का कोर्स करके वह जॉब कर रही हैं।जबकि उस छात्रा ने बीकॉम करके शादी कर ली और अब उसके मन में कुछ न कुछ उल्लेखनीय करने की कल्पनाएं हिलौरे लेती हैं,परंतु उन कल्पनाओं को साकार करने का प्रयत्न नहीं करती।फलतः वह गृहस्थ जीवन भी सुख-शांति के साथ व्यतीत नहीं कर रही।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में व्यवहार करने की कला विकसित करने की 5 टॉप टिप्स (5 Top Tips to Develop Art of Dealing),छात्र-छात्राओं के लिए व्यवहार करने की कला विकसित करने की 5 बेहतरीन टिप्स (5 Best Tips for Students to Develop Art of Behaviour) के बारे में बताया गया है।

Also Read This Article:Introduction to How to make Students practical in hindi

6.सवाल हल करने का काम्पिटिशन (हास्य-व्यंग्य) (Questions Solving Competition) (Humour-Satire):

  • अविनाश अपने साथी के साथ सवाल हल कर रहा था।
  • गणित शिक्षक:अविनाश के साथ छात्र द्वारा गणित के सवालों को हल करने की स्पीड देखकर,चकित होकर बोला।मुझे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा है कि यह छात्र इतनी तेज गति से सवाल हल कर सकता है।
  • अविनाश:अरे नहीं,इतना होशियार भी नहीं है।पिछले तीन काम्पटिशन में मैं इसे तीनों बार हरा चुका हूं।

7.व्यवहार करने की कला विकसित करने की 5 टॉप टिप्स (Frequently Asked Questions Related to 5 Top Tips to Develop Art of Dealing),छात्र-छात्राओं के लिए व्यवहार करने की कला विकसित करने की 5 बेहतरीन टिप्स (5 Best Tips for Students to Develop Art of Behaviour) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.व्यक्ति की पहचान कैसे होती है? (How is the person identified?):

उत्तर:मनुष्य के व्यक्तित्व,आचरण और व्यवहार से उसकी पहचान प्रकट होती है।मनुष्यों में परस्पर भेद भी इसी कारण होता है।जो अपने व्यक्तित्व,आचरण और व्यवहार की समीक्षा करते हुए इसे विकसित करते हैं,वे अपनी पहचान को भी स्वतः विकसित कर लेते हैं।

प्रश्न:2.लोगों के साथ व्यवहार करने में क्या स्मरण रखें? (What to remember in dealing with people?):

उत्तर:लोगों के साथ व्यवहार करते समय हमें स्मरण रखना चाहिए कि हम तर्क-शास्त्रियों के साथ व्यवहार नहीं कर रहे हैं,हम ऐसे लोगों के साथ व्यवहार कर रहे हैं,जिनमें मानसिक आवेश है,पक्षपात है और जो गर्व एवं अहंकार से संचरित होते हैं।

प्रश्न:3.शत्रु और मित्र कैसे बनते हैं? (How do enemies and friends form?):

उत्तर:हितोपदेश के अनुसार न कोई किसी का मित्र है और ना कोई किसी का शत्रु है।व्यवहार से मित्र तथा शत्रु बन जाते हैं।व्यवहार ज्ञान को सुशोभित करता है और संसार में अपने मार्ग को सरल बनाता है।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा व्यवहार करने की कला विकसित करने की 5 टॉप टिप्स (5 Top Tips to Develop Art of Dealing),छात्र-छात्राओं के लिए व्यवहार करने की कला विकसित करने की 5 बेहतरीन टिप्स (5 Best Tips for Students to Develop Art of Behaviour) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
No. Social Media Url
1. Facebook click here
2. you tube click here
3. Instagram click here
4. Linkedin click here
5. Facebook Page click here
6. Twitter click here

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *