5 Top Tips on Why Not Burden Homework
1.होमवर्क का बोझ क्यों न लादें की 5 टॉप टिप्स (5 Top Tips on Why Not Burden Homework),बच्चों पर होमवर्क का बोझ न लादें (Do Not Burden Children with Homework):
- होमवर्क का बोझ क्यों न लादें की 5 टॉप टिप्स (5 Top Tips on Why Not Burden Homework) के आधार पर आप जान सकेंगे कि होमवर्क की वजह से बच्चे क्यों और कितने परेशान हो जाते हैं।उनकी हँसती-खेलती जिंदगी में यह बोझ विष का काम करता है।इस बोझ के तले दबे हुए हंसी-खुशी से जीना दूभर हो जाता है।
- आपको यह जानकारी रोचक व ज्ञानवर्धक लगे तो अपने मित्रों के साथ इस गणित के आर्टिकल को शेयर करें।यदि आप इस वेबसाइट पर पहली बार आए हैं तो वेबसाइट को फॉलो करें और ईमेल सब्सक्रिप्शन को भी फॉलो करें।जिससे नए आर्टिकल का नोटिफिकेशन आपको मिल सके।यदि आर्टिकल पसन्द आए तो अपने मित्रों के साथ शेयर और लाईक करें जिससे वे भी लाभ उठाए।आपकी कोई समस्या हो या कोई सुझाव देना चाहते हैं तो कमेंट करके बताएं।इस आर्टिकल को पूरा पढ़ें।
Also Read This Article:Why its so Hard to Help With Your Kids Math Homework?
2.बच्चों की दुनिया (Children’s World):
- अपनी धरती की गोद में एक दुनिया ऐसी भी बसती है, जो गीता,कुरान,बाइबल की तरह पवित्र है।इस दुनिया के लोग जितने ईमानदार है,उतने ही निश्चल और बेबाक।जी हाँ,यह उन बच्चों की दुनिया है,जिनके मासूम सवाल बड़े से बड़े विद्वानों को हैरानी में डाल देते हैं।संसार के बड़े से बड़े धनी-मानी,गुणवान,ज्ञानवान और सत्ताधीश इन बच्चों के स्थानापन्न बन पाने में स्वयं को मजबूर पाते हैं,क्योंकि जीवन भर उनके द्वारा कमाए गए झूठ,लालच,चतुराई,राजनीति,धोखाधड़ी,कुचक्र,षड्यंत्र इसमें आड़े आ जाते हैं।
- किसी विचारक ने कहा है:”काश! किसी बच्चे की नन्हीं उंगली थामकर मैं भी उसकी दुनिया में दाखिल हो पाता।बड़ा अनूठा संसार है इन बच्चों का।उम्मीदों से भरी-पूरी है उनकी दुनिया,जहां न जंग है,न नफरत,छुआछूत,ऊँच-नीच,लालच,स्वार्थ,खून-खराबा,तू-तू,मैं-मैं,तेरा-मेरा जैसी बुराइयों का कोई नाम तक नहीं।हम सबकी कल की उम्मीदें,हमारे ज्ञान-विज्ञान को,हमारे देश की पावन संस्कृति को,विश्व-वसुधा की मानवता को और बुलंदी देने का प्रमाण पत्र है बच्चें।”
- बच्चों को समझने के लिए सबसे अच्छा यही है कि बच्चों के बीच में बैठकर उन्हीं से उनकी बातें की जाएँ।बहुत सारे बच्चे अपने बारे में बहुत कुछ बताने के लिए बेताब हैं,दुनिया भर की बातों के बीच वे यह बताना नहीं भूलते की यह 21वीं सदी है और वे पहले के लोगों की तुलना में बहुत ज्यादा सयाने,ज्यादा समझदार,ज्यादा अपडेटेड हैं।इनसे बातें करके,इनकी बातें सुनकर यह तो समझ में आ गया की 18वीं सदी के अंग्रेज महाकवि वर्ड्स सवर्थ क्यों लिख गए थे:’दि चाइल्ड इज फादर ऑफ द मैन’।अगर वर्ड्स सवर्थ ने इस सदी में जन्म लिया दिया होता तो शायद वह फादर की जगह ग्रांडफादर का उपयोग करते।सचमुच आज के बच्चे अपने समय से काफी आगे निकल चुके हैं।
- सचमुच बच्चों की दुनिया निराली,अद्भुत,रोमांचक्कारी है।बिल्कुल निश्छल,चिंतारहित दुनिया है जिसमें बड़े-बूढ़े तथा बड़े-बड़े महान् व्यक्तित्व भी बचपन को पुनः जीना चाहता है।आपस में झगड़ने के कुछ ही देर बाद में वे आपस में फिर से घुलमिल जाते हैं।मन में कोई वैर-वैमनस्य,शत्रुता,बदला लेने की कामना,मन में कपट,दुराव-छिपाव कुछ भी तो नहीं पालते हैं।बड़े-बूढ़े,माता-पिता तथा समाज के बुजुर्ग उनकी दुनिया को बदरंग करते जाते हैं,उन्हें दुनियादारी की चालाकी,फरेब,झूठ,पाखंड तथा उद्दण्डता आदि की कला सीखाते जाते हैं और धीरे-धीरे ज्यों-ज्यों वे बड़े होते जाते हैं उन पर दुनियादारी का रंग चढ़ता जाता है।
- बच्चे पूर्व जन्म के जो कर्म-संस्कार लेकर पैदा होते हैं (अच्छे-बुरे) वे सुप्त ही रहते हैं।अब उनको जैसा संग-साथ,वातावरण व परिस्थिति मिलती है वैसे ही कर्म-संस्कार जाग जाते हैं।
3.होमवर्क के बारे में बच्चों के विचार (Children’s ideas about homework):
- इन प्यारे-प्यारे बच्चों से जब स्कूल की बातें हुई तो इनमें से कइयों के चेहरे उदास हो गए,बोले छुट्टियों में भी स्कूल की बातें,वेकेशन का सारा मजा ही खराब हो जाता है।बहुत आग्रह करने पर वे बात करने के लिए तैयार हुए।होमवर्क,पनिशमेंट,असाइनमेंट,क्लासमेट से होते हुए बात टीचर पर आ गई।एक छोटी-सी बच्ची,जो बड़ी देर से सबकी बातें सुन रही थी,एकदम फॉर्म में आ गई-उनकी तो बातें ही मत करो,खुद तो उन्हें आता नहीं,चले हैं हमें पढ़ाने।उसे जब थोड़ा और कुरेदा तो कहने लगी-मैंने डिस्कवरी पर देखा था,साइंटिस्ट मार्स पर जाने की तैयारी में हैं,लेकिन हमारी मैम नीलआर्मस्ट्रांग से ज्यादा कुछ जानती ही नहीं।
- स्कूल में रहते हुए हम क्या सोचते हैं,बताएं? हम सोचते हैं कि कब हमारे स्कूल का अर्दली,कोई चपरासी,यह भी ना हो तो कोई बच्चा ही छुट्टी वाली घंटी बजा दे और हम निकल जाएं।इस मासूम बच्ची की स्पष्टता से और कुछ समझ में आया या नहीं,लेकिन एक बात जरूर समझ में आ गई कि बच्चे मुस्कुराना चाहते हैं और पढ़ाई-लिखाई का मौजूदा तरीका,बेहिसाब किताबों का बोझ उन्हें रास नहीं आ रहा।लगा की बच्ची झूठ नहीं बोल रही है,यह हमारी शिक्षा-व्यवस्था और इसके तौर-तरीकों का दोष है।
- बच्चों तक सूचनाएँ अब बस,पुस्तकों से नहीं आतीं।टीवी,वीडियो गेम्स,इलेक्ट्रॉनिक गैजेट और मोबाइल फोन्स उन्हें जानकारियां परोस रहे हैं।बच्चों की बातें बताती है कि वर्तमान सूचना ढाँचे और पुस्तकों के बीच काफी गहरी खाई है।वह छोटी-सी बच्ची अपनी बातों से निरुत्तरता को बढ़ाती गई।कहने लगी-बताएं,मैम कहती हैं कि लर्न करके आया करो,खुद क्यों नहीं लर्न करतीं।
- आज के युग के अध्यापक-अध्यापिका चाहे वे सरकारी स्कूल के हों या प्राइवेट स्कूल के हों,पाठ्यक्रम को पढ़ाने तक अपने आपको सीमित रखते हैं।सामान्य ज्ञान से उन्हें कोई लेना-देना नहीं होता है।यदि छात्र-छात्राएं पाठ्यक्रम से इतर अन्य कोई बात पूछ लेते हैं तो बगले झांकने लगते हैं।उन्हें और तो कुछ सूझता नहीं और बच्चों को डांट पिलाने लगते हैं।चैप्टर लर्न करके क्यों नहीं आए,होमवर्क क्यों नहीं किया।फालतू की बातें क्यों पूछते हों,किताब के सवाल या अन्य पुस्तक जो वे पढ़ा रहे हैं,से संबंधित बातें किया करो आदि-आदि।इस प्रकार एक छोटी-सी बात को लेकर,अपनी कमजोरी छुपाने के लिए ढेर सारा लेक्चर झाड़ देते हैं।
- अपने आप को अपडेटेड नहीं रखते हैं यहां तक की कुछ अध्यापक-अध्यापिकाओं की स्थिति तो यहां तक है कि वे अपने विषय के बारे में ही पूर्ण जानकारी नहीं रखते हैं।किसी सवाल अथवा थ्योरी में अटक जाते हैं,बता नहीं पातें।बच्चों को बोल देते हैं इसे बाद में देखकर बता दूंगा/दूंगी।या यह सवाल अथवा अमुक प्रश्न परीक्षा के दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण नहीं है इसलिए इसे छोड़ दो और परीक्षा में आने वाले महत्त्वपूर्ण सवालों या प्रश्नों को मैं बता दूंगा/दूंगी उन्हें ठीक से लर्न कर लेना,हल कर लेना।परीक्षा में उत्तीर्ण हो जाओगे।परंतु आजकल के बच्चे बड़े एडवांस होते जा रहे हैं,कुछ तो सामने नहीं बोलते हैं परंतु कुछ फौरन उल्टा जवाब दे देते हैं।कहते हैं मैम यदि आपको इतना ही पता है कि परीक्षा में क्या आएगा और क्या नहीं आएगा तो आप हमें वो प्रश्न-पत्र क्यों नहीं बता देती।
4.होमवर्क के बारे में हमारे देश की स्थिति (Our country’s position regarding homework):
- बच्ची की बातें थोड़ा अतीत में ले गई।कुछ साल पहले कुंभ मेला चल रहा था,उस समय गंगा तट पर एक जर्मन जोड़ा अपने व्यस्त न खत्म होने वाली बातों में उलझा हुआ था।विदेशी,खासतौर पर यूरोपीय काफी रिजर्व होते हैं।कोई साथी ना हो तो बात करने में कतराते हैं।
- हालांकि जब उनसे बातचीत की शुरुआत हुई तो वे भी थोड़ा खुले।बातचीत के क्रम में उन्होंने जो बताया वह चकित करने वाला था।उन्होंने कहा-“वे जर्मनी के ब्रीमैन स्टेट से आए हैं।” दरअसल इस वाक्य में थोड़ा सुधार की जरूरत है,उन्होंने कहा-आए नहीं है,उन्हें भेजा गया है।ये दोनों पति-पत्नी टीचर थे और उन्हें ब्रीमैन स्टेट ने भारत का दर्शन करने के लिए भेजा था।जिससे वे लौटकर बच्चों को वह सब पढ़ाएँ,जो भारत के संदर्भ में सही व सटीक है।कुंभ आयोजन का समय भी इसी उद्देश्य से चुना गया था।बातचीत के क्रम में उन्होंने यह भी बताया कि उनके देश में वेकेशन का मतलब मौज-मस्ती नहीं होता।इस दौरान टीचर की एक्सपर्टीज को और निखारा जाता है।वर्क्सशॉप होती है,कैंप लगते हैं,जिससे वे टीचिंग के नए गुर सीखते हैं।
- जबकि हमारे देश में हालात दूसरे हैं।दीपावली,विंटर या समर वेकेशन में अध्यापक-अध्यापिकाएं मौज-मस्ती करते हैं,घूमते फिरते हैं,कोई नया गुर या ज्ञान सीखने की जिज्ञासा नहीं होती है,कुछ नया ज्ञान अर्जित करने की चाह नहीं होती है।इस प्रकार उनका वेकेशन ज्ञानवृद्धि से शून्य वेकेशन के रूप में खत्म हो जाता है।
- जहां तक अपने देश की बात है,तो शायद यहां अध्यापन एक ऐसा पेशा बन गया है,जिसमें होमवर्क की जरूरत नहीं समझी जाती।वकील खाली समय में नए कानूनों व नजीरों को समझता है।डॉक्टर नई दवाओं और इलाज के तरीकों का अध्ययन करता है।मार्केटिंग एक्सपर्ट बाजार की नब्ज समझने की कोशिश करते हैं,लेकिन बच्चों के टीचर सीधे क्लास में पहुंचते हैं और कहते हैं: हिस्ट्री की बुक खोलो,चैप्टर 9,अकबर दी ग्रेट।
- खैर जो भी हो,बच्चों की बातें बच्चों से ही सुन लेते हैं।उनकी बातों से पता चलता है कि स्कूल की जिस अनिवार्य परंपरा से बच्चे सबसे अधिक चिढ़ते हैं,वह है-होमवर्क।एक बच्चा बताने लगा 6 घंटे स्कूल में पढ़ो और घर पहुंचते ही मम्मी का पहला सवाल होता है,कितना होमवर्क मिला है।लंच के बाद वे होमवर्क लेकर बैठ जाती हैं।शाम को ट्यूशन लेने जाता हूं।8:00 बजे घर लौटता हूं,पापा रिवीजन कराते हैं।
- उक्त बच्चों की बातों में कुछ भी गलत नहीं है।हमारे देश के स्कूल-सरकारी या प्राइवेट बच्चों में होमवर्क कुछ इस अंदाज में ठूँसा जाता है,जैसे बोरे में भूसा; जबकि वास्तविकता यह है कि होमवर्क गैर जरूरी है।यूरोप और अमेरिका में बैगलेस स्कूलिंग बीते दिनों की बात हो गई।हमारे यहां तो पीठ व दिमाग,दोनों पर पढ़ाई का बोझ लाद दिया जाता है।होमवर्क को लेकर पूरी दुनिया में कई हजार शोध हो चुके हैं।उन सबका समवेत निष्कर्ष यह है कि अगर बच्चे को गृहकार्य दिया जाता है तो इसके लिए टीचर जिम्मेदार है।या तो वह ठीक से पढ़ा नहीं पा रहा है,या फिर उसके पास ज्यादा बच्चे हैं।बच्ची की बातें सुनें तो उसका कहना है कि हमारे स्कूल में एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिविटीज बिल्कुल नहीं होती।साल में एक बार मुश्किल से पिकनिक पर ले जाते हैं किसी बोरिंग-सी जगह।
5.बच्चों की प्रतिभा को कुचला जाता है (Children’s talents are crushed):
- स्कूल के एनुअल डे पर ड्रामा होता है,बिल्कुल थका-सा।कभी हमसे नहीं कहा जाता है कि तुम ड्रामा लिखो,एक्ट करो,डायरेक्ट करो।इन बच्चों की बातें सही हैं।आज के बच्चे काफी इनोवेटिव हैं।उनके भीतर काफी कुछ उमड़-घुमड़ रहा है।जागती आंखों से देखे जा रहे उनके सपनों को हम मार रहे हैं।बच्चे तो उत्सवधर्मी होते हैं।जिज्ञासाएं उनमें ठाठें मार रही होती हैं।वे सब कुचली जाती हैं।उन नए-नए आइडियाज का दम घुट रहा है।इस स्कूल में पनिशमेंट के नए-नए तरीके।हां,यह सब ज्यादातर बच्चों ने स्वीकार किया कि उन्हें अब शारीरिक प्रताड़ना नहीं झेलनी पड़ती,लेकिन बेंच पर खड़ा कर देना,फेस दि वाल जैसी सजायें देकर उन्हें मानसिक प्रताड़ना तो मिलती ही है।इन सबसे तो व्यक्तित्व विकास अवरुद्ध होता है।
- टीचर हो या अभिभावक बच्चों को इंस्पायर या प्रेरित करना चाहिए,इन्हें पनिश करना नहीं।पंचतारा स्कूलों की कहानी तो यहां नहीं की जा रही,लेकिन छोटे-मझौले और सरकारी स्कूलों के बारे में तो यह बातें खरा सच हैं।वहां शिक्षा दी नहीं जाती-थोपी जाती है।इसी का परिणाम है कि बच्चे मुस्कुराना भूलते जा रहे हैं।जरूरत उनकी मुस्कराहट को वापस लाने की है।उनके व्यक्तित्व की मौलिकता को खोजने व उसे विकसित करने की है।सब धान बाईस पसेरी ही क्यों? एक जैसी शिक्षा का ढर्रा सबके लिए आवश्यक क्यों? दुनियाभर के वैज्ञानिक,शिक्षाविद् चिल्ला-चिल्लाकर कह रहे हैं कि एक सीमा तक बच्चे का शारीरिक मानसिक-विकास हो जाने दें।उसके बाद उसके भीतर के जींस खुद चिल्लाकर बताएंगे कि वह क्या पढ़ना चाहता है? भगवद्गीता भी तो स्वधर्म व स्व-व्यक्तित्व को विकसित करने की बात करती है।इसे हममें से हरेक को निभाना है।बच्चे निभा सकें,इसकी व्यवस्था बनानी है।
- जब बच्चों की लंबी छुट्टियां होती हैं,तो उन्हें स्कूल से ढेर सारा होमवर्क बच्चों को करने के लिए मिल जाता है और बच्चा उस होमवर्क को करने में ही जुट जाता है।माता-पिता भी बच्चों को बार-बार टोकते रहते हैं कि चलो,पढ़ोगे नहीं तो अच्छे नंबर नहीं आएंगे,खेलना-कूदना बाद में।सारा कोर्स समाप्त कर लो इन छुट्टियों में,तभी तो अगली कक्षा में प्रथम आओगे और बच्चा बेचारा पढ़ाई के बोझ से अभी छुटकारा ही पाया था कि फिर से उसे पढ़ाई के बोझ तले दबा दिया गया,ऐसे में जबकि बच्चों को छुट्टियां बिताने,उनकी पसंद की चीजों को दिखाने का समय होता है,तो उस बच्चे का पढ़ाई में मन कैसे लगेगा।उसका मन तो अपने बुने सपनों की उड़ान पर उड़ रहा है,परंतु पढ़ाई के आगे वह विवश है।अतः अपने बच्चों के बारे में शिक्षक व अभिभावक मिलकर सोचें और सबसे बड़ी बात बच्चों को मुस्कराने दें।
- उपर्युक्त आर्टिकल में होमवर्क का बोझ क्यों न लादें की 5 टॉप टिप्स (5 Top Tips on Why Not Burden Homework),बच्चों पर होमवर्क का बोझ न लादें (Do Not Burden Children with Homework) के बारे में बताया गया है।
Also Read This Article:Home Work in Mathematics
6.पुस्तक का सवाल हल करना (हास्य-व्यंग्य) (Solving Book Questions) (Humour-Satire):
- एक छात्र के पास गणित की पुस्तक देखकर एक व्यक्ति ने पूछा बेटा-क्या यह पुस्तक सभी सवालों को हल कर देती है?
- छात्र:नहीं अंकल,मुझे खुद सवाल हल करना पड़ता है।
7.होमवर्क का बोझ क्यों न लादें की 5 टॉप टिप्स (Frequently Asked Questions Related to 5 Top Tips on Why Not Burden Homework),बच्चों पर होमवर्क का बोझ न लादें (Do Not Burden Children with Homework) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:
प्रश्न:1.स्टडी फोबिया क्या है? (What is Study Phobia?):
उत्तर:अक्सर देखा जाता है कि बच्चे स्कूल का नाम सुनते ही नाक-भौं सिकोड़ने लगते हैं।स्कूल जाने के नाम से ही उनके पेट में दर्द होने लगता है,सिर दर्द हो या पैर दर्द या फिर कोई और बहाना बनाने लगते हैं।यदि उसने होमवर्क नहीं किया है,तो टीचर की डांट के डर से कोई न कोई बहाना तैयार रखता है।यह फोबिया परीक्षाओं के आते ही बढ़ जाता है।मां-बाप की अपेक्षाओं के कारण भी यह फोबिया बढ़ जाता है।
प्रश्न:2.स्टडी फोबिया को कैसे दूर करें? (How to overcome study phobia?):
उत्तर:अभिभावक और शिक्षकों को बच्चों से बातचीत कर उन्हें समझना चाहिए और उन्हें किस चीज से परेशानी है,यह जानने की कोशिश करनी चाहिए।स्टडी फोबिया के बढ़ने से बच्चों को बिहेवियर (व्यवहार) थेरेपी दी जाती है।इसमें डॉक्टर बच्चों से बातचीत करके उनकी परेशानी जानने की कोशिश करते हैं।
प्रश्न:3.क्या होमवर्क देना गलत है? (Is it wrong to give homework?):
उत्तर:छोटे बच्चों को होमवर्क देने के बजाय शिक्षा संस्थान में ही अध्ययन करा देना चाहिए तथा जो पढ़ाया गया है उसे ही घर पर रिवीजन करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।परंतु मनोरंजन,खेलने-कूदने का समय भी बच्चों को देना चाहिए।बड़े बच्चें यथा कॉलेज वगैरह के बच्चे तो वैसे ही होमवर्क नहीं करते हैं।उनके लिए सवालों,प्रश्नों को हल करने व नोट्स बनाने तथा रिवीजन में ही समय व्यतीत हो जाता है।अतः जहां तक संभव हो होमवर्क देने से बचना चाहिए,बल्कि जो कुछ पढ़ाना है उसे हो सके तो विद्यालय या शिक्षा संस्थानों में ही अध्ययन कर देना चाहिए।होमवर्क के बोझ से रिवीजन (पुनरावृत्ति) नहीं हो पाती है।वैसे भी यदि होमवर्क दिया जाता है तो बच्चे अक्सर पासबुकों से उत्तर नकल करके कॉपी में लिख लेते हैं अत होमवर्क का उद्देश्य ही निष्फल हो जाता है।
- उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा होमवर्क का बोझ क्यों न लादें की 5 टॉप टिप्स (5 Top Tips on Why Not Burden Homework),बच्चों पर होमवर्क का बोझ न लादें (Do Not Burden Children with Homework) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
No. | Social Media | Url |
---|---|---|
1. | click here | |
2. | you tube | click here |
3. | click here | |
4. | click here | |
5. | Facebook Page | click here |
6. | click here |
Related Posts
About Author
Satyam
About my self I am owner of Mathematics Satyam website.I am satya narain kumawat from manoharpur district-jaipur (Rajasthan) India pin code-303104.My qualification -B.SC. B.ed. I have read about m.sc. books,psychology,philosophy,spiritual, vedic,religious,yoga,health and different many knowledgeable books.I have about 15 years teaching experience upto M.sc. ,M.com.,English and science.